एनसीईआरटी समाधान कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 10 एक कहानी यह भी

कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 10 एक कहानी यह भी (मन्नू भंडारी) के NCERT समाधान (सत्र 2025-26) छात्रों के लिए बहुत सहायक साधन हैं। पाठ के सभी प्रश्नों के हल सरल शब्दों में प्रस्तुत हैं। इनसे विद्यार्थी पाठ को आसानी से समझ सकते हैं। सभी उत्तर नवीनतम पाठ्यक्रम पर आधारित हैं। ये समाधान अनुभवी शिक्षकों द्वारा तैयार किए गए हैं। परीक्षा में भी बेहतर प्रदर्शन करने में इनकी काफी सहायता मिलती है।
कक्षा 10 हिंदी क्षितिज पाठ 10 MCQ
कक्षा 10 हिंदी सभी अध्यायों के उत्तर

एक कहानी यह भी कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 10 के प्रश्न उत्तर

1. लेखिका के व्यक्तित्व पर किन-किन व्यक्तियों का किस रूप में प्रभाव पड़ा?
उत्तर देखेंलेखिका के व्यक्तित्व पर दो व्यक्तियों के विचारों का विशेष प्रभाव पड़ा। एक स्वयं लेखिका के पिताजी और दूसरी थी कॉलेज में उनकी शिक्षिका शीला अग्रवाल। लेखिका के पिताजी एक साहित्यकार, विचारक एवं राजनीतिज्ञ थे। वे लेखिका को साहित्यिक पुस्तके पढ़ने तथा घर में होने वाली राजनीतिक वहस में भाग लेने को प्रेरित करते थे। कॉलेज में कदम रखते ही लेखिका का परिचय अध्यापिका शीला अग्रवाल से हुआ। शीला अग्रवाल ने ही लेखिका का परिचय वास्तविक साहिय्त से करवाया। अध्यापिका शीला अग्रवाल की प्रेरणा और विचारों ने लेखिका में नया जोश और उत्साह भर दिया।

2. इस आत्मकथ्य में लेखिका के पिता ने रसोई को ‘भटियारखाना’ कहकर क्यों संबोधित किया है?
उत्तर देखेंलेखिका के पिता का मानना था कि औरतों को रसोई में झोंककर उनकी प्रतिभा को नष्ट नहीं करना चाहिए। लेखिका को उन्होंने साफ कह दिया था कि रसोई से दूर ही रहना। इसलिए लेखिका के पिता ने रसोई को ‘भटियारखाना’ कहकर संबोधित किया।

3. वह कौन-सी घटना थी जिसके बारे में सुनने पर लेखिका को न अपनी आँखों पर विश्वास हो पाया और न अपने कानों पर?
उत्तर देखेंलेखिका जिस कॉलेज में पढ़ती थी एक बार वहां के प्रिंसिपल का पत्र आया कि पिताजी आकर मिलें और बताएँ कि मेरी गतिविधियों के कारण मेरे खिलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई क्यों न की जाए? पत्र पढ़ते ही पिता जी आग-बबूला। “यह लड़की मुझे कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं रखेगी… पता नहीं क्या-क्या सुनना पड़ेगा वहाँ जाकर! चार बच्चे पहले भी पढ़े, किसी ने ये दिन नहीं दिखाया।“ गुस्से से भन्नाते हुए ही वे गए थे। लौटकर क्या कहर बरपा होगा, इसका अनुमान था, सो मैं पड़ोस की एक मित्र के यहाँ जाकर बैठ गई। माँ को कह दिया कि लौटकर बहुत कुछ गुबार निकल जाए, तब बुलाना। लेकिन जब वे लौटे तो प्रसन्न और माथा गर्व से ऊंचा था। वे घर आकर बोले कि कॉलेज की लड़कियों पर इतना रौब है तेरा—सारा कॉलिज तुम तीन लड़कियों के इशारे पर चल रहा है। तुम लोगों के एक इशारे पर क्लास छोड़कर सारी लड़कियाँ निकलकर मैदान में जमा होकर नारे लगाने लगती हैं। कहाँ तो जाते समय पिता जी मुँह दिखाने से घबरा रहे थे और कहाँ बड़े गर्व से कहकर आए कि यह तो पूरे देश की पुकार है; इस पर रोक लगाना संभव नहीं है। यह सुनकर लेखिका को अपनी आँखों पर विश्वास हो रहा था, न अपने कानों पर। पर यह हकीकत थी।

