एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 6 पद

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 6 पद में संत रविदास की भक्ति भावना और ईश्वर के प्रति प्रेम पर आधारित अभ्यास प्रश्न तथा अतिरिक्त प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं। इन प्रश्नों से विद्यार्थियों को पदों का भावार्थ, प्रमुख शब्द और काव्य सौंदर्य सरल भाषा में समझने में मदद मिलती है। इन प्रश्नों का अभ्यास करने से अध्याय के मुख्य विचार जल्दी याद होते हैं। यह परीक्षा की तैयारी के लिए उपयोगी है और विद्यार्थियों का आत्मविश्वास बढ़ाता है।
कक्षा 9 हिंदी स्पर्श पाठ 6 के प्रश्न उत्तर
कक्षा 9 हिंदी स्पर्श पाठ 6 के अति-लघु उत्तरीय प्रश्न
कक्षा 9 हिंदी स्पर्श पाठ 6 के लघु उत्तरीय प्रश्न
कक्षा 9 हिंदी स्पर्श पाठ 6 के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
कक्षा 9 हिंदी स्पर्श पाठ 6 MCQ

अभ्यास के प्रश्न उत्तर

पद कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 6 के अभ्यास के प्रश्न उत्तर

1. निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर दीजिए।
(क) पहले पद में भगवान और भक्त की जिन-जिन चीजों से तुलना की गई है, उनका उल्लेख कीजिए।
उत्तर देखेंपहले पद की प्रत्येक पंक्ति के अंत में तुकांत शब्दों के प्रयोग से नाद सौंदर्य आ गया है, जैसे पानी, समानी आदि हैं।

(ख) पहले पद की प्रत्येक पंक्ति के अंत में तुकांत शब्दों के प्रयोग से नाद सौंदर्य आ गया है, जैसे पानी, समानी आदि इस पद के अन्य तुकांत शब्द छाँटकर लिखिए।
उत्तर देखेंअन्य तुकांत शब्द निम्न प्रकार हैं ।
मोरा-चकोरा, बाती-राती, धागा-सुहागा , दासा-रैदासा।

(ग) पहले पद में कुछ शब्द अर्थ की दृष्टि से परस्पर संबंद्ध हैं। ऐसे शब्दों को छाँटकर लिखिए।
उदाहरण:

दीपकबाती

उत्तर:

दीपकबाती
मोतीधागा
घनमोर
चंदचकोर
स्वामीदास

(घ) दूसरे पद में कवि ने ‘गरीब निवाजु’ किसे कहा है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर देखेंदूसरे पद में कवि ने ‘गरीब निवाजु’ अपने आराधय ईश्वर को कहा है, जो दीन दुखियों पर दया करने वाला है और उसके मस्तक पर मुकुट सुन्दर लग रहा है।

(ङ) दूसरे पद की ‘जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै’ इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर देखेंकवि का कहना है कि जिन लोगों को समाज अछूत मानता है, जिसके छूने मात्र से ही लोग अपवित्र हो जाते हैं और कुलीन लोग भी उन पर दया नहीं करते। जो समाज के द्वारा उपेक्षित हैं दया के पात्र हैं। हे ईश्वर आप उन पर दया करने वाले हो उनका उद्धार करने वाले हो।

(च) रैदास जी ने अपने स्वामी को किन-किन नामों से पुकारा है ?
उत्तर देखेंरैदास जी ने अपने स्वामी को लाल, गुसाईं, गोविंद, तथा हरि-जी आदि नामों से पुकारा है।

(छ) निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए ।
मोरा, चंद, बाती, जोति, बरै, राती, छत्रु, धारै, छोति, तुही, गुसईआ

उत्तर:
शब्दों के प्रचलित रूप:

शब्दप्रचलित रूप
मोरामोर, मयूर
बातीबत्ती
चांदचंद्र, चंद्रमा
जोतिज्योति
बरैजलती है
छत्रुछत्र
छोतिछूत , छूना
गुसइयाँगुसांई, गोसाईं
रातीरात्रि, रात
धारैधारण करता है, पहनता है
तुहींतुम्ही

कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 6 के भाव स्पष्ट करने वाले प्रश्न उत्तर

2. नीच लिखी पंक्तियों के भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) जाकी अंग-अंग बास समानी।
उत्तर देखेंजिस प्रकार चंदन का लेप लगाने पर सारे अंग सुगंधित हो जाते हैं ठीक उसी प्रकार ईश्वर की भक्ति पूरे शरीर में समाकर शरीर और मन दोनों को ही पवित्र कर देती हैं।

(ख) जैसे चितवत चंद चकोरा।
उत्तर देखेंजिस प्रकार चकोर पक्षी रात भर चंद्रमा की ओर टकटकी लगाए देखता रहता है और सुबह होने की प्रतीक्षा करता है। ठीक उसी प्रकार भक्त एकटक ईश्वर की भक्ति में लीन रहता है ताकि उसकी कृपा को पा सके।

(ग) जाकी जोति बरे दिन राती।
उत्तर देखेंकवि प्रभु के प्रति अपनी भक्ति को दीए और बाती की तरह देखता है उसका कहना है कि जिस प्रकार दिए की बाती जलकर प्रकाशित करती है ठीक उसी प्रकार आपकी भक्ति रूपी दिया दिन-रात जलकर मुझे अंदर से प्रकाशित करता रहता है।

(घ) ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै।
उत्तर देखेंकवि प्रभु का आभार प्रकट करते हुए कह रहा है कि आप ही हैं जो इतनी उदारता दिखा सकते हैं। आप निडर होकर सभी का कल्याण करने वाले हैं।

(ङ) नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै।
उत्तर देखेंकवि का कहना है कि मेरे प्रभु समाज में नीच समझे जाने वाले लोगों को ऊँचा करने वाले अर्थात् समाज में सम्मान दिलाने वाले हैं और ऐसा करते समय वह किसी से भी नहीं डरने वाले हैं।

3. रैदास के इन पदों का केन्द्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर देखें1. रैदास जी ने पहले पद में कुछ उदाहरण देते हुए ईश्वर और भक्त को एक दूसरे का पूरक बताया है जैसे- चंदन और पानी, दीया और बाती, बादल और मोर एक दूसरे के संपर्क में आने पर प्रभावित होते हैं वैसे ही भक्त और ईश्वर एक दूसरे के संपर्क में आने पर ही आनंदित होते हैं।
2. रैदास जी ने दूसरे पद में भगवान का धन्यवाद करते हुए कहा है कि आप ही संसार में सबका कल्याण करने वाले तथा समाज में निम्न समझे जाने वाले लोगों का उद्धार करने वाले हो।

कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 6 पद पर आधारित अति-लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर।

कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 6 अति-लघु उत्तरीय प्रश्न-उत्तर

1. “प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी” उपमा का क्या भाव है?
उत्तर देखेंयह उपमा बताती है कि जैसे चंदन की सुगंध पानी में घुल जाती है, वैसे ही भक्त के जीवन में प्रभु का गुण व्याप्त हो जाता है।

2. “घन और मोर” की उपमा भक्त–प्रभु संबंध में क्या दर्शाती है?
उत्तर देखेंमोर की नृत्यमय उत्कंठा बादल देखकर बढ़ती है, वैसे ही भक्त प्रभु के दर्शन पाकर आनंद और उत्कर्ष का अनुभव करता है।

3. “दीपक और बाती” उपमा का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर देखेंदीपक बिना बाती के नहीं जल सकता, और बाती बिना दीपक के अर्थहीन है। यह उपमा प्रभु और भक्त की परस्परता को दर्शाती है।

