एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 हिंदी संचयन अध्याय 4 मेरा छोटा से निजी पुस्तकालय

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 हिंदी संचयन अध्याय 4 मेरा छोटा से निजी पुस्तकालय के प्रश्न उत्तर अभ्यास में दिए गए सभी प्रश्नों के हल शैक्षणिक सत्र 2025-26 के लिए यहाँ दिए गए हैं। इस पाठ के आरंभ में लेखक ने बताया कि किस प्रकार जुलाई 1989 में एक दिन का समय अधिक संघर्षमय था। तीन ज़बरदस्त हार्ट-अटैक के बाद मौत के करीब पहुंचे लेखक को डॉक्टर बोर्जेस ने नौ सौ वॉल्ट्स के झटके देकर पुनः जीवन में लौटाया। यह क्रियावली उसके हृदय के साठ प्रतिशत हिस्से को नष्ट कर दिया और केवल चालीस प्रतिशत बचा। ऑपरेशन की आवश्यकता थी, लेकिन सर्जन अभी निर्णय में अनिश्चित थे।
कक्षा 9 हिंदी संचयन पाठ 4 के प्रश्न उत्तर
कक्षा 9 हिंदी संचयन पाठ 4 के अति-लघु उत्तरीय प्रश्न
कक्षा 9 हिंदी संचयन पाठ 4 के लघु उत्तरीय प्रश्न
कक्षा 9 हिंदी संचयन पाठ 4 के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
कक्षा 9 हिंदी संचयन पाठ 4 MCQ

अभ्यास के प्रश्न उत्तर

कक्षा 9 हिंदी संचयन अध्याय 4 के बोध प्रश्न उत्तर

1. लेखक का ऑपरेशन करने से सर्जन क्यों हिचक रहे थे?
उत्तर देखेंजब लेखक की हालत काफ़ी बिगड़ गई तो उनकी सॉंस बंद, नब्ज बंद, और धड़कन भी बंद हो गइ्र्र तब डॉक्टरों ने उन्हें लगभग मृत ही घोषित कर दिया था । लेकिन डॉ बोर्गेस ने हार नहीं मानी उन्होंने 900 वॉल्ट्स के शौक़ दिए, इस प्रयोग में लेखक का साठ प्रतिशत हॉर्ट सदा के लिए नष्ट हो गया। बचे चालीस प्रतिशत हॉर्ट पर डॉक्टर कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे, इसलिए सर्जन लेखक के दिल का ऑपरेशन करने से हिचक रहे थे।

2. ‘किताबों वाले कमरे’ में रहने के पीछे लेखक के मन में क्या भावना थी?
उत्तर देखेंअस्पताल से घर आने पर लेखक की यह इच्छा थी कि उसको किताबों वाले कमरे में रखा जाए लेखक ने बचपन में परी कथाओं में सुन रखा था कि राजा के प्राण उसके तोते में बसते हैं। लेखक को भी ऐसा ही लगता था कि उसके प्राण इस शरीर से निकल चुके हैं अब वे इन हजारों किताबों में बसते हैं जो पिछले तीस चालीस सालों में इकट्ठी की गई हैं। इसीलिए लेखक को किताबों वाले कमरे में रखा गया।

3. लेखक के घर कौन-कौन सी पत्रिकाएँ आती थी?
उत्तर देखेंलेखक को घर में शुरू से ही पढ़ने-पढ़ाने का माहौल मिला उसके घर में नियमित रूप से पत्रिकाएँ आती थीं जिनमें मुख्य थीं वेदोदम आर्यमित्र साप्ताहिकए सरस्वतीए गृहिणी और दो बाल पत्रिकाएँ खा़स लेखक के लिए आती थीं बालसखा और चमचम जिनमें परियों एवं राजकुमारों दानवों और सुदर राजकुमारियों की कहानियाँ और रेखाचित्र होते थे।

