एनसीईआरटी समाधान कक्षा 7 हिंदी मल्हार अध्याय 8 बिरजू महाराज से साक्षात्कार

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 7 हिंदी मल्हार अध्याय 8 बिरजू महाराज से साक्षात्कार में महान कथक नर्तक बिरजू महाराज के जीवन, संघर्ष और कला की बातें बताई गई हैं। उन्होंने बचपन की कठिनाइयों, माँ के सहयोग, गुरु-शिष्य परंपरा और कथक की परंपरा को समझाया। इस अध्याय से पता चलता है कि अभ्यास, लगन और लय जीवन को संतुलित बनाते हैं। बिरजू महाराज ने परंपरा को निभाते हुए नए प्रयोग किए और बच्चों को कला से जुड़ने की प्रेरणा दी।
कक्षा 7 हिंदी मल्हार पाठ 8 के MCQ
कक्षा 7 मल्हार के सभी प्रश्न-उत्तर

बिरजू महाराज से साक्षात्कार कक्षा 7 हिंदी मल्हार अध्याय 8 के प्रश्न उत्तर

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मेरी समझ से

(क) नीचे दिए गए प्रश्नों का सबसे सही उत्तर कौन-सा है? उनके सामने तारा (★) बनाइए। कुछ प्रश्नों के एक से अधिक उत्तर भी हो सकते हैं।
(1) बिरजू महाराज ने गंडा बाँधने की परंपरा में परिवर्तन क्यों किया होगा?
• वे गुरु के प्रति शिष्य के निष्ठा भाव को परखना चाहते थे।
• वे नृत्य शिक्षण के लिए इस परंपरा को महत्त्वपूर्ण नहीं मानते थे।
• वे गुरु के प्रति शिष्य के लगन व समर्पण भाव को जाँचना चाहते थे।
• वे शिष्य की भेंट देने की सामर्थ्य को परखना चाहते थे।
उत्तर देखें★ वे गुरु के प्रति शिष्य के निष्ठा भाव को परखना चाहते थे।
★ वे गुरु के प्रति शिष्य के लगन व समर्पण भाव को जाँचना चाहते थे।

(2) “जीवन में उतार-चढ़ाव तो होता ही है।” बिरजू महाराज के जीवन में किस तरह के उतार-चढ़ाव आए?
• पिता के देहांत के बाद आर्थिक अभावों का सामना करना पड़ा।
• कोई भी संस्था नृत्य प्रस्तुतियों के लिए आमंत्रित नहीं करती थी।
• किसी समय विशेष में घर में सुख-समृद्धि थी।
• नृत्य के औपचारिक प्रशिक्षण के अवसर बहुत ही सीमित हो गए थे।
उत्तर देखें★ पिता के देहांत के बाद आर्थिक अभावों का सामना करना पड़ा।
★ किसी समय विशेष में घर में सुख-समृद्धि थी।

(3) बिरजू महाराज के अनुसार बच्चों को लय के साथ खेलने की अनुशंसा क्यों की जानी चाहिए?
• संगीत, नृत्य, नाटक और सभी कलाएँ बच्चों में मानवीय मूल्यों का विकास नहीं करती हैं।
• कला संबंधी विषयों से जुड़ाव बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है।
• कला भी एक खेल है, जिसमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
• वर्तमान समय में कला भी एक सफल माध्यम नहीं है।
उत्तर देखें★ कला संबंधी विषयों से जुड़ाव बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है।
★ कला भी एक खेल है, जिसमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है।

(ख) अब अपने मित्रों के साथ चर्चा कीजिए और कारण बताइए कि आपने वे उत्तर ही क्यों चुने?
उत्तर देखें(1) गंडा बाँधने की परंपरा वाला प्रश्न: मैंने पहला और तीसरा उत्तर चुना क्योंकि बिरजू महाराज यह देखना चाहते थे कि शिष्य में सचमुच लगन और निष्ठा है या नहीं। अगर कोई केवल भेंट दे सकता है, तो उससे गुरु-शिष्य का पवित्र रिश्ता नहीं बनता। रिश्ता तो तभी बनेगा जब शिष्य दिल से नृत्य सीखने को तैयार होगा। इसलिए मैंने बाकी विकल्प नहीं चुने।
(2) जीवन में उतार-चढ़ाव वाला प्रश्न: मैंने पहला और तीसरा उत्तर चुना क्योंकि अध्याय में साफ़ लिखा है कि बचपन में घर बहुत सम्पन्न था – हवेली, गहने, सिपाही तक थे। लेकिन पिता के देहांत के बाद घर की हालत बदल गई और आर्थिक कठिनाइयाँ आ गईं। बाकी दो विकल्प पाठ में नहीं हैं, इसलिए उन्हें सही नहीं माना।
(3) बच्चों को लय के साथ खेलने की अनुशंसा वाला प्रश्न: मैंने दूसरा और तीसरा उत्तर चुना क्योंकि बिरजू महाराज खुद कहते हैं कि कला बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए ज़रूरी है और यह भी कि कला भी एक खेल की तरह है, जिसमें बहुत कुछ सीखा जा सकता है। पहला और चौथा उत्तर गलत हैं क्योंकि वे अध्याय की बात से मेल नहीं खाते।
इसलिए मुझे यही उत्तर सबसे सही लगे और मैंने इन्हें चुना।

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मिलकर करें मिलान

पाठ में से चुनकर कुछ शब्द एवं शब्द समूह नीचे दिए गए हैं। अपने समूह में इन पर चर्चा कीजिए और इन्हें इनके सही संदर्भों या अवधारणाओं से मिलाइए। इसके लिए आप शब्दकोश, इंटरनेट या अपने शिक्षकों की सहायता ले सकते हैं।

