कक्षा 10 हिंदी एनसीईआरटी समाधान स्पर्श गद्य अध्याय 4 प्रहलाद अग्रवाल – तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र
कक्षा 10 हिंदी एनसीईआरटी समाधान स्पर्श भाग 2 गद्य खंड अध्याय 4 प्रहलाद अग्रवाल – तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र अभ्यास के प्रश्न उत्तर गद्य खंडों पर आधारित प्रश्न आदि सीबीएसई सत्र 2024-25 के लिए छात्र यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं। सभी प्रश्न उत्तरों को नए शैक्षणिक सत्र के अनुसार संशोधित किया गया है। १०वीं हिंदी स्पर्श पाठ 4 पर आधारित वस्तुनिष्ठ प्रश्न भी परीक्षा की तैयारी के लिए दिए गए हैं। कक्षा 10 के सभी विषयों के लिए समाधान कक्षा 10 सलूशन ऐप से हिंदी तथा अंग्रेजी मीडियम में प्राप्त किए जा सकते हैं।
कक्षा 10 हिंदी स्पर्श गद्य अध्याय 4 प्रहलाद अग्रवाल – तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र
कक्षा 10 हिंदी एनसीईआरटी समाधान स्पर्श गद्य खंड अध्याय 4 प्रहलाद अग्रवाल – तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र
कक्षा 10 हिंदी स्पर्श अध्याय 4 के अतिरिक्त प्रश्न उत्तर
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को कौन-कौन से पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था?
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को “राष्ट्रपति स्वर्णपदक” मिला, बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट असोसिएशन द्वारा सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म और मास्को फ़ेस्टिवल में भी पुरस्कृत किया गया था।
शैलेंद्र ने कितनी फिल्में बनाई थी?
शैलेंद्र ने अपने जीवन में एक फ़िल्म का निर्माण किया था जिसका नाम तीसरी कसम था।
राजकपूर द्वारा निर्देशित कुछ फिल्मों के नाम बताइए।
राजकपूर ने मेरा नाम जोकर, अजन्ता में और मेरा दोस्त, सत्यम शिवम सुंदरम और श्री 420 नामक फिल्मों का निर्माण किया था।
फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ के नायक व नायिका के नाम क्या हैं?
फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ में नायक के रूप मेँ राजकपूर और नायिका के रूप मेँ वहीदा रहमान ने किया था। फ़िल्म मेँ दोनों ने ‘हीरामन और हिराबाई’ नाम के पात्र का अभिनय किया था।
फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ का निर्माण किसने किया था?
फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ का निर्माण हिंदी फिल्मों के लेखक व कवि शैलेंद्र ने किया था।
राजकपूर ने ‘मेरा नाम जोकर’ के निर्माण के समय किस बात की कल्पना भी नहीं की थी?
राजकपूर ने जब ‘मेरा नाम जोकर’ का निर्माण किया था, जब उनहोंने कभी भी इस बात की कल्पना भी नही की थी कि इस फ़िल्म का एक भाग बनाने मेँ छ: वर्षो का समय लग जाएगा।
- राजकपूर की किस बात पर शैलेंद्र का चेहरा मुरझा गया था?
राजकपूर ने जब गंभीरतापूर्वक शैलेंद्र से अपना पारिश्रमिक एडवांस माँगा तो शैलेंद्र को ऐसी उम्मीद नहीं थी कि राजकपूर ज़िंदगी-भर की दोस्ती का ये बदला देंगे। इस बात पर शैलेंद्र का चेहरा मुरझा गया था। - फ़िल्म समीक्षक राजकपूर को किस तरह का कलाकार मानते थे?
फ़िल्म समीक्षक राजकपूर को कला-मर्मज्ञ आँखों से बात करने वाला कलाकार मानते थे। - ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को सैल्यूलाइड पर लिखी कविता क्यो कहा गया है?
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म हिंदी साहित्य की एक अत्यंत मार्मिक कृति को सैल्यूलाइड पर पूरी सार्थकता से उतारा गया है। इसलिए ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म नहीं सैल्यूलाइड पर लिखी कविता कही गई थी।
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को खरीददार क्यों नहीं मिल रहे थे?
इस फ़िल्म की संवेदना किसी दो से चार बनाने का गणित जानने वाले की समझ से परे थी। इसमें रची-बसी करुणा तराजू पर तौली जा सकने वाली चीज़ नहीं थी। न ही इस फ़िल्म का प्रचार हुआ था।
- शैलेंद्र के अनुसार कलाकार का कर्तव्य क्या है?
शैलेंद्र के अनुसार कलाकार का यह कर्तव्य है कि वह उपभोक्ता की रुचियों का परिष्कार करने का प्रयत्न करे यही उनका यकीन था। - फिल्मों में त्रासद स्थितियों का चित्रांकन ग्लोरिफ़ाई क्यों कर दिया जाता है?