4. लेखक को किताबें पढ़ने और सहेजने का शौक़ कैसे लगा?
उत्तर देखेंलेखक के घर पर किताबों के नियमित रूप से आने और उसके लिए भी किताबें आने से उसे बचपन में किताबें पढ़ने का शौक़ लग गया। वह हर समय किताबों में ही खोया रहने लगा खाना खाते समय भी वह किताबें पढ़ता रहता था बड़ी किताबों के विषय समझ में नहीं आते थें मगर वह उनको भी पढ़तें हुए उन्हें समझने की कोशिश करता था।

5. माँ लेखक की स्कूली पढ़ाई को लेकर क्यों चितित रहती थी?
उत्तर देखेंलेखक की माँ स्कूली पढ़ाई पर जोर देती थीं। वे चितित रहती थीं कि लड़का स्कूली किताबें पढ़ता नहीं है वह पास कैसे होगा ! कहीं साधु बनकर घर से भाग गया तो क्या होगा। पिता कहतें थे कि इसे पढ़ने दो जीवन में यही पढ़ाई काम आएगी।

6. स्कूल से इनाम में मिली अंग्रेजी की दोनों पुस्तकों ने किस प्रकार लेखक के लिए नई दुनिया के द्वार खोल दिए?
उत्तर देखेंलेखक को स्कूल से दो किताबें इनाम में मिली थीं एक में पक्षियों की जातियों, बोलियों उनकी आदतों की जानकारी मिलती है तो दूसरी किताब ‘ट्रस्टी द रग’ जिसमें पानी के जहाजों की कथाएँ थीं। कौन – कौन से जहाज होते कौन से माल लाते हैं कहाँ -कहाँ से माल लाते है। कौन से जहाज सवारी लेकर जाते हैं। नाविक की ज़िन्दगी कैसी होती है, कैसे-कैसे द्वीप मिलते हैं आदि।

7. ‘आज से यह खाना तुम्हारी अपनी किताबों का। यह तुम्हारी अपनी लाइब्रेरी है।’ -पिता के इस कथन से लेखक को क्या प्रेरणा मिली?
उत्तर देखेंलेखक को किताबें पढ़़ने का शौक़ तो पहले से ही था । जब उसके पिता ने उसको मिली किताबों को देखकर किताबों की अलमारी का एक खाना देते हुए कहा कि आज से यह खाना तुम्हारी किताबों का है तब लेखक को मानो अपनी खुद की लाइब्रेरी बनाने की प्रेरणा मिल गई और अलमारी का यही खाना बढ़ते-बढ़ते एक विशाल लाइब्रेरी में बदल गया।

8. लेखक द्वारा पहली पुस्तक खरीदने की घटना का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए ।
उत्तर देखेंलेखक अपनी माँ से पूछकर देवदास फि़ल्म देखने के लिए गया था सिनेमाघर के पास ही किताबों की दुकान थी। दुकान पर लेखक ने देवदास उपन्यास देखा उपन्यास को देखकर लेखक के मन में लालच आ गया उसने सोचा कि फि़ल्म तो एक बार में देख लेने के बाद समाप्त हो जाएगी क्यों न किताब ही खरीद लेता हूँ वह अपने पास भी रहेगी फि़र जब मन हुआ पढ़ ली। जितनी बार चाहो पढ़ो। इसके अलावा सिनेमा का टिकट डेढ़ रुपये का था और किताब दस आने की थी। इसलिए लेखक ने किताब ही खरीदी अब किताब भी लेखक की हो गई और उसके पैसे भी बच गए।

9. ‘इन कृतियों के बीच अपने को कितना भरा-भरा महसूस करता हूँ ’का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर देखेंलेखक जब अपने पुस्तक संग्रह पर नजर डालता है तो उसे अपने चारों ओर हिन्दी अंग्रेजी के उपन्यास, संस्मरण, नाटक, कथा संकलन, जीवनी संस्मरण, इतिहास आदि की किताबें ही दिखाई देती हैं, जिन्हें देखकर उसे ऐसा लगता है मानों वह इन सभी लेखको से घिरा हुआ है और इन्हीं की कृपा से जीवित है।

कक्षा 9 हिंदी संचयन अध्याय 4 मेरा छोटा सा निजी पुस्तकालय पर आधारित अति-लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर।

कक्षा 9 हिंदी संचयन अध्याय 4 अति-लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर

1. जुलाई 1989 में लेखक के साथ कौन-सी घटना घटी?
उत्तर देखेंजुलाई 1989 में लेखक को लगातार तीन हार्ट-अटैक आए। डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया, पर 900 वोल्ट के शॉक से उनका हृदय पुनः चल पड़ा, हालांकि 60 प्रतिशत हृदय स्थायी रूप से नष्ट हो गया।

2. लेखक को घर लाकर कहाँ लिटाया गया?
उत्तर देखेंडॉक्टरों ने घर लाकर आराम करने की सलाह दी। लेखक ने ज़िद की कि उन्हें बेडरूम में नहीं, बल्कि अपने किताबों वाले कमरे में रखा जाए। वही कमरा उन्हें जीवन से अधिक जुड़ा महसूस होता था।

3. लेखक के पिता किस समाजिक संगठन से जुड़े थे?
उत्तर देखेंलेखक के पिता आर्य समाज रानीमंडी के प्रधान थे। वे गांधीजी के आह्वान पर सरकारी नौकरी छोड़ चुके थे और सामाजिक सुधार व शिक्षा-प्रसार में सक्रिय भूमिका निभाते थे।

4. लेखक की माँ ने कौन-सी संस्था स्थापित की थी?
उत्तर देखेंलेखक की माँ ने स्त्रियों की शिक्षा के लिए “आदर्श कन्या पाठशाला” की स्थापना की थी। वे महिला शिक्षा को समाज सुधार का आधार मानती थीं और बालकों की शिक्षा पर भी विशेष ध्यान देती थीं।

5. लेखक को बचपन में कौन-सी बाल पत्रिकाएँ मिलती थीं?
उत्तर देखेंलेखक को बचपन में “बालसखा” और “चमचम” नामक पत्रिकाएँ मिलती थीं। इन पत्रिकाओं में परियों, दानवों और राजकुमारों की कहानियाँ व चित्र होते थे, जिन्हें पढ़ने का उन्हें बहुत शौक था।

6. लेखक की प्रिय पुस्तक कौन-सी थी?
उत्तर देखेंलेखक की सबसे प्रिय पुस्तक स्वामी दयानंद की जीवनी थी। यह जीवनी रोचक शैली में लिखी गई थी, चित्रों से सजी थी और स्वामीजी के साहसी जीवन प्रसंगों ने लेखक को गहराई से प्रभावित किया।

7. पाँचवीं कक्षा में अच्छे अंक आने पर लेखक को क्या मिला?
उत्तर देखेंपाँचवीं कक्षा में प्रथम आने पर लेखक को इनाम में दो अंग्रेजी किताबें मिलीं। इनमें पक्षियों की आदतों व जहाजों की कहानियाँ थीं, जिन्होंने उनके लिए नई दुनिया के द्वार खोल दिए।

8. लेखक की पहली लाइब्रेरी की शुरुआत कैसे हुई?
उत्तर देखेंपिता ने अलमारी का एक खाना खाली करके उसमें उनकी दो अंग्रेजी किताबें रखीं और कहा कि यह उनकी अपनी लाइब्रेरी है। यही उनके निजी पुस्तकालय की शुरुआत थी।

9. लेखक बचपन में किस लाइब्रेरी में जाया करते थे?
उत्तर देखेंलेखक “हरि भवन” नामक मोहल्ले की लाइब्रेरी में जाते थे। वहाँ बैठकर अनूदित उपन्यास पढ़ते और देर तक वहीं रहते थे, भले ही किताबें घर ले जाने की सुविधा न हो।

10. लेखक ने पहली साहित्यिक पुस्तक अपने पैसों से कब खरीदी?
उत्तर देखेंइंटर पास करने के बाद, पाठ्यपुस्तकें बेचकर बची हुई रकम से लेखक ने पहली साहित्यिक पुस्तक खरीदी। यह पुस्तक शरत्चंद्र चटोपाध्याय का प्रसिद्ध उपन्यास “देवदास” था।

