एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 8 वाख

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 8 वाख (ललद्यद) शैक्षणिक सत्र 2025-26 के अनुसार यहाँ दिए गए हैं। कक्षा 9 क्षितिज हिंदी के पाठ में कश्मीरी संत कवयित्री ललद्यद की वाणी प्रस्तुत है, जिसमें जीवन, सत्य और ईश्वर की खोज की गहरी अनुभूतियाँ झलकती हैं। उनकी वाखें सरल भाषा में गहन आध्यात्मिक संदेश देती हैं। वे बाहरी आडंबरों और पाखंड का विरोध करती हैं तथा आत्मज्ञान और भक्ति को सर्वोच्च मानती हैं। यह अध्याय विद्यार्थियों को सादगी, सत्य और आत्मिक जागृति की राह पर चलने की प्रेरणा प्रदान करता है।
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज पाठ 8 के प्रश्न उत्तर
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज पाठ 8 के अति-लघु उत्तरीय प्रश्न
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज पाठ 8 के लघु उत्तरीय प्रश्न
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज पाठ 8 के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज पाठ 8 MCQ

अभ्यास के प्रश्न उत्तर

वाख कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 8 अभ्यास के प्रश्न उत्तर

1. ‘रस्सी’ यहाँ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और वह कैसी है?
उत्तर देखेंयहाँ ‘रस्सी’ प्राणों यानी साँसों के लिए प्रयुक्त हुई है, जो बहुत ही कच्ची और कमज़ोर है, क्योंकि यह जीवन को क्षणभंगुरता से जोड़ती है।

2. कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं?
उत्तर देखेंकवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ इसलिए हो रहे हैं, क्योंकि वे हठयोग जैसी कठिन साधनाएँ कर रही हैं, जो एक कच्चे सकोरे (मिट्टी का कच्चा बर्तन) की तरह हैं। इन प्रयासों से मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो पा रही है।

3. कवयित्री का ‘घर जाने की चाह’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर देखेंकवयित्री का ‘घर जाने की चाह’ से तात्पर्य ईश्वर के पास जाने की इच्छा है। वह इस संसार रूपी भवसागर से पार होकर मोक्ष प्राप्त करना चाहती हैं, जो उनका असली घर है।

4. भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) जेब टटोली कौड़ी न पाई।
उत्तर देखेंइसका भाव यह है कि कवयित्री ने अपनी जीवन यात्रा के अंत में जब आत्म-निरीक्षण किया, तो उन्हें कोई भी अच्छा कर्म या पुण्य नहीं मिला। उनके पास ईश्वर को देने के लिए कुछ भी नहीं था।

(ख) खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं, न खाकर बनेगा अहंकारी।
उत्तर देखेंइसका भाव यह है कि भोग-विलास में डूबे रहने से कुछ भी हासिल नहीं होता और पूरी तरह त्याग करने से मन में अहंकार आ जाता है। कवयित्री दोनों के बीच संतुलन बनाए रखने का संदेश देती हैं।

5. बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए ललद्यद ने क्या उपाय सुझाया है?
उत्तर देखेंबंद द्वार की साँकल खोलने के लिए ललद्यद ने समभावी होने का उपाय सुझाया है। इसका अर्थ है कि भोग और त्याग के बीच का रास्ता अपनाकर जीवन में संतुलन बनाए रखना चाहिए।

6. ईश्वर प्राप्ति के लिए बहुत से साधक हठयोग जैसी कठिन साधना भी करते हैं, लेकिन उससे भी लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती। यह भाव किन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है?
उत्तर देखेंयह भाव इन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है:
“आई सीधी राह से, गई न सीधी राह।
सुषुम्न-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह!
जेब टटोली, कौड़ी न पाई।
माझी को दूँ, क्या उतराई?”

7. ‘ज्ञानी’ से कवयित्री का क्या अभिप्राय है?
उत्तर देखें‘ज्ञानी’ से कवयित्री का अभिप्राय उस व्यक्ति से है जो स्वयं को पहचान लेता है। उनका मानना है कि स्वयं को जानना ही ईश्वर को जानना है, क्योंकि ईश्वर हर कण में निवास करते हैं और हमारे भीतर भी हैं।

कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 8 के रचना और अभिव्यक्ति के प्रश्न उत्तर

