एनसीईआरटी समाधान कक्षा 7 हिंदी मल्हार अध्याय 5 नहीं होना बीमार
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 7 हिंदी मल्हार अध्याय 5 नहीं होना बीमार में लेखक ने एक बच्चे की मासूम सोच को रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है। बच्चा सोचता है कि बीमार होने पर बड़े ठाठ मिलते हैं—आराम, स्वादिष्ट खीर और छुट्टी। पर जब वह बीमारी का बहाना बनाता है तो उसे भूखा रहना पड़ता है, ऊब होती है और मज़ा खो जाता है। कहानी हमें सिखाती है कि झूठ बोलना और बीमारी का नाटक करना सही नहीं है।
कक्षा 7 हिंदी मल्हार पाठ 5 के MCQ
कक्षा 7 मल्हार के सभी प्रश्न-उत्तर
नहीं होना बीमार कक्षा 7 हिंदी मल्हार अध्याय 5 के प्रश्न उत्तर
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मेरी समझ से
(क) नीचे दिए गए प्रश्नों का सही उत्तर कौन-सा है? उसके सामने तारा (★) बनाइए। कुछ प्रश्नों के एक से अधिक उत्तर भी हो सकता है।
(1) बच्चे के विद्यालय न जाने का मुख्य कारण क्या था?
• उसका विद्यालय जाने का मन नहीं था।
• उसका साबूदाने की खीर खाने का मन था।
• उसने गृहकार्य नहीं किया था।
• उसे बुखार हो गया था।
उत्तर देखें★ उसका विद्यालय जाने का मन नहीं था।
★ उसने गृहकार्य नहीं किया था।
(2) कहानी के अंत में बच्चे ने कहा, “इसके बाद स्कूल से छुट्टी मारने के लिए मैंने बीमारी का बहाना कभी नहीं बनाया।” बच्चे ने यह निर्णय लिया क्योंकि-
• घर में रहने के बजाय विद्यालय जाना अधिक रोचक है।
• बीमारी का बहाना बनाने से साबूदाने की खीर नहीं मिलती।
• झूठ बोलने से झूठ के खुलने का डर हमेशा बना रहता है।
• इस बहाने के कारण उसे दिनभर अकेले और भूखे रहना पड़ा।
उत्तर देखें★ घर में रहने के बजाय विद्यालय जाना अधिक रोचक है।
★ इस बहाने के कारण उसे दिनभर अकेले और भूखे रहना पड़ा।
(3) “लेटे-लेटे पीठ दुखने लगी” इस बात से बच्चे के बारे में क्या पता चलता है?
• उसे बिस्तर पर लेटे रहने के कारण ऊब हो गई थी।
• उसे अपनी बीमारी की कोई चिंता नहीं रह गई थी।
• वह बिस्तर पर आराम करने का आनंद ले रहा था।
• बीमारी के कारण उसकी पीठ में दर्द हो रहा था।
उत्तर देखें★ उसे बिस्तर पर लेटे रहने के कारण ऊब हो गई थी।
★ उसे अपनी बीमारी की कोई चिंता नहीं रह गई थी।
(4) “क्या ठाठ हैं बीमारों के भी!” बच्चे के मन में यह बात आई क्योंकि-
• बीमार व्यक्ति को बहुत आराम करने को मिलता है।
• बीमार व्यक्ति को अच्छे खाने का आनंद मिलता है।
• बीमार व्यक्ति को विद्यालय नहीं जाना पड़ता है।
• बीमार व्यक्ति अस्पताल में शांति से लेटा रहता है।
उत्तर देखें★ बीमार व्यक्ति को बहुत आराम करने को मिलता है।
★ बीमार व्यक्ति को अच्छे खाने का आनंद मिलता है।
★ बीमार व्यक्ति को विद्यालय नहीं जाना पड़ता है।
(ख) हो सकता है कि आपके समूह के साथियों ने अलग-अलग उत्तर चुने हों। अपने मित्रों के साथ चर्चा कीजिए कि आपने ये उत्तर ही क्यों चुने?
उत्तर देखेंहमारे समूह में जब इन प्रश्नों पर चर्चा हुई तो कुछ साथियों के उत्तर मुझसे अलग थे। मैंने उन्हें समझाया कि मैंने ये उत्तर क्यों चुने:
► पहले प्रश्न में मैंने कहा कि बच्चा इसलिए स्कूल नहीं गया क्योंकि उसका मन नहीं था और उसने गृहकार्य भी नहीं किया था। कहानी में साफ लिखा है कि वह सोच रहा था “स्कूल जाता तो जरूर सजा मिलती।” यही बात मेरे उत्तर को सही साबित करती है।
► दूसरे प्रश्न पर मैंने बताया कि बच्चे ने बीमारी का बहाना छोड़ने का निर्णय इसलिए लिया क्योंकि घर में रहने से ज़्यादा मज़ा स्कूल जाने में है और बीमारी का बहाना करने से उसे दिनभर भूखा और अकेला रहना पड़ा। कहानी में वह बार-बार दोस्तों के साथ खेलने और स्कूल जाने की इच्छा करता है।
► तीसरे प्रश्न के लिए मैंने कहा कि “लेटे-लेटे पीठ दुखने लगी” से यह पता चलता है कि वह ऊब चुका था और अब बीमारी की कोई चिंता नहीं रह गई थी। अगर वह सच में बीमार होता तो उसे खेल-कूद और खाने की चीज़ों की याद नहीं आती।
► चौथे प्रश्न के बारे में मैंने अपने साथियों को समझाया कि बच्चे ने यह बात इसलिए कही क्योंकि उसने देखा कि बीमारों को आराम मिलता है, स्वादिष्ट खाना मिलता है और स्कूल भी नहीं जाना पड़ता। यही कारण था कि उसने मन ही मन कहा – “क्या ठाठ हैं बीमारों के भी।”
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मिलकर करें मिलान
पाठ में से चुनकर कुछ शब्द नीचे दिए गए हैं। अपने समूह में इन पर चर्चा कीजिए और इन्हें इनके सही अर्थों से मिलाइए। इसके लिए आप शब्दकोश, इंटरनेट या अपने परिजनों और शिक्षकों की सहायता ले सकते हैं।
उत्तर:
पंक्तियों पर चर्चा
पाठ में से चुनकर कुछ पंक्तियाँ नीचे दी गई हैं। इन्हें ध्यान से पढ़िए और इन पर विचार कीजिए। आपको इनका क्या अर्थ समझ में आया? अपने विचार अपने समूह में साझा कीजिए और लिखिए—
(क) “मैंने सोचा बीमार पड़ने के लिए आज का दिन बिलकुल ठीक रहेगा। चलो बीमार पड़ जाते हैं।” इस पंक्ति का क्या अर्थ है?