11. लेखक की माँ सिनेमा को क्यों नापसंद करती थीं?
उत्तर देखेंलेखक की माँ को लगता था कि सिनेमा देखने से बच्चे बिगड़ जाते हैं और पढ़ाई से ध्यान हट जाता है। इस कारण वे सिनेमा का विरोध करती थीं, परंतु लेखक को गाना गुनगुनाते देखकर उन्होंने सहानुभूति दिखाई।

12. लेखक ने “देवदास” पुस्तक कितने पैसों में खरीदी?
उत्तर देखेंपुस्तक-विक्रेता ने लेखक को विद्यार्थी समझकर रियायत दी और “देवदास” पुस्तक केवल दस आने में बेच दी। यह उनकी निजी लाइब्रेरी की पहली खरीदी हुई किताब थी।

13. लेखक की माँ की आँखों में आँसू क्यों आए?
उत्तर देखेंजब लेखक फिल्म देखने के बजाय “देवदास” पुस्तक खरीदकर लौटे, तब माँ की आँखों में आँसू आ गए। यह आँसू खुशी और भावुकता दोनों के थे क्योंकि बेटे ने पुस्तक को महत्व दिया था।

14. लेखक की लाइब्रेरी में किन-किन विधाओं की पुस्तकें थीं?
उत्तर देखेंलेखक की लाइब्रेरी में उपन्यास, नाटक, कथा-संकलन, जीवनियाँ, संस्मरण, इतिहास, कला, पुरातत्त्व और राजनीति आदि विषयों की हजारों पुस्तकें संकलित थीं। यह संग्रह दशकों के परिश्रम से बना था।

15. कवि विदा करंदीकर ने लेखक को देखकर क्या कहा?
उत्तर देखेंऑपरेशन सफल होने के बाद कवि विदा करंदीकर ने कहा कि पुस्तक-रूप में उपस्थित महापुरुषों के आशीर्वाद से ही लेखक बचे हैं। इन पुस्तकों ने उन्हें पुनर्जीवन प्रदान किया।

कक्षा 9 हिंदी संचयन अध्याय 4 मेरा छोटा सा निजी पुस्तकालय के लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर।

कक्षा 9 हिंदी संचयन अध्याय 4 लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर

1. लेखक को अपने किताबों वाले कमरे में क्यों लिटाया गया?
उत्तर देखेंहार्ट-अटैक से उबरकर लौटे लेखक ने ज़िद की कि उन्हें बेडरूम में नहीं बल्कि किताबों वाले कमरे में रखा जाए। उन्हें लगता था कि उनके प्राण शरीर से निकल चुके हैं और अब वे पुस्तकों में बसते हैं। किताबों से भरी अलमारियों के बीच वे अधिक सुकून और जीवन की ऊर्जा महसूस करते थे, इसलिए वही कमरा उनका संबल बना।

2. लेखक को पढ़ने का शौक कैसे लगा?
उत्तर देखेंबचपन में घर पर “आर्यमित्र”, “सरस्वती”, “गृहिणी” जैसी पत्रिकाएँ आती थीं और खास उनके लिए “बालसखा” व “चमचम” मिलती थीं। इनमें परियों, राजकुमारों और दानवों की कहानियाँ होती थीं। इन्हीं ने उन्हें पढ़ने का शौक लगा दिया। इसके अतिरिक्त वे उपनिषद और सत्यार्थ प्रकाश जैसी गंभीर पुस्तकों को भी जिज्ञासा से पढ़ते थे।

3. लेखक के पिता और माँ ने शिक्षा के क्षेत्र में क्या योगदान दिया?
उत्तर देखेंलेखक के पिता आर्य समाज रानीमंडी के प्रधान थे। उन्होंने गांधीजी के आह्वान पर सरकारी नौकरी छोड़ दी और समाज सुधार में सक्रिय हुए। माँ ने “आदर्श कन्या पाठशाला” की स्थापना कर स्त्री-शिक्षा को प्रोत्साहित किया। दोनों के प्रयासों से लेखक का बालमन सुधारवादी विचारधारा और शिक्षा के महत्त्व से प्रभावित हुआ।

