एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति (श्यामाचरण दुबे) सत्र 2025-26 के लिए विद्यार्थी यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं। इस पाठ में लेखक ने आधुनिक समाज में बढ़ते उपभोक्तावाद का विश्लेषण किया है। इसमें बताया गया है कि कैसे वस्तुओं और सुविधाओं की अंधाधुंध चाहत ने जीवन मूल्यों और मानव संबंधों को प्रभावित किया है। अध्याय हमें सोचने पर मजबूर करता है कि आवश्यकताओं और विलासिताओं के बीच अंतर समझना कितना ज़रूरी है। यह छात्रों को संतुलित जीवन और नैतिक मूल्यों का महत्व सिखाता है।
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज पाठ 3 के प्रश्न उत्तर
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज पाठ 3 के अति-लघु उत्तरीय प्रश्न
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज पाठ 3 के लघु उत्तरीय प्रश्न
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज पाठ 3 के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज पाठ 3 MCQ
अभ्यास के प्रश्न उत्तर
उपभोक्तावाद की संस्कृति कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 3 के प्रश्न उत्तर
1. लेखक के अनुसार जीवन में ‘सुख’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर देखेंलेखक के अनुसार आधुनिक उपभोक्तावादी समाज में जीवन में ‘सुख’ का अर्थ केवल भौतिक भोग और उपभोग तक सीमित हो गया है। पहले सुख का मतलब संतोष, मानसिक शांति और आवश्यकताओं की पूर्ति से होता था, लेकिन आज यह केवल वस्तुओं और सेवाओं की अधिकता में निहित समझा जाने लगा है। लोग अपने जीवन का आनंद महँगे सौंदर्य प्रसाधन, कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, खान-पान और अन्य विलासिता की वस्तुओं के माध्यम से पाने लगे हैं। विज्ञापनों और समाज के दबाव ने इसे और बढ़ावा दिया है। इस प्रकार, सुख अब अनुभव या आत्मिक संतोष का विषय नहीं रह गया, बल्कि उपभोग और दिखावे का पर्याय बन गया है।
2. आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रही है?
उत्तर देखेंआज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को कई तरीकों से प्रभावित कर रही है। सबसे पहले, यह हमारी प्राथमिकताओं और जीवनशैली को बदल रही है। अब लोग केवल आवश्यकताओं की पूर्ति तक सीमित नहीं रहते, बल्कि महँगी और विलासितापूर्ण वस्तुओं की चाह में समय, धन और ऊर्जा खर्च कर रहे हैं। दैनिक वस्तुएँ जैसे टूथ-पेस्ट, साबुन, परिधान, सौंदर्य प्रसाधन और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण अब केवल उपयोगिता के लिए नहीं, बल्कि दिखावे और प्रतिष्ठा के लिए खरीदे जाते हैं।
इसके अलावा, उपभोक्तावाद मानसिकता पर भी प्रभाव डाल रहा है। विज्ञापन और प्रसार के माध्यम से लोगों में ‘अधिक चाहिए’ की भावना बढ़ रही है। लोग वस्तुओं के पीछे दौड़ते हुए अपने व्यक्तित्व और सांस्कृतिक मूल्यों को भूलते जा रहे हैं। परिणामस्वरूप, जीवन में संतोष कम और भौतिक लालसा अधिक हो गई है।
3. लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती क्यों कहा है?
उत्तर देखेंलेखक उपभोक्ता संस्कृति को समाज के लिए चुनौती इसलिए मानते हैं क्योंकि यह हमारी सांस्कृतिक नींव और सामाजिक मूल्यों को हिला रही है। यह संस्कृति सामाजिक असमानता और वर्गों की दूरी बढ़ाती है, नैतिक मानदंडों को कमजोर करती है और व्यक्ति-केंद्रकता तथा स्वार्थ को बढ़ावा देती है। लोग वस्तुओं और दिखावे की दौड़ में वास्तविक लक्ष्य और जीवन की गुणवत्ता भूल जाते हैं। इसके कारण सांस्कृतिक अस्मिता क्षीण होती है, सामाजिक सरोकार कम होते हैं और आक्रोश व अशांति बढ़ती है, जो भविष्य के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
4. आशय स्पष्ट कीजिए –
(क) “जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।”
उत्तर देखें इस वाक्य का आशय यह है कि आधुनिक उपभोक्तावादी समाज में हम अक्सर बिना सावधानी या सोच-विचार के अपने चरित्र और व्यक्तित्व को वस्तुओं और भौतिक सुखों के अधीन कर देते हैं। लोग केवल अपने भोग और दिखावे के लिए जीने लगते हैं और धीरे-धीरे वस्तुओं के गुलाम बन जाते हैं। यानी हमारी सोच, आदतें और मूल्य प्रणाली भी इस उपभोक्ता संस्कृति के प्रभाव में बदल रही हैं, और हम अपनी असली पहचान और आत्मसम्मान की बजाय उत्पादों और उनकी झलक में अपनी खुशी ढूँढने लगते हैं।
(ख) “प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हो।”
उत्तर देखेंइस वाक्य का आशय यह है कि समाज में लोगों की मान-प्रतिष्ठा दिखाने के कई तरीके होते हैं, और कभी-कभी ये तरीके तार्किक या सामान्य दृष्टि से हास्यास्पद लग सकते हैं। उपभोक्तावादी समाज में लोग महँगी वस्तुएँ, ब्रांडेड कपड़े, लक्जरी सामान और विलासिता के माध्यम से अपनी स्थिति और पहचान को दिखाने की कोशिश करते हैं। लेखक यह बताना चाहते हैं कि चाहे ये प्रयास कितने भी अतार्किक या दिखावटी क्यों न लगें, फिर भी लोग इन्हें अपनी प्रतिष्ठा के प्रतीक के रूप में अपनाते हैं।
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 3 के रचना और अभिव्यक्ति के आधार पर प्रश्न
5. कोई वस्तु हमारे लिए उपयोगी हो या न हो, लेकिन टी-वी- पर विज्ञापन देखकर हम उसे खरीदने के लिए अवश्य लालायित होते हैं? क्यों?
