एनसीईआरटी समाधान कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 9 लखनवी अंदाज
कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 9 लखनवी अंदाज (यशपाल) के NCERT समाधान (सत्र 2025-26) छात्रों के लिए काफी मददगार साबित होते हैं। पाठ के सभी प्रश्नों के हल स्पष्ट और सरल भाषा में दिए गए हैं। इनसे विद्यार्थी लेखक के संदेश को आसानी से समझ सकते हैं। सभी उत्तर नवीनतम पाठ्यक्रम के अनुसार हैं और ये समाधान विषय विशेषज्ञों द्वारा तैयार किए गए हैं। इनसे परीक्षा की तैयारी में सहायता मिलती है।
कक्षा 10 हिंदी क्षितिज पाठ 9 MCQ
कक्षा 10 हिंदी सभी अध्यायों के उत्तर
लखनवी अंदाज कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 9 के प्रश्न उत्तर
1. लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं?
उत्तर देखेंजैसे ही लेखक सेकंड क्लास के डिब्बे में घुसे तो वहां एक सफेदपोश सज्जन पहले से ही बैठे हुए थे। लेखक उनकी सामने वाली सीट पर बैठ गया सामने बैठे सज्जन के हाव-भाव बता रहे थे कि वह लेखक के आने से असहज महसूस कर रहा है। वह कभी सीट पर बिछे तौलिये पर रखे खीरों को देखता तो कभी खिड़की से बाहर देखता।
2. नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका, अंततः सूँघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है?
उत्तर देखेंयद्यपि नवाब साहब ने खीरे खाने के लिए खरीदे होंगे लेकिन लेखक के आ जाने से उन्हें अपनी नवाबी याद आ गयी। उन्हें लगा कि कैसे एक नवाब आम आदमी के सामने खीरा जैसी साधारण चीज खा सकता है। इसलिए, उन्होंने खीरे को धोकर पोंछकर अच्छी तरह से काटा और कटी हुई फांकों पर नमक मिर्च बुरक कर खाने के लिए उठाया। उन्होंने खीरे की फांक को सुंघा और फिर खिड़की से बाहर फेंक दिया। नवाब लेखक को दिखाना चाहता था कि रईस लोगों का खाने का अंदाज बिल्कुल अलग होता है।
3. बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है। यशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर देखेंलेखक ने जब नवाब को देखा कि बिना खीर खाए केवल सूंघने से डकार आ सकती है तो बिना विचार, घटना और पात्रों के भी कहानी लिखी जा सकती है। लेखक का यह विचार एकदम सही नहीं है। कहानी बन जाने बाद कह सकते हैं कि वह विचार तो बन ही जाएगा। लखनवी अंदाज कहानी में पात्र नवाब साहब है तथा घटना खीरे को खाने की जगह सूंघना हो जाती है। इस प्रकार कह सकते हैं कि कहानी लिखने के लिए किसी घटना, पात्र या विचार का होना आवश्यक है।
4. आप इस निबंध को और क्या नाम देना चाहेंगे?