शब्दसंदर्भ या अवधारणा
1. कर्नाटक संगीत शैली1. भारत की प्राचीन गायन-वादन गीत-नृत्य अभिनय परंपरा का अभिन्न अंग है। इसमें शब्दों की अपेक्षा सुरों का महत्त्व होता है। इसमें नियमों की प्रधानता होती है।
2. घराना2. भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक शैली, जो मुख्य रूप से दक्षिण भारत के राज्यों में प्रचलित है। इसमें स्वर शैली की प्रधानता होती है। जल तरंगम, वीणा, मृदंग, मंदलिन वाद्ययंत्रों से संगत दी जाती है।
3. शास्त्रीय संगीत3. हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में एक है, यह कान में सोने या चाँदी का तार पहनने से संबंधित है।
4. हिंदुस्तानी संगीत शैली4. हिंदुस्तानी संगीत में कलाकारों का एक समुदाय या कुटुंब, जो संगीत नृत्य की विशिष्ट शैली साझा करते हैं। संगीत या नृत्य की परंपरा, जिससे सिद्धांत और शैली पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रशिक्षण के द्वारा आगे बढ़ती है।
5. कनछेदन5. किसी क्षेत्र विशेष में लोक द्वारा किए जाने वाले पारंपरिक नृत्य। लोक-नृत्य, क्षेत्र विशेष की संस्कृति एवं रीति-रिवाजों को दर्शाते हैं। ये विशेष रूप से फसल कटाई, उत्सवों आदि के अवसर पर किए जाते हैं।
6. लोक नृत्य6. भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक शैली, जो मुख्य रूप से उत्तर भारत के राज्यों में प्रचलित है। तबला, सारंगी, सितार, संतूर वाद्ययंत्रों से संगत दी जाती है। इसके प्रमुख रागों की संख्या छह है।

उत्तर:

शब्दसंदर्भ या अवधारणा
1. कर्नाटक संगीत शैली6. भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक शैली, जो मुख्य रूप से उत्तर भारत के राज्यों में प्रचलित है। तबला, सारंगी, सितार, संतूर वाद्ययंत्रों से संगत दी जाती है। इसके प्रमुख रागों की संख्या छह है।
2. घराना4. हिंदुस्तानी संगीत में कलाकारों का एक समुदाय या कुटुंब, जो संगीत नृत्य की विशिष्ट शैली साझा करते हैं। संगीत या नृत्य की परंपरा, जिससे सिद्धांत और शैली पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रशिक्षण के द्वारा आगे बढ़ती है।
3. शास्त्रीय संगीत1. भारत की प्राचीन गायन-वादन गीत-नृत्य अभिनय परंपरा का अभिन्न अंग है। इसमें शब्दों की अपेक्षा सुरों का महत्त्व होता है। इसमें नियमों की प्रधानता होती है।
4. हिंदुस्तानी संगीत शैली2. भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक शैली, जो मुख्य रूप से दक्षिण भारत के राज्यों में प्रचलित है। इसमें स्वर शैली की प्रधानता होती है। जल तरंगम, वीणा, मृदंग, मंदलिन वाद्ययंत्रों से संगत दी जाती है।
5. कनछेदन3. हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में एक है, यह कान में सोने या चाँदी का तार पहनने से संबंधित है।
6. लोक नृत्य5. किसी क्षेत्र विशेष में लोक द्वारा किए जाने वाले पारंपरिक नृत्य। लोक-नृत्य, क्षेत्र विशेष की संस्कृति एवं रीति-रिवाजों को दर्शाते हैं। ये विशेष रूप से फसल कटाई, उत्सवों आदि के अवसर पर किए जाते हैं।

शीर्षक

इस पाठ का शीर्षक “बिरजू महाराज से साक्षात्कार” है। यदि आप इस साक्षात्कार को कोई अन्य नाम देना चाहते हैं तो क्या नाम देंगे? आपने यह नाम क्यों सोचा? लिखिए।
उत्तर देखेंमैं इस साक्षात्कार का एक अन्य शीर्षक “कथक सम्राट की जीवन-गाथा” देना चाहूँगा।
मैंने यह नाम इसलिए सोचा क्योंकि यह साक्षात्कार केवल बिरजू महाराज के कथक से जुड़े पहलुओं पर ही केंद्रित नहीं है, बल्कि उनके पूरे जीवन, बचपन के संघर्षों से लेकर कला के प्रति उनके समर्पण, विभिन्न अनुभवों और विचारों तक को दर्शाता है। ‘सम्राट’ शब्द उनके कथक के क्षेत्र में अद्वितीय स्थान और महत्ता को दर्शाता है, जबकि ‘जीवन-गाथा’ उनके पूरे जीवन के उतार-चढ़ाव और अनुभवों का सार प्रस्तुत करती है। यह शीर्षक पाठक को एक कलाकार के रूप में उनकी उपलब्धियों और एक व्यक्ति के रूप में उनके पूरे सफर को समझने के लिए प्रेरित करता है।

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पंक्तियों पर चर्चा

साक्षात्कार में से चुनकर कुछ वाक्य नीचे दिए गए हैं। इन्हें ध्यान से पढ़िए और इन पर विचार कीजिए। आपको इनका क्या अर्थ समझ में आया? अपने विचार लिखिए।
• “तुम नौकरी में बैठ जाओगे। तुम्हारे अंदर का नर्तक पूरी तरह पनप नहीं पाएगा।”
उत्तर देखेंइसका आशय है कि यदि कलाकार नौकरी जैसी बंधी-बंधाई सीमाओं में बँध जाए तो उसकी कला स्वतंत्र रूप से विकसित नहीं हो पाएगी। नृत्य को साधना और समर्पण चाहिए, जिसे नौकरी बाँध सकती है।

• “लय हम नर्तकों के लिए देवता है!”
उत्तर देखेंइसका तात्पर्य है कि नृत्य में लय का स्थान सर्वोपरि है। लय ही नृत्य की आत्मा है, उसके बिना नृत्य अधूरा है। नर्तक लय को ईश्वर समान मानते हैं।

• “नृत्य में शरीर, ध्यान और तपस्या का साधन होता है।”
उत्तर देखेंयह कथन नृत्य की गहराई को दर्शाता है। नृत्य केवल शारीरिक गतिविधि नहीं बल्कि ध्यान और तपस्या का रूप है। इससे साधक मानसिक शांति और आत्मिक आनंद पाता है।