उत्तर देखेंहम किसी वस्तु को उपयोगी होने के बावजूद न सोचकर खरीदने के लिए लालायित इसलिए होते हैं क्योंकि विज्ञापन हमारी मानसिकता और भावनाओं पर गहरा प्रभाव डालते हैं। विज्ञापन वस्तु की आवश्यकता, लाभ और आकर्षण इस तरह पेश करते हैं कि हमें लगता है कि वह वस्तु हमारे जीवन, प्रतिष्ठा या खुशी के लिए आवश्यक है। इसके अलावा, दिखावे और सामाजिक दबाव भी हमारी लालसा को बढ़ाते हैं। परिणामस्वरूप, हम वस्तु की वास्तविक उपयोगिता को भूलकर केवल उसकी आकर्षक प्रस्तुति और प्रचार में बहककर उसे खरीद लेते हैं।
6. आपके अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होनी चाहिए या उसका विज्ञापन? तर्क देकर स्पष्ट करें।
उत्तर देखेंवस्तुओं को खरीदने का आधार विज्ञापन नहीं, बल्कि उनकी वास्तविक गुणवत्ता होनी चाहिए। इसका कारण यह है कि विज्ञापन केवल वस्तु को आकर्षक और आवश्यक दिखाने का माध्यम है, जबकि वस्तु की गुणवत्ता ही उसके उपयोग, स्थायित्व और संतोष की वास्तविक गारंटी देती है। यदि हम केवल विज्ञापन देखकर वस्तुएँ खरीदते हैं, तो हम अक्सर अवांछित या बेकार वस्तुओं पर पैसा खर्च कर देते हैं और असली लाभ से वंचित रह जाते हैं। गुणवत्ता पर ध्यान देने से हमारी आर्थिक समझदारी, संतोष और दीर्घकालिक उपयोगिता सुनिश्चित होती है, जबकि विज्ञापन केवल क्षणिक लालच पैदा करता है।
7. पाठ के आधार पर आज के उपभोक्तावादी युग में पनप रही ‘दिखावे की संस्कृति’ पर विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर देखेंआज के उपभोक्तावादी युग में ‘दिखावे की संस्कृति’ समाज में व्यापक रूप से पनप रही है। इस संस्कृति में व्यक्ति अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा और पहचान को वस्तुओं, ब्रांडेड कपड़ों, महँगे सौंदर्य प्रसाधनों, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और अन्य विलासिता के माध्यम से दिखाने का प्रयास करता है। असली आवश्यकताओं और जीवन की गुणवत्ता की बजाय दिखावे और भौतिक सुख को प्राथमिकता दी जा रही है।
विज्ञापन और मीडिया इस प्रक्रिया को और तेज करते हैं, लोगों की मानसिकता को प्रभावित कर उन्हें अधिक खरीदने और दिखावे की दौड़ में शामिल कर देते हैं। परिणामस्वरूप, समाज में असमानता बढ़ती है, नैतिक मूल्य कमजोर होते हैं और स्वार्थ व व्यक्ति-केंद्रकता बढ़ती है।
8. आज की उपभोक्ता संस्कृति हमारे रीति-रिवाजों और त्योहारों को किस प्रकार प्रभावित कर रही है? अपने अनुभव के आधार पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर देखेंआज की उपभोक्ता संस्कृति हमारे रीति-रिवाजों और त्योहारों को भौतिकता और दिखावे का प्रतीक बना रही है। पहले त्योहारों और परंपराओं का उद्देश्य सांस्कृतिक मूल्य, सामाजिक मेल-जोल और आध्यात्मिक अनुभव होता था, लेकिन अब वे अधिकतर उपहार, महँगी सजावट, नए कपड़े और खाने-पीने की विलासिता के माध्यम से मनाए जा रहे हैं। उदाहरण के लिए, दीपावली अब केवल दीयों और मिठाइयों तक सीमित नहीं रही, बल्कि महँगी रोशनी, गहनों और इलेक्ट्रॉनिक उपहारों में बदल गई है। इसी तरह, विवाह और अन्य समारोह भी केवल दिखावे और सामाजिक प्रतिष्ठा को बढ़ाने का माध्यम बन गए हैं। मेरी अपनी अनुभव में देखा है कि लोग त्योहारों को सांस्कृतिक आनंद से ज्यादा, खरीदारी और भौतिक खर्च के अवसर के रूप में मनाते हैं, जिससे परंपराओं का वास्तविक महत्व धीरे-धीरे कम होता जा रहा है।
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 3 के भाषा अध्ययन पर आधारित प्रश्न उत्तर
9. धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है।