उत्तर देखेंइस निबंध का नाम ‘सनकी नवाब’ या ‘झूठी नवाबी शान, दिया जा सकता है। नवाब के व्यवहार से लगता कि अपने को बड़ा दिखाने के लिए वह लेखक डिब्बे में आना पसंद नहीं करता, नवाब साहब को सामने बैठे लेखक से बात करना भी पसंद नहीं है। उनके खीरे काटने के अंदाज से तथा खीरे को खाने के बजाय केवल सूंघकर और फिर खिड़की से बाहर फेंक देना उनकी झूठी शान को दिखाने की सनक कह सकते हैं। शायद अकेले होते तो आराम से खा लेते।
कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 9 रचना और अभिव्यक्ति
5. (क) नवाब साहब द्वारा खीरा खाने की तैयारी करने का एक चित्र प्रस्तुत किया गया है। इस पूरी प्रक्रिया को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
उत्तर देखेंनवाब साहब ने दो खीरों और चाक़ू को तौलिए पर ऐसे सजाकर रखा हुआ था जैसे कुर्बानी के बकरे को। वो कभी खरे को देखते तो कभी छुरी को जैसे सोच रहे हों कि पहले किसकी कुर्बानी दी जाए। नवाब साहब ने खीरों को धोया, पोंछा और फिर कड़वी तरफ से काटकर झाग निकला। उसके बाद फांकों में काटकर, उन पर नमक और मिर्च छिड़का। जब केवल सूंघकर फेंक देना था तो इतनी मेहनत करने की क्या जरुरत थी। ऊपर से गजब की बात तो यह है कि बिना खाए ही बड़ी सी डकार लेना यह दिखाता है कि कोई इंसान किस हद तक दिखावा कर सकता है।
(ख) किन-किन चीजों का रसास्वादन करने के लिए आप किस प्रकार की तैयारी करते हैं?
उत्तर देखेंहम लोग बहुत सारी चीजें जैसे गाजर, टमाटर, खीरा और मूली को खाने से पहले धोकर छिलका उतारकर टुकड़ों में काटते हैं। चाय का स्वाद लेना होता है तो उसको भी तैयार करने के लिए पानी उबालो फिर उसमें चायपती, चीनी और दूध मिलाते हैं। प्याली में डालकर आराम से चाय का स्वाद ले सकते हैं।
6. खीरे के संबंध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है। आपने नवाबों की और भी सनकों और शौक के बारे में पढ़ा-सुना होगा। किसी एक के बारे में लिखिए।
उत्तर देखेंनवाब ने मेहनत से खीरे को खाने के लिए तैयार किया लेकिन खाने के बजाय केवल सूंघकर खिड़की से बाहर फेंक दिया। इसको नवाब की सनक नहीं कहेंगे तो और क्या कह सकते हैं। ऐसे ही नवाबों की सनक पर एक किस्सा बहुत प्रसिद्ध है। एक बार लखनऊ पर अंग्रेजों ने आक्रमण कर दिया। नवाब का एक सिपाही दौड़ता हुआ आया और नवाब से बोला कि तुरंत महल छोड़ कर कहीं और जाना पड़ेगा। नवाब साहब जूती पहनाने वाले सेवक का इन्तजार करते रहे कि जब तक सेवक आकर जूते नहीं पहनायेगा तब सिहांसन से उठ नहीं सकते। इसी सनक और शौक ने नवाब को अंग्रेजों ने पकड़ लिया।
7. क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप हो सकता है? यदि हाँ तो ऐसी सनकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर देखेंसनक का सकारात्मक रूप भी होता है। कुछ लोगों को अपना कार्य समय पर करने की सनक होती है। उनके काम करने का अंदाज हो सकता है शुरू में लोगों को परेशान करता हो लेकिन उसके फायदे जानकार तारीफ़ भी पाते हैं तथा दूसरे लोग भी प्रेरित होकर समय पर कार्य करने लगाते हैं। साफ़-सफाई पसंद लोगों को भी दूसरे सनकी मानते हैं। वे घर हो या ऑफिस सभी जगह सफाई तथा सामान व्यवस्थित ढंग से रखते हैं तथा दूसरों को भी ऐसा ही करने को कहते हैं। लापरवाह लोग ऐसे लोगों से परेशान रहते हैं लेकिन सफाई का महत्त्व वे भी समझते हैं। धीरे-धीरे वे लोग भी इन अच्छी आदतों को अपनाने लगते हैं।