4. लेखक की पहली अंग्रेजी पुस्तकों ने उनके जीवन को कैसे प्रभावित किया?
उत्तर देखेंपाँचवीं कक्षा में प्रथम आने पर मिली दो अंग्रेजी किताबों ने लेखक की दृष्टि विस्तृत कर दी। एक पुस्तक ने उन्हें पक्षियों की आदतों और प्रकृति का परिचय दिया, दूसरी ने समुद्री जहाजों और नाविकों की दुनिया दिखाई। इससे उनका कल्पनालोक विस्तृत हुआ और पढ़ने की अभिरुचि गहरी हो गई। इन्हीं को आधार बनाकर पिता ने उनकी “निजी लाइब्रेरी” की नींव रखी।

5. “हरि भवन” लाइब्रेरी ने लेखक पर क्या प्रभाव डाला?
उत्तर देखें“हरि भवन” मोहल्ले की लाइब्रेरी लेखक के लिए खजाना थी। वहाँ बैठकर वे बंकिमचंद्र, टॉलस्टॉय, ह्यूगो, गोर्की आदि के अनूदित उपन्यास पढ़ते। विश्व साहित्य के पात्रों से परिचय पाकर उनका दृष्टिकोण व्यापक हुआ। यद्यपि वे किताबें घर नहीं ला पाते थे, फिर भी वहीं बैठकर पढ़ना उनके साहित्यिक विकास का महत्वपूर्ण आधार बना।

6. लेखक ने अपनी पहली साहित्यिक पुस्तक कैसे खरीदी?
उत्तर देखेंइंटर पास करने के बाद पुरानी पाठ्यपुस्तकें बेचकर कुछ रुपये मिले। दो रुपये बचे, जिनमें से सिनेमा देखने की इच्छा थी, पर संयोगवश किताब की दुकान पर “देवदास” दिखाई दी। दुकानदार ने रियायत देकर केवल दस आने में पुस्तक दी। यह पुस्तक लेखक की निजी लाइब्रेरी की पहली खरीदी हुई किताब बनी, जिसने उन्हें अपार संतोष दिया।

7. लेखक की माँ ने फिल्म “देवदास” देखने की अनुमति क्यों दी?
उत्तर देखेंलेखक सहगल का गाना “दुख के दिन अब बीतत नाहीं” गुनगुनाते रहते थे, जिससे माँ भावुक हो गईं। वे सिनेमा का विरोध करती थीं, पर बेटे का मन हल्का करने हेतु उन्होंने फिल्म देखने की अनुमति दी। पर लेखक ने फिल्म छोड़कर “देवदास” पुस्तक खरीदना ही उचित समझा।

8. लेखक की लाइब्रेरी में किन-किन विषयों की पुस्तकें थीं?
उत्तर देखेंलेखक की लाइब्रेरी में विविध विषयों की हजारों पुस्तकें थीं। इनमें हिंदी-अंग्रेजी के उपन्यास, नाटक, कथा-संकलन, जीवनियाँ, संस्मरण, इतिहास, कला, पुरातत्त्व, राजनीति आदि शामिल थे। विदेशी साहित्यकारों जैसे रिल्के, चेखव, टालस्टॉय से लेकर भारतीय कवियों कबीर, तुलसी, सूर, प्रेमचंद, निराला तक की कृतियाँ उसमें थीं। यह विशाल संकलन उनके जीवन का आधार बन गया।

9. कवि विदा करंदीकर ने लेखक के बारे में क्या टिप्पणी की?
उत्तर देखेंऑपरेशन सफल होने के बाद कवि विदा करंदीकर लेखक से मिलने आए। उन्होंने कहा कि लेखक जिन महापुरुषों की कृतियों से घिरे हैं, उन्हीं के आशीर्वाद से जीवित बचे हैं। यह पुस्तकें ही उनके लिए पुनर्जीवन का कारण बनीं। इस कथन से स्पष्ट हुआ कि साहित्यिक संबल जीवन में आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति प्रदान करता है।