4. “मोती और धागा” उपमा से क्या भाव निकलता है?
उत्तर देखेंजैसे धागा मोतियों को जोड़कर हार बनाता है, वैसे ही भक्त और प्रभु का मिलन जीवन को सुंदर और पूर्ण बनाता है।

5. “प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा” से क्या तात्पर्य है?
उत्तर देखेंइसका तात्पर्य है कि रैदास अपने आपको प्रभु का दास मानते हैं और पूर्ण समर्पण की भावना से भक्ति करना चाहते हैं।

6. पहले पद में कौन-सा भक्ति-भाव प्रधान है?
उत्तर देखेंपहले पद में दास्यभाव प्रमुख है, जहाँ भक्त स्वयं को सेवक मानकर प्रभु के चरणों में आत्मसमर्पण करता है।

7. “ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै” का क्या आशय है?
उत्तर देखेंइसका आशय है कि प्रभु के सिवा कोई और नहीं है जो भक्त का दुख दूर कर सके और उसका कल्याण कर सके।

8. “गरीब निवाजु गुसइआ” में प्रभु को किस रूप में प्रस्तुत किया गया है?
उत्तर देखेंयहाँ प्रभु को गरीबों का रक्षक और पालनहार बताया गया है, जो असहायों को भी सम्मान देते हैं।

9. “नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु” का क्या अर्थ है?
उत्तर देखेंयह दर्शाता है कि प्रभु में इतनी शक्ति है कि वे समाज के नीच समझे जाने वाले व्यक्ति को भी ऊँचा स्थान प्रदान कर सकते हैं।

10. “काहू ते न डरै” से क्या भाव झलकता है?
उत्तर देखेंयह भाव है कि प्रभु निर्भय और सर्वशक्तिमान हैं, उन्हें किसी भी व्यक्ति या शक्ति का भय नहीं होता।

11. दूसरे पद में किन संतों का नाम लिया गया है?
उत्तर देखेंदूसरे पद में नामदेव, कबीर, तिलोचन, सधना और सैन – इन पाँच संतों का उल्लेख हुआ है।

12. इन संतों का नाम लेने का उद्देश्य क्या है?
उत्तर देखेंउद्देश्य यह है कि प्रभु की भक्ति करने वाले सभी संतजन ईश्वर की कृपा से संसार-सागर से पार हुए।

13. “माथै छत्रु धरै” का क्या प्रतीक है?
उत्तर देखेंयह प्रतीक है प्रभु की कृपा का, जो भक्तों के ऊपर सुरक्षा और सम्मान का छत्र लगाए रखते हैं।

14. दोनों पदों का समान संदेश क्या है?
उत्तर देखेंदोनों पद प्रभु-भक्ति की महिमा और भक्त के पूर्ण समर्पण को व्यक्त करते हैं। इनमें दास्यभाव और ईश्वर की शरणागति प्रमुख है।

15. रैदास की भक्ति की विशेषता क्या है?
उत्तर देखेंउनकी भक्ति सरल, निष्कपट और दास्यभाव से पूर्ण है, जिसमें भक्त प्रभु को सर्वस्व मानकर उनके चरणों में लीन हो जाता है।

कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 6 पद के लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर।

कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 6 लघु उत्तरीय प्रश्न-उत्तर

1. “चंदन और पानी” की उपमा भक्त–प्रभु संबंध को कैसे व्यक्त करती है?
उत्तर देखेंचंदन की सुगंध पानी में मिलकर उसे सुगंधित कर देती है। इसी प्रकार जब भक्त प्रभु का नाम जपता है, तो उसका सम्पूर्ण जीवन प्रभु के गुणों से सुवासित हो जाता है। यह उपमा प्रभु और भक्त के गहरे आध्यात्मिक संबंध को स्पष्ट करती है, जहाँ ईश्वर भक्त के जीवन में सतत् व्याप्त रहते हैं।