भाषा-अध्ययन
8. निम्नलिखित वाक्यों में से क्रियापद छाँटकर क्रिया-भेद भी लिखिए –
(क) एक सफ़ेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे।
(ख) नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया।
(ग) ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है।
(घ) अकेले सप़्ाफ़र का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे।
(घ) दोनों खीरों के सिर काटे और उन्हें गोदकर झाग निकाला।
(च) नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा।
(छ) नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए।
(ज) जेब से चाकू निकाला।
उत्तर:
वाक्य | क्रियापद | क्रिया भेद |
---|---|---|
(क) एक सफ़ेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे। | बैठे थे | अकर्मक क्रिया |
(ख) नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया। | दिखाया | सकर्मक क्रिया |
(ग) ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है। | कल्पना करना | अकर्मक क्रिया |
(घ) अकेले सफ़र का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे। | खरीदे होंगे | सकर्मक क्रिया |
(घ) दोनों खीरों के सिर काटे और उन्हें गोदकर झाग निकाला। | सिर काटे, झाग निकाला | सकर्मक क्रिया |
(च) नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा। | देखा | अकर्मक क्रिया |
(छ) नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए। | लेट गए | अकर्मक क्रिया |
(ज) जेब से चाकू निकाला। | निकाला | सकर्मक क्रिया |
पाठेतर सक्रियता
• ‘किबला शौक फरमाएँ’, ‘आदाब-अर्ज—शौक फरमाएँगे’ जैसे कथन शिष्टाचार से जुड़े हैं। अपनी मातृभाषा के शिष्टाचार सूचक कथनों की एक सूची तैयार कीजिए।
उत्तर देखेंहमारी मातृभाषा (हिंदी) में भी शिष्टाचार सूचक कथनों का बहुत प्रयोग होता है। इनसे बोलने वाले की विनम्रता और सम्मान की भावना झलकती है। मैंने ऐसे कुछ कथनों की सूची तैयार की है—
► नमस्कार / प्रणाम संबंधी
• नमस्ते / नमस्कार
• प्रणाम / चरणस्पर्श
• राम-राम / जय श्रीराम
• सत श्री अकाल
• आदाब
► अनुमति लेने के लिए
• क्या मैं अंदर आ सकता हूँ?
• कृपया बैठने की अनुमति दें।
• ज़रा मुझे जाने दीजिए।
• क्या मैं यह पुस्तक ले सकता हूँ?
► विनम्र निवेदन के लिए
• कृपया मेरी मदद कीजिए।
• आप थोड़ी देर रुकें, कृपा होगी।
• ज़रा ध्यान देंगे, तो अच्छा लगेगा।
► आभार व्यक्त करने के लिए
• धन्यवाद।
• बहुत-बहुत शुक्रिया।
• आपका बहुत आभार।
► क्षमा याचना के लिए
• मुझे माफ़ कीजिए।
• क्षमा कीजिए, मुझसे गलती हो गई।
• आपको कष्ट दिया, इसके लिए खेद है।
• ‘खीरा—मेदे पर बोझ डाल देता है’ क्या वास्तव में खीरा अपच करता है? किसी भी खाद्य पदार्थ का पच-अपच होना कई कारणों पर निर्भर करता है। बड़ों से बातचीत कर कारणों का पता लगाइए।