उत्तर देखेंइस पंक्ति का अर्थ है कि बच्चे का स्कूल जाने का मन नहीं था क्योंकि उसने अपना गृहकार्य नहीं किया था। उसे डर था कि स्कूल जाने पर उसे सजा मिलेगी। इसलिए, उसने सजा से बचने के लिए बीमार पड़ने का नाटक करने का फैसला किया ताकि उसे स्कूल न जाना पड़े।
(ख) “देखो! उन्होंने एक बार भी आकर नहीं पूछा कि तू क्या खाएगा? पूछते तो मैं साबूदाने की खीर ही तो माँगता। कोई ताजमहल तो नहीं माँग लेता। लेकिन नहीं! भूखे रहो! इससे सारे विकार निकल जाएँगे। विकार निकल जाएँ बस। चाहे इस चक्कर में तुम खुद शिकार हो जाओ।”इस पंक्ति का क्या अर्थ है?
उत्तर देखेंइन पंक्तियों से बच्चे के मन का गुस्सा और निराशा पता चलती है। वह बीमारी का बहाना करके यह उम्मीद कर रहा था कि उसे सुधाकर काका की तरह स्वादिष्ट साबूदाने की खीर खाने को मिलेगी। लेकिन उसे खाने को कुछ नहीं मिला, बल्कि भूखा रहना पड़ा। उसे लग रहा था कि घर में कोई उसकी परवाह नहीं कर रहा है। वह मन ही मन सोच रहा था कि उसने कोई बहुत बड़ी चीज नहीं माँगी थी, फिर भी उसे भूखा रखा जा रहा है। उसे नानाजी की बात (“भूखे रहने से विकार निकल जाएँगे” पर भी गुस्सा आ रहा था।
कक्षा 7 हिंदी मल्हार अध्याय 5 के सोच-विचार पर आधारित प्रश्न
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सोच-विचार के लिए
पाठ को एक बार फिर ध्यान से पढ़िए, पता लगाइए और लिखिए—
(क) अस्पताल में बच्चे को कौन-कौन सी चीजें अच्छी लगीं और क्यों?
उत्तर देखेंअस्पताल में बच्चे को निम्नलिखित चीजें अच्छी लगीं:
1. साफ-सफाई: चमकता हुआ फर्श, सफेद दीवारें, और पलंग पर एक जैसी सफेद चादरें उसे बहुत अच्छी लगीं।
2. शांत वातावरण: वहाँ ट्रैफिक का शोर, धूल, या मच्छर-मक्खी कुछ नहीं था। सिर्फ लोगों की धीमी-धीमी बातें करने की आवाज थी, जो उसे अच्छी लग रही थी।
3. खुलापन और हरियाली: बड़ी-बड़ी खिड़कियों से बाहर झूमते हुए हरे-भरे पेड़ भी उसे बहुत पसंद आए।
(ख) कहानी के अंत में बच्चे को महसूस हुआ कि उसे स्कूल जाना चाहिए था। क्या आपको लगता है कि उसका निर्णय सही था? क्यों?
उत्तर देखेंहाँ, बच्चे का यह महसूस करना बिल्कुल सही था। घर पर बीमारी का बहाना बनाकर लेटे-लेटे वह बहुत ऊब गया था, उसकी पीठ भी दुखने लगी थी और उसे बहुत तेज भूख भी लग रही थी। उसे अपने दोस्तों के साथ रिसेस में अमरूद खाना याद आ रहा था।उसे समझ आ गया था कि स्कूल न जाने से बेहतर तो थोड़ी देर की सजा मिलना ही था। इसलिए, उसका निर्णय सही था क्योंकि स्कूल में पढ़ाई के साथ-साथ दोस्तों का साथ और मस्ती भी होती है, जो घर पर अकेले लेटे रहने से कहीं बेहतर है।
(ग) जब बच्चा बीमार पड़ने का बहाना बनाकर बिस्तर पर लेटा रहा तो उसके मन में कौन-कौन से भाव आ रहे थे?
उत्तर देखेंजब बच्चा बीमार होने का बहाना बनाकर लेटा था, तो उसके मन में कई तरह के भाव आ रहे थे, जैसे:
ऊब: एक ही जगह लेटे-लेटे वह बहुत ऊब गया था।
भूख: उसे बहुत तेज भूख लग रही थी और मनपसंद खाने की चीजें याद आ रही थीं।
गुस्सा और जलन: जब उसने मुन्नू को आम खाते देखा तो उसे बहुत गुस्सा और जलन हुई।
पछतावा: उसे अपने बहाना बनाने के निर्णय पर पछतावा हो रहा था और वह सोच रहा था कि इससे अच्छा तो स्कूल चला जाता।
चिंता: उसे गृहकार्य की भी चिंता हो रही थी कि अब वह किसकी कॉपी से काम पूरा करेगा।
(घ) कहानी में बच्चे ने सोचा था कि “ठाठ से साफ-सुथरे बिस्तर पर लेटे रहो और साबूदाने की खीर खाते रहो।” आपको क्या लगता है, असल में बीमार हो जाने और इस बच्चे की सोच में कौन-कौन सी समानताएँ और अंतर होंगे?
उत्तर देखेंसमानताएँ: बच्चे की सोच और असल बीमारी में यह समानता हो सकती है कि दोनों ही स्थितियों में व्यक्ति को बिस्तर पर आराम करना पड़ता है और वह स्कूल या काम पर नहीं जा पाता।
अंतर: बच्चा सोचता था कि बीमार होने पर मनपसंद खाना (साबूदाने की खीर) मिलता है और बड़े ठाठ होते हैं।
असलियत: असल में बीमार होने पर शरीर में दर्द, कमजोरी और बेचैनी होती है। कई बार कड़वी दवाइयाँ खानी पड़ती हैं और खाने का मन भी नहीं करता या फिर केवल परहेज वाला खाना (जैसे दलिया, खिचड़ी) ही खा सकते हैं। बीमारी में ठाठ नहीं, बल्कि तकलीफ होती है।
(ङ) नानीजी और नानाजी ने बच्चे को बीमारी की दवा दी और उसे आराम करने को कहा। बच्चे को खाना नहीं दिया गया। क्या आपको लगता है कि उन्होंने सही किया? आपको ऐसा क्यों लगता है?
उत्तर देखेंहाँ, मेरे विचार से नानाजी और नानीजी ने जो किया, वह काफी हद तक सही था। उन्हें शायद लगा कि बच्चे का पेट खराब है या तबीयत ठीक नहीं है। अक्सर पेट की गड़बड़ी में या बुखार में भूखे रहने या हल्का भोजन करने की सलाह दी जाती है, जैसा कि नानाजी ने कहा कि भूखे रहने से शरीर के विकार निकल जाते हैं। उन्होंने उसे कड़वी पुड़िया और काढ़ा भी दिया, जो यह दिखाता है कि वे उसकी सेहत की चिंता कर रहे थे।
अनुमान और कल्पना से
(क) कहानी के अंत में बच्चा नानाजी और नानीजी को सब कुछ सच-सच बताने का निर्णय कर लेता तो कहानी में आगे क्या होता?
