कक्षा 7 विज्ञान अध्याय 13 एनसीईआरटी समाधान – अपशिष्ट जल की कहानी
कक्षा 7 विज्ञान अध्याय 13 अपशिष्ट जल की कहानी एनसीईआरटी समाधान – सलूशन हिंदी माध्यम तथा अंग्रेजी मीडियम में पीडीएफ और विडियो के रूप में उपलब्ध है। कक्षा 7 विज्ञान पाठ 13 के ये समाधान सीबीएसई परीक्षा 2024-25 के दृष्टिकोण से बहुत उपयोगी हैं। तिवारी अकादमी कक्षा 7 विज्ञान ऐप निशुल्क है और इसे प्रयोग करने के लिए इंटरनेट की भी आवश्यकता नहीं होती है। 7वीं विज्ञान अध्याय के सभी प्रश्न उत्तर एकदम सरल भाषा में दिए गए हैं और जहाँ चित्रों की जरूरत है, वे भी दर्शाए गए हैं।
कक्षा 7 विज्ञान अध्याय 13 के एनसीईआरटी समाधान नीचे दिए गए हैं:
जीवों के लिए जल क्यों आवश्यक है?
जीवित प्राणियों में जल की उपयोगिता:
- 1. जल, जीवन के लिए परम आवश्यक है।
- 2. हमारे शरीर की अधिकांश चयापचयी क्रियाएँ जैसे पाचन, उत्सर्जन, वृद्धि आदि जल पर निर्भर होती हैं।
- 3. मानव शरीर में लगभग 70% जल होता है।
- 4. जल, शरीर के तापमान को वाष्पीकरण तथा पसीने द्वारा नियंत्रित रखता है।
- 5. जल, जीवित प्राणियों में पदार्थों के परिवहन के लिए माध्यम का कार्य करता है।
- 6. जैव-रासायनिक क्रियाओं को करने के लिए यह कई पदार्थों के लिए एक घोलक का कार्य करता है।
- 7. जल, हरे-पेड़-पौधों द्वारा संचालित प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया का मुख्य कच्चा पदार्थ होता है।
- 8. पेड़-पौधों में जल बीजों के अंकुरण, वृद्धि, पदार्थों के स्थानान्तरण, गतिशीलता आदि में सहायता करता है।
- 9. बहुत-से जीवित प्राणी जलीय प्राकृतिक वास में रहते हैं।
कक्षा 7 विज्ञान अध्याय 13 के कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
वाहित मल क्या है ? अनुपचारित वाहित मल को नदियों अथवा समुद्र में विसर्जित करना हानिकारक क्यों है? समझाइए।
वाहित मल एक तरल अपशिष्ट है जिसमें विभिन्न प्रकार की अशुद्धियों होती हैं। जैसे घरों, कार्यालयों, कारखानों, अस्पतालों आदि से पानी के साथ-साथ अशुद्धियाँ भी एक बड़े घटक के रूप में पानी में होती हैं, इसे वाहित मल कहा जाता है। इसमें जटिल मिश्रण होता है जिसमें ठोस, कार्बनिक और अकार्बनिक अशुद्धियां, विभिन्न प्रकार के रोग वाहक जीव होते हैं, जो बैक्टीरिया और अन्य रोगाणुओं का कारण बनते हैं।
नदियों या समुद्रों में अनुपचारित वाहित मल का निर्वहन जल संसाधनों को प्रदूषित करेगा। दूषित पानी जलीय पौधों और जानवरों के लिए खतरनाक है। इससे हैजा, टाइफाइड, पोलियो, मेनिनजाइटिस, मलेरिया, डेंगू आदि कई बीमारियां भी फैलती हैं।
तेल और वसाओं को नाली में क्यों नहीं बहाना चाहिये? समझाइए।
तेल और वसा नालियों में बहने वाले पानी को रोक कर नालियों को अवरुद्ध कर सकते हैं। खुली नालियों में, वे मिट्टी में छिद्रों को अवरुद्ध करते हैं और इस प्रकार मिट्टी द्वारा पानी के अवशोषण में बाधा आती है। इसलिए, तेल और वसा को नाली में नहीं छोड़ा जाना चाहिए।
