एनसीईआरटी समाधान कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 4 उत्साह और अट नहीं रही है
कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 4 उत्साह और अट नहीं रही है – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के NCERT समाधान छात्रों के लिए महत्वपूर्ण अध्ययन सामग्री हैं। पाठ के सभी प्रश्नों के उत्तर सहज भाषा में दिए गए हैं। इनसे छात्र कविता को बेहतर समझ सकते हैं। सभी उत्तर सत्र 2025-26 के पाठ्यक्रम के अनुसार तैयार किए गए हैं। ये समाधान विशेषज्ञ शिक्षकों द्वारा तैयार किए गए हैं। परीक्षा की तैयारी में ये महत्वपूर्ण साबित होते हैं।
कक्षा 10 हिंदी क्षितिज पाठ 4 MCQ
कक्षा 10 हिंदी सभी अध्यायों के उत्तर
उत्साह कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 4 के प्रश्न उत्तर
1. कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर ‘गरजने’ के लिए कहता है, क्यों?
उत्तर देखेंकवि का मन एक क्रांतिकारी की तरह है जिसकी विद्रोही छवि उनकी कविता बादल में दिखती है। इन पंक्तियों में कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के लिए नहीं कहता बल्कि ‘गरजने के लिए कहा है, क्योंकि कवि बादलों को क्रांति का सूत्रधार मानता है। ‘गरजना’ विद्रोह का प्रतीक है। कवि बादलों से पौरुष दिखाने की कामना करता है।
2. कविता का शीर्षक उत्साह क्यों रखा गया है?
उत्तर देखेंकवि लोगों के मन को उत्साहित कर क्रांति का उद्धघोष करना चाहते हैं। बादल का गरजना लोगों के मन में उत्साह भर देता है। इसलिए कवि ने कविता का शीर्षक ‘उत्साह’ रखा है।
3. कविता में बादल किन-किन अर्थों की ओर संकेत करता है?
उत्तर देखेंकवि के अनुसार बादल अपनी गर्जना के माध्यम से मानव के जीवन में क्रांति लाने की ओर संकेत करता है। बादल से होने वाली बरसात मानव-जीवन की पीड़ाओं को दूर करने की ओर संकेत करती है।बादल उमड़-घुमड़ कर गर्जना करना जीवन को उत्साह और संघर्ष के लिए प्रेरित करता है।
4. शब्दों का ऐसा प्रयोग जिससे कविता के किसी खास भाव या दृश्य में ध्वन्यात्मक प्रभाव पैदा हो, नाद-सौंदर्य कहलाता है। उत्साह कविता में ऐसे कौन-से शब्द हैं जिनमें नाद-सौंदर्य मौजूद है, छाँटकर लिखें।
उत्तर देखेंकविता में निम्न शब्दों से नाद सौन्दर्य पैदा हो रहा है:
(क) घेर-घेर घोर गगन, धाराधर ओ।
(ख) ललित ललित, काले घुँघराले।
(ग) विकल विकल, उन्मन थे उन्मन।
(घ) शीतल कर दो-बादल गरजो।
रचना और अभिव्यक्ति
5. जैसे बादल उमड़-घुमड़कर बारिश करते हैं वैसे ही कवि के अंतर्मन में भी भावों के बादल उमड़-घुमड़कर कविता के रूप में अभिव्यक्त होते हैं। ऐसे ही किसी प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर अपने उमड़ते भावों को कविता में उतारिए।
उत्तर देखेंऊंचाई से गिरते हुए झरने, पहाड़ की घाटियों में बहती हुई नदी, बर्फीली पर्वत श्रृंखलाएं आदि को देखकर मन भाव पैदा हो सकते हैं। छात्र अपने विवेक के आधार पर कविता में उतार सकते हैं।
पाठेतर सक्रियता
बादलों पर अनेक कविताएँ हैं। कुछ कविताओं का संकलन करें और उनका चित्रंकन भी कीजिए।
उत्तर देखेंयहाँ बादलों पर आधारित कुछ प्रसिद्ध कविताओं का छोटा बादलों पर कुछ कविताओं का संकलन:
►“घन आओ” – मैथिलीशरण गुप्त
घन आओ, घन आओ,
जीवन में उमंग लाओ,
सूखी धरती की प्यास बुझाओ।
►“बादल को घिरते देखा है” – हरिवंश राय बच्चन
बादल को घिरते देखा है,
पर्वत को सिर पर टिकाए,
वन-वन में दौड़ लगाते।
►“घिर-घिर आए बदरिया” – सूरदास
घिर-घिर आए बदरिया,
मोरे साँवरिया खेले होरी,
मन भावन लागे बरसात।
►“बादल” – सुमित्रानंदन पंत
बादल, ओ बादल,
तू क्यों गगन में उड़ता है,
किस संदेश को लाता है?
