एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 हिंदी मल्हार अध्याय 1 स्वदेश
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 हिंदी मल्हार अध्याय 1 स्वदेश के सभी प्रश्नों के उत्तर शैक्षणिक सत्र 2025-26 के लिए यहाँ उपलब्ध हैं। इस अध्याय में कवि गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही’ ने देशप्रेम की भावना को जागृत करते हुए यह बताया है कि जिस हृदय में स्वदेश का प्रेम नहीं, वह हृदय पत्थर समान है। समाधान में सभी सवालों के सही, सरल और विस्तृत उत्तर दिए गए हैं, जो विद्यार्थियों की परीक्षा तैयारी में सहायक होंगे।
कक्षा 8 हिंदी मल्हार अध्याय 1 के MCQ
कक्षा 8 हिंदी मल्हार अध्याय 1 स्वदेश
वह हृदय नहीं है पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।
जो जीवित जोश जगा न सका,
उस जीवन में कुछ सार नहीं।
जो चल न सका संसार-संग,
उसका होता संसार नहीं।
जिसने साहस को छोड़ दिया,
वह पहुँच सकेगा पार नहीं।
जिससे न जाति- उद्धार हुआ,
होगा उसका उद्धार नहीं॥
जो भरा नहीं है भावों से,
बहती जिसमें रस-धार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं ||
जिसकी मिट्टी में उगे बढ़े,
पाया जिसमें दाना-पानी।
माता-पिता बंधु जिसमें.
हैं जिसके राजा-रानी ॥
जिसने कि खजाने खोले हैं,
नव रत्न दिये हैं लासानी।
जिस पर ज्ञानी भी मरते हैं,
जिस पर है दुनिया दीवानी ॥
उस पर है नहीं पसीजा जो.
क्या है वह भू का भार नहीं।
निश्चित है निस्संशय निश्चित,
है जान एक दिन जाने को ।
है काल- दीप जलता हरदम,
जल जाना है परवानों को ॥
सब कुछ है अपने हाथों में,
क्या तोप नहीं तलवार नहीं।
वह हृदय नहीं है, पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।
– गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही’
कविता का भावार्थ तथा मुख्य संदेश
कवि कहते हैं कि जिस दिल में अपने देश के लिए प्यार नहीं है, वह दिल वास्तव में पत्थर के समान है। ऐसा व्यक्ति जो अपने जीवन में देशभक्ति का जोश नहीं जगा पाया, उसका जीवन अर्थहीन है। जो मनुष्य संसार की गति के साथ नहीं चलता, उसका जीवन भी संसार से कट जाता है। जो व्यक्ति साहस छोड़ देता है, वह कभी जीवन की कठिनाइयों को पार नहीं कर सकता।
कवि आगे कहते हैं कि जिस व्यक्ति से उसकी जाति या समाज का उद्धार नहीं हो पाया, उसका स्वयं का उद्धार भी असंभव है। जिस हृदय में भावनाएँ नहीं हैं, जहाँ प्रेम की धारा नहीं बहती, वह हृदय मृतप्राय है।
देश की मिट्टी, जहाँ हम पले-बढ़े, जो हमें अन्न-जल देती है, जहाँ हमारे माता-पिता, परिवार और शासक हैं, वही हमारी मातृभूमि है। यह वही देश है जिसने हमें अनमोल रत्न जैसे खजाने दिए हैं, ज्ञान दिया है, जिसकी महिमा पर पूरी दुनिया मोहित है।
जो व्यक्ति इस देश के लिए नहीं पसीजता, यानी जिसके भीतर देश के प्रति करुणा या संवेदना नहीं है, वह धरती पर बोझ के समान है। कवि यह भी कहते हैं कि एक दिन तो हर किसी को मरना है – यह तय है। फिर क्यों न हम ऐसा जीवन जिएँ जो देश के लिए कुछ कर सके।
