एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 हिंदी मल्हार अध्याय 4 हरिद्वार

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 हिंदी मल्हार अध्याय 4 हरिद्वार में भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा हरिद्वार यात्रा का सुंदर चित्रण मिलता है। इस पत्रात्मक वर्णन में उन्होंने गंगा तट, पर्वतों, वृक्षों, पक्षियों और साधु-संतों का भावनात्मक चित्र खींचा है। लेखक बताते हैं कि हरिद्वार की पवित्र भूमि में पहुंचते ही मन प्रसन्न और निर्मल हो जाता है। अध्याय हमें सादगी, भक्ति और प्रकृति-प्रेम का संदेश देता है तथा आध्यात्मिक अनुभव की प्रेरणा प्रदान करता है।
कक्षा 8 हिंदी मल्हार अध्याय 4 के MCQ
कक्षा 8 हिंदी मल्हार के अन्य अध्याय
कक्षा 8 मल्हार हरिद्वार के प्रश्न-उत्तर
कक्षा 8 मल्हार हरिद्वार का सारांश

हरिद्वार कक्षा 8 हिंदी मल्हार अध्याय 4 के प्रश्न उत्तर

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मेरी समझ से

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उपयुक्त उत्तर के सम्मुख तारा (★) बनाइए। कुछ प्रश्नों के एक से अधिक उत्तर भी हो सकते हैं।
1. “सज्जन ऐसे कि पत्थर मारने से फल देते हैं” का क्या अर्थ है?
• लेखक के अनुसार सज्जन लोग बिना पूछे स्वादिष्ट रसीले फल देते हैं।
• लेखक फलदार वृक्षों की उदारता को मानवीय रूप में व्यक्त कर रहे हैं।
• लेखक का मानना था कि हरिद्वार के सभी दुकानदार बहुत सज्जन थे।
• लेखक को पत्थर मारकर पके हुए फल तोड़कर खाना पसंद था।
उत्तर देखें★ लेखक फलदार वृक्षों की उदारता को मानवीय रूप में व्यक्त कर रहे हैं।
क्योंकि लेखक वृक्षों को सज्जनों की तरह बताते हैं, जो विपरीत परिस्थितियों को सहकर भी दूसरों का हित करते हैं। “पत्थर मारने” का अर्थ हानि पहुँचाना नहीं, बल्कि वृक्षों की सहनशीलता और उनकी उदारता दिखाना है।

2. “वैराग्य और भक्ति का उदय होता था ” इस कथन से लेखक का कौन-सा भाव प्रकट होता है?
• शारीरिक थकान और मानसिक बेचैनी
• आर्थिक संतोष और मानसिक विकास
• मानसिक शांति और आध्यात्मिक अनुभव
• सामाजिक सद्भाव और पारिवारिक प्रेम
उत्तर देखें★ मानसिक शांति और आध्यात्मिक अनुभव
क्योंकि हरिद्वार का पवित्र वातावरण, गंगा स्नान और साधुओं की उपस्थिति ने लेखक के मन में भक्ति और वैराग्य जगाया। यह अनुभव उन्हें गहरी मानसिक शांति और आत्मिक संतोष देता है।

3. “पत्थर पर का भोजन का सुख सोने की थाल से बढ़कर था” इस वाक्य का सर्वाधिक उपयुक्त निष्कर्ष क्या है?
• संतुष्टि में सुख होता है।
• सुखी लोग पत्थर पर भोजन करते हैं।
• लेखक के पास सोने की थाली नहीं थी।
• पत्थर पर रखा भोजन अधिक स्वादिष्ट होता है।
उत्तर देखें★ संतुष्टि में सुख होता है।
क्योंकि लेखक बताते हैं कि साधारण साधनों से भी भोजन आनंददायी हो सकता है यदि मन संतुष्ट हो। यह कथन मानसिक संतोष की श्रेष्ठता को दर्शाता है, न कि बाहरी वैभव को।

4. “एक दिन मैंने श्री गंगा जी के तट पर रसोई करके पत्थर ही पर जल के अत्यंत निकट परोसकर भोजन किया।” यह प्रसंग किस मूल्य को बढ़ावा देता है?
• अंधविश्वास और लालच
• मानवता और देशप्रेम
• सादगी और आत्मनिर्भरता
• स्वच्छता और प्रकृति प्रेम
उत्तर देखें★ सादगी और आत्मनिर्भरता
क्योंकि लेखक ने बिना किसी विशेष साधन या आडंबर के, स्वयं रसोई बनाकर भोजन किया। यह सादगी, आत्मनिर्भरता और प्रकृति के साथ सामंजस्य का प्रतीक है।

5. लेखक का हरिद्वार अनुभव मुख्यतः किस प्रकार का था?
• राजनीतिक
• आध्यात्मिक
• सामाजिक
• प्राकृतिक
उत्तर देखें★ आध्यात्मिक
क्योंकि लेखक ने गंगा जी की पवित्रता, साधु-संतों और तीर्थ स्थलों से जुड़ा अनुभव साझा किया है। उनका मन वैराग्य और भक्ति से भर गया था, इसलिए यह यात्रा मुख्यतः आध्यात्मिक थी।

6. पत्र की भाषा का एक मुख्य लक्षण क्या है?
• कठिन शब्दों का प्रयोग और बोझिलता
• मुहावरों का अधिक प्रयोग
• सरलता और चित्रात्मकता
• जटिलता और संक्षिप्तता
उत्तर देखें★ सरलता और चित्रात्मकता
क्योंकि लेखक ने प्राकृतिक दृश्य, गंगा तट, वृक्षों और पर्वतों का वर्णन बहुत ही सरल और चित्रात्मक शैली में किया है। पाठक पढ़ते ही उन दृश्यों को मन में देख सकता है।

(ख) हो सकता है कि आपके समूह के साथियों ने अलग-अलग उत्तर चुने हों। अपने मित्रों के साथ मिलकर चर्चा कीजिए कि आपने ये उत्तर ही क्यों चुने?
उत्तर देखें► पहले प्रश्न में मैंने समझाया कि “पत्थर मारने” का मतलब नुकसान पहुँचाना नहीं, बल्कि वृक्षों की सहनशीलता और उदारता है। अगर कोई दोस्त कहे कि इसका मतलब लेखक को फल खाना पसंद था, तो मैं कहूँगा — “पाठ में कहीं नहीं लिखा कि लेखक को फल तोड़कर खाना अच्छा लगता था, बल्कि उन्होंने वृक्षों की तुलना सज्जनों से की है।”
► दूसरे प्रश्न में अगर कोई मित्र “आर्थिक संतोष और मानसिक विकास” चुनता है, तो मैं समझाऊँगा कि लेखक ने हरिद्वार की पवित्रता से भक्ति और वैराग्य अनुभव किया, न कि पैसों या विकास से।
► तीसरे प्रश्न में मैं कहूँगा कि असली सुख “संतोष” में है, सोने की थाली से नहीं। इसलिए सही उत्तर है – “संतुष्टि में सुख होता है।”
► चौथे प्रश्न में अगर कोई साथी “स्वच्छता और प्रकृति प्रेम” कहे तो मैं मानूँगा कि यह भी आंशिक रूप से सही है, लेकिन लेखक ने खासकर “सादगी और आत्मनिर्भरता” को महत्व दिया है।
► पाँचवे प्रश्न में कोई अगर “प्राकृतिक” चुने तो मैं कहूँगा कि प्राकृतिक दृश्य तो थे, पर लेखक का असली अनुभव आध्यात्मिक था, क्योंकि वे बार-बार भक्ति और वैराग्य की बात करते हैं।
► छठे प्रश्न में मैं समझाऊँगा कि भाषा में कठिन शब्द तो हैं, लेकिन फिर भी उसमें इतनी चित्रात्मकता और सहजता है कि पाठक सब देख सकता है।

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मिलकर करें मिलान

पाठ से चुनकर कुछ शब्द नीचे दिए गए हैं। आपस में चर्चा कीजिए और इनके उपयुक्त संदर्भों से इनका मिलान कीजिए—

