हिंदी व्याकरण अध्याय 7 क्रिया और क्रिया के भेद

हिंदी व्याकरण अध्याय 7 क्रिया और क्रिया के भेद पर आधारित सभी प्रश्नों के विस्तार से उत्तर यहाँ से प्राप्त किए जा सकते हैं। क्रिया वह शब्द है जो किसी कार्य, घटना या अवस्था का संकेत करता है, और वाक्य के अर्थ को पूर्णता प्रदान करता है।

हिंदी व्याकरण – क्रिया

जिस शब्द से किसी काम का करना या होना प्रकट होता हो, उसे क्रिया कहते हैं। जैसे: पढ़ना, लिखना, खाना, आना इत्यादि। क्रिया विकारी शब्द है, जिसके रूप, लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार बदल जाते हैं।
उदाहरण:
रवि पुस्तक पढ़ रहा है।
रानी गाना गा रही है।
उपरोक्त वाक्यों में शब्द पढ़, गा मूल शब्द हैं जिन्हें धातु कहते हैं तथा इनके क्रिया रूप निम्न हैं।
पढ़ + ना = पढ़ना
गा + ना = गाना


धातु शब्द
जिस मूल शब्द में विकार होने से क्रिया बनती है, उसे धातु कहते हैं। जैसे: ‘भागा’ क्रिया में ‘आ’ प्रत्यय है, जो ‘भाग’ मूल शब्द में लगा है। इसलिए ‘भागा’ क्रिया का धातु ‘भाग’ है।
धातु के अंत में ‘ना’ प्रत्यय जोड़ने से जो शब्द बनता है उसे क्रिया का साधारण रूप कहते हैं। जैसे: भाग-ना, आ-ना, जा-ना, हो-ना’ इत्यादि।

क्रिया के भेद

रचना की दृष्टि से क्रिया के सामान्यतः दो भेद है:
(1) सकर्मक
(2) अकर्मक


सकर्मक क्रिया
सकर्मक क्रिया में कर्ता, क्रिया और कर्म तीनों उपस्थित होते हैं। अर्थात सकर्मक क्रिया में कर्ता द्वारा किए गए कार्य का प्रभाव दूसरी चीजों पर पड़ता है।
दूसरे शब्दों में सकर्मक का अर्थ कर्म सहित है
उदाहरण:
सोहन किताब पढ़ रहा है।
मोहन पानी पी रहा है।
बच्चे क्रिकेट खेल रहे हैं।
उपरोक्त वाक्यों में कर्ता और क्रिया के अतिरिक्त एक तीसरी वस्तु भी उपस्थित है जिस पर कर्ता द्वारा किये गए कार्य का प्रभाव पड़ रहा है इसे कर्मकारक कहते हैं।
विशेष:
जिस क्रिया के व्यापार का फल कर्ता से निकलकर किसी दूसरी वस्तु या व्यक्ति पर पड़ता है, उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे: ‘रजनी आम खाती है।‘ डाकिया चिट्ठी लाया।’ पहले वाक्य में ‘खाती है’, क्रिया के व्यापार का फल ‘रजनी’ कर्ता से निकलकर ‘आम’ पर पड़ता है। इसलिए, ‘खाती है’ क्रिया (अथवा ‘खा’ धातु) सकर्मक है। दूसरे वाक्य में ‘लाया’ क्रिया (अथवा ‘ला’ धातु) सकर्मक है, क्योंकि उसका फल ‘डाकिया’ कर्ता से निकलकर ‘चिट्ठी’ कर्म पर पड़ता है।

अकर्मक क्रिया
धातु का वह रूप जिसमें क्रिया द्वारा होने वाले व्यापार का फल कर्म पर न पड़कर कर्ता पर पड़ता हो उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं। अर्थात अकर्मक क्रिया में कर्म का प्रयोग किए बिना ही वाक्य का पूर्ण भाव स्पष्ट हो जाता है।
दूसरे शब्दों में ‘अकर्मक’ शब्द का अर्थ ‘कर्मरहित’ या बिना कर्म के और कर्म के न होने से क्रिया ‘अकर्मक’ कहलाती है।
उदाहरण:
रेलगाड़ी चलती है।
लड़का दौड़ता है।
गगन पढ़ता है।
बच्चा सोता है।
उपरोक्त सभी वाक्यों में केवल कर्ताकारक और क्रियाकारक हैं। यहाँ क्रिया का सीधा फल कर्ता पर पड़ता है।

