एनसीईआरटी समाधान कक्षा 5 हिंदी अध्याय 5 जहाँ चाह वहाँ राह
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 5 हिंदी अध्याय 5 जहाँ चाह वहाँ राह के अभ्यास में दिए गए प्रश्नों के उत्तर यहाँ से सीबीएसई सत्र 2024-25 के लिए निशुल्क प्राप्त किए जा सकते हैं। कक्षा 5 के छात्र हिंदी की किताब रिमझिम के पाठ 5 में पढेंगे कि यदि इरादे मजबूत हो तो सफल होने से कोई भी हमें रोक नहीं सकता है।
कक्षा 5 हिंदी अध्याय 5 जहाँ चाह वहाँ राह के प्रश्न उत्तर
इला सचाली कौन है? उसका बचपन कहाँ बीता था?
इला सचाली एक छब्बीस साल की हैंडी कैप महिला है, जो गुजरात के सूरत ज़िले में रहती है। उसका बचपन अमरेली ज़िले के राजकोट गाँव में अपने नाना के यहाँ बीता था।
इला ने अपने हाथों की ज़िद को एक चुनौती कैसे बनाया था?
इला ने अपने हाथों से काम लेने की बहुत कोशिश की पर वह असफल रही। तब अपने हाथों की ज़िद को चुनौती मान कर उसने सभी कामों को अपने पैरों से करना सीख लिया और अपने हाथों का सारा काम अपने पैरों से करने लगी।
इला सचाली को लेकर स्कूल वाले चिंतित क्यों थे?
इला सचाली को लेकर स्कूल वाले उसकी सुरक्षा को लेकर, कुछ उसके स्कूल में काम करने की गति को लेकर भी चिंतित थे।
इला की कशीदाकारी में खास बात क्या थी?
इला पंद्रह-सोलह साल की होते-होते काठियावाडी कशीदाकारी में माहिर हो चुकी थी। किस वस्त्र पर किस तरह के नमूने बनाए जाएँ, कौन से रंगों से नमूना खिल उठेगा और टाँके कौन से लगेंगे, वह सब समझ गई थी।
इला दसंवी की परीक्षा पास क्यों नहीं कर पाई थी?
इला दसंवी की परीक्षा में लिखने की गति धीमी होने के कारण वह प्रश्न-पत्र पूरे नहीं कर पाती थी, इसलिए वह दसवीं की परीक्षा पास नहीं कर सकी थी।
इला ने अपने पैरों से कौन-कौन से काम करने सीख लिए थे?
इला ने अपने पैरों से दाल-भात खाना, दूसरों के बाल बनाना, फ़र्श बुहारना, कपड़े धोना, तरकारी काटना, और लिखना आदि काम सीख लिए थे।
दसवीं की परीक्षा के दौरान इला को किस बात की जानकारी नहीं थी?
दसवीं की परीक्षा के समय इला को मालूम न था कि परीक्षा के लिए उसे अतिरिक्त समय मिल सकता है। उसे ऐसे व्यक्ति की सुविधा भी मिल सकती थी जो परीक्षा में उसके लिए लिखने का काम कर सके। यह जानकारी समय रहते मिल जाती तो वह दसवीं की परीक्षा आसानी से पास कर लेती।
इला को कशीदाकारी सीखने की इच्छा किससे मिली थी?
इला को कशीदाकारी सीखने की इच्छा अपनी माँ और दादी से मिली थी। उसकी माँ और दादी बहुत अच्छी कशीदाकारी करती थीं। इला उन्हें सुई में रेशम पिरोने से बूटियाँ उकेरते हुए देखती और प्रेणना लेती थी।
इला के बनाए परिधानों में क्या ख़ासियत झलकती थी?
इला के द्वारा काढ़े गए परिधानों में कठियावाड़ के साथ-साथ लखनऊ और बंगाल की झलक दिखाई देती थी। वह परिधानों की पत्तियों को चिकनकारी से सजाती थी और डंडियों को काँथा से उभारा था।
शाम को मोहल्ले के बच्चे क्या करते थे?
शाम को मोहल्ले के बच्चे घरों से बाहर आ जाते थे। कुछ मिट्टी में आड़ी-तिरछी लकीरें खींचते हैं, कुछ गिट्टे खेलते हैं, कुछ कनेर के पत्तों से पिटपिटी बजाते तथा कुछ इधर-उधर से टूटे-फूटे घड़ों के ठीकरे बटोरकर पिट्ठू खेलते हैं। इन खेलों को खेलते खेलते जब मन भर जाता है तो पेड़ की डालियों पर झूला डालकर ऊँची-ऊँची पेंगें लेते हैं और गाना गाते हैं।