उत्तर देखेंखीर वैसे तो सुपाच्य पदार्थ है लेकिन अधिक मात्रा में खाने से समस्या कर सकता है। किसी पदार्थ का पाच-अपच होना उसकी तासीर पर तथा उसकी गरिष्ठता पर निर्भर करता है। जैसे गर्मी के मौसम में गर्म तासीर वाले पदार्थ का सेवन समस्या उत्पन्न कर सकता है। ऐसे भी लोग होते हैं जिनका पाचन तंत्र कमज़ोर होता है उनके लिए गरिष्ठ भोजन अपच पैदा कर सकता है। पदार्थ की मात्रा का भी बड़ा महत्त्व है। किसी सुपाच्य पदार्थ का भी अत्याधिक मात्रा में सेवन करने से समस्या उत्पन्न हो सकते हैं। मैंने इस विषय पर अपने बड़ों से बातचीत की। उन्होंने बताया कि भोजन का पचना या न पचना कई कारणों पर निर्भर करता है –
• व्यक्ति का स्वास्थ्य और पाचन-शक्ति (कमज़ोर पेट वाले को जल्दी अपच हो सकता है)
• खाने का समय (जैसे रात को भारी चीज़ खाने से पचने में दिक़्क़त)
• खाने की मात्रा (अत्यधिक खाने से कोई भी चीज़ अपच कर सकती है)
• खाने का तरीका (जैसे जल्दी-जल्दी खाना, बिना ठीक से चबाए खाना)
• भोजन का मेल (कुछ खाद्य पदार्थ साथ खाने से अपच हो सकता है, जैसे दूध और नमकीन चीजें)
इसलिए यह कहना सही नहीं है कि खीरा हमेशा अपच करता है। दरअसल, यह व्यक्ति की पाचन-शक्ति और खाने की आदतों पर निर्भर करता है।
• खाद्य पदार्थों के संबंध में बहुत-सी मान्यताएँ हैं जो आपके क्षेत्र में प्रचलित होंगी, उनके बारे में चर्चा कीजिए।
उत्तर देखेंहमारे क्षेत्र में खाद्य पदार्थों के संबंध में कई मान्यताएँ (धारणाएँ/विश्वास) प्रचलित हैं। बड़े-बुज़ुर्ग इन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी बताते आए हैं। इनमें से कुछ सही हैं, कुछ केवल लोक-मान्यता के रूप में जानी जाती हैं।
1. ठंडी-गरम प्रकृति की मान्यताएँ
• खीरा, तरबूज, ककड़ी, दही आदि को “ठंडी तासीर” वाला माना जाता है।
• अदरक, लहसुन, गुड़ और मसालेदार भोजन को “गरम तासीर” वाला समझा जाता है।
• मान्यता है कि गर्मियों में ठंडी तासीर वाले खाद्य पदार्थ और सर्दियों में गरम तासीर वाले खाद्य पदार्थ खाने चाहिए।
2. संयोजन से जुड़ी मान्यताएँ
• दूध के साथ नमकीन या खट्टी चीज़ नहीं खानी चाहिए, वरना पेट खराब होता है।
• मछली और दूध को साथ खाने से बीमारी हो जाती है।
• दही और प्याज़ को साथ खाने को भी हानिकारक माना जाता है।
3. समय से जुड़ी मान्यताएँ
• रात को दही खाना हानिकारक माना जाता है।
• शाम को दाल-भात खाना शरीर को भारी कर देता है।
• सुबह खाली पेट फल खाना स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है।
4. त्यौहार और परंपरा से जुड़ी मान्यताएँ
• व्रत (उपवास) के समय फल और सात्त्विक भोजन खाना पवित्र माना जाता है।
• किसी शुभ अवसर पर गुड़ और दही खिलाना मंगलकारी समझा जाता है।
• होली या मकर संक्रांति पर तिल-गुड़ खाने को अच्छा माना जाता है, क्योंकि यह मौसम के बदलाव में शरीर को ताकत देता है।
इन मान्यताओं का संबंध अक्सर स्वास्थ्य, मौसम और परंपरा से होता है। कुछ बातें वैज्ञानिक दृष्टि से भी सही साबित होती हैं, परंतु कई केवल लोकविश्वास हैं। फिर भी ये हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं और बड़े-बुज़ुर्ग इन्हें मानकर चलते हैं।
