एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 हिंदी संक्षिप्त बुद्धचरित अध्याय 5 महापरिनिर्वाण
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 हिंदी संक्षिप्त बुद्धचरित अध्याय 5 महापरिनिर्वाण के प्रश्नों के उत्तर शैक्षणिक सत्र 2024-25 सीबीएसई तथा राजकीय बोर्ड के छात्रों के लिए यहाँ दिए गए हैं। कक्षा 8 के छात्र हिंदी की पूरक पुस्तिका के प्रश्नों के हल यहाँ दिए गए एनसीईआरटी समाधान की मदद से सरलता से समझ सकते हैं।
कक्षा 8 हिंदी संक्षिप्त बुद्धचरित अध्याय 5 महापरिनिर्वाण के प्रश्न उत्तर
मार ने बुद्ध को क्या याद दिलाया? उत्तर में बुद्ध ने क्या कहा?
जब महामुनि मर्कट सरोवर के तट पर एक वृक्ष के नीचे बैठे थे, तभी उनके पास मार आया और सिर झुकाकर कहने लगा— “हे मुनि , नैरंजना नदी के तट पर जब आपने बुद्धत्व प्राप्त किया था, तो मैंने आपसे कहा था कि आप कृतकृत्य हो गए हैं। आप निर्वाण प्राप्त कीजिए। उस समय आपने कहा था, जब तक मैं पीड़ित और पापियों का उद्धार नहीं कर लेता, तब तक मैं अपने निर्वाण की कामना नहीं करूँगा। अब आप बहुतों को मुक्त कर चुके हैं, बहुत से मुक्ति के मार्ग पर हैं। वे सभी निर्वाण प्राप्त करेंगे, अत: अब आप भी निर्वाण प्राप्त कीजिए।”
आनंद कौन था? उसे क्या जानकर आघात लगा?
आनंद (स्थविर) बौद्ध धर्म की मान्यताओं के अनुसार बुद्ध के चेचेर भाई थे जो बुद्ध से दीक्षा लेकर उनके निकटतम शिष्यों में माने जाने लगे थे। वे सदा भगवान् बुद्ध की निजी सेवाओं में तल्लीन रहे। वे अपनी तीव्र स्मृति, बहुश्रुतता तथा देशनाकुशलता के लिए सारे भिक्षुसंघ में अग्रगण्य थे। उन्होंने बताया कि मेरा भूलोक में निवास का समय अब पूरा हो चुका है, इसलिए सर्वत्र हलचल है। अब मैं केवल तीन मास और इस पृथ्वी पर रहूँगा, फिर चिरंतन निर्वाण प्राप्त कर लूँगा। यह सुनकर आनंद को बड़ा आघात लगा। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। तथागत ही उसके गुरु थे, स्वजन थे और सर्वस्व थे। वह अत्यंत दु:खी होकर रोने लगा। विलाप करते हुए आनंद ने कहा— “आपके निश्चित प्रस्थान की बात सुनकर मेरा मन दु:खी हो गया है।
तथागत ने परिनिर्वाण से पूर्व मल्लों को क्या समझाया?
सभी मल्लों को व्याकुल देखकर भगवान बुद्ध ने कहा- “आनंद के समय दु:खी होना उचित नहीं है। यह दुर्लभ और काम् लक्ष्य मुझे आज प्राप्त हो रहा है। मुझे आज वह सुखमय पुण्य प्राप्त हो रहा है, जो पंचभूतों से मुक्त, जन्म से रहित, इंद्रियातीत, शांत और दिव्यरूप है। जिस के बाद किसी प्रकार का शोक नहीं होता। यह शोक का समय नहीं है, क्योंकि सभी दु:खों का मूल मेरा भौतिक शरीर आज निवृत्त हो रहा है।” जो मेरे धर्म को ठीक से समझता है, वह मेरे दर्शन के बिना भी दुखों के जाल से मुक्त हो जाता है। ओषधि के सेवन के बिना मात्र वैद्य के दर्शन से रोग से मुक्ति नहीं होती। इसलिए श्रेय का आचरण करो। जीवन तेज़ हवा के बीच दीपशिखा की तरह चंचल है।”
अपने अंतिम उपदेश में बुद्ध ने अपने शिष्यों से क्या कहा?
आधी रात बीतने पर जब चाँदनी के प्रकाश का विस्तार हुआ, सारा वन प्रदेश पूरी तरह शांत हो गया। तब भगवान बुद्ध ने वहाँ उपस्थित सभी शिष्यों को बुलाया और अंतिम उपदेश दिया। उन्होंने कहा- “मेरे निर्वाण के बाद आप सबको इस ‘प्राति मोक्ष’ को ही अपना आचार्य, प्रदीप तथा उपदेष्टा मानना चाहिए; आपको उसी का स्वाध्याय करना चाहिए, उसी के अनुसार आचरण करना चाहिए, यह प्रातिमोक्ष शील का सार है; मुक्ति का मूल है, इसी से मोक्ष प्राप्त हो सकता है।”
तथागत ने प्रातिमोक्ष के सारे नियम विस्तार से समझाए और अंत में कहा- “मैंने गुरु का कर्तव्य निभाया है। आगे तुम लोग साधना करो। विहार, वन, पर्वत, जहाँ भी रहो, धर्म का आचरण करो। यदि मेरे बताए आर्य सत्यों के विषय में किसी को कोई शंका हो, कोई प्रश्न हो, तो पूछ लो।”
मल्लों और पड़ोसी राजाओं के बीच युद्ध की संभावना क्यों उत्पन्न हो गई? यह संघर्ष कैसे टल गया?
बुद्ध के शरीर के अवशेषों को मल्ल अपने पास ही रखना चाहते थे। पड़ोसी राजा चाहते थे कि उन्हें भी उन ‘धातुओं’ में से कुछ हिस्सा मिले। इसलिए मल्लों और पड़ोसी राजाओं के बीच युद्ध की संभावना उत्पन्न हो गई। उसके बाद द्रोण नामक एक ब्राह्मण ने दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थता की और युद्ध को टाला जा सका।
भगवान बुद्ध के उपदेशों को संग्रह करने का भार किसे सौंपा गया और क्यों?
भगवान बुद्ध द्वारा प्रवर्तित धर्म को स्थायी रूप देने के लिए उन्होंने विचार-विमर्श किया। सभी भिक्षुओं ने मिलकर भगवान बुद्ध के उपदेशों का संग्रह करने का निर्णय लिया। आनंद सदा भगवान बुद्ध के साथ रहे थे और उन्होंने उनके मुख से सभी धर्मोपदेश सुने थे, इसलिए सभी भिक्षुओं ने आनंद से निवेदन किया कि संसार के कल्याण के लिए वे सभी धर्मोपदेशों को दुहराएँ।