सकर्मक और अकर्मक क्रिया में अंतर

सकर्मक क्रियाअकर्मक क्रिया
सकर्मक क्रिया में कर्ता, क्रिया और कर्म तीनों होते हैं।अकर्मक क्रिया में केवल कर्ता और क्रिया होते हैं।
कर्ता द्वारा किये गए कार्य का प्रभाव कर्म पर पड़ता है।जिस क्रिया का फल सीधे कर्ता पर पड़े उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं।
यदि सकर्मक क्रिया के वाक्यों में प्रश्नवाचक शब्द जोड़े जाएँ तो उससे उत्तर मिलता है।अकर्मक क्रिया के प्रश्नों से कोई उत्तर नहीं मिलता है।
रवि सेब खाता है।रवि खाता है।

उभयविध धातु
जिन धातुओं का प्रयोग अकर्मक और सकर्मक दोनों रूपों में होता है उन्हें ‘उभयविध धातु’ कहते हैं। जैसे: भरना, लजाना, भूलना, बदलना, ऐंठना, ललचाना, घबराना इत्यादि।
उदाहरण:
लड़का अपने को सुधार रहा है
इस वाक्य में यद्यपि क्रिया के व्यापार का फल कर्ता ही पर पड़ता है, तथापि ‘ सुधार रहा है’ क्रिया सकर्मक है; क्योंकि इस क्रिया के कर्ता और कर्म एक ही व्यक्ति के वाचक होने पर भी अलग अलग शब्द हैं । इस वाक्य में ‘लड़का’ कर्ता और ‘अपने को’ कर्म है, यद्यपि ये दोनों शब्द एक ही व्यक्ति के वाचक हैं।

अपूर्ण क्रिया

जब किसी वाक्य में क्रिया तथा कर्म के होते हुए भी अपने वाक्य के पूर्व तो इस भाव को स्पष्ट ना करें ऐसी क्रियाओं को हम अपूर्ण क्रिया कहते हैं। जैसे: तुम हो- तुम एक भारतीय नागरिक हो। मैं अगले वर्ष बन जाऊंगा। – मैं अगले वर्ष अध्यापक बन जाऊंगा।
सकर्मक क्रियाएँ भी एक प्रकार की अपूर्ण क्रियाएँ हैं, क्योंकि उनसे कर्म के बिना पूरा अर्थ स्पष्ट नहीं हो पाता है। तथापि अपूर्ण अकर्मक और सकर्मक क्रियाओं में मूल अंतर यह है कि अपूर्ण क्रिया की पूर्ति से उसके कर्ता ही की स्थिति या विकार सूचित होता है और सकर्मक क्रिया की पूर्ति (कर्म) कर्ता से भिन्न होती है।


द्विकर्मक क्रिया
जिस सकर्मक क्रिया का अर्थ स्पष्ट करने के लिए वाक्य में दो कर्म प्रयुक्त होते हैं, उसे द्विकर्मक क्रिया कहते हैं।
उदहारण:
शिक्षक ने विद्यार्थी को पुस्तक दी।
इस वाक्य में दी क्रिया के व्यापार का फल दो कर्मकारक शब्दों- पुस्तक और विद्यार्थी पर पड़ता है, इसलिए इस वाक्य में द्विकर्मक क्रिया है।


संयुक्त क्रिया
दो या दो से अधिक भिन्न भिन्न अर्थ वाली क्रियाओं के मेल से बनने वाली क्रिया को संयुक्त क्रिया कहते हैं। संयुक्त क्रियाओं का निर्माण धातु से बने हुए शब्दों (कृदंत) के आगे सहायक क्रियाएं जोड़ देने से होता है।
उदाहरण:
गगन स्कूल चला गया।
सचिन पुस्तक पढ़ चुका है।
ऊपर दिए गए उदाहरणों में सिर्फ एक ही क्रिया नहीं है, यहां पर दो अलग-अलग क्रियाएं मिलकर एक नई क्रिया का निर्माण कर रही है।
टिप्पणी:
संयुक्त क्रिया की एक विशेषता यह है कि उसकी पहली क्रिया प्रायः प्रधान होती है और दूसरी उसके अर्थ में विशेषता उत्पन्न करती है।
उदाहरण:
मैं दौड़ सकता हूँ।
इस उदाहरण में दौड़ना प्रधान क्रिया है जबकि सकना उसके अर्थ में विशेषता उत्पन्न कर रही है।

