कक्षा 10 हिंदी एनसीईआरटी समाधान संचयन अध्याय 2 गुरुदयाल सिंह – सपनों के से दिन

कक्षा 10 हिंदी एनसीईआरटी समाधान संचयन भाग 2 अध्याय 2 गुरुदयाल सिंह – सपनों के से दिन के अभ्यास के प्रश्न उत्तर तथा पाठ पर आधारित अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर विद्यार्थी यहाँ से निशुल्क प्राप्त करें। प्रश्नों के उत्तर सीबीएसई सिलेबस 2024-25 के अनुसार संशोधित करके बनाए गए हैं। उत्तरों को सरलतम रूप में लिखा गया है ताकि प्रत्येक विद्यार्थी को आसानी से समझ आ सके। मोबाइल से पढ़ने वाले विद्यार्थी कक्षा 10 समाधान ऐप डाउनलोड कर सकते हैं जिसमें सभी विषयों के हिंदी तथा अंग्रेजी माध्यम के हल हैं।

कक्षा 10 हिंदी संचयन अध्याय 2 गुरुदयाल सिंह – सपनों के से दिन

कक्षा 10 हिंदी संचयन अध्याय 2 के अतिरिक्त प्रश्न उत्तर

सपनों के-से दिन पाठ के आधार पर लेखक किन दिनों की बात करता है?

सपनों के-से दिन पाठ में लेखक अपने बचपन के दिनों की बात कर रहा है। जब वह अपने बचपन के मित्रों के साथ खेल-कूद करते चोट खाते घरवालों की पिटाई भी खाते, फिर भी अगले दिन खेलनें पहुँच जाते। बच्चे खेलने को क्यों अधिक महत्व देते हैं, बच्चों को खेलना क्यों पसंद है, के विषय में चर्चा कर रहा है।

कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती। पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए।

बचपन में लेखक के कुछ मित्र हरियाणा और राजस्थान से थे। उनके कुछ शब्दों को सुनकर वे बहुत हंसते थे। परंतु साथ खेलते हुए वे सभी एक-दूसरे की बात को समझ जाते थे। उनके आपसी व्यवहार में भाषा कभी भी बाधा का विषय नहीं बनी थी। वे सभी एक-दूसरे को अच्छे से समझने भी लग गए थे।

नयी श्रेणी में जाने और नयी कापियों तथा पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से लेखक का बाल मन क्यों उदास हो उठता था?

नयी श्रेणी में जाने की खुशी के बजाए नयी श्रेणी की कुछ मुश्किल पढ़ाई और नए मास्टरों की मार-पीट का भय ही कहीं भीतर जमकर बैठ गया था। कहीं उनकी आशाओं पर खरे नहीं उतरे तो वे चमड़ी उधेड़ने के लिए तैयार बैठे रहते हैं। इन सभी बातों को सोच कर लेखक का बाल मन उदास हो उठता था।

स्कूल की छुट्टियों के पहले सप्ताह और आखिरी सप्ताह में लेखक के अनुसार क्या अंतर था?

लेखक के अनुसार पहले दो-तीन सप्ताह तो खूब खेल-कूद हुआ करता। हर साल ही माँ के साथ ननिहाल चले जाते। वहाँ नानी खूब दूध-दही, मक्खन खिलाती बहुत प्यार करती। आखिरी सप्ताह में छुट्टियों के खत्म होने से डरने लगते। स्कूल से मिले कार्यों को कम समय में पूरा करने की योजनाएँ बनाते। धीरे-धीरे सब खेल-कूद भूल जाने लगते। आखिरी सप्ताह में दिन छोटे होने का अहसास करने लगते मानो सूर्य दिन में ही छिप जाता हो या स्कूल में होने वाली पिटाई के लिए खुद को बहादुर बनाने के ख्याल बुनने लगते थे।

स्कूल में लेखक के अनुसार सबसे बहादुर बच्चा वे किसे मानते थे?

लेखक के अनुसार स्कूल में सबसे बहादुर बच्चा ओमा को मानते थे। क्योकि उसे छुट्टियों में मिले काम से आसान अध्यापकों की मार लगती थी। उस जैसा दूसरा लड़का नही ढूंढ पाते थे। उसकी बातें गालियाँ, मार-पिटाई का ढंग तो अलग था ही उसकी शक्ल-सूरत भी सबसे अलग थी। हाँडी जितना बड़ा सिर, उसके ठिगने चार बालिश्त के शरीर पर ऐसा लगता जैसे बिल्ली के बच्चे के माथे पर तरबूज रखा हो। इतने बड़े सिर में नारियल की सी आँखों वाला बंदरिया के बच्चे जैसा चेहरा और भी अजीब लगता था। वह लड़ाई अपने सिर से टक्कर मार के करता था और अपने शरीर से दुगने-तिगुने शरीर वाले लड़के को गिरा देता था। उसके सिर की टक्कर का नाम लेखक ने “रेल-बम्ब” रखा हुआ था।

पीटी साहब की शाबाशी फ़ौज के तमगों-सी लेखक को क्यों लगती थी?
जब स्काउटिंग का अभ्यास करवाते समय पीटी साहब नीली-पीली झंडियाँ हाथों में पकड़ाकर वन टू थ्री कहते, झंडियाँ उपर-नीचे, दाएँ-बाएँ करवाते तो हवा में लहराती और फडफड़ाती झंडियों के साथ खाकी वर्दियों तथा गले में दोरंगे रुमाल लटकाए अभ्यास किया करते। हम कोई गलती न करते तो वह अपनी चमकीली आँखेँ हलके से झपकाते कहते “शाबाश वैल बीगिन अगेन-वन टू थ्री थ्री टू वन” उनकी एक शाबाशी लेखक को ऐसी लगती मानों फ़ौज के सभी तमगे जीत लिए हों और ये शाबाशी साल भर मिले सभी कापियों में गुड से बहुत बड़ी लगती थी।

स्काउट परेड करते समय लेखक अपने आप को फ़ौजी जवान जैसे महत्वपूर्ण आदमी क्यों समझने लगा था?