इस वाक्य में ‘बदल रहा है’ क्रिया है। यह क्रिया कैसे हो रही है-धीरे-धीरे। अतः यहाँ धीरे-धीरे क्रिया-विशेषण है। जो शब्द क्रिया की विशेषता बताते हैं, क्रिया-विशेषण कहलाते हैं। जहाँ वाक्य में हमें पता चलता है क्रिया कैसे, कब, कितनी और कहाँ हो रही है, वहाँ वह शब्द क्रिया-विशेषण कहलाता है।
(क). ऊपर दिए गए उदाहरण को ध्यान में रखते हुए क्रिया-विशेषण से युक्त पाँच वाक्य पाठ में से छाँटकर लिखिए।
उत्तर देखेंपाठ से पाँच वाक्य जिनमें क्रिया-विशेषण प्रयुक्त हैं, इस प्रकार हैं:
धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है। (धीरे-धीरे – क्रिया-विशेषण)
यह लीजिए, महँगी है, पर आपके सौंदर्य में निखार ला देगी। (पर – यहाँ क्रिया का परिणाम दर्शाने वाला विशेषण-भाव)
विज्ञापन और प्रसार के सूक्ष्म तंत्र हमारी मानसिकता बदल रहे हैं। (सूक्ष्म – क्रिया की विशेषता दर्शाने वाला विशेषण)
समाज में वर्गों की दूरी बढ़ रही है। (धीरे-धीरे – पाठ में संदर्भ अनुसार बढ़ रही है, समय विशेषण)
जीवन स्तर का यह बढ़ता अंतर आक्रोश और अशांति को जन्म दे रहा है। (बढ़ता – क्रिया विशेषण के रूप में क्रिया की स्थिति दिखाता है)
(ख). धीरे-धीरे, जोर से, लगातार, हमेशा, आजकल, कम, ज्यादा, यहाँ, उधर, बाहर-इन क्रिया-विशेषण शब्दों का प्रयोग करते हुए वाक्य बनाइए।
उत्तर देखें“धीरे-धीरे, जोर से, लगातार, हमेशा, आजकल, कम, ज्यादा, यहाँ, उधर, बाहर” इन क्रिया-विशेषणों से वाक्य –
1. धीरे-धीरे सब लोग उपभोक्ता संस्कृति के प्रभाव में आ गए।
2. बच्चे पार्क में जोर से खेल रहे थे।
3. लगातार विज्ञापनों ने लोगों की सोच बदल दी।
4. वह हमेशा सच्चाई पर जोर देता है।
5. आजकल बाजार में दिखावे की संस्कृति बढ़ रही है।
6. कम पैसों में अच्छी वस्तुएँ मिलना कठिन है।
7. त्योहारों पर लोग ज्यादा खर्च करने लगे हैं।
8. यहाँ उपभोक्ता का आकर्षण सबसे बड़ा है।
9. उधर बाजार में भीड़ बढ़ती जा रही है।
10. बाहर महँगी दुकानों की सजावट लोगों को लुभाती है।
(ग). नीचे दिए गए वाक्यों में से क्रिया-विशेषण और विशेषण शब्द छाँटकर अलग लिखिए-
वाक्य – क्रिया-विशेषण – विशेषण
(1) कल रात से निरंतर बारिश हो रही है।
(2) पेड़ पर लगे पके आम देखकर बच्चों के मुँह में पानी आ गया।
(3) रसोईघर से आती पुलाव की हलकी खुशबू से मुझे जोरों की भूख लग आई।
(4) उतना ही खाओ जितनी भूख है।
(5) विलासिता की वस्तुओं से आजकल बाजार भरा पड़ा है।
उत्तर:
वाक्य | क्रिया-विशेषण | विशेषण |
---|---|---|
(1) कल रात से निरंतर बारिश हो रही है। | निरंतर | कल, रात |
(2) पेड़ पर लगे पके आम देखकर बच्चों के मुँह में पानी आ गया। | देखकर | पके |
(3) रसोईघर से आती पुलाव की हलकी खुशबू से मुझे जोरों की भूख लग आई। | जोरों | हलकी |
(4) उतना ही खाओ जितनी भूख है। | उतना ही | जितनी |
(5) विलासिता की वस्तुओं से आजकल बाजार भरा पड़ा है। | आजकल | विलासिता की |
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 3 के पाठेतर सक्रियता पर आधारित प्रश्न उत्तर
• ‘दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले विज्ञापनों का बच्चों पर बढ़ता प्रभाव’ विषय पर अध्यापक और विद्यार्थी के बीच हुए वार्तालाप को संवाद शैली में लिखिए।
उत्तर देखें“दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले विज्ञापनों का बच्चों पर बढ़ता प्रभाव” पर अध्यापक और विद्यार्थी के बीच संवाद इस प्रकार लिखा जा सकता है –
संवाद
अध्यापक – बेटा, क्या तुमने ध्यान दिया है कि दूरदर्शन पर आने वाले विज्ञापन बच्चों को कितना आकर्षित करते हैं?