उत्तर देखेंयदि कहानी के अंत में बच्चा सच-सच बता देता, तो शायद पहले तो नानाजी और नानीजी उसे थोड़ा डाँटते, लेकिन फिर उसकी सच्चाई की तारीफ भी करते। उसका दिन पूरी तरह बदल जाता। उसे कड़वी पुड़िया और काढ़ा नहीं पीना पड़ता। शायद नानीजी उसे डाँटने के बाद प्यार से उसका मनपसंद खाना, जैसे दाल-चावल या फिर साबूदाने की खीर ही बनाकर खिला देतीं। उसे दिनभर ऊब और भूख में बिस्तर पर नहीं पड़े रहना पड़ता। वह आँगन में दूसरे बच्चों के साथ खेल पाता और उसका दिन बोरियत में नहीं, बल्कि मस्ती में बीतता।
(ख) कहानी में बच्चे की नानीजी के स्थान पर आप हैं। आप सारे नाटक को समझ गए हैं लेकिन चाहते हैं कि बच्चा सारी बात आपको स्वयं बता दे। अब आप क्या करेंगे?
उत्तर देखेंअगर मैं नानीजी की जगह होती और समझ जाती कि बच्चा नाटक कर रहा है, तो मैं उसे सच उगलवाने के लिए एक मनोरंजक योजना बनाती। मैं रसोई में जाकर बच्चे के मनपसंद भोजन, जैसे गरमागरम कचौड़ी या हलवा बनाने की बात जोर-जोर से करती। फिर मैं उसके पास जाकर कहती, “अरे वाह! आज तो मैंने तुम्हारी पसंदीदा चीज बनाई है, पर तुम तो बीमार हो। बीमार लोग यह सब नहीं खा सकते। तुम्हारे लिए तो बस यह फीकी खिचड़ी है।” ऐसा सुनकर और खाने की खुशबू से उसका मन ललचा जाता और वह खुद ही मान लेता कि वह बीमार नहीं है और उसे भी वह खाना खाना है।
(ग) कहानी में बच्चे के स्थान पर आप हैं और घर में अकेले हैं। अब आप ऊबने से बचने के लिए क्या-क्या करेंगे?
उत्तर देखेंअगर मैं बच्चे की जगह घर में अकेला होता और ऊब रहा होता तो मैं ये काम करता:
1. कोई मनोरंजक कहानी की किताब पढ़ता।
2. कॉपी में चित्रकारी करता या कुछ लिखने की कोशिश करता।
3. अपने खिलौनों से चुपचाप खेलता।
4. खिड़की के पास बैठकर बाहर गली की चहल-पहल देखता।
(घ) कहानी के अंत में बच्चे को लगा कि उसे स्कूल जाना चाहिए था। कल्पना कीजिए, अगर वह स्कूल जाता तो उसका दिन कैसा होता?
उत्तर देखेंअगर बच्चा बहाना न बनाकर स्कूल जाता, तो उसका दिन बहुत अच्छा बीतता। वह कक्षा में दोस्तों से मिलता, पढ़ाई करता। आधी छुट्टी (रिसेस) में वह दोस्तों के साथ बाहर ठेले पर नमक-मिर्च लगे अमरूद खाता । वह उनके साथ खेलता और बातें करता। शाम को जब वह घर लौटता तो थका होता पर खुश होता। अगले दिन वह किसी दोस्त से कॉपी माँगकर अपना अधूरा गृहकार्य भी पूरा कर लेता।
(ङ) अगर आप नानीजी या नानाजी की जगह होते तो क्या-क्या करते?
उत्तर देखेंअगर मैं नानाजी या नानीजी की जगह होता, तो मैं बच्चे से और प्यार से बात करके जानने की कोशिश करता कि उसे सच में क्या हुआ है। अगर मुझे शक होता कि वह बहाना बना रहा है, तो भी मैं उसे दिन भर भूखा नहीं रखता। मैं उसे दवाई के साथ कुछ हल्का और स्वास्थ्यवर्धक भोजन, जैसे दलिया या खिचड़ी खाने को देता और उसे समझाता कि बहाने बनाना अच्छी बात नहीं है।
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कहानी की रचना
“अस्पताल का माहौल मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा था। बड़ी-बड़ी खिड़कियों के पास हरे-हरे पेड़ झूम रहे थे। न ट्रैफिक का शोरगुल, न धूल, न मच्छर-मक्खी…। सिर्फ लोगों के धीरे-धीरे बातचीत करने की धीमी-धीमी गुनगुन। बाकी एकदम शांति।”
इन पंक्तियों पर ध्यान दीजिए। इन पंक्तियों में ऐसा लग रहा है मानो हमारी आँखों के सामने अस्पताल का चित्र-सा बन गया हो। लेखन में इसे ‘चित्रात्मक भाषा’ कहते हैं। अनेक लेखक अपनी रचना को रोचक और सरस बनाने के लिए उपयुक्त स्थानों पर अनेक वस्तुओं, कार्य, स्थानों आदि का विस्तार से वर्णन करते हैं।
लेखक ने इस कहानी को सरस और रोचक बनाने के लिए और भी अनेक तरीकों का उपयोग किया है। उदाहरण के लिए, उन्होंने कहानी में ‘बच्चे द्वारा कल्पना करने’ का भी प्रयोग किया है (जब बच्चा अकेले लेटे-लेटे घर और बाहर के लोगों के बारे में सोच रहा है)। इस कहानी में ऐसी कई विशेषताएँ छिपी हैं।
(क) इस पाठ को एक बार फिर से पढ़िए और अपने समूह में मिलकर इस पाठ की अन्य विशेषताओं की सूची बनाइए अपने समूह की सूची को कक्षा में सबसे साथ साझा कीजिए।
उत्तर देखेंइस पाठ की अन्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
1. बाल मनोविज्ञान का सुंदर चित्रण: लेखक ने एक बच्चे के मन के विचारों, उसकी कल्पनाओं, लालच और पछतावे को बहुत ही सजीव ढंग से प्रस्तुत किया है।
2. सरल और प्रवाहमयी भाषा: कहानी की भाषा बहुत सरल है, जिसे बच्चे आसानी से समझ सकते हैं।
3. चित्रात्मक वर्णन: लेखक ने अस्पताल और खाने की चीजों का ऐसा वर्णन किया है कि आँखों के सामने चित्र बन जाता है।
4. रोचकता और हास्य: कहानी में बच्चे की सोच और उसके साथ जो होता है, वह बहुत ही रोचक और मजेदार है, जिससे पढ़ने वाले के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।
5. नैतिक शिक्षा: कहानी के अंत में बच्चे को अपनी गलती का एहसास होता है, जिससे यह शिक्षा मिलती है कि झूठ और बहानेबाजी का परिणाम अच्छा नहीं होता।
(ख) कहानी में से निम्नलिखित के लिए उदाहरण खोजकर लिखिए —
उत्तर:
कक्षा 7 हिंदी मल्हार अध्याय 5 की समस्याओं के समाधान
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समस्या और समाधान
कहानी को एक बार पुन: पढ़कर पता लगाइए—
(क) बच्चे के सामने क्या समस्या थी? उसने उस समस्या का क्या समाधान निकाला?