4. लेखिका की अपने पिता से वैचारिक टकराहट को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर देखेंलेखिका के पिताजी यद्यपि स्त्रियों के अधिकारों के समर्थक थे और वे चाहते थे कि औरत को केवल रसोई तक ही सीमित होकर नहीं रहना चाहिए बल्कि समाज और राष्ट्र के उत्थान के लिए योगदान देना चाहिए। दूसरी ओर उन्हें इस बात का डर भी रहता था कि बच्चे ऐसा कोई काम न करें जिससे कोई उनपर टीका-टिप्पणी करे या समाज में बदनामी हो। कॉलेज में लेखिका की नेतागिरी के चलते और लोगों के भड़काने पर वे अक्सर क्रोधित हो जाते थे। यही उनके बीच वैचारिक टकराव था। लेकिन बाड़ में वे लेखिका से सहमत होते हुए नजर आते हैं।

5. इस आत्मकथ्य के आधार पर स्वाधीनता आंदोलन के परिदृश्य का चित्रण करते हुए उसमें मन्नू जी की भूमिका को रेखांकित कीजिए।
उत्तर देखेंवह समय आजादी के आन्दोलन का था। प्रत्येक देशवासी के मन में अंग्रेजी सत्ता के प्रति विद्रोह की भावना थी। लेखिका मन्नू भंडारी ने भी स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर भागीदार की थी। घर में राजनीतिक सभाओं में भाग लेकर, सुबह प्रभात फेरियां निकालना, सभाएं करना तथा कॉलेज में हड़ताल, नारेबाजी, कक्षाओं का बहिष्कार आदि का नेतृत्व भी लेखिका ने बखूबी निभाया। आजादी के आन्दोलन में उन्होंने अपने भाषण, उत्साह तथा अपनी संगठन-क्षमता के द्वारा सहयोग प्रदान किया।

कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 10 रचना और अभिव्यक्ति

6. लेखिका ने बचपन में अपने भाइयों के साथ गिल्ली डंडा तथा पतंग उड़ाने जैसे खेल भी खेले कितु लड़की होने के कारण उनका दायरा घर की चारदीवारी तक सीमित था। क्या आज भी लड़कियों के लिए स्थितियाँ ऐसी ही हैं या बदल गई हैं, अपने परिवेश के आधार पर लिखिए।
उत्तर देखेंलेखिका ने बचपन में अपने भाइयों के साथ कई सारे खेल खेले जैसे- गिल्ली डंडा, पतंग उड़ाने, सतोलिया, लँगड़ी-टाँग, पकड़म-पकड़ाई, काली-टीलो आदि। किंतु लड़की होने के कारण उनका दायरा घर की चारदीवारी तक सीमित था। किंतु आज समय बदल गया है। लड़कियां हर क्षेत्र में लड़कों की बराबरी कर रही हैं। पढ़ाई का क्षेत्र हो या नौकरी, खेलकूद हो या सेना सभी जगह लड़कियों ने अपनी प्रतिभा के बल पर अपनी जगह बनाई है। आज लडकियाँ लड़कों से कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं।

