एनसीईआरटी समाधान कक्षा 11 राजनीति विज्ञान अध्याय 6 नागरिकता
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 11 राजनीति विज्ञान अध्याय 6 नागरिकता के प्रश्नों के उत्तर अभ्यास के सवाल जवाब शैक्षणिक सत्र 2024-25 के लिए यहाँ दिए गए हैं। कक्षा 11 राजनीति शास्त्र के राजनीतिक सिद्धांत के पाठ 6 के प्रश्न उत्तर सीबीएसई के साथ साथ राजकीय बोर्ड के छात्रों के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण हैं, इसकी मदद से वे परीक्षा की तैयारी आसानी से कर सकते हैं।
कक्षा 11 राजनीति विज्ञान अध्याय 6 नागरिकता के प्रश्न उत्तर
राजनीतिक समुदाय की पूर्ण और समान सदस्यता के रूप में नागरिकता में अधिकार और दायित्व दोनों शामिल हैं। समकालीन लोकतांत्रिक राज्यों में नागरिक किन अधिकारों के उपभोग की अपेक्षा कर सकते हैं? नागरिकों के राज्य और अन्य नागरिकों के प्रति क्या दायित्व है?
नागरिक आज जिन अधिकारों का प्रयोग करते हैं उन सभी अधिकारों को बहुत संघर्ष के बाद हासिल किया गया है। नागरिकता सिर्फ राज्यसत्ता और उसके सदस्यों के बीच के संबंधों का निरूपण नहीं, बल्कि उससे बढ़कर है। यह नागरिकों के आपसी संबंधों के बारे में भी है। इसमें नागरिकों के एक-दूसरे के प्रति और समाज के प्रति निश्चित दायित्व शामिल हैं। वर्तमान समय में कोई भी बढ़ती हुई गतिशीलता सिर्फ़ आवागमन के साधनों के कारण स्थिर नहीं है।
टी-एच-मार्शल के फ़ॉर्मले के अनुसार नागरिकों को अधिकार एवं कर्त्तव्य प्रदान किए गए हैं। वे इस प्रकार हैं:
नागरिक अधिकार : ये अधिकार व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता से संबंधित हैं।
राजनीतिक अधिकार : ये अधिकार व्यक्ति को राजनीतिक प्रक्रिया से संबंधित हैं।
सामाजिक अधिकार : ये अधिकार व्यक्ति की शैक्षिक उपलब्धियां एवं रोजगार से संबंधित हैं।
सभी नागरिकों को समान अधिकार दिए तो जा सकते हैं लेकिन हो सकता है कि वे इन अधिकारों का प्रयोग समानता से न कर सके। इस कथन की व्याख्या कीजिए।
सभी नागरिकों को समान अधिकार और अवसर देने पर विचार करना किसी भी सरकार के लिए आसान नहीं होता। विभिन्न समूह के लोगों की आवश्यकता और समस्याएँ अलग-अलग हो सकती हैं और एक समूह के अधिकार दूसरे समूह के अधिकारों के प्रतिकूल हो सकते हैं। नागरिकारों के लिए समान अधिकार का आशय यह नहीं होता कि सभी लोगों पर समान नीतियाँ लागू कर दी जाएँ क्योंकि विभिन्न समूह के लोगों की आवश्यकता अलग-अलग हो सकती है। अर्थात् नीति निर्माण के समय विभिन्न आवश्यकताओं का ध्यान रखना होगा। जैसे:
कानूनी उपायों तक पहुंच का अभाव।
सरकारी तंत्र में भष्टाचार।
सामाजिक तथा आर्थिक असमानता जो अवसर की समानता को रोकती है।
इनके परिणाम ये हो सकते हैं। उदाहरण- बहुत-सी महिलाओं को इस बात की जानकारी नहीं होती है कि उनके पति द्वारा शारीरिक तथा मानसिक उत्पीड़न घरेलू हिंसा के अंतर्गत आता है। इसीलिए वे कानूनी उपायों की तलाश करने में समर्थ नहीं हैं।
भारत में नागरिक अधिकारों के लिए हाल के वर्षों में किए गए किन्हीं दो संघर्षों पर टिप्पणी लिखिए। इन संधर्षों में किन अधिकारों की माँग की गई थी?