मास्टर प्रीतमचंद जब स्काउट की परेड करवाते तो लेफ्ट-राइट की आवाज़ या मुँह में ली विःसल से मार्च कराया करते। फिर राइट टर्न या लेफ्ट टर्न या अबाउट टर्न कहने पर छोटे-छोटे बूटों की एड़ियों पर दाएँ-बाएँ या एकदम पीछे मुड़कर बूटों की ठक-ठक करते, अकड़ कर चलते तो लगता जैसे हम विधार्थी नहीं बहुत महत्वपूर्ण आदमी हों, जो उस समय फ़ौजी जवान होते थे। लेखक भी अपने आप को उन्हीं के समान समझने लगा था।

लेखक के अनुसार उन्हें स्कूल कब और क्यो अच्छा लगने लगा था?
लेखक के अनुसार जब वे स्काउटिंग का अभ्यास करते और कोई गलती नहीं करते तो मास्टर प्रीतमचंद शाबाश बोलते। ये शाबाश उनके लिए सभी मास्टर से मिलने वाले कापियों के गुड से बहुत अधिक प्रिय लगता और स्काउटिंग की परेड करते वक्त वे अपने आप को महत्वपूर्ण आदमी फ़ौजी जवान समझने लगे थे। साथ-साथ स्कूल भी अब अच्छा लगने लगा था।

हेडमास्टर शर्मा जी ने मास्टर प्रीतमचंद को क्यों मुअतल कर दिया था?

मास्टर प्रीतमचंद कक्षा चार को फ़ारसी पढ़ा रहे थे। सभी बच्चे उनसे बहुत डरते थे। काम पूरा न करने की स्थिति में वे बच्चों की पिटाई भी कर दिया करते थे। एक दिन जब लेखक और उसके मित्र को कान पकड़वा कर मुर्गा बनाया जा रहा था तो अचानक हेडमास्टर साहब ने यह सब देख लिया। शायद यह पहला अवसर था कि वह पीटी मास्टर प्रीतमचंद की उस बर्बरता को सहन न कर पाए और बहुत उतेजीत हो कर बोले “क्या चौथी श्रेणी को सजा देने का यह ढंग है इसे फौरन बंद करो”। कुछ समय बाद पता चला कि हेडमास्टर शर्मा जी ने पीटी साहब को मुअतल कर दिया था।

लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुट्टियों में मिले काम को पूरा करने के लिए क्या-क्या योजनाएँ बनाया करता था?
लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुट्टियों में मिले काम को दिनों के हिसाब से पूरा करने की योजनाएँ बनाते थे। जैसे मास्टर जी उन्हे दो सौ सवाल दिए तो वे दस सवाल रोज निकाल लेंगे। और अभी तो पूरा महिना बाक़ी है सोच कर दस दिन और खेल कूद में बिता देते। दस दिन बाद फिर हिसाब लगते की दस सवाल क्यो सवाल तो पंद्रह भी निकाले जा सकते है। यह सोच कर फिर खेल कूद में मसगुल हो जाते और काम पूरा न होने की स्थिति में अपने मित्र ओमा के बारे में सोचने लगते जिसे छुट्टियों के काम से स्कूल में मास्टरों की मार आसान लगती थी। वे उसे बहुत बहादुर समझते थे और उसी की भाँति अपने आप को बहादुर बनने की कल्पना करने लगते थे।

लेखक के अनुसार पीटी साहब के चरित्र पर प्रकाश डालिए।

पीटी साहब का पूरा नाम प्रीतमचंद था। पूरा स्कूल उनके गुस्से से वाकिफ था। वे बच्चों को स्काउटिंग करवाते, गलती न करने पर शाबाश कहते जिसे बच्चों का हौसला बड़ जाता था और गलती पर चमड़ी उधेड़ने के लिए तो प्रसिद्ध थे। वे कक्षा चौथी को फ़ारसी पढ़ाते एक दिन लेखक और उसके मित्र हरबंस को सजा दे रहे थे, तो हेड मास्टर साहब ने देख लिया और वे यह बर्बरता सहन नहीं कर सके तथा पीटी साहब को मुअतल कर दिया। लेखक के अनुसार सभी लड़के पीटी साहब से बहुत डरते थे क्योकि उन जितना सख्त अध्यापक न कभी किसी ने देखा न सुना था।

प्रीतम चंद को स्कूल के समय में कभी भी किसी ने मुस्कराते या हँसते नही देखा था। उनका ठिगना कद दुबला-पतला गठीला शरीर माता के दागों से भरा चेहरा और बाज सी तेज़ आँखे, खाकी वर्दी चमड़े के चौड़े पंजो वाले बूट, सभी कुछ ही भयभीत करने वाला हुआ करता करता था।

कक्षा 10 हिंदी संचयन अध्याय 2 के प्रश्न उत्तर
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