क्रम/शब्दसंदर्भ
1. हरिद्वार1. मान्यताओं के अनुसार दुर्गा का एक रूप।
2. गंगा2. यह अठारह पुराणों में से सर्वप्रसिद्ध एक पुराण है। इसमें अधिकांश श्री कृष्ण कथाएँ हैं।
3. भगीरथ3. यह भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थस्थान है। यहाँ से गंगा पहाड़ों को छोड़कर मैदान में आती है।
4. चण्डिका4. यह एक पेड़ का नाम है। यह दक्षिण भारत में बहुतायत से मिलता है। इस पेड़ की सुगंधित छाल दवा और मसाले के काम में आती है। इसे दारचीनी भी कहते हैं।
5. भागवत5. यह भारतवर्ष की एक प्रधान नदी है जो हिमालय से निकलकर लगभग 1560 मील पूर्व की ओर बहकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इसके अनेक नाम हैं, जैसे— भागीरथी, त्रिपथगा, अलकनंदा, मंदाकिनी, सुरनदी आदि।
6. दालचीनी6. ये अयोध्या के प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा थे। कहा जाता है कि ये घोर तपस्या करके गंगा को पृथ्वी पर लाए थे। इसीलिए गंगा का एक नाम ‘भागीरथी’ भी है।

उत्तर:

क्रम/शब्दसंदर्भ
1. हरिद्वार3. यह भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थस्थान है। यहाँ से गंगा पहाड़ों को छोड़कर मैदान में आती है।
2. गंगा5. यह भारतवर्ष की एक प्रधान नदी है जो हिमालय से निकलकर लगभग 1560 मील पूर्व की ओर बहकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इसके अनेक नाम हैं, जैसे— भागीरथी, त्रिपथगा, अलकनंदा, मंदाकिनी, सुरनदी आदि।
3. भगीरथ6. ये अयोध्या के प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा थे। कहा जाता है कि ये घोर तपस्या करके गंगा को पृथ्वी पर लाए थे। इसीलिए गंगा का एक नाम ‘भागीरथी’ भी है।
4. चण्डिका1. मान्यताओं के अनुसार दुर्गा का एक रूप।
5. भागवत2. यह अठारह पुराणों में से सर्वप्रसिद्ध एक पुराण है। इसमें अधिकांश श्री कृष्ण कथाएँ हैं।
6. दालचीनी4. यह एक पेड़ का नाम है। यह दक्षिण भारत में बहुतायत से मिलता है। इस पेड़ की सुगंधित छाल दवा और मसाले के काम में आती है। इसे दारचीनी भी कहते हैं।

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मिलकर करें चयन

(क) पाठ से चुनकर कुछ वाक्य नीचे दिए गए हैं। प्रत्येक वाक्य के सामने दो-दो निष्कर्ष दिए गए हैं —— एक सही और एक भ्रामक। अपने समूह में इन पर विचार कीजिए और उपयुक्त निष्कर्ष पर सही का चिह्न लगाइए।

क्रम/पंक्तिनिष्कर्ष
1. पर्वतों पर अनेक प्रकार की वल्ली हरी-भरी सज्जनों के शुभ मनोरथों की भाँति फैलकर लहलहा रही है।• लताओं का फैलना सज्जनों की शुभ इच्छाओं की तरह सौम्यता और सुंदरता को दर्शाता है।
• सज्जनों की शुभ इच्छाएँ लताओं के समान फैल जाती हैं।
2. बड़े-बड़े वृक्ष भी ऐसे खड़े हैं मानो एक पैर से खड़े तपस्या करते हैं और साधुओं की भाँति घाम, ओस और वर्षा अपने ऊपर सहते हैं।• वृक्षों की स्थिति साधुओं जैसी है जो हर मौसम को सहने के लिए विवश हैं।
• वृक्षों की स्थिति साधुओं जैसी है जो हर मौसम को सहते हुए तपस्या करते हैं।
3. इन वृक्षों पर अनेक रंग के पक्षी चहचहाते हैं और नगर के दुष्ट बधिकों से निडर होकर कल्लोल करते हैं।• यहाँ के पक्षी प्रकृति में सुरक्षित अनुभव करते हैं, इसलिए वे निडर होकर कल्लोल करते हैं।
• यहाँ के पक्षी नगर से डरकर इस जगह आ गए हैं इसलिए वे कल्लोल करते हैं।
4. जल यहाँ का अत्यंत शीतल है और मिष्ट भी वैसा ही है मानो चीनी के पने को बरफ में जमाया है। • गंगाजल की ठंडक और मिठास का अनुभव बहुत मनोहारी है।
• गंगाजल की शीतलता और मिठास से शक्कर और बरफ बनाई जा सकती है।
5. एक दिन मैंने श्री गंगा जी के तट पर रसोई करके पत्थर ही पर जल के अत्यंत निकट परोसकर भोजन किया।• लेखक ने भोजन इसलिए बनाया क्योंकि गंगा का पानी बहुत गरम था और वह पकाने में सहायक था।
• लेखक ने गंगा के समीप बैठकर भोजन किया, जिससे उनकी प्रकृति से निकटता झलकती है।
6. निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थानदान दीजिएगा।• लेखक चाहता है कि पत्र को महत्व देकर कहीं स्थान दिया जाए, यानी इसे पढ़ा और सँजोया जाए।
• लेखक चाहता है कि पत्र को महत्व देकर प्रकाशित किया जाए।

उत्तर:

क्रम/पंक्तिनिष्कर्ष
1. पर्वतों पर अनेक प्रकार की वल्ली हरी-भरी सज्जनों के शुभ मनोरथों की भाँति फैलकर लहलहा रही है।✔️ लताओं का फैलना सज्जनों की शुभ इच्छाओं की तरह सौम्यता और सुंदरता को दर्शाता है।
✖️ सज्जनों की शुभ इच्छाएँ लताओं के समान फैल जाती हैं।
2. बड़े-बड़े वृक्ष भी ऐसे खड़े हैं मानो एक पैर से खड़े तपस्या करते हैं और साधुओं की भाँति घाम, ओस और वर्षा अपने ऊपर सहते हैं।✖️ वृक्षों की स्थिति साधुओं जैसी है जो हर मौसम को सहने के लिए विवश हैं।
✔️ वृक्षों की स्थिति साधुओं जैसी है जो हर मौसम को सहते हुए तपस्या करते हैं।
3. इन वृक्षों पर अनेक रंग के पक्षी चहचहाते हैं और नगर के दुष्ट बधिकों से निडर होकर कल्लोल करते हैं।✔️ यहाँ के पक्षी प्रकृति में सुरक्षित अनुभव करते हैं, इसलिए वे निडर होकर कल्लोल करते हैं।
✖️ यहाँ के पक्षी नगर से डरकर इस जगह आ गए हैं इसलिए वे कल्लोल करते हैं।
4. जल यहाँ का अत्यंत शीतल है और मिष्ट भी वैसा ही है मानो चीनी के पने को बरफ में जमाया है। ✔️ गंगाजल की ठंडक और मिठास का अनुभव बहुत मनोहारी है।
✖️ गंगाजल की शीतलता और मिठास से शक्कर और बरफ बनाई जा सकती है।
5. एक दिन मैंने श्री गंगा जी के तट पर रसोई करके पत्थर ही पर जल के अत्यंत निकट परोसकर भोजन किया।✖️ लेखक ने भोजन इसलिए बनाया क्योंकि गंगा का पानी बहुत गरम था और वह पकाने में सहायक था।
✔️ लेखक ने गंगा के समीप बैठकर भोजन किया, जिससे उनकी प्रकृति से निकटता झलकती है।
6. निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थानदान दीजिएगा।✔️ लेखक चाहता है कि पत्र को महत्व देकर कहीं स्थान दिया जाए, यानी इसे पढ़ा और सँजोया जाए।
✖️ लेखक चाहता है कि पत्र को महत्व देकर प्रकाशित किया जाए।

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पंक्तियों पर चर्चा

पाठ से चुनकर कुछ पंक्तियाँ नीचे दी गई हैं। इन्हें ध्यानपूर्वक पढ़िए और इन पर विचार कीजिए। आपको इनका क्या अर्थ समझ में आया? अपने विचार अपने समूह में साझा कीजिए और लिखिए।
(क) “यहाँ की कुशा सबसे विलक्षण होती है जिसमें से दालचीनी, जावित्री इत्यादि की अच्छी सुगंध आती है। मानो यह प्रत्यक्ष प्रगट होता है कि यह ऐसी पुण्यभूमि है कि यहाँ की घास भी ऐसी सुगंधमय है।”
उत्तर देखेंअर्थ: लेखक का कहना है कि हरिद्वार की भूमि इतनी पवित्र और विशेष है कि वहाँ उगने वाली साधारण-सी घास (कुशा) से भी दालचीनी और जावित्री जैसी सुगंध आती है। यह कोई साधारण बात नहीं है, बल्कि यह भूमि की आध्यात्मिक महत्ता और विशेषता को दर्शाता है।
भावार्थ: हरिद्वार की प्राकृतिक वस्तुएँ भी इतनी शुद्ध और पावन हैं कि वे दिव्य गुणों से परिपूर्ण लगती हैं। यहाँ की घास भी जैसे पुण्य का संदेश देती है। यह बात भूमि की महिमा और लेखक के भावात्मक जुड़ाव को दर्शाती है।

