हिंदी व्याकरण अध्याय 9 शब्द रूपांतरण

हिंदी व्याकरण अध्याय 9 शब्द रूपांतरण जैसे लिंग, वचन, कारक, काल एवं वाच्य के बारे में विद्यार्थी यहाँ विस्तार से अध्ययन करेंगे। शब्द रूपांतरण भाषा की विविधता को दर्शाता है, जिसमें शब्दों के रूप लिंग, वचन, कारक, काल, और वाच्य के आधार पर बदलते हैं।

हिंदी व्याकरण – शब्द रूपांतरण – लिंग, वचन, कारक, काल एवं वाच्य

संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया एवं विशेषण विकारी शब्द कहलाते हैं प्रयोग के अनुसार इनमें परिवर्तन होता रहता है विकार उत्पन्न करने वाले कारक तत्व जिन्हें विकारक शब्द भी कहा जाता है वे लिंग, वचन, कारक, काल और वाच्य हैं इस अध्याय में इन सभी का अध्ययन किया जायेगा
लिंग
लिंग’ संस्कृत भाषा का एक शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘चिह्न’ या ‘निशान’। संज्ञा के जिस रूप से वस्तु की ( पुरुष वा स्त्री) जाति का बोध होता है, उसे लिंग कहते हैं।
लिंग के प्रकार
हिंदी में दो लिंग होते हैं:
1. पुंल्लिंग
2. स्त्रीलिंग
टिप्पणी: संसार की सभी वस्तुओं की मुख्य दो जातियाँ हैं: चेतन और जड़। चेतन वस्तुओं (जीवधारियों) में पुरुष और स्त्री जाति का भेद होता है, परंतु जड़ पदार्थ में यह भेद नहीं होता। इसलिए सभी वस्तुओं को व्यापक रूप से तीन जातियाँ होती हैं:
1. पुरुष
2. स्त्री
3. जड़
इन तीन जातियों के विचार से व्याकरण में उनको तीन लिंगों में बाँटते हैं
1. पुंल्लिंग
2. स्त्रीलिंग
3 नपुंसक लिंग
टिप्पणी: हिंदी में लिंग के विचार से सब जड़ पदार्थों को सचेतन मानते हैं, इसलिए इसमें नपुंसक लिंग नहीं है। जिन पदार्थों में कठोरता, बल, श्रेष्ठता आदि गुण दिखते हैं उनमें पुरुषत्व की कल्पना करके उनके वाचक शब्दों को पुंल्लिंग, और जिनमें नम्रता, कोमलता, सुंदरता आदि गुण दिखाई देते हैं, उनमें स्त्रीत्व की कल्पना करके उनके वाचक शब्दों को स्त्रीलिंग कहते हैं।

पुंल्लिंग
शब्द का वह रूप जिससे पता लगाया जाता है कि वह पुरुष जाति का है, उन्हें पुल्लिंग कहा जाता है। जैसे- बेटा, कुता, लड़का, घोड़ा, बैल आदि।
दूसरे शब्दों में
जिस संज्ञा से (यथार्थ या कल्पित) पुरुषत्व का बोध होता है, उसे पुंल्लिंग कहते हैं। जैसे- लड़का, बैल, पेड़, नगर इत्यादि। इन उदाहरणों में ‘लड़का’ और ‘बैल’ यथार्थ पुरुषत्व सूचित करते हैं और ‘पेड़ ‘ तथा ‘नगर’ से कल्पित पुरुषत्व का बोध होता है, इसलिए ये शब्द पुल्लिंग हैं।
स्त्रीलिंग
वाक्य में प्रयोग होने वाले ऐसे संज्ञा शब्द जिनसे हमे स्त्री जाति के होने का बोध होता हैं स्त्रीलिंग कहलाते हैं। जैसे- माता, लड़की, भेद, गाय, भैंस, बकरी, धोती, टोपी, सड़क, सजा, भीड़ आदि।
दूसरे शब्दों में: जिस संज्ञा से (यथार्थ या कल्पित) स्त्रीत्व का बोध होता है, उसे स्त्रीलिंग कहते हैं। जैसे- लड़की, गाय, लता, पुरी इत्यादि। इन उदाहरणों में ‘लड़की’ और ‘गाय’ से यथार्थ स्त्रीत्व का और ‘लता’ तथा ‘पुरी’ में कल्पित स्त्रीत्व का बोध होता है; इसलिए ये शब्द स्त्रीलिंग हैं।

लिंग निर्णय

हिंदी में लिंग निर्णय दो प्रकार से किया जाता है:
1. शब्द के अर्थ से
2. शब्द के रूप से
बहुधा प्राणिवाचक शब्दों का लिंग अर्थ के अनुसार और अप्राणिवाचक शब्दों का लिंग रूप के अनुसार निश्चित किया जाता हैं। शेष शब्दों का लिंग केवल व्यवहार के अनुसार माना जाता है।
लिंग की पहचान करने के नियम निम्नलिखित हैं:
1. जिन प्राणिवाचक संज्ञाओं से जोड़े का ज्ञान होता है, उनमें पुरुषवाचक संज्ञाएँ पुंल्लिंग और स्त्रीबोधक संज्ञाएँ स्त्रीलिंग होती हैं।
उदाहरण:

पुंल्लिंगस्त्रीलिंग
पुरुषस्त्री
घोड़ाघोड़ी
मोरमोरनी
पितामाता
भाईबहन
राजारानी

2. निम्नलिखित अप्राणिवाचक शब्द अर्थ के अनुसार पुंल्लिंग हैं: (लेकिन साथ ही कुछ अपवादस्वरुप स्त्रीलिंग भी हैं।)
(क) शरीर के अंगों के नाम: बाल, सिर, ओठ, दांत, मुँह, कान, गाल, हाथ, पाँव आदि।
अपवाद: आँख, जीभ, नाक, उंगली (स्त्रीलिंग)
(ख) धातुओं के नाम: लोहा, सोना, ताँबा, पीतल, सीसा, टीन, काँसा आदि।
अपवाद: चांदी, मिट्टी (स्त्रीलिंग)
(ग) पेड़ों के नाम: आम, अमरुद, पीपल, बड़, सागौन, शीशम, अशोक आदि।
अपवाद: नीम, जामुन, कचनार (स्त्रीलिंग)
(घ) पर्वतों के नाम: सतपुड़ा, हिमालय, विंध्याचल, कैलाश, अरावली, आल्पस आदि।
(च) ग्रहों के नाम: सूर्य, चंद्रमा, शुक्र, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण, वरुण, आदि। अ
अपवाद: पृथ्वी (स्त्रीलिंग)

(छ) देशों के नाम: भारत, पाकिस्तान, अफ्रीका, अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस, इंडोनेशिया, मलेशिया आदि।
अपवाद: श्रीलंका (स्त्रीलिंग)
(ज) दिनों के नाम: सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार, शनिवार, रविवार।
(झ) रत्नों के नाम: हीरा, मोती, माणिक, मूँगा, पन्ना आदि।
अपवाद: मणि (स्त्रीलिंग)
(त) अनाजों के नाम: जौ, गेहूँ, चावल, मटर, उड़द, चना, तिल आदि।
अपवाद: मक्की, जुआर, मूँग, अरहर (स्त्रीलिंग)
(थ) द्रव पदार्थों के नाम: घी, तेल, पानी, दही, मही, शर्बत, सिरका, अतर, आसव, अवलेह आदि।
अपवाद: छाछ, स्याही, मसि (स्त्रीलिंग)
(द) समय सूचक नाम: क्षण, सेकण्ड, मिनट, घण्टा, दिन, सप्ताह, पक्ष, माह।
अपवाद – रात, सायं, सन्ध्या, दोपहर (स्त्रीलिंग)
(न) वर्णमाला के अक्षरों के नाम: अ, औ, क, प, य, श आदि।
अपवाद: इ, ई, ऋ (स्त्रीलिंग)

अर्थ के अनुसार स्त्रीलिंग शब्द की पहचान

(क) जिन संज्ञा शब्दों के अंत में ’ख’ होता है, तो वे स्त्रीलिंग कहलाते हैं।
उदाहरण:
ईख, भूख, चोख, राख आदि।
(ख) नदियों के नाम: गंगा, यमुना, राप्ती, नर्मदा, कृष्णा आदि।
अपवाद: सोन, सिंधु, ब्रह्मपुत्र (पुल्लिंग)
(ग) नक्षत्रों के नाम: अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी आदि।
(घ) भोजनों के नाम: पूरी, कचौरी, खीर, दाल, रोटी, तरकारी, खिचड़ी आदि।
अपवाद: भात, रायता, हलुआ (पुल्लिंग)
(च) मसालों के नाम: लौंग, इलायची, सुपारी, जावित्री (जायपत्री), दालचीनी आदि।
अपवाद: तेजपात, कपूर आदि (पुल्लिंग)
(छ) ईकारांत संज्ञाएँ: नदी, चिट्ठी, रोटी, टोपी, उदासी आदि।
अपवाद: पानी, घी, मोती, दही, मही (पुल्लिंग)
(ज) शब्द के अंत में ‘आनी’ शब्द जुड़ा हो:
उदाहरण:
इंद्राणी, जेठानी ,ठुकरानी ,राजरानी आदि।
(झ) तकरांत अर्थात् शब्द के अंत में ‘त’ अक्षर वाली संज्ञाएँ:
उदाहरण:
रात, बात, लात, छत, भीत आदि।
अपवाद: भात, खेत, सूत, गात, दाँत (पुल्लिंग)
(त) आकारांत संज्ञाएँ अर्थात् ऐसे संज्ञा शब्द जिनके अंतिम अक्षर में आ की मात्रा हो।
उदाहरण:
दया, माया, कृपा, लज्जा, क्षमा, शोभा, सभा आदि।
(थ) जिन शब्दों के अंत में ‘ति’ या ‘नि’ होता है।
उदाहरण:
गति, मति, जाति, रीति, हानि, ग्लानि, योनि, बुद्धि, ऋद्धि आदि।
(द) भाषाओं व लिपियों के नाम:
उदाहरण:
देवनागरी, अंग्रेजी, हिंदी, फ्रांसीसी, अरबी, फारसी, जर्मन, बंगाली आदि।
पुल्लिंग से स्त्रीलिंग बनाने के नियम:
हिंदी में पुंल्लिंग से स्त्रीलिंग बनाने के लिए नीचे लिखे प्रत्यय आते हैं ई, इया, इन, नी, आनी, आइन, आ आदि।
1. प्राणिवाचक आकारांत पुंल्लिंग संज्ञाओं के अंत्य स्वर के बदले ‘ई’ लगाई जाती है।
उदाहरण:

पुल्लिंगस्त्रीलिंग
बेटाबेटी
राजारानी
घोड़ाघोड़ी
गधागधी
चेलाचेली
चींटाचींटी

टिप्पणी: संबंधवाचक शब्द भी इसी वर्ग में आते हैं।
उदाहरण:
पुल्लिंग – स्त्रीलिंग
नाना – नानी
चाचा – चाची
मामा – मामी
साला – साली
दादा – दादी
भतीजा – भतीजी
भानजा – भानजी
लड़का – लड़की

संज्ञा शब्द में अ या आ की जगह ‘इया ‘कर देने से पुल्लिंग संज्ञा शब्द स्त्रीलिंग हो जाते हैं।
उदाहरण:
पुल्लिंग – स्त्रीलिंग
कुत्ता – कुत्तिया
लोटा – लुटिया
बंदर – बंदरिया
खाट – खटिया
चिड़ा – चिड़िया
चूहा – चुहिया
बछड़ा – बाछिया


कई एक संज्ञाओं में ‘नी’ लगती है।
उदाहरण:

ऊँटऊँटनी
मोरमोरनी
सिंहसिंहनी
हंसहंसनी

कई एक शब्द के अंत में ‘आनी’ लगाते हैं।
उदाहरण:
देवर – देवरानी
सेठ – सेठानी
जेठ – जेठानी
मेहतर – मेहतरानी
नौकर – नौकरानी


अनेक पुल्लिंग शब्दों के अंत में ‘आइन’ प्रत्यय जोड़कर स्त्रीलिंग शब्द बनाए जा सकते हैं।
उदाहरण:
चौधरी – चौधराइन
ठाकुर – ठकुराइन
ओझा – ओझाइन
पंडित – पंडिताइन


‘अक’ अंत वाले तत्सम शब्दों में ‘इका’ कर देने से वे स्त्रीलिंग हो जाते हैं।
उदाहरण:
पत्र – पत्रिका
सेवक – सेविका
लेखक – लेखिका
अध्यापक – अध्यापिका
पाठक – पाठिका
गायक – गायिका
संपादक – संपादिका


बहुत सारे शब्द नर और मादा के लिए समान होते हैं इसलिए पुल्लिंग शब्दों को स्त्रीलिंग बनाने के लिए शब्दों में नर या मादा लगाना पड़ता है।
उदाहरण:
तोता – मादा तोता
खरगोश – मादा खरगोश
मच्छर – मादा मच्छर
जिराफ – मादा जिराफ
मगरमच्छ – मादा मगरमच्छ
नर कोयल – कोयल

वचन

संज्ञा के जिस रूप से किसी व्यक्ति, वस्तु के एक या एक से अधिक होने का पता चले उसे वचन कहते हैं। अथार्त संज्ञा के जिस रूप से संख्या का बोध हो उसे वचन कहते हैं
दूसरे शब्दों में
संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया के जिस रूप से हमें संख्या का पता चले उसे वचन कहते हैं।
वचन के प्रकार:
हिन्दी में वचन दो प्रकार के होते हैं:
1. एकवचन
2. बहुवचन


एकवचन
शब्द के जिस रूप से एक वस्तु या व्यक्ति का बोध होता है उसे ‘एकवचन’ कहते हैं।
उदाहरण:
गाय, बच्चा, स्त्री, नदी, ठेला, गाड़ी आदि।


बहुवचन
संज्ञा के जिस रूप से एक से अधिक वस्तुओं का बोध होता है उसे बहुवचन कहते हैं।
उदाहरण:
लड़के, कपड़े, टोपियाँ, नदियाँ, गाड़ियाँ आदि।
टिप्पणी:
हिन्दी में वचन को लेकर कुछ अपवाद हैं जैसे एकवचन के स्थान पर बहुवचन शब्द या इसका उल्टा बहुवचन के स्थान पर एकवचन का प्रयोग किया जाता है। इसके कुछ उदाहरण नीचे दिए जा रहे हैं:
(क) आदर के लिए भी बहुवचन का प्रयोग होता है। जैसे:
1. गुरुजी आज नहीं आये।
2. शिवाजी सच्चे वीर थे।
(ख) बड़प्पन दर्शाने के लिए कुछ लोग वह के स्थान पर वे और मैं के स्थान हम का प्रयोग करते हैं। जैसे:
(1) मालिक ने नौकर से कहा, हम मीटिंग में जा रहे हैं।
(2) आज कक्षा में गुरुजी आए तो वे प्रसन्न दिखाई दे रहे थे।
(ग) केश, रोम, अश्रु, लोग, दर्शक, समाचार, दाम, होश, भाग्य आदि ऐसे शब्द हैं जिनका प्रयोग बहुधा बहुवचन में ही होता है। जैसे:
(1) तुम्हारे केश बहुत सुन्दर हैं।
(2) सर्कस में दर्शक खुश नजर आये।
(3) समाचार मिलते ही उसके आँसू उमड़ पड़े।
(घ) तू एकवचन है जिसका बहुवचन है तुम, किन्तु लोग आजकल लोक-व्यवहार में एकवचन के लिए तुम शब्द का ही प्रयोग करते हैं। जैसे:
(1) मित्र, तुम कब आए।
(2) क्या तुमने खाना खा लिया।
(च) वर्ग, वृंद, दल, गण, जाति आदि शब्द अनेकता को प्रकट करने वाले हैं, किन्तु इनका व्यवहार एकवचन के समान होता है। जैसे:
(1) सैनिक दल शत्रु का दमन कर रहा है।
(2) स्त्री जाति संघर्ष कर रही है।
(छ) जातिवाचक शब्दों का प्रयोग एकवचन में किया जाता है। जैसे:
(1) सोना बहुमूल्य धातु है।
(2) मुंबई का आम स्वादिष्ट होता है।
(ज) इसी तरह से कुछ ऐसे संज्ञा शब्द भी है जो हमेशा एकवचन में ही आते हैं। जैसेः क्रोध, क्षमा, छाया, प्रेम, जल, जनता, पानी, दुध, वर्षा, हवा, आग आदि।
उदाहरणः
1. इस वर्ष वर्षा नहीं होगी।
2. हवा बहुत तेज़ चल रही थी।
3. वहाँ आग जल रही थी।