• “कथक में गर्दन को हलके से हिलाया जाता है, चिराग की लौ के समान।”
उत्तर देखेंइसका अर्थ है कि कथक की सुंदरता उसकी कोमलता और सहजता में है। जैसे दीपक की लौ हल्के से लहराती है, वैसे ही कथक की मुद्राएँ और भाव नर्तक को आकर्षक बनाते हैं।

कक्षा 7 हिंदी मल्हार अध्याय 8 सोच-विचार पर आधारित प्रश्न

सोच-विचार के लिए

1. साक्षात्कार को एक बार पुनः पढ़िए और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए।
(क) बिरजू महाराज नृत्य का औपचारिक प्रशिक्षण आरंभ होने से पहले ही कथक कैसे सीख गए थे?
उत्तर देखेंबिरजू महाराज के घर में कथक का माहौल था। उनके पिता अच्छन महाराज और चाचा शंभू महाराज व लच्छू महाराज जैसे गुरु थे। इसलिए औपचारिक प्रशिक्षण शुरू होने से पहले ही वे देख-देखकर कथक सीख गए थे और नवाब के दरबार में नाचने भी लगे थे।

(ख) नृत्य सीखने के लिए संगीत की समझ होना क्यों अनिवार्य है?
उत्तर देखेंबिरजू महाराज के अनुसार, गाना, बजाना और नाचना तीनों संगीत का हिस्सा हैं। संगीत में लय होती है, और उसका ज्ञान नृत्य के लिए आवश्यक है। नृत्य में शरीर, ध्यान और तपस्या का साधन होता है। लय हर काम में, नृत्य में, जीवन में संतुलन बनाए रखती है। यदि नर्तक को सुर-ताल की समझ नहीं होगी तो वह सही लहरा को नहीं पहचान पाएगा और नृत्य अंगों में प्रवेश नहीं करेगा। लय ही नृत्य को सुंदरता प्रदान करती है।

(ग) नृत्य के अतिरिक्त बिरजू महाराज को और किन-किन कार्यों में रुचि थी?
उत्तर देखेंनृत्य के अतिरिक्त बिरजू महाराज को मशीनों में बहुत रुचि थी और वे स्वयं को इंजीनियर मानते थे। वे हमेशा अपने ऑफिस में पेचकस और छोटे-मोटे औज़ार रखते थे और मशीनों को ठीक करते थे। उन्हें पेंटिंग बनाने का भी शौक था।

(घ) बिरजू महाराज ने बच्चों की शिक्षा और रुचियों के बारे में अभिभावकों से क्या कहा है?
उत्तर देखेंबिरजू महाराज ने अभिभावकों से विनती की है कि यदि बच्चों की रुचि लय के साथ खेलने में है, तो उन्हें इसमें भाग लेने दें। उन्होंने कहा कि यह भी अन्य खेलों जैसा ही एक खेल है, जिससे बच्चों को बहुत कुछ सीखने को मिलता है। इस खेल की दुनिया में संतुलन, समय का अंदाज़ा और सदुपयोग बच्चे के बौद्धिक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

2. पाठ में से उन प्रसंगों को पहचानकर उन पर चर्चा कीजिए, जिनसे पता चलता है कि –
(क) बिरजू महाराज बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।
उत्तर देखेंबिरजू महाराज केवल एक महान नर्तक ही नहीं थे, बल्कि वे एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे नृत्य के साथ-साथ अच्छा बजाते और गाते भी थे। वे नृत्य नाटिकाएँ और उनके लिए संगीत भी तैयार करते थे। इसके अतिरिक्त, उन्हें मशीनों को खोलने और ठीक करने का बहुत शौक था और वे रात में चित्र भी बनाते थे। इन सभी बातों से उनकी बहुमुखी प्रतिभा का पता चलता है।

(ख) बिरजू महाराज को नृत्य की ऊँचाइयों तक पहुँचाने में उनकी माँ का बहुत योगदान रहा।
उत्तर देखेंबिरजू महाराज ने बताया कि संघर्षों के दौर में उनकी सबसे बड़ी सहयोगी उनकी माँ थीं। जब उनके बाबूजी ने कहा कि “पेट मिलने पर ही गंडा बंधेगा” (जो तालीम शुरू करने का प्रतीक था), तो अम्मा ने उनके दो कार्यक्रमों की कमाई बाबूजी की भेंट के रूप में दे दी। इससे उनकी तालीम शुरू हो सकी। माँ बार-बार यही कहा करती थीं, “खाने को भले ही चना मिले या कुछ भी न मिले पर अभ्यास जरूर करो।” इन बातों से उनकी माँ के योगदान का पता चलता है।

(ग) बिरजू महाराज महिलाओं के लिए समानता के पक्षधर थे।
उत्तर देखेंसाक्षात्कार में जब तनुश्री ने पूछा कि क्या उनके परिवार में लड़कियों ने कथक नहीं सीखा, तो बिरजू महाराज ने कहा कि उनकी बहनों को कथक नहीं सिखाया गया था, पर उन्होंने अपनी बेटियों को खूब सिखाया। उन्होंने ज़ोर दिया कि लड़कियों के पास शिक्षा या कोई-न-कोई हुनर अवश्य होना चाहिए ताकि वे आत्मनिर्भर हो सकें। यह दर्शाता है कि वे महिलाओं को सशक्त बनाने और उन्हें अवसर देने के पक्षधर थे।

