एनसीईआरटी समाधान कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 2 तुलसीदास
कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 2 तुलसीदास के NCERT समाधान सत्र 2025-26 के लिए अत्यंत लाभकारी हैं। पाठ के सभी प्रश्नों के उत्तर सरल शब्दों में समझाए गए हैं। इनसे विद्यार्थी पाठ को पूरी तरह से समझ सकते हैं। सभी उत्तर नवीनतम पाठ्यक्रम के अनुरूप तैयार किए गए हैं। ये समाधान अनुभवी अध्यापकों द्वारा तैयार किए गए हैं। इनसे परीक्षा की तैयारी भी सुगम हो जाती है।
कक्षा 10 हिंदी क्षितिज पाठ 2 MCQ
कक्षा 10 हिंदी सभी अध्यायों के उत्तर
तुलसीदास कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 2 के प्रश्न उत्तर
1. परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए?
उत्तर देखेंपरशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए बहुत सारे तर्क दिए। लक्ष्मण ने कहा कि वह तो बहुत ही पुराना धनुष था जो श्रीराम के छूने मात्र से ही टूट गया। बचपन में उन्होंने खेल खेल में कई धनुष तोड़े थे इसलिए एक धनुष के टूटने पर इतना क्रोध करना उचित नहीं है।
2. परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर देखेंधनुष के टूटने से परशुराम के क्रोधित होने दोनों भाई न्यायपूर्ण नहीं मानते। दोनों उनका प्रतिकार करते हैं। दोनों का प्रतिकार करने का ढंग भी एकदम उलट है, जहाँ राम विनम्र, धैर्यवान, मृदुभाषी व बुद्धिमान व्यक्तित्व है वहीं दूसरी ओर लक्ष्मण निडर, साहसी, क्रोधी तथा जैसे को तैसे की भाषा में जवाब देने में विश्वास रखते हैं। यहाँ पर भी जब लक्ष्मण परशुराम के साथ वाद-विवाद करता है तो राम उसे समझाते हैं और उसके कृत्य के लिए स्वयं परशुराम से माफी माँगते हैं।
3. लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।
उत्तर देखेंजनक की सभा में धनुष टूटने के बाद लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश सबसे अच्छा लगता है:
लक्ष्मण: हे! ऋषिवर हमने बचपन में बहुत सारे धनुष तोड़े हैं लेकिन तब तो किसी ने रोष प्रकट नहीं किया। इस धनुष पर इतना प्रेम क्यों है?
परशुराम: गुस्सा करते हुए, हे राजा के पुत्र! लगता है तुम्हारा काल नजदीक है क्योंकि तुम संभल के नहीं बोल रहे हो। सारा संसार जानता है कि शिव के धनुष के समान दूसरा कोई धनुष नहीं है।
लक्षण: हे देव! हम तो समझे थे कि सभी धनुष एक समान होते हैं। इसके टूटने से आपकी क्या हानि हुई है? राम के छूते ही यह टूट गया आप तो बिना बाट के गुस्सा हो रहे हो।
परशुराम: अपने फरसे की ओर देखते हुए, हे मूर्ख! तुम मेरे स्वभाव को नहीं जानते, मुझे ऐसा-वैसा ऋषि मत समझ। केवल बालक समझकर तुम्हारा वध नहीं कर रहा हूँ। पूरी दुनिया जानती है कि मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ और मैंने अपने बाहुबल से पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रियों से विहीन कर महादेव को दान कर दी थी। इसी फरसे से मैंने सहस्रबाहु के भुजाओं का छेदन किया था।
4. परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए-
बाल ब्रह्मचारी अति कोही।
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही।
सहसबाहुभुज छेदनिहारा।
बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।
उत्तर देखेंपरशुराम ने जनक की सभा में कहा कि मैं बालब्रह्मचारी हूँ तथा मैंने अपनी भुजाओं के बल से धरती को क्षत्रियों से विहीन कर दिया था। सहस्रबाहु के भुजाओं को इस फरसे से काट डाला था। सारा विश्व जानता है कि मैं क्षत्रियों का द्रोही हूँ। मैंने कई बार राजों से जीतकर इस पृथ्वी का महादेव को दान कर दिया। हे राजपुत्र इस फरसे की ओर देख, इसके भय से गर्भवती स्त्रियों के गर्भ तक नष्ट हो जाते हैं।
5. लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताईं?