विद्यार्थी – जी सर, मैं भी कई बार विज्ञापन देखकर वही वस्तु मम्मी से माँगने लगता हूँ।
अध्यापक – यही तो समस्या है। विज्ञापन इस तरह बनाए जाते हैं कि बच्चों को लगे वही वस्तु जीवन के लिए बहुत ज़रूरी है।
विद्यार्थी – सही कहा सर, कई बार हमें उसकी आवश्यकता भी नहीं होती, फिर भी उसे लेने की जिद करने लगते हैं।
अध्यापक – इसका असर केवल खर्च पर नहीं पड़ता, बल्कि बच्चों के मन पर भी होता है। वे दिखावे और ब्रांड को ही प्रतिष्ठा समझने लगते हैं।
विद्यार्थी – जी सर, मेरे कई दोस्त भी नए खिलौने, जूते या मोबाइल के विज्ञापन देखकर तुरंत वही लेने की सोचते हैं।
अध्यापक – इसलिए ज़रूरी है कि हम विज्ञापन देखकर प्रभावित न हों, बल्कि वस्तु की गुणवत्ता और ज़रूरत पर ध्यान दें।
विद्यार्थी – बिल्कुल सर, अब मैं यह कोशिश करूँगा कि किसी भी वस्तु को सिर्फ विज्ञापन देखकर न खरीदूँ।
अध्यापक – बहुत अच्छा। यदि बच्चे विज्ञापन के प्रभाव से बचना सीखेंगे तो समाज भी उपभोक्तावाद की अंधी दौड़ से बचेगा।
• इस पाठ के माध्यम से आपने उपभोक्ता संस्कृति के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त की। अब आप अपने अध्यापक की सहायता से सामंती संस्कृति के बारे में जानकारी प्राप्त करें और नीचे दिए गए विषय के पक्ष अथवा विपक्ष में कक्षा में अपने विचार व्यक्त करें।
उत्तर देखेंसामंती संस्कृति के बारे में संक्षिप्त जानकारी
पक्ष में विचार (सकारात्मक प्रभाव):
सामंती संस्कृति ने हमारे समाज में संपर्क, अनुशासन और परंपराओं का संरक्षण किया। इस संस्कृति में सामाजिक नियम और कर्तव्य महत्वपूर्ण थे, जिससे सामाजिक स्थिरता और मेल-जोल बनाए रखने में मदद मिलती थी। यह सामाजिक hierarchy हमें जिम्मेदारी और नैतिक मूल्यों का पाठ भी पढ़ाती थी। त्यौहार, रीति-रिवाज और उत्सव सामंती संस्कृति के माध्यम से संरक्षित हुए, जिससे लोगों में सांस्कृतिक एकता और सामाजिक समरसता बनी रही।
विपक्ष में विचार (नकारात्मक प्रभाव):
सामंती संस्कृति में सामाजिक असमानता और वर्ग भेद अधिक था। आम लोगों के अधिकार सीमित थे और शक्ति केवल कुछ विशेष वर्गों के पास केंद्रित थी। इससे सामाजिक स्वतंत्रता और समान अवसर की कमी होती थी। समाज में व्यक्तित्व का विकास और नवाचार भी बाधित होता था।
• क्या उपभोक्ता संस्कृति सामंती संस्कृति का ही विकसित रूप है
उत्तर देखेंहाँ, यह कहा जा सकता है कि उपभोक्ता संस्कृति में सामंती संस्कृति के कुछ तत्व विकसित रूप में दिखाई देते हैं, लेकिन इसमें कई नए और विशिष्ट पहलू भी जुड़ गए हैं। इसे विस्तार से समझें:
सामंती संस्कृति के तत्व:
समाज में प्रतिष्ठा और वर्ग भेद महत्वपूर्ण थे।
लोग सामाजिक स्थिति और पद के आधार पर अपनी पहचान बनाते थे।
परंपराओं, रीति-रिवाजों और सामूहिक आयोजनों का पालन किया जाता था।
उपभोक्ता संस्कृति में परिवर्तित रूप:
अब प्रतिष्ठा और सामाजिक पहचान वस्तुओं और दिखावे के माध्यम से व्यक्त की जाती है।
वर्ग भेद आर्थिक स्थिति और उपभोग की क्षमता के आधार पर बनता है।
परंपराएँ और त्यौहार भी भौतिक विलासिता और खरीदारी के माध्यम से मनाए जाते हैं।
विज्ञापन और मीडिया लोगों की मानसिकता और लालसा को प्रभावित करते हैं।
• आप प्रतिदिन टी-वी- पर ढेरों विज्ञापन देखते-सुनते हैं और इनमें से कुछ आपकी जबान पर चढ़ जाते हैं। आप अपनी पसंद की किन्हीं दो वस्तुओं पर विज्ञापन तैयार कीजिए।
उत्तर देखें(क) साबुन का विज्ञापन-
“अब हर दिन रहे ताज़गी और ख़ुशबू का अहसास –
पेश है फ्रेशग्लो साबुन!