(ख) “अहा! इनके जन्म भी धन्य हैं जिनसे अर्थी विमुख जाते ही नहीं। फल, फूल, गंध, छाया, पत्ते, छाल, बीज, लकड़ी और जड़; यहाँ तक कि जले पर भी कोयले और राख से लोगों का मनोर्थ पूर्ण करते हैं। ”
उत्तर देखेंअर्थ: लेखक पेड़ों की उपयोगिता की प्रशंसा कर रहे हैं। उनका कहना है कि ये वृक्ष अपने जीवन में हर प्रकार से मनुष्य के काम आते हैं—फल, फूल, पत्ते, लकड़ी आदि देते हैं और मरने के बाद भी कोयले और राख बनकर भी उपयोगी रहते हैं।
भावार्थ: यहाँ वृक्षों की उदारता, सेवा-भावना और त्याग को महिमामंडित किया गया है। लेखक ने उन्हें सज्जनों की तरह बताया है जो अपना सब कुछ दूसरों के लिए समर्पित कर देते हैं। यह पंक्ति प्रकृति के प्रति कृतज्ञता और उसके महत्व को दर्शाती है।

कक्षा 8 हिंदी मल्हार अध्याय 4 के सोच-विचार पर आधारित प्रश्न

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सोच-विचार के लिए

पाठ को पुन: ध्यान से पढ़िए, पता लगाइए और लिखिए।
(क) “और संपादक महाशय, मैं चित्त से तो अब तक वहीं निवास करता हूँ…”
लेखक का यह वाक्य क्या दर्शाता है? क्या आपने कभी किसी स्थान को छोड़कर ऐसा अनुभव किया है?
कब-कब?
उत्तर देखेंयह वाक्य दर्शाता है कि हरिद्वार की पवित्रता, सौंदर्य और शांति ने लेखक के मन पर गहरा प्रभाव डाला है। वह भले ही शारीरिक रूप से हरिद्वार से लौट आए हों, लेकिन उनका मन वहीं पर बसा हुआ है। यह भाव किसी स्थान से आत्मिक जुड़ाव को दर्शाता है।
स्वानुभव: हाँ, कई बार ऐसा अनुभव हुआ है — जैसे किसी धार्मिक स्थल, शांतिपूर्ण गाँव या प्राकृतिक स्थान से लौटने के बाद भी वहाँ की यादें मन में बसी रह जाती हैं। एक बार शिमला से लौटने के बाद भी कई दिन तक वही ठंडी हवा और पहाड़ी रास्ते मन में घूमते रहे।

(ख) “पंडे भी यहाँ बड़े विलक्षण संतोषी हैं। एक पैसे को लाख करके मान लेते हैं।
लेखक का यह कथन आज के समाज में कितना सच है? क्या अब भी ऐसे संतोषी लोग मिलते हैं? अपने विचार उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर देखेंलेखक का यह कथन उस समय के पंडों की संतोष वृत्ति को दर्शाता है। आज के समाज में ऐसे लोग कम ही मिलते हैं, क्योंकि अब अधिकतर लोग अधिक पाने की लालसा में रहते हैं। फिर भी, कुछ ग्रामीण इलाकों या धार्मिक स्थलों पर अब भी ऐसे संतोषी लोग मिल जाते हैं, जो श्रद्धा से मिली छोटी-सी भेंट को भी आदर से स्वीकारते हैं।
उदाहरण: मैंने एक बार उज्जैन में एक वृद्ध पुजारी को देखा, जो केवल दो रुपए में पूजा कर संतोष से बैठे थे। जब उन्हें अधिक पैसे देने की कोशिश की गई, तो उन्होंने मना कर दिया और कहा — “श्रद्धा से जो मिला वही बहुत है।”

(ग) “मैं दीवान कृपा राम के घर के ऊपर के बंगले पर टिका था। यह स्थान भी उस क्षेत्र में टिकने योग्य ही है। ” आपके विचार से लेखक ने उस स्थान को ‘टिकने योग्य’ क्यों कहा है? उस स्थान में कौन-कौन सी विशेषताएँ होंगी जो उसे ‘टिकने योग्य’ बनाती होंगी?
उत्तर देखेंलेखक ने उस स्थान को टिकने योग्य इसलिए कहा होगा क्योंकि वह न केवल सुविधाजनक रहा होगा, बल्कि वहाँ का वातावरण शांत, शीतल, धार्मिक और आत्मिक रूप से प्रेरक रहा होगा। वहाँ चारों ओर से शीतल वायु आती थी, जो मानसिक शांति और आराम देती थी। यह स्थान भक्ति, अध्ययन और आत्मचिंतन के लिए उपयुक्त रहा होगा।
विशेषताएँ:
► शांत वातावरण
► शीतल और ताजगी भरी हवा
► तीर्थ क्षेत्र का प्रभाव
► सुविधा और सज्जनता
► आध्यात्मिक प्रेरणा देने वाला परिवेश

(घ) “फल, फूल, गंध, छाया, पत्ते, छाल, बीज, लकड़ी और जड़; यहाँ तक कि जले पर भी कोयले और राख से लोगों का मनोर्थ पूर्ण करते हैं।”
इस वाक्य के माध्यम से आपको वृक्षों के महत्व के बारे में कौन-कौन सी बातें सूझ रही हैं?
उत्तर देखेंइस वाक्य से वृक्षों की महान उपयोगिता का बोध होता है। वे अपने जीवन भर मनुष्य की सेवा करते हैं — फल, फूल, छाया और लकड़ी देते हैं। मृत्यु के बाद भी कोयले और राख के रूप में उपयोगी रहते हैं। यह वाक्य यह सिखाता है कि वृक्ष केवल प्राकृतिक संसाधन नहीं, बल्कि सेवा और त्याग का प्रतीक हैं।
मुख्य बातें:
► वृक्ष जीवनभर मानव सेवा करते हैं।
► उनका प्रत्येक अंग किसी न किसी कार्य में आता है।
► वे बिना किसी स्वार्थ के फल, छाया, गंध और ईंधन देते हैं।
► उनका जीवन सच्चे त्याग और उपकार का उदाहरण है।

कक्षा 8 हिंदी मल्हार अध्याय 4 के कल्पना पर आधारित प्रश्न

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अनुमान और कल्पना से

(क) “यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी है।”
कल्पना कीजिए कि आप हरिद्वार में हैं। आप वहाँ क्या-क्या करना चाहेंगे?
उत्तर देखेंअगर मैं हरिद्वार में होता, तो मैं ये सब करना चाहता:
• मैं सबसे पहले वहाँ के सुंदर हरे-भरे पर्वतों को देखना चाहूँगा।
• मैं गंगा जी के शीतल और मीठे जल में स्नान करना चाहूँगा।
• मैं वहाँ के घाटों को देखना चाहूँगा और कल-कल बहती गंगा की धारा को महसूस करना चाहूँगा।
• मैं चाहता हूँ कि मैं भी लेखक की तरह पत्थर पर भोजन करके उस सुख का अनुभव करूँ जो सोने की थाल के भोजन से कहीं बढ़कर था ।
• मैं वहाँ के अलग-अलग मंदिरों और मठों को भी देखना चाहूँगा।

(ख) “जल के छलके पास ही ठंढे-ठंढे आते थे।”
कल्पना कीजिए कि आप गंगा के तट पर हैं और पानी के छींटे आपके मुँह पर आ रहे हैं। अपने अनुभवों को अपनी कल्पना से लिखिए।
उत्तर देखेंमैं कल्पना करता हूँ कि मैं गंगा के तट पर बैठा हूँ और वहाँ का ठंडा, मीठा पानी मेरे चेहरे पर छलक रहा है। उस समय मुझे बहुत खुशी और शांति महसूस होती। ठंडी हवा के साथ पानी की बूँदें मेरे मन को एकदम शांत कर देतीं। मुझे लगता कि जैसे गंगा माता मुझे अपने स्पर्श से पवित्र कर रही हैं और मेरा सारा दुख दूर हो गया है।