7. मनुष्य के जीवन में आस-पड़ोस का बहुत महत्त्व होता है। परंतु महानगरों में रहने वाले लोग प्रायः ‘पड़ोस कल्चर’ से वंचित रह जाते हैं। इस बारे में अपने विचार लिखिए।
उत्तर देखेंगाँव और शहर के रहन-सहन में यह एक मूलभूत अंतर है। गाँव में रहने वाले लोग सभी एक दूसरे को जानते और पहचानते हैं। जरुरत के समय बिना संकोच किसी से भी सहायता मांग सकते हैं। महानगरों में रहने वाले लोगों के बीच पहचान और विश्वास का संकट है। एक ही भवन में नीचे और ऊपर की मंजिल पर रहने वाले लोग एक-दूसरे को नहीं पहचानते एक दूसरे की सहायता करना तो बहुत दूर की बात है। महानगरों का मनुष्य अपने परिवार तक सीमित होकर रह गया है। उसे अपने सगे सम्बन्धियों तक के बारे में ठीक से जानकारी नहीं होती है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि पड़ोस में रहने वाले लोग अलग-अलग भाषा, प्रान्त और संस्कृति से सम्बंध रखते हैं। दूसरी ओर लोगों के पास समय का अभाव होता जा रहा है वे अपने परिवार के लिए ही समय नहीं निकाल पाते तो दूसरे की फ़िक्र कहाँ से कर पायेंगे।

8. लेखिका द्वारा पढ़े गए उपन्यासों की सूची बनाइए और उन उपन्यासों को अपने पुस्तकालय में खोजिए।
उत्तर देखेंलेखिका द्वारा पढ़े गए उपन्यास:
• गोदान – लेखक: प्रेमचंद
• गबन – लेखक: प्रेमचंद
• निर्मला – लेखक: प्रेमचंद
• सेवासदन – लेखक: प्रेमचंद
• चित्रलेखा – लेखक: भगवतीचरण वर्मा
यशपाल और फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास (जिनका उल्लेख लेखिका ने किया है, भले ही उनके नाम विस्तार से न दिए गए हों)

9. आप भी अपने दैनिक अनुभवों को डायरी में लिखिए।
उत्तर देखेंमेरी डायरी
तारीख: 16 अक्टूबर 2025
आज का दिन मेरे लिए बहुत अच्छा रहा। सुबह स्कूल पहुँचा तो कक्षा में विज्ञान के अध्यापक ने एक बहुत रोचक प्रयोग कराया। बिजली का छोटा-सा मॉडल देखकर मैं हैरान रह गया कि किस तरह छोटी-सी बैटरी से बल्ब जल सकता है।
दोपहर को खेल-पीरियड में दोस्तों के साथ क्रिकेट खेला। मैंने तीन विकेट लिए और सबने मेरी तारीफ़ की। थोड़ी थकान जरूर हुई, लेकिन मज़ा भी खूब आया।
शाम को घर लौटकर मैंने गणित का होमवर्क किया और फिर माँ की मदद से रसोई में आलू की सब्ज़ी बनाना सीखा। मुझे अच्छा लगा कि पढ़ाई के साथ-साथ घर के कामों में भी थोड़ा-बहुत हाथ बँटाऊँ।
रात को जब आँगन में बैठा तो आसमान में बादलों और चाँद का नज़ारा बहुत सुंदर लग रहा था। मन हुआ कि उसे अपनी कॉपी में चित्रित करूँ।
आज का निष्कर्ष: हर दिन हमें कुछ नया सिखा सकता है। ज़रूरी है कि हम उसे ध्यान से देखें और सीखने की कोशिश करें।

भाषा-अध्ययन
10. इस आत्मकथ्य में मुहावरों का प्रयोग करके लेखिका ने रचना को रोचक बनाया है। रेखांकित मुहावरों को ध्यान में रखकर कुछ और वाक्य बनाएँ –
(क) इस बीच पिता जी के एक निहायत दकियानूसी मित्र ने घर आकर अच्छी तरह पिता जी की लू उतारी
(ख) वे तो आग लगाकर चले गए और पिता जी सारे दिन भभकते रहे।
(ग) बस अब यही रह गया है कि लोग घर आकर थू-थू करके चले जाएँ।
(घ) पत्र पढ़ते ही पिता जी आग-बबूला
उत्तर:

मुहावराअर्थवाक्य
लू उत्तारनाअहंकार पर चोट करनाजतिन को अपनी होशियारी पर बड़ा घमंड था अध्यापक ने ऐसी लू उतारी कि सिर झुका के बैठ गया।
आग लगानाझगड़ा करानापड़ोसन ने बहू के खिलाफ सास के कान भरके घर में आग लगा दी।
थू-थू करनाघृणा प्रकट करनाराजू का झगड़े में नाम आने से गाँव भर में थू-थू हो रही है।
आग-बबूला होनाक्रोध आनानौकर की हरकत देखकर सेठजी आग बबूला हो गए।