संयुक्त क्रिया के भेद

हिंदी भाषा के अनुसार संयुक्त क्रिया के कुल 11 भेद हैं। जो कि निम्नलिखित हैं।
अर्थ के अनुसार संयुक्त क्रिया के मुख्य 11 भेद हैं:
1. आरंभ बोधक
2. समाप्ति बोधक
3. अवकाश बोधक
4. अनुमति बोधक
5. नित्यता बोधक
6. आवश्यकता बोधक
7. निश्चय बोधक
8. इच्छा बोधक
9. अभ्यास बोधक
10. शक्ति बोधक
11. पुनरुक्त बोधक


आरंभबोधक
वह संयुक्त क्रिया जिससे क्रिया के आरंभ होने का बोध होता है, उसे ’आरंभबोधक संयुक्त क्रिया’ कहते हैं।
उदाहरण:
वह पढ़ने लगा
पानी बरसने लगा
दिनेश खेलने लगा।


समाप्ति बोधक
क्रिया के समाप्त होने का बोध कराने वाले संयुक्त क्रिया को समाप्ति बोधक क्रिया कहते हैं।
उदाहरण:
विपुल सो चुका है।
सुरेश जा चुका है।


अवकाश बोधक
जिस संयुक्त क्रिया में किसी कार्य को ठीक ढंग से पूरा करने के लिए अवकाश का बोध हो, उसे अवकाशबोधक संयुक्त क्रिया कहते हैं।
उदाहरण:
भाई मुश्किल से सो पाया। अब उसे जाने भी दो।


अनुमति बोधक
जिस संयुक्त क्रिया में कार्य करने की अनुमति दिए जाने का बोध हो, उसे अनुमतिबोधक संयुक्त क्रिया कहते हैं।
उदाहरण:
मुझे ‘मंदिर’ जाने दो।
मुझे ‘स्कूल’ जाने दो।
यह क्रिया ‘देन’ धातु के योग से बनती है।


नित्यता बोधक
जिस संयुक्त क्रिया में किसी कार्य की नित्यता उसके बंद ना होने का भाव प्रकट हो, उसे नित्यताबोधक संयुक्त क्रिया कहते हैं । मुख्य क्रिया के आगे ‘करना’, ‘रहना’, ‘आना’ जोड़ने से नित्यता बोधक क्रिया बनती है।
उदाहरण:
तुम रोज मंदिर जाया करना।
भगवान की आरती किया करना।

आवश्यकता बोधक
जिससे कार्य की आवश्यकता या कर्तव्य का बोध हो, वह ’आवश्यकता बोधक संयुक्त क्रिया’ है।
उदाहरण:
मुझे रोज स्कूल जाना पड़ता है।
सभी को मेहनत करनी चाहिए।


निश्चय बोधक
जिस संयुक्त क्रिया से मुख्य क्रिया के व्यापार की निश्चियता का बोध हो, उसे निश्चयबोधक संयुक्त क्रिया कहते हैं ।
उदाहरण:
रमेश एकाएक बोल उठा।
देव दौड़ते ही गिर पड़ा।


इच्छा बोधक
जिस संयुक्त क्रिया से क्रिया के करने की इच्छा का पता चलता है उसे इच्छाबोधक संयुक्त क्रिया कहते हैं।
उदाहरण:
वह घर आना चाहता है।
मैं खाना चाहता हूँ।


अभ्यास बोधक
इससे क्रिया के करने के अभ्यास का बोध होता है। सामान्य भूतकाल की क्रिया में ’करना’ क्रिया लगाने से अभ्यासबोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती है।
उदाहरण:
वह पढ़ा करता है।
तुम लिखा करते हो।


शक्ति बोधक
जिस संयुक्त क्रिया से क्रिया को करने के लिए शक्ति का पता चलता है उसे शक्तिबोधक क्रिया कहते हैं।
उदाहरण:
मैं साइकिल चला सकता हूँ।
वह अंग्रेजी बोल सकता है।


पुनरुक्त बोधक
जब दो समानार्थक अथवा समान ध्वनि वाली क्रियाओं का संयोग होता है, तब उन्हें ’पुनरुक्त संयुक्त क्रिया’ कहते हैं।
उदाहरण:
वह घूमता-फिरता रहता है।
वह प्रायः बाजार आया-जाया करता है।