(ग) “सज्जन ऐसे कि पत्थर मारने से फल देते हैं।”
यदि पेड़-पौधे सच में मनुष्यों की तरह व्यवहार करने लगें तो क्या होगा?
उत्तर देखेंअगर पेड़-पौधे सच में मनुष्यों की तरह व्यवहार करने लगें तो हमारा जीवन बहुत बदल जाएगा। वे हमें सिखाएँगे कि हमें फल देने के लिए तैयार रहने वाले सज्जनों की तरह निःस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद करनी चाहिए। लेकिन अगर हम उनकी देखभाल नहीं करेंगे या उन्हें नुकसान पहुँचाएँगे, तो वे शायद हमें फल, फूल और लकड़ी देना बंद कर देंगे। इससे हम प्रकृति का सम्मान करना सीख जाएँगे।

(घ) “यहाँ पर श्री गंगा जी दो धारा हो गई हैं- एक का नाम नील धारा, दूसरी श्री गंगा जी ही के नाम से।”
इस पाठ में ‘गंगा’ शब्द के साथ ‘श्री’ और ‘जी’ लगाया गया है। आपके अनुसार उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा?
उत्तर देखेंहमारे देश में जब हम किसी बड़े या सम्मानित व्यक्ति का नाम लेते हैं, तो हम उनके नाम के आगे ‘श्री’ और पीछे ‘जी’ लगाते हैं। लेखक ने गंगा नदी के लिए ‘श्री गंगा जी’ का प्रयोग इसलिए किया होगा क्योंकि गंगा को सिर्फ एक नदी नहीं, बल्कि एक पूज्य देवी माना जाता है । इस तरह, लेखक ने गंगा के प्रति अपनी श्रद्धा और सम्मान को प्रकट किया है।

(ङ) कल्पना कीजिए कि आप हरिद्वार एक श्रवणबाधित या दृष्टिबाधित व्यक्ति के साथ गए हैं। उसकी यात्रा को अच्छा बनाने के लिए कुछ सुझाव दीजिए।
उत्तर देखेंअगर मैं किसी ऐसे मित्र के साथ हरिद्वार जाता, तो मैं उसकी यात्रा को अच्छा बनाने के लिए ये करता:
• दृष्टिबाधित मित्र के लिए: मैं उन्हें हरिद्वार के दृश्य, जैसे पर्वतों की हरियाली, मंदिरों की बनावट और बहती गंगा की धारा का वर्णन बोलकर बताता। मैं उन्हें गंगा जी के जल में हाथ डालकर उसकी ठंडक महसूस करवाता और वहाँ की घंटियों की आवाज़ और पक्षियों की चहचहाहट सुनवाता।
• श्रवणबाधित मित्र के लिए: मैं उन्हें हरिद्वार के खूबसूरत दृश्य, जैसे बहती हुई गंगा और पर्वतों के चित्र दिखाता। मैं उनके लिए सब कुछ लिखकर या संकेतों से समझाता।
• दोनों के लिए मैं बहुत ध्यान रखता और हर कदम पर उनका हाथ पकड़कर चलता ताकि उन्हें कोई परेशानी न हो।

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लिखें संवाद

(क) “मेरे संग कल्लू जी मित्र भी परमानंदी थे।” लेखक और कल्लू जी के बीच हरिद्वार यात्रा पर एक काल्पनिक संवाद लिखिए।
उत्तर देखेंलेखक: कल्लू जी, हरिद्वार आकर मेरा मन कितना शांत और निर्मल हो गया है । यहाँ की हवा और गंगा जी का पानी कितना शीतल है!
कल्लू जी: हाँ मित्र, बिलकुल! ऐसा आनंद तो मुझे आज तक कभी नहीं मिला। यहाँ के पहाड़ और हरियाली देखकर तो आँखें तृप्त हो गईं ।
लेखक: और वह दिन याद है, जब हमने गंगा के तट पर पत्थर पर भोजन किया था? उस भोजन का सुख सोने की थाल के भोजन से भी कहीं ज्यादा था।
कल्लू जी: सच कहा मित्र! उस समय मन में ज्ञान और भक्ति के भाव उठ रहे थे । यह यात्रा हमेशा याद रहेगी।
लेखक: मेरा तो चित्त अब भी यहीं निवास करता है। मेरा मन वापस जाने को नहीं कर रहा।

(ख) “यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी है।” लेखक और प्रकृति के बीच एक कल्पनात्मक संवाद तैयार कीजिए- जैसे पर्वत बोल रहे हों।
उत्तर देखेंलेखक: अहा! हरिद्वार की यह भूमि सचमुच धन्य है । ये हरे-भरे पर्वत कितने सुंदर लग रहे हैं!
पर्वत: (हवा के झोंके के रूप में) हे यात्री, हम यहाँ सदियों से एक पैर पर खड़े होकर तपस्या कर रहे हैं। हम साधुओं की तरह घाम, ओस और वर्षा सब कुछ सहते हैं ।
लेखक: मैं समझ सकता हूँ। आप फल, फूल, छाया और लकड़ी देकर लोगों का मनोरथ पूरा करते हैं। आपका जन्म धन्य है!
पर्वत: (हवा के झोंके के रूप में) यह हमारा कर्तव्य है। यहाँ की पवित्रता ही हमारी पहचान है।
लेखक: मैं आपकी पवित्रता को महसूस कर सकता हूँ। यहाँ आते ही मेरा मन प्रसन्न और निर्मल हो गया है।
पर्वत: हम चाहते हैं कि हर आने वाला यात्री यहाँ की शांति को महसूस करे और अपने मन को शुद्ध करे।

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‘है’ और ‘हैं’ का उपयोग

इन वाक्यों में रेखांकित शब्दों के प्रयोग पर ध्यान दीजिए-
• विशेष आश्चर्य का विषय यह “है” कि यहाँ केवल गंगा जी ही देवता हैं, दूसरा देवता नहीं।
• यों तो वैरागियों ने मठ मंदिर कई बना लिए “हैं”।
आप जानते ही हैं कि एकवचन संज्ञा शब्दों के साथ ‘है’ का प्रयोग किया जाता है और बहुवचन संज्ञा शब्दों के साथ ‘हैं’ का। सोचिए, ‘गंगा’ शब्द एकवचन है, फिर भी इसके साथ ‘हैं’ क्यों लिखा गया है?
इसका कारण यह है कि कभी-कभी हम आदर-सम्मान प्रदर्शित करने के लिए एकवचन संज्ञा शब्दों को भी बहुवचन के रूप में प्रयोग करते हैं। इसे ‘आदरार्थ बहुवचन’ प्रयोग कहते हैं। उदाहरण के लिए-
• मेरे पिता जी सो रहे हैं।
• भारत के प्रधानमंत्री भाषण दे रहे हैं।
अब ‘आदरार्थ बहुवचन’ को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त शब्दों से रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
1. प्रधानाचार्य जी विद्यालय में नहीं __________, वे अभी सभा में उपस्थित __________।
2. माता-पिता हमारे जीवन के मार्गदर्शक होते __________, हमें उनका कहना मानना चाहिए।
3. मेरी बहन बाजार जा रही __________, वहाँ से किताबें ले आएगी।
4. बाहर फेरीवाला __________ __________। उसे बुला लाओ।
5. डाकिया जी आए __________ उन्हें भी बुला लाओ।
6. आप तो बहुत दिन बाद आए __________, __________ स्वागत है।
7. डॉक्टर साहब बहुत विद्वान __________, उन से परामर्श लेना चाहिए।
8. आपके माता-पिता कहाँ __________? क्या मैं __________ से मिल सकता हूँ?
9. ये हमारे हिंदी के अध्यापक __________, हम __________ से बहुत-कुछ सीखते-समझते हैं।
10. बंदर पेड़ पर उछल-कूद कर __________।
उत्तर देखें1. प्रधानाचार्य जी विद्यालय में नहीं “हैं”, वे अभी सभा में उपस्थित “हैं”।
2. माता-पिता हमारे जीवन के मार्गदर्शक होते हैं, हमें उनका कहना मानना चाहिए।
3. मेरी बहन बाजार जा रही है, वहाँ से किताबें ले आएगी।
4. बाहर फेरीवाला आया है। उसे बुला लाओ।
5. डाकिया जी आए हैं। उन्हें भी बुला लाओ।
6. आप तो बहुत दिन बाद आए हैंआपका स्वागत है।
7. डॉक्टर साहब बहुत विद्वान हैं, उन से परामर्श लेना चाहिए।
8. आपके माता-पिता कहाँ हैं? क्या मैं उन से मिल सकता हूँ?
9. ये हमारे हिंदी के अध्यापक हैं, हम उन से बहुत-कुछ सीखते-समझते हैं।
10. बंदर पेड़ पर उछल-कूद कर रहा है

