हिंदी व्याकरण अध्याय 18 पद परिचय

हिंदी व्याकरण अध्याय 18 पद परिचय एवं पदक्रम और इस पर आधारित अभ्यास के लिए प्रश्न विद्यार्थी यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं। पद परिचय और पदक्रम हिंदी व्याकरण में वाक्यों के विभिन्न घटकों यानी पदों का परिचय और उनके आपसी क्रम का अध्ययन करता है। यह भाषा के सही और प्रभावी प्रयोग के लिए महत्वपूर्ण है।

हिंदी व्याकरण – पद परिचय

जब कोई शब्द व्याकरण के नियमों के अनुसार किसी वाक्य में प्रयुक्त होता है तब उसे पद कहते हैं। दूसरे शब्दों में: पद एक वाक्यगत व्याकरणिक इकाई है। पद का स्वरुप और प्रकार्य वाक्य के सन्दर्भ में समझा जा सकता है, जबकि शब्द के लिए किसी वाक्य के सन्दर्भ की आवश्यकता नहीं होती है। शब्द स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त होते हैं और वे वाक्य में पदों का निर्माण करते हैं।
उदाहरण:
दिनेश पत्र लिखता है।
दिनेश ने पत्र लिखा।
इन दोनों वाक्यों में अलग-अलग ढंग से प्रयुक्त होकर दिनेश, पत्र और लिखता है पद बन गए हैं।

पद-परिचय

वाक्य में प्रयुक्त पदों का विस्तृत व्याकरणिक परिचय देना ही पद-परिचय कहलाता है।
व्याकरणिक परिचय से तात्पर्य है किवाक्य में उस पद की स्थिति बताना, उसका लिंग, वचन, कारक तथा अन्य पदों के साथ संबंध बताना।
पद परिचय के भेद
प्रयोग के आधार पर पद परिचय आठ प्रकार के होते हैं:
(1) संज्ञा
(2) सर्वनाम
(3) विशेषण
(4) अव्यय
(5) क्रियाविशेषण .
(6) क्रिया
(7) संबंधबोधक
(8) समुच्चयबोधक
संज्ञा शब्द का पद परिचय
वाक्य में उपस्थित संज्ञा शब्द का पद परिचय करते समय उस शब्द में संज्ञा, संज्ञा के भेद, लिंग, वचन, कारकतथा क्रिया या अन्य पदों के साथ संबंध बताना होता है।
उदाहरण:
राजन पुस्तक पढ़ता है।
उपरोक्त वाक्य में ‘राजन’ तथा ‘पुस्तक’शब्द संज्ञाएँ हैं। यहाँ इनका पद परिचय निम्नलिखित होगा:
राजन- व्यक्तिवाचक संज्ञा, पुल्लिंग, एक वचन, कर्ता कारक, ‘पढ़ता है’क्रिया का कर्ता।
पुस्तक- जातिवाचक संज्ञा, स्त्रीलिंग, एकवचन, कर्म कारक, ‘पढ़ता है’क्रिया का कर्म।

सर्वनाम शब्द का पद परिचय

सर्वनाम शब्द का पद परिचय बताने के लिए सबसे पहले सर्वनाम का प्रकार, सर्वनाम का पुरुष, वचन, लिंग, कारक और वाक्य के अन्य पदों से संबंधों को दिखाना होता है।
उदाहरण:
यह उसकी पेन्सिल है।
उपरोक्त वाक्य में ‘यह’तथा ‘उसकी’ सर्वनाम शब्द हैं।
यह- निश्चयवाचक सर्वनाम, अन्य पुरुष, स्त्रीलिंग, एक वचन, सम्बन्ध कारक, ‘पेन्सिल’संज्ञा शब्द से सम्बन्ध।
उसकी- अन्य पुरुषवाचकसर्वनाम, स्त्रीलिंग, एकवचन, कर्म कारक।
विशेषण शब्द का पद परिचय
विशेषण शब्द का पद परिचय करते समय विशेषण, विशेषण के भेद, लिंग, वचन, अवस्था, कारक तथा विशेष्य व उसके साथ संबंध आदि को बताना चाहिए। विशेषण का लिंग और वचन, विशेष्य के अनुसार होता है।
उदाहरण:
ये दो पुस्तकें बहुत ज्ञानवर्धक हैं।
उपरोक्त वाक्य में ‘दो’, ’बहुत’ और ‘ज्ञानवर्धक’ विशेषण हैं। इन तीनों विशेषणों का पद परिचय निम्न प्रकार है:
दो- संख्यावाचक विशेषण, पुल्लिंग, बहुवचन, इस विशेषण का विशेष्य ‘पुस्तकें’ हैं।
बहुत- संख्यावाचक, स्त्रीलिंग, बहुवचन।
ज्ञानवर्धक- गुणवाचक विशेषण, पुल्लिंग, बहुवचन।
वीर शिवाजी ने मराठा साम्राज्य की स्थापना की थी।
उक्त वाक्य में ‘वीर’ शब्द विशेषण हैं, इसका पद-परिचय निम्नानुसार होगा:
वीर – गुणवाचक विशेषण, मूलावस्था, पुल्लिंग, एकवचन, ‘राम’ विशेष्य के गुण का बोध कराता है।