सहायक क्रिया

मुख्य क्रिया के अर्थ को स्पष्ट करने में जो क्रियाएँ सहायक होती है, वह सहायक क्रिया कहलाती है।
उदाहरण:
सरिता सो रही है।
रवि पढ़ रहा है।
टिप्पणी:
हिंदी व्याकरण में सहायक क्रियाओं का व्यापक प्रयोग होता है। इनमें बदलाव से क्रिया का काल बदल जाता है। जैसे ऊपर के उदाहरणों में रही है या रहा है की जगह रही थी या रहा था कर देने से वाक्य वर्तमान काल से भूतकाल का हो जाता है।


नामबोधक क्रिया
संज्ञा अथवा विशेषण के साथ क्रिया जोङने से जो संयुक्त क्रिया बनती है, उसे ‘नामबोधक क्रिया’ कहते हैं।
उदाहरण:
दुखी होना, निराश होना
विशेषण+क्रिया – दुखी होना, अहंकारी होना
संज्ञा+क्रिया – भस्म करना
नामबोधक क्रियाएँ संयुक्त क्रियाएँ नहीं हैं। संयुक्त क्रियाएँ दो क्रियाओं के योग से बनती है और नामबोधक क्रियाएँ संज्ञा अथवा विशेषण के मेल से बनती हैं।


पूर्वकालिक क्रिया
जब किसी वाक्य में दो क्रियाएं एक साथ प्रयुक्त हुई हों और उनमें से एक क्रिया दूसरी क्रिया से पहले संपन्न हुई हो तो पहले संपन्न होने वाली क्रिया को पूर्वकालिक क्रिया कहते हैं।
उदाहरण:
वह खाकर सो गया।
उसने नहाकर भोजन किया।
उपरोक्त वाक्यों में ‘खाकर’, ’नहाकर’ पूर्वकालिक क्रिया हैं, क्योंकि इनमें ‘खाने’ और ’नहाने’ की क्रिया की समाप्ति के बाड़ ही सोना और भोजन करने की क्रिया का बोध होता है।

क्रियार्थक संज्ञा
जब क्रिया संज्ञा की तरह व्यवहार में आए, तब वह ’क्रियार्थक संज्ञा’ कहलाती है।
उदाहरण:
चलना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।


प्रेरणार्थक क्रिया
मूल धातु का वह विकृत रूप जिससे क्रिया के व्यापार में कर्ता (प्रेरित कर्ता) पर किसी (प्रेरक कर्ता) की प्रेरणा का बोध हो तो उसे प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं। प्रेरणार्थक क्रिया की रचना सकर्मक एवं अकर्मक दोनों प्रकार की क्रियाओं से हो सकती है, लेकिन प्रेरणार्थक क्रिया बन जाने के पश्चात वह सदैव सकर्मक ही होगी।
उदाहरण:
सोहन मेरे से पानी मंगवाता है।
रवि मुझसे किताब लिखवाता है।
यौगिक क्रिया
जो क्रिया या धातु किन्हीं अन्य शब्दों के योग से बनती है उन्हें यौगिक क्रिया कहते हैं ।
उदाहरण:
चलना-चलाना, चल देना
हँसना-हँसाना

व्युत्पत्ति के अनुसार धातुओं के दो भेद होते हैं:
1. मूल धातु
2. यौगिक धातु


मूल धातु
जिन मूल अक्षरों से ‘क्रिया’ का निर्माण होता है, वह मूल शब्द धातु कहलाते हैं। क्रियापद का वह अंश जो क्रिया के प्राय: सभी रूपों में पाया जाता है, उसे धातु कहा जाता है। सधारण शब्दों में कहा जाये तो ‘जिन शब्दों से क्रिया बनती है, वह मूल अक्षर ही धातु कहलाते हैं।
उदाहरण:
खा, देख, पी इत्यादि।
यौगिक धातु
जब धातु के साथ किसी प्रत्यय का योग किया जाता है तो उसे यौगिक धातु कहा जाता है। यौगिक धातुएं अनंत है जिसका प्रमुख कारण यह है इनमे कुछ एकाक्षरी, दो अक्षरी, तीन अक्षरी, तीन अक्षरी और चार अक्षरी धातुएँ होती हैं। धातु + ना ‘प्रत्यय’ = यौगिक धातु।
यौगिक धातु तीन प्रकार से बनती है:
(क) धातु में प्रत्यय लगाने से अकर्मक से सकर्मक और प्रेरणार्थक धातुएँ बनती है।
(ख) कई धातुओं को संयुक्त करने से संयुक्त धातु बनती है।
(ग) संज्ञा या विशेषण से नाम धातु बनती है।