पाठेतर सक्रियता
• इस आत्मकथ्य से हमें यह जानकारी मिलती है कि कैसे लेखिका का परिचय साहित्य की अच्छी पुस्तकों से हुआ। आप इस जानकारी का लाभ उठाते हुए अच्छी साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने का सिलसिला शुरू कर सकते हैं। कौन जानता है कि आप में से ही कोई अच्छा पाठक बनने के साथ-साथ अच्छा रचनाकार भी बन जाए।
उत्तर देखेंअच्छी साहित्यिक पुस्तकों का महत्व
हमारी किताब आत्मकथ्य से यह समझ में आता है कि लेखिका को साहित्य से परिचय कैसे मिला और किस तरह उन्होंने किताबें पढ़ते-पढ़ते अपनी सोच और अभिव्यक्ति को समृद्ध किया। इसे पढ़कर मुझे भी लगा कि अगर मैं अच्छी किताबें पढ़ूँ तो मेरी भाषा अच्छी होगी, विचार गहरे होंगे और मैं भी अपनी भावनाओं को ठीक से व्यक्त कर पाऊँगा।
मेरे अनुभव
जब भी मैं कोई कहानी या उपन्यास पढ़ता हूँ तो ऐसा लगता है जैसे मैं किसी नए संसार में चला गया हूँ। कई बार तो मुझे लगता है कि मैं भी उस कहानी का पात्र हूँ। मुझे विशेष रूप से प्रेमचंद की कहानियाँ पसंद हैं क्योंकि उनमें गाँव की ज़िंदगी और इंसानियत की बातें बहुत सुंदर ढंग से लिखी होती हैं।
मेरा संकल्प
अब मैंने तय किया है कि हर महीने कम से कम एक कहानी और एक कविता-संग्रह ज़रूर पढ़ूँगा। जो भी पढ़ूँगा, उसका छोटा-सा सार अपनी डायरी में लिखूँगा। इससे मुझे न केवल पढ़ने की आदत होगी, बल्कि लिखने की भी प्रैक्टिस होगी।
मेरी पठन सूची (आरंभिक)
• कहानी – ईदगाह (प्रेमचंद)
• उपन्यास – गुनाहों का देवता (धर्मवीर भारती)
• कविता – झाँसी की रानी (सुभद्राकुमारी चौहान)
• संस्मरण – अतीत के चलचित्र (महादेवी वर्मा से कुछ अंश)
मेरी उम्मीद
कौन जानता है, अगर मैं नियमित रूप से पढ़ता रहूँ, तो शायद भविष्य में मैं भी एक अच्छा पाठक ही नहीं, बल्कि एक रचनाकार भी बन जाऊँ।