• पतनशील सामंती वर्ग का चित्रण प्रेमचंद ने अपनी एक प्रसिद्ध कहानी ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में किया था और फिर बाद में सत्यजीत राय ने इस पर इसी नाम से एक फिल्म भी बनाई थी। यह कहानी ढूँढ़कर पढि़ए और संभव हो तो फिल्म भी देखिए।
उत्तर देखेंशतरंज के खिलाड़ी : कहानी और फिल्म
► कहानी का सार
प्रेमचंद की कहानी शतरंज के खिलाड़ी 1856 के लखनऊ (अवध) की पृष्ठभूमि पर आधारित है। उस समय नवाब वाजिद अली शाह शासन कर रहे थे। अंग्रेज़ धीरे-धीरे अपनी पकड़ मजबूत कर रहे थे, लेकिन नवाब और उनके जागीरदार मौज-मस्ती, नृत्य-संगीत और खेलों में डूबे हुए थे।
दो सामंत—मिर्ज़ा सज्जाद अली और मीर रौशन अली—शतरंज खेलने के इतने दीवाने थे कि वे परिवार, समाज और राज्य की जिम्मेदारियों की पूरी तरह उपेक्षा करते रहे। यहां तक कि जब अंग्रेज़ अवध को अपने कब्ज़े में ले लेते हैं, तब भी वे मस्जिद के खंडहर में बैठकर शतरंज की बिसात बिछाए रहते हैं।
कहानी का व्यंग्य यही है कि जब देश और समाज संकट में था, तब ये सामंती लोग सिर्फ़ अपने शौक और आलस्य में डूबे रहे।
► फिल्म का रूपांतरण
सत्यजीत राय ने 1977 में इसी कहानी पर फिल्म बनाई।
• मुख्य कलाकार: संजीव कुमार (मिर्ज़ा), सईद जाफ़री (मीर), अमज़द ख़ान (वाजिद अली शाह), रिचर्ड एटनबरो (ब्रिटिश अफ़सर)।
• विशेषताएँ: फिल्म में लखनऊ की तहज़ीब, शायरी, संगीत और नवाबी संस्कृति का खूबसूरत चित्रण है। इसमें यह भी दिखाया गया है कि अंग्रेज़ कितनी रणनीति और चतुराई से सत्ता हथिया रहे थे, जबकि भारतीय सामंती वर्ग गैर-जिम्मेदार और निठल्ला बना रहा।
► कहानी और फिल्म की तुलना
• पृष्ठभूमि: दोनों में 1856 का लखनऊ और अवध।
• फोकस: कहानी में ज़्यादा व्यंग्य है; फिल्म में सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृश्य विस्तार।
• चरित्र: कहानी में मुख्य रूप से मिर्ज़ा और मीर; फिल्म में नवाब, अंग्रेज़ अफ़सर और उनकी गतिविधियों का भी विस्तार।
• प्रतीक: शतरंज = राजनीति की चालें, खंडहर = ढहती सामंती व्यवस्था।
कहानी और फिल्म दोनों यह सिखाती हैं कि अगर समाज का नेतृत्व करने वाले लोग गैर-जिम्मेदार बन जाएँ तो सत्ता और संस्कृति पर बाहरी ताकतों का कब्ज़ा हो सकता है। प्रेमचंद ने इसे साहित्य में और सत्यजीत राय ने इसे सिनेमा में अमर कर दिया।
कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 9 अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर
लेखक ने सेकंड क्लास का टिकट क्यों लिया?
उत्तर देखेंभीड़ से बचकर एकांत में नई कहानी सोचने और खिड़की से प्राकृतिक दृश्य देखने के लिए।
डिब्बे में नवाब साहब को देखकर लेखक ने क्या अनुमान लगाया?
उत्तर देखेंलेखक ने सोचा कि नवाब साहब शायद कहानी के लिए सूझ रहे हों या खीरा खाने में संकोच कर रहे हों।
नवाब साहब ने खीरे की फाँकों का वास्तव में क्या किया?
उत्तर देखेंउन्होंने फाँकों को सूँघा, स्वाद की कल्पना की और सबको खिड़की से बाहर फेंक दिया।
नवाब साहब के व्यवहार में अचानक परिवर्तन कब आया?
उत्तर देखेंजब उन्होंने लेखक को “आदाब-अर्ज़” कहकर खीरा खाने का निमंत्रण दिया।
“सतृष्ण आँखें” किस ओर देख रही थीं?
उत्तर देखेंनमक-मिर्च लगी खीरे की चमकती फाँकों की ओर जो उनकी अधूरी इच्छा दिखाती थीं।
नवाब साहब ने खीरे क्यों नहीं खाए?
