एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 हिंदी संक्षिप्त बुद्धचरित अध्याय 4 धर्मचक्र प्रवर्तन
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 हिंदी संक्षिप्त बुद्धचरित अध्याय 4 धर्मचक्र प्रवर्तन के पाठ के अंत में दिए गए प्रश्नों के उत्तर अभ्यास के सवाल जवाब सत्र 2024-25 के लिए यहाँ से निशुल्क प्राप्त किए जा सकते हैं। आठवीं के छात्र हिंदी में पूरक पुस्तक के प्रश्नों को यहाँ से हल करके इसे आसानी से समझ सकते हैं।
कक्षा 8 हिंदी संक्षिप्त बुद्धचरित अध्याय 4 धर्मचक्र प्रवर्तन के प्रश्न उत्तर
बुद्धत्व प्राप्त करने के बाद सिद्धार्थ ने प्रथम उपदेश कहाँ और किन्हें दिया?
बुद्धत्व प्राप्त करने के बाद सिद्धार्थ ने पहला उपदेश वाराणसी के निकट स्थित सारनाथ में दिया था। भूतकाल में पाँच भिक्षुओं ने बुद्ध को तप-भ्रष्ट मानकर उनका साथ छोड़ दिया था। वे पाँचों भिक्षु अब सारनाथ में रहते थे। सभी भिक्षुओं में कौंडिन्य को ही प्रधान धर्मवेत्ता माना जाता है।
अष्टांग योग की प्रमुख बातों का उल्लेख कीजिए।
तथागत ने आगे उन्हें समझाते हुए बताया— “यही मध्य मार्ग है, जो तीनों लोकों में ‘अष्टांग योग’ के नाम से विख्यात है और जिससे जन्म, जरा, व्याधि और मृत्यु से मुक्त हुआ जा सकता है। अष्टांग योग के अंतर्गत प्रथम पांच अंग (यम, नियम, आसन, प्राणायाम तथा प्रत्याहार) ‘बहिरंग’ और शेष तीन अंग (धारणा, ध्यान, समाधि) ‘अंतरंग’ नाम से प्रसिद्ध हैं। बहिरंग साधना यथार्थ रूप से अनुष्ठित होने पर ही साधक को अंतरंग साधना का अधिकार प्राप्त होता है। ‘यम’ और ‘नियम’ वस्तुतः शील और तपस्या के द्योतक हैं।
भगवान बुद्ध काशी से राजगृह क्यों आए?
भगवान बुद्ध को याद आया कि उन्होंने मगधराज बिंबसार को वचन दिया था कि जब उन्हें बुद्धत्व प्राप्त हो जाएगा तो वे उन्हें नए धर्म में दीक्षित करेंगे और उपदेश देंगे। इसलिए उन्होंने सभी काश्यपों को साथ लिया और मगध की राजधानी राजगृह की ओर प्रस्था न किया।
प्रसेनजित ने भगवान बुद्ध से क्या निवेदन किया?
कोसल नरेश प्रसनेजित उनके दर्शनों के लिए जेत वन आए। उन्होंने भगवान को श्रद्धापूर्वक नमस्कार किया और निवेदन किया— हे मुने! कोसलवासियों का यह परम सौभाग्य है कि आप यहाँ पधारे। जैसे पुष्पों की सगंति से वायु सुगन्धित हो जाती है, वैसे ही आपके निवास से यह वन पवित्र हो गया है। आप यहाँ सुखपूर्वक निवास करें और हम सब पर अनग्रुह करें।
तथागत ने कर्म के बारे में शुद्धोदन को क्या समझाया?
तथागत ने कर्म के बारे में राजा शुद्धोदन को समझाया कि यह सारा संसार कर्म से बँधा हुआ है, अत: आप कर्म का स्वभाव, कर्म का कारण, कर्म का विपाक (फल) और कर्म का आश्रय, इन चारों के रहस्यों को समझिए, क्योंकि कर्म ही है, जो मृत्यु के बाद भी मनुष्य का अनुगमन करता है। आप इस सारे जगत को जलता हुआ समझकर उस पथ की खोज कीजिए जो शांत है और ध्रुव है, जहाँ न जन्म है न मृत्यु है, न श्रम है, और न दुःख।
आम्रपाली कौन थी? तथागत ने उसे क्या समझाया?
आम्रपाली वैशाली की नगरवधू थी जो अत्यंत सुन्दर थी। जब आम्रपाली ने सुना कि भगवान बुद्ध उसके उद्यान में निवास कर रहे हैं तो वह बहुत प्रसन्न हुई और उनके दर्शनों के लिए तैयार हुई। अत्यंत विनम्र भाव से कुलवधुओं के समान श्वेत वस्त्र धारण किए और तथागत के दर्शन के लिए चल पड़ी। भगवान बद्धु ने आम्रपाली को उपदशे देते हुए कहा- “हे सुन्दरी, तुम्हारा आशय पवित्र है, क्योंकि तुम्हारा मन शुद्ध है। तुम्हारा चित्त धर्म की ओर प्रवृत्त है। यही तुम्हारा सच्चा धन है, क्योंकि इस अनित्य संसार में धर्म ही नित्य है। देखो, आयु यौवन का नाश करती है, रोग शरीर का नाश करता है और मृत्यु जीवन का नाश करती है परंतु धर्म का नाश कोई नहीं कर सकता।”