वचन परिवर्तन
वचन परिवर्तन का मतलब किसी एक संख्या को अधिक संख्या में व्यक्त करना होता है. किसी भी विकारी शब्द का वचन परिवर्तन उस शब्द के साथ प्रयुक्त कारक विभक्ति चिन्ह के आधार पर किया जाता है।


1. यदि किसी पुंल्लिंग संज्ञा शब्द के अंत में ‘आ’ स्वर की मात्रा हो तो ‘आ’ की मात्रा को ‘ए’ की मात्रा में बदलने से एकवचन बहुवचन में परिवर्तित हो जाता है।
उदाहरण:
एकवचन – बहुवचन
लड़का – लड़के
बच्चा – बच्चे
कपड़ा – कपड़े
घोड़ा – घोड़े
लोटा – लोटे
बकरा – बकरे


2. व्यंजनान्त (-अ अन्त वाले) मूल शब्दों में ’अ’ स्वर का लोप हो जाता है और उसके स्थान पर ’एँ’ बहुवचन सूचक प्रत्यय लग जाता है।
उदाहरण:
पुस्तक – पुस्तकें
कलम – कलमें
सड़क – सड़कें
आँख – आँखें
बहन – बहनें
एकवचन – बहुवचन
नहर – नहरें
बोतल – बोतलें
दीवार – दीवारें
चीज – चीजें
बाँह – बाँहें


3. आकारान्त/ऊकारान्त/औकारांत आदि शब्दों में अन्तिम स्वर का लोप नहीं होता बल्कि अंतिम स्वर के बाद ‘एँ’ प्रत्यय जुड़ जाता है।
उदाहरण:
महिला – महिलाएँ
कविता – कविताएँ
शाला – शालाएँ
वधू – वधुएँ
माता – माताएँ
दवा – दवाएँ
पुस्तक – पुस्तकें
गौ – गौएँ


4. जब ईकारान्त संज्ञा शब्दों में ’ओं’ बहुवचन सूचक प्रत्यय लगता है तो अंतिम स्वर ’ई’ का परिवर्तन ह्रस्व ’इ’ में हो जाता है तथा ’इ’ और ’आँ के मध्य ’य’ व्यंजन का आगम हो जाता है।
उदाहरण:
गृहिणी – गृहिणियाँ
पंक्ति – पंक्तियाँ
नारी – नारियाँ
गली – गलियाँ
लड़की – लड़कियाँ
नदी – नदियाँ

कारक

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उसके सम्बन्ध का बोध होता है, उसे कारक कहते हैं।
दूसरे शब्दों में कारक की परिभाषा: क्रिया से सम्बन्ध रखने वाले वे सभी शब्द जो संज्ञा या सर्वनाम के रूप में होते हैं, उन्हें कारक कहते हैं।


कारक के भेद
हिन्दी में कारक आठ हैं और कारकों के बोध के लिए संज्ञा या सर्वनाम के आगे जो प्रत्यय (चिह्न) लगाए जाते हैं, उन्हें व्याकरण में ‘विभक्तियाँ’ कहते हैं।
दूसरे शब्दों में विभक्ति: कारक को प्रकट करने के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला चिह्न विभक्ति कहलाता है। विभक्ति को परसर्ग भी कहते हैं।
कारक के भेद और विभक्ति चिह्न

कारकविभक्ति चिह्न
कर्त्ताने
कर्मको
करणसे
संप्रदानको, के लिए
अपादानसे
संबंधको, के, की, रा, रे, री
अधिाकरणमें, पर
संबोधानहे, अजी, अहो, अरे

कर्त्ताकारक
वाक्य में जो शब्द काम करने वाले के अर्थ में आता है, उसे ‘कर्त्ता’ कहते हैं। कर्ता कारक का चिह्न ‘ने’ होता है। विभक्ति का प्रयोग सकर्मक क्रिया के साथ ही होता है वह भी भूतकाल में। विभक्ति चिह्न कई बार वाक्य में नहीं होता है,अर्थात लुप्त होता है।
उदाहरण:
सुरेश ने पुस्तक पढ़ी।
अनिल खेलता है।
मोहन ने पत्र पढ़ा।
गीता ने गाना गाया।
इन वाक्यों में ’सुरेश, अनिल, मोहन और गीता’ कर्ता कारक हैं, क्योंकि इनके द्वारा क्रिया के करने वाले का बोध होता है।


कर्मकारक
वाक्य में क्रिया का फ़ल जिस शब्द पर पड़ता है, उसे कर्म कहते हैं। कर्मकारक का प्रत्यय चिन्ह ‘को’ है। बिना प्रत्यय के या अप्रत्यय कर्म के कारक का भी प्रयोग होता है।
दूसरे शब्दों में: जिस वस्तु पर क्रिया के व्यापार का फल पड़ता है उसे सूचित करनेवाले संज्ञा के रूप को कर्म कारक कहते हैं। जैसे:
उदाहरण:
लड़का पत्थर फेंकता है।
मालिक ने नौकर को बुलाया।
कविता पुस्तक पढ़ रही है।
पिता ने पुत्र को पुकारा।
हरि ने बैल को मारा।
मीना ने गीता को पुस्तक दी।