जो हटाए धूल, मिट्टी और पसीना,
और दे आपकी त्वचा को रेशमी निखार।
फ्रेशग्लो – क्योंकि आपकी चमक ही आपकी पहचान है।”
(ख) साइकिल का विज्ञापन
“तेज़ी, मजबूती और स्टाइल – सब एक साथ!
नई सुपरराइड साइकिल अब आपके लिए।
पढ़ाई, खेल या सैर – हर सफ़र बने आसान।
कम कीमत, लंबी टिकाऊ और जबरदस्त डिज़ाइन।
सुपरराइड साइकिल – बच्चों और बड़ों की पहली पसंद।”
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति पर आधारित अति-लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर।
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 3 अति-लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर
1. उपभोक्तावाद की संस्कृति से लेखक का क्या अभिप्राय है?
उत्तर देखेंलेखक का अभिप्राय है कि आज समाज में सुख और सफलता की परिभाषा वस्तुओं की खपत और खरीद पर आधारित हो गई है, जिससे एक नई जीवन-शैली और दृष्टिकोण विकसित हुआ है।
2. उपभोक्तावाद ने हमारे दैनिक जीवन पर किस प्रकार असर डाला है?
उत्तर देखेंदैनिक जीवन में उपभोक्तावाद ने हमें हर छोटी-बड़ी वस्तु को आवश्यक बना दिया है। अब ज़रूरत से अधिक वस्तुओं का उपयोग प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाने लगा है।
3. उपभोक्तावाद में ‘सुख’ की परिभाषा कैसे बदल गई है?
उत्तर देखेंपहले सुख का अर्थ संतोष, सरलता और मानसिक शांति था। अब ‘सुख’ का अर्थ अधिक वस्तुएँ खरीदना, उपभोग करना और दिखावे में आगे रहना माना जाने लगा है।
4. विज्ञापन उपभोक्तावादी संस्कृति को किस प्रकार प्रभावित करते हैं?
उत्तर देखेंविज्ञापन उपभोक्ताओं की सोच और इच्छाओं को बदलते हैं। वे यह विश्वास दिलाते हैं कि किसी वस्तु का प्रयोग जीवन को बेहतर बनाता है और इसके बिना जीवन अधूरा है।
5. उपभोक्तावाद से समाज में कौन-सी असमानताएँ बढ़ रही हैं?
उत्तर देखेंउपभोक्तावाद अमीर और गरीब के बीच की खाई को और गहरी कर रहा है। सम्पन्न वर्ग अधिक से अधिक उपभोग करता है, जबकि गरीब वर्ग इच्छाएँ होने पर भी असमर्थ रह जाता है।
6. उपभोक्तावाद के कारण युवाओं की जीवन-शैली में क्या परिवर्तन आया है?
उत्तर देखेंयुवा अब फैशन, ब्रांड और दिखावे पर अधिक ध्यान देने लगे हैं। उनके लिए व्यक्तित्व का मूल्य बाहरी आभूषणों और वस्तुओं से आंका जाने लगा है।
7. उपभोक्तावाद के चलते पर्यावरण को किस प्रकार क्षति पहुँच रही है?
उत्तर देखेंउपभोक्तावाद अंधाधुंध उत्पादन को बढ़ाता है, जिससे प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन, प्रदूषण, और कचरे की समस्या तेज़ी से बढ़ रही है।
8. ‘उपभोक्तावाद की संस्कृति’ को लेखक ने चुनौती क्यों माना है?
उत्तर देखेंलेखक मानते हैं कि यह संस्कृति हमारी सांस्कृतिक जड़ों, मूल्यों और संतुलन को कमजोर कर रही है। यह झूठी आकांक्षाएँ पैदा करती है और समाज में अस्थिरता ला रही है।
9. उपभोक्तावाद का संबंध वैश्वीकरण से कैसे है?
उत्तर देखेंवैश्वीकरण ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उत्पादों को हर जगह पहुँचाया। इससे उपभोक्तावादी संस्कृति को बढ़ावा मिला और उपभोग को विश्व स्तर पर मूल्य मान लिया गया।
10. उपभोक्तावाद और मीडिया का आपसी संबंध स्पष्ट कीजिए।
उत्तर देखेंमीडिया उपभोक्तावाद का प्रमुख साधन है। वह निरंतर नए उत्पादों और जीवन-शैलियों को ‘सुख’ का प्रतीक बताकर उपभोक्ताओं की मानसिकता बदलता है।
11. लेखक के अनुसार उपभोक्तावाद का सबसे बड़ा खतरा क्या है?