झोपड़पट्टी और अवैध कब्जे की जमीन की समस्या : भारत के प्रत्येक शहर में बहुत बड़ी संख्या में झोपड़पट्टी और अवैध कब्जे की जमीन पर बसे लोगों की बहुत बड़ी समस्या है। ये लोग अपरिहार्य और उपयोगी काम अक्सर कम मजदूरी पर करते हैं। फिर भी शहर की बाकी आबादी उन्हें अवांछनीय मेहमानों की तरह देखती है। उन पर शहर के संसाधनों पर बोझ बनने या अपराध और बीमारी फ़ैलाने का आरोप डाला जाता है। गंदी बस्तियों की स्थिति अक्सर वीभत्स होती है। छोटे-छोटे कमरों में कई-कई लोग दबकर रहते हैं। यहाँ न निजी ‘शौचालय होता है, न जल आपूर्ति और न ही सफ़ाई। झोपड़पट्टियों के निवासी अपने श्रम से अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करते हैं।
झोपड़पट्टियों में बेंत बुनाई या कपड़ा रंगाई-छपाई या सिलाई जैसे छोटे कारोबार भी चलते हैं। झोपड़पट्टियों के निवासियों को सफ़ाई या जलआपूर्ति जैसी सुविधाएँ देने पर संभवतः कोई भी शहर अपेक्षाकृत कम खर्च करता है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संविधान की धारा 21 में जीने के अधिकार की गारंटी दी गई है, जिसमें आजीविका का अधिकार सम्मिलित है। इसलिए अगर फ़ुटपाथवासियों को बेदखल करना हो तो उन्हें आश्रय के अधिकार के अंतर्गत पहले वैकल्पिक जगह उपलब्ध करानी होगी।
आदिवासी तथा वनवासी समूह का संघर्ष : ये लोग अपने जीवनयापन के लिए जंगल तथा अन्य प्राकृतिक संसाधानों पर निर्भर हैं। बढ़ती आबादी, जमीन और संसाधानों की कमी के दबाव के कारण उनमें से अनेक की जीवन पद्धति और आजीविका संकट में है। जंगल और तराई-क्षेत्र में मौजूद खनिज संसाधानों की खनन करने के इच्छुक उद्यमियों के हितों का दबाव आदिवासी और वनवासी लोगों के जीवन और आजीविका पर एक खतरा है।
शरणार्थियों की समस्याएँ क्या हैं? वैश्विक नागरिकता की अवधारणा किस प्रकार उनकी सहायता कर सकती है?
जब हम शरणार्थियों या अवैध अप्रवासियों के विषय में सोचते हैं तो मन में अनेक छवियाँ उभरती हैं। उसमें एशिया या अफ्रीका के ऐसे लोगों की छवि हो सकती है जिन्होंने यूरोप या अमेरिका में चोरी-छिपे घुसने के लिए दलाल को पैसे का भुगतान किया हो। इसमें जोखिम बहुत हैं लेकिन वे प्रयास में तत्पर दिखते हैं। एक अन्य छवि युद्ध या अकाल से विस्थापित लोगों की हो सकती है। इस प्रकार के बहुत से दृश्य हमें दूरदर्शन पर दिखाई दे जाते हैं। सूडान डरफ़र क्षेत्र के शरणार्थी, फिलिस्तीनी, बर्मी या बांग्लादेशी शरणार्थी जैसे कई उदाहरण हैं। ये सभी लोग ऐसे हैं जो अपने ही देश या पड़ोसी देश में ‘शरणार्थी बनने के लिए मजबूर किए गए हैं। हमारे द्वारा अक्सर यह मान लिया जाता है कि किसी देश की पूर्ण सदस्यता उन सबको उपलब्ध होनी चाहिए, जो सामान्यतया उस देश में रहते और काम करते हैं या जो नागरिकता के लिए आवेदन करते हैं।
अनेक देश वैश्विक और सामाजिक नागरिकता का समर्थन करते हैं लेकिन नागरिकता देने की ‘शर्तें भी निर्धारित करते हैं। ये शर्तें आमतौर पर देश के संविधान और कानूनों में लिखी होती हैं। अवांछित आगंतुकों को नागरिकता से बाहर रखने के लिए राज्यसत्ताएँ ताकत का प्रयोग करती हैं। हालाँकि प्रतिबंध, दीवार और बाढ़ लगाने के बावजूद आज भी दुनिया में बड़े पैमाने पर लोगों का देशांतरण होता है। युद्ध उत्पीड़न, अकाल या अन्य कारणों से लोग विस्थापित होते हैं। अगर कोई देश उन्हें स्वीकार नहीं करता और वे घर नहीं लौट सकते तो वे राज्यविहीन या ‘शरणार्थी हो जाते हैं। वे शिविरों में या अवैध प्रवासियों के रूप में रहने के लिए मजबूर किए जाते हैं।
अक्सर वे कानूनी तौर पर काम नहीं कर सकते या अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा नहीं सकते या संपत्ति अर्जित नहीं कर सकते। समस्या इतनी विकराल है कि संयुक्त राष्ट्र ने ‘शरणार्थियों की जाँच करने और मदद करने के लिए उच्चायुक्त नियुक्त किया हुआ है। राज्य हीन लोगों का प्रस्थान आज विश्व के लिए गंभीर समस्या बन गया है। राष्ट्रों की सीमाएँ अभी भी युद्ध या राजनीतिक विवादों के जरिये पुनः परिभाषित की जा रही हैं और ऐसे विवादों से घिरे लोगों के लिए इनके परिणाम घातक होते हैं।
देश के अंदर एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में लोगों के आप्रवासन का आमतौर पर स्थानीय लोग विरोध करते हैं। प्रवासी लोग स्थानीय अर्थव्यवस्था में क्या योगदान दे सकते हैं?
