हिंदी व्याकरण अध्याय 8 अव्यय शब्द

हिंदी व्याकरण अध्याय 8 अव्यय शब्द अर्थात अविकारी शब्द के बारे में छात्र यहाँ से अध्ययन कर सकते हैं। अव्यय शब्द वे होते हैं जिनका रूप लिंग, वचन, काल आदि से प्रभावित नहीं होता, जैसे क्रियाविशेषण, संबंध सूचक अव्यय आदि।

हिंदी व्याकरण – अव्यय शब्द अर्थात अविकारी शब्द

अविकारी या अव्यय शब्द वे शब्द होते हैं, जिनके रूप में लिंग, वचन, कारक तथा काल के अनुसार कोई विकार उत्पन्न नहीं होता है। अर्थात इन शब्दों का रूप वही बना रहता है। ऐसे शब्दों को अविकारी या अव्यय शब्द कहते हैं। अविकारी शब्दों में क्रिया विशेषण, संबंधबोधक, विस्मयादिबोधक और समुच्चयबोधक अव्यय शब्द आते हैं।
सरल शब्दों में इस प्रकार से परिभाषित कर सकते हैं:
वह शब्द जिसके रूप में वचन, लिंग आदि के कारण कोई विकार नहीं होता अव्यय या अविकारी शब्द कहलाते हैं।
इस अध्याय के चार भाग हैं:
1. क्रिया-विशेषण
2. संबंधसूचक
3. समुच्चयबोधक
4. विस्मयादिबोधक

क्रिया-विशेषण

वह शब्द जो हमें क्रिया की विशेषता के बारे में बताते हैं, वे शब्द क्रिया-विशेषण कहलाते हैं।
उदाहरण:
हिरण तेज़ भागता है।
इस वाक्य में भागना क्रिया है। तेज़ शब्द हमें क्रिया की विशेषता बता रहा है, कि हिरण कैसे भाग रहा है। अतः तेज शब्द क्रिया विशेषण है।
क्रिया विशेषण के कुछ अन्य उदाहरण
चीता सभी जानवरों में सबसे तेज दौड़ता है।
कछुआ धीरे-धीरे चलता है।
रवि अच्छा खेलता है।
उपरोक्त वाक्यों में तेज, धीरे-धीरे, अच्छा क्रिया शब्दों की विशेषता बता रहे हैं अतः ये शब्द क्रिया विशेषण कहलाते हैं।
टिप्पणी: विशेषता’ शब्द से स्थान, काल, रीति और परिमाण का अभिप्राय है।

क्रिया विशेषण के भेद
क्रिया विशेषण का वर्गीकरण तीन आधार पर किया जा सकता है:
1. प्रयोग के आधार पर
2. रूप के आधार पर
3. अर्थ के आधार पर


प्रयोग के आधार पर क्रियाविशेषण के भेद
प्रयोग के आधार पर क्रियाविशेषण के तीन प्रकार हैं:
(क) साधारण क्रिया-विशेषण
(ख) संयोजक क्रिया-विशेषण
(ग) अनुबद्ध क्रिया-विशेषण


साधारण क्रिया-विशेषण
जिन क्रियाविशेषणों का प्रयोग स्वतंत्र रूप से वाक्य में किया जाता है, उसे साधारण क्रिया-विशेषण कहते हैं।
उदाहरण:
वह अच्छा खिलाड़ी है।
विद्यार्थियों, मेहनत से पढ़ाई करो।
उपरोक्त वाक्यों में अच्छा, मेहनत का प्रयोग स्वतंत्र रूप से हुआ है इसलिए, ये शब्द साधारण क्रिया-विशेषण हैं।


संयोजक क्रिया-विशेषण
जिन क्रिया-विशेषणों का संबंध किसी उपवाक्य से होता है, उसे संयोजक क्रिया-विशेषण कहते हैं।
उदाहरण:
जितना कहा जाय; उतना ही काम करो।
जहां तुम जाओगे; मैं वहीं आऊंगा।
ऊपर के उदाहरण में जितना-उतना, जहाँ-वहीं शब्द दो उपवाक्यों का संयोजन करते हैं।


अनुबद्ध क्रिया-विशेषण
जिन शब्दों का प्रयोग निश्चय के किसी भी शब्द भेद के साथ हो सकता हो, उसे अनुबद्ध क्रिया-विशेषण कहते हैं।
उदाहरण:
सरिता कल भी आई थी।
परीक्षा के लिए मेहनत करनी ही है।
उपरोक्त वाक्यों में भी, ही अनुबद्ध क्रिया-विशेषण हैं।
रूप के आधार पर क्रिया-विशेषण के भेद
(i) मूल क्रिया विशेषण
(ii) स्थानीय क्रिया विशेषण
(iii) यौगिक क्रिया विशेषण