विस्मयादिबोधक अव्यय का पद परिचय
विस्मयादिबोधक अव्यय का पद परिचय बताने के लिए वाक्य में अव्यय, अव्यय का भेद और उससे संबंधित पद को बताना होता है।
उदाहरण:
वे प्रतिदिन बाजार जाते हैं।
उपरोक्त वाक्य में ‘प्रतिदिन’ अव्यय है।
प्रतिदिन- कालवाचक अव्यय
जाना- क्रिया का विशेषण
क्रिया विशेषण का पद परिचय
क्रिया विशेषण का पद परिचय बताने के लिए क्रियाविशेषण का प्रकार और उस क्रिया पद के बारे में बताना होता हैं, जिस क्रियापद की विशेषता बताने के लिए क्रिया विशेषण का प्रयोग हुआ है।
उदाहरण:
बिल्ली उछल कूद कर रही है।
इस वाक्य में ‘उछल कूद’ क्रियाविशेषण है।
उछल कूद- रीतिवाचक क्रियाविशेषण क्योंकि ‘कर रही है’ क्रिया की विशेषता बता रहा है।

क्रिया शब्द का पद परिचय

क्रिया के पद परिचय में क्रिया का प्रकार, वाच्य, काल, लिंग, वचन, पुरुष, और क्रिया से संबंधित शब्द को बताना होता है।
उदाहरण:
रवि ने चेतन को मारा।
इस वाक्य में क्रिया शब्द का पद परिचय इस प्रकार है:
मारा- क्रिया, सकर्मक, पुल्लिंग, एकवचन, कर्तृवाच्य, भूतकाल। ‘मारा’ क्रिया का कर्ता मोहन तथा कर्म सोहन है।
संबंधबोधक का पदपरिचय
संबंधबोधक का पद परिचय में संबंधबोधक का भेद और संज्ञा या सर्वनाम से संबंधित शब्द को बताना होता है।
उदाहरण:
छत के ऊपर बंदर बैठा है।
उपरोक्त वाक्य में संबंधबोधक शब्द का पद परिचय इस प्रकार लिखा जा सकता है:
के नीचे- संबंधबोधक, पेड़ और चिड़िया इसके संबंधी शब्द हैं।
समुच्चयबोधक का पदपरिचय
समुच्चयबोधक के पद परिचय में समुच्चयबोधक का भेद और समुच्चयबोधक से संबंधित योजक शब्द को बताना होता है।
उदाहरण:
सुरेश अथवा नरेश में से कौन अच्छा खेलता है।
इस वाक्य में ‘अथवा’ समुच्चयबोधक शब्द है।
अथवा- विभाजक समुच्चयबोधक अव्यय है तथा ‘सुरेश’ और नरेश के मध्य विभाजक संबंध।

पदक्रम

वाक्य में प्रयुक्त सभी पदों (शब्दों) का एक निश्चित क्रम होता है जिसे पदक्रम भी कहते हैं। यदि शब्दों को निश्चित क्रम में न रखा जाय तो वाक्य का अर्थ स्पष्ट नहीं हो पायेगा।
दूसरे शब्दों में किसी वाक्य का सार्थक होने के लिए यह आवश्यक है कि वाक्य में प्रयुक्त सभी पद एक निश्चित क्रम में हों।
एक अन्य परिभाषा के अनुसार, “वाक्य में पदों का उचित स्थान पर होना ही पदक्रम है।“
हिन्दी एक विश्लेषणात्मक भाषा है। इसमें पदक्रम का बड़ा महत्त्व है। पदक्रम में थोड़ा सा परिवर्तन होने पर अर्थ का अनर्थ होने की संभावना रहती है।
हिंदी भाषा में पदक्रम
हिंदी साहित्य में दो तरह का पदक्रम देखने को मिलता है:
1. अलंकारिक पदक्रम
2. व्याकरणीय पदक्रम