उत्तर देखेंलक्ष्मण ने परशुराम को संबोधित करते हुए कहा कि जो वीर पुरुष होते हैं वो स्वयं अपने मुँह से अपनी बढ़ाई नहीं करते हैं। वे दूसरों के लिए कट्टु वचन नहीं बोलते तथा कभी अभिमान नहीं करते। वीर पुरुष कभी भी ब्राह्मण, गाय, स्त्री और दुर्बल पर अपनी वीरता का प्रदर्शन नहीं करते।
6. साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर देखेंयह कथन तर्कसंगत है कि विनम्रता का गुण एक शक्तिशाली और साहसी मनुष्य को शोभा देता है। अन्यथा कमज़ोर इंसान की विनम्रता को उसका गुण नहीं बल्कि दुर्बलता समझा जाता है।
7. भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूंकि पहारू।।
उत्तर देखें(क) परशुराम की बातें सुनकर लक्ष्मण हंसते हुए मीठी वाणी में व्यंग्य करते हैं कि हे मुनि! आप महाबलशाली लगते हैं। आप बार-बार मुझे ये फरसा दिखाकर ऐसा चाह रहें है जैसे कि फूंक मारने से पहाड़ उड़ जाए।
(ख) इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं।।
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
उत्तर देखें(ख) लक्ष्मण परशुराम से कहते हैं यहाँ कोई कुम्हड़े का कच्चा फल नहीं है जो आपकी तर्जनी उंगली को देखकर मर जाए। फरसा और धनुष-बाण देखकर ही मैंने कुछ अभिमान पूर्वक कहा है।
8. पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर देखेंमूल रूप से अवधीभाषा में लिखा गया काव्य में छंद, दोहा और चौपाई का प्रयोग बहुत ही सुन्दर ढंग से किया गया है इनके प्रयोग से काव्य की सुन्दरता और लयबद्धता बढ़ गयी है। काव्य की भाषा सरल और भावात्मक है इसलिए लोग इसे रूचि लेकर पढ़ते हैं तथा इसके अर्थ को भी आसानी से समझ सकते हैं। बहुत सी जगहों पर अलंकारों का प्रयोग किया गया है जिससे इसकी भाषा सुन्दर और संगीतात्मक हो जाती है।
9. इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर देखेंलक्ष्मण परशुराम संवाद के पूरे प्रसंग में व्यंग्य का बहुत प्रयोग किया गया। लक्ष्मण परशुराम के प्रति अधिकतर जगहों पर व्यंग्यात्मक भाषा का प्रयोग किया गया है। जैसे फूंक से पहाड़ उड़ाने का व्यंग्य किया गया है।
10. निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर लिखिए-
(क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।
(ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।
उत्तर देखें(क) ‘बालक बोलि बधौं नहिं तोही’ में ‘ब’ वर्ग की आवृत्ति होने पर अनुप्रसास अलंकार है।
(ख) “कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।” उपमेय ‘बचन’ की उपमान ‘कुलिस’ से समानता दिखाने पर यहाँ उपमा अलंकार है। ‘कोटि कुलिस’ में ‘क’ वर्ग की आवृत्ति होने से अनुप्रास अलंकार भी है।
कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 2 रचना और अभिव्यक्ति
11. “सामाजिक जीवन में क्रोध की जरूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो तो मनुष्य दूसरे के द्वारा पहुँचाए जाने वाले बहुत से कष्टों की चिर-निवृत्ति का उपाय ही न कर सके।“ आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का यह कथन इस बात की पुष्टि करता है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक भाव लिए नहीं होता बल्कि कभी-कभी सकारात्मक भी होता है। इसके पक्ष या विपक्ष में अपना मत प्रकट कीजिए।
उत्तर देखेंपक्ष में