मूल क्रिया विशेषण

जो दूसरे शब्दों में प्रत्यय लगाए बिना बनते हैं अथार्त जो शब्द दूसरे शब्दों से मिलकर नहीं बनते, उन्हें मूल क्रिया-विशेषण कहते हैं।
उदाहरण:
पास, दूर, ऊपर, आज, सदा, अचानक, फिर, नहीं, ठीक आदि।


स्थानीय क्रिया विशेषण
ऐसे अन्य शब्द-भेद जो बिना अपने रूप में बदलाव किये किसी विशेष स्थान पर आते हैं, वे स्थानीय क्रिया-विशेषण कहलाते हैं।
उदाहरण:
सुरेश पढ़ाई मेहनत से करता है।
किशन चल कर थक जाता है।
तुम दौड़कर चलते हो।


यौगिक क्रिया विशेषण
जो दूसरे शब्दों में प्रत्यय या पद आदि लगाने से बनते हैं, उन्हें यौगिक क्रियाविशेषण कहते हैं।
उदाहरण:
आजन्म, क्रमशः, प्रेमपूर्वक, रातभर, मन से आदि।
यौगिक क्रिया-विशेषण के कुछ अन्य उदाहरण निम्न हैं:
संज्ञा से यौगिक क्रिया-विशेषण:
जैसे: सबेरे, सायं, आजन्म, क्रमशः, प्रेमपूर्वक, रातभर, मन से आदि।
सर्वनाम से यौगिक क्रियाविशेषण:
जैसे: यहाँ, वहाँ, अब, कब, इतना, उतना, जहाँ, जिससे आदि।
विशेषण से क्रियाविशेषण:
जैसे: चुपके, पहले, दूसरे, बहुधा, धीरे आदि।
क्रिया से क्रियाविशेषण
जैसे: खाते, पीते, सोते, उठते, बैठते, जागते आदि।
अर्थ के आधार पर क्रिया-विशेषण के भेद
अर्थ के आधार पर क्रिया विशेषण के चार भेद होते हैं:
(i) कालवाचक क्रिया विशेषण
(ii) रीतिवाचक क्रिया विशेषण
(iii) स्थानवाचक क्रिया विशेषण
(iv) परिमाणवाचक क्रिया विशेषण

कालवाचक क्रिया विशेषण
वे क्रियाविशेषण शब्द जो हमें क्रिया के होने वाले समय का बोध कराते हैं, वह शब्द कालवाचक क्रियाविशेषण कहलाते हैं। यानी जब क्रिया होती है उस समय का बोध कराने वाले शब्दों को कालवाचक क्रियाविशेषण कहलाते हैं।
उदाहरण:
आज बरसात होगी।
इस वाक्य से हमें बरसात क्रिया के होने के समय का बोध हो रहा है।
कालवाचक क्रियाविशेषण तीन प्रकार के होते हैं:
(क) समयवाचक (कल, परसों, अब, जब, कब, तब, अभी, कभी, फिर, तुरंत, सबेरे, पहले, पीछे, प्रथम, इत्यादि।)
(ख) अवधिवाचक (आजकल, नित्य, अब तक, कभी-कभी, कभी न कभी, अब भी, लगातार, दिन भर, इत्यादि।)
(ग) पौनःपुन्यवाचक (बार-बार, बहुधा, प्रतिदिन, कई बार, पहले फिर, हरबार इत्यादि ।)
रीतिवाचक क्रिया विशेषण
ऐसे अविकारी शब्द जो हमें क्रिया के होने के तरीके या विधि के बारे में बताते हैं, वे शब्द रीतिवाचक क्रियाविशेषण कहलाते हैं।
उदाहरण:
खरगोश तेज़ दौड़ता है।
इस वाक्य में दौड़ना क्रिया है एवं तेज़ शब्द से हमें खरगोश के दौड़ने का तरीका अथवा विधि पता चल रही है।
टिप्पणी:
रीतिवाचक क्रियाविशेषणों की संख्या गुणवाचक विशेषणों के समान असंख्य है। क्रियाविशेषणों के न्यायसम्मत वर्गीकरण में कठिनाई होने के कारण इस वर्ग में उन सब क्रियाविशेषणों का समावेश किया गया है, जिनका अंतर्भाव पहले कहे हुए वर्गों में नहीं हुआ है। रीतिवाचक क्रियाविशेषण नीचे लिखे हुए अर्थों में आते हैं:
ऐसे, वैसे, कैसे, जैसे, तैसे, मानों, यथा, तथा, धीरे, अचानक, सहसा, अनायास, वृथा, सहज, साक्षात्, पैदल, स्वयं, स्वतः, परस्पर, आप ही आप, एक साथ, एकाएक, मन से, ध्यानपूर्वक, संदेह, सुखेन, क्योंकर, यथाशक्ति, हँसकर, फटाफट, उलटा, येन केन प्रकारेण, अकस्मात्, प्रत्युत आदि।