करणकारक
करण शब्द का अर्थ है साधन। वाक्य में कर्ता जिस जिस साधन या माध्यम से क्रिया करता है अथवा क्रिया के साधन को करणकारक कहते हैं। करणकारक के विभक्ति चिह्न से, द्वारा, के द्वारा, हैं –
के जरिए, के साथ, के बिना इत्यादि।
जैसे –
वह कुल्हाड़ी से वृक्ष काटता है।
मुझे अपनी कमाई से खाना मिलता है।
सूरज गेंद से खेलता है।
उसे डाकिये के द्वारा पत्र प्राप्त हुआ।


संप्रदानकारक
संप्रदान (सम्+प्रदान) का शाब्दिक का अर्थ है- देना। वाक्य में कर्ता जिसके लिए क्रिया करता है या जिसको कुछ दिया जाए, इसका बोध कराने वाले शब्द के रूप को संप्रदानकारक कहते हैं।
सम्प्रदान कारक की विभक्ति के लिए, को है। जहाँ क्रिया द्विकर्मी हो वहाँ विभक्ति ‘को’ का प्रयोग होता है
उदाहरण:
हरि मोहन को रुपये देता है।
माँ ने बच्चों के लिए खिलौने खरीदे।
सुनील रवि के लिए गेंद लाता है।
हम पढ़ने के लिए स्कूल जाते हैं।


अपादान कारक
अपादान का अर्थ है- पृथक होना या अलग होना। जिस संज्ञा अथवा सर्वनाम से किसी व्यक्ति या वस्तु का अलग होना ज्ञात हो, उसे अपादान कारक कहते हैं। जिस शब्द में अपादान की विभक्ति लगती है, उससे किसी दूसरी वस्तु के पृथक् होने का बोध होता है।
अपादान कारक का विभक्ति चिन्ह ’से’ है। पृथकता के अतिरिक्त भी अपादान कारक का प्रयोग होता है।
उदाहरण:
हिमालय से गंगा निकलती है।
मोहन ने घड़े से पानी पिया।
चूहा बिल से बाहर निकला।


संबंधकारक
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से किसी अन्य शब्द के साथ संबंध या लगाव प्रतीत हो, उसे संबंधकारक कहते हैं। इस कारक से अधिकार, कर्तृत्व, कार्य-कारण, मोल-भाव, परिमाण इत्यादि का बोध होता है।
संबंधकारक की विभक्ति ’का’, ‘के’, की, रा, रे, री एवं ना, ने, नी हैं।
उदाहरण:
राहुल की किताब मेज पर है।
सुनीता का घर दूर है।
विजय अजय का भाई है।

अधिकरण कारक
क्रिया के आधार को सूचित करनेवाली संज्ञा या सर्वनाम के स्वरूप को अधिकरण कारक कहते हैं। अथवा संज्ञा के जिस रूप से क्रिया के आधार का बोध होता है, उसे अधिकरण कारक कहते हैं।
अधिकरण कारक की विभक्ति ‘में’ एवं ‘पर’ हैं। में का अर्थ है अन्दर तथा पर का अर्थ है ऊपर।
उदाहरण:
कप में चाय है।
मन्दिर में मूर्तियाँ हैं।
राम और श्याम में गहरी दोस्ती है।
पुस्तक मेज पर रखी हुई है।
कदम कदम पर पुलिस का पहरा है।


सम्बोधन कारक
वाक्य में जब किसी संज्ञा को पुकारा जाए अथवा संबोंधित किया जाए तो उसे सम्बोधन कारक कहते हैं। सम्बोधन में पुकारने, बुलाने तथा सावधान करने का भाव होता है।
सम्बोधन कारक के विभक्ति चिह्न हे, ओ, अरे हैं।
उदाहरण:
हे भगवान! मेरी रक्षा कीजिए।
अरे! तुम कहाँ चले गए।
ओ भाई! कहाँ भागे जा रहे हो।
कुछ कारको में विभक्तियां समान होती हैं लेकिन उनका प्रभाव अलग-अलग होता है।
कर्म कारक और सम्प्रदान कारक में अंतर
(i) कर्म कारक में विभक्ति ‘को’ का प्रभाव कर्म पर पड़ता है। जबकि सम्प्रदान कारक में विभक्ति ‘को’ से कर्म को कुछ प्राप्त होता है।
(ii) कर्म कारक में विभक्ति ‘को’ का फल कर्म पर पड़ता है। सम्प्रदान कारक में विभक्ति ‘को’ में कर्ता का देने का भाव होता है।
करण कारक और अपादान कारक में अंतर
(i) करण कारक में ‘से’ क्रिया का साधन है जबकि अपादान में ‘से’ अलग होने का भाव है।
(ii) करण कारक ‘से’ क्रिया का फल प्राप्त होता है जबकि अपादान ‘से’ तुलना, दूरी, डराने या सीखने का भाव है।

काल

काल का अर्थ है समय। क्रिया के जिस रूप से उसके होने के समय मालूम हो उसे काल कहते हैं, जिससे कार्य-व्यापार का समय और उसकी पूर्ण अथवा अपूर्ण अवस्था का बोध हो। काल के इस रूप से क्रिया की पूर्णता, अपूर्णता के साथ ही उसके संपन्न होने के समय का बोध होता है।
उदाहरण:
बच्चे खेल रहे हैं।
बच्चे खेल रहे थे।
बच्चे खेलेंगे।
उपरोक्त वाक्यों में पहले में क्रिया हो रही है, दूसरे में क्रिया हो चुकी है तथा तीसरे में क्रिया आगे आने वाले समय में होगी। इस प्रकार तीनों वाक्यों से अलग-अलग समय का बोध होता है।


