एनसीईआरटी समाधान कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 5 यह दंतुरित मुसकान

कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 5 यह दंतुरित मुसकान (नागार्जुन) के NCERT समाधान (सत्र 2025-26) छात्रों के लिए बेहद लाभदायक हैं। पाठ के सभी प्रश्नों के उत्तर सरल एवं स्पष्ट भाषा में दिए गए हैं। इनसे विद्यार्थी पाठ को ठीक से समझ सकते हैं। सभी उत्तर नवीनतम NCERT पैटर्न के अनुसार तैयार किए गए हैं। ये समाधान अनुभवी शिक्षकों द्वारा तैयार किए गए हैं। ये परीक्षा के दृष्टिकोण से भी लाभदायक हैं।
कक्षा 10 हिंदी क्षितिज पाठ 5 MCQ
कक्षा 10 हिंदी सभी अध्यायों के उत्तर

यह दंतुरित मुसकान कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 5 के प्रश्न उत्तर

1. बच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर देखेंबच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि नागार्जुन के मन पर अत्यंत गहरा प्रभाव पड़ता है। कवि कहता है कि छोटे बच्चे की मुसकान इतनी मनमोहक लगती है जो मृत शरीर में भी प्राण डाल देती है।

2. बच्चे की मुसकान और एक बड़े व्यक्ति की मुसकान में क्या अंतर है?
उत्तर देखेंएक छोटे बच्चे की मुसकान सरल, निश्छल, भोली और निष्काम होती है। उसमें कोई स्वार्थ नहीं होता। वह सहज स्वाभाविक होती है। बड़ों की मुस्कान के पीछे कोई न कोई कारण छिपा होता है। यह मुस्कान कुटिल, अर्थपूर्ण, सोची –समझी, सकामी और स्वार्थपूर्ण होती है। वे तभी मुस्कराते हैं जब वे सामने वाले में कोई रूचि रखते हैं।

3. कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को किन-किन बिबों के माध्यम से व्यक्त किया है?
उत्तर देखेंकवि ने बच्चे की मुस्कान की तुलना जल में खिलने वाले कमल पुष्प और शेफालिका के फूल से की है।

4. भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात।
उत्तर देखेंकवि कहता है कि छोटे बच्चे की मुस्कान ऐसे ही जैसे कि कमल के पुष्प तालाब के जल को छोड़कर मेरे घर के अन्दर खिल रहे हों।

(ख) छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल बाँस था कि बबूल?
उत्तर देखेंबच्चे के मुस्कराने से ऐसा लगता है कि जैसे बाँस या बबूल के छू जाने से शेफालिका के फूल झरने लगाते हैं।

रचना और अभिव्यक्ति
5. मुसकान और क्रोध भिन्न-भिन्न भाव हैं। इनकी उपस्थिति से बने वातावरण की भिन्नता का चित्रण कीजिए।
उत्तर देखेंमुसकान और क्रोध दो भिन्न-भिन्न एवं विपरीत भाव हैं। जहाँ मुस्कान की उपस्थिति से वातावरण सुखद और उत्साहपूर्ण होता है। मुस्कराहट से किसी पराये को भी अपना बनाया जा सकता है। वहीं क्रोध तनाव और विषाद को जन्म देता है और वातावरण को बोझिल बना देता है। क्रोध आपनों को भी पराया बना देता है।

6. दंतुरित मुसकान से बच्चे की उम्र का अनुमान लगाइए और तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर देखेंबच्चे की उम्र लगभग 8 महीने से लेकर एक साल हो सकती है। क्योंकि बच्चों में दांत निकालने की यही उम्र होती है। बच्चा कवि को पहचानता नहीं है लेकिन उसके मन में उत्सुकता है जिससे वह मधुर मुस्कान के साथ कनखियों से कवि को देखता है।

7. बच्चे से कवि की मुलाकात का जो शब्द-चित्र उपस्थित हुआ है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर देखेंकवि जब धूल-धूसरित इस नन्हें बालक को देखता है तो उसकी मुस्कान कवि को आत्ममुग्ध कर देती है। कवि को लगता है जैसे उसकी झोपड़ी में कमल का पुष्प खिल उठा हो या बाँस, बबूल के टकराने से शेफालिका के फूल झरने लगने हैं।

