एनसीईआरटी समाधान कक्षा 11 राजनीति विज्ञान अध्याय 10 विकास
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 11 राजनीति विज्ञान अध्याय 10 विकास के प्रश्न उत्तर हिंदी और अंग्रेजी में सीबीएसई तथा राजकीय बोर्ड सत्र 2024-25 के सिलेबस के अनुसार संशोधित रूप में यहाँ से प्राप्त किए जा सकते हैं। 11वीं कक्षा में राजनीति शास्त्र में राजनीतिक सिद्धांत के पाठ 10 के सभी सवाल जवाब तथा अतिरिक्त प्रश्नों के उत्तर यहाँ दिए गए हैं।
कक्षा 11 राजनीति विज्ञान अध्याय 10 विकास के प्रश्न उत्तर
आप विकास से क्या समझते हैं? क्या विकास की प्रचलित परिभाषा से समाज के सभी वर्गों को लाभ होता है?
विकास : विकास शब्द अपने आप में उन्नति, कल्याण, प्रगति और उज्ज्वल जीवन की अभिलाषा के विचारों का वाहक है। विकास का कार्य समाज के व्यापक दृष्टिकोण के अनुसार नहीं होता है। इस प्रक्रिया में समाज के कुछ हिस्से लाभान्वित होते हैं।
जिस तरह का विकास अधिकतर देशों में अपनाया जा रहा है उससे पड़ने वाले सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों की चर्चा कीजिए।
सामाजिक प्रभाव : विकास की अवधारणा ने बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में महत्त्वपूर्ण सफ़लता हासिल की। 1950 तथा 1960 के दशक में जब ज्यादातर एशियाई व अफ्रीकी देशों ने औपनिवेशिक शासन से आजादी हासिल की। तब उनके सामने सबसे महत्वपूर्ण कार्य गरीबी, कुपोषण, बेरोजगारी, निरक्षरता तथा बुनियादी सुविधाओं के अभाव से संबंधित महत्वपूर्ण समस्याओं का समाधान करना था। स्वतंत्रता के द्वारा वे अपने संसाधनों का उपयोग अपने राष्ट्रीय हित में सर्वश्रेष्ठ तरीके से कर सकते हैं। विकास की अवधारणा विगत वर्षों में काफ़ी बदली है। आंरभिक वर्षों में जोर आर्थिक उन्नति एवं समाज के आधुनिकरण के रूप में पश्चिमी देशों के स्तर तक पहुँचने का था। विकासशील देशों ने औद्योगीकरण, कृषि और शिक्षा के आधुनिकरण तथा विस्तार के द्वारा तेज आर्थिक उन्नति का लक्ष्य निर्धारित किया था। अनेक देशों ने विकास की कई नीतियों का सूत्रपात किया था। पचास के दशक से प्रारंभ करते हुए भारत में विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाओं की एक श्रृंखला बनी और इनमें भाखड़ा नांगल बांध, देश के विभिन्न हिस्सों में इस्पात संयंत्रों की स्थापना, उर्वरक उत्पादन, खनन, कृषि तकनीकी में सुधाार जैसी अनेक बड़ी परियोजनाएँ शामिल थी। नर्मदा नदी पर सरदार-सरोवर परियोजना के अंतर्गत बनने वाले बांधों के निर्माण के खिलाफ़ आंदोलन चला। अपनी जमीन के डूबने के कारण तथा अपनी आजीविका के छिन जाने से 10 लाख से अधिक लोगों के विस्थापन की समस्या पैदा हो गई थी।
पर्यावरणीय प्रभाव : विकास की प्रक्रिया के दौरान विश्व में कई पर्यावरणीय समस्याओं को देखा गया है। औद्योगिकरण से जल प्रदूषण तथा वायु प्रदूषण जैसी समस्याओं को देखा गया है। भूमि का जल स्तर भी गिर गया है। आने वाले समय में पारिस्थितिकी संकट से हम बुरी तरह प्रभावित होंगे ऊर्जा के लगातार बढत़े प्रयोग से कोयला और पेट्रोलियम जैसे प्राकृतिक संसाधानों का सर्वाधिक मात्रा में उपयोग किया जा रहा है इन प्राकृतिक श्रोतों को पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता है। जंगलों को काटने से पर्यावरण पर सर्वाधिक बुरा असर पड़ रहा है। औषधि तथा आहार आदि समस्याएँ पैदा हो जाएंगी। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की वजह से आर्कटिक तथा अंटार्कटिक ध्रुवों पर बर्फ पिघल रही है।
विकास की प्रक्रिया ने किन नए अधिकारों के दावों को जन्म दिया है?