काल के भेद
काल के तीन भेद हैं:
1. भूतकाल
2. वर्तमान काल
3. भविष्यत् काल


भूतकाल
भूतकाल का अर्थ है बिता हुआ समय। क्रिया के जिस रूप से बीते हुए समय का बोध होता है, उसे भूतकाल कहते है। भूतकाल से कार्य के समाप्ति का बोध होता है।
उदाहरण:
मैं कल स्कूल गया था।
वह खा चुका था।
मैंने पत्र लिखा था।
ऊपर दिए गए वाक्य बीते हुए समय की क्रिया के बारे में बता रहे हैं। भूतकाल की पहचान वाक्य में अंत में था, थे, थी शब्द आते हैं।


भूतकाल के भेद
भूतकाल के छः भेद होते हैं:
1. सामान्य भूतकाल
2. आसन्न भूतकाल
3. पूर्ण भूतकाल
4. अपूर्ण भूतकाल
5. संदिग्ध भूतकाल
6. हेतुहेतुमद भूत


सामान्य भूतकाल
जिससे भूतकाल की क्रिया के विशेष समय का ज्ञान न हो, उसे सामान्य भूतकाल कहते हैं। अर्थात क्रिया के जिस रूप से काम के सामान्य रूप से बीते समय के पूरा होने का पता चलता हो, वह सामान्य भूतकाल कहलाता है।
उदाहरण:
दिनेश घर गया।
उसने खाना खाया।
वे कल यहाँ आए थे।
उपरोक्त वाक्यों में क्रिया पूर्ण हो चुकी है लेकिन कब हुई उसका कोई निश्चित समय नहीं है। इसलिए यह सभी सामान्य भूतकाल की क्रिया है।
आसन्न भूतकाल
क्रिया के जिस रूप से यह पता चले कि क्रिया अभी कुछ समय पहले ही पूर्ण हुई है या खत्म हुई है उस क्रिया को आसन्न भूतकाल कहते हैं। इसमें यह पता चलता है कि क्रिया भूतकाल में शुरू होकर अभी-अभी समाप्त हुई है।
मैने सेब खाया है।
मैं अभी सोकर उठा हूँ।
राधा अभी घर गई है।
पूर्ण भूतकाल
क्रिया के उस रूप को पूर्ण भूतकाल कहते हैं, जिससे क्रिया की समाप्ति के समय का स्पष्ट बोध होता है। अर्थात् क्रिया के जिस रुप से यह पता चले कि क्रिया पहले ही पूरी हो चुकी है वह पूर्ण भूतकाल कहलाता है।
उदाहरण:
श्रीराम ने रावन को मारा था।
वह कल स्कूल आया था।
व्यास जी ने महाभाारत रचा था।
उपरोक्त वाक्यों से यह पता चलता है कि क्रिया भूतकाल में पूर्ण हो चुकी है। वाक्य के अंत में था, थी, थे, चुका था, चुकी थी, चुके थे आदि शब्दों से यह पता चलता है कि वह पूर्ण भूतकाल की क्रिया है।
अपूर्ण भूतकाल
इससे यह ज्ञात होता है कि क्रिया भूतकाल में हो रहा थी, किंतु उसके पूर्ण होने समाप्ति का पता नहीं चलता।
जैसे- सुरेश गीत गा रहा था।
रीता सो रही थी।
उपर्युक्त वाक्यों में क्रियाएँ से कार्य के अतीत में आरंभ होकर, अभी पूरा न होने का पता चल रहा है। अतः ये अपूर्ण भूतकाल की क्रियाएँ हैं।
संदिग्ध भूतकाल
भूतकाल की जिस क्रिया से कार्य होने में अनिश्चितता अथवा संदेह प्रकट होता है वह क्रिया संदिग्ध भूतकाल कहलाती है। इसमें यह संदेश बना रहता है कि भूतकाल में कार्य पूरा हुआ था या नहीं।
उदाहरण:
सुरेश ने गाया होगा।
वह चला गया होगा।
किसान काम बंद करके घर जा चुके होंगे।
हेतुहेतुमद् भूतकाल
यदि भूतकाल में एक क्रिया के होने या न होने पर दूसरी क्रिया का होना या न होना निर्भर करता है, तो वह हेतुहेतुमद् भूतकाल क्रिया कहलाती है। हेतु का अर्थ होता है कारण, जहां भूतकाल में किसी कार्य के ना हो सकने का वर्णन कारण के साथ दो वाक्य में दिया गया हो ऐसी क्रिया को हेतुहेतुमद् भूतकाल कहलाता है।
उदाहरण:
यदि मैं घर पर होता, तो वह अवश्य रुकता।
गीता प्रथम आई होती, तो उसे पुरस्कार मिलता।
यदि समय पर चिकित्सा मिल जाती, तो अनेक घायलों की जानें बच जाती।
यदि तुम मेहनत करते तो परीक्षा में उतीर्ण हो जाते।
वर्तमान काल
क्रिया के जिस रूप से वर्तमान में चल रहे समय का बोध होता है, उसे वर्तमान काल कहते है।
प्रशांत सो रहा है।
मैं पढ़ रहा हूं।
सुरेश क्या लिख रहा है?
ऊपर दिए गए वाक्यों से हमें वर्तमान समय में क्रिया के होने का पता चल रहा है। वर्तमान काल की पहचान वाक्य के अन्त में ‘है, हैं, हूँ, हो’ आदि शब्दों को देखकर कर सकते हैं।