उत्तर देखेंसमस्या: बच्चे के सामने समस्या यह थी कि उसने स्कूल का गृहकार्य नहीं किया था और उसे स्कूल जाने पर सजा मिलने का डर था।
समाधान: उसने इस समस्या का समाधान बीमार पड़ने का बहाना बनाकर निकाला ताकि उसे स्कूल न जाना पड़े।
(ख) नानीजी-नानाजी के सामने क्या समस्या थी? उन्होंने उस समस्या का क्या समाधान निकाला?
उत्तर देखेंसमस्या: नानीजी-नानाजी के सामने समस्या यह थी कि बच्चा खुद को बीमार बता रहा था और स्कूल नहीं जा रहा था। अब उसके खाने और दवा पर ध्यान देना पड़ेगा।
समाधान: उन्होंने इसका समाधान यह निकाला कि उसे कड़वी पुड़िया और काढ़ा पिलाया और उसे दिन भर भूखा रखकर आराम करने को कहा, क्योंकि वे मानते थे कि भूखे रहने से शरीर के विकार निकल जाते हैं।
शब्द से जुड़े शब्द
नीचे दिए गए स्थानों में ‘बीमार’ से जुड़े शब्द पाठ में से चुनकर लिखिए—
उत्तर:
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खोजबीन
कहानी में से वे वाक्य ढूँढ़कर लिखिए जिनसे पता चलता है कि—
(क) कहानी में सर्दी के मौसम की घटनाएँ बताई गई हैं।
उत्तर देखें“मैं रजाई से निकला ही नहीं।” (रजाई का उपयोग खांसतौर पर सर्दियों में किया जाता है।)
(ख) बच्चे को बहाना बनाने के परिणाम का आभास हो गया।
उत्तर देखें“क्या मुसीबत है! पड़े रहो! आखिर कब तक कोई पड़ा रह सकता है? इससे तो स्कूल चला जाता तो ही ठीक रहता।”
(ग) बच्चे को खाना-पीना बहुत प्रिय है।
उत्तर देखें“गरमागरम खस्ता कचौड़ी… मावे की बर्फी… बेसन की चिक्की… गोलगप्पे। और सबसे ऊपर साबूदाने की खीर!”
(घ) बच्चे को स्कूल जाना अच्छा लगता है।
उत्तर देखें“कितना मजा आता जब रिसेस में ठेले पर जाकर नमक मिर्च लगे अमरूद खाते कटर-कटर।” (यह वाक्य बताता है कि वह स्कूल की मस्ती को याद कर रहा है।)
शीर्षक
(क) आपने जो कहानी पढ़ी है, इसका नाम ‘नहीं होना बीमार’ है। अपने समूह में चर्चा करके लिखिए कि इस कहानी का यह नाम उपयुक्त है या नहीं। अपने उत्तर के कारण भी बताइए।
उत्तर देखेंहाँ, इस कहानी का नाम ‘नहीं होना बीमार’ बिल्कुल उपयुक्त है। बच्चा बीमार होने के ठाठ के बारे में सोचकर बहाना बनाता है, लेकिन जब उसे दिनभर भूखा और बोर होकर पड़े रहना पड़ता है, तो उसे एहसास होता है कि बीमार होना कोई अच्छी बात नहीं है। कहानी का अंत भी इसी सीख पर होता है कि उसने फिर कभी बीमार होने का बहाना नहीं बनाया । यह शीर्षक कहानी के केंद्रीय संदेश को सटीक रूप से दर्शाता है।
(ख) यदि आपको इस कहानी को कोई अन्य नाम देना हो तो क्या नाम देंगे? आपने यह नाम क्यों सोचा?
उत्तर देखेंयदि मुझे इस कहानी को कोई और नाम देना होता तो मैं इसे “बहानेबाजी का फल” या “एक दिन का बीमार” नाम देता।
“बहानेबाजी का फल” इसलिए क्योंकि कहानी यह दिखाती है कि बहाना बनाने का नतीजा बच्चे के लिए कितना बुरा रहा। उसे जो फल (परिणाम) मिला, वह बहुत कड़वा था।
“एक दिन का बीमार” इसलिए क्योंकि कहानी बच्चे के एक दिन के लिए बीमार बनने के नाटक और उसके अनुभव पर ही केंद्रित है।
अभिनय
कहानी में से चुनकर कुछ संवाद नीचे दिए गए हैं। आपको इन्हें अभिनय के साथ बोलकर दिखाना है। प्रत्येक समूह से बारी-बारी से छात्र/छात्राएँ कक्षा में सामने आएँगे और एक संवाद अभिनय के साथ बोलकर दिखाएँगे—
1. “बुखार आ गया।” मैंने कराहते हुए कहा।
2. “आपको पता नहीं चल रहा। थमार्मीटर लगाकर देखिए।” मैंने कहा।
3. “मेरे सिर में दर्द हो रहा है। पेट भी दुख रहा है और मुझे बुखार भी है।”
4. नानाजी आए। बोले, “अब कैसा है सिरदर्द?”