शब्दों की बात

(क) पाठ में आए कुछ शब्द नीचे दिए गए हैं, इन्हें ध्यान से पढ़िए –

आजीविका, सीमित, प्रशिक्षण, सुंदरता, आधुनिक, पारंपरिक, भारतीय, सामूहिक, शास्त्रीय

आपने इन शब्दों पर ध्यान दिया होगा कि मूल शब्द के आगे या पीछे कोई शब्दांश जोड़कर नया शब्द बना है। इससे शब्द के अर्थ में परिवर्तन आ गया है। शब्द के आगे जुड़ने वाले शब्दांश उपसर्ग कहलाते हैं, जैसे कि –
अदृश्य – अ + दृश्य
आवरण – आ + वरण
प्रशिक्षण – प्र + शिक्षण
यहाँ पर ‘अ’, ‘प्र’, ‘अ’ उपसर्ग हैं।
शब्द के पीछे जुड़ने वाले शब्दांशप्रत्यय कहलाते है और मूल शब्द के अर्थ में नवीनता , परिवर्तन या विशेष प्रभाव उत्पन्न करते है, जैसे कि-
सीमित – सीमा + इत
सुंदरता – सुन्दर + ता
भारतीय – भारत = इय
सामूहिक – समूह + इक
यहाँ पर “इत” , “ता”, “ईय” और “इक” प्रत्यय है।

(ख) नीचे दो तबले हैं, एक में कुछ शब्दांश (उपसर्ग व प्रत्यय) हैं, दूसरे तबले में मूल शब्द हैं। इनकी सहायता से नए शब्द बनाइए–

कक्षा 7 हिंदी मल्हार पाठ 8 प्रश्न 1

उत्तर देखेंनए बने शब्द:
आ + गमन = आगमन
आ + श्रम = आश्रम
अ + साधारण = असाधारण
अ + खंड = अखंड
अ + कर्म = अकर्म
गमन + ईय = गमनीय
राष्ट्र + ईय = राष्ट्रीय
सु + गमन = सुगमन
सु + कर्म = सुकर्म
मर्म + इक = मार्मिक
श्रम + इक = श्रमिक
संस्कृति + इक = सांस्कृतिक
अ + खंड + ता = अखंडता
खंड + इत = खंडित

(ग) इस पाठ में से उपसर्ग व प्रत्यय की सहायता से बने कुछ और शब्द छाँटकर उनसे वाक्य बनाइए।
उत्तर देखेंउपसर्ग से बने शब्द:
• अनुशासन (अनु + शासन) – हमें जीवन में अनुशासन का पालन करना चाहिए।
• अपूर्व (अ + पूर्व) – उस कलाकार की अपूर्व प्रतिभा ने सबको चकित कर दिया।
• अधिकार (अधि + कार) – शिक्षा प्राप्त करना सबका अधिकार है।
• प्रसिद्ध (प्र + सिद्ध) – बिरजू महाराज विश्वप्रसिद्ध कथक नर्तक थे।
• समर्पण (सम् + अर्पण) – सफलता पाने के लिए कार्य में समर्पण जरूरी है।
प्रत्यय से बने शब्द:
• नर्तकी (नृत्य + की) – वह बहुत अच्छी नर्तकी है।
• शिक्षक (शिक्षा + क) – हमारे शिक्षक हमें सही मार्ग दिखाते हैं।
• कलाकार (कला + कार) – कलाकार अपनी कला से लोगों का मन मोह लेता है।
• विद्यार्थी (विद्या + अर्थी) – मैं कक्षा 7 का विद्यार्थी हूँ।
• चित्रकार (चित्र + कार) – चित्रकार ने सुंदर चित्र बनाया।

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शब्दों का प्रभाव

पाठ में आए नीचे दिए गए वाक्य पढ़िए –
1. “कुछ कथिक डर गए किंतु उन कथिकों की कला में इतना दम था कि डाकू सब कुछ भूलकर उन कथिकों के कथक में मग्न हो गए।” इस वाक्य में रेखांकित शब्द ‘इतना’ हटाकर वाक्य पढ़िए और पहचानिए कि क्या परिवर्तन आया है?
पाठ में आए हुए वाक्यों में से ऐसे ही कुछ और शब्द ढूँढ़कर उन्हें रेखांकित कीजिए जिनके प्रयोग से वाक्य में विशेष प्रभाव उत्पन्न होता है?
उत्तर देखेंअगर हम इसमें से ‘इतना’ शब्द हटा दें तो वाक्य रह जाएगा –
“कुछ कथिक डर गए किंतु उन कथिकों की कला में दम था कि डाकू सब कुछ भूलकर उन कथिकों के कथक में मग्न हो गए।”
यहाँ पर परिवर्तन यह आया कि वाक्य का प्रभाव कमज़ोर हो गया।
• ‘इतना’ शब्द कला की शक्ति को और ज़्यादा बल देता है।
• इससे पाठक के मन में यह गहराई से बैठता है कि उनकी कला का असर असाधारण था।
• बिना ‘इतना’ के वाक्य साधारण लगता है और कथिकों की कला की ताक़त उतनी प्रभावशाली नहीं लगती।
पाठ में कई ऐसे शब्द आए हैं जिनके कारण वाक्य का प्रभाव और भी गहरा होता है। उनमें से कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं:
► “अम्मा बार-बार यही कहा करती थीं, ‘खाने को भले ही चना मिले या कुछ भी न मिले पर अभ्यास जरूर करो।’”
यहाँ ‘भले ही’ और ‘जरूर’ शब्द से अभ्यास की महत्ता पर विशेष बल पड़ता है।
► “गाना, बजाना और नाचना — ये तीनों संगीत का हिस्सा हैं। संगीत में लय होती है। उसका ज्ञान आवश्यक है।”
यहाँ ‘लय’ शब्द वाक्य में विशेष प्रभाव डालता है क्योंकि यह नृत्य और जीवन दोनों के संतुलन को दिखाता है।
► “नींद में भी हाथ चलता रहता है।”
यहाँ ‘भी’ और ‘रहता है’ शब्द से यह प्रभाव आता है कि महाराज के जीवन में नृत्य हमेशा, हर समय मौजूद रहता था।
► “उँगलियाँ ज़रा जोर से हिलीं नहीं कि चाचा जी तुरंत टोकते थे, ‘घुंघट उठा रहे हो या तंबू?’”
यहाँ ‘तंबू’ शब्द मज़ाक और व्यंग्य का असर डालता है जिससे सीख और भी यादगार बनती है।
यानी ऐसे छोटे-छोटे शब्द जैसे – इतना, जरूर, भी, भले ही, तुरंत आदि वाक्य को और ज़्यादा प्रभावशाली और जीवंत बना देते हैं।