• लेखिका के बचपन के खेलों में लँगड़ी टाँग, पकड़म-पकड़ाई और काली-टीलो आदि शामिल थे। क्या आप भी यह खेल खेलते हैं। आपके परिवेश में इन खेलों के लिए कौन-से शब्द प्रचलन में हैं। इनके अतिरिक्त आप जो खेल खेलते हैं उन पर चर्चा कीजिए।
उत्तर देखें► हमारे बचपन के खेल
लेखिका ने अपने बचपन के जिन खेलों का ज़िक्र किया है, जैसे – लँगड़ी टाँग, पकड़म-पकड़ाई और काली-टीलो, वैसे ही खेल मैं और मेरे दोस्त भी खेलते हैं।
• लँगड़ी टाँग को हमारे यहाँ कई जगह एक-टाँग वाला खेल भी कहते हैं।
• पकड़म-पकड़ाई को हम भागा-भागी या टप्पा-टप्पी के नाम से जानते हैं।
• काली-टीलो को हमारे यहाँ पिथ्ठू, सात-पत्थर या लगोरी भी कहा जाता है।
मेरे परिवेश में प्रचलित खेल
मेरे इलाके में ये खेल खूब खेले जाते हैं। गर्मी की छुट्टियों में तो शाम को मैदान में बच्चे इन्हें खेलते दिखाई देते हैं। इन खेलों में ज़्यादा सामान की ज़रूरत नहीं होती, इसलिए ये आसानी से खेले जा सकते हैं।
अन्य खेल जो मैं खेलता हूँ
इनके अलावा मैं और मेरे दोस्त कई और खेल खेलते हैं, जैसे –
• क्रिकेट – यह हमारे मोहल्ले का सबसे लोकप्रिय खेल है।
• बैडमिंटन – खासकर सर्दियों में खेला जाता है।
• खो-खो – इसे हम स्कूल में खेल प्रतियोगिता के दौरान ज़्यादातर खेलते हैं।
• कंचे और गिल्ली-डंडा – ये परंपरागत खेल अब कम हो रहे हैं, लेकिन कभी-कभी हम इन्हें भी मज़े से खेलते हैं।
मेरा अनुभव
मुझे लगता है कि ये खेल हमें न सिर्फ़ मनोरंजन देते हैं बल्कि दोस्ती, टीमवर्क और शारीरिक व्यायाम का भी मौका देते हैं। आजकल मोबाइल और टीवी के कारण बच्चे मैदान से दूर होते जा रहे हैं, लेकिन जब हम ये खेल खेलते हैं तो सचमुच बहुत खुशी मिलती है।

• स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं की भी सक्रिय भागीदारी रही है। उनके बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए और उनमें से किसी एक पर प्रोजेक्ट तैयार कीजिए।
उत्तर देखेंप्रोजेक्ट : स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की भूमिका
विशेष अध्ययन – सरोजिनी नायडू
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में कई महिलाओं ने सक्रिय रूप से भाग लिया और समाज को नई दिशा दी। उनमें से एक थीं सरोजिनी नायडू, जिन्हें उनकी मधुर वाणी और कविताओं के कारण “भारत कोकिला” कहा जाता है। वे केवल कवयित्री ही नहीं, बल्कि एक सशक्त वक्ता और स्वतंत्रता सेनानी भी थीं।
प्रारंभिक जीवन
सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फ़रवरी 1879 को हैदराबाद में हुआ। उनके पिता वैज्ञानिक थे और माता कवयित्री। इस वातावरण ने सरोजिनी को साहित्य और राष्ट्रभक्ति की प्रेरणा दी। उन्होंने उच्च शिक्षा इंग्लैंड में प्राप्त की और अंग्रेज़ी साहित्य पर अधिकार पाया।
स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान
• कांग्रेस में सक्रियता – सरोजिनी नायडू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ीं और कई आंदोलनों का नेतृत्व किया।
• नमक सत्याग्रह – उन्होंने गांधीजी के साथ नमक आंदोलन में भाग लिया और जेल भी गईं।
• महिला संगठन – सरोजिनी ने महिलाओं को स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ा और उन्हें शिक्षा एवं समान अधिकारों के लिए प्रेरित किया।
• प्रथम महिला गवर्नर – स्वतंत्रता के बाद वे उत्तर प्रदेश की पहली महिला गवर्नर बनीं।
साहित्यिक योगदान
• उनकी कविताओं में प्रकृति, प्रेम और देशभक्ति की भावना झलकती है।
• “गोल्डन थ्रेशहोल्ड” और “बर्ड ऑफ टाइम” जैसी काव्य रचनाएँ प्रसिद्ध हैं।
• उन्होंने अपनी कविताओं से लोगों के दिलों में स्वतंत्रता की आग जगाई।
व्यक्तित्व की विशेषताएँ
• ओजस्वी वक्ता और प्रेरक नेता
• कवयित्री और देशभक्त
• महिलाओं को स्वतंत्रता आंदोलन में लाने वाली पथप्रदर्शक
• साहसी, निर्भीक और प्रखर व्यक्तित्व
सरोजिनी नायडू ने यह साबित कर दिया कि साहित्य और राजनीति, दोनों ही क्षेत्र समाज को बदल सकते हैं। वे भारतीय महिलाओं के लिए आदर्श रहीं और स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को सदैव याद किया जाएगा।

कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 10 अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर

लेखिका के पिता की दरियादिली का क्या उदाहरण है?
उत्तर देखेंपिता ने इंदौर में 8-10 विद्यार्थियों को घर रखकर पढ़ाया, जो बाद में ऊँचे पदों पर पहुँचे।

पिता अजमेर क्यों आए?
उत्तर देखेंएक बड़े आर्थिक झटके के कारण वे इंदौर से अजमेर आ गए।

पिता के व्यक्तित्व का नकारात्मक पहलू क्या था?
उत्तर देखेंवे बेहद क्रोधी, अहंवादी और शक्की स्वभाव के थे।

माँ का व्यक्तित्व कैसा था?
उत्तर देखेंवे बेपढ़ी-लिखी, त्यागमयी, धैर्यवान और सदैव परिवार की सेवा में तत्पर रहती थीं।

लेखिका में हीनभावना क्यों पैदा हुई?
उत्तर देखेंगोरी और स्वस्थ बहन सुशीला से निरंतर तुलना व प्रशंसा के कारण।

बचपन में लेखिका कहाँ रहती थी?
उत्तर देखेंअजमेर के ब्रह्मपुरी मोहल्ले के एक दो-मंजिला मकान में।

पिता रसोई को क्या कहते थे और क्यों?
उत्तर देखें“भटियारखाना”, क्योंकि वे मानते थे कि वहाँ समय बर्बाद होता है।

शीला अग्रवाल कौन थीं?
उत्तर देखेंलेखिका की हिंदी प्राध्यापिका, जिन्होंने उन्हें साहित्य से जोड़ा।

1947 में कॉलेज ने क्या कार्रवाई की?
उत्तर देखेंशीला अग्रवाल को नौकरी से निकाला और लेखिका का प्रवेश निषिद्ध कर दिया।

‘महाभोज’ का पात्र ‘दा साहब’ किससे प्रेरित था?
उत्तर देखेंलेखिका के बचपन के अजमेर मोहल्ले के लोगों से।

पिता की सबसे बड़ी दुर्बलता क्या थी?
उत्तर देखेंयश-लिप्सा और समाज में प्रतिष्ठा पाने की चाहत।

लेखिका के बचपन के खेलों के नाम बताएँ।
उत्तर देखेंसतोलिया, लँगड़ी-टाँग, पकड़म-पकड़ाई, काली-टीलो।

सुशीला की शादी कब हुई?
उत्तर देखेंसन् 1944 में, जब लेखिका सात साल की थीं।

पिता का अजमेर आने बाद मुख्य कार्य क्या था?
उत्तर देखेंअंग्रेजी-हिंदी शब्दकोश (विषयवार) को पूरा करना।

15 अगस्त 1947 को क्या हुआ?
उत्तर देखेंभारत को आजादी मिली, जिसे लेखिका ने “शताब्दी की सबसे बड़ी उपलब्धि” कहा।

कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 10 लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर

पिता के अहं और आर्थिक स्थिति का क्या संबंध था?
उत्तर देखेंआर्थिक स्थिति के सिकुड़ने से पिता का अहं और बढ़ गया। वे अपने बच्चों को भी आर्थिक विवशताओं का भागीदार नहीं बनाना चाहते थे, जिससे उनका क्रोध माँ पर उतरता था।

लेखिका के व्यक्तित्व पर पिता के किन गुणों का प्रभाव पड़ा?
उत्तर देखेंपिता की हीनभावना, शक्की प्रवृत्ति और कुंठाएँ लेखिका में भी आईं। उन्हें अपनी उपलब्धियों पर विश्वास नहीं होता था और वे संकोच महसूस करती थीं।

मोहल्ले के ‘पड़ोस-कल्चर’ का क्या महत्व था?
उत्तर देखेंउस जमाने में घर की दीवारें पूरे मोहल्ले तक फैली होती थीं। बिना पाबंदी के किसी भी घर में आना-जाना था, जिससे सामुदायिकता और सुरक्षा का भाव था। आज के फ्लैट संस्कृति ने इसे समाप्त कर दिया।