उत्तर देखेंवे सफ़ेदपोश की छवि बनाए रखना चाहते थे, इसलिए दिखावे के लिए केवल कल्पना से संतुष्ट हुए।
लेखक ने नवाब के निमंत्रण को क्यों ठुकराया?
उत्तर देखेंआत्मसम्मान के कारण और क्योंकि उन्हें लगा कि नवाब सिर्फ़ दिखावा कर रहे हैं।
खीरे फेंकने के बाद नवाब साहब ने क्या किया?
उत्तर देखेंउन्होंने गर्व से लेखक की ओर देखा, मानो खानदानी रईसी का तरीका सिखा रहे हों।
“ज्ञान-चक्षु खुल गए” से लेखक का क्या आशय था?
उत्तर देखेंउन्हें समझ आया कि नवाब साहब “नई कहानी” के प्रतीक हैं, जो यथार्थ के बिना कल्पना से काम चलाते हैं।
कहानी में ‘लखनवी अंदाज़’ किसे कहा गया?
उत्तर देखेंनवाब साहब के उस दिखावटी व्यवहार को, जहाँ वे खीरा खाए बिना ही डकार लेते हैं।
नवाब साहब ने खीरे कैसे तैयार किए?
उत्तर देखेंधोकर पोंछा, छीला, फाँकें काटीं, नमक-मिर्च बुरकी और जीरे से सजाया।
नवाब साहब की आँखों में ‘गुलाबी’ चमक क्यों थी?
उत्तर देखेंअपनी कल्पित रईसी पर गर्व करने के कारण, जबकि वे केवल दिखावा कर रहे थे।
लेखक ने नवाब के डकार को किससे जोड़ा?
उत्तर देखें“नई कहानी” की उस प्रवृत्ति से जो बिना ठोस तत्वों के केवल शैली से संतुष्ट होती है।
ट्रेन का वातावरण कैसा था?
उत्तर देखेंमुफ़स्सिल की पैसेंजर ट्रेन चलने की उतावली में “फूँकार” रही थी।
नवाब साहब के पास खीरे कहाँ रखे थे?
उत्तर देखेंतौलिए पर, जो उनकी नफ़ासत और दिखावटी शौक़ का प्रतीक था।
कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 9 लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर
नवाब साहब के मन में लेखक के प्रवेश पर क्या भाव थे? विवेचना करें।
उत्तर देखेंनवाब साहब एकांत चाहते थे, इसलिए लेखक के आने पर उनकी आँखों में विघ्न का असंतोष दिखा। वे शायद अपनी गरिमा बनाए रखना चाहते थे या खीरा खाने में संकोच कर रहे थे, जिससे उनका एकांत भंग हो गया।
“अनुमान के प्रतिकूल डिब्बा निर्जन नहीं था” – यह वाक्य कथानक में क्या भूमिका निभाता है?
उत्तर देखेंयह वाक्य कहानी का मोड़ है। लेखक को लगा था कि डिब्बा खाली होगा, पर नवाब साहब की उपस्थिति ने संघर्ष शुरू किया। इससे दोनों पात्रों की मानसिक असुविधा और सामाजिक दिखावे की पृष्ठभूमि तैयार हुई।
नवाब साहब के चरित्र में छिपी विडंबनाएँ कौन-सी हैं?
उत्तर देखेंनवाब साहब सेकंड क्लास में सफ़र करते हैं, पर शर्मिंदा हैं। वे खीरा खाना चाहते हैं, पर दिखावे के लिए सिर्फ़ उसकी कल्पना करते हैं। यह उनकी आर्थिक सीमाओं और झूठी शान का विरोधाभास दर्शाता है।
“वल्लाह, शौक कीजिए!” – यह संवाद नवाब साहब की किस मनोदशा को दिखाता है?