8. हमारे संतों, भक्तों और महापुरुषों ने बार-बार चेताया है कि मनुष्यों में परस्पर किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होता, लेकिन आज भी हमारे समाज में भेदभाव दिखाई देता है-
(क) आपकी दृष्टि में इस कारण देश और समाज को क्या हानि हो रही है?
उत्तर देखेंआज भी समाज में भेदभाव के कारण आपसी तनाव, संघर्ष और हिंसा बढ़ रही है। इससे लोगों में एकता और भाईचारे की भावना कमज़ोर होती है, जो देश की प्रगति के लिए बाधक है। यह सामाजिक और मानसिक रूप से लोगों को बाँटता है, जिससे एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण करना मुश्किल हो जाता है।

(ख) आपसी भेदभाव को मिटाने के लिए अपने सुझाव दीजिए।
उत्तर देखेंआपसी भेदभाव को मिटाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं:
शिक्षा: बचपन से ही बच्चों को सहिष्णुता, सम्मान और समानता का पाठ पढ़ाया जाना चाहिए।
जागरूकता अभियान: समाज में आपसी भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए लगातार जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए।
संवाद: विभिन्न समुदायों के लोगों को आपस में बातचीत करने और एक-दूसरे की संस्कृति को समझने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
कानून: सरकार को ऐसी नीतियाँ और कानून बनाने चाहिए जो भेदभाव को सख्ती से रोकें और दंडित करें।

कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 8 वाख पर आधारित अति-लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर।

कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 8 अति-लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर

1. ‘कच्चे धागे की रस्सी’ का क्या अर्थ है?
उत्तर देखेंइसका अर्थ मनुष्य का क्षणभंगुर और कमज़ोर शरीर है।

2. कवयित्री ने ‘भवसागर’ पार करने के लिए क्या पुकार की है?
उत्तर देखेंउन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की है कि वे उनकी पुकार सुनकर भवसागर से पार कर दें।

3. कवयित्री के अनुसार कौन से प्रयास व्यर्थ हो रहे हैं?
उत्तर देखेंमुक्ति के लिए किए गए प्रयास, जो कच्चे सकोरे से पानी टपकने की तरह हैं, व्यर्थ हो रहे हैं।

4. ‘घर जाने की चाह’ से कवयित्री का क्या तात्पर्य है?
उत्तर देखेंइसका तात्पर्य ईश्वर के पास पहुँचने और मोक्ष पाने की इच्छा है।

5. ‘समभावी’ होने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर देखेंभोग और त्याग के बीच संतुलन बनाकर रखना चाहिए।

6. ‘बंद द्वार की साँकल’ किस बात का प्रतीक है?
उत्तर देखेंयह हृदय के द्वार का प्रतीक है, जिसे खोलकर ईश्वर से मिलन होता है।

7. कवयित्री ने किस राह पर न जाने का पश्चाताप किया है?
उत्तर देखेंउन्होंने सीधी राह यानी भक्ति के सीधे मार्ग पर न जाने का पश्चाताप किया है।

8. ‘सुषुम्न-सेतु पर खड़ी थी’ का क्या अर्थ है?
उत्तर देखेंइसका अर्थ है कि वह हठयोग जैसी कठिन साधनाओं में लगी थीं।

9. जेब टटोली कौड़ी न पाई का क्या भाव है?
उत्तर देखेंइसका भाव है कि जीवन भर के कर्मों में कोई भी अच्छा कर्म नहीं मिला।

10. ‘माझी’ कौन है और ‘उतराई’ क्या है?
उत्तर देखें‘माझी’ ईश्वर हैं और ‘उतराई’ अच्छे कर्म हैं।

11. ‘थल-थल’ में कौन बसता है?
उत्तर देखेंशिव यानी ईश्वर।

12. कवयित्री ने भेद न करने की सलाह क्यों दी है?
उत्तर देखेंक्योंकि ईश्वर हर जगह बसते हैं, चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान।

13. सच्चा ज्ञानी किसे माना गया है?
उत्तर देखेंसच्चा ज्ञानी वह है जो स्वयं को जानता है।

14. ‘साहिब से पहचान’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर देखेंइसका अभिप्राय ईश्वर को जानना है।

15. ‘वाख’ क्या हैं?
उत्तर देखें‘वाख’ ललद्यद की काव्य शैली है, जो चार पंक्तियों में रची गई है।

कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 8 वाख के लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर।

कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 8 लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर

1. लल्लद्यद का परिचय दीजिए।
उत्तर देखेंलल्लद्यद कश्मीरी भाषा की लोकप्रिय संत-कवयित्री थीं जिनका जन्म 1320 ईस्वी के लगभग कश्मीर स्थित पामपोर के सिमपुरा गाँव में हुआ था। उन्हें लल्लेश्वरी, लल्ला, लल्योगेश्वरी, लल्लारिफा आदि नामों से भी जाना जाता है। उनकी काव्य-शैली को ‘वाख’ कहा जाता है। उन्होंने धार्मिक आडंबरों का विरोध किया और प्रेम को सबसे बड़ा मूल्य बताया। उनकी रचनाएँ आधुनिक कश्मीरी भाषा का प्रमुख स्तंभ मानी जाती हैं। उनका देहांत 1391 के आसपास माना जाता है।

2. ‘रस्सी कच्चे धागे की’ से कवयित्री का क्या आशय है?
उत्तर देखें‘रस्सी कच्चे धागे की’ से कवयित्री का आशय जीवन के कमजोर और नाशवान सहारों से है। यह रस्सी जीवन रूपी नाव को खींचने का साधन है लेकिन यह इतनी कमजोर है कि कभी भी टूट सकती है। कवयित्री अपने जीवन के संघर्षों और कमजोरियों को इस रूपक के माध्यम से व्यक्त करती हैं। यह दिखाता है कि मानवीय प्रयास कितने नाजुक और अस्थायी होते हैं। भवसागर पार करने के लिए इन कच्चे सहारों पर निर्भर रहना व्यर्थ है।

3. कवयित्री के मुक्ति के प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं?
उत्तर देखेंकवयित्री के मुक्ति के प्रयास इसलिए व्यर्थ हो रहे हैं क्योंकि वे कच्चे और अपूर्ण साधनों पर आधारित हैं। वे कहती हैं कि ‘पानी टपके कच्चे सकोरे’ यानी उनके प्रयास दोषपूर्ण हैं। बाहरी कर्मकांडों और आडंबरों में उलझकर वे सच्चे मार्ग से भटक गई हैं। उनमें सच्ची भक्ति और आत्म-साधना का अभाव है। जब तक अंतःकरण शुद्ध नहीं होगा और सम्यक् दृष्टि नहीं मिलेगी, तब तक सभी प्रयास व्यर्थ रहेंगे। सच्चा मार्ग आत्म-ज्ञान और समभाव में है।

4. ‘घर जाने की चाह’ से कवयित्री का क्या तात्पर्य है?
उत्तर देखें‘घर जाने की चाह’ से कवयित्री का तात्पर्य परमात्मा के पास पहुँचने की लालसा से है। यहाँ ‘घर’ आध्यात्मिक अर्थ में परम धाम या मोक्ष का प्रतीक है। जैसे व्यक्ति लंबी यात्रा के बाद अपने घर लौटना चाहता है, वैसे ही आत्मा परमात्मा से मिलने के लिए व्याकुल रहती है। यह मूल स्रोत से पुनर्मिलन की इच्छा है। कवयित्री संसारिक बंधनों से मुक्त होकर अपने वास्तविक घर यानी ईश्वर के पास पहुँचना चाहती हैं। यह आध्यात्मिक तड़प की अभिव्यक्ति है।

5. ‘जेब टटोली कौड़ी न पाई’ का भावार्थ स्पष्ट करें।
उत्तर देखें‘जेब टटोली कौड़ी न पाई’ का अर्थ है आत्मालोचना करने पर कुछ भी प्राप्ति नहीं हुई। कवयित्री अपने जीवन का मूल्यांकन करती हैं और पाती हैं कि उन्होंने कोई सार्थक पुण्य कर्म नहीं किए हैं। ‘कौड़ी’ यहाँ सबसे छोटे मूल्य का प्रतीक है, जो दिखाता है कि उनके पास भवसागर पार करने के लिए कोई साधन नहीं है। यह गहरी आत्म-समीक्षा और पछतावे की भावना है। बिना सद्कर्मों के आध्यात्मिक यात्रा संभव नहीं है। यह विनम्रता और आत्म-साक्षात्कार का भाव है।

6. ‘सम’ शब्द का क्या अर्थ है और इसका महत्व क्या है?
उत्तर देखें‘सम’ का अर्थ है अंतःकरण तथा बाह्य-इंद्रियों का निग्रह और समता की भावना। यह योग का मूलभूत सिद्धांत है जिसमें मन की सभी वृत्तियों को संयमित करना होता है। जब व्यक्ति सम भाव को प्राप्त करता है तो उसमें राग-द्वेष, सुख-दुख, मान-अपमान के प्रति समान दृष्टि आ जाती है। लल्लद्यद कहती हैं कि ‘सम खा तभी होगा समभावी’ यानी इस समता को अपनाने से ही चेतना व्यापक होती है। यह आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग है जिससे मन के बंद द्वार खुल जाते हैं।