अपशिष्ट जल से स्वच्छ जल प्राप्त करने के प्रक्रम में सम्मिलित चरणों का वर्णन करिए।
अपशिष्ट जल के उपचार में भौतिक, रासायनिक और जैविक प्रक्रम सम्मिलित होते हैं, जो जल को संदूषित करने वाले भौतिक, रासायनिक और जैविक द्रव्यों को पृथक करने में सहायता करते हैं।
इसमें निम्नलिखित चरण शामिल हैं:
- सर्वप्रथम अपशिष्ट जल को ऊर्ध्वाधर लगी छड़ों से बने शलाका छन्नों (बार स्क्रीन) से गुजरा जाता है। इससे अपशिष्ट जल में उपस्थित बड़ी वस्तुएँ जैसे टुकड़े, डंडे, डिब्बे, प्लास्टिक के पैकेट, नैपकिन आदि को हटा दिए जाते हैं।
- अब वाहित अपशिष्ट जल को ग्रिट और बालू अलग करने वाली टंकी से गुजरा जाता है, जहाँ रेत, ग्रिट और कंकड़-पत्थर अलग हो जाते हैं।
- जल को एक बड़ी टंकी में ले जाया जाता है जहाँ इसे घंटों रखा जाता है। यहाँ ठोस मल तथा निलंबित सूक्ष्म जीव आदि तली में बैठ जाते हैं और उन्हें अलग कर लिया जाता है। शीर्ष भाग से जल को अलग कर लिया जाता है।
- उपचारित जल में, अल्प मात्रा में कार्बनिक पदार्थ और निलंबित तत्व होते हैं। जल को वितरण तंत्र से निर्मुक्त करने से पहले उसे क्लोरीन अथवा ओज़ोन जैसे रसायनों से रोगाणु रहित किया जाता है। इसके बाद इसे समुद्र, नदी अथवा भूमि में विसर्जित कर दिया जाता है।
आपंक क्या है ?समझाइए इसे कैसे उपचारित किया जाता है।
अपशिष्ट जल से स्वच्छ जल प्राप्त करने के दौरान, अपशिष्ट जल में पड़े हुए कीचड़, मानव अपशिष्ट आदि को आपंक कहते है। चूंकि यह जैविक कचरा है, इसलिए इसका उपयोग बायो गैस और खाद बनाने के लिए किया जाता है।
कीचड़ को एकत्र किया जाता है। इसे एक अलग टैंक में स्थानांतरित किया जाता है जहां इसे अवायवीय बैक्टीरिया द्वारा विघटित किया जाता है। इस प्रक्रिया में उत्पादित बायोगैस का उपयोग ईंधन के रूप में किया जा सकता है। जलवाहक टैंक के बाद, रोगाणुओं और मानव अपशिष्ट का निपटान होता है और सक्रिय कीचड़ बनता है। सक्रिय कीचड़ में लगभग 97% पानी है। सुखाने वाली मशीनों द्वारा पानी निकाला जाता है। सूखे कीचड़ का उपयोग खाद के रूप में किया जाता है।
अनुपचारित मानव मल एक स्वास्थ्य संकट है। समझाइए।
अनुपचारित मानव मल में कई रोगाणु तथा विषाणु जैसे सूक्ष्म जीव होते हैं। ये सूक्ष्म जीव कई बीमारियों जैसे हैजा, दस्त, टाइफाइड, पोलियो, मेनिन्जाइटिस, हेपेटाइटिस आदि के लिए उत्तरदायी होते हैं। इन रोगों के कीटाणु हवा, पानी या कीड़ों द्वारा आसानी से भोजन या पीने के पानी दो दूषित कर सकते हैं। इस प्रकार, अनुपचारित मानव मल स्वास्थ्य के लिए खतरा हैं।
जल को रोगाणुनाशित (रोगाणु मुक्त) करने के लिए उपयोग किए जाने वाले दो रसायनों के नाम बताइए।
क्लोरीन और ओजोन (दवा उद्योग में) जैसे रसायनों का उपयोग आमतौर पर जल को रोगाणुनाशित (रोगाणु मुक्त) करने के लिए किया जाता है।
अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र में शलाका छन्नों के कार्यों को समझाइए।