स्थानवाचक क्रिया विशेषण
स्थानवाचक क्रिया विशेषण वे होते हैं जो क्रिया के होने वाली जगह का बोध कराते है। अर्थात जहां क्रिया हो रही है उस जगह का ज्ञान कराने वाले शब्द ही स्थान-वाचक क्रिया विशेषण कहलाते हैं।
उदाहरण:
यहाँ, वहाँ, कहाँ, जहाँ, तहाँ, सामने, नीचे, ऊपर, आगे, भीतर, बाहर, दूर, पास, अंदर, किधर, इस ओर, उस ओर, इधर, उधर, जिधर, दाएँ, बाएँ, दाहिने आदि।
सुन्दर मेरे पीछे आ रहा है।
सचिन दौड़ में आगे रहता है।
स्थानवाचक क्रियाविशेषण के दो भेद हैं:
(क) स्थितिवाचक (यहाँ, वहाँ, जहाँ, कहाँ, आगे, पीछे, ऊपर, नीचे, सामने, साथ, बाहर, भीतर, पास, सर्वत्र, अन्यत्र इत्यादि।)
(ख) दिशावाचक (इधर, उधर, किधर, जिधर, दूर, अलग, बाएँ, आरपार, इस तरफ, उस जगह, चारों ओर इत्यादि।)

परिमाणवाचक क्रिया विशेषण
किसी वाक्य में संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्दों की मात्रा, परिमाण, नाप या तौल का बोध करवाने वाले शब्दों को परिमाणवाचक विशेषण कहते हैं।
उदाहरण:
सब अनाज, सारा दूध, थोड़ा घी, बहुतेरा काम इत्यादि।
परिमाणवाचक क्रियाविशेषण से अनिश्चित संख्या वा परिमाण का बोध होता है। इसके निम्न भेद हैं:
(क) अधिकताबोधक (बहुत, अति, बड़ा, भारी, बहुतायत से, बिलकुल, सर्वथा, खूब, पूर्णतया, निपट, अत्यंत, अतिशय इत्यादि।)
(ख) न्यूनताबोधक (कुछ, लगभग, थोड़ा, प्रायः, जरा, किंचित् इत्यादि।)
(ग) पर्याप्तिवाचक (केवल, बस, काफी, यथेष्ट, चाहे, बराबर, ठीक, अस्तु, इति इत्यादि।)
(घ) तुलनावाचक (अधिक, कम, इतना, उतना, जितना, कितना, बढ़कर, और इत्यादि।)
(उ) श्रेणीवाचक (थोड़ा-थोड़ा, क्रम-क्रम से, बारी-बारी से, तिल-तिल, एक-एक करके, यथाक्रम इत्यादि।)
टिप्पणी: जिस प्रकार क्रिया की विशेषता बताने वाले शब्दों को क्रियाविशेषण कहते हैं, उसी प्रकार विशेषण और क्रियाविशेषण की विशेषता बतानेवाले शब्दों को भी क्रियाविशेषण कहते हैं। ये शब्द बहुधा परिमाणवाचक क्रियाविशेषण हैं और कभी कभी क्रिया की भी विशेषता बतलाते हैं।
उदाहरण:
ऐसा सुंदर बालक
उपरोक्त वाक्य में सुन्दर शब्द बालक की विशेषता बता रहा है। तथा इस विशेषण शब्द की विशेषता ऐसा शब्द बता रहा है अतः यह क्रिया-विशेषण है।