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कला का संसार

(क) बिरजू महाराज– “कथक की पुरानी परंपरा को तो कायम रखा ही है, उसके प्रस्तुतीकरण में बदलाव किए हैं।” इस कथन को ध्यान में रखते हुए लिखिए कि कथक की प्रस्तुतियों में किस प्रकार के परिवर्तन आए हैं?
उत्तर देखेंबिरजू महाराज के कथनानुसार, उन्होंने कथक की पुरानी परंपरा को बनाए रखते हुए भी उसके प्रस्तुतीकरण में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। उन्होंने अपने चाचा और बाबूजी की भाव-भंगिमाओं को, जो उनके खड़े होने के अंदाज़ और नृत्य में खूबसूरती लाती थीं, कथक में शामिल किया। उन्होंने टैगोर और त्यागराज जैसे आधुनिक कवियों की रचनाओं को लेकर भी कथक रचनाएँ तैयार कीं, जिससे कथक को नई विषय-वस्तु मिली। पहले, कथक के दृश्यों का विस्तृत वर्णन किया जाता था, जिससे दर्शक के सामने पूरा दृश्य चित्रित हो जाता था, जैसे गोपियों का पनघट पर जाना। अब, प्रस्तुतीकरण में संक्षेप आ गया है, जैसे केवल ‘पनघट की गत देखो’ कहकर बाकी कल्पना पर छोड़ दिया जाता है, जिससे दर्शकों को अधिक सोचने का अवसर मिलता है। पहले मंच नहीं होते थे, फर्श पर चाँदनी बिछी होती थी और दर्शक चारों ओर बैठते थे; अब आधुनिक मंच प्रस्तुतियों का हिस्सा बन गए हैं।

(ख) लोकनृत्य और शास्त्रीय नृत्य में क्या अंतर है? लिखिए।
(इस प्रश्न के उत्तर के लिए अपने आस-पड़ोसियों, अभिभावकों, शिक्षकों, पुस्तकालय या इंटरनेट की सहायता ले सकते हैं)
उत्तर:
लोकनृत्य और शास्त्रीय नृत्य में मुख्य अंतर बिरजू महाराज के साक्षात्कार के अनुसार इस प्रकार हैं:

विशेषताएँलोकनृत्यशास्त्रीय नृत्य
1. प्रकृति1. सामूहिक होता है, लोग थकान दूर करने और मनोरंजन के लिए इकट्ठा मिलकर नाचते हैं।1. एक नर्तक अकेला ही काफी होता है।
2. उद्देश्य2. नाचने वालों के अपने मन बहलाव और संतुष्टि के लिए होता है।2. दर्शकों के लिए होता है।
3. विकास3. शुरू में यह कथात्मक हुआ करता था। धीरे-धीरे जब इसकी खास शैली व रूप निश्चित होता गया तो यह शास्त्रीय नृत्य हो गया।3. एक निश्चित शैली और रूप होता है।
4. लय/भाव4. क्षेत्र विशेष की संस्कृति एवं रीति-रिवाजों को दर्शाते हैं।4. हर नृत्य की अपनी विशेष लय और भाव-भंगिमाएँ होती हैं (जैसे कथक में दैनिक जीवन से, भरतनाट्यम में मूर्तिकला से)।
5. अवसर5. विशेष रूप से फसल कटाई, उत्सवों आदि के अवसर पर किए जाते हैं।5. विशिष्ट अवसरों पर प्रस्तुत किए जाते हैं, साधना और तपस्या से जुड़े होते हैं।

(ग) “बैरगिनाला नाला जुल्म जोर,
नौ कथिक नचवें तीन चोर।
जब तबला बोले धीन-धीन,
तब एक-एक पर तीन-तीन।”
इस पाठ में हरिया गाँव में गाए जाने वाले उपर्युक्त पद का उल्लेख है। आप अपने क्षेत्र में गाए जाने वाले किसी लोकगीत को कक्षा में प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर देखेंमैं राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र से हूँ, इसलिए मैं कक्षा में ‘केसरिया बालम’ या ‘निंबूडा निंबूडा’ जैसे प्रसिद्ध लोकगीत प्रस्तुत करना चाहूँगा। इन गीतों में राजस्थान की संस्कृति, यहाँ के रीति-रिवाज और जीवन-शैली की झलक मिलती है। जैसे ‘केसरिया बालम’ में अतिथि-सत्कार और वीरता की भावना निहित है, वहीं ‘निंबूडा निंबूडा’ एक उल्लास भरा और मज़ेदार गीत है जो ग्रामीण जीवन के छोटे-छोटे पलों को दर्शाता है। इन्हें पारंपरिक राजस्थानी वेशभूषा में प्रस्तुत करने से अधिक प्रभाव पड़ेगा।