अपशिष्ट जल से स्वच्छ जल प्राप्त करने के प्रक्रम में, सर्वप्रथम अपशिष्ट जल को ऊर्ध्वाधर लगी छड़ों से बने शलाका छन्नों (बार स्क्रीन) से गुजरा जाता है। इससे अपशिष्ट जल में उपस्थित बड़ी वस्तुएँ जैसे टुकड़े, डंडे, डिब्बे, प्लास्टिक के पैकेट, नैपकिन आदि को हटा दिए जाते हैं।
स्वच्छता और रोग के बीच संबंध को समझाइए।
आस-पास की गंदगी और दूषित पेयजल के कारण बड़ी संख्या में बीमारियाँ होती हैं। गंदगी से हानिकारक रोगाणुओं, मक्खियों और मच्छरों का विकास होता है जो हैजा, टाइफाइड, पोलियो, मेनिनजाइटिस, हेपेटाइटिस और पेचिश जैसी कई बीमारियों को फैलाने का स्रोत हैं।
स्वच्छता के संदर्भ में एक सक्रिय नागरिक के रूप में अपनी भूमिका को समझाइए।
अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र को बनाने और बनाए रखने के लिए महंगे बुनियादी ढांचे की आवश्यकता होती है। इसलिए, हमें एक सक्रिय नागरिक बनकर कचरे को सीमित करना चाहिए। निम्नलिखित का अनुसरण करने का प्रयास करें:
- खुली नालियों को ढकना चाहिए और आस-पास को साफ रखें।
- तेल और वसा से बनी चीजों को नालियों में नहीं फेंकना चाहिए।
- रसायन जैसे पेंट, कीटनाशक, गाड़ियों से निकला तेल आदि को नाली में नहीं फेंकना चाहिए।
- लोगों को जागरूक करें तथा पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए सामुदायिक प्रथाओं को प्रोत्साहित करें।
- पुनर्चक्रित तथा गैर-पुनर्नवीनीकरण को अलग-अलग जगह फेंके।
कक्षा 7 विज्ञान अध्याय 13 के प्रश्न उत्तर विस्तार से
जल के मुख्य श्रोत कौन कौन से हैं?
जल के स्रोत:
- वर्षा-जल: वर्षा-जल को जल का सर्वाधिक शुद्ध रूप माना जाता है क्योंकि जलवाष्प के संघनित होने पर वर्षा होती है। परंतु जैसे ही वर्षा नीचे आती है, वह धूल के कणों तथा वातावरण की विभिन्न गैसों के साथ मिल जाती है। अन्तत: वर्षा-जल हमारे उपयोग के लिए भूगर्भ-जल के रूप में एकत्रित हो जाता है।
- भूगर्भजल: वर्षा का कुछ जल पृथ्वी पर गिरने के पश्चात पुन: वातावरण में वाष्पित हो जाता है, कुछ जल मृदा की सतह से बहकर जल-धाराओं तथा नदियों में चला जाता है। शेष जल मृदा से नीचे जाकर, तल पर स्थित बिना छिद्र वाली आधार शैल पर एकत्रित हो जाता है। जल का जल-छत स्तर कहलाता है।
- भूगर्भ जल: भूगर्भ-जल भली-भाँति शुद्ध होता है क्योंकि वह मृदा की विभिन्न परतों से गुजरता हुआ छन जाता है। भूगर्भ-जल प्राप्त करने के लिए कुएँ तथा ट्यूब-वैल खोदे जाते हैं। भूगर्भ जल कुछ स्थानों पर प्राकृतिक झरनों के रूप में सतह पर भी आ जाता है। कुएँ, झरने सामान्यता कुओं तथा झरनों का जल पीने के लिए सुरक्षित होता है। ये भूगर्भ- जल के स्रोत हैं। इन स्रोतों में अशुद्धियों तथा कीटाणुओं के मिल जाने से, इन्हें पीने तथा भोजन पकाने से पूर्व शुद्ध कर लेना चाहिए।
- समुद्री जल: पृथ्वी की दो-तिहाई सतह को समुद्र तथा महासागर घेरे हुए हैं। समुद्र का जल नमकीन है क्योंकि इसमें अधिक मात्रा में नमक विद्यमान होता है जो इसे पीने, वस्त्र धोने तथा कृषि उद्देश्यों के लिए अनुपयोगी बना देता है।
जल चक्र से आप क्या समझते हैं?