7. ‘सुषुम-सेतु’ क्या है और इसका प्रयोग क्यों किया गया है?
उत्तर देखें‘सुषुम-सेतु’ सुषुम्ना नाड़ी रूपी पुल है जो हठयोग में शरीर की तीन प्रधान नाड़ियों में से एक है। यह नासिका के मध्य भाग (ब्रह्मरंध्र) में स्थित होती है। योगशास्त्र के अनुसार यह आध्यात्मिक जागृति का मार्ग है। लल्लद्यद इसका प्रयोग यह दिखाने के लिए करती हैं कि वे कठिन योग साधना के मार्ग पर खड़ी थीं लेकिन सफलता नहीं मिली। यह तकनीकी और कठिन मार्ग का प्रतीक है जो सबके लिए उपयुक्त नहीं होता। सरल प्रेम और भक्ति का मार्ग अधिक सुगम है।

8. चौथे वाख में व्यक्त एकता की भावना को समझाएं।
उत्तर देखेंचौथे वाख में लल्लद्यद ने सार्वभौमिक एकता की भावना व्यक्त की है। वे कहती हैं ‘थल-थल में बसता है शिव ही, भेद न कर क्या हिंदू-मुसलमान।’ इससे स्पष्ट होता है कि ईश्वर सर्वत्र विराजमान है और धर्म के नाम पर भेदभाव व्यर्थ है। सभी मनुष्य एक ही परमात्मा की संतान हैं इसलिए जातिगत या धार्मिक भेद निरर्थक हैं। यह संदेश आज भी अत्यंत प्रासंगिक है जब समाज में धार्मिक कट्टरता बढ़ रही है। सच्चा ज्ञानी वह है जो इन भेदों से ऊपर उठकर मानवीय एकता में विश्वास रखता है।

9. लल्लद्यद की काव्य भाषा की विशेषताएं बताएं।
उत्तर देखेंलल्लद्यद की काव्य भाषा में सहजता और स्पष्टता है। उन्होंने तत्कालीन पंडितों की संस्कृत और दरबार की फारसी के स्थान पर जनता की सरल भाषा का प्रयोग किया। उनकी ‘वाख’ शैली चार पंक्तियों में बद्ध कश्मीरी गेय रचना है। उनकी भाषा में लोक-जीवन के तत्व स्पष्ट दिखाई देते हैं। प्रतीकों और रूपकों का सुंदर प्रयोग मिलता है जैसे ‘रस्सी कच्चे धागे की’, ‘जेब टटोली’ आदि। यही कारण है कि उनकी रचनाएँ सैकड़ों सालों से कश्मीरी जनता की स्मृति में जीवित हैं। वे आधुनिक कश्मीरी भाषा की प्रमुख आधारशिला हैं।

10. ‘ज्ञानी है तो स्वयं को जान’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर देखें‘ज्ञानी है तो स्वयं को जान’ से तात्पर्य आत्म-ज्ञान की महत्ता से है। लल्लद्यद कहती हैं कि सच्चा ज्ञानी वह है जो अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानता है। बाहरी ज्ञान की अपेक्षा आत्म-साक्षात्कार अधिक महत्वपूर्ण है। जब व्यक्ति अपनी सच्चाई को जान लेता है तो उसे ईश्वर से पहचान मिल जाती है क्योंकि आत्मा और परमात्मा एक ही हैं। यह अद्वैतवादी दर्शन की मूल भावना है। केवल पुस्तकीय ज्ञान से कुछ नहीं होता, अपने भीतर झांकना जरूरी है। यही सच्चा ज्ञान है जो मुक्ति दिलाता है।

कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 8 वाख के लिए दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर।

कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 8 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर

1. लल्लद्यद के जीवन परिचय और उनकी काव्य-शैली ‘वाख’ की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर देखें लल्लद्यद (1320-1391) कश्मीरी भाषा की महान संत-कवयित्री थीं। उनका जन्म पामपोर के सिमपुरा गाँव में हुआ था। उन्हें लल्लेश्वरी, लल्ला आदि नामों से भी जाना जाता है। उनकी काव्य-शैली को ‘वाख’ कहा जाता है जो चार पंक्तियों की गेय रचना है। जैसे कबीर के दोहे प्रसिद्ध हैं वैसे ही लल्लद्यद के वाख प्रसिद्ध हैं। उन्होंने संस्कृत और फारसी के स्थान पर जनता की सरल भाषा का प्रयोग किया। उनकी रचनाओं में आध्यात्मिक भाव सरल भाषा में व्यक्त हुए हैं। वे आधुनिक कश्मीरी भाषा की प्रमुख स्तंभ मानी जाती हैं।