शीला अग्रवाल ने लेखिका के जीवन को कैसे बदला?
उत्तर देखेंउन्होंने लेखिका को चुनकर पढ़ना सिखाया, शरत्चंद्र-प्रेमचंद से आगे जैनेंद्र-अज्ञेय तक पहुँचाया और राजनीतिक आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी के लिए प्रेरित किया।

पिता के साथ टकराव के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर देखेंकॉलेज प्रिंसिपल के पत्र के बाद पिता क्रोधित हुए, पर छात्र नेतृत्व की बात सुनकर गद्गद हो गए।
पड़ोसी की शिकायत पर पिता ने लेखिका को घर रोकना चाहा, पर डॉ. अंबालाल के प्रशंसा भरे शब्दों ने स्थिति बदल दी।

लेखिका की प्रारंभिक कहानियों के पात्र कौन थे?
उत्तर देखेंवे अजमेर के ब्रह्मपुरी मोहल्ले के लोग थे, जिनके बीच लेखिका बड़ी हुई थीं। इन पात्रों की भाव-भंगिमा और भाषा उनकी कहानियों में सहज ढंग से उतरी, जैसे ‘महाभोज’ का ‘दा साहब’।

सन् 1946-47 में लेखिका की दिनचर्या कैसी थी?
उत्तर देखेंवे प्रभात-फेरियाँ, हड़तालें, जुलूस और भाषणों में सक्रिय रहती थीं। पिता के निषेध के बावजूद वे लड़कों के साथ सड़कों पर नारे लगाती थीं, जिससे घर में टकराव होता था।

पिता की शिक्षा संबंधी विचारधारा क्या थी?
उत्तर देखेंवे चाहते थे कि लेखिका रसोई (“भटियारखाना”) से दूर रहकर पढ़े-लिखे लोगों की बहसें सुने और देश की स्थितियों को समझे। उनका मानना था कि इससे बौद्धिक विकास होगा।

लेखिका पर पढ़े गए साहित्य का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर देखेंजैनेंद्र के ‘सुनीता’ व ‘त्यागपत्र’, अज्ञेय के ‘शेखर: एक जीवनी’ और भगवतीचरण वर्मा के ‘चित्रलेखा’ ने उनके मूल्यों पर प्रश्न खड़े किए, जिससे पाप-पुण्य, नैतिकता जैसी धारणाएँ टूटीं।

आजादी के समय लेखिका की भावनाएँ कैसी थीं?
उत्तर देखें15 अगस्त 1947 को मिली आजादी को उन्होंने “शताब्दी की सबसे बड़ी उपलब्धि” कहा। यह खुशी उनकी कॉलेज में जीत से भी बड़ी थी, जो देशभक्ति के उनके जोश को दर्शाती है।

कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 10 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर

पिता के व्यक्तित्व के विरोधाभासों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर देखेंलेखिका के पिता अंतर्विरोधों से भरे व्यक्ति थे। एक ओर वे प्रगतिशील थे: समाज-सुधार व शिक्षा में सक्रिय, विद्यार्थियों को निःशुल्क पढ़ाते, लेखिका को राजनीतिक चर्चाओं में भाग लेने की छूट देते। दूसरी ओर, वे अहंवादी व क्रोधी थे। आर्थिक पतन के बाद उनका अहं बढ़ गया, जिससे वे शक्की हो गए और परिवार पर गुस्सा निकालते। उनकी यश-लिप्सा इतनी प्रबल थी कि वे लेखिका की उपलब्धियों पर गर्व करते, पर सामाजिक छवि को लेकर भी सजग थे। ये विरोधाभास उन्हें एक जटिल व्यक्तित्व बनाते थे।

लेखिका के बचपन के सामाजिक परिवेश और उसके साहित्यिक प्रभावों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर देखेंलेखिका का बचपन अजमेर के ब्रह्मपुरी मोहल्ले में बीता, जहाँ “पड़ोस-कल्चर” गहराई से जुड़ा था। घर की दीवारें पूरे मोहल्ले तक फैली थीं और पड़ोस के घर “परिवार का हिस्सा” थे। इस सामुदायिक जीवन ने उनके मन पर अमिट छाप छोड़ी। बाद में उनकी एक दर्जन से अधिक कहानियों के पात्र इसी मोहल्ले के लोगों से प्रेरित थे, जिनकी भाषा व भाव-भंगिमा उनकी रचनाओं में सहज ढंग से उतरी। ‘महाभोज’ जैसे उपन्यास का ‘दा साहब’ भी इन्हीं अनुभवों की देन था। इसने दिखाया कि बचपन के सामाजिक संबंध किस तरह साहित्य की सर्जनात्मक ऊर्जा बनते हैं।