सामजिक तौर पर यद्यपि क्रोध को अच्छा नहीं माना जाता फिर भी कभी-कभी जीवन में क्रोध की अत्यधिक जरूरत पड़ती है। यदि मनुष्य क्रोध को पूरी तरह से त्याग दे, वही दशा होती है जैसे कसाई निरीह जानवरों को मारता है। हिंसक जानवरों को कोई भी आसानी से मार नहीं सकता सभी डर के मारे दूर ही रहते हैं। तो दूसरों के द्वारा दिए जाने वाले कष्टों को वह अपने मन से कभी दूर न कर पाए और सदा के लिए घुट-घुट कर कष्ट उठाता रहे। सामाजिक जीवन सुख-दुख से मिलकर बनता है। कई बार सीधे लोगों को प्राय: दूसरे लोग वेवजह दुख पंहुचाते रहते हैं। इन सबसे बचने के लिए स्वभाव में कठोरता होनी भी जरूरी है। स्वभाव में क्रोध होना उतना बुरा नहीं लेकिन उस पर नियंत्रण आना बहुत जरूरी है अन्यथा वह स्वयं के लिए भी पीड़ादायक हो सकता है।
12. अपने किसी परिचित या मित्र के स्वभाव की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर देखेंमेरे मित्र का नाम रोहित है। वह बहुत ही मिलनसार और मददगार स्वभाव का है। किसी भी कठिन परिस्थिति में वह घबराता नहीं, बल्कि शांत मन से समस्या का समाधान खोजता है। पढ़ाई में वह हमेशा ध्यान लगाकर पढ़ता है और समय का पूरा पालन करता है। खेल-कूद में भी वह आगे रहता है और आपसी सहयोग पर विश्वास करता है। वह हमेशा सच्चाई का साथ देता है और झूठ से दूर रहता है। उसकी सबसे अच्छी आदत यह है कि वह सबके साथ विनम्रता से पेश आता है, चाहे वह बड़ा हो या छोटा। यही कारण है कि उसे सभी लोग बहुत पसंद करते हैं।
13. दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए-इस शीर्षक को ध्यान में रखते हुए एक कहानी लिखिए।
उत्तर देखेंएक जंगल में एक शेर रहता था। शेर अक्सर जानवरों को मारकर खा जाता था। सभी जानवरों ने एक दिन सभा की और प्रस्ताव पास किया कि शेर एक दिन में केवल एक शिकार करेगा। एक दिन एक खरगोश की बारी आई। खरगोश रास्ते भर शेर से बचने का उपाय सोचता रहा। रास्ते में उसे एक कुआँ दिखाई दिया। खरगोश ने कुएं में झाँका तो उसे अपनी परछाई नजर आई। उसके बुद्धि में शेर से बचने का उपाय आ गया वह जान बूझकर शेर के पास देर से पहुँचा। वह जैसे ही शेर के पास पंहुचा दहाड़ते हुए शेर ने देर से आने का कारण पूछा तो उसने उत्तर दिया कि रास्ते में दूसरा शेर मिल गया था उसने रोक लिया था किसी तरह से जान बचाकर आया हूँ। शेर ने खरगोश से कहा उसे मुझे दिखाओ। मैं उसे मार डालूँगा। खरगोश शेर को कुएं पर ले गया और कुएं के अन्दर झाँकने के लिए कहा। जैसे ही शेर ने कुएं में झाँका उसे दूसरा शेर नजर आने लगा। वह उससे लड़ने के लिए कुएं में कूद गया। इस प्रकार खरगोश ने चतुराई से अपनी और दूसरे जानवरों की भी जान बचा ली।
नोट: छात्र किसी अन्य कहानी को भी लिख सकते हैं।
14. उन घटनाओं को याद करके लिखिए जब आपने अन्याय का प्रतिकार किया हो।
उत्तर देखेंपिछले वर्ष हमारे विद्यालय में खेल प्रतियोगिता के दौरान एक घटना हुई। एक टीम के कप्तान ने जानबूझकर नियमों का उल्लंघन किया और अंपायर को ग़लत जानकारी देकर अपनी टीम को लाभ पहुँचाने की कोशिश की। मैंने यह सब अपनी आँखों से देखा। शुरू में मुझे डर लगा कि अगर मैंने सच बताया तो कहीं लोग मुझसे नाराज़ न हो जाएँ, लेकिन फिर मैंने सोचा कि अन्याय को चुपचाप सहना भी ग़लत है। मैं हिम्मत जुटाकर अंपायर के पास गया और पूरी घटना सच-सच बता दी। जाँच के बाद मेरी बात सही निकली और सही टीम को विजेता घोषित किया गया। उस दिन मुझे यह महसूस हुआ कि सच और न्याय के लिए आवाज़ उठाना हमेशा ज़रूरी है, चाहे स्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो।
15. अवधी भाषा आज किन-किन क्षेत्रें में बोली जाती है?