उत्तर देखेंसबसे बड़ा खतरा यह है कि मनुष्य की वास्तविक जरूरतें पीछे छूट जाती हैं और दिखावे के लिए अनावश्यक वस्तुओं का उपभोग जीवन का केंद्र बन जाता है।
12. उपभोक्तावाद से भारतीय संस्कृति को किस तरह चुनौती मिली है?
उत्तर देखेंभारतीय संस्कृति में सादगी, संतोष और आध्यात्मिकता का महत्व रहा है। उपभोक्तावाद ने इन्हें कमजोर कर दिया है और भौतिकता को केंद्र में ला दिया है।
13. उपभोक्तावाद में ‘खरीदने की ललक’ किस प्रकार पैदा होती है?
उत्तर देखेंविज्ञापन, मीडिया और बाज़ार उपभोक्ता में यह भावना जगाते हैं कि अगर उन्होंने वस्तु नहीं खरीदी तो वे अधूरे या पिछड़े माने जाएँगे।
14. उपभोक्तावाद का शिक्षा पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर देखेंशिक्षा का उद्देश्य ज्ञान और चरित्र निर्माण के बजाय ‘करियर और आय अर्जन’ तक सीमित हो गया है, ताकि व्यक्ति अधिक से अधिक उपभोग कर सके।
15. उपभोक्तावादी संस्कृति के भविष्य को लेकर लेखक की क्या चिंता है?
उत्तर देखेंलेखक चिंतित हैं कि यदि उपभोक्तावाद इसी गति से बढ़ता रहा तो समाज में नैतिक मूल्य कमजोर होंगे, असमानताएँ बढ़ेंगी और पर्यावरणीय संकट गहरा जाएगा।
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति के लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर।
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 3 लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर
1. उपभोक्तावाद की संस्कृति में व्यक्ति के सुख-दुख की परिभाषा कैसे बदल गई है?
उत्तर देखेंपहले सुख का संबंध मानसिक शांति, परिवारिक सामंजस्य और संतोष से था। उपभोक्तावाद ने इसे पूरी तरह बदलकर वस्तुओं की उपलब्धता और उपभोग से जोड़ दिया। अब व्यक्ति को लगता है कि जितनी अधिक वस्तुएँ उसके पास होंगी, उतना ही अधिक उसका सम्मान और सुख होगा। इससे जीवन-शैली में दिखावे और कृत्रिमता का बोलबाला बढ़ गया है।
2. उपभोक्तावाद का समाज की असमानताओं पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर देखेंउपभोक्तावाद ने सम्पन्न और निर्धन वर्गों के बीच दूरी को और गहरा किया है। अमीर लोग नए-नए उत्पाद खरीदकर अपनी हैसियत दिखाते हैं, जबकि गरीब वर्ग विज्ञापनों से प्रभावित होकर भी वस्तुएँ नहीं खरीद पाता। इससे उनमें हीनभावना पैदा होती है और सामाजिक असमानताएँ बढ़ती हैं। इस प्रकार, उपभोक्तावाद ने वर्ग-भेद को मजबूत किया और सामंजस्य को कमजोर किया।
3. उपभोक्तावाद और पर्यावरणीय संकट के बीच क्या संबंध है?
उत्तर देखेंउपभोक्तावाद उत्पादन को बढ़ाने पर ज़ोर देता है, जिससे उद्योगों का विस्तार, संसाधनों का अंधाधुंध दोहन और प्रदूषण बढ़ता है। प्लास्टिक, इलेक्ट्रॉनिक और अन्य अपशिष्ट पर्यावरण को क्षति पहुँचाते हैं। उपभोक्तावाद का परिणाम यह है कि प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है और भावी पीढ़ियों के लिए संकट गहराता जा रहा है। इसलिए उपभोक्तावाद केवल सामाजिक नहीं, बल्कि पर्यावरणीय चुनौती भी है।
4. उपभोक्तावाद ने भारतीय संस्कृति और परंपराओं को किस प्रकार प्रभावित किया है?
उत्तर देखेंभारतीय संस्कृति में सादगी, संतोष और आध्यात्मिक मूल्यों पर बल दिया जाता रहा है। परंतु उपभोक्तावाद ने इन मूल्यों को पीछे धकेलकर भौतिकता और दिखावे को प्रमुख बना दिया। परंपरागत जीवन-शैली, जैसे सरल विवाह, सामूहिकता और संतोष की भावना कमजोर हुई। इसके स्थान पर ब्रांड, फैशन और विज्ञापन-प्रेरित जीवन-शैली का प्रभाव बढ़ गया। इस प्रकार, उपभोक्तावाद ने सांस्कृतिक पहचान को बदलने की चुनौती दी।
5. विज्ञापनों की भूमिका उपभोक्तावादी संस्कृति में इतनी महत्वपूर्ण क्यों है?