10. लेखक अपनी लाइब्रेरी को प्राणों का वासस्थान क्यों मानते थे?
उत्तर देखेंलेखक को लगता था कि जैसे परी कथाओं में किसी का प्राण तोते में बसता है, वैसे ही उनके प्राण इन पुस्तकों में बसते हैं। हार्ट-अटैक के बाद भी जब जीवन से आशा टूट चुकी थी, तब किताबों के बीच वे स्वयं को जीवित पाते थे। पुस्तकों ने ही उन्हें जीवन का नया अर्थ और आत्मिक शक्ति प्रदान की।

कक्षा 9 हिंदी संचयन अध्याय 4 मेरा छोटा सा निजी पुस्तकालय के दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर।

कक्षा 9 हिंदी संचयन अध्याय 4 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर

1. लेखक के जीवन में हार्ट-अटैक का अनुभव और उसके बाद की स्थिति का वर्णन करें।
उत्तर देखेंजुलाई 1989 में लेखक को लगातार तीन जोरदार हार्ट-अटैक आए। इनमें से एक में नब्ज, सांस और धड़कन पूरी तरह बंद हो गई थी। डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया, लेकिन डॉक्टर बोर्जेस ने 900 वोल्ट के शॉक देकर उनका हृदय पुनर्जीवित किया। शॉक के बावजूद हृदय का 60 प्रतिशत स्थायी रूप से नष्ट हो गया। केवल 40 प्रतिशत हृदय बचा, जिसमें भी तीन अवरोध थे। ओपन हार्ट ऑपरेशन की सलाह दी गई, लेकिन सर्जन हिचक रहे थे। लेखक को घर भेजा गया, पर उन्होंने बेडरूम में आराम करने की बजाय अपनी किताबों वाली कमरे में रहने की जिद की। इस अनुभव ने लेखक को यह अनुभव कराया कि उनके प्राण अब किताबों में बसे हैं। किताबों ने उन्हें शारीरिक और मानसिक दृष्टि से जीवन का संबल प्रदान किया।

2. लेखक में पढ़ाई और पुस्तक-संकलन का शौक कैसे विकसित हुआ?
उत्तर देखेंलेखक का पढ़ाई और पुस्तक-संकलन का शौक बचपन में शुरू हुआ। घर में नियमित पत्र-पत्रिकाएँ आती थीं—‘आर्यमित्र’, ‘सरस्वती’, ‘गृहिणी’ और विशेष रूप से ‘बालसखा’ व ‘चमचम’। इन पत्रिकाओं में परियों, राजकुमारों और दानवों की कहानियाँ और चित्र होते थे, जिन्हें लेखक बड़े ध्यान से पढ़ते। इसके अलावा, उपनिषदें, सत्यार्थ प्रकाश और स्वामी दयानंद की जीवनी पढ़ना उन्हें बहुत पसंद था। पिता ने शिक्षा के महत्व को समझते हुए उन्हें घर पर पढ़ाई कराई और माँ ने स्कूली शिक्षा पर जोर दिया। पाँचवीं कक्षा में प्रथम आने पर अंग्रेजी की दो किताबें इनाम में मिलीं। पिता ने अलमारी का एक खाना खाली कर उनकी पहली निजी लाइब्रेरी बनाई। बचपन से शुरू हुआ यह शौक धीरे-धीरे किशोरावस्था और विश्वविद्यालय तक बढ़ता गया।

3. लेखक ने अपनी पहली साहित्यिक पुस्तक कैसे खरीदी और इसका महत्व क्या था?
उत्तर देखेंइंटर पास करने के बाद लेखक के पास पुरानी पाठ्यपुस्तकें बेचकर कुछ रुपये बचे। पास में सिनेमाघर में फिल्म ‘देवदास’ का प्रचार चल रहा था। लेखक किताब की दुकान पर गया और “देवदास” उपन्यास देखा। दुकानदार ने रियायत देते हुए पुस्तक केवल दस आने में दे दी। लेखक ने फिल्म देखने के बजाय पुस्तक खरीदने का निर्णय किया। यह पुस्तक उनकी निजी लाइब्रेरी की पहली खरीदी हुई साहित्यिक कृति बनी। इस अनुभव ने लेखक को संतोष और आत्मनिर्भरता की अनुभूति दी। यह पल उनके जीवन में पुस्तक-संकलन के प्रति लगाव और साहित्यिक प्रेम का आरंभिक बिंदु बन गया।