►लोकगीत (ब्रजभाषा)
सावन आयो रे, घन गरजत है,
पिया घर आओ रे, मन तरसत है।
कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 4 अट नहीं रही है
1. छायावाद की एक खास विशेषता है अंतर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाना। कविता की किन पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है? लिखिए।
उत्तर देखेंकवि द्वारा जो वसंत की सुन्दरता का वर्णन किया गया है कि आँख फागुन की सुंदरता से इसलिए हट नहीं रही है क्योंकि इस महीने में प्रकृति का सौंदर्य अत्यंत मनमोहक होता है। पेड़ों-पौधों पर रंग-बिरंगे फूल और पत्तियाँ झूम रही हैं। चारों ओर फैली हरियाली है और खिले हुए रंग-बिरंगे फूलों की सुगंध से मन मुग्ध हो जाता है। प्रकृति का यह उत्साही वातावरण जीवन में नयी ऊर्जा का संचार करता है।
2. कवि की आँख फागुन की सुंदरता से क्यों नहीं हट रही है?
उत्तर देखेंफागुन वसंत ऋतु की शुरुआत माना जाता है। वसंत के आगमन से मौसम तथा प्राकृतिक दृश्य अत्यंत मनमोहक होता है। चारों तरफ का दृश्य अत्यंत स्वच्छ तथा रंग-बिरंगी दिखाई दे रहा है। पेड़ों पर कहीं हरी तो कही लाल पत्तियाँ हैं, फूलों की मंद-मंद खुश्बू हृदय को मुग्ध कर लेती है। इसीलिए कवि की आँख फागुन की सुंदरता से हट नहीं रही है।
3. प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किन रूपों में किया है?
उत्तर देखेंप्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन करते हुए लिखा है कि प्रकृति जब साँस लेती है तब ऐसा लगता है कि पूरा घर सुगंध से भर गया है। मन इतना ज्यादा उल्लास से परिपूर्ण रहता है कि आसमान में उड़ने के लिए लालायित रहता है। मन में अगर उल्लास भरा होता है तो हमें अपने आस-पास की दुनिया अत्यंत सुंदर लगती है।
4. फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है?
उत्तर देखेंहेमंत ऋतु ख़त्म होने के बाद फागुन के महीने से वसंत ऋतु की शुरुआत होती है। इस समय मौसम न ज्यादा ठण्ड वाला होता है और न ही ज्यादा गर्मी। पेड़-पौधे, जीव-जंतु सभी नई अंगड़ाई लेते हैं। सभी में नयी उमंग और उत्साह का संचार होता है।
5. इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य-शिल्प की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर देखेंइन कविताओं के आधार पर कह सकते हैं कि निरालाजी के काव्य-शिल्प की विशेषताएँ निम्न हैं:
स्वच्छन्दता, तुक और छन्द के बन्धन से रहित कविता, दार्शनिकता की छाप, ओजपूर्ण शैली। भाषा के अनुसार देखें तो शुद्ध, संस्कृतनिष्ठ, प्रगतिवादी एवं सरल भाषा है। काव्य की शैली तुकबंदी, सरल तथा सुबोध है।
रचना और अभिव्यक्ति
6. होली के आसपास प्रकृति में जो परिवर्तन दिखाई देते हैं, उन्हें लिखिए।
उत्तर देखेंहोली के आस-पास वसंत ऋतु का आगमन हो चुका होता है। प्रकृति में एक नयी उमंग दिखाई देती है। पेड़-पौधों पर नए फूल और पत्तियाँ आने लगती हैं। फूलों पर भंवरों का गुंजार सुनाई देता है। फूलों से निकलने वाली खुशबू सबको मदहोश करती है। मौसम भी अनुकूल होता है न ज्यादा गर्मी और न ही ठण्ड। इसलिए, इस ऋतु को ऋतुराज की संज्ञा दी गई है।
पाठेतर सक्रियता
फागुन में गाए जाने वाले गीत जैसे होरी, फाग आदि गीतों के बारे में जानिए।