उत्तर देखेंविज्ञापन केवल वस्तुओं की जानकारी नहीं देते, बल्कि वे उपभोक्ता की मानसिकता गढ़ते हैं। वे यह संदेश देते हैं कि कोई उत्पाद खरीदने से जीवन बेहतर, आकर्षक और सफल बनता है। इससे उपभोक्ता अनावश्यक वस्तुएँ भी ज़रूरी समझने लगता है। बच्चों से लेकर युवाओं और बुज़ुर्गों तक सभी वर्ग विज्ञापनों से प्रभावित होकर उपभोग को प्रतिष्ठा मानने लगते हैं। इसलिए विज्ञापन उपभोक्तावादी संस्कृति की रीढ़ हैं।
6. वैश्वीकरण ने उपभोक्तावादी संस्कृति को किस प्रकार बढ़ावा दिया है?
उत्तर देखेंवैश्वीकरण के दौर में बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने अपने उत्पाद विश्वभर में पहुँचाए। मीडिया और विज्ञापन ने इन्हें आकर्षक बनाकर प्रस्तुत किया। इससे लोगों में विदेशी वस्तुएँ खरीदने की होड़ मच गई। नतीजतन, स्थानीय उत्पाद और पारंपरिक जीवन-शैलियाँ कमजोर पड़ीं और उपभोग विश्व-स्तरीय मानक बन गया। इस प्रकार, वैश्वीकरण ने उपभोक्तावाद को तेज़ी से फैलाया और उसे आधुनिक जीवन का हिस्सा बना दिया।
7. उपभोक्तावाद ने युवाओं की सोच और प्राथमिकताओं को किस तरह प्रभावित किया है?
उत्तर देखेंआज के युवा फैशन, ब्रांड और आधुनिक गैजेट्स को ही व्यक्तित्व की पहचान मानने लगे हैं। वे विज्ञापनों से प्रेरित होकर महँगी वस्तुएँ खरीदना चाहते हैं, भले ही उनकी वास्तविक ज़रूरत न हो। शिक्षा और करियर भी उपभोग-केन्द्रित हो गए हैं। इस प्रवृत्ति ने युवाओं को प्रतिस्पर्धी और दिखावटी बना दिया है। इसके परिणामस्वरूप परिश्रम और मूल्य-आधारित सोच पीछे छूट रही है।
8. उपभोक्तावाद का नैतिक मूल्यों पर क्या असर पड़ा है?
उत्तर देखेंउपभोक्तावादी संस्कृति ने नैतिक मूल्यों को कमजोर किया है। पहले समाज में सादगी, संतोष और सेवा की भावना महत्वपूर्ण थी। अब प्रतिष्ठा और सफलता का मापदंड वस्तुओं का संग्रह बन गया है। लोग अपने सामर्थ्य से अधिक खर्च करने लगे हैं और कभी-कभी गलत तरीकों से धन अर्जित करने की प्रवृत्ति भी बढ़ गई है। इस प्रकार, उपभोक्तावाद ने नैतिकता को चुनौती दी है।
9. लेखक उपभोक्तावाद को भविष्य के लिए किस प्रकार की चुनौती मानते हैं?
उत्तर देखेंलेखक का मानना है कि उपभोक्तावाद केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक संकट भी उत्पन्न करता है। यह असमानताओं, पर्यावरणीय हानि और नैतिक पतन को जन्म देता है। यदि यह प्रवृत्ति जारी रही तो आने वाली पीढ़ियाँ एक ऐसे समाज में रहेंगी, जहाँ मानवीय मूल्यों की जगह भौतिकता होगी। यह भविष्य के लिए गंभीर चुनौती है।
10. उपभोक्तावाद से बचने के लिए समाज को क्या करना चाहिए?
उत्तर देखेंसमाज को चाहिए कि वह उपभोक्तावाद की अंधी दौड़ से बचे और संतुलित जीवन-शैली अपनाए। विज्ञापनों के प्रभाव से सावधान रहकर केवल आवश्यक वस्तुओं का ही उपयोग करें। शिक्षा और परिवार में सादगी, संतोष और पर्यावरण संरक्षण के मूल्य बढ़ाए जाएँ। यदि व्यक्ति और समाज संयमित उपभोग करेंगे तो सांस्कृतिक जड़ें मजबूत होंगी और जीवन अधिक संतुलित और सुखी हो सकेगा।
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 3 उपभोक्तावाद की संस्कृति के लिए दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर।
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 3 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर
1. उपभोक्तावाद की संस्कृति से लेखक का क्या अभिप्राय है? इसके प्रमुख लक्षण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर देखेंउपभोक्तावाद की संस्कृति का अभिप्राय है कि आज समाज में सुख और सफलता की परिभाषा वस्तुओं के उपभोग से जुड़ गई है। जीवन-शैली और सोच इस हद तक बदल गई है कि व्यक्ति की प्रतिष्ठा उसकी खरीदी हुई वस्तुओं पर निर्भर करने लगी है। इसके प्रमुख लक्षण हैं—
• अत्यधिक उपभोग की प्रवृत्ति : आवश्यकता से अधिक वस्तुएँ खरीदने की आदत।
• विज्ञापन का प्रभाव : उपभोक्ता विज्ञापनों से प्रेरित होकर अनावश्यक वस्तुओं को भी ज़रूरी समझने लगता है।
• दिखावे पर बल : समाज में व्यक्ति का मूल्यांकन उसके पास मौजूद ब्रांड और वस्तुओं से किया जाता है।
• सांस्कृतिक परिवर्तन : सादगी और संतोष की जगह भौतिकता और फैशन ने ले ली है।
इस प्रकार, उपभोक्तावाद ने जीवन और संस्कृति दोनों को प्रभावित किया है।
2. उपभोक्तावाद की संस्कृति ने भारतीय समाज और उसकी परंपराओं को किस प्रकार प्रभावित किया है?