संबंधसूचक

संबंध सूचक ऐसे अव्यय शब्द हैं जो किसी संज्ञा शब्द के पीछे आकर उस शब्द का संबंध वाक्य के किसी दूसरे शब्द के साथ स्थापित करते हैं, इस तरह के शब्द को हम संबंध सूचक कहते हैं।
दूसरे शब्दों में, संबंध सूचक वे अविकारी शब्द हैं, जो संज्ञा या सर्वनाम के अनंतर प्रयुक्त होते हैं, और वाक्य में आये हुए अन्य शब्दों के साथ उसका संबंध प्रकट करते हैं।
उदाहरण:
राजू ने बॉक्स को टेबल पर रख दिया।
ये खिलोने छोटे बच्चों के लिए हैं।
उपरोक्त वाक्यों में पर, लिए शब्द संबंधसूचक हैं।
टिप्पणी:
स्थानवाचक तथा कालवाचक अव्यय क्रिया विशेषण भी होते हैं और सम्बंध सूचक भी। जब वे शब्द स्वतंत्र रूप से क्रिया की विशेषता बताते हैं तब वे क्रिया विशेषण कहलाते हैं। लेकिन जब इन शब्दों का प्रयोग संज्ञा के साथ होता है तो ये शब्द संबंधसूचक कहलाते हैं।
इस अंतर को उदाहरण के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं:
नौकर यहाँ रहता है। (क्रिया विशेषण)
नौकर मालिक के यहाँ रहता है। (संबंधसूचक)
स्नान पहले कर लेना चाहिए। (क्रिया विशेषण)
स्नान भोजन से पहले कर लेना चाहिए। (संबंधसूचक)


संबंध सूचक के भेद
संबंध सूचक अव्यय निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं:
(i) प्रयोग के आधार पर
(ii) अर्थ के आधार पर
(iii) व्युत्पत्ति के आधार पर


प्रयोग के आधार पर
प्रयोग के अनुसार संबंधसूचक दो प्रकार के होते हैं:
(1) संबद्ध
(2) अनुबद्ध
सम्बद्ध संबंध सूचक अव्यय
इसका प्रयोग वाक्य में संज्ञा की विभक्तियों के पश्चात होता है।
उदाहरण:
परिश्रम के बिना फल नहीं मिलता।
पूजा के पहले स्नान करना चाहिए।
घर के बाहर सामान मत रखो।
छत के ऊपर पानी की टंकी रखी हुई है।
उपरोक्त वाक्यों में के विभक्ति के साथ बिना, पहले, बाहर, ऊपर आदि शब्द सम्बद्ध संबंधसूचक अव्यय हैं।


अनुबद्ध संबंध सूचक
संज्ञा के विकृत रूप के साथ आते हैं।
उदाहरण:
किनारे तक, सखियों सहित, कटोरे भर, पुत्रों समेत, लड़के सरीखा इत्यादि।
उपरोक्त में तक, सहित, भर, समेत, सरीखा अनुबद्ध संबंध सूचक शब्द हैं।
अर्थ के आधार पर संबंध सूचक के भेद
अर्थ के अनुसार संबंध – सूचक अव्ययों के उदाहरण निम्न हैं।
(i) कालवाचक: (आगे, पीछे, बाद, पहले, पूर्व, अनंतर, पश्चात् उपरांत, लगभग।)
(ii) स्थानवाचक: (आगे, पीछे, ऊपर, नीचे, सामने, पास, निकट, समीप, यहाँ, बीच, बाहर, परे, दूर, भीतर।)
(iii) दिशा वाचक: (ओर, तरफ, पार, आरपार, आसपास, प्रति।)
(iv) साधन वाचक: (द्वारा, जरिए, हाथ, मारफत, करके, सहारे।)
(v) हेतु-वाचक: (लिए, निमित्त, वास्ते, हेतु, खातिर, कारण, सबब।)
(vi) विषय-वाचक: (बावत, विषय, नाम, लेखे, जान, भरोसे, मद्धे।)
(vii) व्यतिरेक वाचक: (सिवा, अलावा, बिना, बगैर, अतिरिक्त, रहित।)
(viii) विरोधवाचक: (विरुद्ध, खिलाफ, उलटा, विपरीत।)
(ix) विनिमय वाचक: (समान, तरह, भाँति, बराबर, तुल्य, योग्य, लायक, सदृश, अनुसार, अनुरूप, अनुकूल, सरीखा, सा, ऐसा, जैसा, मुताबिक।)
(x) सहचर वाचक: (संग, साथ, समेत, सहित, पूर्वक, अधीन, स्वाधीन, वश।)
(xi) संग्रह वाचक: (लो, तक, भर, पर्यंत, मात्र।)
(xii) तुलनावाचक: अपेक्षा, बनिस्वत, आगे, सामने।
टिप्पणी:
ऊपर की सूची में जिन शब्दों को कालवाचक संबंधसूचक लिखा है, वे किसी-किसी प्रसंग में स्थानवाचक अथवा दिशावाचक भी होते हैं। इसी प्रकार और भी कई एक संबंधसूचक अर्थ के अनुसार एक से अधिक वर्गों में आ सकते हैं।