उत्तर देखेंअवधी भाषा हिंदी की एक उपभाषा है। यह भाषा उत्तर प्रदेश के “अवध क्षेत्र” अर्थात् (लखनऊ, रायबरेली, सुल्तानपुर, बाराबंकी, उन्नाव, हरदोई, सीतापुर, लखीमपुर, अयोध्या, जौनपुर, प्रतापगढ़, प्रयागराज, कौशाम्बी, अम्बेडकर नगर, गोंडा, बस्ती, बहराइच, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, श्रावस्ती तथा फतेहपुर आदि) में बोली जाती है।
कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 2 अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर
परशुराम के क्रोध का कारण क्या था?
उत्तर देखेंशिव धनुष टूटने से क्रोधित थे भगवान परशुराम, वे राम को दोषी मानते हैं और राम अपने को उनका दास माँगते हैं। (चौपाई: “नाथ संभुधनु भंजनिहारा…”)
लक्ष्मण परशुराम को क्या कहते हैं?
उत्तर देखेंलक्ष्मण व्यंग्य से कहते हैं कि बालपन में कई धनुष तोड़े, पर शिवजी कभी नाराज़ नहीं हुए। (चौपाई: “बहु धनुही तोरी लरिकाईं…”)
परशुराम के अनुसार सेवक कौन है?
उत्तर देखें“सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई॥” अर्थात, शत्रु का संहार करने वाला ही सच्चा सेवक है।
राम के लिए शत्रु कौन है?
उत्तर देखेंपरशुराम कहते हैं: “जेहि सिवधनु तोरा… सो रिपु मोरा॥” शिव धनुष तोड़ने वाला (राम) उनका शत्रु है।
लक्ष्मण ने धनुषों के बारे में क्या कहा?
उत्तर देखेंउन्होंने हँसकर कहा: “सब धनुष समाना।” अर्थात, सभी धनुष एक जैसे हैं, कोई विशेष नहीं।
परशुराम ने लक्ष्मण को क्या धमकी दी?
उत्तर देखें“बालकु बोलि बधौं नहि तोही॥” अर्थात, “बालक समझकर तुझे नहीं मारता।”
परशुराम स्वयं को कैसे पहचानते हैं?
उत्तर देखें“बाल ब्रह्मचारी अति कोही।” अर्थात, वे बाल ब्रह्मचारी और अत्यंत क्रोधी हैं।
क्षत्रियों के प्रति परशुराम का दृष्टिकोण?
उत्तर देखें“बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही॥” अर्थात, संसार जानता है कि वे क्षत्रिय कुल के शत्रु हैं।
लक्ष्मण ने परशुराम के फरसे को कैसे व्यंग्य किया?
उत्तर देखें“पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु… जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥” अर्थात, “बार-बार फरसा दिखाकर डरा रहे हो।”
लक्ष्मण ने किन्हें न मारने की बात कही?
उत्तर देखें“सुर महिसुर… हमरे कुल इन्ह पर न सुराई॥” अर्थात, देवता, गाय, ब्राह्मण आदि को मारने का उनके कुल में रिवाज़ नहीं।
परशुराम के वचनों की तुलना लक्ष्मण ने किससे की?
उत्तर देखें“कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा॥” अर्थात, “तुम्हारे वचन करोड़ों वज्र के समान कठोर हैं।”
परशुराम ने लक्ष्मण को क्या समझाया?
उत्तर देखें“रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न संभार॥” अर्थात, “हे राजकुमार! तू कालवश ऐसा बोल रहा है।”
शिव धनुष की विशेषता क्या थी?
उत्तर देखेंपरशुराम कहते हैं: “धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार॥” अर्थात, वह धनुष त्रिपुरारि (शिव) के धनुष के समान प्रसिद्ध था।
राम ने इस संवाद में क्या भूमिका निभाई?