उत्तर देखेंफागुन में गाए जाने वाले गीत, जैसे होरी और फाग, भारतीय लोक संस्कृति का एक रंगीन और आनंदमय हिस्सा हैं। ये गीत विशेष रूप से होली पर्व के अवसर पर गाए जाते हैं और उनमें प्रेम, मिलन, राग-रंग और हास्य का अद्भुत मिश्रण होता है।
होरी गीत प्रायः भगवान श्रीकृष्ण और राधा के होली खेलने के प्रसंगों पर आधारित होते हैं। इनमें रंग, गुलाल, पिचकारी, मटकी और मस्ती का जीवंत चित्रण मिलता है। होरी गीतों में संवादात्मक शैली होती है, जिसमें छेड़छाड़, ठिठोली और हँसी-मज़ाक प्रमुख रहते हैं।
फाग गीत होरी से अधिक व्यापक होते हैं। इनमें ऋतु परिवर्तन, फागुन की मादकता, पेड़ों पर नए फूलों का आना और जीवन में उमंग का चित्रण मिलता है। गाँवों में महिलाएँ और पुरुष समूह बनाकर ढोलक, मंजीरा, हारमोनियम की थाप पर ये गीत गाते हैं।
इन गीतों का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि सामाजिक मेल-जोल बढ़ाना, रिश्तों में आत्मीयता लाना और परंपराओं को जीवित रखना भी है। फागुन के इन गीतों में लोकभाषा की मिठास और लोकजीवन की सजीव झलक दिखाई देती है।
कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 4 अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर
‘उत्साह’ कविता में कवि बादलों से क्या करने का आह्वान करता है?
उत्तर देखेंकवि बादलों से गरजने, आकाश को घेरने, तपती धरती को शीतल करने और नवजीवन भरने का आह्वान करता है।
‘उत्साह’ में बादलों के बालों की क्या विशेषता बताई गई है?
उत्तर देखेंबादलों के बाल ‘ललित’, ‘काले’ और ‘घुँघराले’ बताए गए हैं, जो कल्पना के पाले हुए से प्रतीत होते हैं।
‘उत्साह’ कविता के अनुसार बादल कवि के हृदय में क्या भर देते हैं?
उत्तर देखेंबादल कवि के हृदय में विद्युत की छवि और नवजीवन भर देते हैं, जिससे नई कविता का सृजन होता है।
‘उत्साह’ में ‘विश्व के निदाघ के सकल जन’ किस अवस्था में हैं?
उत्तर देखें‘विश्व के निदाघ के सकल जन’ ‘विकल’ और ‘उन्मन’ अवस्था में हैं, गर्मी से व्याकुल हैं।
‘अट नहीं रही है’ कविता में कौन सा मौसम वर्णित है?
उत्तर देखेंकविता में फागुन (वसंत ऋतु) का मौसम वर्णित है, जिसकी आभा असहनीय सुंदरता लिए है।
फागुन की सुंदरता कवि की आँखों से क्यों नहीं हट रही?
उत्तर देखेंफागुन की अत्यधिक तेजस्वी और मनमोहक सुंदरता कवि की आँखों को बाँधे रखती है, वह उससे विमुख नहीं हो पाता।
‘अट नहीं रही है’ में प्रकृति क्या कर रही है, जिससे सुंदरता बढ़ रही है?
उत्तर देखेंप्रकृति साँस लेकर घर-घर को सुगंध से भर रही है और पत्तों को पर-पर (उड़ने योग्य) कर रही है, जिससे सुंदरता फैल रही है।
‘पत्तों से लदी डाल’ का कैसा दृश्य है?
उत्तर देखेंपत्तों से लदी डालें कहीं हरी हैं तो कहीं लाल हैं, यानी नए पत्ते और पलाश जैसे लाल फूलों से सजी हैं।
कवि के उर (हृदय) में क्या विद्यमान है?
उत्तर देखेंकवि के उर (हृदय) में मंद गंध वाली पुष्पमाला विद्यमान है, जो फागुन की सुगंध का प्रतीक है।
‘पाट-पाट शोभा-श्री’ का क्या अर्थ है?
उत्तर देखेंइसका अर्थ है कि चारों ओर फैली हर जगह (‘पाट-पाट’) शोभा और समृद्धि (‘श्री’) दिखाई दे रही है।
‘उत्साह’ कविता में बादलों को किसका प्रतीक माना जा सकता है?