2. “घन और मोर” की उपमा भक्त के भाव को कैसे दर्शाती है?
उत्तर देखेंजब बादल उमड़ते हैं तो मोर आनंदित होकर नृत्य करता है। यही दृश्य रैदास ने भक्त के भाव के लिए लिया है। भक्त प्रभु के दर्शन से उसी प्रकार प्रफुल्लित हो उठता है जैसे मोर वर्षा के बादलों को देखकर नाच उठता है। यह उपमा भक्त की अनुरक्ति और प्रभु-दर्शन की उत्कंठा का प्रतीक है।

3. दीपक और बाती की उपमा का गूढ़ अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर देखेंदीपक और बाती मिलकर ही प्रकाश उत्पन्न करते हैं। दीपक बिना बाती के व्यर्थ है और बाती बिना दीपक के। इसी प्रकार भक्त और प्रभु का संबंध अविभाज्य है। प्रभु की कृपा के बिना भक्त का जीवन अंधकारमय है, और भक्त की भक्ति के बिना प्रभु की महिमा संसार में प्रकट नहीं होती। यह परस्पर निर्भरता को दर्शाता है।

4. “मोती और धागा” की उपमा का क्या महत्व है?
उत्तर देखेंमोती मूल्यवान होते हुए भी अकेले रहकर आभूषण नहीं बनते। उन्हें धागा जोड़ता है और गले में पहनने योग्य बनाता है। इसी प्रकार प्रभु और भक्त का मिलन जीवन को सार्थक और शोभायमान बनाता है। यह उपमा भक्त के जीवन में प्रभु की अनिवार्यता और प्रभु में लीन होने की आवश्यकता को दर्शाती है।

5. “ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै” में भक्त की भावनाएँ कैसी हैं?
उत्तर देखेंयहाँ भक्त प्रभु से निवेदन करता है कि संसार में उसकी सहायता करने वाला कोई दूसरा नहीं है। प्रभु ही सच्चे सहायक और उद्धारकर्ता हैं। इस पंक्ति से रैदास की पूर्ण शरणागति का भाव प्रकट होता है। यह भी स्पष्ट होता है कि भक्त प्रभु को ही एकमात्र सहारा मानकर भक्ति-पथ पर अग्रसर होता है।

6. “गरीब निवाजु गुसइआ” किस भाव को प्रकट करता है?
उत्तर देखेंयहाँ प्रभु को गरीबों का पालनहार बताया गया है। प्रभु उन असहाय और निर्धनों के भी संरक्षक हैं, जिन्हें समाज तुच्छ समझता है। वे उनके सिर पर छत्र रखकर उन्हें सम्मान और सुरक्षा प्रदान करते हैं। यह पंक्ति प्रभु की करुणा और सर्वसमावेशी प्रेम को दर्शाती है।

7. “नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु” का आध्यात्मिक संदेश क्या है?
उत्तर देखेंयह वाक्य बताता है कि प्रभु जाति, वर्ण और स्थिति का भेदभाव नहीं करते। वे नीच समझे जाने वालों को भी ऊँच स्थान दे सकते हैं। यह संदेश सामाजिक समरसता, समानता और प्रभु-कृपा की निष्पक्षता को स्पष्ट करता है। प्रभु की भक्ति से हर व्यक्ति महान बन सकता है।

8. दूसरे पद में संतों के नाम लेने का महत्व क्या है?
उत्तर देखेंरैदास ने नामदेव, कबीर, तिलोचन, सधना और सैन का नाम लिया। उद्देश्य यह दिखाना है कि प्रभु की सच्ची भक्ति से ये सभी संत संसार-सागर से पार हो गए। इससे यह संदेश मिलता है कि प्रभु की भक्ति किसी विशेष जाति या वर्ग तक सीमित नहीं है, बल्कि जो भी भक्ति करता है, वह उद्धार पाता है।