उत्तर देखेंराम मौन रहे। लक्ष्मण ने कहा: “देखा राम नयन के भोरें॥” अर्थात, राम ने केवल नम्र नयनों से देखा।
संवाद का मुख्य संघर्ष क्या है?
उत्तर देखेंपरशुराम का अहंकार (“भृगुकुलकेतू”) बनाम लक्ष्मण का निडर व्यंग्य (“बहु धनुही तोरी…”)। दोनों में वाक्युद्ध की स्थिति उत्पन्न हुई।
कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 2 लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर
परशुराम के क्रोध का मूल कारण क्या था और उन्होंने राम से क्या माँगा?
उत्तर देखेंपरशुराम का क्रोध शिव धनुष टूटने पर था, जिसे वे पवित्र मानते थे। उन्होंने राम से कहा: “नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥” अर्थात, “धनुष तोड़ने वाले! तुम्हारा कोई एक दास मुझे दो।” यह माँग उनकी प्रतिशोध की भावना को दर्शाती है, जहाँ वे राम को दण्डित करना चाहते थे।
लक्ष्मण ने धनुष टूटने पर परशुराम का उपहास किस प्रकार किया?
उत्तर देखेंलक्ष्मण ने व्यंग्यपूर्ण शैली में कहा: “बहु धनुही तोरी लरिकाईं। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं॥” अर्थात, “बचपन में मैंने भी कई धनुष तोड़े, पर शिवजी कभी नाराज़ नहीं हुए।” यह टिप्पणी परशुराम के अहंकार को चुनौती देती है और धनुष के अत्यधिक महत्व को निरर्थक बताती है।
परशुराम ने “सच्चा सेवक” की क्या परिभाषा दी?
उत्तर देखेंउन्होंने कहा: “सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई॥” अर्थात, “सच्चा सेवक वह है जो शत्रु का संहार करे।” यह उनकी हिंसक विचारधारा को दर्शाता है, जहाँ सेवा का अर्थ शत्रु का विनाश है, न कि विनम्रता। यह कथन उनके योद्धा-स्वभाव को उजागर करता है।
“सहसबाहु सम सो रिपु मोरा” – इस कथन का क्या संदर्भ है?
उत्तर देखेंपरशुराम ने राम को चेतावनी देते हुए कहा कि जिसने शिव धनुष तोड़ा, वह उनका शत्रु है और “सहसबाहु सम” (सहस्रबाहु जैसा) है। यह उनके द्वारा नष्ट किए गए महान क्षत्रिय राजा सहस्रबाहु की ओर संकेत है, जिसे उन्होंने परशु से मारा था। यह उनकी शक्ति का प्रमाण देने का प्रयास था।
लक्ष्मण ने परशुराम के फरसे को कैसे निरुत्साहित किया?
उत्तर देखेंलक्ष्मण ने व्यंग्य किया: “पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पहारू॥ इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं।” अर्थात, “बार-बार फरसा दिखाकर क्या डरा रहे हो? यहाँ कोई कद्दू की बतिया (नाजुक वस्तु) नहीं जो अँगुली देखकर मर जाए!” यह कथन परशुराम की धमकियों को हल्के में लेता है।
परशुराम ने लक्ष्मण को “कालबस बोलत” क्यों कहा?
उत्तर देखें“रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार” – इसका अर्थ है, “हे राजकुमार! तू मृत्यु के वश में ऐसा बोल रहा है।” यह परशुराम की धमकी थी कि लक्ष्मण का अहंकार उन्हें मृत्यु की ओर ले जाएगा। वे लक्ष्मण को अज्ञानी बालक समझते थे, जो उनके क्रोध का अनुमान नहीं लगा पा रहा।
शिव धनुष की महत्ता पर परशुराम ने क्या तर्क दिया?
उत्तर देखेंउन्होंने कहा: “धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार” – “यह धनुष त्रिपुरारी (शिव) के धनुष के समान संसार में प्रसिद्ध है।” वे बताना चाहते थे कि यह साधारण धनुष नहीं, बल्कि दिव्य प्रतीक था। इसका टूटना उनकी आस्था का अपमान था, जिसे वे क्षम्य नहीं मानते थे।
“बाल ब्रह्मचारी अति कोही” – इस स्व-वर्णन का क्या महत्व है?