व्युत्पत्ति के अनुसार सम्बन्ध सूचक अव्यय
(1) मूल सम्बन्ध सूचक अव्यय (बिना, पर्यंत, पूर्वक, इत्यादि ।)
( 2 ) यौगिक सम्बन्ध सूचक अव्यय
यौगिक संबंधसूचक दूसरे शब्दभेदों से बने हैं; जैसे:
(क) संज्ञा से: पलटे, वास्ते, ओर, अपेक्षा, नाम, लेखे विषय, मारफत इत्यादि।
(ख) विशेषण से: तुल्य, समान, उलटा, जबानी, सरीखा, योग्य, जैसाऐसा इत्यादि ।
(ग) क्रियाविशेषण से: ऊपर, भीतर, यहाँ, बाहर, पास, परे, पीछे इत्यादि।
(घ) क्रिया से: लिए, मारे, करके, जान।
हिंदी में कई एक संबंधसूचक उर्दू भाषा से और कई एक संस्कृत से आए हैं। इनमें बहुत से शब्द हिंदी के संबंधसूचकों के पर्यायवाची हैं । कितने एक संस्कृत संबंधसूचकों का विचार हिंदी के गद्य काल से आरंभ हुआ है। तीनों भाषाओं के कई एक पर्यायवाची संबंधसूचकों के उदाहरण नीचे दिए जाते हैं:

हिंदीउर्दूसंस्कृत
सामनेरूबरूसमक्ष, सम्मुख
पासनजदीकनिकट, समीप
पीछेबादपश्चात्, अनंतर, उपरांत
सेबनिस्बतअपेक्षा
उलटाखिलाफविरुद्ध, विपरीत
सेजरियेद्वारा
लिएवास्ते, खातिरनिमित, हेतु
समुच्चयबोधक

जिन शब्दों की वजह से दो या दो से ज्यादा वाक्य , शब्द , या वाक्यांश जुड़ते हैं उन्हें समुच्चयबोधक कहा जाता है।
समुच्चयबोधक शब्द
जहाँ, पर, तब, और, वरना, किन्तु, परन्तु, इसीलिए, बल्कि, ताकि, क्योंकि, या, अथवा, एवं, तथा, अन्यथा आदि शब्द जुड़ते हैं वहाँ पर समुच्चयबोधक होता है। इन समुच्चयबोधक शब्दों को योजक भी कहा जाता है।
उदाहरण:
राम और श्याम आपस में भाई हैं।
मुझे लिखने के लिए पेन या पेंसिल दो।
टिप्पणी:
कोई समुच्चयबोधक वाक्य में शब्दों को भी जोड़ते हैं। जैसे: दो और दो चार होते हैं।
अगर उपरोक्त वाक्य को इस प्रकार लिखें जैसे: दो चार होते हैं। इससे वाक्य का अर्थ स्पष्ट नहीं हो पाता, अर्थात् ‘और’ समुच्चयबोधक दो संक्षिप्त वाक्यों को नहीं मिलाता, बल्कि दो शब्दों को मिलाता है। तथापि ऐसा प्रयोग सब समुच्ययबोधकों में नहीं पाया जाता। क्योंकि, यदि, तो, यद्यपि, तो भी आदि कई समुच्चयबोधक केवल वाक्यों को जोड़ते हैं।

समुच्चयबोधक अव्यय के भेद
समुच्चयबोधक के मुख्यतः दो प्रकार होते हैं:
1. समानाधिकरण समुच्चय बोधक
2. व्यधिकरण समुच्चय बोधक


समानाधिकरण समुच्चय बोधक
जो समुच्चयबोधक अव्यय दो स्वतंत्र वाक्यों या उपवाक्यों को जोड़ते हैं, उन्हें समानाधिकरण सममुच्चबोधक अव्यय कहा जाता है। जैसे: और, अन्यथा, परंतु, अतः, या, बल्कि, इसलिए, व, एवं, लेकिन आदि।
उदाहरण:
रमेश और गीता भाई-बहन हैं।
सचिन दौड़ा किंतु बस छूट गई।
राम ने पढ़ाई में मेहनत की इसलिए परीक्षा में अच्छे नंबर आये।
उपरोक्त वाक्यों में और, किन्तु, इसलिए समानाधिकरण समुच्चय बोधक अव्यय हैं।
समानाधिकरण सम्मुच्चयबोधक के चार उपभेद हैं:
(क) संयोजक (और, व, तथा, एवं, भी)
(ख) विभाजक (या , व, अथवा, कि, चाहे, अन्यथा, न कि, नहीं तो)
(ग) विरोधदर्शक (पर, किंतु, परंतु, लेकिन, बल्कि, मगर, अपितु)
(घ) परिणामदर्शक (इसलिए, सो, अतएव, ताकि)