वर्तमान काल के भेद
वर्तमान काल के पाँच भेद हैं:
1. सामान्य वर्तमान काल
2. तात्कालिक वर्तमान काल
3. पूर्ण वर्तमान काल
4. अपूर्ण वर्तमान काल
5. संदिग्ध वर्तमान काल
6. संभाव्य वर्तमान काल


सामान्य वर्तमान काल
क्रिया का वह रूप जिससे क्रिया का वर्तमान में होना पाया जाता है उसे सामान्य वर्तमान काल कहते हैं।
दूसरे शब्दों में
क्रिया के जिस रूप से सामान्यतः यह प्रकट हो कि कार्य का समय वर्तमान में है, न कार्य के अपूर्ण होने का संकेत मिले न संदेह का, वहाँ सामान्य वर्तमान काल होता है।
उदाहरण:
पक्षी आकाश में उड़ते हैं।
उसने खाना खा लिया है।
बच्चे खिलौनों से खेलते हैं।
तात्कालिक वर्तमान काल
क्रिया के जिस रूप से यह पता चलता है कि कार्य वर्तमान काल में हो रहा है वह शब्द तात्कालिक वर्तमान काल कहलाते हैं।
उदाहरण:
रवि पढ़ रहा है।
वह बाजार जा रहा है।
हम घूमने जा रहे हैं।
राधा खाना बना रही है।
पूर्ण वर्तमान काल
इससे वर्तमानकाल में कार्य की पूर्ण सिद्धि का बोध होता है। इसमें कार्य पूर्ण हो चुका होता है।
उदाहरण:
छात्र ने पुस्तक पढ़ी है।
उसने भोजन कर लिया है।
मैं तो सुबह ही नहा चुका हूँ।
घड़ा पानी से भर गया है।
अपूर्ण वर्तमान काल
क्रिया के जिस रूप से यह बोध हो कि वर्तमान काल में कार्य अभी पूर्ण नहीं हुआ है बल्कि अभी वह चल रहा है वह अपूर्णवर्तमान काल कहलाता है।
उदाहरण:
सुबह से वर्षा हो रही है।
नरेश पत्र लिख रहा है।
नीता खाना खा रही है।
संदिग्ध वर्तमानकाल
जिस क्रिया के वर्तमान समय में पूर्ण होने में संदेह हो, उसे संदिग्ध वर्तमानकाल कहते हैं।
उदाहरण:
श्याम खाना खाता होगा।
सोहन पढ़ रहा होगा।
वह सो रहा होगा।
संभाव्य वर्तमान काल
संभाव्य का अर्थ होता है जिसके होने की संभावना हो। इससे वर्तमानकाल में काम के पूरा होने की संभावना रहती है।
उदाहरण:
सुधाकर आता है तो काम हो जाना चाहिए।
वह स्वस्थ होता लगता है।
वह पढ़े तो पढ़ने देना।
अब तो देश आगे बढ़ना ही चाहिए।
भविष्यत् काल
भविष्य में होनेवाली क्रिया को भविष्यत् काल की क्रिया कहते है। क्रिया के जिस रुप से काम का आने वाले समय में होने बारे में पता चलता हो वह भविष्यत् काल की क्रिया कहलाती है। भविष्यत् काल की पहचान के लिए वाक्य के अन्त में ‘गा, गी, गे’ आदि आते है।
उदाहरण:
मैं कल विद्यालय जाउँगा।
राजू देर तक पढ़ेगा।
वह कल सिनेमा देखने जायेगा।

भविष्यत् काल के भेद
भविष्यत् काल के तीन भेद है:
1. सामान्य भविष्यत् काल
2. संभाव्य भविष्यत् काल
3. हेतुहेतुमद् भविष्यत् काल
सामान्य भविष्यत् काल
क्रिया के जिस रूप से क्रिया के सामान्य रूप का भविष्य में होने का पता चले उसे सामान्य भविष्यत् काल कहते हैं। इससे यह प्रकट होता है कि क्रिया सामान्यतः भविष्यत् में होगी।
उदाहरण:
बच्चे क्रिकेट खेलेंगे।
रामू घर जायेगा।
प्रदीप अख़बार बेचेगा।
संभाव्य भविष्यत् काल
क्रिया के जिस रूप से भविष्य में कार्य होने या करने की संभावना का पता चले उसे संभाव्य भविष्यत् काल कहते हैं। इस काल में क्रियाओं का निश्चित पता नहीं चलता। इस काल में भविष्य में किसी कार्य के होने की संभवना होती है।
उदाहरण:
शायद आज वर्षा होगी।
हो सकता है कि मैं कल वहाँ जाऊँ।
सम्भावना है, मैं उससे मिलने जाऊँ।
हेतुहेतुमद् भविष्यत् काल
क्रिया के जिस रूप से एक कार्य का पूरा होना दूसरी आने वाले समय की क्रिया पर निर्भर हो, उसे हेतुहेतुमद् भविष्यत् काल कहते हैं।
उदाहरण:
वह आए तो मैं जाऊँ।
सुरेश पढ़ेगा तो सफल होगा।
यदि छुट्टियाँ होंगी तो मैं शिमला जाउँगा।