उत्तर देखेंबादलों को परिवर्तन लाने वाली, जीवनदायिनी और क्रांतिकारी शक्ति का प्रतीक माना जा सकता है।
‘अट नहीं रही है’ में कवि की क्या मनोदशा है?
उत्तर देखेंकवि फागुन की अभिभूत कर देने वाली सुंदरता से अत्यंत प्रसन्न, विस्मित और मंत्रमुग्ध है।
‘उत्साह’ में ‘वज्र छिपा, नूतन कविता’ पंक्ति का भाव क्या है?
उत्तर देखेंभाव है कि बादलों में छिपी वज्र (विद्युत) जैसी शक्ति कवि में नई कविता की प्रेरणा भर देती है।
‘अट नहीं रही है’ में ‘साँस लेते हो’ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?
उत्तर देखें‘साँस लेते हो’ फागुन की प्रकृति (वायु, सुगंध) के लिए प्रयुक्त हुआ है, जो सर्वत्र सुगंध फैला रही है।
दोनों कविताओं में प्रकृति के किस रूप का वर्णन है?
उत्तर देखें‘उत्साह’ में प्रकृति का शक्तिशाली, उद्दाम और जीवनदायी रूप है, जबकि ‘अट नहीं..’ में उसका मनोहर, कोमल और मादक रूप है।
कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 4 लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर
‘उत्साह’ कविता में बादलों का वर्णन किन-किन रूपकों और उपमाओं के माध्यम से किया गया है? उदाहरण दें।
उत्तर देखेंकवि ने बादलों को कई सटीक रूपकों और उपमाओं से सजाया है। उनके बालों की तुलना ‘कल्पना के-से पाले’ (रूपक) से की गई है, जो ‘ललित’, ‘काले’ और ‘घुँघराले’ हैं। उन्हें ‘धाराधर’ (जलधारण करने वाले) कहा गया है। सबसे प्रभावशाली रूपक यह है कि उनकी विद्युत कवि के हृदय में ‘नवजीवन’ भर देती है और ‘वज्र छिपा, नूतन कविता’ का सृजन करती है।
‘उत्साह’ कविता में बादलों के गर्जन का आह्वान क्यों किया गया है? कवि के दो उद्देश्य क्या हैं?
उत्तर देखेंबादलों के गर्जन का आह्वान दो प्रमुख उद्देश्यों से किया गया है। पहला, ग्रीष्म (‘निदाघ’) की तपन से व्याकुल (‘विकल’, ‘उन्मन’) संसार को राहत देना – ‘तप्त धरा, जल से फिर शीतल कर दो’। दूसरा, कवि के स्वयं के भीतर नवीन सृजनात्मक ऊर्जा का संचार करना – ‘विद्युत-छबि उर में… नवजीवन वाले!’, ‘वज्र छिपा, नूतन कविता फिर भर दो’। बादल जीवन और रचना दोनों का स्रोत हैं।
‘अट नहीं रही है’ कविता में फागुन की सुंदरता की कौन-कौन सी विशेषताएँ बताई गई हैं?
