एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 भौतिकी अध्याय 7 प्रत्यावर्ती धारा

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 भौतिकी अध्याय 7 प्रत्यावर्ती धारा के अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर तथा अतिरिक्त प्रश्नों के हल सत्र 2024-25 के लिए यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं। कक्षा 12 भौतिकी के समाधान सीबीएसई तथा राजकीय बोर्ड दोनों के लिए उपयोगी हैं।

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 भौतिकी अध्याय 7

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प्रत्यावर्ती धारा

वह धारा जिसका परिमाण तथा दिशा आवर्ती रूप से परिवर्तित होता है। प्रत्यावर्ती धारा कहलाती है। एक निश्चित समयांतराल पश्चात एक धारा की दिशा विपरीत हो जाती है। भारत में घरों में प्रयुक्त प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति 50 हर्ट्ज़ होती है अर्थात यह एक सेकेण्ड में 50 बार अपनी दिशा बदलती है।

Q1

यदि 50 Hz ac परिपथ में 5A की rms धारा प्रवाहित हो रही हो, तो धारा परिमाण शून्य होने के 1/300 s पश्चात इसका मान होगा

[A]. (5√2 ) A
[B]. (5√(3/2) A
[C]. ( 5√6 ) A
[D]. (5/√2) A
Q2

किसी प्रत्यावर्ती धारा जनित्र का आंतरिक प्रतिरोध Rg तथा आंतरिक प्रतिघात Xg है। इसे Rg प्रतिरोध तथा Xg प्रतिघात के किसी निष्क्रिय लोड को शक्ति प्रदान करने के लिए उपयोग में लाया गया है। जनित्र से लोड को अधिकतम शक्ति प्रदान करने के लिए XL का मान होना चाहिए:

[A]. शून्य
[B]. Xg
[C]. – Xg
[D]. Rg
Q3

किसी जनित्र से श्रेणीक्रम में जुड़े LCR परिपथ की अनुनादी आवृत्ति कम करने के लिए

[A]. जनित्र की आवृत्ति कम करनी चाहिए।
[B]. परिपथ में लगे संधारित्र के पार्श्वक्रम में एक अन्य संधारित्र जोड़ना चाहिए।
[C]. प्रेरक के लोह-क्रोड को हटा देना चाहिए।
[D]. संधारित्र के परावैद्युत को हटा देना चाहिए।
Q4

1 Ω प्रतिबाधा के किसी प्रेरक तथा 2 Ω प्रतिरोध के किसी प्रतिरोधक को 6 V (rms) के ac स्रोत से श्रेणीक्रम में जोड़ा गया है। परिपथ में क्षयित शक्ति का मान है

[A]. 8 W
[B]. 12 W
[C]. 14.4 W
[D]. 18 W

प्रतिरोधक पर प्रयुक्त ac वोल्टता

ac वोल्टता स्रोत ¬ से जुड़ा प्रतिरोधक R दर्शाया गया है। परिपथ आरेख में ac स्रोत का संकेत चिह्न © है। यहाँ हम एक ऐसे स्रोत की बात कर रहे हैं जो अपने सिरों के बीच ज्यावक्रीय रूप में परिवर्तनशील विभवांतर उत्पन्न करता है, माना कि यह विभवांतर जिसे ंब वोल्टता भी कहा जाता है, निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जाए
v = vₘ sinωt
यहाँ vₘ दोलायमान विभवांतर का आयाम एवं ω इसकी कोणीय आवृत्ति है।
प्रतिरोधक में प्रवाहित होने वाली धारा का मान प्राप्त करने के लिए हम किरचॉफ का लूप नियम के अनुसार
vₘ sinωt = iR
अथवा i = (vₘ/R) sinωt
चूँकि R एक नियतांक है, हम इस समीकरण को इस प्रकार व्यक्त कर सकते हैं:
i = iₘ sinωt
यहाँ iₘ = vₘ/R
इस समीकरण को ओम का नियम कहते हैं जो प्रतिरोधकों के प्रकरण में ac एवं dc दोनों प्रकार की वोल्टताओं के लिए समान रूप से लागू होता है।

प्रेरक पर प्रयुक्त ac वोल्टता

माना कि स्रोत के सिरों के बीच वोल्टता v = vₘ sinωt है क्योंकि परिपथ में कोई प्रतिरोधक नहीं है। किरचॉफ लूप नियम
Σ ε(t ) = 0, का उपयोग करने से
v – L (di/dt) = 0
यहाँ समीकरण का दूसरा पद प्रेरक में स्वप्रेरित फैराडे emf है, एवं L प्रेरक का स्व-प्रेरकत्व है। ऋणात्मक चिह्न लेंज के नियम का अनुसरण करने से समाविष्ट होता है।
di/dt = v/L = (vₘ/L) sinωt
धारा का मान प्राप्त करने के लिए, हम di/dt को समय के सापेक्ष समाकलित करते हैं,
∫(di/dt) dt = (vₘ/L) ∫sin(ωt)dt
i = -(vₘ/ωL) cos (ωt) + नियतांक
vₘ/ωL = iₘ
यहाँ vₘ/ωL = iₘ धारा का आयाम है। राशि ωL प्रतिरोध के सदृश है, इसे प्रेरकीय प्रतिघात कहा जाता है एवं इसे XL द्वारा व्यक्त करते हैं।
इसलिए, iₘ = vₘ/ XL
यहाँ समाकलन नियतांक की विमा, धारा की विमा होती है और यह समय पर निर्भर नहीं करती। चूँकि, स्रोत का मउि शून्य के परितः सममितीय रूप से दोलन करता है वह धारा, जो इसके कारण बहती है, भी सममितीय रूप से दोलन करती है। अतः न तो धारा का कोई नियत, न ही समय पर निर्भर करने वाला अवयव, अस्तित्व में आता है। इसलिए, समाकलन नियतांक का मान शून्य होता है।