उत्तर देखेंयह संवाद उनकी कृत्रिम उदारता और मजबूरी को उजागर करता है। वे लेखक को खीरा खिलाकर अपनी “शराफ़त” साबित करना चाहते हैं, ताकि उनकी वास्तविक इच्छा छिपी रहे और दिखावा बना रहे।
कहानी में ‘खीरा’ किसका प्रतीक है?
उत्तर देखेंखीरा दोहरे प्रतीक है:
सामाजिक स्तर का: साधारण वस्तु जिसे खाने में नवाब को शर्म आती है।
साहित्यिक व्यंग्य का: यथार्थ (कहानी का मूल तत्व) जिसे “नई कहानी” के कुछ लेखक कल्पना से भर देते हैं।
लेखक ने नवाब साहब को “नई कहानी का लेखक” क्यों कहा?
उत्तर देखेंक्योंकि नवाब साहब ने खीरे की वास्तविकता (खाना) छोड़कर केवल उसकी कल्पना (सुगंध/स्वाद) से संतुष्टि पाई। ठीक वैसे ही, “नई कहानी” के कुछ लेखक यथार्थवादी तत्वों को छोड़कर अमूर्त शैली में भावनात्मक अनुभूति तक सीमित हो गए।
“तस्लीम में सिर ख़म करना” घटना का क्या महत्व है?
उत्तर देखेंजब नवाब साहब गर्व से लेखक की ओर देखते हैं, लेखक को सिर झुकाना पड़ता है। यह समाज में दिखावटी मूल्यों के समक्ष झुकने की मजबूरी दर्शाता है, भले ही वे हास्यास्पद हों। यह रूढ़ियों पर व्यंग्य है।
नवाब साहब के डकार का प्रतीकात्मक अर्थ क्या है?
उत्तर देखेंडकार दिखाता है कि कल्पना मात्र से भी झूठी संतुष्टि मिल सकती है। यह “नई कहानी” की उस प्रवृत्ति पर व्यंग्य है जो बिना ठोस विषय या पात्रों के, केवल शैली के बल पर पूर्ण होने का भ्रम पैदा करती है।
कहानी के शीर्षक “लखनवी अंदाज़” की सार्थकता स्पष्ट करें।
उत्तर देखेंशीर्षक नवाबी संस्कृति के दिखावटी शिष्टाचार (तहज़ीब) को इंगित करता है। लखनऊ की नवाबी परंपरा में बाहरी नफ़ासत महत्वपूर्ण थी, जिसे नवाब साहब के खीरा न खाकर केवल उसका रसास्वादन करने में दिखाया गया है। यह शीर्षक दिखावे की संस्कृति पर प्रहार करता है।
प्रेमचंद ने इस कहानी के माध्यम से साहित्यिक प्रवृत्तियों पर क्या टिप्पणी की है?
उत्तर देखेंप्रेमचंद “नई कहानी” की उस दिशा पर व्यंग्य करते हैं जो यथार्थवाद को त्यागकर अमूर्तता और शैलीगत प्रयोगों तक सीमित हो गई। नवाब साहब का कल्पना से डकार लेना, बिना खीरा खाए, इस बात का प्रतीक है कि बिना वास्तविकता के साहित्य खोखला होता है।
कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 9 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर
“लखनवी अंदाज” शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालें।
उत्तर देखें“लखनवी अंदाज” शीर्षक नवाब साहब की दिखावटी रईसी और नफ़ासत के ढोंग को इंगित करता है। लखनऊ अपनी नवाबी संस्कृति के लिए प्रसिद्ध रहा है, जहाँ बाहरी शिष्टाचार और दिखावे को महत्व दिया जाता था। नवाब साहब खीरा खाने की इच्छा को “लखनवी अंदाज” में छिपाते हैं—सजावट, सुगंध लेना और कल्पना से संतुष्ट होना। यह शीर्षक व्यंग्य करता है कि यह अंदाज वास्तविकता से पलायन और खोखली परंपराओं का प्रतीक है, जिसका लेखक नई कहानी की प्रवृत्ति से तुलना करता है।
नवाब साहब द्वारा खीरों को खिड़की से बाहर फेंकना किस सामाजिक विडंबना को उजागर करता है?