शीला अग्रवाल के मार्गदर्शन और 1940 के दशक के राजनीतिक संदर्भ ने लेखिका के जीवन को कैसे आकार दिया?
उत्तर देखेंशीला अग्रवाल, लेखिका की हिंदी प्राध्यापिका, ने उनके जीवन में निर्णायक भूमिका निभाई। उन्होंने न केवल साहित्य की दुनिया से जोड़ा बल्कि चुनिंदा पुस्तकों (जैनेंद्र, अज्ञेय, यशपाल) से परिचय करवाकर उनकी बौद्धिक दृष्टि विकसित की। साथ ही, उन्होंने लेखिका को 1940 के उथल-पुथल भरे दौर (भारत छोड़ो आंदोलन, आजाद हिंद फौज के मुकदमे) में सक्रिय भागीदारी के लिए प्रेरित किया। इसके तहत लेखिका ने हड़तालें, जुलूस और भाषणों में भाग लिया, जिससे उनमें राष्ट्रवादी चेतना जागी। यही अनुभव बाद में उनकी लेखन शैली और विषयवस्तु (जैसे ‘आपका बंटी’ में सामाजिक-राजनीतिक टिप्पणियाँ) का आधार बना।

लेखिका के आत्म-विश्लेषण में उभरे मनोवैज्ञानिक पहलुओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर देखेंलेखिका आत्मकथा में अपने मनोवैज्ञानिक द्वंद्वों को गहराई से उजागर करती हैं। बचपन में गोरी बहन सुशीला से तुलना ने उनमें हीनभावना पैदा की, जो वयस्क होने पर भी बनी रही—जिससे वे अपनी उपलब्धियों को “तुक्का” मानती थीं। पिता की शक्की प्रवृत्ति ने उनमें अविश्वास की ग्रंथि डाली, खासकर “अपनों” के विश्वासघात के बाद। साथ ही, पिता से लगातार टकराव ने उनमें विद्रोही स्वभाव विकसित किया, जो राजनीतिक आंदोलनों में दिखा। वह स्वीकारती हैं कि पिता के गुण-दोष उनके व्यक्तित्व में “कुंठाओं”, “प्रतिक्रिया” या “प्रतिच्छाया” के रूप में मौजूद हैं, जो यह साबित करता है कि पारिवारिक विरासत व्यक्ति को पूरी तरह मुक्त नहीं करती।

पाठ में वर्णित ऐतिहासिक घटनाओं और उनके सांस्कृतिक प्रभाव का विवेचन कीजिए।
उत्तर देखेंयह आत्मकथा 1940 के दशक के ऐतिहासिक-सांस्कृतिक संदर्भों को जीवंत करती है। सन् 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन, आजाद हिंद फौज के मुकदमों और 1947 की आजादी जैसी घटनाओं ने युवा लेखिका को प्रभावित किया। वे प्रभात-फेरियों, हड़तालों और जुलूसों में शामिल हुईं, जिससे उनमें राष्ट्रवादी चेतना विकसित हुई। साथ ही, पाठ में उस युग की सांस्कृतिक विशेषताएँ भी उभरती हैं: जैसे अजमेर की “पड़ोस-कल्चर” जहाँ मोहल्ला एक परिवार था, लड़कियों की शिक्षा पर मैट्रिक तक का सीमित ध्यान, और पिता जैसे पुरुषों की नवाबी आदतों के बीच महिलाओं का त्यागमय जीवन। ये तत्व न सिर्फ ऐतिहासिक दस्तावेज हैं बल्कि सामाजिक बदलाव के सूत्र भी प्रस्तुत करते हैं।