फिल्मों की सबसे बड़ी कमजोरी लोक-तत्व का अभाव होता है जो ज़िंदगी से दूर होती है। यदि त्रासद स्थितियों का चित्रांकन होता है तो उन्हें ग्लोरीफ़ाई किया जाता है। दुख का ऐसा वीभत्स रूप प्रस्तुत होता है जो दर्शकों का भावनात्मक शोषण न कर सके। - शैलेंद्र ने राजकपूर की भावनाओं कों शब्द दिए है। इस कथन से आप क्या समझते है?
राजकपूर ऐसे कलाकार थे जो अपनी भावनाओं कों अपनी आंखों से बया करना जानते थे। तीसरी कसम में शैलेंद्र ने राजकपूर को हीरामन का अभिनय दिया था जो केवल दिल की जुबान समझता है दिमाग की नहीं। जिसकें लिए मोहब्बत के सिवा किसी दूसरी चीज़ का कोई अर्थ नहीं है। शैलेंद्र ने फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ को अपनी भावप्रवणता का सर्वश्रेष्ठ तथ्य प्रदान किया था।
लेखक ने राजकपूर को एशिया का सबसे बड़ा शोमेन कहा है। शोमैन से आप क्या समझते है?
जिस प्रकार राजकपूर ने हीरामन का अभिनय करते वक्त हीरामन के पात्र में एकाकार हो गए थे और एक शोमैन का खिताब प्राप्त कर लिया था। पात्र की आत्मा में उतर कर उसका अभिनय करना ही शोमैन कहलाता है।
फ़िल्म श्री 420 के गीत रातों दशों दिशाओं से कहेगी अपनी कहानियाँ पर संगीतकार जयकिशन ने आपति क्यों की थी?
फ़िल्म के गीत में दशों दिशाओं से संगीतकार जयकिशन को आपत्ति थी, उनका ख्याल था कि दर्शक चार दिशाएँ तो समझ सकते है दस दिशाएँ नहीं।
लेखक ने ऐसा क्यों लिखा है कि ‘तीसरी कसम’ ने साहित्य रचना के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है?
लेखक ने ऐसा इसलिए लिखा है क्योकि शैलेंद्र ने अपने जीवन की फ़िल्म में छोटी से छोटी रचना को बड़े भावपूर्ण तरीके से प्रयोग किया है जिसे साहित्य कि झलक साफ-साफ दिखाई देती है और उसके साथ सही न्याय करती है।
राजकपूर द्वारा फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह करने पर भी शैलेंद्र ने यह फ़िल्म क्यों बनाई थी?
शैलेंद्र एक आदर्शवादी भावुक कवि थे, जिसे अपार संपति और यस की कामना नहीं थी, जितनी की आत्म-संतुष्टि के सुख की अभिलाषा थी। इसी कारण उन्होने यह फ़िल्म बनाई थी।
शैलेंद्र के गीतों की क्या विशेषताएँ थी?
शैलेंद्र ने अपने गीतों में कभी भी झूठे अभिजात्य को नहीं अपनाया। उनका द्र्ढ मंतव्य था कि दर्शकों की रुचि की आड़ में हमें उथलेपन को उन पर नहीं थोपना चाहिए। उनके गीत भाव-प्रवण थे-दुरूह नहीं। मेरा जूता है जापानी गीत शैलेंद्र ही लिख सकते थे। उनके गीतों में शांत नदी का प्रवाह और समुद्र कि गहराई होती थी।
शैलेंद्र के निजी जीवन की छाप उनकी फ़िल्म में झलकती है। कैसे?
शैलेंद्र एक आदर्शवादी भावुक कवि थे, जिसे अपार संपति और यश तक की इतनी कामना नहीं थी जितनी आत्म-संतुष्टि के सुख की अभिलाषा थी। शैलेंद्र ने कभी झूठे अभिजात्य को नहीं अपनाया, शांत नदी का प्रवाह और समुद्र की गहराई लिए हुए उनकी ज़िंदगी की विशेषता थी और यही उन्होने अपनी फ़िल्म के द्वारा भी साबित किया था।
लेखक के इस कथन से कि ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म कोई सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था, आप कहाँ तक सहमत है स्पष्ट कीजिए।
लेखक के कथन के अनुसार यह सही है कि ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म कोई सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था। क्योकि फ़िल्म में जिस भाव और भावात्मक्ता को प्रस्तुत किया गया है वह एक कवि ही कर सकता था। फ़िल्म में शैलेंद्र ने छोटी-से-छोटी बात को बड़े भाव पूर्ण तरीक़े से पेश किया था।