एनसीईआरटी समाधान कक्षा 1 हिंदी सारंगी पाठ 9 आलू की सड़क
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 1 हिंदी सारंगी पाठ 9 आलू की सड़क के अभ्यास के प्रश्न उत्तर चित्रों सहित यहाँ से नए सत्र के लिए प्राप्त किए जा सकते हैं। कक्षा 1 के विद्याथियों को हिंदी का अध्याय 9 बहुत मनोरंजक प्रतीत होगा क्योंकि इसमें दिखाया गया है कि किस प्रकार बन्दर चतुराई से भालू के बारे में जानकारी एकत्र करता है।
कक्षा 1 हिंदी सारंगी पाठ 9 के लिए एनसीईआरटी समाधान
कक्षा 1 हिंदी सारंगी पाठ 9 आलू की सड़क के प्रश्न उत्तर
एक भालू था। उसे नानी के घर दूर जाना था। रास्ते में खाने के लि ए भालू ने बोरा-भर आलू पीठ पर रख लिए। पर बोरे में तो छेद था। भालू आगे बढ़ता जाता — धप्प, धप्प, धप्प। बोरे से आलू टपकते जाते — टप्प, टप्प, टप्प। रास्ते में पीपल के पेड़ पर एक बंदर बैठा था। उसने भालू से पूछा, “कहाँ जा रहे हो, भैया”? लेकि न उत्तर में बंदर ने बस धप्प, टप्प, धप्प, टप्प, धप्प, टप्प ही सुना। उसने पेड़ से नीचे देखा। रास्ते में आलू पड़े हुए थे। यह देखकर बंदर मन-ही-मन बोला– भालू चाहे न बताए, पर मैं पता लगा सकता हूँ। वह खुश होकर पेड़ से नीचे उतरा।
भालू का सफर
एक दिन एक प्यारा भालू था जिसका नाम था गोलू। गोलू को अपनी नानी के घर जाना था, जो काफी दूर था। वह बहुत उत्साहित था क्योंकि नानी के घर जाने का मतलब था ढेर सारी मस्ती और यम्मी खाना। लेकिन रास्ते में उसे भूख न लगे, इसलिए उसने अपने पीठ पर एक बड़ा बोरा रख लिया जिसमें भरे थे ढेर सारे आलू।
बोरे में छेद
जब गोलू अपनी यात्रा पर निकला, तो उसे पता नहीं था कि उसके आलू वाले बोरे में एक छोटा सा छेद था। वह खुशी-खुशी चलता जा रहा था, पर उसके पीछे कुछ हो रहा था। जैसे-जैसे वह चलता, उसके बोरे से आलू एक-एक करके नीचे गिरने लगे। और तो और, गोलू को इसका बिल्कुल भी अहसास नहीं हुआ।
धप्प और टप्प की आवाज
गोलू जब भी कदम उठाता, उसके पैरों की आवाज आती ‘धप्प, धप्प, धप्प’ और बोरे से गिरते आलू की आवाज आती ‘टप्प, टप्प, टप्प’। यह एक अजीब संगीत की तरह था, पर गोलू को तो बस अपनी नानी से मिलने की जल्दी थी। इसलिए वह बिना रुके, बिना पीछे देखे, बस चलता रहा।
बंदर की जिज्ञासा
रास्ते में एक पेड़ पर एक बंदर बैठा था। उसने देखा कि गोलू कैसे आलू गिराता जा रहा है। बंदर ने गोलू से पूछा, “कहाँ जा रहे हो, भैया”? लेकिन गोलू ने उसकी बात नहीं सुनी और बस ‘धप्प, टप्प, धप्प, टप्प’ की आवाज करते हुए आगे बढ़ता रहा।
बंदर की चतुराई
बंदर ने नीचे देखा और रास्ते में बिखरे आलू देखे। वह समझ गया कि भालू जहाँ भी जा रहा है, उस रास्ते पर आलू गिरते जा रहे हैं। बंदर मन ही मन सोचा, “भालू चाहे न बताए, पर मैं पता लगा सकता हूँ कि वह कहाँ जा रहा है।” उसने खुश होकर पेड़ से नीचे उतरने की सोची।
बंदर का सफर
बंदर ने फिर सोचा कि वह भी गोलू के पीछे जाएगा और देखेगा कि गोलू कहाँ जा रहा है। वह खुशी-खुशी पेड़ से नीचे उतरा और गोलू के पीछे-पीछे चल पड़ा। उसके मन में बहुत सारी जिज्ञासाएँ थीं, और वह जानना चाहता था कि आखिर गोलू की मंजिल क्या है।