पाठेतर सक्रियता
1. आप जब भी किसी बच्चे से पहली बार मिलें तो उसके हाव-भाव, व्यवहार आदि को सूक्ष्मता से देखिए और उस अनुभव को कविता या अनुच्छेद के रूप में लिखिए।
उत्तर देखेंकविता – पहली मुलाक़ात
छोटे-छोटे क़दमों से,
धीरे-धीरे पास आया,
आँखों में थी जिज्ञासा,
चेहरे पर हँसी समाया।
हाथ में एक खिलौना था,
मानो कोई ख़ज़ाना,
बोला मीठी आवाज़ में –
“खेलेगा?” जैसे था पैग़ाम पुराना।
मासूमियत के रंग बिखेरता,
मन को छू गया वो पल,
पहली मुलाक़ात की खुशबू,
रहेगी याद उम्र भर सरल।
अन्नुछेद: कल मैं लखनऊ अपनी मौसी के घर गया, जहाँ पहली बार उनकी तीन साल की बेटी वान्या से मुलाकात हुई। वह दरवाज़े के पीछे से झाँककर मुझे देख रही थी, जैसे कोई नया खेल शुरू होने वाला हो। उसकी आँखों में जिज्ञासा चमक रही थी और होंठों पर हल्की मुस्कान थी। धीरे-धीरे वह पास आई, हाथ में खिलौना पकड़े और मेरी ओर बढ़ाकर बोली – “खेलेगा?” उसकी मासूम आवाज़ में अपनापन था। थोड़ी ही देर में उसने मेरा हाथ पकड़ लिया, जैसे हम पुराने दोस्त हों। उसकी हँसी की मिठास और आँखों की चमक ने मेरे मन में एक अनोखी गर्माहट भर दी, जो शायद कभी भूली नहीं जाएगी।

2. एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा नागार्जुन पर बनाई गई फिल्म देखिए।
उत्तर देखेंएन.सी.ई.आर.टी. (NCERT) द्वारा कवि नागार्जुन पर एक वृत्तचित्र फिल्म “नागार्जुन” बनाई गई है। यह फिल्म उनके जीवन, व्यक्तित्व और साहित्यिक योगदान को सरल और रोचक ढंग से प्रस्तुत करती है। इसमें उनके ग्रामीण परिवेश, संघर्षपूर्ण जीवन, जनभाषा में लिखी कविताओं और किसानों-गरीबों के प्रति उनकी संवेदनशीलता को चित्रों, साक्षात्कारों और उनके ही काव्य-पाठ के माध्यम से दिखाया गया है। इस फिल्म का उद्देश्य विद्यार्थियों को नागार्जुन की रचनात्मकता और सामाजिक दृष्टि से परिचित कराना है, ताकि वे साहित्य और समाज के रिश्ते को बेहतर समझ सकें।

कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 5 फसल के प्रश्न उत्तर

1. कवि के अनुसार फसल क्या है?
उत्तर देखेंकवि के अनुसार फ़सल ढेर सारी नदियों का पानी, हजारों हाथों और सैकड़ों खेतों की मिट्टी का कमाल है। मानव और प्रकृति के मेल से ही फ़सल पैदा होती है।

2. कविता में फसल उपजाने के लिए आवश्यक तत्वों की बात कही गई है। वे आवश्यक तत्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर देखेंकवि ने फ़सल उपजाने के लिए जिन आवश्यक तत्वों की बात कही है उनमें नदियों का पानी, उपजाऊ मिट्टी, हवा, सूरज की किरणें तथा मनुष्य के हाथों का श्रम। अगर ये सब तत्व मिल जाएँ तो अच्छी फ़सल उपजाई जा सकती है।

3. फसल को ‘हाथों के स्पर्श की गरिमा’ और ‘महिमा’ कहकर कवि क्या व्यक्त करना चाहता है?
उत्तर देखेंफ़सल को उगाने के लिए लगातार मेहनत की जरुरत होती है। कवि इसको ‘हाथों के स्पर्श की गरिमा’ और ‘महिमा’ कहकर यह व्यक्त करना चाहता है कि फसल को उगाने में मानव के हाथों का स्नेहिल श्रम लगा होता है, क्योंकि जब किसान और मजदूर अपने हाथों से श्रम करके फसल को उगाते और बढ़ाते हैं, तभी फसल तैयार होती है।

4. भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!
उत्तर देखेंफ़सल को तैयार होने में सूरज की किरणों का अहम् योगदान है। यही सूरज के किरणों की ऊर्जा रूपांतरित होकर फ़सल में संचित होती है। जैसे मनुष्यों को जीवित रहने के लिए प्राणवायु की जरुरत होती है उसी प्रकार पौधों को वायु की आवश्यकता होती है।

रचना और अभिव्यक्ति
5. कवि ने फसल को हजार-हजार खेतों की मिट्टी का गुण-धर्म कहा है-
(क) मिट्टी के गुण-धर्म को आप किस तरह परिभाषित करेंगे?
उत्तर देखेंमिट्टी का गुण-धर्म उसकी पोषकता पर निर्भर करता है। मिट्टी का रंग-रूप, पोषकता उसमें मिले हुए तत्वों पर निर्भर करती है। यही मिट्टी के गुण-धर्म फ़सल के पोषण के रूप में सहयोगी होते हैं।