9. दोनों पदों का केंद्रीय भाव क्या है?
उत्तर देखेंदोनों पदों का केंद्रीय भाव प्रभु-भक्ति की महानता और भक्त की दास्यभावना है। पहले पद में उपमाओं के माध्यम से प्रभु-भक्त संबंध का घनिष्ठ चित्रण है, जबकि दूसरे पद में प्रभु की करुणा, गरीबनवाजी और संतों के उद्धार का वर्णन है। दोनों पद पूर्ण समर्पण और शरणागति की प्रेरणा देते हैं।

10. रैदास की भक्ति की विशेषताएँ किन बिंदुओं में स्पष्ट होती हैं?
उत्तर देखेंरैदास की भक्ति सरल, निष्कपट और शरणागत है। वे स्वयं को प्रभु का दास मानते हैं और प्रभु को स्वामी। उनकी भक्ति सामाजिक बंधनों और ऊँच-नीच से परे है। गरीब, नीच और उपेक्षित तक प्रभु की कृपा पहुँच सकती है। यह भक्ति दास्यभाव, प्रेम, समर्पण और सामाजिक समानता पर आधारित है।

कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 6 पद के लिए दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर।

कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 6 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-उत्तर

1. रैदास के पहले पद में दी गई उपमाओं का भक्त–प्रभु संबंध की दृष्टि से विश्लेषण कीजिए।
उत्तर देखेंरैदास के पहले पद में प्रभु और भक्त के संबंध को विभिन्न उपमाओं के माध्यम से अत्यंत सरल और हृदयग्राही रूप में प्रस्तुत किया गया है। उन्होंने कहा – “प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी”, यहाँ पानी में चंदन का सुवास मिलकर उसे मूल्यवान बना देता है। इसी प्रकार भक्त का जीवन प्रभु की कृपा से सुगंधित होता है। “प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा” – मोर का आनंद बादल देखकर बढ़ता है, वैसे ही भक्त प्रभु के दर्शन से प्रफुल्लित होता है। “प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती” – दीपक और बाती मिलकर ही प्रकाश देते हैं, यह उपमा प्रभु और भक्त की परस्परता का प्रतीक है। “प्रभु जी, तुम मोती हम धागा” – मोती और धागा मिलकर आभूषण बनते हैं, वैसे ही प्रभु और भक्त का मिलन जीवन को सार्थक करता है। इन उपमाओं से रैदास की भक्ति में निहित दास्यभाव और पूर्ण समर्पण प्रकट होता है।

2. “ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै” पद का भावार्थ विस्तारपूर्वक स्पष्ट कीजिए।
उत्तर देखेंरैदास इस पद में प्रभु की महानता और उनकी करुणा का गुणगान करते हैं। वे कहते हैं कि संसार में प्रभु के सिवा कोई दूसरा ऐसा नहीं है जो सच्चे अर्थों में सहायक हो सके। प्रभु ही गरीबों के पालनहार हैं, जिन्हें रैदास “गरीब निवाजु गुसइआ” कहते हैं। वे अपने भक्तों के सिर पर छत्र रखकर उन्हें सुरक्षा और सम्मान प्रदान करते हैं। प्रभु निर्भय हैं – “काहू ते न डरै”। वे किसी से भयभीत नहीं होते और अन्याय का सामना कर अपने भक्तों का उद्धार करते हैं। इसी पद में रैदास यह भी बताते हैं कि प्रभु नीच को ऊँच बनाने की क्षमता रखते हैं। उन्होंने समाज में उपेक्षित और नीच समझे जाने वालों को भी ऊँचा स्थान प्रदान किया। अंत में रैदास ने नामदेव, कबीर, तिलोचन, सधना और सैन जैसे संतों का नाम लेकर उदाहरण प्रस्तुत किया कि प्रभु की भक्ति से ही सभी संत पार हो गए। यह पद प्रभु की शरणागति और उनकी कृपा की महिमा को उजागर करता है।