हमारे पास साहस, आत्मबल और साधन हैं – तलवार और तोप से भी बढ़कर हमारी इच्छाशक्ति है। इसलिए कवि बार-बार दोहराते हैं कि जिस हृदय में देशप्रेम नहीं है, वह पत्थर के समान है।
मुख्य संदेश:
यह कविता देशभक्ति का सजीव चित्रण है। इसमें यह संदेश है कि हर नागरिक को अपने देश के प्रति प्रेम, कर्तव्य और समर्पण का भाव रखना चाहिए। जो देश के लिए नहीं सोचता, उसमें मानवता नहीं है। यह कविता देशसेवा, आत्मबल और त्याग की प्रेरणा देती है।
कक्षा 8 हिंदी मल्हार अध्याय 1 के प्रश्न उत्तर
मेरी समझ से
प्रश्न . (क) निम्नलिखित प्रश्नों के उपयुक्त उत्तर के सम्मुख तारा (*) बनाइए। कुछ प्रश्नों के एक से अधिक उत्तर भी हो सकते हैं।
1. “वह हृदय नहीं है पत्थर है” इस पंक्ति में हृदय के पत्थर होने से तात्पर्य है-
. सामाजिकता से
. संवेदनहीनता से
. कठोरता से
. नैतिकता से
उत्तर देखें* संवेदनहीनता से
पंक्ति “वह हृदय नहीं है पत्थर है” में कवि उस व्यक्ति की आलोचना करता है जिसके मन में अपने स्वदेश (देश) के प्रति कोई प्रेम, भावना या संवेदना नहीं है। कवि के अनुसार ऐसा व्यक्ति केवल नाम का जीवित है, उसका हृदय वास्तव में संवेदनहीन है, जैसे कि एक निर्जीव पत्थर, जिसमें कोई भावनाएँ नहीं होतीं। इसलिए, यहाँ “हृदय के पत्थर होने” से आशय है कि उसमें देशप्रेम की भावना का अभाव है — यानी संवेदनहीनता।
2. निम्नलिखित में से कौन-सा विषय इस कविता का मुख्य भाव है?
. देश की प्रगति
. देश के प्रति प्रेम
. देश की सुरक्षा
. देश की स्वतंत्रता
उत्तर देखें* देश के प्रति प्रेम
कविता “स्वदेश” में कवि व्यक्ति के देशप्रेम, समर्पण, और कर्तव्यनिष्ठा को सबसे बड़ा मूल्य मानता है। वह कहता है कि जिस हृदय में स्वदेश के प्रति प्रेम नहीं है, वह पत्थर के समान है। कवि ऐसे जीवन को व्यर्थ बताता है जिसमें देश के लिए कोई भावना, जोश या बलिदान का जज्बा न हो। वह व्यक्ति जो अपने देश के उत्थान और उद्धार के लिए कुछ नहीं करता, उसकी कोई सार्थकता नहीं है।
3. “हम हैं जिसके राजा-रानी” . इस पंक्ति में ‘हम’ शब्द किसके लिए आया है?
. देश के प्राकृतिक संसाधनों के लिए
. देश की शासन व्यवस्था के लिए
. देश के समस्त नागरिकों के लिए
. देश के सभी प्राणियों के लिए
उत्तर देखें* देश के समस्त नागरिकों के लिए
पंक्ति “हम हैं जिसके राजा-रानी” में कवि देश के प्रत्येक नागरिक को संबोधित करता है। यहाँ ‘हम’ का तात्पर्य देशवासियों से है — वे लोग जो इस राष्ट्र के भाग्यविधाता हैं, जो देश के स्वामी और संरक्षक हैं। लोकतंत्र की भावना के अनुसार, हर नागरिक को देश की सत्ता में बराबरी का अधिकार होता है।
इसलिए, कवि यह भाव प्रकट करता है कि हर नागरिक अपने देश का राजा या रानी है, अर्थात देश का स्वाभिमानी, जिम्मेदार और सक्रिय हिस्सा है। यह पंक्ति राष्ट्रीय स्वाभिमान, नागरिक अधिकार और उत्तरदायित्व का प्रतीक है।
4. कविता के अनुसार कौन-सा हृदय पत्थर के समान है?