कक्षा 7 हिंदी मल्हार अध्याय 8 साक्षात्कार पर आधारित प्रश्न

साक्षात्कार की रचना

प्रस्तुत पाठ की विधा ‘साक्षात्कार’ है। सामान्यतः इसे बातचीत या भेंटवार्ता का पर्याय मान लिया जाता है, लेकिन यह भेंटवार्ता से इसमें भिन्न है कि इसका एक निश्चित उद्देश्य और ढाँचा होता है। यह साक्षात्कार किसी नौकरी या पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने के लिए होने वाले साक्षात्कार से बिल्कुल भिन्न है। प्रस्तुत साक्षात्कार एक प्रकार से व्यक्तिकपरक साक्षात्कार है। इसका उद्देश्य साक्षात्कारदाता के निजी जीवन, उनके कामकाज, उपलब्धियों, रुचि-अरुचि, विचारों आदि को पाठकों के सामने लाना है। किसी भी प्रकार के साक्षात्कार के लिए पर्याप्त तैयारी, संवेदनशीलता और धैर्य की आवश्यकता होती है। साक्षात्कार की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि साक्षात्कारदाता के संदर्भ में कितना शोध किया गया है और प्रश्न किस प्रकार के बनाए गए हैं।
प्रस्तुत ‘साक्षात्कार’ के आधार पर बताइए –
(क) साक्षात्कार से पहले क्या-क्या तैयारियाँ की गई होंगी?
उत्तर देखेंप्रस्तुत साक्षात्कार के आधार पर, यह अनुमान लगाया जा सकता है कि साक्षात्कार से पहले निम्नलिखित मुख्य तैयारियाँ की गई होंगी:
1. साक्षात्कार के विषय में गहन शोध: बिरजू महाराज कथक के एक महान व्यक्तित्व हैं। उनके बचपन, गुरुओं, संघर्षों, उपलब्धियों, नृत्य शैली में उनके योगदान, अन्य रुचियों आदि के बारे में विस्तृत जानकारी एकत्र की गई होगी। इससे प्रश्नों की गहराई और प्रासंगिकता सुनिश्चित हुई होगी।
2. प्रश्नों का निर्माण: साक्षात्कार के उद्देश्य (पाठकों को बिरजू महाराज के जीवन और कला से परिचित कराना) को ध्यान में रखते हुए सोच-समझकर प्रश्नों का निर्माण किया गया होगा। प्रश्नों को इस तरह से तैयार किया गया होगा ताकि वे उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को छू सकें, जैसे बचपन, गुरु, नृत्य शिक्षा, प्रदर्शन में बदलाव, अन्य रुचियाँ, और बच्चों के लिए संदेश।
3. भाषा और शैली का निर्धारण: चूंकि साक्षात्कार बच्चों के लिए है, इसलिए सरल और सुलभ भाषा का चुनाव किया गया होगा ताकि बच्चे उसे आसानी से समझ सकें। संवाद को अनौपचारिक और रोचक बनाए रखने की योजना बनाई गई होगी।
4. प्रस्तुतीकरण की रूपरेखा: साक्षात्कार को किस प्रकार प्रस्तुत किया जाएगा, इसकी भी रूपरेखा तैयार की गई होगी, जैसे कौन से प्रश्न किस क्रम में पूछे जाएंगे और किस छात्र द्वारा पूछे जाएंगे।

(ख) आप इस साक्षात्कार में और क्या-क्या प्रश्न जोड़ना चाहेंगे?
उत्तर देखेंयदि मुझे इस साक्षात्कार में और प्रश्न जोड़ने का अवसर मिलता, तो मैं निम्नलिखित प्रश्न जोड़ना चाहूँगा:
1. आज के युवाओं को कथक या किसी भी शास्त्रीय कला से जुड़ने के लिए आप क्या विशेष प्रेरणा देना चाहेंगे, ताकि वे इसे अपने जीवन का हिस्सा बना सकें?
2. क्या आपके अनुसार कथक में भविष्य में और नए प्रयोगों की गुंजाइश है, या आप मानते हैं कि इसे अपनी पारंपरिक शुद्धता में ही रखा जाना चाहिए?
3. नृत्य करते समय आपको सबसे अधिक आनंद कब आता है? क्या कोई विशेष प्रस्तुति या अनुभव है जो आपके दिल के करीब हो?
4. आपके गुरुओं से मिली सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा क्या थी, जिसने आपके जीवन और कला दोनों को गहराई से प्रभावित किया?

(ग) यह साक्षात्कार एक सुप्रसिद्ध कलाकार का है। यदि आपकी किसी सखी विजेता, रिक्शा चालक, घरेलू सहायक या महाप्रबंधक का साक्षात्कार लेना हो तो आपके प्रश्न किस प्रकार के होंगे?
उत्तर देखें► सखी विजेता से साक्षात्कार के प्रश्न
• तुम्हें किस चीज़ में सबसे ज़्यादा मज़ा आता है – पढ़ाई में या खेलों में?
• तुम्हारा सबसे अच्छा अनुभव कौन-सा रहा है?
• भविष्य में तुम क्या बनना चाहती हो?
• अपने दोस्तों के साथ समय बिताने में तुम्हें सबसे अच्छा क्या लगता है?
► रिक्शा चालक से साक्षात्कार के प्रश्न
• आप कितने वर्षों से रिक्शा चला रहे हैं?
• आपको अपने काम में सबसे कठिनाई किस बात की लगती है?
• दिनभर की थकान के बाद आप खुद को कैसे आराम देते हैं?
• आपकी कोई मज़ेदार या यादगार घटना है रिक्शा चलाते समय?
► घरेलू सहायक (कामकाजी महिला/पुरुष) से साक्षात्कार के प्रश्न
• आप सुबह से शाम तक कितने घरों में काम करते हैं?
• आपके काम में सबसे मुश्किल चीज़ क्या है?
• आपको छुट्टी कब मिलती है और उस दिन आप क्या करना पसंद करते हैं?
• क्या आप अपने बच्चों को पढ़ाना चाहती/चाहते हैं?
► महाप्रबंधक से साक्षात्कार के प्रश्न
• आपके पद पर सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी क्या होती है?
• काम और परिवार के बीच संतुलन कैसे बनाते हैं?
• आपकी सफलता का सबसे बड़ा राज़ क्या है?
• जो बच्चे बड़े होकर आपके जैसे अधिकारी बनना चाहते हैं, उन्हें आप क्या सलाह देंगे?
इन सब प्रश्नों का उद्देश्य यही होगा कि हमें उनके जीवन, कठिनाइयों, खुशियों और अनुभवों के बारे में जानने को मिले।

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सृजन

आपके विद्यालय में कथक नृत्य का आयोजन हो रहा है।
(क) आप दर्शकों को कथक नृत्यकला के बारे में क्या-क्या बताएँगे? लिखिए।
उत्तर देखेंमेरे विद्यालय में कथक नृत्य का आयोजन हो रहा है। यह कथक भारत की प्राचीन और प्रसिद्ध नृत्यकला है। इसमें भाव, भंगिमा, लय और ताल का अद्भुत मेल होता है। कथक नृत्य की खासियत इसकी घुँघरुओं की झंकार, घूमर और अभिनय है। इसमें भगवान, वीर-पुरुषों और प्रेम की कथाएँ नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत की जाती हैं। दर्शकों को यह भी बताऊँगा कि कथक नृत्य सिर्फ मनोरंजन ही नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और परंपरा का जीवंत रूप है, जिसे कलाकार अपनी कला से जीवित रखते हैं।

