एनसीईआरटी समाधान कक्षा 5 हिंदी अध्याय 8 वे दिन भी क्या दिन थे
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 5 हिंदी अध्याय 8 वे दिन भी क्या दिन थे रिमझिम पुस्तक के पाठ 8 के प्रश्न उत्तर सीबीएसई तथा राजकीय बोर्ड सत्र 2024-25 के लिए यहाँ दिए गए हैं। पांचवीं कक्षा में हिंदी विषय की किताब रिमझिम के पाठ 8 के सभी प्रश्न उत्तर तथा अभ्यास के अन्य अतिरिक्त प्रश्नों के उत्तर यहाँ से निशुल्क प्राप्त किए जा सकते हैं।
कक्षा 5 हिंदी अध्याय 8 वे दिन भी क्या दिन थे के प्रश्न उत्तर
कुम्मी ने अपनी डायरी में एक घटना के तौर पर क्या लिखा था?
कुम्मी ने अपनी डायरी में एक घटना के तौर पर 17 मई सन 2155 की रात को लिखा था कि, “आज रोहित को सचमुच की एक पुस्तक मिली थी।
रोहित ने कहा, “कितनी ही पुस्तकें एक बार पढ़ी और बेकार हो गई” क्या सचमुच में ऐसा होता है?
रोहित ने कहा एक बार पढ़ी और फिर बेकार हो गई। यह बात गलत है। क्योंकि किताब कभी बेकार नहीं होती। बहुत सी किताबों को ज्ञान रूप में आज भी स्मारक के संग्राहलय में रखी जाती हैं।
कागज़ के पन्नों की किताब और टेलीविजन के पर्दे पर चलने वाली किताब में से तुम किसको पसंद करोगे और क्यों?
कागज़ के पन्नों की किताबें, टेलीविजन के पर्दे पर चलने वाली किताबों से काफ़ी बेहतर होती हैं क्योंकि बहुत सी चीजों को समझने के लिए हमें कुछ समय की आवस्यकता पड़ती है। वह पर्दे वाली क़िताबें नहीं प्रदान करती और आगे बढ़ती रहती हैं। इससे सम्पूर्ण पढाई नहीं हो पाती है।
कागज़ से पहले छपाई किस किस चीजों पर हुआ करती थी?
कागज़ से पहले छपाई के लिए लकड़ी से बनी तख्तियों का इस्तेमाल किया जाता था। इससे पहले कपड़े से बने पर्दे भी छपाई के लिए उपयोग किए जाते थे।
तुम मशीन की मदद से पढना चाहोगे या अध्यापक की मदद से? दोनों के पढ़ाने में किस तरह की सहजता और मुश्किलें आती हैं?
हम मशीन की जगह अध्यापक से पढना पसंद करेंगे क्योंकि अध्यापक हमें बारीक़ से बारीक़ चीजों को बड़े अच्छे ढंग से समझा सकते हैं जो मशीन नहीं कर सकती। न ही मशीन हमें विस्तृत रूप में समझा सकती है। मशीन केवल एक मनोंरजन का माहौल बना सकती है। अध्यापक की तरह ज्ञान का वातावरण नहीं बन सकती।
“वे दिन भी क्या दिन थे” के बारे में आप क्या समझते हैं?
“वे दिन भी क्या दिन थे” के बारे में अक्सर हम अपने बड़ों के मुँह से सुनते है, क्योंकि आज की स्थिति को देख वे अपने पुराने दिनों को अच्छा बताते हैं। कुछ लोग मंहगाई को, कुछ लोग बचपन के दिनों को याद करके यह बात कहते हैं।
कुम्मी ने अपनी कल्पना में स्कूल के बारे में क्या सोचा था?
कुम्मी ने अपनी कल्पना में सोचा कि कितने अच्छे होते होंगे वे पुराने स्कूल जहाँ एक ही आयु के सारे बच्चे हँसते, खेलते-कूदते स्कूल जाते होंगे। पढ़ाने के लिए स्त्री और पुरुष अध्यापक होते होंगे। तब स्कूल जाने में कितना आनंद आता होगा, कितने खुश रहते होंगे सारे बच्चे।