उत्तर देखेंयह घटना उस सामाजिक विडंबना को उजागर करती है जहाँ व्यक्ति वर्गीय दिखावे के कारण अपनी वास्तविक ज़रूरतों और इच्छाओं को दबा देता है। नवाब साहब गरीबों के भोजन (खीरा) को चाहते हैं, पर “शरीफ़” होने के गुमान में उसे छिपाना पड़ता है। खीरा फेंककर वे अपनी कथित श्रेष्ठता सिद्ध करते हैं, जबकि असल में यह आत्मवंचना है। यह कृत्रिम सामाजिक मानदंडों की क्रूरता दिखाता है जो मनुष्य को उसकी सहजता से दूर कर देते हैं और असमानता को बनाए रखते हैं।
कहानी के अंत में नवाब साहब के डकार का क्या प्रतीकात्मक महत्व है?
उत्तर देखेंडकार दो प्रतीकात्मक संदेश देता है:
1. दिखावे की संतुष्टि: नवाब साहब ने खीरा नहीं खाया, पर कल्पना से डकार लेकर दिखाया कि पेट भर गया। यह उस झूठी संतुष्टि का प्रतीक है जो समाज में दिखावे के माध्यम से पैदा की जाती है।
2. साहित्यिक व्यंग्य: लेखक इसे “नई कहानी” से जोड़ता है। जिस तरह डकार बिना खाए पेट भरे होने का भ्रम देता है, वैसे ही कुछ नई कहानियाँ बिना ठोस कथानक के केवल शैली के दम पर “पूर्ण” होने का दावा करती हैं। यह साहित्य में खोखले प्रयोगों पर करारा व्यंग्य है।
“गर्व से गुलाबी आँखों से देखना” वाक्य क्या दर्शाता है? नवाब साहब की मनोदशा का विश्लेषण करें।
उत्तर देखेंयह वाक्य नवाब साहब की आत्ममुग्धता और आत्मवंचना को दर्शाता है। वे अपने द्वारा रची गई झूठी श्रेष्ठता (खीरा सूँघकर फेंकना) पर गर्व महसूस करते हैं। “गुलाबी आँखें” संतुष्टि के भाव को दिखाती हैं, पर यह भ्रमपूर्ण है क्योंकि वास्तविक भूख शांत नहीं हुई। वे लेखक को इस तरह देखकर यह साबित करना चाहते हैं कि उनका “खानदानी तरीका” श्रेष्ठ है। यह मनोदशा उनकी आंतरिक असुरक्षा और वर्गीय हीनभावना को छिपाने का प्रयास है—जहाँ दिखावा ही आत्मविश्वास का स्रोत बन जाता है।
इस कहानी के माध्यम से प्रेमचंद ने ‘नई कहानी’ आंदोलन पर क्या टिप्पणी की है?
उत्तर देखेंप्रेमचंद ने इस कहानी के माध्यम से ‘नई कहानी’ की उस प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया है जो यथार्थवादी विषयों, स्पष्ट कथानक और सामाजिक संदर्भों को छोड़कर केवल शैलीगत प्रयोगों, अमूर्तता और व्यक्तिगत कल्पना पर निर्भर हो गई थी। नवाब साहब का खीरा न खाकर केवल उसकी कल्पना से संतुष्ट होना (“एब्स्ट्रैक्ट तरीका”), उनका डकार और “नई कहानी के लेखक” कहलाना—ये सभी इस ओर इशारा करते हैं कि बिना वास्तविक सामाजिक-मानवीय तत्वों के साहित्य रचना उसी तरह खोखली है जैसे बिना खाए डकार लेना। प्रेमचंद जोर देते हैं कि कहानी को जीवन के यथार्थ और सार्थक संदर्भों से जुड़े रहना चाहिए।