(ख) इस कार्यक्रम की सूचना देने के लिए एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
उत्तर देखेंविद्यालयी सूचना / विज्ञापन
प्रिय छात्र-छात्राएँ,
हमारे विद्यालय में आगामी शनिवार, दिनांक 25 अगस्त 2025 को प्रांगण में कथक नृत्य का विशेष आयोजन किया जा रहा है। इस अवसर पर प्रसिद्ध नृत्य शिक्षक द्वारा कथक की विशेष प्रस्तुतियाँ दी जाएँगी।
स्थान – विद्यालय का मुख्य सभा भवन
समय – प्रातः 10:00 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक
विशेष आकर्षण – घुँघरुओं की झंकार, घूमर, भाव-भंगिमा और नृत्य के माध्यम से कथा प्रस्तुति।
सभी छात्र-छात्राएँ, अभिभावक एवं शिक्षक-शिक्षिकाएँ इस सांस्कृतिक आयोजन में अवश्य पधारें और भारतीय शास्त्रीय नृत्य की अद्भुत कला का आनंद लें।
प्रधानाचार्य
तिवारी अकादमी विद्यालय

(ग) यदि इस नृत्य कार्यक्रम में दृष्टिबाधित दर्शक हैं और वह नृत्य का आनन्द लेना चाहे तो इसके लिए विद्यालय की ओर से क्या व्यवस्था की जानी चाहिए?
उत्तर देखेंयदि इस नृत्य कार्यक्रम में दृष्टिबाधित दर्शक हों और वे नृत्य का आनंद लेना चाहें तो विद्यालय को कुछ विशेष व्यवस्थाएँ करनी चाहिए—
वर्णनात्मक टिप्पणी – मंच के पास से नृत्य की हर भाव-भंगिमा, ताल और गति का लाइव वर्णन माइक पर सुनाया जाए ताकि वे समझ सकें कि नृत्य में क्या हो रहा है।
संगीत और ताल पर जोर – घुँघरुओं की झंकार, तबला, पखावज और संगीत की आवाज़ को स्पष्ट और प्रभावी बनाया जाए ताकि वे ताल का आनंद ले सकें।
सहयोगी साथी – दृष्टिबाधित दर्शकों के साथ स्वयंसेवक छात्र-छात्राएँ रहें, जो उन्हें बीच-बीच में भाव और प्रसंग समझा सकें।
स्पर्श आधारित अनुभव – कार्यक्रम से पहले उन्हें घुँघरू, वाद्ययंत्र या पोशाक को छूने का अवसर दिया जाए, ताकि वे नृत्य से भावनात्मक रूप से जुड़ सकें।
इस तरह की व्यवस्थाओं से वे भी कार्यक्रम का आनंद अन्य दर्शकों की तरह उठा पाएँगे और विद्यालय की समावेशी भावना उजागर होगी।

आज की पहेली

“अगर नर्तक को सुर-ताल की समझ है तो वह जान पाएगा कि यह लहरा ठीक नहीं है, इसके माध्यम से नृत्य अंगों में प्रवेश नहीं करेगा।” संगीत में लय को प्रदर्शित करने के लिए ताल का सहारा लिया जाता है। किसी भी गीत की पंक्तियों में लगने वाले समय को मात्राओं द्वारा ठीक उसी प्रकार मापा जाता है, जैसे दैनिक जीवन में व्यतीत हो रहे समय को हम सेकेंड के द्वारा मापते हैं। ताल कई मात्रा समूहों का संयुक्त रूप होता है। संगीत के समय को मापने की सबसे छोटी इकाई मात्रा है और ताल कई मात्राओं का संयुक्त रूप है। जिस तरह घंटे में मिनट और मिनट में सेकेंड होते हैं, उसी तरह ताल में मात्रा होती है। आज हम आपके लिए ताल से जुड़ी एक अनोखी पहेली लाए हैं।
एक विद्यार्थी ने अपनी डायरी में अपने विद्यालय के किसी एक दिन का उल्लेख किया है। उस उल्लेख में संगीत की कुछ तालों के नाम आए हैं। आप उन तालों के नाम ढूँढ़िए—
कल हमारे विद्यालय में संगीत और नृत्य सभा का आयोजन हुआ था। उसमें एक-दो नहीं बल्कि चार कलाकार आए थे। उन कलाकारों में एक का नाम रूपक और दूसरे का नाम लक्ष्मी था। शेष दो कलाकारों के नाम पता नहीं चल पाए। वे दोनों जब अपनी प्रस्तुति के लिए मंच पर आए तो दर्शकों से पूछने लगे— “तिलवाड़ा, दादरा या झूमरा?” दर्शक बोले— “तीनों में से कोई नहीं। हमें दीपचंदी और कहरवा पसंद है।” दर्शकों की यह बात सुनते ही कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति प्रारंभ कर दी।
अब नीचे दी गई शब्द पहेली में से संगीत की उन तालों के नाम ढूँढ़कर लिखिए—

कक्षा 7 हिंदी मल्हार पाठ 8 प्रश्न 2

उत्तर:

कक्षा 7 हिंदी मल्हार पाठ 8 उत्तर 2

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साझी समझ

अभी आपने शास्त्रीय नृत्यों को निकटता से जाना समझा। पाँच-पाँच विद्यार्थियों के समूह में भारत के लोक नृत्यों की सूची बनाइए और उनकी विशिष्टताओं का पता लगाइए।
उत्तर देखेंभारत के प्रमुख लोक नृत्य और उनकी विशेषताएँ
भांगड़ा (पंजाब)
विशेषता: फसल कटाई और बैसाखी पर्व पर किया जाने वाला नृत्य। इसमें ढोल की थाप पर ऊर्जावान और जोशीले कदम होते हैं। पुरुष प्रायः चमकीले कुर्ते-पायजामे पहनते हैं।
गरबा (गुजरात)
विशेषता: नवरात्रि के अवसर पर किया जाने वाला यह नृत्य स्त्रियों द्वारा गोल घेरा बनाकर किया जाता है। इसमें दीप या गरबा पात्र बीच में रखा जाता है। ताल और लय पर तालियाँ तथा घूमने की गति इसकी खासियत है।
घूमर (राजस्थान)
विशेषता: यह नृत्य विशेष रूप से स्त्रियों का है। घेरदार लहराती चुनरियाँ और चकरी की तरह घूमना इसकी पहचान है। यह विवाह और त्योहारों पर किया जाता है।
लावणी (महाराष्ट्र)
विशेषता: ढोलकी की तेज थाप पर किया जाने वाला नृत्य। इसमें नृत्य और अभिनय दोनों का मेल होता है। महिलाएँ साड़ी के विशेष ‘नऊवारी’ परिधान में प्रस्तुत करती हैं।
बिहू (असम)
विशेषता: वसंत ऋतु और फसल कटाई के समय किया जाने वाला नृत्य। युवक-युवतियाँ एक साथ इसे करते हैं। इसमें ढोल, पेपा (सिंग वाद्य) और बाँसुरी का प्रयोग होता है।
समूह कार्य का सुझाव:
आप अपने पाँच-पाँच विद्यार्थियों के समूह में और भी लोक नृत्यों (जैसे—छाऊ, संथाली, करगट्टम, यक्षगान, गिद्धा आदि) की सूची बनाकर उनकी विशेषताओं का पता लगा सकते हैं और एक तालिका तैयार कर सकते हैं।

कक्षा 7 हिंदी मल्हार अध्याय 8 के मुख्य बिंदु

बचपन और संघर्ष: बिरजू महाराज सम्पन्न परिवार से थे लेकिन पिता के निधन के बाद उन्हें आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। माँ ने उन्हें अभ्यास करने के लिए प्रेरित किया।
नृत्य शिक्षा: उन्होंने कथक की शिक्षा अपने पिता अच्छन महाराज और चाचा शंभू व लच्छू महाराज से पाई। गंडा बाँधने की परंपरा में उन्होंने बदलाव किया और शिष्य की लगन को प्राथमिकता दी।
कथक की परंपरा: कथक का उल्लेख रामायण और महाभारत में मिलता है। लखनऊ, जयपुर, बनारस घराने और रायगढ़ शैली इसकी प्रमुख परंपराएँ हैं।
संगीत और लय का महत्व: नृत्य, गाना और बजाना संगीत के अंग हैं। जीवन में लय और संतुलन बहुत आवश्यक है।
परंपरा और नए प्रयोग: बिरजू महाराज ने कथक की पुरानी परंपरा को बनाए रखते हुए उसमें नए प्रयोग किए और आधुनिक कवियों की रचनाओं पर भी प्रस्तुतियाँ दीं।
शास्त्रीय और लोक नृत्य का अंतर: लोक नृत्य सामूहिक होता है, जबकि शास्त्रीय नृत्य दर्शकों के लिए होता है और उसकी अपनी निश्चित शैली होती है।
बच्चों और कला का संबंध: बच्चों को लय और कला से जुड़ने देना चाहिए क्योंकि इससे उनका बौद्धिक विकास और संतुलन होता है।
व्यक्तित्व और रुचियाँ: नृत्य के अलावा उन्हें गाना, बजाना, चित्रकारी और मशीनों के साथ प्रयोग करने का भी शौक था।
लड़कियों की शिक्षा पर विचार: उन्होंने अपनी बेटियों को कथक सिखाया और कहा कि लड़कियों के पास शिक्षा या हुनर होना चाहिए ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें।

कक्षा 7 हिंदी मल्हार अध्याय 8 का सारांश

कक्षा 7 हिंदी मल्हार अध्याय 8 सुप्रसिद्ध कथक नर्तक पद्मविभूषण बिरजू महाराज के साक्षात्कार पर आधारित है। इसमें उनके जीवन के संघर्ष, नृत्य की शिक्षा, कथक की परंपरा, और उनकी सोच के बारे में जानकारी दी गई है।
बिरजू महाराज ने बताया कि बचपन में वे बहुत सम्पन्न परिवार से थे, लेकिन पिता के निधन के बाद आर्थिक कठिनाइयाँ आ गईं। उनकी माँ ने हर हाल में उन्हें अभ्यास जारी रखने की प्रेरणा दी। उन्होंने कथक की शिक्षा अपने पिता अच्छन महाराज और चाचा शंभू व लच्छू महाराज से प्राप्त की। उन्होंने गंडा बाँधने की परंपरा को बदलकर शिष्य की लगन को महत्व दिया।
बिरजू महाराज का मानना है कि नृत्य और संगीत जीवन में अनुशासन, संतुलन और लय सिखाते हैं। उन्होंने कथक की पुरानी परंपरा को बनाए रखते हुए उसमें नए प्रयोग भी किए और आधुनिक कवियों की रचनाओं पर भी प्रस्तुतियाँ दीं। उन्होंने समझाया कि शास्त्रीय और लोक नृत्य में अंतर होता है – लोक नृत्य सामूहिक होता है और शास्त्रीय नृत्य दर्शकों के लिए।
वे मानते हैं कि बच्चों को संगीत और लय के साथ खेलने देना चाहिए क्योंकि इससे उनका बौद्धिक विकास होता है। उन्होंने यह भी कहा कि बेटियों को शिक्षा और हुनर ज़रूर सिखाना चाहिए ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें।
बिरजू महाराज केवल नृत्य ही नहीं, बल्कि गाना, बजाना, चित्रकारी और मशीनों के प्रति भी जिज्ञासु रहे। उनका कहना है कि कला हमें सहयोग, अनुशासन और जीवन का संतुलन सिखाती है।