प्रकृति में जल का निरंतर परिभ्रमण पृथ्वी से वायु में तथा पुन: वापस लौटना- जल-चक्र कहलाता है। मानव द्वारा अत्यधिक
मात्रा में पृथ्वी से जल का विभिन्न क्रियाओं के लिए निरंतर उपयोग होता है, परंतु फिर भी जल का प्रकृति में अस्तित्व है क्योंकि
जल निरंतर परिभ्रमण करता है। समुद्रों, महासागरों, नदियों आदि के जल का सूर्य के ताप से वाष्पीकरण द्वारा हृास होता है। ेपेड़-पौधे भी जल का रूपांतरण जलवाष्प के रूप में करते हैं। वायु बाहर छोड़ने के समय जंतु तथा मनुष्य भी जलवाष्प को मुक्त करते हैं। वाष्प गर्म तथा हलके होते हैं अत: ऊपर पहुँचकर बादलों का निर्माण करते हैं। बादल वर्षा लाते हैं जिससे जल पुन: सागरों, महासागरों, नदियों तथा अन्य जलीय खंडों में पहुँच जाता है।
जल प्रदूषण तथा उसके कारण
विभिन्न स्रोतों से प्राप्त हुआ जल पीने तथा भोजन पकाने के लिए उपयुक्त नहीं होता है। वह बहुत-से हानिकारक पदार्थों तथा कीटाणुओं द्वारा दूषित हो जाता है जिससे जल-प्रदूषण हो जाता है। इन पदार्थों को जल-प्रदूषक कहते हैं, जो जैविक जैसे कीटाणु, जीवाणु आदि हो सकते हैं अथवा अजैविक जैसे कीटनाशक, धातु, औद्योगिक अवशिष्ट आदि हो सकते हैं। जल प्रदूषण के निम्नलिखित मुख्य कारण हो सकते हैं:
- सीवेज तथा औद्योगिक अवशिष्ट का नदियों में विसर्जन।
- कीटाणुनाशकों तथा उर्वरकों का किसानों द्वारा उपज को बढ़ाने के लिए अंधाधुंध उपयोग।
- दूषित जल पीने से कई जल जनित बीमारियाँ जैसे पीलिया, अतिसार, पेचिश, टाइफाइड आदि हो सकती हैं।
जल-प्रदूषण की रोकथाम कैसे की जा सकती है?
जल-प्रदूषण की रोकथाम: जल-प्रदूषण की रोकथाम के लिए कुछ उपाय इस प्रकार हैं:
- घरेलू सीवेज तथा औद्योगिक अवशिष्टों को नदियों में विसर्जित नहीं करना चाहिए।
- मानव तथा जंतुओं के अवशिष्टों का अलग से निराकरण करना चाहिए तथा जल स्रोतों से मिलने से रोकना चाहिए।
- जल स्रोतों के निकट स्नान करना, बर्तन साफ करना, वस्त्र धोना आदि पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए।
- उर्वरकों तथा कीटाणुनाशकों के अत्यधिक उपयोग को रोकना चाहिए।
- कुएँ अगर उपयोग में हैं तो वे भली-भाँति ढके होने चाहिए।