उत्तर देखेंकविता में फागुन की सुंदरता की कई विशेषताएँ उभरती हैं: उसकी ‘आभा’ (चमक) इतनी तीव्र है कि वह सहन नहीं हो रही (‘अट/सट नहीं रही’)। प्रकृति सर्वत्र सुगंध फैला रही है (‘साँस लेते हो, घर-घर भर देते हो’)। वृक्ष नए पत्तों और फूलों (कहीं हरी, कहीं लाल डाल) से लदे हैं। हवा इतनी सुहावनी है कि पत्ते उड़ने को आतुर हैं (‘पर-पर कर देते हो’)। यह शोभा अत्यंत व्यापक और समृद्ध है (‘पाट-पाट शोभा-श्री’) और कवि के हृदय में भी बसी है (‘मंद-गंध-पुष्प-माल’)।
‘अट नहीं रही है’ कविता में प्रयुक्त ‘अट’, ‘सट’, ‘पट’ शब्दों की व्यंजना स्पष्ट कीजिए।
उत्तर देखें‘अट’, ‘सट’, और ‘पट’ शब्दों की आवृत्ति से एक विशेष ध्वन्यात्मक प्रभाव और अर्थ-छवि उत्पन्न होती है। ‘अट’ का अर्थ है रुकना या ठहरना। फागुन की आभा इतनी प्रखर है कि कवि उसे सहन नहीं कर पा रहा, वह उसमें ‘अट’ गया है। ‘सट’ का अर्थ है सटना या चिपकना। सुंदरता कवि से चिपकी हुई है, उसे छोड़ नहीं रही। ‘पट’ का अर्थ है पट्टी या आवरण। चारों ओर फैली शोभा (‘शोभा-श्री’) इतनी विशाल है कि उसे किसी एक पट (आवरण या सीमा) में बाँधा नहीं जा सकता। ये शब्द कवि की मुग्धता और सुंदरता की अतिशयता को दर्शाते हैं।
‘उत्साह’ कविता के आधार पर बताइए कि बादलों का कवि के आंतरिक जगत पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर देखें‘उत्साह’ कविता में बादल कवि के आंतरिक जगत को गहराई से प्रभावित करते हैं। उनकी ‘विद्युत-छबि’ (बिजली की चमक) कवि के हृदय (‘उर’) में प्रवेश कर जाती है और उसमें ‘नवजीवन’ का संचार करती है। यही बिजली (‘वज्र’) कवि में छिपी हुई नई कविता के स्रोत को जगा देती है (‘वज्र छिपा, नूतन कविता फिर भर दो’)। बादलों की शक्ति और गतिशीलता कवि की सृजनात्मक ऊर्जा को उद्दीप्त कर देती है, उसे नया जीवन और नई काव्य-रचना का उत्साह प्रदान करती है।
‘अट नहीं रही है’ कविता में फागुन के प्राकृतिक सौंदर्य ने कवि को किस तरह आंदोलित किया है?
उत्तर देखेंफागुन के प्राकृतिक सौंदर्य ने कवि को पूर्णतः आंदोलित व मुग्ध कर दिया है। इसकी ‘आभा’ इतनी प्रबल है कि कवि उसे सहन नहीं कर पा रहा (‘अट नहीं रही है’)। सुंदरता उससे चिपकी हुई है (‘सट नहीं रही है’)। वह प्रकृति को साँस लेते और घर-घर सुगंध भरते देखता है। आकाश में उड़ने को आतुर पत्ते उसके मन को भी उड़ान भरने को प्रेरित करते हैं। पेड़ों पर हरी-लाली का दृश्य और हृदय में बसी पुष्पमाला की मंद गंध उसे भीतर तक व्याप्त है। यह व्यापक शोभा (‘पाट-पाट शोभा-श्री’) उसके लिए असीमित है (‘पट नहीं रही है’)। कुल मिलाकर, कवि इस सौंदर्य के समक्ष पूर्णतः समर्पित व विभोर है।
‘उत्साह’ कविता में ‘विश्व के निदाघ के सकल जन’ पंक्ति द्वारा कवि क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर देखें‘विश्व के निदाघ के सकल जन’ पंक्ति के माध्यम से कवि एक सार्वभौमिक पीड़ा और प्रतीक्षा का चित्रण करता है। ‘निदाघ’ (ग्रीष्म) केवल मौसम नहीं, बल्कि जीवन की उस उमस, पीड़ा, निराशा और शुष्कता का प्रतीक है जिससे संपूर्ण संसार (‘सकल जन’) के लोग (‘विकल-विकल’, ‘उन्मन-उन्मन’) त्रस्त हैं। यह पंक्ति बादलों के आह्वान को केवल प्राकृतिक घटना नहीं, बल्कि पीड़ित मानवता के लिए राहत, नवजीवन और परिवर्तन की कामना के रूप में स्थापित करती है। बादल इस पीड़ा को हरने वाले मुक्तिदाता बन जाते हैं।
‘अट नहीं रही है’ कविता में ‘पर-पर कर देते हो’ का क्या आशय है? यह फागुन के वातावरण को कैसे दर्शाता है?
उत्तर देखें‘पर-पर कर देते हो’ का आशय है उड़ने के लिए पंख दे देना या उड़ने को उत्सुक कर देना। यह वाक्यांश फागुन के वातावरण की अत्यंत सजीवता, हल्केपन और उत्साह को दर्शाता है। वसंत की मादक हवा और जीवन-रस से भरे वातावरण के कारण पत्ते ऐसे प्रतीत होते हैं मानो उनमें उड़ने की इच्छा जाग गई हो, वे पंख पाकर आकाश में उड़ना चाहते हों। यह केवल पत्तों की ही नहीं, बल्कि कवि के मन की भी उड़ान और उत्सुकता को व्यक्त करता है। यह फागुन की चंचलता और उल्लासपूर्ण प्रवृत्ति का सुंदर चित्रण है।
दोनों कविताओं में प्रकृति के प्रति कवि के दृष्टिकोण में क्या अंतर स्पष्ट होता है?