उत्तर देखेंभारतीय समाज की मूल विशेषता सादगी, संतोष और आध्यात्मिक मूल्यों पर आधारित रही है। परिवार, परंपरा और नैतिकता यहाँ के जीवन की नींव थे। परंतु उपभोक्तावाद की संस्कृति ने इन मूल्यों को गहरी चुनौती दी है। आज विवाह, त्यौहार और सामाजिक अवसर दिखावे की प्रतिस्पर्धा में बदल गए हैं। ब्रांड और फैशन को व्यक्तित्व का मापदंड माना जाने लगा है। विदेशी उत्पादों ने घरेलू वस्तुओं को पीछे धकेल दिया है। परिणामस्वरूप भारतीय संस्कृति में संतुलन और सामंजस्य की भावना कमजोर पड़ी है। उपभोक्तावाद ने समाज को बाहरी आकर्षणों की ओर मोड़ा और परंपरागत सरलता को पीछे छोड़ दिया।
3. उपभोक्तावाद की संस्कृति और विज्ञापनों के बीच संबंध स्पष्ट कीजिए।
उत्तर देखेंविज्ञापन उपभोक्तावाद की संस्कृति का सबसे बड़ा साधन हैं। वे केवल उत्पाद की जानकारी नहीं देते, बल्कि उपभोक्ता की मानसिकता और आकांक्षाएँ भी गढ़ते हैं। विज्ञापन यह विश्वास दिलाते हैं कि कोई वस्तु खरीदने से जीवन अधिक आकर्षक और आधुनिक बन जाएगा। बच्चों से लेकर युवाओं और बुजुर्गों तक हर वर्ग विज्ञापनों से प्रभावित होता है। इससे अनावश्यक वस्तुएँ भी आवश्यक लगने लगती हैं। विज्ञापनों के माध्यम से सुख, प्रतिष्ठा और सफलता का सीधा संबंध उपभोग से जोड़ दिया गया है। यही कारण है कि उपभोक्तावाद और विज्ञापन एक-दूसरे के पूरक बन गए हैं।
4. उपभोक्तावाद के कारण उत्पन्न सामाजिक और पर्यावरणीय समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर देखेंउपभोक्तावाद का प्रभाव केवल व्यक्ति या संस्कृति तक सीमित नहीं है, बल्कि उसने समाज और पर्यावरण को भी प्रभावित किया है। सामाजिक दृष्टि से यह सम्पन्न और निर्धन वर्गों के बीच गहरी खाई पैदा करता है। सम्पन्न वर्ग उपभोग के आधार पर अपनी श्रेष्ठता दिखाता है, जबकि निर्धन वर्ग इच्छाएँ होने पर भी वस्तुएँ नहीं खरीद पाता। इससे असमानता और हीनभावना बढ़ती है। पर्यावरणीय दृष्टि से उपभोक्तावाद अंधाधुंध उत्पादन को बढ़ावा देता है। इससे प्राकृतिक संसाधनों का क्षय, प्रदूषण, प्लास्टिक कचरा और जलवायु संकट जैसी गंभीर समस्याएँ पैदा होती हैं। इस प्रकार, उपभोक्तावाद केवल आर्थिक चुनौती नहीं, बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय संकट भी है।
5. उपभोक्तावादी संस्कृति से बचने के उपाय सुझाइए।
उत्तर देखेंउपभोक्तावाद से बचने के लिए व्यक्ति और समाज दोनों को सजग होना आवश्यक है।
• संतुलित उपभोग : हमें आवश्यकता और इच्छा में भेद करना सीखना चाहिए तथा केवल आवश्यक वस्तुओं का ही उपभोग करना चाहिए।
• विज्ञापनों से सावधानी : विज्ञापनों के प्रभाव से बचकर विवेकपूर्ण निर्णय लेना चाहिए।
• शिक्षा का योगदान : शिक्षा में नैतिकता, सादगी और पर्यावरण-जागरूकता को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
• परिवार और संस्कृति का संरक्षण : परिवारों को चाहिए कि वे बच्चों में सादगी, संतोष और परंपरागत मूल्यों की शिक्षा दें।
• स्थानीय उत्पादों का उपयोग : स्थानीय वस्तुओं को प्राथमिकता देकर वैश्विक बाज़ार की अंधी दौड़ से बचना चाहिए।
यदि समाज संयमित उपभोग अपनाए तो जीवन संतुलित, सांस्कृतिक रूप से मजबूत और पर्यावरण सुरक्षित रह सकता है।
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