(ख) वर्तमान जीवन शैली मिट्टी के गुण-धर्म को किस-किस तरह प्रभावित करती है?
उत्तर देखेंआज अधिक उत्पादन की चाह ने मिट्टी के प्राकृतिक गुण-धर्म को नष्ट कर दिया है। रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग से मिट्टी जहरीली हो गयी। दूसरी ओर उद्योग-धंधे नदियों और भूजल को प्रदूषित कर रहे हैं। प्रदूषित जल से सिंचाई करने से मिट्टी की गुणवता भी ख़राब हो रही है।

(ग) मिट्टी द्वारा अपना गुण-धर्म छोड़ने की स्थिति में क्या किसी भी प्रकार के जीवन की कल्पना की जा सकती है?
उत्तर देखेंयदि मिट्टी अपना फ़सल उगाने का गुण-धर्म छोड़ देगी तो जीवन असंभव हो जायेगा। सभी प्राणियों को भोजन की आवश्यकता होती है जिसका प्राथमिक श्रोत मिट्टी में उगाने वाली फ़सल ही है।

(घ) मिट्टी के गुण-धर्म को पोषित करने में हमारी क्या भूमिका हो सकती है?
उत्तर देखेंमिट्टी के गुण-धर्म को पोषित करने में मनुष्यों की बहुत बड़ी भूमिका हो सकती है। फ़सल उगाने के लिए रासायनिक उर्वरकों की जगह कार्बनिक उर्वरकों का प्रयोग किया जा सकता है। यद्यपि उद्योग-धंधे भी आवश्यक हैं लेकिन नदियों और भूजल को प्रदूषित जल से बचाने के लिए जल-शोधन की व्यवस्था की जानी चाहिए।

पाठेतर सक्रियता
1. इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया द्वारा आपने किसानों की स्थिति के बारे में बहुत कुछ सुना, देखा और पढ़ा होगा। एक सुदृढ़ कृषि-व्यवस्था के लिए आप अपने सुझाव देते हुए अखबार के संपादक को पत्र लिखिए।
उत्तर देखेंसंपादक महोदय,
दैनिक खबर समाचार पत्र
दिनांक: 14 सितंबर, 2025
विषय: सुदृढ़ कृषि-व्यवस्था हेतु सुझाव
मान्यवर,
मैं आपके प्रतिष्ठित समाचार-पत्र के माध्यम से अपने विचार प्रकट करना चाहता हूँ। इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में आए समाचारों से यह स्पष्ट है कि हमारे देश के किसान अनेक समस्याओं से जूझ रहे हैं—असमान मौसम, फसल का उचित मूल्य न मिलना, महंगे बीज और खाद, सिंचाई की कमी और कर्ज़ का बोझ।
एक सुदृढ़ कृषि-व्यवस्था के लिए मेरे कुछ सुझाव इस प्रकार हैं:
► किसानों को फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) समय पर और हर फसल के लिए सुनिश्चित किया जाए।
► आधुनिक तकनीक और वैज्ञानिक तरीकों का नि:शुल्क प्रशिक्षण दिया जाए।
► सस्ती और आसान ऋण-व्यवस्था उपलब्ध हो ताकि किसान साहूकारों पर निर्भर न रहें।
► सिंचाई सुविधाओं का विस्तार और वर्षा जल संचयन को बढ़ावा दिया जाए।
► फसल बीमा योजनाओं को अधिक सरल और पारदर्शी बनाया जाए।
यदि इन कदमों को गंभीरता से लागू किया जाए तो न केवल किसानों की स्थिति सुधरेगी, बल्कि हमारी अर्थव्यवस्था भी सुदृढ़ होगी।
धन्यवाद।
भवदीय,
अनंत तिवारी
कक्षा 10,
तिवारी अकादमी, दिल्ली

2. फसलों के उत्पादन में महिलाओं के योगदान को हमारी अर्थव्यवस्था में महत्त्व क्यों नहीं दिया जाता है? इस बारे में कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर देखेंकक्षा में इस विषय पर चर्चा करते समय हम कई बिंदुओं पर विचार कर सकते हैं—
अदृश्य श्रम: खेतों में महिलाएँ बीज बोने, निराई-गुड़ाई, कटाई, बुवाई, मंडी तक ले जाने जैसे काम करती हैं, लेकिन इन्हें “आर्थिक उत्पादन” के आँकड़ों में सही से गिना नहीं जाता।
मालिकाना हक की कमी: ज़्यादातर कृषि भूमि पुरुषों के नाम पर होती है, इसलिए महिलाओं के काम को औपचारिक मान्यता नहीं मिलती।
सांस्कृतिक धारणाएँ: ग्रामीण समाज में खेती को पुरुष प्रधान काम माना जाता है, जबकि महिलाएँ बराबर या उससे ज़्यादा मेहनत करती हैं।
आँकड़ों और सर्वे की कमी: सरकारी रिपोर्टें अक्सर महिलाओं के श्रम को “मदद” के रूप में दर्ज करती हैं, न कि “मुख्य कार्य” के रूप में।
आर्थिक लाभ में भागीदारी कम: फ़सल बिकने पर होने वाली आमदनी में महिलाओं का सीधा हिस्सा नहीं होता, जिससे उनके योगदान की आर्थिक महत्ता कम आँकी जाती है।
हमें यह मानना होगा कि महिलाओं का श्रम खेती की रीढ़ है। नीतियों, आँकड़ों और समाज में उन्हें बराबरी की पहचान व आर्थिक मान्यता देनी चाहिए।

कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 5 अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर

कवि के अनुसार बच्चे की मुसकान में क्या शक्ति है?
उत्तर देखेंबच्चे की दंतुरित मुसकान इतनी जीवंत है कि मृतक में भी जान डाल सकती है और कठोर पत्थर को पिघला सकती है।

कवि स्वयं को क्या कहता है?
उत्तर देखेंकवि स्वयं को “चिर प्रवासी”, “इतर” (अलग) और “अन्य” (पराया) कहता है, जो बच्चे के जीवन में नया है।

बच्चा कवि को कैसे देखता है?
उत्तर देखेंबच्चा कवि को बिना पलक झपकाए (“अनिमेष”) देखता रहता है, शायद उसे पहचान नहीं पा रहा या जिज्ञासावश।

कवि और बच्चे के बीच संपर्क कैसे होता है?
उत्तर देखेंसंपर्क मुख्यतः बच्चे की माँ के माध्यम से होता है। माँ की उँगलियाँ अतिथि सत्कार (“मधुपर्क”) का काम करती हैं।

“झरने लग पड़े शेफालिका के फूल” का क्या अर्थ है?
उत्तर देखेंबच्चे का स्पर्श इतना मादक है कि ऐसा लगता है जैसे शेफालिका (शेवाली) के फूल अचानक खिलकर झरने लगे हों।

“फसल” कविता के अनुसार, फसल किसका जादू है?
उत्तर देखेंफसल ढेर सारी नदियों के पानी का जादू है।

फसल किसकी गरिमा का प्रतीक है?
उत्तर देखेंफसल लाखों-करोड़ों हाथों (किसानों) के स्पर्श की गरिमा और महिमा का प्रतीक है।

फसल किसका गुणधर्म है?
उत्तर देखेंफसल हजारों खेतों की विभिन्न प्रकार की (भूरी, काली, सँवली) मिट्टी के गुणधर्म का परिणाम है।

फसल सूरज की किरणों का क्या है?
उत्तर देखेंफसल सूरज की किरणों का “रूपांतर” है, यानी उन्हीं ऊर्जा का एक भौतिक रूप।

फसल हवा की थिरकन का क्या है?
उत्तर देखेंफसल हवा की थिरकन (गति) का “सिमटा हुआ संकोच” है, यानी उस जीवंतता का संघनित रूप।

“दंतुरित मुसकान” में कवि किसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता है?
उत्तर देखेंकवि बच्चे की माँ के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता है (“धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य!”), क्योंकि उसके माध्यम से ही वह बच्चे को देख पाया।

बच्चे की मुसकान कवि को कैसी लगती है?
उत्तर देखेंजब बच्चा कवि से आँखें मिलाता है तो उसकी दंतुरित मुसकान कवि को “बड़ी ही छविमान” (अत्यंत सुंदर) लगती है।

“तालाब छोड़कर… खिल रहे जलजात” का भाव क्या है?
उत्तर देखेंबच्चे के धूल से सने शरीर (“गात”) पर कमल (“जलजात”) खिले हुए से लगते हैं, जो तालाब छोड़कर कवि की झोंपड़ी में आ गए हैं – उसकी मासूमियत और सुंदरता की ओर इशारा।

“फसल” कविता में ‘नदियों के पानी का जादू’ क्यों कहा गया?
उत्तर देखेंक्योंकि नदियों का पानी सिंचाई करके भूमि को उपजाऊ बनाता है, जो फसल उगाने के लिए जादू जैसा आवश्यक और चमत्कारिक कार्य है।

“फसल” कविता का मुख्य संदेश क्या है?
उत्तर देखेंफसल केवल अनाज नहीं; वह प्रकृति (पानी, मिट्टी, सूरज, हवा) और असंख्य मेहनती किसानों के श्रम का संयुक्त चमत्कार है।

कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 5 लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर

“दंतुरित मुसकान” कविता में बच्चे की मुसकान का कवि पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर देखेंबच्चे की निश्छल मुसकान कवि को गहराई से छू जाती है। वह इसे इतनी शक्तिशाली मानता है कि यह मृतक में जान डाल सकती है या पत्थर को पिघला सकती है। यह मुसकान कवि के अकेलेपन और प्रवासी भावना में आशा और सुंदरता का संचार करती है, उसे बच्चे की मासूमियत से जुड़ाव महसूस होता है।

कवि और बच्चे के बीच के रिश्ते की प्रकृति को कविता कैसे दर्शाती है?
उत्तर देखेंरिश्ता शुरू में अनजाना और झिझक भरा है। बच्चा कवि को घूरता है, उसे पहचान नहीं पाता। संपर्क माँ के माध्यम से होता है। धीरे-धीरे, आँख मिलाने और उसकी मुसकान देखने पर कवि के मन में स्नेह और प्रशंसा जगती है। यह रिश्ता एक नए अतिथि और मासूम बच्चे के बीच का कोमल, माध्यम से बनने वाला बंधन है।

“माँ भी तुम्हारी धन्य” – कवि ऐसा क्यों कहता है?
उत्तर देखेंकवि इसलिए कहता है क्योंकि बच्चे की माँ ही वह कड़ी है जिसने उसे बच्चे की मनमोहक मुसकान देखने और उससे जुड़ने का अवसर दिया। उसके बिना, कवि इस सुंदर अनुभव से वंचित रह जाता। माँ ने बच्चे को संभालकर, अतिथि सत्कार (“मधुपर्क”) का माध्यम बनकर इस मुलाकात को संभव बनाया।

“फसल” कविता में प्रकृति और मानव श्रम के योगदान को कैसे चित्रित किया गया है?
उत्तर देखेंकविता स्पष्ट करती है कि फसल प्रकृति के विभिन्न तत्वों – नदियों के पानी (“जादू”), विभिन्न मिट्टी का गुण (“गुण धर्म”), सूरज की किरणों (“रूपांतर”) और हवा (“सिमटा हुआ संकोच”) के बिना असंभव है। साथ ही, वह लाखों-करोड़ों किसानों के परिश्रमी हाथों के “स्पर्श की गरिमा और महिमा” का परिणाम है। दोनों का अविभाज्य योगदान है।

“फसल क्या है?” – कवि इस प्रश्न का उत्तर कैसे देता है?
उत्तर देखेंकवि फसल को केवल अनाज नहीं, बल्कि एक जीवंत संयोजन बताता है। वह कहता है फसल है: नदियों के पानी का चमत्कार (जादू), किसानों के हाथों की गरिमा (महिमा), विविध मिट्टी की प्राकृतिक शक्ति (गुण धर्म), सूर्य की ऊर्जा का रूप बदलना (रूपांतर), और हवा की गति का संघनित रूप (सिमटा हुआ संकोच)। यह प्रकृति और श्रम का सामूहिक चमत्कार है।

“दंतुरित मुसकान” में प्रयुक्त प्राकृतिक बिंब (जलजात, पाषाण, शेफालिका) कविता को कैसे समृद्ध करते हैं?
उत्तर देखेंये बिंब बच्चे के प्रभाव को अतिशयोक्तिपूर्ण और मनोहर ढंग से व्यक्त करते हैं। “जलजात” (कमल) उसकी मासूम सुंदरता दिखाता है। “पाषाण पिघलना” उसकी मुसकान की कोमलता व भावुक कर देने वाली शक्ति दर्शाता है। “शेफालिका के फूल झरना” उसके स्पर्श की मादकता व प्रसन्नता फैलाने की क्षमता को दर्शाता है। ये बिंब कविता को कल्पनाशील और प्रभावशाली बनाते हैं।

कवि को बच्चे की मुसकान “छविमान” क्यों लगती है?
उत्तर देखेंबच्चे की मुसकान “छविमान” (सुंदर) इसलिए लगती है क्योंकि वह पूरी तरह निश्छल, स्वाभाविक और प्रेम से भरी हुई है। जब वह झिझकते हुए कनखियों से देखने की कोशिश करता है और फिर सीधे आँखें मिलाता है, तो उसकी यह मासूम हरकत और उस पर खिलने वाली दाँतों वाली मुसकान कवि के हृदय को छू लेती है। यह मुसकान सामाजिक दूरियों (अतिथि-अन्य) को पार करके सीधे आत्मीयता का संचार करती है।

“फसल” कविता में ‘हाथों के स्पर्श की गरिमा’ पंक्ति किस ओर इशारा करती है और यह क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर देखेंयह पंक्ति किसानों के अथक परिश्रम और उनके योगदान के प्रति सम्मान की ओर इशारा करती है। “हाथों के स्पर्श” से तात्पर्य बीज बोने, पौधे रोपने, निराई-गुड़ाई करने, फसल काटने जैसे सभी शारीरिक श्रम से है। “गरिमा” शब्द इस श्रम की गरिमा, महत्ता और सम्माननीयता को दर्शाता है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि कविता बताती है कि फसल सिर्फ प्रकृति का दान नहीं, बल्कि मानव के परिश्रम का प्रतिफल भी है, जिसे सम्मान दिया जाना चाहिए।