संयोजक समानाधिकरण सम्मुच्चयबोधक
वे अव्यय शब्द जो दो शब्दों, वाक्यांशों में संयोग प्रकट करते हैं संयोजक समानाधिकरण सम्मुच्चयबोधक अव्यय कहलाते हैं।
उदाहरण:
राम और रावण में भयंकर युद्ध हुआ।
मै और तुम सिनेमा देखनें साथ जायेंगे।
बड़े एवं छोटे सभी का सम्मान करना चाहिए।


विभाजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक
जो अव्यय शब्द शब्द भेद बताते हुए भी वाक्यों को जोड़ते हैं उसे विभाजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं।
उदाहरण:
मेहनत से पढाई करो ताकि परीक्षा में सफल हो सको।
अभी से सो जाओ ताकि कल सुबह जल्दी उठ सको।
पवन धनवान है लेकिन कंजूस है।
टिप्पणी:
क्या शब्द: ये प्रश्नवाचक सर्वनाम समुच्चयबोधक के समान उपयोग में आते हैं। कोई इन्हें संयोजक और कोई विभाजक मानते हैं । इनके प्रयोग में यह विशेषता है कि ये वाक्य में दो या अधिक शब्दों का विभाग बताकर उन सबका इकट्ठा उल्लेख करते हैं।
उदाहरण:
क्या स्त्री क्या पुरुष, सबके मन में आनंद छाया हुआ था।
विरोधदर्शक समानाधिकरण समुच्चयबोधक:
वे शब्द जो दो वाक्यों में विरोध व्यक्त करें और फिर उन्हें जोड़ते हैं या पहले की गई बात का दूसरे वाक्य में विरोध प्रकट करें, विरोधदर्शक समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहलाते हैं।
उदाहरण:
सोनू खेलनें में तो अच्छा है लेकिन पढ़ाई-लिखाई नहीं करता।
रावण ज्ञानी तो बहुत था किन्तु अहंकारी था।


परिणामसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक
परिणामसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक दो उपवाक्यों को जोड़ते हैं और जोड़ने के बाद उन दोनों वाक्य के परिणाम का बोध कराते हैं।
उदाहरण:
सुरेश अच्छा खेला इसलिए ईनाम मिला।
उसने गलत काम किया इसलिए सजा मिली।
रवि ने मेहनत की इसलिए कक्षा में प्रथम आया।

व्यधिकरण समुच्चयबोधक
जो शब्द एक या अधिक उपवाक्यों को प्रधान उपवाक्य से जोड़ते हैं अर्थात् आश्रित उपवाक्यों को प्रधान वाक्य से जोड़ने वाले अव्यय व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहलाते हैं।
उदाहरण:
जल्दी तैयार हो जाओ ताकि समय से कार्यालय पहुँच सकें।
मोहन अथवा सोहन में से किसी एक को पुरस्कार मिलेगा।
व्यधिकरण समुच्चय बोधक के भेद
व्यधिकरण समुच्चयबोधक के चार उपभेद होते हैं:
(क) कारणसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक (क्योंकि, जो कि, इसलिए कि, ताकि)
(ख) संकेतसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक (जो तो, यदि तो, तो भी, यद्यपि, तथापि, परंतु)
(ग) उद्देश्यसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक (जो, ताकि, जिससे, इसलिए कि)
(घ) स्वरुपसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक (कि, जो, अर्थात्, याने, मानो)
कारणसूचक व्याधिकरण समुच्चयबोधक
जिन शब्दों से प्रारम्भ होने वाले वाक्य पहले वाक्य का समर्थन करते हैं उसे करणवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं। अथार्त जिन शब्दों से परस्पर जुड़े दो उपवाक्यों के कार्य का कारण स्पष्ट होता है उसे कारणसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं।
उदाहरण:
सुनील कल स्कूल नहीं जा पाया क्योंकि वह बीमार था।
रोहन को घर जाना चाहिए ताकि वह आराम कर सके।
संकेतसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक
जो अव्यय शब्द एक वाक्य में संकेत अथवा शर्त देकर उसे दूसरे वाक्य में पूरा करें अर्थात् दो उपवाक्यों को संकेत से जोड़ते हैं।
जैसे –
1. यदि पढ़ाई करेगा तो नंबर अच्छे आयेंगे।
2. यद्यपि वह बुद्धिमान है तथापि आलसी भी है।
उद्देश्यसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक
जिन अव्यय पदों से कार्य करने का उद्देश्य प्रकट हो, वे उद्देश्यसूचक या उद्देश्यबोधक व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहलाते हैं।
उदाहरण:
शीला रात-दिन पढ़ाई करती है, ताकि परीक्षा में प्रथम आ सके।
तुम्हें कसरत करनी चाहिए ताकि स्वस्थ रहो।
स्वरुपसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक
इन अव्ययों के द्वारा जुड़े हुए शब्दों या वाक्यों में से पहले शब्द या वाक्य का स्वरूप (निष्कर्ष) दूसरे शब्द या वाक्य से स्पष्ट होता है; इसलिए इन अव्ययों को स्वरूपवाचक कहते हैं।
उदाहरण:
चौबीस घंटे यानि एक दिन-रात होता है।
रवि ने अच्छा ही किया जो बाजार नहीं गया।