आने वाली पीढ़ियों का उन संसाधानों पर अधिकार जो पूरी मानव सभ्यता के लिए समान हैं।
लोगों की आजीविका का अधिकार जब उनके रोजगार संबंधी गतिविधियों को विकास की गतिविधियों से नुकसान हो।
विकास से जुड़ी गतिविधियों में उन सभी की भागीदारी का अधिकार होना चाहिए जो उस विकास प्रक्रिया से आहत होंगे।
नैसर्गिक संसाधानों के उपयोग के परंपरागत अधिकारों का दावा।
विकास के बारे में निर्णय सामान्य हित को बढ़ावा देने के लिए किए जाएँ, यह सुनिश्चित करने में अन्य प्रकार की सरकार की अपेक्षा लोकतांत्रिक व्यवस्था के क्या लाभ हैं?
विकास को अब व्यापक अर्थ में ऐसी प्रक्रिया के रूप में देखा जा रहा है जो सभी लोगों के जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि करे। विकास की ऐसी प्रक्रिया होना चाहिए जो अधिक से अधिक लोगों को उनके जीवन में अर्थपूर्ण तरीके से विकल्पों को चुनने की अनुमति दे। इसकी पूर्व शर्त है कि भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा मकान जैसी बुनियादी आवश्यकओं की पूर्ति हो। ‘रोटी, कपड़ा और मकान’, ‘गरीबी हटाओ’ जैसे नारे दिए जाते हैं क्योंकि विकास की गतिविधियों का निर्णय सामान्य हित को बढ़ावा देने के लिए किया जाना चाहिए। अतः यदि बेहतर जीवन प्राप्त करने में समाज का प्रत्येक व्यक्ति सम्मिलित है तो विकास के निर्णय तथा लक्ष्य तय करने में भी प्रत्येक व्यक्ति की भागीदारी आवश्यक है।
विकास से होने वाली सामाजिक और पर्यावरणीय क्षति के प्रति सरकार को जवाबदेह बनवाने में लोकप्रिय संघर्ष और आंदोलन कितने सफ़ल रहे हैं?
विकास से होने वाली सामाजिक और पर्यावरणीय क्षति के प्रति सरकार को जवाबदेह बनवाने में कई आंदोलन व संघर्ष किए गए जो कि सफ़ल रहे हैं:
नर्मदा बचाओ आंदोलन : नर्मदा नदी पर सरदार-सरोवर परियोजना के अंतर्गत बनने वाले बाँधों के निर्माण के खिलाफ़ आंदोलन चला। अपनी जमीन के डूबने के कारण तथा अपनी आजीविका के छिन जाने से 10 लाख से अधिक लोगों के विस्थापन की समस्या पैदा हो गई थी। इसके विरोध में नर्मदा बचाओ आंदोलन प्रारंभ हुआ जिसका सरकार पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। बाँध की ऊँचाई सीमित करने में आंदोलनकारियों को सफ़लता मिली।
चिपको आंदोलन : यह आंदोलन भारत के उत्तराखंड (पूर्व में उत्तर प्रदेश का भाग) में लोगों ने वृक्षों की कटाई का विरोध किया। ये लोग राज्य के वन विभाग के अधिकारियों द्वारा वनों की कटाई को रोकने के लिए पेड़ों से जाकर चिपक गये। इस आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी अहम थी। सुंदरलाल बहुगुणा तथा चंडी प्रसाद भट्ट इस आंदोलन के प्रसिद्ध नेता थे। इस आंदोलन ने सरकार को बहुत हद तक प्रभावित किया।
साइलेंटवैली आंदोलन : 1980 में केरल के कुंतीपूंझ नदी पर एक परियोजना के अंतर्गत 200 मेगावाट बिजली निर्माण हेतु बांध का प्रस्ताव रखा गया था। इससे वहाँ के क्षेत्रों की विशेष फूलों तथा लुप्त होने वाली प्रजातियों को खतरा था। इस आंदोलन ने सरकार पर अधिक दबाव बनाया तथा इसके फ़लस्वरूप सरकार को 1985 में इसे राष्ट्रीय आरक्षित वन घोषित करना पड़ा।