“दंतुरित मुसकान” कविता के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर देखेंशीर्षक “दंतुरित मुसकान” पूरी कविता के केंद्रीय भाव और बिंब को दर्शाता है। यह बच्चे के उस विशेष पल को चिह्नित करता है जब उसके दाँत निकल रहे होते हैं और वह नटखट व मनमोहक मुस्कान बिखेरता है। कविता में यही मुसकान जीवनदायिनी शक्ति, कोमलता, सुंदरता और कवि के हृदय परिवर्तन का प्रतीक बन जाती है। शीर्षक सीधे तौर पर इसी चमत्कारिक मुसकान की महत्ता को उजागर करता है।

“फसल” कविता में कवि ने फसल को प्रकृति के विभिन्न तत्वों का परिणाम क्यों कहा है?
उत्तर देखेंकवि यह बताना चाहता है कि फसल का जन्म और विकास किसी एक तत्व पर निर्भर नहीं, बल्कि प्रकृति के अनेक घटकों के सामूहिक योगदान से होता है। जल (नदियाँ) सिंचाई करता है, विभिन्न प्रकार की मिट्टी (भूरी-काली-सँवली) पोषण देती है, सूर्य की किरणें ऊर्जा प्रदान करती हैं, और हवा पौधों के विकास व परागण में मदद करती है। फसल इन सभी के समन्वय का ही जीवंत प्रतिफल है।

कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 5 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर

“दंतुरित मुसकान” कविता में बच्चे की मुसकान के माध्यम से कवि किन गहन मानवीय भावनाओं और अनुभूतियों को व्यक्त करता है?
उत्तर देखेंकवि नागार्जुन बच्चे की साधारण सी दंतुरित (दाँत निकलती) मुसकान के माध्यम से असाधारण गहराई वाली मानवीय भावनाओं को छूते हैं। सबसे पहले, वे इस मुसकान में एक अद्भुत जीवन शक्ति देखते हैं, जो मृत्यु को भी जीवन में बदल सकती है (“मृतक में भी डाल देगी जान”) और कठोर हृदय (पाषाण) को पिघला सकती है। यह मुसकान सुंदरता (“छविमान”) और प्रसन्नता (“शेफालिका के फूल झरना”) का प्रतीक है। दूसरे, यह मुसकान अकेलेपन और पराएपन (“चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य!”) की खाई को पाटने की क्षमता रखती है। बच्चे की निश्छलता कवि के हृदय में स्नेह और आत्मीयता का संचार करती है। तीसरे, कविता माँ की मध्यस्थता के महत्व को रेखांकित करती है। बच्चे से सीधा संपर्क बनाने में झिझक होती है, लेकिन माँ के स्नेहपूर्ण स्पर्श (“मधुपर्क”) के माध्यम से यह संबंध बनता है। अंततः, यह मुसकान कवि को जीवन की सरलता, आशा और अनंत सुंदरता का अनुभव कराती है, जो उसके प्रवासी जीवन में एक मधुर अध्याय जोड़ देती है।

“फसल” कविता एक सामूहिक उपलब्धि के रूप में फसल की अवधारणा को कैसे प्रस्तुत करती है? इसके माध्यम से कवि क्या सामाजिक संदेश देता है?
उत्तर देखें“फसल” कविता फसल को किसी एक व्यक्ति या तत्व की उपलब्धि नहीं, बल्कि एक विशाल सामूहिक प्रयास और प्रकृति के सहयोग का फल प्रस्तुत करती है। कवि (शमशेर बहादुर सिंह) बार-बार दोहराते हैं – “एक के नहीं, दो के नहीं” – यह स्पष्ट करने के लिए कि फसल असंख्य नदियों के पानी, लाखों-करोड़ों किसानों के परिश्रमी हाथों के स्पर्श, और हजारों खेतों की विभिन्न मिट्टियों की शक्ति के बिना संभव नहीं। साथ ही, वह इसे सूर्य की ऊर्जा और हवा की गति का रूपांतर बताते हैं। इसके माध्यम से कवि गहरा सामाजिक संदेश देता है:
श्रम का सम्मान: कविता किसानों के शारीरिक श्रम (“हाथों के स्पर्श की गरिमा, महिमा”) को उचित स्थान देती है, उनके योगदान को गौरवान्वित करती है। यह संदेश है कि समाज को अन्न उपजाने वाले हाथों के परिश्रम का सम्मान करना चाहिए।
प्रकृति की अनिवार्यता: यह बताती है कि मानव श्रम भी प्रकृति (पानी, मिट्टी, सूरज, हवा) के सहयोग के बिना अधूरा है। हमें प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान और संरक्षण करना चाहिए।
सामूहिकता: फसल सामूहिक प्रयास की जीती-जागती मिसाल है। यह संदेश है कि बड़ी उपलब्धियाँ (चाहे अन्न उत्पादन हो या राष्ट्र निर्माण) व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामूहिक प्रयासों से ही संभव हैं। कविता समाज को प्रकृति और श्रमिक के प्रति कृतज्ञता व सम्मान का भाव रखने की प्रेरणा देती है।