विस्मयादिबोधक अव्यय

ऐसे शब्द जो वाक्य में आश्चर्य, हर्ष, शोक, घृणा आदि भाव व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त हों, वे विस्मयादिबोधक कहलाते हैं। ऐसे शब्दों के साथ विस्मयादिबोधक चिन्ह (!) का प्रयोग किया जाता है। जैसे: हाय!, अरे!, ओह!, शाबाश!, काश! आदि।
उदाहरण:
हाय! कितना सुंदर दृश्य है।
अद्भुत! तुमने बहुत ही अच्छा कार्य किया।
अरे! तुम ये क्या कर रहे हो।
उपरोक्त वाक्यों में हाय!, अद्भुत!, अरे! शब्द विस्मय को प्रकट करते हैं इसलिए इन्हें विस्मयादिबोधक अव्यय कहते हैं।
टिप्पणी:
विस्मयादिबोधक अव्यय शब्दों से व्यक्ति के मनोभावों की अभिव्यक्ति होती है।
विस्मयादिबोधक अव्यय के प्रकार
भिन्न-भिन्न मनोविकारों को सूचित करने के लिए भिन्न-भिन्न विस्मयादिबोधक शब्द उपयोग में आते हैं। इन्हीं भावों के आधार पर विस्मयादिबोधक अव्ययों का वर्गीकरण किया गया है जो निम्नलिखित हैं:
1. शोकबोधक: (हाय!, बाप रे बाप!, हे राम!, ओह!, उफ़!, त्राहि – त्राहि!, आह!, हा!)
2. हर्षबोधक: (आहा!, वाह वा!, धन्य धन्य!, शाबाश!, जय!, जयति!)
3. विस्मयबोधक या आश्चर्यबोधक: (वाह!, हैं!, ऐ!, ओहो!, वाह वा!, क्या!)
4. तिरस्कारबोधक: (छि:!, थू-थू!, धिक्कार!, हट!, धिक्!, धत!, चुप!)
5. स्वीकारबोधक: (हाँ!, जी हाँ!, अच्छा!, जी!, ठीक!, ठीक!, बहुत अच्छा!)
6. संबोधनबोधक: (अरे!, रे!, (छोटों के लिए), अजी!, लो!, हे!, हो!, क्या!, अहो!, क्यों!)
7. आशीर्वादबोधक: (जीते रहो!, खुश रहो!, सदा सुखी रहो!, दीर्घायु हो!)
8. भयबोधक: (बाप रे बाप!, ओह!, हाय!, उई माँ!, त्राहि – त्राहि)
9. चेतावनीबोधक (होशियार!, खबरदार!, सावधान!, बचो!)
10. अनुमोदनबोधक (ठीक!, वाह!, अच्छा!, शाबाश!, हाँ हाँ!)