4. “हरि भवन” लाइब्रेरी और वहाँ के साहित्यिक अनुभव का लेखक पर प्रभाव बताइए।
उत्तर देखेंलेखक बचपन में मोहल्ले की “हरि भवन” लाइब्रेरी में अक्सर जाते थे। वहाँ उन्हें अनूदित विदेशी और भारतीय उपन्यास मिलते थे। बंकिमचंद्र चटोपाध्याय, टालस्टॉय, विक्टर ह्यूगो, गोर्की, कुप्रिन और सर्वा-रीज की रचनाएँ पढ़ने का मौका मिला। इन पुस्तकों से लेखक को विश्व साहित्य और विभिन्न पात्रों की जटिलताओं का अनुभव हुआ। लाइब्रेरी में बैठकर वे लंबे समय तक पढ़ते, कभी-कभी अधूरी किताबों की चिंता होती। यह अनुभव उन्हें साहित्यिक दृष्टि, कल्पनाशक्ति और ज्ञानार्जन का आधार प्रदान करता था। आर्थिक कठिनाई के बावजूद लाइब्रेरी में जाकर पढ़ना लेखक की पाठन-शक्ति और पुस्तक-संग्रह की प्रेरणा बना।

5. लेखक अपनी पुस्तक-रूप लाइब्रेरी को प्राणों का वासस्थान क्यों मानते हैं?
उत्तर देखेंलेखक को ऐसा लगता था कि उनके प्राण शरीर से निकलकर किताबों में बस गए हैं। हार्ट-अटैक के बाद जीवन और मृत्यु के बीच अर्द्धमृत्यु अनुभव में उन्होंने अपने प्राणों को पुस्तकों में महसूस किया। किताबों से भरे कमरे में रहकर लेखक को शारीरिक और मानसिक शांति मिली। वे मानते थे कि साहित्यिक कृतियाँ उनके जीवन को पुनर्जीवित करने वाली शक्ति हैं। ऑपरेशन के बाद कवि विदा करंदीकर ने कहा कि पुस्तक-रूप महापुरुषों के आशीर्वाद से लेखक बचे हैं। इस दृष्टि से, पुस्तकें उनके लिए केवल ज्ञान का स्रोत नहीं, बल्कि जीवन और प्राणों का आशीर्वाद बन गईं।

लेखक और किताबे

अस्पताल से वापस घर आकर, लेखक अपने किताबों से भरे कमरे में विश्राम कर रहा था। उसे चलना, बोलना और पढ़ना पर प्रतिबंध था। वह समय-समय पर खिड़की के बाहर के पेड़ के पत्ते और अपनी किताबों की अलमारियों को देखता रहता। उसे अहसास हुआ कि जैसे उसका जीवन उसके शरीर से जुड़ा नहीं है, वैसे ही वह अपनी किताबों से जुड़ा हुआ है, जो पिछले चालीस-पचास वर्षों में जमा हो गई थीं।


यह कथा बताती है एक व्यक्ति के प्रेम की किताबों से। जब वह बच्चा था, उसके पिता आर्य समाज रानीमंडी के प्रधान थे और उसकी माँ ने स्त्री-शिक्षा के लिए आदर्श कन्या पाठशाला की स्थापना की थी। हालांकि परिवार आर्थिक कठिनाइयों से गुजर रहा था, फिर भी उनके घर में विभिन्न पत्रिकाएँ आती थीं। इन पत्रिकाओं में से कुछ वह बचपन से ही पढ़ता था और उनमें परियों, राजकुमारों और दानवों की कहानियाँ होती थीं।

बचपन से ही पुस्तकों से लेखक का लगाव

वह बच्चे के रूप में ही पुस्तकों में डूब जाता था। सत्यार्थ प्रकाश और स्वामी दयानंद की जीवनी जैसी पुस्तकें उसे खास प्रभावित करती थीं। दयानंद के जीवन में उसने अद्भुत साहस और अदम्य आत्मशक्ति देखी, जो उसे प्रेरित करती थी। जब भी वह इन गहरी किताबों से थक जाता, वह अपनी प्रिय बाल पत्रिकाओं बालसखा और चमचम को पुनः पढ़ लेता।