. जिसमें साहस की कमी है
. जिसमें स्नेह का भाव नहीं है
. जिसमें देश-प्रेम का भाव नहीं है
. जिसमें स्फूर्ति और उमंग नहीं है
उत्तर देखें* जिसमें देश-प्रेम का भाव नहीं है
कविता “स्वदेश” का आरंभ ही इस पंक्ति से होता है:
“वह हृदय नहीं है, पत्थर है — जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।”
यह स्पष्ट रूप से बताता है कि जिस हृदय में अपने देश के प्रति प्रेम और समर्पण नहीं है, वह भावनाशून्य है, जैसे एक निर्जीव पत्थर। कवि देशप्रेम को जीवन का सर्वोच्च भाव मानता है, और उसके बिना मनुष्य का जीवन निरर्थक और शुष्क माना गया है।
इसलिए, कविता के अनुसार देश-प्रेम रहित हृदय ही पत्थर के समान है।
मिलकर करें मिलान
कविता में से चुनकर कुछ पंक्तियाँ नीचे स्तंभ 1 में दी गई हैं। उन पंक्तियों के भाव या संदर्भ स्तंभ 2 में दिए गए हैं। पंक्तियों का उनके सही अर्थ या संदर्भों से मिलान कीजिए।
क्रम | स्तंभ 1 | स्तंभ 2 |
---|---|---|
1. | जिसने साहस को छोड़ दिया, वह पहुँच सकेगा पार नहीं। | 1. जिस देश की ज्ञान- संपदा से समूचा विश्व प्रभावित है। |
2. | जो जीवित जोश जगा न सका, उस जीवन में कुछ सार नहीं। | 2. जिस प्रकार युद्ध में तोप और तलवार की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार मनुष्य की प्रगति के लिए साहस और इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है। |
3. | जिस पर ज्ञानी भी मरते हैं, जिस पर है दुनिया दीवानी। | 3. जिसने किसी कार्य को करने का साहस छोड़ दिया हो वह किसी लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता। |
4. | सब कुछ है अपने हाथों में, क्या तोप नहीं तलवार नहीं। | 4. जो स्वयं के साथ ही दूसरों को भी प्रेरित और उत्साहित नहीं कर सकते उनका जीवन निष्फल और अर्थहीन है। |
उत्तर:
क्रम | स्तंभ 1 | स्तंभ 2 |
---|---|---|
1. | जिसने साहस को छोड़ दिया, वह पहुँच सकेगा पार नहीं। | 3. जिसने किसी कार्य को करने का साहस छोड़ दिया हो वह किसी लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता। |
2. | जो जीवित जोश जगा न सका, उस जीवन में कुछ सार नहीं। | 4. जो स्वयं के साथ ही दूसरों को भी प्रेरित और उत्साहित नहीं कर सकते उनका जीवन निष्फल और अर्थहीन है। |
3. | जिस पर ज्ञानी भी मरते हैं, जिस पर है दुनिया दीवानी। | 1. जिस देश की ज्ञान- संपदा से समूचा विश्व प्रभावित है। |
4. | सब कुछ है अपने हाथों में, क्या तोप नहीं तलवार नहीं। | 2 . जिस प्रकार युद्ध में तोप और तलवार की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार मनुष्य की प्रगति के लिए साहस और इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है। |
पंक्तियों पर चर्चा
कविता से चुनकर कुछ पंक्तियाँ नीचे दी गई हैं। इन्हें ध्यानपूर्वक पढ़िए और इन पर विचार कीजिए। आपको इनका क्या अर्थ समझ में आया? अपने विचार अपने समूह में साझा कीजिए और लिखिए।
(क) “निश्चित है निस्संशय निश्चित,
है जान एक दिन जाने को ।