5. फिर नानाजी बोले, “आज इसे कुछ खाने को मत देना। आराम करने दो। शाम को देखेंगे।”
उत्तर देखेंविद्यार्थी स्वयं करें।
चेहरों पर मुस्कान, मुँह में पानी
(क) इस कहानी में अनेक रोचक घटनाएँ हैं जिन्हें पढ़कर चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। इस कहानी में किन बातों को पढ़कर आपके चेहरे पर भी मुस्कान आ गई थी? उन्हें रेखांकित किजिए।
उत्तर देखेंइस कहानी में कई मज़ेदार बातें हैं जिन्हें पढ़कर मेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गई। सबसे पहले तो तब हंसी आई जब बच्चे ने सोचा कि “क्या ठाठ हैं बीमारों के भी!” और वह मन ही मन चाहता था कि काश! वह भी बीमार हो जाए ताकि साबूदाने की खीर खा सके और स्कूल से छुट्टी मिल जाए।
फिर मुस्कान तब आई जब वह बीमारी का नाटक कर रहा था और नानाजी ने उसकी नब्ज़ देखकर कहा – “बुखार तो नहीं है।” बच्चे ने तुरन्त कहा – “आपको पता नहीं चल रहा, थर्मामीटर लगाकर देखिए।” यह पढ़कर मुझे बहुत मज़ेदार लगा, क्योंकि वह झूठ को सच बनाने के लिए चालाकी कर रहा था।
सबसे ज़्यादा हंसी तो तब आई जब घर में सब लोग दाल-चावल और आम खा रहे थे और बच्चा भूखा होकर सिर्फ खुशबू सूंघ रहा था और गुस्से में बिस्तर पर जाकर पाँव पटक रहा था। उसकी हालत देखकर मुस्कुराना ही पड़ता है।
(ख) इस कहानी में किन वाक्यों को पढ़कर आपके मुँह में पानी आ गया था? उन्हें रेखांकित किजिए।
उत्तर देखेंइस कहानी में कई वाक्य ऐसे थे जिन्हें पढ़कर मेरे मुँह में पानी आ गया। जैसे जब लेखक ने लिखा –
“अरहर की दाल में हींग-जीरे का बघार और ऊपर से बारीक कटा हरा धनिया और आधा चम्मच देसी घी। फिर उसमें उन्होंने नीबू निचोड़ा होगा।” यह पढ़ते ही मुझे गरमागरम दाल-चावल खाने का मन करने लगा।
इसी तरह जब बच्चे ने सोचा – “गरमागरम खस्ता कचौड़ी, मावे की बर्फी, बेसन की चिक्की, गोलगप्पे और सबसे ऊपर साबूदाने की खीर।” यह पढ़कर भी मेरे मुँह में पानी भर आया।
और सबसे मज़ेदार तो तब लगा जब उसने देखा कि मुन्नू आम चूस रहा है और पूरी गुठली मुँह में ठूँसकर रस चूस रहा है। यह दृश्य पढ़कर मुझे भी पके आम खाने की इच्छा हो गई।
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लेखन के अनोखे तरीके
मैं बिना आवाज किए दरवाजे तक गया और ऐसे झाँककर देखने लगा जिससे किसी को पता न चले कि मैं बिस्तर से उठ गया हूँ।
इस बात को कहानी में इस प्रकार विशेष रूप से लिखा गया है—
“दबे पाँव दरवाजे तक गया और चुपके से झाँककर देखा।”
इस कहानी में अनेक स्थानों पर वाक्यों को विशेष ढंग से लिखा गया है। साधारण बातों को कुछ अलग तरह से लिखने से लेखन की सुंदरता बढ़ सकती है।
नीचे कुछ वाक्य दिए गए हैं। कहानी में ढूँढ़िए कि इन बातों को कैसे लिखा गया है—
1. ऐसा लगा मानो हमें देखकर सुधाकर काका खुश हो गए।
उत्तर देखेंसाधारण वाक्य: ऐसा लगा मानो हमें देखकर सुधाकर काका खुश हो गए।
कहानी में: “हमें देखकर सुधाकर काका जैसे खुश हो गए।”
2. खिड़कियाँ बहुत बड़ी थीं और उनके बाहर हरे पेड़ हवा से हिल रहे थे।
उत्तर देखेंसाधारण वाक्य: खिड़कियाँ बहुत बड़ी थीं और उनके बाहर हरे पेड़ हवा से हिल रहे थे।
कहानी में: “बड़ी-बड़ी खिड़कियों के पास हरे-हरे पेड़ झूम रहे थे।”
3. वहाँ केवल लोगों के फुसफुसाने की आवाजें आ रही थीं।
उत्तर देखेंसाधारण वाक्य: वहाँ केवल लोगों के फुसफुसाने की आवाजें आ रही थीं।
कहानी में: “सिर्फ लोगों के धीरे-धीरे बातचीत करने की धीमी-धीमी गुनगुन।”
4. फुसफुसाने की आवाजों के सिवा वहाँ कोई आवाज नहीं थी।
उत्तर देखेंसाधारण वाक्य: फुसफुसाने की आवाजों के सिवा वहाँ कोई आवाज नहीं थी।
कहानी में: “बाकी एकदम शांति।”
5. बीमार लोगों के बहुत मजे होते हैं।
उत्तर देखेंसाधारण वाक्य: बीमार लोगों के बहुत मजे होते हैं।
कहानी में: “क्या ठाठ हैं बीमारों के भी!”
6. मैं झूठमूठ बीमार पड़ जाता हूँ।
उत्तर देखेंसाधारण वाक्य: मैं झूठमूठ बीमार पड़ जाता हूँ।
कहानी में: “चलो बीमार पड़ जाते हैं।”
विराम चिह्न
“देखें!” नानाजी ने रजाई हटाकर मेरा माथा छुआ। पेट देखा और नब्ज देखने लगे।
इस बीच नानीजी भी आ गई। “क्या हुआ?”, नानीजी ने पूछा।
पिछले पृष्ठ पर दिए गए वाक्यों को ध्यान से देखिए। इन वाक्यों में आपको कुछ शब्दों से पहले या बाद में कुछ चिन्ह दिखाई दे रहे हैं। इन्हें विराम चिह्न कहते हैं। अपने समूह के साथ मिलकर नीचे दिए गए विराम चिह्न को कहानी में ढूँढिए। ध्यानपूवर्क देखकर समिझए कि इनका प्रयोग वाक्यों में कहाँ-कहाँ किया जाता है। आपने जो पता किया, उसे नीचे लिखिए—
उत्तर:
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कैसी होगी गली
“मुझे बड़ी तेज इच्छा हुई कि इसी समय बाहर निकलकर दिन की रोशनी में अपनी गली की चहल-पहल देखूँ”
आपने कहानी में बच्चे के घर के साथ वाली गली के बारे में बहुत-सी बातें पढ़ी हैं। उन बातों और अपनी
कल्पना के आधार पर उस गली का एक चित्र बनाइए।
उत्तर:
कल्पना के आधार पर उस गली का चित्र:
आपकी बात
(क) बच्चे ने अस्पताल के वातावरण का विस्तार से सुंदर वर्णन किया है। इसी प्रकार आप अपनी कक्षा का वर्णन कीजिए।
उत्तर देखेंहमारी कक्षा बहुत ही सुंदर और सजी हुई है। कक्षा का कमरा बड़ा और खुला है। सामने की दीवार पर एक बड़ी सी ब्लैकबोर्ड लगी है जिस पर अध्यापक जी सफेद चॉक से लिखते हैं। ब्लैकबोर्ड के पास ही नोटिस बोर्ड है जिस पर हम बच्चों की बनाई हुई चित्रकला और गतिविधियों की कापियाँ लगी रहती हैं।
कक्षा में बड़ी-बड़ी खिड़कियाँ हैं जिनसे धूप और ताज़ी हवा आती है। खिड़कियों पर हल्के हरे रंग के परदे हैं। हमारी डेस्क और बेंच कतार में साफ-सुथरी रखी गई हैं। हर डेस्क पर बच्चे अपनी किताबें, कॉपी और पेनकिल रखकर ध्यान से पढ़ते हैं।
कक्षा की दीवारों पर शिक्षाप्रद चार्ट और पोस्टर लगे हैं – जैसे राष्ट्रीय नेता, वैज्ञानिक, गणित के सूत्र, हिंदी और अंग्रेज़ी की कहावतें तथा पर्यावरण से जुड़ी बातें। पीछे की दीवार पर एक किताबों की अलमारी भी है जिसमें हमारी अतिरिक्त किताबें और कहानी की पुस्तकें रखी हैं।
कक्षा में आगे की ओर अध्यापक जी की टेबल और कुर्सी है जिस पर वे अपनी पुस्तकें और रजिस्टर रखते हैं। कभी-कभी वे हमारी कॉपियाँ जांचते हुए हमें समझाते भी हैं।
कक्षा का वातावरण हमेशा अनुशासित और पढ़ाई वाला रहता है। लेकिन बीच-बीच में जब हम सब हँसी-मज़ाक करते हैं या अपने विचार साझा करते हैं, तो कक्षा एकदम जीवंत और आनंदमय हो जाती है।
इस तरह हमारी कक्षा साफ-सुथरी, ज्ञानवर्धक और रोचक है। यहाँ पढ़ाई करते हुए हमें गर्व और प्रसन्नता दोनों का अनुभव होता है।
(ख) कहानी में बच्चे को घर में अकेले दिन भर लेटे रहना पड़ा था। क्या आप कभी कहीं अकेले रहे हैं? उस समय आपको कैसा लग रहा था? आपने क्या-क्या किया था?