2. लल्लद्यद के वाखों में व्यक्त धार्मिक सुधार की भावना और सामाजिक एकता के संदेश का विस्तृत विवेचन करें।
उत्तर देखेंलल्लद्यद के वाखों में धार्मिक सुधार और सामाजिक एकता का गहरा संदेश है। वे धार्मिक आडंबरों के विरोधी थीं और सच्ची भक्ति पर बल देती थीं। “थल-थल में बसता है शिव ही, भेद न कर क्या हिंदू-मुसलमान” से स्पष्ट होता है कि वे धार्मिक भेदभाव के कट्टर विरोधी थीं। उनका मानना था कि ईश्वर सर्वत्र विराजमान है और सभी धर्म एक समान हैं। “ज्ञानी है तो स्वयं को जान” कहकर वे आत्म-ज्ञान को सर्वोच्च मानती हैं। उन्होंने प्रेम को सबसे बड़ा मूल्य बताया और जाति-धर्म की संकीर्णताओं से ऊपर उठने का संदेश दिया।

3. प्रथम वाख के आधार पर लल्लद्यद की आध्यात्मिक साधना की व्यर्थता और उनकी आत्म-पीड़ा का चित्रण करें।
उत्तर देखेंलल्लद्यद के प्रथम वाख में आध्यात्मिक साधना की व्यर्थता और गहरी आत्म-पीड़ा का चित्रण है। “रस्सी कच्चे धागे की, खींच रही मैं नाव” से उनके कमजोर सहारों पर निर्भरता का पता चलता है। “जाने कब सुन मेरी पुकार, करे देव भवसागर पार” में ईश्वर से गुहार है। “पानी टपके कच्चे सकोरे, व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे” से उनकी साधना के दोष स्पष्ट होते हैं। “जी में उठती रह-रह हूक, घर जाने की चाह है घेरे” में परमधाम पहुँचने की तड़प है। यह वाख दिखाता है कि बिना सच्ची भक्ति और शुद्ध साधना के मुक्ति संभव नहीं।

4. तीसरे वाख में व्यक्त लल्लद्यद के आत्मालोचन और पश्चाताप की भावना का विश्लेषण करते हुए इसके आध्यात्मिक संदेश को स्पष्ट करें।
उत्तर देखेंतीसरे वाख में लल्लद्यद के गहरे आत्मालोचन की भावना है। “आई सीधी राह से, गई न सीधी राह” से पता चलता है कि वे सरल रूप में आईं लेकिन सांसारिक छल-छद्म में फंस गईं। “सुषुम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह!” में कठिन योग मार्ग पर समय व्यर्थ गुजारने का पछतावा है। “जेब टटोली, कौड़ी न पाई” गहरी आत्म-समीक्षा दर्शाता है जब उन्होंने पाया कि कोई सद्कर्म नहीं किया। “माझी को दूँ, क्या उतराई?” से पता चलता है कि बिना सद्कर्मों के मुक्ति असंभव है। यह वाख विनम्रता और आत्म-सुधार का संदेश देता है।

5. द्वितीय वाख के माध्यम से लल्लद्यद के समभाव दर्शन और आध्यात्मिक जीवन-पद्धति की व्याख्या करें।
उत्तर देखेंद्वितीय वाख में लल्लद्यद का समभाव दर्शन स्पष्ट है। “खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं, न खाकर बनेगा अहंकारी” में वे भोग और त्याग के चरम रूपों का विरोध करती हैं। न अधिक भोग से कुछ मिलता है और न कठोर त्याग से जो केवल अहंकार बढ़ाता है। “सम खा तभी होगा समभावी” मूल शिक्षा है जहाँ ‘सम’ का अर्थ संयम और समता से है। “खुलेगी साँकल बंद द्वार की” से पता चलता है कि समभाव अपनाने से चेतना के बंद द्वार खुल जाते हैं। यह वाख मध्यम मार्ग की शिक्षा देता है – न अत्यधिक भोग और न कठोर त्याग बल्कि संयम और समभाव से आध्यात्मिक उन्नति।