अलंकारिक पदक्रम

विशेष प्रसंग पर (वक्तृता और कविता में) वक्ता और लेखक की इच्छा के अनुसार पदक्रम से जो अंतर पड़ता है, उसको अलंकारिक पदक्रम कहते हैं।
अलंकारिक पदक्रम के नियम बताना बहुत कठिन है और यह नियम व्याकरण से भिन्न भी है।
टिप्पणी: इस अध्याय में केवल व्याकरणीय पदक्रम के नियमों के बारे में अद्ययन लिखे जायँगे।
व्याकरणीय पदक्रम
व्याकरण के नियमानुसार वाक्य में पदक्रम का सबसे साधारण नियम यह है कि पहले कर्ता या उद्देश्य, फिर कर्म या पूर्ति और अंत में क्रिया रखते हैं।
उदाहरण:
(क) छात्र पुस्तक पढ़ता है।
(ख) सोहन बाजार जा रहा है।
टिप्पणी: यदि परसर्ग सहित पदों का स्थानांतरण किया जाए तो वाक्य के अर्थ में परिवर्तन नहीं होगा।
उदाहरण: पुस्तक को छात्र पढ़ता है।
वाक्य के अर्थ में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है लेकिन यहाँ कर्ता और कर्म के स्थान बदल गए हैं।
टिप्पणी: यदि परसर्ग रहित पदों का स्थानांतरण किया जाए तो वाक्य के अर्थ में परिवर्तित हो जायेगा या गलत हो जायेगा।
उदाहरण: पुस्तक छात्र को पढ़ता है।
यहाँ वाक्य का अर्थ ही गलत हो गया है।
एक अन्य उदाहरण से इसको समझने का प्रयास करते हैं।
मोहन सोहन को पीटता है।
इस वाक्य का पदक्रम बदलकर दो तरह से लिखा जा सकता है:
(i) परसर्ग सहित पदों का स्थानांतरण (परसर्ग ‘को’)
सोहन को मोहन पीटता है। (वाक्य का अर्थ नहीं बदलता)
(ii) सोहन मोहन को पीटता है। (वाक्य का अर्थ बदल जाता है)
क्रिया यदि अकर्मक है तो वाक्य में पहले कर्ता तथा उसके बाद क्रिया आती है।
उदाहरण: बालक सोता है।

पदक्रम संबंधी नियम

1. जिन वाक्यों में द्विकर्मक क्रियाएं प्रयुक्त होती हैं उनमें गौण कर्म पहले और मुख्य पीछे आता है।
उदाहरण:
(क) मैंने अपने मित्र को चिट्ठी भेजी।
(ख) अध्यापक ने विद्यार्थी को पेंसिल दी।
2. वाक्य में विशेषण संज्ञा के पहले और क्रियाविशेषण बहुधा क्रिया के पहले आते हैं।
उदाहरण:
(क) बूढ़ा शेर धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था।
(ख) बुद्धिमान विद्यार्थी पढ़ाई में हमेशा आगे रहते हैं।
3. समानाधिकरण शब्द मुख्य शब्द के पीछे आता है और पिछले शब्द में विभक्ति का प्रयोग होता है।
उदाहरण:
(क) मुन्ना, तुम्हारा भाई, बाहर खड़ा है।
(ख) रमेश, चपरासी, को बुलाओ।
4. संबंधवाचक और उसके अनुसंबंधी सर्वनाम के कर्मादि कारक बहुधा वाक्य के आदि में आते हैं।
उदाहरण:
(क) रवि के पास एक पुस्तक है, जिसमें सारी जानकारी है।
(ख) वह आदमी कहाँ है, जिसे आपने मेरे पास भेजा था।

5. प्रश्नवाचक क्रियाविशेषण और सर्वनाम के अवधारण के लिए प्रश्नवाचक क्रियाविशेष मुख्य क्रिया और सहायक क्रिया के बीच में भी आ सकते हैं।
उदाहरण:
(क) वह जाता कब था?
(ख) हम वहाँ जा कैसे सकेंगे?
(ग) ऐसा कहना क्यों चाहिए?
6. तो, भी, ही, भर, तक और मात्र अव्यय शब्द वाक्यों में उन्हीं शब्दों के पश्चात् आते हैं, जिन पर इनके कारण अवधारण होता है। इनके स्थानांतर से वाक्य में अर्थांतर हो जाता है।
उदाहरण:
(क) हम भी गाँव को जाते हैं।
(ख) हम तो गाँव को जाते हैं।
(ग) हम गाँव को तो जाते हैं।
(अ) ‘मात्र’ को छोड़ दूसरे अव्यय मुख्य क्रिया और सहायक क्रिया के बीच में भी आ सकते हैं और ‘भी’ तथा ‘तो’ को छोड़ शेष अव्यय संज्ञा और विभक्ति के बीच में आ सकते हैं। ‘ही’ कर्तृवाचक कृदंत तथा सामान्य भविष्यत् काल में प्रत्यय के पहले भी आ जाता है।
उदाहरण:
(क) हम वहाँ जाते ही हैं।
(ख) लड़का अपने मित्र तक की बात नहीं मानता।
(ग) अब उन्हें बुलाना भर है।
(घ) यह काम आप ही ने (अथवा आपने ही) किया है।
(आ) ‘केवल’ संबंधी शब्द के पूर्व ही में आता है।

7. संबंधवाचक क्रियाविशेषण जहाँ वहाँ, जब तब, जैसे तैसे, आदि बहुधा वाक्य के आरंभ में आते हैं।
उदाहरण:
(क) जब मैं बोलूँ तब तुम ध्यान से सुनना।
(ख) जहाँ कुछ पाने की इच्छा होती है वहाँ तरीका भी अवश्य होता है।
8. निषेधवाचक अव्यय ‘न’, नहीं’ और ‘मत’ बहुधा क्रिया के पूर्व आते हैं।
उदाहरण:
(क) न मैं और न तुम जाओगे।
(ख) वह नहीं गया।
(ग) तुम मत जाओ।
9. विस्मयादिबोधक और संबोधन कारक बहुधा वाक्य के आरंभ में आते हैं।
उदाहरण:
(क) अरे! यह क्या हुआ?
(ख) मित्र ! तुम कहाँ थे?