उत्तर देखेंहाँ, मैं एक बार अकेला घर पर रह गया था। उस दिन पापा–मम्मी दोनों किसी काम से बाहर गए थे और भाई भी दोस्तों के साथ खेलने चला गया था। शुरू में मुझे मज़ा आया कि अब मैं टीवी देखूँगा और अपनी पसंद की कॉमिक्स पढ़ूँगा। थोड़ी देर तक मैंने कार्टून देखा, फिर कहानी की किताबें पढ़ीं।
लेकिन कुछ समय बाद मुझे अकेलापन महसूस होने लगा। घर बहुत शांत लग रहा था। बाहर बच्चों की खेलते हुए आवाज़ सुनाई दी तो मेरा भी मन खेलने को करने लगा। मुझे थोड़ा डर भी लगने लगा कि अगर अचानक बिजली चली जाए या कोई अजीब आवाज़ आए तो क्या होगा।
फिर मैंने अपने समय को अच्छा बनाने के लिए चित्रकारी की और कॉपी में पेंसिल से ड्रॉइंग बनाने लगा। धीरे-धीरे समय निकल गया और जब सब वापस घर आए तो मुझे बहुत अच्छा लगा।
उस दिन मुझे समझ आया कि अकेले रहना कभी-कभी अच्छा होता है, लेकिन पूरे दिन अकेले रहना उबाऊ और थोड़ा डरावना भी लग सकता है।
(ग) कहानी में आम खाने वाले मुन्नू को देखकर बच्चे को ईर्ष्या हुई थी। क्या आपको कभी किसी से या किसी को आपसे ईर्ष्या हुई है? आपने तब क्या किया था ताकि यह भावना दूर हो जाए?
उत्तर देखेंहाँ, मुझे भी कभी–कभी ईर्ष्या हुई है। एक बार मेरी कक्षा में मेरे दोस्त को परीक्षा में पूरे अंक मिले और उसे सबने बहुत सराहा। मुझे थोड़े कम अंक मिले थे, तो उस समय मुझे उससे ईर्ष्या हुई। मुझे लगा कि काश! मुझे भी उतनी ही तारीफ़ मिलती।
लेकिन बाद में मैंने सोचा कि ईर्ष्या करने से कुछ फायदा नहीं है। मैंने उससे जाकर पूछा कि वह कैसे पढ़ाई करता है। उसने मुझे अपने तरीके बताए। तब मैंने तय किया कि मैं भी नियमित अभ्यास करूँगा और मेहनत करूँगा।
इसी तरह एक बार मेरे पास नया खेल था तो मेरे एक दोस्त को मुझसे ईर्ष्या हुई। मैंने उससे छुपाने के बजाय उसे अपने घर बुलाया और दोनों ने मिलकर खेला। तब वह खुशी-खुशी हँसने लगा और हमारी दोस्ती और गहरी हो गई।
इस तरह मैंने समझा कि ईर्ष्या की भावना को दूर करने का सबसे अच्छा तरीका है – मेहनत करना, एक-दूसरे से सीखना और अपनी चीज़ें बाँट लेना।
(घ) कहानी में नानाजी-नानीजी बच्चे का पूरा ध्यान रखने का प्रयास करते हैं। आपके घर और विद्यालय में आपका ध्यान कौन-कौन रखते हैं? कैसे?
उत्तर देखेंमेरे घर और विद्यालय में मेरा ध्यान बहुत लोग रखते हैं।
► घर पर
मम्मी मेरा खाना समय पर देती हैं, यह देखती हैं कि मैं साफ-सुथरा रहूँ और पढ़ाई भी करूँ।
पापा मेरी पढ़ाई और खेल-कूद में मदद करते हैं और जब मुझे कोई कठिन सवाल आता है तो समझाते हैं।
दादी मुझे रोज़ अच्छी कहानियाँ सुनाती हैं और दवा-दारू का ध्यान रखती हैं।
► विद्यालय में
हमारे अध्यापक जी हमें अच्छे से पढ़ाते हैं और अगर हम कुछ नहीं समझते तो बार-बार समझाते हैं।
कक्षा अध्यापिका हमारा अनुशासन और व्यवहार देखती हैं और हमें प्रोत्साहित करती हैं।
खेल शिक्षक हमें खेलों में भाग लेने के लिए प्रेरित करते हैं और स्वास्थ्य का ध्यान रखने की सलाह देते हैं।
इस तरह घर और विद्यालय – दोनों जगह मेरा ध्यान रखा जाता है ताकि मैं स्वस्थ रहूँ, अच्छा पढ़ूँ और अच्छा इंसान बन सकूँ।
(ङ) आप अपने परिजनों और मित्रों का ध्यान कैसे रखते हैं? क्या-क्या करते हैं या क्या-क्या नहीं करते हैं ताकि उन्हें कम-से-कम परेशानी हो?