आमतौर पर वे लोग जो अपने देश या प्रांत/राज्य को छोड़कर रोजगार की तलाश में दूसरे मुल्कों/राज्यों/प्रांतों में जाकर रहते हैं उन्हें प्रवासी कहा जाता है। प्रवासी लोग स्थानीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये प्रवासी फ़ेरीवाले, घरेलू नौकर, मिस्त्री, सफ़ाईकर्मी तथा छोटे व्यापारी होते हैं। देश के अंदर एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में लोगों के आप्रवासन का आमतौर पर स्थानीय लोग विरोध करते हैं क्योंकि स्थानीय लोगों को यह अनुभव होने लगता है कि यदि अप्रवासी लोगों की संख्या स्थानीय लोगों की संख्या से अधिक हुए तो वे अपने ही घर में अल्पसंख्यक बन जाएंगें। अधिक संख्या में रोजगार बाहर के लोगों के हाथ में जाने के खिलाफ़ अक्सर स्थानीय लोगों में प्रतिरोध की भावना पैदा हो जाती है। कुछ नौकरियों या कामों को राज्य के मूल निवासियों या स्थानीय भाषा को जानने वाले लोगों तक सीमित रखने की माँग उठती है।
प्रवासी लोग स्थानीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रावासी अर्थव्यवस्था की वृद्धि एवं विकास में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। प्रवासी श्रमिकों का 90 फ़ीसदी हिस्सा असंगठित क्षेत्र में काम करता है। वैसे तो प्रवासी श्रमिक सब्जी के ठेले लगाने से लेकर घरों में साफ़-सफ़ाई के कामों तक हर क्षेत्र में फ़ैले हुए हैं लेकिन अगर उद्योग जगत में देखा जाए तो सबसे ज्यादा प्रवासी श्रमिक इन क्षत्रों में संलग्न हैं। प्रवासी लोग जहाँ निवास करते हैं वे वहाँ बेंत-बुनाई या कपड़ा छपाई, रंगाई तथा सिलाई जैसे छोटे कारोबार भी चलाते हैं।
भारत जैसे समान नागरिकता देने वाले देशों में भी लोकतांत्रिक नागरिकता एक पूर्ण स्थापित तथ्य नहीं वरन एक परियोजना है। नागरिकता से जुड़े उन मुद्दों की चर्चा कीजिए जो आजकल भारत में उठाए जा रहे हैं?
समान नागरिक संहिता का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 44 में है। इसमें नीति-निर्देश दिया गया है कि समान नागरिक कानून लागू करना हमारा लक्ष्य होगा। नागरिकता से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग 2 में अनुच्छेद 5 से 11 में किया गया है। संविधान में नागरिकों के अधिकार और दायित्वों का उल्लेख है। यह प्रावधान भी है कि राज्य को नस्ल/जाति/लिंग में से किसी भी आधार पर नागरिकों के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए। धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों के अधिकारों को भी संरक्षित किया गया है।
इस प्रकार के सामाजिक प्रावधानों ने संघर्ष और विवादों को जन्म दिया है। महिला आंदोलन, दलित आंदोलन तथा विकास योजनाओं से विस्थापित लोगों का संघर्ष ऐसे लोगों द्वारा चलाए जा रहे संघर्ष के उदाहरण हैं जो मानते हैं कि उनकी नागरिकता को पूर्ण अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। भारत में जन्म, वंश, भूमि के अर्जन द्वारा, देशीकरण तथा पंजीकरण द्वारा नागरिकता प्राप्त की जा सकती है।