3. रैदास के पदों में दास्यभाव किस प्रकार प्रकट होता है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर देखेंरैदास की भक्ति का मूल आधार दास्यभाव है। वे स्वयं को प्रभु का दास और सेवक मानते हैं। पहले पद में उन्होंने कहा – “प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा”। इससे स्पष्ट है कि वे प्रभु को मालिक और स्वयं को उनका सेवक मानकर जीवन जीते हैं। दास्यभाव का तात्पर्य है – अहंकार त्यागकर प्रभु की आज्ञा में रहना और उन्हें अपना सर्वस्व मानना। “दीपक–बाती”, “चंदन–पानी”, “घन–मोर” और “मोती–धागा” जैसी उपमाएँ भी इसी भाव को दर्शाती हैं। इन उपमाओं के माध्यम से रैदास बताते हैं कि भक्त का अस्तित्व प्रभु के बिना अधूरा है। दूसरे पद में भी रैदास प्रभु को “गरीब निवाजु” और स्वयं को आश्रित बताते हैं। वे मानते हैं कि प्रभु के सिवा और कोई सहायक नहीं। इस प्रकार रैदास का सम्पूर्ण काव्य समर्पण और दास्यभाव का अनुपम उदाहरण है।

4. रैदास द्वारा प्रस्तुत सामाजिक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
उत्तर देखेंरैदास का जीवन सामाजिक असमानता और जातिगत भेदभाव से भरा हुआ था, किन्तु उन्होंने भक्ति मार्ग द्वारा इसका समाधान प्रस्तुत किया। उनके पदों में यह स्पष्ट झलकता है कि प्रभु किसी विशेष जाति या वर्ग तक सीमित नहीं हैं। “नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु” – इस पंक्ति से स्पष्ट है कि ईश्वर नीच समझे जाने वालों को भी ऊँच स्थान प्रदान करते हैं। वे गरीबों के भी रक्षक हैं – “गरीब निवाजु गुसइआ”। समाज जिन लोगों को हीन समझता है, प्रभु उन्हें भी अपने समान स्नेह और सम्मान देते हैं। संत नामदेव, कबीर, तिलोचन, सधना और सैन – सभी विविध पृष्ठभूमि से आए, परंतु प्रभु की भक्ति से उन्होंने मुक्ति पाई। रैदास का संदेश है कि प्रभु-भक्ति जाति, वर्ण और पद की सीमाओं से परे है। यह दृष्टि समाज में समता, करुणा और भाईचारे की स्थापना करती है। इस प्रकार रैदास का काव्य धार्मिक ही नहीं, सामाजिक सुधार का भी वाहक है।

5. रैदास के दोनों पदों का केंद्रीय भाव समझाइए।
उत्तर देखेंदोनों पदों का केंद्रीय भाव प्रभु की महिमा और भक्त की शरणागति है। पहले पद में रैदास ने विविध उपमाओं का प्रयोग कर प्रभु और भक्त के संबंध को स्पष्ट किया है। इनमें दास्यभाव प्रमुख है। वे बताते हैं कि भक्त का अस्तित्व प्रभु के बिना अधूरा है। चंदन–पानी, घन–मोर, दीपक–बाती, मोती–धागा जैसी उपमाएँ इस संबंध की गहराई को प्रकट करती हैं। दूसरे पद में रैदास प्रभु की करुणा का गुणगान करते हैं। प्रभु गरीबों के रक्षक हैं, वे नीच को ऊँच बनाने की क्षमता रखते हैं और किसी से नहीं डरते। उन्होंने संत नामदेव, कबीर, तिलोचन, सधना और सैन के उदाहरण देकर बताया कि प्रभु-भक्ति से सभी संत उद्धार को प्राप्त हुए। इस प्रकार दोनों पदों में प्रभु-भक्ति, दास्यभाव, समर्पण और सामाजिक समानता का संदेश निहित है। यही इनका केंद्रीय भाव है।