माँ चिंतित थीं कि उसका बेटा स्कूल की पढ़ाई में ध्यान नहीं दे रहा था और वह किसी दिन साधु बनकर घर छोड़ देगा। पिता इस पर चिंतित नहीं थे और चाहते थे कि बेटा घर पर ही पढ़ाई करे ताकि वह बुरी संगत से दूर रहे। जब बेटा कक्षा दो तक की पढ़ाई घर पर पूरी कर ली, तो उसे स्कूल में प्रवेश दिलाया गया। उसने अच्छी मेहनत की और अच्छे अंक प्राप्त किए।

अंग्रेजी विषय में श्रेष्ठता

बेटे को स्कूल से अंग्रेजी में श्रेष्ठता के लिए दो किताबें मिलीं जिनसे उसे नई जानकारियाँ मिलीं और उसकी रूचि और भी बढ़ गई। पिता ने उसे अलमारी में एक जगह दी जहाँ वह अपनी किताबें रख सकता था। बेटा समय समय पर अपनी शिक्षा में उत्कृष्टता प्राप्त की और उसकी लाइब्रेरी का विस्तार करता गया।


इस अंश में लेखक का व्यक्तिगत अनुभव बताया गया है, जो किताबों के प्रति उनके प्यार और इच्छा को चित्रित करता है। इलाहाबाद का वर्णन किया गया है जहाँ विभिन्न प्रकार की लाइब्रेरियों की बारीकी से चर्चा की गई है। लेखक उस समय के अपने दरिद्र जीवन की चर्चा करते हैं जब उनके पिता का स्वर्गवास हो गया था और वे अपनी पढ़ाई के लिए पुस्तकें खरीदने में असमर्थ थे।

लेखक अपने शौक की किताबों को पढ़ने के लिए ‘हरि भवन’ लाइब्रेरी में अधिक समय बिताते थे। वहां वे विश्व साहित्य के अनेक अनूदित उपन्यास पढ़ते थे और उन्हें इससे बहुत सुख मिलता था। लेखक ने अपने आर्थिक संकट का वर्णन किया है, जब उन्हें अपनी पाठ्यपुस्तकें भी खरीदने में कठिनाई होती थी। इसके बावजूद, उनकी प्रेमभावना किताबों के प्रति कभी कम नहीं हुई।

अपनी पहली पुस्तक की यादें

लेखक अपने जीवन की पहली साहित्यिक पुस्तक को खरीदने की याद साझा कर रहा है। जब वह इंटरमीडिएट पास करता है, वह पुरानी पाठ्यपुस्तकें बेचकर नई पाठ्यपुस्तकें खरीदने जाता है और उसके पास दो रुपये शेष रह जाते हैं। वह सिनेमाघर के पास जाता है जहाँ ‘देवदास’ चल रहा है और वह उस फिल्म के गाने को गुनगुनाता है। उसकी माँ, जो सिनेमा की विरोधी होती है, उसे फिल्म देखने के लिए कहती है। जब वह फिल्म देखने जाता है, उसको एक किताब की दुकान में ‘देवदास’ नामक पुस्तक दिखाई देती है, जिसकी कीमत सिर्फ एक रुपया होती है। वह वह पुस्तक खरीद लेता है। जब उसने यह बताया कि उसने पिक्चर नहीं देखी और पुस्तक खरीदी, तो माँ की आँखों में आंसू आ गए।

आज जब वह अपने पुस्तक संकलन पर नजर डालता है, जिसमें अनेक प्रसिद्ध लेखकों और कलाकारों की कृतियां हैं, तो उसे अपनी पहली पुस्तक की खरीदारी की याद शिद्दत से आती है। मराठी के वरिष्ठ कवि विदा करंदीकर ने उसे बताया कि ये सैकड़ों महापुरुष, जो पुस्तक-रूप में उसके चारों ओर हैं, वही हैं जिन्होंने उसे पुनर्जीवन दिया। लेखक इन सभी महापुरुषों का मन-ही-मन प्रणाम करता है।

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