उत्तर देखेंदोनों कविताओं में प्रकृति के प्रति कवि का दृष्टिकोण भिन्न है। ‘उत्साह’ में प्रकृति (बादल) शक्ति, उद्दाम ऊर्जा, परिवर्तन और नवजीवन का स्रोत है। कवि उससे गरजने, ललकारने और जनकल्याण करने की अपेक्षा रखता है। यहाँ सम्बन्ध आह्वान और प्रेरणा का है। ‘अट नहीं रही है’ में प्रकृति (फागुन) सौंदर्य, माधुर्य, कोमलता और मादकता का प्रतीक है। कवि उसकी अतिशय सुंदरता से विभोर और आक्रांत है, वह उसमें डूबा हुआ है। यहाँ सम्बन्ध आत्मीय आस्वादन और समर्पण का है। एक में ओज और शक्ति है, तो दूसरे में माधुर्य और सौंदर्यबोध।
‘अट नहीं रही है’ कविता में ‘मंद-गंध-पुष्प-माल’ पंक्ति का क्या महत्व है?
उत्तर देखें‘मंद-गंध-पुष्प-माल’ पंक्ति का विशेष महत्व है। यह दर्शाती है कि फागुन की सुंदरता और सुगंध केवल बाह्य दृश्य नहीं है, बल्कि वह कवि के अंतर्मन (‘उर’ – हृदय) में भी समा गई है। ‘मंद-गंध’ (हल्की, मधुर सुगंध) वाली यह ‘पुष्पमाला’ कवि के भीतर विद्यमान है, जो उसकी आंतरिक अनुभूति को दर्शाता है। यह पंक्ति बाह्य प्रकृति और आंतरिक भावना के अद्भुत मिलन को दर्शाती है। फागुन की मादकता अब कवि के स्वयं के अस्तित्व का हिस्सा बन गई है, जिससे उसकी मुग्धता और गहराई सिद्ध होती है।
कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 4 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर
‘उत्साह’ कविता में निराला ने बादलों को जीवनदायी और क्रांतिकारी शक्ति के रूप में कैसे चित्रित किया है? कविता की मूल भावना को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर देखेंनिराला ने ‘उत्साह’ कविता में बादलों को एक सर्वशक्तिमान, जीवनदायी और क्रांतिकारी शक्ति के रूप में उकेरा है। बादलों का ‘घोर गगन’ को ‘घेर’ लेना और ‘गरजो’ का आह्वान उनकी विशालता और उद्दाम ऊर्जा को दिखाता है। उनके ‘काले घुँघराले’ बाल ‘कल्पना के-से पाले’ हैं, जो उनकी रहस्यमयता और सृजनात्मक क्षमता का प्रतीक है। उनकी विद्युत (‘वज्र’) कवि के हृदय में ‘नवजीवन’ भर देती है, नई कविता का सृजन करती है, जो उन्हें प्रेरणा के स्रोत के रूप में स्थापित करता है। साथ ही, वे ‘विश्व के निदाघ के सकल जन’ की पीड़ा (‘विकल’, ‘उन्मन’) को समझते हैं। उनका ‘जल’ ‘तप्त धरा’ को ‘शीतल’ करने का सामर्थ्य रखता है। इस प्रकार, बादल गतिशीलता, परिवर्तन, नवसृजन और पीड़ित मानवता के उद्धार की क्रांतिकारी शक्ति के प्रतीक बन जाते हैं। कविता की मूल भावना जीवन में नवीनता, ऊर्जा, परिवर्तन और सामाजिक उत्थान के प्रति गहन उत्साह और आह्वान है।
‘अट नहीं रही है’ कविता में फागुन के सौंदर्य का जो चित्रण हुआ है, उसकी विशेषताएँ बताते हुए यह स्पष्ट कीजिए कि कवि इस सौंदर्य के प्रति किस भाव-दशा में है?