उत्तर देखेंमैं अपने परिजनों और मित्रों का ध्यान रखने की पूरी कोशिश करता हूँ। घर पर मैं यह ध्यान रखता हूँ कि मम्मी-पापा को ज़्यादा परेशानी न हो। इसलिए मैं अपना स्कूल बैग खुद तैयार करता हूँ, समय पर पढ़ाई करता हूँ और अपना कमरा साफ-सुथरा रखता हूँ। जब मम्मी थक जाती हैं तो मैं छोटे-मोटे कामों में उनकी मदद करता हूँ, जैसे पानी लाना, सामान लाकर देना या छोटे भाई को पढ़ाना।
अपने दोस्तों का ध्यान रखने के लिए मैं यह कोशिश करता हूँ कि उनसे हमेशा अच्छे से बात करूँ, उनकी मदद करूँ और उनका मज़ाक न उड़ाऊँ। अगर किसी दोस्त के पास कॉपी या पेन नहीं होता तो मैं अपना बाँट देता हूँ। मैं यह भी ध्यान रखता हूँ कि किसी को चोट न लगे, इसलिए खेलते समय धक्का-मुक्की से बचता हूँ।
मैं यह भी कोशिश करता हूँ कि मेरी किसी हरकत से दूसरों को तकलीफ़ न हो। जैसे ऊँची आवाज़ में टीवी न चलाना, झूठ न बोलना और किसी की चीज़ बिना पूछे न लेना।
इस तरह मैं अपने परिवार और मित्रों का ध्यान रखने के लिए छोटे-छोटे काम करता हूँ ताकि उन्हें कम-से-कम परेशानी हो और सब खुश रहें।
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बहाने
(क) कहानी में बच्चे ने बीमारी का बहाना बनाया ताकि उसे स्कूल न जाना पड़े। क्या आपने कभी किसी कारण से बहाना बनाया है? यदि हाँ, तो उसके बारे में बताइए। उस समय आपके मन में कौन-कौन से भाव आ-जा रहे थे? आप कैसा अनुभव कर रहे थे?
उत्तर देखेंहाँ, मैंने भी एक बार स्कूल न जाने के लिए सिरदर्द का बहाना बनाया था। उस समय मुझे डर था कि अगर सच बता दूँगा तो डाँट पड़ेगी। मन में डर और झिझक दोनों ही भाव आ-जा रहे थे। जब मेरा बहाना मान लिया गया तो थोड़ी राहत मिली, लेकिन भीतर ही भीतर अपराधबोध भी था। मुझे लगा कि यह सही नहीं था और सच बोलना ही सबसे अच्छा होता है। इस अनुभव से मुझे सीख भी मिली।
(ख) आमतौर पर बनाए जाने वाले बहानों की एक सूची बनाइए।
उत्तर देखेंआमतौर पर लोग अलग-अलग परिस्थितियों में बहाने बनाते हैं। नीचे कुछ सामान्य बहानों की सूची दी गई है –
• बीमारी का बहाना – सिरदर्द, बुखार, खाँसी-जुकाम आदि।
• होमवर्क/किताब खो जाने का बहाना।
• समय पर न पहुँच पाने का बहाना – ट्रैफिक, बस लेट होना, साइकल खराब होना।
• काम ज़्यादा होने का बहाना।
• भूल जाने का बहाना – कोई बात या काम याद न रहना।
• बिजली चली जाने का बहाना – पढ़ाई/काम पूरा न करने के लिए।
• जरूरी मेहमान आने का बहाना।
• परिवार में किसी का स्वास्थ्य खराब होना।
(ग) बहाने क्यों बनाने पड़ते हैं? बहाने न बनाने पड़ें, इसके लिए हम क्या-क्या कर सकते हैं?
उत्तर देखेंबहाने तब बनाने पड़ते हैं जब हम कोई काम समय पर पूरा नहीं कर पाते या अपनी जिम्मेदारी से बचना चाहते हैं। कई बार डर, आलस्य, आत्मविश्वास की कमी या सज़ा से बचने की इच्छा भी बहाने बनाने का कारण बनती है।
बहाने न बनाने पड़ें, इसके लिए हमें—
• अपनी जिम्मेदारियों को समय पर पूरा करना चाहिए।
• काम को टालने की आदत छोड़नी चाहिए।
• ईमानदारी से सच बोलने का साहस रखना चाहिए।
• समय का सही उपयोग और अनुशासन अपनाना चाहिए।
अनुमान
“मैं रजाई में पड़ा-पड़ा घर में चल रही गतिविधियों का अनुमान लगाता रहा।”
कहानी में बच्चे ने अनेक प्रकार के अनुमान लगाए हैं। क्या आपने कभी किसी अनदेखे व्यक्ति/वस्तु/पशु-पक्षी/स्थान आदि के विषय में अनुमान लगाए हैं? किसके बारे में? क्या? कब? विस्तार से बताइए।
उत्तर देखेंहाँ, मैंने भी कई बार किसी अनदेखी वस्तु या स्थान के बारे में अनुमान लगाया है। एक बार हमारे शिक्षक ने ताजमहल के बारे में बहुत रोचक ढंग से बताया। तब तक मैंने उसे देखा नहीं था, पर मन में कल्पना की कि वह एक बहुत बड़ा, चमकदार और अद्भुत महल होगा, जिसकी दीवारें चाँदनी में चमकती होंगी। मैंने सोचा वहाँ पहुँचते ही शांति और सौंदर्य का अनोखा अनुभव होगा। बाद में जब सचमुच ताजमहल देखने गया तो मेरी कल्पनाएँ लगभग सच निकलीं। इस अनुभव से समझा कि अनुमान लगाना हमारी कल्पनाशक्ति को बढ़ाता है और देखने की उत्सुकता जगाता है।
घर का सामान
“बहुत ढूँढ़ा गया पर थर्मामीटर मिला ही नहीं। शायद कोई माँगकर ले गया था।”
कहानी में बच्चे के घर पर थर्मामीटर (तापमापी) खोजने पर वह नहीं मिलता। आमतौर पर हमारे घरों में कोई न कोई ऐसी वस्तु होती है जिसे खोजने पर भी वह नहीं मिलती, जिसे कोई माँगकर ले जाता है या हम किसी से माँगकर ले आते हैं। अपने घर को ध्यान में रखते हुए ऐसी वस्तुओं की सूची बनाइए —
उत्तर:
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खान-पान और आप
(क) कहानी में सुधाकर काका को बीमार होने पर साबूदाने की खीर दी गई थी। आपके घर में किसी के बीमार होने पर उसे क्या-क्या खिलाया जाता है?
उत्तर देखेंहमारे घर में जब कोई बीमार होता है तो उसे हल्का और सुपाच्य भोजन दिया जाता है। सामान्यतः दलिया, खिचड़ी, मूँग की दाल, दही-चावल या सूजी का हलवा खिलाया जाता है। कभी-कभी नारियल पानी, फल या सूप भी दिए जाते हैं ताकि रोगी को ताकत मिले और पाचन पर अतिरिक्त दबाव न पड़े।
(ख) कहानी में बच्चे को बहुत-सी चीजें खाने का मन है। आपका क्या-क्या खाने का बहुत मन करता है?