वाच्य

क्रिया का वह रूप वाच्य कहलाता है, जिससे इस बात का बोध होता है कि वाक्य के अन्तर्गत कर्ता, कर्म या भाव में से किसकी प्रधानता है। इससे क्रिया का उद्देश्य ज्ञात होता है।
उदाहरण:
श्याम रोटी खाता है।
इस वाक्य में कर्ता के अनुसार क्रिया हो रही है इसलिए कर्ता की प्रधानता है।
वाच्य के प्रकार
वाच्य तीन प्रकार के होते हैं:
1. कर्तृवाच्य
2. कर्मवाच्य
3. भाववाच्य
कर्तृवाच्य
जब वाक्य में प्रयुक्त क्रिया का सीधा और प्रधान सम्बंध कर्ता से होता है, उसे कर्तृवाच्य कहते हैं। इसमें क्रिया के लिंग, वचन कर्ता के अनुसार प्रयुक्त होते हैं। अर्थात् क्रिया का प्रधान विषय कर्ता है और क्रिया का प्रयोग कर्ता के अनुसार होगा।
उदाहरण:
रवि फल खाता है।
लड़के क्रिकेट खेलते हैं।
रीता पढ़ती है।
ऊपर के तीनो वाक्यों में क्रिया का लिंग और वचन कर्त्ता के अनुसार प्रयुक्त हुआ है, जिससे पता चलता है कि वाक्य के निर्माण में कर्ता की प्रधानता रखी गया है। पहले वाक्य में कर्ता रवि पुल्लिंग, एकवचन है इसलिए क्रिया भी पुल्लिंग, एकवचन है। दूसरे वाक्य में ‘खेलते हैं’ क्रिया पुल्लिंग, बहुवचन ‘लड़के’ पुल्लिंग-बहुवचन होने के कारण ही है। तीसरे वाक्य में ‘पढ़ती है’ क्रिया स्त्रीलिंग एकवचन ‘रीता’ के स्त्रीलिंग-एकवचन होने के कारण ही है।
टिप्पणी: कर्तृवाच्य अकर्मक और सकर्मक दोनों प्रकार की क्रियाओं में हो सकता है।
कर्मवाच्य
जब क्रिया का सम्बंध वाक्य में प्रयुक्त कर्म से होता है, उसे कर्मवाच्य कहते हैं। अतः क्रिया के लिंग, वचन कर्ता के अनुसार न होकर कर्म के अनुसार होते हैं। कर्मवाच्य सदैव सकर्मक क्रिया का ही होता है क्योंकि इसमें क्रिया की प्रधानता है।
उदाहरण:
पुस्तक सुरेश के द्वारा पढ़ी गई।
पत्र निशा के द्वारा लिखा गया।
कहानी सविता के द्वारा सुनाई गई है।
उपरोक्त वाक्यों में ‘पढ़ी’, ‘लिखा’ ‘सुनाई’ क्रिया के पुल्लिंग, एकवचन कर्म पुस्तक, पत्र, कहानी के अनुसार हैं।
भाववाच्य
क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञात होता है कि कार्य का प्रमुख विषय भाव है, उसे भाववाच्य कहते हैं। यहाँ कर्ता या कर्म की नहीं क्रिया के अर्थ की प्रधानता होती है। इसमें सदैव अकर्मक क्रिया प्रयुक्त होती है। लिंग वचन न कर्ता के अनुसार और न ही कर्म के अनुसार होते हैं बल्कि सदैव एकवचन, पुल्लिंग एवं अन्य पुरुष में होते हैं।
उदाहरण:
मुझसे सुबह उठा नहीं जाता।
बच्चों से धुप में चला नहीं जाता।
रामू से तेज दौड़ा नहीं जाता।
उपरोक्त सभी वाक्यों में भाव की प्रधानता है।
वाच्य परिवर्तन
कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य में परिवर्तन
कर्म के साथ कोई परसर्ग हो तो उसे हटा दिया जाता है। कर्तृवाच्य की मुख्य क्रिया को सामान्य भूतकाल में परिवर्तित किया जाता है। परिवर्तित क्रिया के साथ ‘जाना’ क्रिया का काल, पुरुष, वचन और लिंग के अनुसार जो रूप हो, उसे जोड़कर साधारण क्रिया को संयुक्त क्रिया में बदला जाता है।
उदाहरण:

कर्तृवाच्यकर्मवाच्य
पिता जी खिलौने लाए।पिता जी द्वारा खिलौने लाए गए।
चित्रकार चित्र बनाता है।चित्रकार द्वारा चित्र बनाया जाता है।
चिड़िया आकाश में उड़ती है।चिड़िया द्वारा आकाश में उड़ा जाता है।

कर्तृवाच्य से भाववाच्य में परिवर्तन
कर्त्ता के साथ से/द्वारा चिह्न लगाकर उसे गौण किया जाता है। मुख्य क्रिया को सामान्य क्रिया एवं अन्य पुरुष पुल्लिंग एकवचन में स्वतंत्र रूप में रखा जाता है। भाववाच्य में प्रायः अकर्मक क्रियाओं का ही प्रयोग किया जाता है। क्रिया को एकवचन, पुल्लिंग और अन्य पुरुष में परिवर्तित कर दिया जाता है। उदाहरण:

कर्तृवाच्यभाववाच्य
मैं पढ़ नहीं सकता।मुझसे पढ़ा नहीं जाता।
बच्चा सो रहा है।बच्चे के द्वारा सोया जा रहा है।
घूमने चलते हैं।घूमने चला जाए।