है काल-दीप जलता हरदम,
जल जाना है परवानों को । ”
उत्तर देखेंअर्थ: इन पंक्तियों में जीवन की अनित्यता को स्वीकार किया गया है। कवि कहता है कि मृत्यु निश्चित है — इसमें कोई संदेह नहीं। जैसे समय का दीपक हमेशा जलता रहता है, वैसे ही उसकी लौ में हर किसी को जलना ही है, यानी जीवन का अंत होना ही है। जैसे परवाना दीपक की लौ में जल जाता है, वैसे ही हर जीवन को अंत की ओर जाना है।
विचार:
हमें मृत्यु से डरना नहीं चाहिए, बल्कि जीवन को सार्थक बनाने की दिशा में काम करना चाहिए। यह जीवन सीमित है, इसलिए इसे उद्देश्यपूर्ण और देश, समाज या मानवता के लिए समर्पित करना चाहिए।
(ख) “सब कुछ है अपने हाथों में,
क्या तोप नहीं तलवार नहीं ।
वह हृदय नहीं है, पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं ।। ”
उत्तर देखेंअर्थ: इन पंक्तियों में कवि आत्मविश्वास और देशभक्ति की भावना को बल देता है। वह कहता है कि हमारे पास सब कुछ है — शक्ति, साधन, साहस — तो फिर देश को स्वतंत्र और समृद्ध बनाने से कौन रोक सकता है? लेकिन यदि किसी के हृदय में देश के लिए प्रेम नहीं है, तो ऐसा हृदय पत्थर के समान है।
विचार:
देश की रक्षा और प्रगति के लिए केवल शस्त्र ही नहीं, बल्कि सच्चा देशप्रेम भी जरूरी है। जब तक हृदय में देश के लिए प्रेम, त्याग और कर्तव्य की भावना नहीं होगी, तब तक कोई परिवर्तन संभव नहीं।
(ग) “जो भरा नहीं है भावों से,
बहती जिसमें रस-धार नहीं ।
वह हृदय नहीं है पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं ॥”
उत्तर देखेंअर्थ: यह पंक्ति एक संवेदनहीन और भावशून्य जीवन की आलोचना करती है। कवि कहता है कि जो हृदय भावनाओं से रिक्त है, जिसमें प्रेम, संवेदना और देशभक्ति का प्रवाह नहीं है — वह जीवित होकर भी निर्जीव है। ऐसा हृदय पत्थर जैसा है।
विचार:
मनुष्य को भावनाओं से परिपूर्ण होना चाहिए, खासकर अपने देश के प्रति। केवल भौतिक जीवन नहीं, बल्कि एक भावनात्मक, संवेदनशील और राष्ट्रप्रेम से भरा जीवन ही सच्चा जीवन है।
सारांश रूप में:
तीनों पंक्तियाँ हमें जीवन की क्षणभंगुरता, आत्मबल, और राष्ट्र के प्रति सच्चे प्रेम की ओर प्रेरित करती हैं। ये पंक्तियाँ हमें यह भी सिखाती हैं कि बिना भावना, बिना देशप्रेम के कोई भी जीवन पूर्ण नहीं हो सकता।
कक्षा 8 मल्हार के अन्य प्रश्न उत्तर
सोच-विचार के लिए
कविता को पुन: ध्यान से पढ़िए, पता लगाइए और लिखिए।
(क) “हम हैं जिसके राजा-रानी” पंक्ति में राजा-रानी किसे और क्यों कहा गया है?
उत्तर देखें“हम हैं जिसके राजा-रानी” पंक्ति में ‘हम’ शब्द भारत के नागरिकों के लिए प्रयोग हुआ है। कवि यह कहना चाहता है कि हम उसी देश के निवासी हैं, जो हमें सब कुछ देता है – अन्न, जल, प्रेम, ज्ञान और पहचान। इसलिए हम सब उस देश के ‘राजा-रानी’ हैं – यानी उसे सम्मान और गौरव के साथ अपना समझने वाले स्वाभिमानी नागरिक।
(ख) ‘संसार-संग’ चलने से आप क्या समझते हैं? जो व्यक्ति ‘संसार-संग’ नहीं चलता, संसार उसका क्यों नहीं हो पाता है?