उत्तर देखेंपरशुराम स्वयं को “बाल ब्रह्मचारी” (सनातन ब्रह्मचारी) और “अति कोही” (अत्यंत क्रोधी) बताते हैं। यह उनकी द्वंद्वात्मक पहचान है: एक ओर तपस्वी ब्राह्मण, दूसरी ओर योद्धा। वे क्रोध को अपनी शक्ति बताकर लक्ष्मण को भय दिखाना चाहते थे, परन्तु यह उनकी आध्यात्मिक सीमा भी उजागर करता है।
लक्ष्मण ने क्षत्रिय धर्म की रक्षा में क्या तर्क दिए?
उत्तर देखें“सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई॥” अर्थात, “देवता, ब्राह्मण, गाय आदि को मारना हमारे कुल में निषिद्ध है।” यह तर्क क्षत्रियों की नैतिक श्रेष्ठता दिखाता है। लक्ष्मण स्पष्ट करते हैं कि वे निर्दोषों का वध परशुराम की तरह नहीं करते, जो “क्षत्रियकुल द्रोही” थे।
संवाद के अंत में लक्ष्मण का आत्मसंयम कैसे प्रकट हुआ?
उत्तर देखेंअंत में लक्ष्मण ने कहा: “जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर” – “यदि अनुचित कहा हो तो क्षमा करें।” यह उनकी सूझबूझ दर्शाता है। वे जानते थे कि परशुराम को चुनौती देना पर्याप्त था, अब संघर्ष अनावश्यक होगा। यह रघुकुल की शालीनता और राम के प्रभाव का परिणाम था, जिन्होंने मौन रहकर लक्ष्मण को नियंत्रित किया।
कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 2 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर
परशुराम ने “गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु” क्यों कहा? यह उनके चरित्र के किस पहलू को उजागर करता है?
उत्तर देखेंपरशुराम ने लक्ष्मण को धमकाते हुए कहा:
“मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।”
अर्थात्, “हे पृथ्वीपुत्र! तू माता-पिता को चिंता में डाल रहा है। मेरा फरसा गर्भस्थ शिशुओं को भी कुचलने वाला है।” यह कथन उनकी निर्मम हिंसक प्रवृत्ति को दर्शाता है। परशुराम स्वयं को क्षत्रिय-संहारक के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जिन्होंने अनेक बार क्षत्रियों का विनाश कर गर्भस्थ बालकों तक को नहीं छोड़ा था। यह धमकी उनके “क्षत्रियकुल द्रोही” (बालकाण्ड, 236) स्वभाव की चरम अभिव्यक्ति है, जहाँ वे हिंसा को न्यायोचित ठहराने के लिए अतिशयोक्ति का सहारा लेते हैं। उनका यह रौद्र रूप तुलसीदास द्वारा ब्रह्म-तेज के विपरीत आचरण की ओर संकेत करता है।
“सुनहु देव सब धनुष समाना” – लक्ष्मण का यह कथन धार्मिक और सामाजिक संदर्भ में क्यों क्रांतिकारी है?
उत्तर देखेंलक्ष्मण ने व्यंग्यपूर्वक कहा:
“लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।”
यह कथन वैदिक कर्मकांड की चुनौती है। तुलसीदास के समय में शिव धनुष को दैवीय प्रतीक माना जाता था, परंतु लक्ष्मण इसे “सामान्य धनुष” घोषित कर आडंबरविरोधी दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। वे संकेत देते हैं कि धार्मिक प्रतीकों का महत्त्व उनकी उपयोगिता में है, न कि अंधश्रद्धा में। सामाजिक स्तर पर यह क्षत्रियों के व्यावहारिक बुद्धिवाद को दर्शाता है, जो ब्राह्मणवादी आचार-विचार से भिन्न है। लक्ष्मण का यह विचार राम की भक्ति-भावना के समानांतर तर्कशीलता का प्रतीक है, जो तुलसी की रचना में सामंजस्य बनाता है।
“भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी” – लक्ष्मण द्वारा जनेऊ देखने का प्रतीकात्मक अर्थ क्या है?