उत्तर देखें‘अट नहीं रही है’ कविता में फागुन के सौंदर्य का अत्यंत जीवंत और संवेदनशील चित्रण है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ हैं: असहनीय तेजस्विता (‘आभा… अट नहीं रही है’), सर्वव्यापी मादक सुगंध (‘साँस लेते हो, घर-घर भर देते हो’), पेड़ों पर हरे नए पत्तों और लाल फूलों (जैसे पलाश) की सघनता (‘पत्तों से लदी डाल कहीं हरी, कहीं लाल’), चंचल हवा द्वारा पत्तों को उड़ान भरने को प्रेरित करना (‘पर-पर कर देते हो’), कवि के हृदय में बसी मंद गंध वाली पुष्पमाला (‘मंद-गंध-पुष्प-माल’) और चारों ओर फैली अतुलनीय समृद्ध शोभा (‘पाट-पाट शोभा-श्री… पट नहीं रही है’)। यह सौंदर्य इतना अधिक है कि वह कवि को सहन नहीं हो रहा, उससे चिपक गया है। कवि इस सौंदर्य के प्रति पूर्णतः विभोर, मुग्ध और आत्मविस्मृत भाव-दशा में है। वह उससे दूर होना चाहता है क्योंकि वह भारी है (‘अट नहीं रही’), परंतु उसकी आँखें उस सुंदरता को छोड़ नहीं पा रहीं (‘हट नहीं रही’)। वह इस प्राकृतिक उल्लास और मादकता में पूरी तरह डूबा हुआ है, उसका हृदय भी उसी पुष्पमाला से सुगंधित है। कुल मिलाकर, कवि की भाव-दशा आनंद, विस्मय और सौंदर्य के प्रति पूर्ण समर्पण की है।
‘उत्साह’ कविता में बादलों के माध्यम से निराला ने किस सामाजिक यथार्थ और आकांक्षा को व्यक्त किया है? कविता का प्रतीकात्मक महत्व समझाइए।
उत्तर देखें‘उत्साह’ कविता में बादलों के माध्यम से निराला ने गहरे सामाजिक यथार्थ और आकांक्षा को व्यक्त किया है। ‘निदाघ’ केवल गर्मी नहीं, बल्कि समाज में व्याप्त अत्याचार, शोषण, निराशा और जड़ता का प्रतीक है। ‘विश्व के निदाघ के सकल जन’ की ‘विकल’ और ‘उन्मन’ अवस्था इसी सामाजिक पीड़ा और विवशता को दर्शाती है। बादल इस यथार्थ के विरुद्ध आने वाली क्रांतिकारी शक्ति के प्रतीक हैं। उनका गगन को ‘घेर’ लेना और ‘गरजो’ का आह्वान जनजागरण और विद्रोह का आह्वान है। उनका ‘जल’ तप्त धरा को शीतल करने वाला, यानी समाज की जलन और पीड़ा को शांत करने वाला सुधारात्मक परिवर्तन है। बादलों की ‘विद्युत’ (‘वज्र’) कवि के हृदय में ‘नवजीवन’ भरती है, यह नई चेतना, नई विचारधारा और नए साहित्य के सृजन का प्रतीक है। इस प्रकार, कविता का प्रतीकात्मक महत्व गहरा है। यह पीड़ित मानवता के लिए परिवर्तन, क्रांति, नवजागरण और निर्माण की आकांक्षा को बादलों के रूपक के माध्यम से शक्तिशाली ढंग से अभिव्यक्त करती है। यह निराशा को उत्साह में बदलने का संदेश देती है।
‘अट नहीं रही है’ कविता में प्रयुक्त इंद्रियबोधक बिंबों (दृश्य, श्रव्य, घ्राण, स्पर्श) की सहायता से फागुन के वातावरण का सजीव चित्रण कैसे हुआ है? विस्तार से समझाइए।
उत्तर देखें‘अट नहीं रही है’ कविता फागुन के वातावरण का सजीव चित्रण इंद्रियबोधक बिंबों के माध्यम से करती है:
दृश्य बिंब (Sight): ‘आभा फागुन की’ (तेजस्वी चमक), ‘पत्तों से लदी डाल कहीं हरी, कहीं लाल’ (हरे पत्तों और लाल फूलों का दृश्य), ‘पाट-पाट शोभा-श्री’ (चारों ओर फैली समृद्ध शोभा), ‘नभ में उड़ने को’ (आकाश में उड़ते पत्तों का दृश्य)। ये बिंब फागुन की रंगीनता और भव्यता को दिखाते हैं।