उत्तर देखें‘संसार-संग चलना’ का अर्थ है – समय, समाज और दुनिया की गति के साथ तालमेल बनाए रखना, प्रगति और परिवर्तन के साथ चलना। जो व्यक्ति या राष्ट्र समय के साथ नहीं चलता, वह पिछड़ जाता है और उसकी पहचान मिट जाती है। इसलिए कवि कहता है कि जो संसार के साथ नहीं चलता, संसार उसे अपनाता नहीं और वह समाज में महत्वहीन बन जाता है।
(ग) “उस पर है नहीं पसीजा जो/क्या है वह भू का भार नहीं।” पंक्ति से आप क्या समझते हैं? बताइए।
उत्तर देखेंइस पंक्ति का अर्थ है – जिस व्यक्ति का हृदय अपने देश पर प्रेम से नहीं पसीजता, जिसमें अपने देश के प्रति संवेदना नहीं है, वह इस धरती पर बोझ मात्र है। वह केवल जी रहा है, लेकिन उसका जीवन समाज या राष्ट्र के लिए कोई उपयोगी योगदान नहीं दे रहा।
(घ) कविता में देश-प्रेम के लिए बहुत-सी बातें आई हैं। आप ‘देश-प्रेम’ से क्या समझते हैं? बताइए।
उत्तर देखेंदेश-प्रेम का अर्थ है – अपने देश के लिए सच्ची निष्ठा, सेवा और समर्पण का भाव रखना। इसका मतलब केवल भावनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि कर्मों से भी जुड़ा है – देश की रक्षा करना, उसकी उन्नति के लिए मेहनत करना, सामाजिक कुरीतियों का विरोध करना और देशवासियों के प्रति अपनत्व और सहयोग की भावना रखना।
(ङ) यह रचना एक आह्वान गीत है जो हमें देश-प्रेम के लिए प्रेरित और उत्साहित करती है। इस रचना की अन्य विशेषताएँ ढूँढ़िए और लिखिए।
उत्तर देखेंइस कविता की निम्न विशेषताएँ हैं:
प्रेरणात्मक शैली: कविता पाठकों में देश-प्रेम, आत्मबल, और साहस की भावना जाग्रत करती है।
सशक्त भाषा और दोहराव: “वह हृदय नहीं है, पत्थर है…” जैसी पंक्तियाँ बार-बार आकर गहरा प्रभाव डालती हैं।
भावात्मकता: पूरी कविता में देश के प्रति भावुकता और गहरा जुड़ाव दिखाया गया है।
सामाजिक और नैतिक संदेश: यह कविता हमें आत्मनिरीक्षण करने और देश के लिए कुछ करने की प्रेरणा देती है।
काव्यगत सौंदर्य: कविता में अनुप्रास, रूपक और प्रतीक जैसे अलंकारों का सुंदर प्रयोग हुआ है – जैसे “काल-दीप”, “परवाना”, “रस-धार” आदि।
अनुमान और कल्पना से
अपने समूह में मिलकर चर्चा कीजिए और लिखिए ।
(क) “जिसने कि खजाने खोले हैं” अनुमान करके बताइए कि इस पंक्ति में किस प्रकार के खजाने की बात की गई होगी?
उत्तर देखेंइस पंक्ति में ‘खजाने’ से तात्पर्य केवल धन-दौलत या सोना-चाँदी नहीं है, बल्कि भारत की प्राकृतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संपदाओं से है। यह देश अपने प्राकृतिक संसाधनों (जैसे – नदियाँ, पर्वत, वन), ऐतिहासिक धरोहरों, साहित्य, कला, संगीत, शिक्षा, ज्ञान और मूल्यों का खजाना है, जिसे पूरी दुनिया सराहती है।
(ख) “जिसकी मिट्टी में उगे बढ़े” पंक्ति में ‘उगे बढ़े’ किसके लिए और क्यों कहा गया होगा?