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भावों की पहचान

प्रेम, करुणा, संतोष, हास्य, भक्ति, शांति, श्रद्धा, परोपकार, वैराग्य, दया, आश्चर्य, दुख

नीचे कुछ पंक्तियाँ दी गई हैं। सोचिए कि इनमें कौन-सा भाव प्रकट हो रहा है? पहचानिए और चुनकर लिखिए-
1. उस समय के पत्थर पर का भोजन का सुख सोने की थाल के भोजन से कहीं बढ़ के था।
2. चित्त में बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होता था।
3. पंडे भी यहाँ बड़े विलक्षण संतोषी हैं।
4. हर तरफ पवित्रता और प्रसन्नता बिखरी हुई थी।
5. सज्जन ऐसे कि पत्थर मारने से फल देते हैं।
उत्तर देखें1. भाव: संतोष
2. भाव: वैराग्य, श्रद्धा
3. भाव: संतोष
4. भाव: शांति, प्रसन्नता
5. भाव: परोपकार, दया

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काल की पहचान

“यहाँ हरि की पैड़ी नामक एक पक्का घाट है और यहीं स्नान भी होता है।”
आप जानते ही होंगे कि काल के तीन भेद होते हैं- भूतकाल, वर्तमान काल और भविष्य काल। परस्पर चर्चा करके पता लगाइए कि ऊपर दिए गए वाक्य में कौन-सा काल प्रदर्शित हो रहा है? सही पहचाना, यह वाक्य वर्तमान काल को प्रदर्शित कर रहा है।
(क) नीचे दी गई पाठ की इन पंक्तियों को पढ़कर बताइए, इनमें क्रिया कौन-से काल को प्रदर्शित कर रही है? (भूतकाल/वर्तमान/भविष्य)
1. निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थानदान दीजिएगा। _________________
उत्तर देखेंभविष्य काल

2. यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी है। _________________
उत्तर देखेंवर्तमान काल

3. वृक्ष ऐसे हैं कि पत्थर मारने से फल देते हैं। _________________
उत्तर देखेंवर्तमान काल

4. चित्त में बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होता था। _________________
उत्तर देखेंभूतकाल

5. मैं दीवान कृपा राम के घर के ऊपर के बंगले पर टिका था। _________________
उत्तर देखेंभूतकाल

(ख) अब इन वाक्यों के काल को अन्य कालों में बदलकर लिखिए और नए वाक्य बनाइए।
उत्तर देखें1. निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थानदान दीजिएगा।
वर्तमान काल: निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थानदान देते हैं।
भूतकाल: निश्चय था कि आप इस पत्र को स्थानदान देंगे।
2. यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी है।
भूतकाल: यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी थी।
भविष्य काल: यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी रहेगी।
3. वृक्ष ऐसे हैं कि पत्थर मारने से फल देते हैं।
भूतकाल: वृक्ष ऐसे थे कि पत्थर मारने से फल देते थे।
भविष्य काल: वृक्ष ऐसे होंगे कि पत्थर मारने से फल देंगे।
4. चित्त में बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होता था।
वर्तमान काल: चित्त में बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होता है।
भविष्य काल: चित्त में बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होगा।
5. मैं दीवान कृपा राम के घर के ऊपर के बंगले पर टिका था।
वर्तमान काल: मैं दीवान कृपा राम के घर के ऊपर के बंगले पर टिका हूँ।
भविष्य काल: मैं दीवान कृपा राम के घर के ऊपर के बंगले पर टिका रहूँगा।

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पत्र की रचना

“और संपादक महाशय, मैं चित्त से तो अब तक वहीं निवास करता हूँ …”
इस पंक्ति में लेखक संपादक महोदय को संबोधित करके अपनी बात लिख रहे हैं। आप जानते ही होंगे कि पत्र जिस व्यक्ति के लिए लिखा जाता है, उसे संबोधित किया जाता है। पत्र के अंत में अपना नाम लिखा जाता है ताकि पत्र पाने वाले को पता चल सके कि पत्र किसने लिखा है।
नीचे इस पत्र की कुछ विशेषताएँ दी गई हैं। अपने समूह के साथ मिलकर इन विशेषताओं से जुड़े वाक्यों से इनका मिलान कीजिए- आप एक विशेषता को एक से अधिक वाक्यों से भी जोड़ सकते हैं।

कक्षा 8 हिंदी मल्हार अध्याय 4 चित्र 2

उत्तर:

कक्षा 8 हिंदी मल्हार अध्याय 4 चित्र 3

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पत्र

आपने जो यात्रा-वर्णन पढ़ा है, इसे भारतेंदु हरिश्चंद्र ने एक संपादक को पत्र के रूप में लिखकर भेजा था । आप भी अपनी किसी यात्रा के विषय में अपने किसी परिचित को पत्र लिखकर बताइए ।
उत्तर देखें25, विकास नगर
नई दिल्ली
दिनांक: 5 अगस्त, 2025
प्रिय मित्र अमित,
तुम्हें यह जानकर बहुत खुशी होगी कि मैं अपनी गर्मी की छुट्टियों में शिमला घूमने गया था। वहाँ का मौसम बहुत ही ठंडा और सुहावना था। हर तरफ हरे-भरे पहाड़ और देवदार के ऊँचे-ऊँचे पेड़ थे।
हमने वहाँ बहुत मज़े किए। मैंने पहाड़ों में ट्रेकिंग भी की। रास्ते में ठंडी हवा और पक्षियों की आवाज़ से मन बहुत खुश हो गया था। मैंने एक पहाड़ी नदी में अपना पैर डालकर उसकी ठंडक महसूस की। शिमला की सुंदरता सचमुच वर्णन के बाहर है।
यह यात्रा मेरे लिए एक बहुत ही अच्छा अनुभव था। मैं चाहता हूँ कि अगली बार हम सब मिलकर ऐसी किसी जगह पर जाएँ।
तुम्हारा मित्र,
योगेश भंडारी

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शब्द से जुड़े शब्द

नीचे दिए गए स्थानों में ‘हरिद्वार’ से जुड़े शब्द अपने मन से या पाठ से चुनकर लिखिए-

कक्षा 8 हिंदी मल्हार अध्याय 4 चित्र 4

उत्तर देखेंउदाहरण शब्द दिए जा रहे हैं जो ‘हरिद्वार’ से जुड़े हैं—
गंगा नदी
हर की पौड़ी
तीर्थयात्रा
स्नान
मंदिर
साधु-संत
मेले
घाट
कांवड़ यात्रा
धार्मिक अनुष्ठान

कक्षा 8 हिंदी मल्हार अध्याय 4 चित्र 5

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लेखन के अनोखे तरीके

(क) ‘हरिद्वार’ पाठ में लेखक ने हरिद्वार के अपने अनुभवों को बहुत ही साहित्यिक और कल्पनाशील भाषा में प्रस्तुत किया है । जिसमें कई स्थानों पर उन्होंने तुलनात्मक वाक्यों के माध्यम से दृश्यों का वर्णन किया है ।
जैसे – हरी-भरी लताओं की तुलना सज्जनों से इस प्रकार की गई है-
“पर्वतों पर अनेक प्रकार की वल्ली हरी-भरी सज्जनों के शुभ मनोरथों की भाँति फैलकर लहलहा रही है।”
नीचे कुछ तुलनात्मक वाक्य दिए गए हैं । पाठ में ढूंढ़िए कि इन तुलनात्मक वाक्यों को लेखक ने किस प्रकार विशिष्ट तरीके से लिखा है यानी विशिष्टता प्रदान की है?
1. वृक्षों की तुलना साधुओं से की गई है ।
उत्तर देखें“बड़े-बड़े वृक्ष भी ऐसे खड़े हैं मानो एक पैर से खड़े तपस्या करते हैं और साधुओं की भाँति घाम, ओस और वर्षा अपने ऊपर सहते हैं।”

2. गंगाजल की मिठास की तुलना चीनी से की गई है ।
उत्तर देखें“मिष्ट भी वैसा ही है मानो चीनी के पने को बरफ में जमाया है,”

3. हरियाली की तुलना गलीचे से की गई है ।
उत्तर देखें“वर्षा के कारण सब ओर हरियाली ही दिखाई पड़ती थी मानो हरे गलीचा की जात्रियों के विश्राम के हेतु बिछायत बिछी थी।”

4. नदी की धारा की तुलना राजा भगीरथ के यश (कीर्ति) से की गई है ।
उत्तर देखें“त्रिभुवन पावनी श्री गंगा जी की पवित्र धारा बहती है जो राजा भगीरथ के उज्ज्वल कीर्ति की लता-सी दिखाई देती है।”