“दंतुरित मुसकान” कविता में वर्णित बच्चे और कवि के बीच के संवादहीन संबंध का विस्तार से विश्लेषण कीजिए।
उत्तर देखें“दंतुरित मुसकान” कविता में बच्चे और कवि के बीच का संबंध मुख्यतः संवादहीन है, फिर भी अत्यंत गहन और भावपूर्ण है। यह संबंध कई स्तरों पर विकसित होता है:
प्रारंभिक जिज्ञासा और दूरी: कवि एक “अतिथि” और “अन्य” (पराया) है। बच्चा उसे घूरता है (“देखते ही रहोगे अनिमेष!”), शायद उसे पहचान नहीं पाता (“तुम मुझे पाए नहीं पहचान?”)। यह दूरी और झिझक का क्षण है।
माँ का माध्यम: वास्तविक शारीरिक संपर्क माँ के माध्यम से होता है। माँ की उँगलियाँ अतिथि सत्कार (“मधुपर्क”) का प्रतीक बनकर बच्चे और कवि को जोड़ती हैं। बच्चा शायद माँ के स्पर्श के कारण कवि के निकट आता है।
दृष्टि का संवाद: असली संबंध आँखों के माध्यम से बनता है। बच्चा पहले “कनखी मार” कर झाँकता है, फिर जब “आँखें चार” होती हैं, तो उसकी दंतुरित मुसकान खिल उठती है। यह आँखों का मिलना एक मौन संवाद है, जहाँ शब्दों की जरूरत नहीं।
मुसकान का भाव संचार: बच्चे की मुसकान ही मुख्य संचार का माध्यम है। यह मुसकान कवि को अपार सुंदरता (“छविमान”) का अनुभव कराती है, उसके हृदय को छू लेती है और उसमें स्नेह व आत्मीयता का संचार करती है। यह मुसकान सभी दूरियाँ मिटा देती है।
कवि की आंतरिक अनुक्रिया: कवि इस संबंध से गहराई से प्रभावित होता है। वह बच्चे की मुसकान में जीवन शक्ति देखता है, माँ के प्रति कृतज्ञता अनुभव करता है, और अपने प्रवासी जीवन के अकेलेपन के बीच एक कोमल भावनात्मक जुड़ाव महसूस करता है। यह संवादहीन संबंध शब्दों से परे, हृदय से हृदय का जुड़ाव है, जो एक मासूम मुसकान और एक स्नेहिल दृष्टि से ही पूर्ण हो जाता है।

“फसल” कविता में प्रयुक्त पुनरुक्ति (“एक के नहीं, दो के नहीं”) और विस्तृत गणना (“ढेर सारी नदियाँ”, “लाख-लाख कोटि-कोटि हाथ”, “हजार-हजार खेत”) का काव्यात्मक प्रभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर देखें“फसल” कविता में “एक के नहीं, दो के नहीं” की पुनरुक्ति और ढेर सारी नदियाँ”, “लाख-लाख कोटि-कोटि हाथ”, “हजार-हजार खेत” जैसी विस्तृत गणनाओं का प्रयोग अत्यंत सार्थक और प्रभावशाली है:
जोर और आवृत्ति द्वारा महत्ता: “एक के नहीं, दो के नहीं” की बार-बार आवृत्ति इस बात पर जोर देती है कि फसल का निर्माण छोटे या सीमित प्रयास से नहीं होता। यह भाव को दृढ़ता से स्थापित करती है कि यह एक विराट, असंख्य स्रोतों पर निर्भर प्रक्रिया है।
विराटता और विशालता का बोध: “ढेर सारी नदियाँ”, “लाख-लाख कोटि-कोटि हाथ”, “हजार-हजार खेत” जैसे वर्णन फसल उत्पादन में लगे प्राकृतिक संसाधनों और मानव श्रम की अकल्पनीय विशालता और विस्तार को दर्शाते हैं। ये शब्द एक विशाल नेटवर्क, एक सामूहिक प्रयास की तस्वीर खींचते हैं।
अमूर्त को मूर्त बनाना: पानी का जादू, हाथों का स्पर्श, मिट्टी का गुणधर्म – ये सभी अमूर्त अवधारणाएँ हैं। इन विशाल संख्याओं और पुनरुक्ति के माध्यम से कवि इन अमूर्त तत्वों को मूर्त और ठोस रूप देता है, उनकी भारी मात्रा और व्यापकता को समझाने में सफल होता है।
गरिमा और सम्मान का संचार: विशेष रूप से “लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों” के वर्णन से किसानों के श्रम की व्यापकता और उसके प्रति सम्मान का भाव उत्पन्न होता है। यह दर्शाता है कि एक दाने के पीछे करोड़ों हाथों का योगदान छिपा है।
लय और संगीतात्मकता: इस पुनरुक्ति और गणना से कविता में एक विशेष लय और संगीतात्मक प्रवाह भी आता है, जो उसके संदेश को और अधिक प्रभावी ढंग से पहुँचाने में सहायक होता है। कुल मिलाकर, ये शिल्पगत विधियाँ फसल के सामूहिक, व्यापक और चमत्कारिक स्वरूप को बखूबी उकेरती हैं और पाठक पर गहरा प्रभाव छोड़ती हैं।