उत्तर देखेंमुझे भी तरह-तरह के स्वादिष्ट भोजन खाने का बहुत मन करता है। खासकर घर पर बनी पूड़ी-सब्ज़ी, कचौड़ी, पकौड़े, जलेबी और चाट जैसी चीज़ें मुझे बहुत पसंद हैं। इसके अलावा पिज़्ज़ा, आइसक्रीम और आलू-पराठे भी मेरे प्रिय व्यंजन हैं, जिन्हें देखकर मन ललचा उठता है।
(ग) कहानी में बच्चा सोचता है कि साबूदाने की खीर केवल बीमारी या उपवास में क्यों मिलती है। आपके घर में ऐसा क्या-क्या है, जो केवल विशेष अवसरों या त्योहारों पर ही बनता है?
उत्तर देखेंहमारे घर में कई व्यंजन केवल विशेष अवसरों और त्योहारों पर ही बनाए जाते हैं। जैसे दीपावली पर गुजिया और लड्डू, होली पर मालपुआ और दही-बड़े, रक्षाबंधन पर खीर-पूरी, जन्माष्टमी पर पंचामृत और माखन-मिश्री, तथा दशहरे पर पूड़ी-चना बनते हैं। इसी प्रकार किसी शादी या बड़ी पूजा पर कचौड़ी, पुलाव और मिठाइयाँ विशेष रूप से तैयार की जाती हैं। ये व्यंजन त्यौहारों की रौनक और स्वाद दोनों को बढ़ा देते हैं।
(घ) कहानी में बच्चा सोचता है कि अगर वह स्कूल जाता तो उसे ठेले पर नमक-मिर्च वाले अमरूद खाने को मिलते। आप अपने विद्यालय में क्या-क्या खाते-पीते हैं? विद्यालय में आपका रुचिकर भोजन क्या है?
उत्तर देखेंमेरे विद्यालय में प्रायः समोसे, कचौड़ी, ब्रेड-पकौड़े, इडली-सांभर, आलू-चाट, बिस्कुट और ठंडी पेय सामग्री मिलती है। कभी-कभी हमें टिफिन में घर से पराठा, सब्ज़ी, आचार और मिठाई भी मिलती है। इनमें से मुझे सबसे अधिक आलू-चाट और इडली-सांभर पसंद है, क्योंकि यह स्वादिष्ट होने के साथ-साथ पेट भी भर देता है।
(ङ) इस कहानी में भोजन से जुड़ी बच्चे की कई रोचक बातें बताई गई हैं। आपके बचपन की भोजन से जुड़ी कोई विशेष याद क्या है, जिसे आप अब भी याद करते हैं?
उत्तर देखेंमेरे बचपन की एक विशेष याद गर्मियों की है, जब माँ ठंडी आमरस बनाती थीं और हम सब भाई-बहन मिलकर पराठों के साथ खाते थे। कभी-कभी दादी गुड़ की रोटी या सत्तू बनाकर देती थीं। इन व्यंजनों का स्वाद और परिवार के साथ मिलकर खाने का आनंद आज भी मन को बहुत सुख देता है।
(च) कहानी में बच्चा भोजन की सुगंध से रजाई फेंककर रसोई में झाँकने लगा। क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि घर में किसी विशेष खाने की सुगंध से आप भी रसोई में जाकर तुरंत देखना चाहते हैं कि क्या पक रहा है? आपको किस-किस खाने की सुगंध सबसे अधिक पसंद है?
उत्तर देखेंहाँ, मेरे साथ भी ऐसा हुआ है कि घर में किसी खास खाने की सुगंध आते ही मैं रसोई में जाकर देखना चाहता हूँ कि क्या बन रहा है। जब रसोई से जीरे के तड़के की महक आती है तो मुझे लगता है ज़रूर आलू की सब्ज़ी या दाल बन रही है। बरसात के दिनों में पकौड़ों की खुशबू पूरे घर में फैल जाती है और मैं तुरंत रसोई तक पहुँच जाता हूँ। पनीर की सब्ज़ी बनते समय मसालों की सुगंध मुझे बहुत भाती है। सर्दियों में जब गुड़ और घी से पिन्नी या गजक बनती है तो उसकी मीठी खुशबू मुझे बहुत अच्छी लगती है। इसके अलावा आम्रस और खीर की खुशबू तो मुझे इतनी लुभाती है कि मुँह में पानी आ जाता है और मन करता है कि खाना तुरंत परोसा जाए।
आज की पहेली
कहानी में आपने खाने-पीने की अनेक वस्तुओं के बारे में पढ़ा है। अब हम आपके सामने खाने-पीने की वस्तुओं या व्यंजनों से जुड़ी कुछ पहेलियाँ लाए हैं। इन्हें बूझिए और उत्तर लिखिए।
उत्तर:
कक्षा 7 हिंदी मल्हार अध्याय 5 की शिक्षा
कक्षा 7 हिंदी मल्हार अध्याय 5 “नहीं होना बीमार” से मिली शिक्षा:
• बीमारी का बहाना बनाना गलत है क्योंकि इससे हमें केवल परेशानी, ऊब और तकलीफ़ ही मिलती है।
• झूठ बोलने से न केवल हम दूसरों को धोखा देते हैं बल्कि खुद भी मुश्किल में फँस जाते हैं।
• सच्चाई और ईमानदारी से जीना ही सही रास्ता है।
• विद्यालय जाना और पढ़ाई करना बीमारी का नाटक करने से कहीं अधिक आनंददायक और उपयोगी है।
इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि झूठ और आलस से नुकसान होता है, जबकि सच्चाई और मेहनत से जीवन आसान और सुखद बनता है।
कक्षा 7 हिंदी मल्हार अध्याय 5 के मुख्य बिंदु
1.अस्पताल का अनुभव – बच्चा पहली बार नानीजी के साथ अस्पताल जाता है और वहाँ का साफ-सुथरा और शांत वातावरण देखकर प्रभावित होता है।
2. सुधाकर काका – अस्पताल में भर्ती सुधाकर काका को देखकर बच्चा सोचता है कि बीमारों के भी ठाठ होते हैं – साफ बिस्तर, आराम और खीर खाने का मौका।
3. बीमारी का बहाना – बच्चा स्कूल न जाने और होमवर्क से बचने के लिए बीमार होने का नाटक करता है।
4. नानाजी-नानीजी की देखभाल – नानाजी उसकी नब्ज़ देखते हैं, दवा और काढ़ा पिलाते हैं तथा भूखे रहने की सलाह देते हैं। नानीजी भी ध्यान रखती हैं।
5. अकेलापन और ऊब – बच्चा पूरे दिन रजाई में लेटा ऊब जाता है। उसे बाहर खेलने और गली की चहल-पहल देखने की इच्छा होती है।
6. भोजन की सुगंध – घर में पकते खाने की महक और भाई मुन्नू को आम खाते देखकर बच्चा भूखा रहकर परेशान हो जाता है।
7. सीख – दिनभर की ऊब, भूख और परेशानी से बच्चा समझ जाता है कि बीमारी का बहाना बनाना मुश्किल है। अंत में वह निश्चय करता है कि अब कभी स्कूल से छुट्टी मारने के लिए बीमारी का बहाना नहीं बनाएगा।