(ख) “मैं उस पुण्य भूमि का वर्णन करता हूँ जहाँ प्रवेश करने ही से मन शुद्ध हो जाता है।”
“पंडे भी यहाँ बड़े विलक्षण संतोषी हैं। एक पैसे को लाख करके मान लेते हैं।”
उपर्युक्त पंक्तियों को ध्यान से देखिए, ये आज की हिंदी की तरह नहीं लिखी गई हैं । इसे लेखक ने न केवल अपनी शैली में लिखा है, अपितु इसमें प्राचीन हिंदी भाषा की छवि भी दिखाई देती है । नीचे कुछ पंक्तियाँ दी गई हैं आप इन्हें आज की हिंदी में लिखिए ।
1. “इन वृक्षों पर अनेक रंग के पक्षी चहचहाते हैं और नगर के दुष्ट बधिकों से निडर होकर कल्लोल करते हैं।”
उत्तर देखेंआज की हिंदी – इन पेड़ों पर अनेक रंग के पक्षी चहचहाते हैं और नगर के दुष्ट शिकारियों से निडर होकर मस्ती करते हैं।

2. “वर्षा के कारण सब ओर हरियाली ही दृष्टि पड़ती थी मानो हरे गलीचा की जात्रियों के विश्राम के हेतु बिछायत बिछी थी।”
उत्तर देखेंआज की हिंदी – वर्षा के कारण चारों ओर हरियाली ही दिखाई पड़ती थी, मानो यात्रियों के आराम के लिए हरा गलीचा बिछा हो।

3. “यह ऐसा निर्मल तीर्थ है कि इच्छा क्रोध की खानि जो मनुष्य हैं सो वहाँ रहते ही नहीं।”
उत्तर देखेंआज की हिंदी – यह इतना शुद्ध तीर्थ है कि इच्छा और क्रोध के भंडार जैसे मनुष्य वहाँ रहते ही नहीं।

4. “मेरा तो चित्त वहाँ जाते ही ऐसा प्रसन्न और निर्मल हुआ कि वर्णन के बाहर है।”
उत्तर देखेंआज की हिंदी – मेरा मन तो वहाँ जाते ही इतना प्रसन्न और निर्मल हो गया कि उसका वर्णन करना मुश्किल है।

5. “यहाँ रात्रि को ग्रहण हुआ और हम लोगों ने ग्रहण में बड़े आनंदपूर्वक स्नान किया और दिन में श्री भागवत का पारायण भी किया।”
उत्तर देखेंआज की हिंदी: यहाँ रात में ग्रहण लगा और हम लोगों ने ग्रहण में बहुत आनंद से स्नान किया और दिन में श्रीमद्भागवत पुराण का पाठ भी किया।

6. “उस समय के पत्थर पर का भोजन का सुख सोने की थाल के भोजन से कहीं बढ़ के था।”
उत्तर देखेंआज की हिंदी: उस समय पत्थर पर भोजन करने का सुख सोने की थाली में भोजन करने से कहीं ज्यादा था।

7. “निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थानदान दीजिएगा।”
उत्तर देखेंआज की हिंदी – मुझे पूरा विश्वास है कि आप इस पत्र को प्रकाशित कीजिएगा।

(ग) इस रचना में हरिश्चंद्र जी ने कहीं-कहीं प्राचीन वर्तनी का प्रयोग किया है, जैसे- शिखर के लिए शिषर, यात्रियों के लिए जात्रियों। ऐसे शब्दों की सूची बनाइए। आप इन शब्दों को कैसे लिखते हैं? कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर देखेंदिए गए शब्द: शिषर, जात्रियों
आधुनिक वर्तनी: शिखर, यात्रियों
अन्य शब्द:
• दिए गए शब्द: वल्ली
• आधुनिक वर्तनी: बेल
• दिए गए शब्द: घाम
• आधुनिक वर्तनी: धूप
• दिए गए शब्द: मिष्ट
• आधुनिक वर्तनी: मीठा
• दिए गए शब्द: बिछायत
• आधुनिक वर्तनी: बिछौना
• दिए गए शब्द: बधिकों
• आधुनिक वर्तनी: शिकारियों
• दिए गए शब्द: विल्वपर्वत
• आधुनिक वर्तनी: बिल्वपर्वत

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आपकी बात

1. “मैंने गंगा जी के तट पर रसोई करके… भोजन किया।” क्या आपने कभी खुले वातावरण में या प्रकृति के पास भोजन किया है? वह अनुभव घर के खाने से कैसे भिन्न था?
उत्तर देखेंहाँ, मैंने एक बार अपने परिवार के साथ पिकनिक पर जाते समय खुले वातावरण में भोजन किया था। वह अनुभव घर के खाने से बहुत अलग था।
• घर पर हम मेज पर बैठकर खाते हैं, पर वहाँ हम घास पर बैठे थे।
• घर पर हम टीवी देखते हुए या जल्दी में खाना खाते हैं, लेकिन वहाँ हम आराम से पक्षियों की आवाज़ सुनते हुए और ठंडी हवा में खा रहे थे।
• खुले वातावरण में खाने से मुझे बहुत शांति और खुशी महसूस हुई, जो घर के खाने में अक्सर नहीं मिलती।
• वहाँ का साधारण खाना भी बहुत स्वादिष्ट लग रहा था। यह अनुभव मेरे लिए बहुत यादगार था।

2. “उस समय के पत्थर पर का भोजन का सुख सोने की थाल के भोजन से कहीं बढ़ के था।” आपके जीवन में ऐसा कोई क्षण आया, जब किसी सामान्य-सी वस्तु ने आपको गहरा सुख दिया हो? उसके बारे में बताइए।
उत्तर देखेंहाँ, मेरे जीवन में ऐसा एक क्षण आया है। एक बार मेरे छोटे भाई ने मेरे जन्मदिन पर अपने हाथों से एक ग्रीटिंग कार्ड बनाया था। उसने उसमें एक चित्र बनाया और लिखा था कि वह मुझसे बहुत प्यार करता है। वह कार्ड किसी भी महंगे उपहार से ज़्यादा कीमती था क्योंकि उसमें उसका प्यार और मेहनत थी। उस साधारण से कार्ड को देखकर मुझे जितनी खुशी हुई, उतनी किसी और चीज़ से नहीं हुई थी।

3. “हर तरफ पवित्रता और प्रसन्नता बिखरी हुई थी।” आपको किस स्थान पर पवित्रता और प्रसन्नता का अनुभव होता है? क्या कोई ऐसा स्थान है जहाँ जाते ही मन शांत हो गया हो? उस स्थान की कौन-सी बातें आपको अच्छी लगीं?
उत्तर देखेंजब मैं अपने घर के पास वाले पार्क में जाता हूँ तो मुझे वहाँ बहुत पवित्रता और प्रसन्नता का अनुभव होता है। वहाँ जाते ही मेरा मन शांत हो जाता है। मुझे वहाँ की हरियाली, ताजी हवा और पक्षियों की चहचहाहट बहुत अच्छी लगती है। वहाँ बैठकर मैं अपनी सारी चिंताएँ भूल जाता हूँ।

4. पाठ में वर्णित है, यहाँ के वृक्ष “फल, फूल, गंध… जले पर भी कोयले और राख से लोगों का मनोर्थ पूर्ण करते हैं।” क्या आपके जीवन में कोई पेड़, फूल या प्राकृतिक वस्तु है जिससे आप विशेष जुड़ाव महसूस करते हैं? क्यों?
उत्तर देखेंहाँ, मेरे घर के आँगन में एक आम का पेड़ है जिससे मैं बहुत जुड़ाव महसूस करता हूँ। मैं बचपन से उसी पेड़ की छाया में खेला हूँ और गर्मी की छुट्टियों में उसकी डाल पर झूला झूलता था। वह पेड़ हमें मीठे आम देता है और बहुत सारे पक्षियों का घर भी है। मुझे लगता है कि वह पेड़ मेरे बचपन का एक हिस्सा है।

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प्रकृति का सौंदर्य और संरक्षण