संधारित्र पर प्रयुक्त ac वोल्टता

जब संधारित्र को ac स्रोत से जोड़ा जाता है, तो यह धारा को नियंत्रित तो करता है, पर आवेश के प्रवाह को पूरी तरह रोकता नहीं है। क्योंकि धारा प्रत्येक अर्द्धचक्र में प्रत्यावर्तित होती है संधारित्र भी एकांतर क्रम में आवेशित एवं अनावेशित होता है। माना कि किसी क्षण t पर संधारित्र पर आवेश q है। तो संधारित्र के सिरों के बीच तात्क्षणिक वोल्टता है,
v = q/C
किरचॉफ के लूप नियम के अनुसार, स्रोत एवं संधारित्र के सिरों के बीच वोल्टताएँ समान हैं, अतः
vₘ sinωt = q/C
धारा का मान ज्ञात करने के लिए हम संबंध i = dq/dt का उपयोग करते हैं
i = d/dt (vₘC sinωt)
= ω C vₘ cosωt
iₘ = ω C vₘ
या iₘ = vₘ/(1/ωC) के रूप में लिखें और विशुद्ध प्रतिरोधकीय परिपथ के तदनुरूपी सूत्र iₘ = vₘ/R से तुलना करें तो हम पाते हें कि (1/ωC) की भूमिका प्रतिरोध जैसी ही है। इसको संधारित्र प्रतिघात कहते हैं और Xc से निरूपित करते हैं।
Xc = 1/ωC

कक्षा 12 भौतिकी अध्याय 7 के लिए महत्वपूर्ण प्रश्न

स्पष्ट कीजिए कि संधारित्र द्वारा प्रदत्त प्रतिघात प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति में वृद्धि करने पर कम क्यों हो जाता है?

संधारित्र की प्लेटों के बीच के अन्तराल का प्रतिरोध अनन्त होने के कारण इससे होकर दिष्टधारा प्रवाहित नहीं हो सकती। संधारित्र की प्लेटों के बीच जब प्रत्यावर्ती धारा लगाई जाती है तो इसकी प्लेटें बारी-बारी से आवेशित और अनावेशित होती हैं। संधारित्र से होकर प्रवाहित होने वाली धारा इसी परिवर्ती वोल्टता (या आवेश) का परिणाम है। अतः यदि वोल्टता अधिक द्रुत गति से परिवर्तित होती है तो संधारित्र से अधिक धारा प्रवाहित होगी। इसका निहितार्थ यह है कि संधारित्र द्वारा प्रस्तुत प्रतिघात आवृत्ति बढ़ाने से कम होता हैः इसका मान होता है 1/ωC.

यदि किसी LC परिपथ को आवर्ती दोलनकारी स्प्रिंग-ब्लॉक प्रणाली के तुल्य समझा जाता है तब इस LC परिपथ की कौन सी ऊर्जा स्थितिज ऊर्जा के और कौन सी गतिज ऊर्जा के तुल्य होगी?

चुम्बकीय ऊर्जा गतिज ऊर्जा के सदृश तथा वैद्युत ऊर्जा स्थितिज ऊर्जा के सदृश।

स्पष्ट कीजिए कि किसी प्रेरक द्वारा प्रदत्त प्रतिघात प्रत्यावर्ती वोल्टता की आवृत्ति में वृद्धि करने पर क्यों बढ़ता है?

प्रेरक अपने सिरों के बीच लेन्ज के नियम के अनुसार विरोधी विद्युत वाहक बल विकसित करके अपने में से प्रवाहित होने वाली धारा का विरोध करता है। प्रेरित वोल्टता की ध्रुवता इस प्रकार होती है कि विद्यमान धारा का स्तर बना रह सके। यदि धारा कम होती है तो प्रेरित emf की ध्रुवता इस प्रकार होगी कि धारा बढ़ सके और यदि धारा बढ़ती है तो प्रेरित emf की ध्रुवता इसके विपरीत होगी। क्योंकि प्रेरित वोल्टता धारा परिवर्तन की दर के समानुपाती होती है। धारा परिवर्तन की दर अधिक होने पर अर्थात आवृत्ति अधिक होने पर धारा प्रवाह के प्रति प्रेरक का प्रतिघात अधिक हो जाएगा। अतः प्रेरक का प्रतिघात आवृत्ति के समानुपाती होता है और इसका मान ωL द्वारा व्यक्त किया जाता है।

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