शोकबोधक विस्मयादिबोधक
वाक्य में प्रयोग होने वाले ऐसे अव्यय जो दुःख अर्थात शोक के होने के बारे में बोध करते हैं शोक बोधक अव्यय कहलाते हैं।
जैसे: हे राम!, ओह!, बाप रे बाप!, उफ़!, हां! इत्यादि।
उदहारण:
हे राम! उसके साथ बड़ी दुखद घटना हो गयी।
ओह! तुम्हारी ये चोट कैसे लगी।
हर्षबोधक विस्मयादिबोधक
वाक्य में प्रयोग होने वाले ऐसे शब्द जो हर्ष, खुशी, उल्लास की भावना को व्यक्त करते हैं, हर्षबोधक विस्मयादिबोधक अव्यय कहलाते हैं।
उदाहरण:
वाह! कितना स्वादिष्ट खाना है।
शाबाश! तुमने बहुत बेहतरीन खेल दिखाया।
विस्मयबोधक या आश्चर्यबोधक विस्मयादिबोधक
वाक्य में जहाँ पर विस्मय( आश्चर्य) का भाव प्रकट होता है, वहाँ विस्मयबोधक या आश्चर्यबोधक विस्मयादिबोधक शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण:
अरे! क्या तुम भी दौड़ में हिस्सा लोगे।
क्या! सुन्दर दृश्य है।
तिरस्कारबोधक विस्मयादिबोधक
ये अव्यय शब्द किसी का तिरस्कार करने अथवा किसी कार्य को करने से रोकने के लिए किया जाता है।
उदाहरण:
धिक्कार! है तुम्हें गलत काम करते हुए शर्म नहीं आयी।
चुप! तुम कितना बेसुरा गाते हो।
स्वीकारबोधक विस्मयादिबोधक
वे अव्यय शब्द जिनका प्रयोग किसी वाक्य में किसी की बात की स्वीकृति का बोध कराता है, स्वीकारबोधक विस्मयादिबोधक
अव्यय कहलाते हैं।
उदाहरण:
जी हाँ! हम आपके विचार से सहमत हैं।
ठीक! आप जैसा चाहते हैं वैसा ही होगा।
टिप्पणी:
स्वीकारबोधक विस्मयादिबोधक अव्यय, तिरस्कार बोधक के एकदम विपरीत होते है।
संबोधनबोधक विस्मयादिबोधक
ऐसे अव्यय शब्द जिनका प्रयोग वाक्य में किसी को संबोधित करने के लिये किया जाता है, सम्बोधनबोधक विस्मयादिबोधक अव्यय कहते हैं।
उदाहरण:
अरे! सुरेश तुम कहाँ जा रहे हो।
हेलो! क्या आप श्री अशोक कुमार बोल रहे हो।
आशीर्वादबोधक विस्मयादिबोधक
जिन वाक्यों या वाक्यांशों का प्रयोग किसी को आशीर्वाद देने के लिए किया जाता है उन्हें आशीर्वादबोधक विस्मयादिबोधक अव्यय कहते हैं।
उदाहरण:
जीते रहो! मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है।
सदा सुखी रहो! हम भगवान से यही प्रार्थना करते।
भयबोधक विस्मयादिबोधक
जिन शब्दों से डरने या डराने का भाव उत्पन्न होता है उन्हें भयबोधक विस्मयादिबोधक अव्यय कहते हैं।
उदाहरण:
बाप रे! कितना बड़ा साँप है।
उई माँ ! मैं यहाँ से कैसे बाहर निकलूँ।
हाय! यह मेरे साथ कैसे हो सकता है।

चेतावनीबोधक विस्मयादिबोधक
जहाँ पर चेतावनी का भाव प्रकट होता है,वहाँ चेतावनीबोधक विस्मयादिबोधक अव्यय शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण:
होशियार! आगे रास्ता संकरा है।
सावधान! कोरोना वायरस तेजी से फ़ैल रहा है।

अनुमोदनबोधक विस्मयादिबोधक
ऐसे शब्द जिनसे वाक्य में अनुमोदन के भाव प्रकट होता है, अनुमोदनबोधक विस्मयादिबोधक अव्यय कहलाते हैं।
उदाहरण:
शाबाश! इसी तरह से आगे बढ़ते रहो।
अच्छा! तो आप जा सकते हैं।
टिप्पणी: (विस्मयादिबोधक शब्दों की विशेषता)
1. विस्मयादिबोधक शब्द हमेशा वाक्य के आरंभ में लगाए जाते हैं।
3. इनका संबंध वाक्यों के अन्य शब्दों से नहीं होता क्योंकि ये वाक्य के अंग नहीं होते हैं।
5. ये शब्द किसी भाव को प्रकट करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।
7. विस्मयादिबोधक शब्दों के बाद विस्मयादिबोधक चिह्न (!) अवश्य लगाया जाता है।