“यह भूमि सुघटित और सुंदर पर्वतों से लिपटी है…”
आपने पढ़ा कि हरिद्वार का प्राकृतिक सौंदर्य अद्भुत है। इस सौंदर्य को बनाए रखने में प्रत्येक मानव की महत्वपूर्ण भूमिका है। इस विषय पर अपने समूह में चर्चा कीजिए। इसके बाद अपने समूह के साथ मिलकर “तीर्थों ही नहीं, पृथ्वी पूज्यवान हो!” विषय पर जन-जागरूकता पोस्टर बनाइए।
उत्तर देखेंसमूह चर्चा
विषय – हरिद्वार का प्राकृतिक सौंदर्य और मानव की भूमिका
राहुल: दोस्तों, पाठ में लिखा है कि हरिद्वार हरे-भरे पर्वतों और गंगा की पवित्र धारा से घिरा हुआ है। यह सौंदर्य हमेशा बना रहे, इसके लिए हमें प्रकृति की रक्षा करनी होगी।
सोनिया: सही कहा राहुल! अगर लोग गंगा में कूड़ा डालेंगे या प्लास्टिक का इस्तेमाल करेंगे, तो यह पवित्र धारा गंदी हो जाएगी। हमें गंगा को स्वच्छ रखना है।
आरव: हाँ, और हमें पहाड़ों और जंगलों में पेड़ काटने से बचना चाहिए। जितनी हरियाली होगी, उतना ही वातावरण शुद्ध और सुंदर रहेगा।
नेहा: मेरा मानना है कि यात्रियों और तीर्थयात्रियों को भी नियमों का पालन करना चाहिए। अगर वे साफ-सफाई रखें और धार्मिक स्थलों का सम्मान करें तो प्राकृतिक सौंदर्य सुरक्षित रहेगा।
रचना: सरकार और प्रशासन को भी यहाँ सख्त नियम बनाने चाहिए—जैसे प्लास्टिक पर प्रतिबंध, गंदगी फैलाने पर जुर्माना और अधिक पौधे लगाना।
सभी मिलकर: बिल्कुल! हरिद्वार का सौंदर्य बनाए रखना सिर्फ़ सरकार का काम नहीं है, बल्कि हम सबकी ज़िम्मेदारी है। अगर हम सभी मिलकर स्वच्छता और पर्यावरण का ध्यान रखें, तभी यह पुण्यभूमि हमेशा पावन और सुंदर बनी रहेगी।

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स्वास्थ्य और योग

“चित्त में बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होता था।”
अनेक लोग आज भी मन की शांति, स्वास्थ्य लाभ और भक्ति के लिए तीर्थ और पर्वतीय स्थानों की यात्रा करते हैं। मन की शांति और स्वास्थ्य के लिए हमारे देश में हजारों वर्षों से योग भी किया जाता रहा है।
(क) 5 मिनट ध्यान लगाकर या मौन बैठकर अपने आस-पास की ध्वनियों को सुनिए, अपनी श्वास पर ध्यान दीजिए तथा ध्यान को केंद्रित करने का प्रयास कीजिए। इस अनुभव के विषय में एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर देखेंमैंने 5 मिनट के लिए आँखें बंद करके ध्यान लगाने की कोशिश की। शुरुआत में मेरे दिमाग में बहुत सारे विचार आ रहे थे, जैसे आज स्कूल में क्या हुआ, कल क्या करना है आदि। फिर मैंने अपनी साँसों पर ध्यान केंद्रित करना शुरू किया। मुझे अपने कमरे में घड़ी की टिक-टिक की आवाज और बाहर से आती चिड़ियों की आवाज सुनाई दी। कुछ देर बाद मेरा मन शांत होने लगा और मुझे बहुत अच्छा महसूस हुआ। ऐसा लगा जैसे मेरा मन और शरीर दोनों एक साथ आराम कर रहे हैं।

(ख) अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के उपलक्ष्य में अपने विद्यालय के कार्यक्रमों को बताने के लिए एक ‘सूचना’ लिखिए जिसे सूचना-पट पर लगाया जा सके।
उत्तर देखेंसूचना
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस समारोह
सभी विद्यार्थियों को सूचित किया जाता है कि 21 जून को ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ के उपलक्ष्य में हमारे विद्यालय में एक विशेष समारोह का आयोजन किया जा रहा है।
इस कार्यक्रम का उद्देश्य विद्यार्थियों को योग के महत्व और उसके लाभों के बारे में जागरूक करना है।
• दिनांक: 14 अक्टूबर, 2025
• समय: सुबह 8:00 बजे से 9:30 बजे तक
• स्थान: विद्यालय का मुख्य मैदान
सभी विद्यार्थियों से अनुरोध है कि वे इस कार्यक्रम में भाग लेकर योग को अपने जीवन का हिस्सा बनाएँ।
आज्ञा से,
सांस्कृतिक समिति
(राहुल)
कक्षा 8

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सज्जन वृक्ष

“सज्जन ऐसे कि पत्थर मारने से फल देते हैं।”
आप जानते ही हैं कि पेड़-पौधे हमारे जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। बिना हमारे ही कार्य के कारण वे काम आते जा रहे हैं। आइए, पेड़-पौधों को अपना मित्र बनाएँ।
(क) एक पौधा लगाइए और उसकी देखभाल कीजिए ताकि वह कुछ वर्षों में बड़ा पेड़ बन सके। उसे एक नाम दीजिए और उसका मित्र बनिए।
उत्तर देखेंमैंने अपने घर के आँगन में एक छोटा आम का पौधा लगाया है। मैंने उसका नाम ‘मिठाई’ रखा है। मैं उसे रोज सुबह पानी देता हूँ और उसकी देखभाल करता हूँ। अब वह मेरा दोस्त बन गया है।

(ख) उसके बारे में अपनी दैनंदिनी में नियमित रूप से लिखिए।
उत्तर देखें5 अक्टूबर, 2025
आज मैंने अपने दोस्त ‘मिठाई’ को लगाया। वह बहुत छोटा है, लेकिन मुझे उम्मीद है कि वह जल्दी बड़ा हो जाएगा। जब मैं उसे देखता हूँ, तो मुझे बहुत खुशी होती है। मैंने उसके आस-पास की घास भी साफ कर दी है ताकि उसे अच्छी हवा मिल सके।

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अपने शब्द

“शीतल वायु… स्पर्श ही से पावन करता हुआ संचार करता है।”
आइए, एक रोचक गतिविधि करते हैं। ‘शीतल’ शब्द को केंद्र में रखिए और उसके चारों ओर ये चार बातें लिखिए-

कक्षा 8 हिंदी मल्हार अध्याय 4 चित्र 1

उत्तर देखेंशीतल
अर्थ: ठंडा, ठंडक देने वाला, शांति प्रदान करने वाला।
विपरीतार्थक शब्द: उष्ण, गर्म, तप्त।
समानार्थी शब्द: ठंडा, शीत, हिम, शांति, प्रसन्नकर।
वाक्य प्रयोग: गर्मियों में गंगा जी का शीतल जल स्नान करने वालों को ताजगी और आनंद देता है।

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यात्रा के व्यय की गणना

इस पाठ में आपने हरिद्वार की एक यात्रा का वर्णन पढ़ा है। सोचिए कि आपको अपने मित्रों या परिजनों के साथ अपनी रुचि के किसी स्थान की यात्रा करनी है। उस स्थान को ध्यान में रखते हुए निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए—
(क) मान लीजिए कि यात्रा के लिए आपको ₹1000 दिए गए हैं। यात्रा, खाना आदि सब मिलाकर एक व्यय विवरण बनाइए।
उत्तर देखेंमैं अपने दोस्तों के साथ ₹1000 के बजट में किसी पास की ऐतिहासिक जगह, जैसे दिल्ली के कुतुब मीनार, जाने का प्लान बनाऊँगा।
• यातायात का खर्च (मेट्रो का किराया): ₹104
• खाने-पीने का खर्च: ₹400
• प्रवेश टिकट: ₹200
• स्मृति चिह्न के लिए: ₹100
• अन्य छोटे खर्च: ₹196
कुल खर्च: ₹1000

(ख) मान लीजिए कि आप इस यात्रा में एक छोटी वस्तु (स्मृति चिह्न) खरीदना चाहते हैं। आप क्या खरीदेंगे और क्यों?
उत्तर देखेंमैं उस जगह की कोई ऐसी छोटी-सी चीज खरीदूँगा जो वहाँ की पहचान हो, जैसे कुतुब मीनार का छोटा मॉडल। मैं इसे इसलिए खरीदूँगा ताकि मुझे यह यात्रा हमेशा याद रहे।