दोनों कविताओं – “दंतुरित मुसकान” और “फसल” – में प्रकृति और मानवीय भावनाओं/श्रम के अंतर्संबंध को तुलनात्मक रूप से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर देखें“दंतुरित मुसकान” और “फसल” कविताएँ भिन्न विषयों पर हैं, किंतु दोनों ही प्रकृति और मानवीय तत्वों के गहन अंतर्संबंध को दर्शाती हैं, हालाँकि अलग-अलग कोणों से:
“दंतुरित मुसकान” में: यहाँ प्रकृति मुख्यतः बच्चे की मासूमियत और उसके प्रभाव को व्यक्त करने के लिए एक रूपक और बिंब के रूप में प्रयुक्त होती है।
मानव भावना: कवि की भावनाएँ (प्रेम, आश्चर्य, कृतज्ञता, अकेलापन), बच्चे की निश्छलता, माँ का स्नेह।
प्रकृति का प्रयोग: बच्चे के धूल भरे शरीर पर कमल खिलना (“जलजात”), उसकी मुसकान से पत्थर पिघलना, उसके स्पर्श से फूल झरना – ये सभी प्राकृतिक बिंब बच्चे की कोमलता, सुंदरता और जीवनदायिनी शक्ति को अतिशयोक्तिपूर्ण किंतु प्रभावी ढंग से दर्शाते हैं। प्रकृति यहाँ मानवीय भावनाओं (विशेषकर बाल सुलभ मासूमियत और उसके प्रभाव) को समझने और व्यक्त करने का साधन बनती है।
अंतर्संबंध: प्रकृति के ये बिंब मानवीय भावनाओं को साकार करते हैं। बच्चा स्वयं प्रकृति की तरह सहज, सुंदर और जीवंत प्रतीत होता है। उसकी मुसकान प्राकृतिक चमत्कार जैसी है जो कवि के मानवीय अकेलेपन को दूर करती है।
“फसल” में: यहाँ प्रकृति और मानव श्रम एक अविभाज्य साझेदारी में दिखाई देते हैं, जहाँ फसल उनके पारस्परिक योगदान का सीधा परिणाम है।
मानव तत्व: किसानों का अथक श्रम (“हाथों के स्पर्श की गरिमा”)।
प्रकृति का योगदान: नदियों का पानी, विविध मिट्टी, सूर्य की किरणें, हवा की थिरकन।
अंतर्संबंध: कविता स्पष्ट करती है कि फसल न तो केवल प्रकृति का दान है और न ही केवल मानव श्रम का। यह दोनों के अटूट सहयोग का फल है। प्रकृति के तत्व (पानी, मिट्टी, सूरज, हवा) मानव श्रम (हाथों का स्पर्श) के बिना व्यर्थ हैं, और मानव श्रम प्रकृति के सहयोग के बिना अधूरा है। यहाँ अंतर्संबंध व्यावहारिक और अस्तित्वगत है – दोनों मिलकर जीवन का आधार (अन्न) पैदा करते हैं।
तुलना: “दंतुरित मुसकान” में प्रकृति भावनाओं को व्यक्त करने का काव्यात्मक उपकरण है, जबकि “फसल” में प्रकृति और मानव श्रम जीवन निर्वाह के लिए आपस में गुंथे हुए वास्तविक सहयोगी हैं। पहली कविता में संबंध भावनात्मक और प्रतीकात्मक है (मानव भावना को प्रकृति के रूपक द्वारा दिखाना), दूसरी में संबंध भौतिक और अनिवार्य है (प्रकृति और श्रम का वास्तविक सहयोग)। दोनों ही कविताएँ अपने-अपने ढंग से यह दर्शाती हैं कि मानव जीवन और अनुभूति प्रकृति से गहराई से जुड़ी हुई है।