उत्तर देखेंलक्ष्मण ने कहा:
“भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।”
अर्थात्, “आपको भृगुपुत्र और जनेऊधारी समझकर मैं क्रोध रोक रहा हूँ।” यहाँ जनेऊ ब्राह्मणत्व का प्रतीक है। लक्ष्मण परशुराम की दोहरी भूमिका (ब्राह्मण-योद्धा) को उजागर करते हैं: वे जनेऊ के कारण उनका सम्मान करते हैं, किंतु यह भी स्पष्ट करते हैं कि यही सम्मान उनके क्रोध को नियंत्रित कर रहा है। यह प्रसंग धर्म और संस्कृति के टकराव को दर्शाता है। लक्ष्मण का यह वक्तव्य तुलसीदास के “मर्यादा पुरुषोत्तम” के आदर्श से जुड़ता है, जहाँ क्षत्रिय होकर भी वे ब्राह्मण के प्रतीक (जनेऊ) का आदर करते हैं, परंतु उसकी हिंसक प्रवृत्ति को अस्वीकार करते हैं।
परशुराम के “बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही” होने का ऐतिहासिक-पौराणिक संदर्भ क्या है?
उत्तर देखेंपरशुराम के इस स्वीकारोक्ति:
“बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।”
का आधार पुराणों में वर्णित 21 बार क्षत्रिय संहार की कथा है। पिता जमदग्नि की हत्या के प्रतिशोध में उन्होंने हैहयवंशी राजा सहस्रबाहु सहित समस्त क्षत्रियों का विनाश किया। तुलसीदास ने इसी को संदर्भित करते हुए कहलवाया:
“सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।”
यह घटना ब्राह्मण-क्षत्रिय संघर्ष का प्रतीक है। परशुराम का चरित्र इस संवाद में हिंसा के प्रतीक के रूप में उभरता है, जबकि लक्ष्मण नवीन क्षत्रिय धर्म (राम की मर्यादा) के प्रतिनिधि हैं। तुलसी का उद्देश्य यहाँ दिखाना है कि त्रेतायुग में परशुराम का प्रतिशोध अप्रासंगिक हो चुका है, क्योंकि राम के आगमन से धर्म की नई परिभाषा स्थापित हुई है।
“मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू” – लक्ष्मण के इस कथन में निहित राजनीतिक सूझबूझ क्या है?
उत्तर देखेंलक्ष्मण ने राम की प्रशंसा में कहा:
“छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।”
अर्थात्, “धनुष टूटने का दोष राम को नहीं, और बिना कारण क्रोध करना व्यर्थ है।” यह कथन कूटनीतिक कौशल का उदाहरण है। लक्ष्मण जानबूझकर राम को निर्दोष सिद्ध करते हैं और परशुराम के क्रोध को अनुचित ठहराते हैं। वे दो स्तरों पर संदेश देते हैं:
धार्मिक: राम का स्पर्श भी दोषपूर्ण नहीं हो सकता।
राजनैतिक: अकारण क्रोध शासक के लिए अनुचित है।
यहाँ लक्ष्मण परशुराम को “मुनि” (संन्यासी) कहकर याद दिलाते हैं कि उनका क्रोध उनके वर्तमान आश्रम के विरुद्ध है। तुलसीदास इस प्रसंग में लक्ष्मण को वाक्पटु राजदूत के रूप में चित्रित करते हैं, जो शत्रु को नीतिबद्ध तरीके से निरुत्तर कर देता है।
विश्लेषणात्मक टिप्पणी:
यह संवाद रामचरितमानस के बालकाण्ड की सर्वाधिक नाटकीय घटना है। तुलसीदास ने इसमें:
परशुराम के अहंकार vs लक्ष्मण के विवेक का अद्भुत संघर्ष दर्शाया।
ब्रह्मतेज (परशुराम) और क्षत्रतेज (लक्ष्मण) के टकराव को पौराणिक आधार दिया।
राम की मौन भूमिका भक्ति और न्याय के संतुलन को स्थापित करती है।
चौपाइयों की भाषा-शैली (जैसे “कोही”, “रिसाइ”, “मुसुकाने”) संवादों को जीवंत बनाती है।