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यात्रा सबके लिए

(क) कल्पना कीजिए कि कुछ मित्रों का समूह एक यात्रा पर जा रहा है। आप एक मार्गदर्शक या टूरिस्ट गाइड हैं। आप इन सबकी यात्रा को सुविधाजनक बनाने के लिए किन-किन बातों का ध्यान रखेंगे?
उत्तर देखेंअगर मैं एक टूरिस्ट गाइड होता, तो मैं इन सबकी यात्रा को सुविधाजनक बनाने के लिए ये बातें ध्यान में रखता:
• मैं सबसे पहले सबकी ज़रूरतों को समझता।
• जो व्यक्ति व्हीलचेयर पर हैं, उनके लिए मैं ऐसे रास्ते चुनता जहाँ सीढ़ियाँ न हों।
• बुजुर्गों और बच्चों के लिए मैं आराम करने की जगह और धीरे-धीरे चलने की व्यवस्था करता।
• मैं खाने-पीने और आराम के लिए सही समय पर रुकने की योजना बनाता ताकि कोई परेशान न हो।
• मैं यह सुनिश्चित करता कि घूमने के दौरान सभी लोग एक साथ रहें और कोई भी पीछे न छूटे।

(ख) अपने किसी मित्र के साथ बिना बोले संवाद कीजिए- संकेतों से। अब सोचिए कि यात्रा में श्रवणबाधित व्यक्ति के लिए क्या-क्या आवश्यक होगा?
उत्तर देखेंयात्रा में एक श्रवणबाधित व्यक्ति के लिए ये चीजें आवश्यक होंगी:
• संवाद करने के लिए एक कॉपी और पेन रखना।
• कुछ सामान्य संकेतों की जानकारी रखना।
• यह सुनिश्चित करना कि वह व्यक्ति यात्रा के हर हिस्से में शामिल हो।
• यात्रा मार्गदर्शक अर्थात टूरिस्ट गाइड को पहले से ही इस बारे में बता देना ताकि वह भी संकेतों का उपयोग कर सकें।

(ग) यात्रा करते हुए ऐतिहासिक धरोहरों या भवनों की सुरक्षा के लिए आप किन-किन बातों का ध्यान रखेंगे?
उत्तर देखेंऐतिहासिक धरोहरों की सुरक्षा के लिए मैं ये बातें ध्यान में रखूँगा:
• दीवारों पर कुछ भी नहीं लिखूँगा।
• धरोहरों के पास कचरा नहीं फेंकूंगा।
• वहाँ की किसी भी वस्तु को छूने या नुकसान पहुँचाने से बचूँगा।
• मैं दूसरे लोगों को भी ऐसा न करने के लिए कहूँगा।
• मैं वहाँ के नियमों का पालन करूँगा।

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आज की पहेली

पाठ में से शब्द खोजिए और नीचे दिए गए रिक्त स्थानों में लिखिए-
1. एक मसाले का नाम: _______________
2. कपास से जुड़ा एक शब्द: _______________
3. जहाँ स्नान होता है: _______________
4. वृक्ष के किसी अंग का नाम: _______________
5. एक नगर या तीर्थ का नाम: _______________
6. व्यापार से जुड़ा स्थान: _______________
7. एक नदी का नाम: _______________
8. एक पर्वत का नाम: _______________
9. एक धार्मिक ग्रंथ का नाम: _______________
उत्तर देखें1. एक मसाले का नाम: दालचीनी, जावित्री
2. कपास से जुड़ा एक शब्द: जनेऊ
3. जहाँ स्नान होता है: स्नान घाट (हरी की पौड़ी)
4. वृक्ष के किसी अंग का नाम: जड़, फल, फूल, पत्ते, छाल, बीज
5. एक नगर या तीर्थ का नाम: हरिद्वार, कनखल, ज्वालापुर
6. व्यापार से जुड़ा स्थान: दुकानें
7. एक नदी का नाम: गंगा
8. एक पर्वत का नाम: पर्वत, विल्वपर्वत
9. एक धार्मिक ग्रंथ का नाम: भागवत

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झरोखे से

भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा लिखे एक और पत्र का एक अंश नीचे दिया गया है। इसे पढ़िए और आपस में विचार कीजिए।
हरिद्वार के मार्ग में
हरिद्वार के मार्ग में अनेक प्रकार के वृक्ष और पक्षी देखने में आए। एक पीले रंग का पक्षी छोटा बहुत मनोहर देखा गया। बया एक छोटी चिड़िया है उसके घोंसले बहुत मिले। ये घोंसले सूखे बबूल काँटे के वृक्ष में हैं और एक-एक डाल में लड़ी की भाँति बीस-बीस, तीस-तीस लटकते हैं। इन पक्षियों की शिल्पविद्या तो प्रसिद्ध ही है, लिखने का कुछ काम नहीं है। इसी से इनका सब चातुर्य प्रगट है कि सब वृक्ष छोड़ के काँटे के वृक्ष में घर बनाया है। इसके आगे ज्वालापुर और कनखल और हरिद्वार हैं, जिसका वृत्तांत अगले नंबरों में लिखूँगा।
उत्तर देखेंदिए गए अंश में, लेखक के विचार इस प्रकार हैं:
1. लेखक ने हरिद्वार के रास्ते में अनेक प्रकार के वृक्ष और पक्षी देखे ।
2. उन्होंने एक छोटा, बहुत ही सुंदर पीले रंग का पक्षी देखा ।
3. लेखक ने एक छोटी चिड़िया, जिसे बया कहते हैं, के घोंसले देखे जो सूखे बबूल के काँटेदार पेड़ में थे।
4. बया चिड़िया के घोंसले एक-एक डाल में बीस-बीस, तीस-तीस की संख्या में लड़ी की तरह लटक रहे थे।
5. लेखक बया चिड़िया की कारीगरी और चालाकी से बहुत प्रभावित थे ।
6. लेखक का मानना था कि बया की कारीगरी इस बात से ज़ाहिर होती है कि उसने सभी पेड़ छोड़कर काँटेदार पेड़ में अपना घर बनाया।
7. लेखक ने यह भी बताया है कि इसके आगे ज्वालापुर, कनखल और हरिद्वार हैं, जिनके बारे में वह अगले अंकों में लिखेंगे।

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खोजबीन के लिए

भारतेंदु हरिश्चंद्र का एक प्रसिद्ध नाटक है- अंधेर नगरी। इसे पुस्तकालय या इंटरनेट से ढूँढ़कर पढ़िए और अपने सहपाठियों के साथ चर्चा कीजिए।
उत्तर देखेंमैंने इंटरनेट पर ‘अंधेर नगरी’ नाटक पढ़ा और अपने दोस्तों के साथ इस पर चर्चा की। हमें यह पढ़कर बहुत मज़ा आया। हमने यह बात की कि राजा कितना मूर्ख था और कैसे उसने बिना सोचे-समझे न्याय किया। हमने यह भी चर्चा की कि नाटक हमें यह सिखाता है कि बिना सोचे-समझे फैसले लेना कितना खतरनाक हो सकता है। यह नाटक हमें हँसाता भी है और एक बहुत गहरी बात भी सिखाता है।

कक्षा 8 हिंदी मल्हार पाठ 4 का सारांश

इस अध्याय में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने 1871 ई. में अपनी हरिद्वार यात्रा का बहुत ही जीवंत और रोचक वर्णन किया है। वे बताते हैं कि हरिद्वार की पावन भूमि पर पहुंचते ही मन प्रसन्न और निर्मल हो जाता है। चारों ओर हरे-भरे पर्वत, वृक्ष, लहराती लताएँ, चहचहाते पक्षी और कलकल बहती गंगा का मनोहारी दृश्य देखकर वे भाव-विभोर हो उठे।
उन्होंने गंगा की पवित्रता, उसके शीतल और स्वच्छ जल, हर की पैड़ी घाट, नीलधारा, विल्वपर्वत और कनखल जैसे प्रमुख तीर्थों का वर्णन किया है। विशेष रूप से गंगा जी को उन्होंने एकमात्र देवता बताया और हरिद्वार की शांति, निर्मलता तथा साधु-संतों के जीवन को अद्वितीय बताया।
भारतेंदु हरिश्चंद्र अपने प्रवास के दौरान रसोई बनाकर गंगा किनारे भोजन करने, भागवत पाठ करने, ग्रहण स्नान करने और साधु-संतों के संग समय बिताने की बात भी साझा करते हैं। वे कहते हैं कि यहाँ का वातावरण वैराग्य, भक्ति और ज्ञान का संचार करता है।

कक्षा 8 हिंदी मल्हार पाठ 4 का महत्व

यह पाठ हमें यह सिखाता है कि यात्राएँ केवल मनोरंजन के लिए नहीं होतीं, बल्कि वे ज्ञान, भक्ति और जीवन-दर्शन को गहराई से समझने का माध्यम भी होती हैं। हरिद्वार के प्राकृतिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व को भारतेंदु जी ने बड़े ही सुंदर और हृदयस्पर्शी शब्दों में प्रस्तुत किया है।