उत्तर देखें‘उगे बढ़े’ शब्द देश के नागरिकों के लिए प्रयुक्त हुआ है। यह देश हमारी जन्मभूमि है, यहीं हम पले-बढ़े, यहीं का अन्न-पानी खाया। इसलिए यह देश हमारे जीवन की जड़ है – हमारी पहचान, परवरिश और संस्कृति की नींव। इसी धरती ने हमें जीवन और विकास का अवसर दिया।
(ग) “वह हृदय नहीं है पत्थर है” पंक्ति में ‘हृदय’ के लिए ‘पत्थर’ शब्द का प्रयोग क्यों किया गया होगा?
उत्तर देखेंयहाँ ‘पत्थर’ एक रूपक है, जो उस व्यक्ति के हृदय के लिए प्रयुक्त हुआ है जिसमें देश के लिए प्रेम, संवेदना और समर्पण नहीं है। पत्थर में न तो भावना होती है, न ही प्रतिक्रिया। ऐसा हृदय निस्संवेदनशील, कठोर और निष्क्रिय होता है – जो देश के लिए कुछ नहीं करता।
(घ) कल्पना कीजिए कि पत्थर आपको अपनी कथा बता रहा है। वो आपसे क्या-क्या बातें करेगा और आप उसे क्या-क्या कहेंगे?
(संकेत – पत्थर — जब मैं नदी में था तो नदी की धारा मुझे बदलती भी थी। …)
उत्तर देखें(संवादात्मक रूप में):
पत्थर:
“जब मैं नदी में था, तब पानी की धार मुझे घिसती थी, मुझे आकार देती थी। लोग मुझे उठाकर मंदिरों में ले गए, किसी ने मुझे घर की नींव बनाया, किसी ने मुझसे मूर्ति गढ़ी। लेकिन जब मेरे मन को कोई समझ न सका, तो मुझे ‘कठोर’ कह दिया।”
मैं:
“तू कठोर नहीं, तू तो धैर्य और सहनशीलता की मिसाल है। तूने पीड़ा सही, फिर भी सहारा बना रहा। लेकिन जब मनुष्य अपने देश के प्रति संवेदनहीन हो जाए, तो हम उसे भी पत्थर कह देते हैं – क्योंकि उसमें भाव नहीं रहते।”
(ङ) देश-प्रेम की भावना देश की सुरक्षा से ही नहीं, बल्कि संरक्षण से भी जुड़ी होती है। अनुमान करके बताइए कि देश के किन-किन संसाधनों या वस्तुओं आदि को संरक्षण की आवश्यकता है और क्यों?
उत्तर देखेंदेश-प्रेम का अर्थ केवल सीमाओं की रक्षा नहीं, बल्कि देश की धरोहरों और संसाधनों की रक्षा भी है। जिन चीज़ों को संरक्षण की ज़रूरत है, वे हैं:
प्राकृतिक संसाधन: जैसे – जल, जंगल, भूमि, वायु – जो जीवन के लिए आवश्यक हैं।
सांस्कृतिक धरोहर: जैसे – ऐतिहासिक स्मारक, मंदिर, मस्जिद, किले, शिलालेख – जो हमारी पहचान हैं।
भाषा और साहित्य: अपनी मातृभाषा और लोक-संस्कृति का संरक्षण करना हमारी आत्मा को जीवित रखना है।
जनजातीय और पारंपरिक ज्ञान: जो आज लुप्त होने की कगार पर हैं।
मानव संसाधन: हर नागरिक को शिक्षित, स्वस्थ और सुरक्षित रखना भी देश का संरक्षण है।
क्यों संरक्षण जरूरी है:
इन संसाधनों का यदि हम ध्यान नहीं रखेंगे, तो हमारी आने वाली पीढ़ियाँ अपने देश की पहचान और शक्ति से वंचित रह जाएँगी। इसलिए देश-प्रेम में इनकी रक्षा करना भी अनिवार्य है।