घ्राण बिंब (Smell): ‘साँस लेते हो, घर-घर भर देते हो’ (सर्वव्यापी सुगंध का भर जाना), ‘मंद-गंध-पुष्प-माल’ (हृदय में बसी फूलों की मधुर सुगंध)। ये बिंब वातावरण की मादकता को व्यक्त करते हैं।
स्पर्श बिंब (Touch): ‘तन सट नहीं रही है’ (सुंदरता का स्पर्श भारी पड़ना – साइनेस्थीसिया), ‘शीतल’ (अनुभूति, हालाँकि शीतल शब्द इस कविता में नहीं है, पर फागुन की सुहावनी हवा का स्पर्श बोध अंतर्निहित है)। यह बिंब सुंदरता की तीव्रता और सुखद अनुभूति को दर्शाता है।
श्रव्य बिंब (Sound): ‘पर-पर कर देते हो’ (पत्तों के हवा में हिलने-उड़ने की मंद ध्वनि की कल्पना कराई गई है)। यह बिंब वातावरण की चंचलता को दर्शाता है।
इन सभी बिंबों के सम्मिलित प्रयोग से कवि ने फागुन के वातावरण को इतना सजीव, मूर्त और संपूर्ण बना दिया है कि पाठक उसे देख, सूंघ और महसूस कर सकता है। यह बहु-इंद्रिय अनुभूति कविता को अविस्मरणीय बनाती है।
‘उत्साह’ और ‘अट नहीं रही है’ कविताओं के आधार पर निराला की प्रकृति-दृष्टि की विशेषताएँ बताइए। उनकी काव्य-भाषा और शिल्प में क्या विशिष्टता दिखाई देती है?
उत्तर देखेंइन दोनों कविताओं के आधार पर निराला की प्रकृति-दृष्टि की प्रमुख विशेषताएँ हैं:
विविधता: वे प्रकृति के दोनों रूपों – ओजस्वी, शक्तिशाली (‘उत्साह’ में बादल) और मनोहर, कोमल (‘अट नहीं..’ में फागुन) – को समान रूप से गहराई से देखते व चित्रित करते हैं।
प्रतीकात्मकता: प्रकृति उनके लिए साधारण दृश्य नहीं, बल्कि भावनाओं, विचारों और सामाजिक संदर्भों के प्रतीक हैं (बादल: क्रांति/नवजीवन, फागुन: आनंद/सौंदर्य)।
आत्मीयता एवं तादात्म्य: वे प्रकृति के साथ गहरा भावनात्मक लगाव रखते हैं। ‘उत्साह’ में वे उससे आह्वान करते हैं, ‘अट नहीं..’ में उसमें डूब जाते हैं। फागुन की सुंदरता उनके हृदय तक (‘उर में’) पहुँच जाती है।
जीवंतता: उनकी प्रकृति स्थिर नहीं, गतिशील, शक्तिशाली और संवेदनशील है (बादल गरजते, घेरते हैं; फागुन साँस लेता, भरता है)।
काव्य-भाषा और शिल्प में विशिष्टता:
शब्द चयन: अत्यंत सटीक, प्रभावशाली और बिंबात्मक शब्दावली (जैसे: घोर गगन, धाराधर, विद्युत-छबि, नवजीवन, विकल-उन्मन, आभा, पर-पर, मंद-गंध-पुष्प-माल, शोभा-श्री)।
ध्वन्यात्मकता: आवृत्ति और अनुप्रास से लय व प्रभाव पैदा करना (जैसे: घेर घेर घोर गगन; अट नहीं रही, सट नहीं रही, पट नहीं रही; पर-पर)।
मुक्त छंद: दोनों कविताएँ मुक्त छंद में हैं, जो भावानुकूल लय और गति प्रदान करती हैं।
रूपक व उपमा: सशक्त रूपकों और उपमाओं का प्रयोग (जैसे: बाल कल्पना के-से पाले; विद्युत-छबि उर में… नवजीवन वाले; वज्र छिपा, नूतन कविता)।
संवेदनशीलता: इंद्रियबोधक बिंबों के माध्यम से अनुभूति को मूर्त बनाना (विशेषकर ‘अट नहीं..’ में)।
निराला की भाषा सहज होते हुए भी गहन अर्थछवियों से युक्त और उनकी विशिष्ट छवापटल शैली का उदाहरण प्रस्तुत करती है।