हिंदी व्याकरण अध्याय 16 अलंकार

हिंदी व्याकरण अध्याय 16 अलंकार और उनके भेद विद्यार्थी यहाँ से सीख सकते हैं। अलंकार हिंदी साहित्य में सौंदर्यशास्त्रीय उपकरण हैं जो काव्य या गद्य में भाषाई शैली को सुशोभित करते हैं। ये विभिन्न प्रकार के होते हैं जैसे उपमा, रूपक, अनुप्रास आदि।

हिंदी व्याकरण – अलंकार और उनके भेद

काव्य के सौन्दर्य को बढ़ाने वाले अपादान को अलंकार कहते हैं। अलंकार का शाब्दिक अर्थ है “आभूषण”। मनुष्य सौंदर्य प्रेमी है, वह स्वयं तथा अपनी प्रत्येक वस्तु को सुसज्जित और अलंकृत देखना चाहता है। इसी क्रम में वह अपने कथन को भी शब्दों के सुंदर प्रयोग और विशिष्ट अर्थवत्ता से प्रभावी व सुंदर बनाना चाहता है। मनुष्य की यही प्रकृति काव्य में अलंकार कहलाती है।
सरल शब्दों में कह सकते हैं- जो किसी विषय, व्यक्ति या वस्तु को अलंकृत करे वह अलंकार कहलाता है।

अलंकार का महत्व
हिन्दी साहित्य के काव्य रचना में अलंकारों का बहुत महत्त्व है, जिसे निम्न प्रकार से उल्लेखित कर सकते हैं:
(क) अलंकार काव्य की शोभा बढ़ाने के साधन है। काव्य रचना में रस पहले होना चाहिए, उस रसमई रचना की शोभा अलंकारों के द्वारा बढ़ाई जा सकती है। जिस रचना में रस नहीं होगा, उसमें अलंकारों का प्रयोग उसी प्रकार व्यर्थ है; जैसे – प्राणहीन शरीर पर आभूषण।
(ख) काव्य में अलंकारों का प्रयोग बिना आवश्यकता के नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर वह काव्य पर भारस्वरुप प्रतीत होने लगते हैं, और उनसे काव्य की शोभा बढ़ने की अपेक्षा कम होती है। किसी काव्य की रचना शब्दों और उनके अर्थ द्वारा होती है। अतः रचनामें अलंकारों का प्रयोग इस प्रकार होना चाहिए जिससे शब्द और अर्थ दोनों के सौंदर्य की वृद्धि होती हो।

अलंकार के भेद

काव्य रचना में शब्दों और उनके अर्थ के आधार पर अलंकार तीन प्रकार के होते हैं:
1. शब्दालंकार
2. अर्थालंकार
3. उभयालंकार
शब्दालंकार
जब चमत्कार का अलंकार शब्द में निहित हो तो वहाँ शब्दालंकार होता है। जैसे: मुदित महीपति मंदिर आए। इस उदाहरण में विशिष्ट व्यंजनों के प्रयोग से काव्य में सौंदर्य उत्पन्न हुआ है। यहाँ राजा की जगह महीपति शब्द का प्रयोग किया गया है जो कि एक अलंकारिक शब्द है। अगर महीपति की जगह राजा का प्रयोग किया जायेगा तो तो काव्य का सारा चमत्कार खत्म हो जाएगा।
शब्दालंकार के भेद
शब्दालंकार के निम्नलिखित भेद होते हैं:
1. अनुप्रास
2. यमक
3. पुनरुक्ति
4. विप्सा
5. वक्रोक्ति
6. श्लेष
टिप्पणी: उपरोक्त शब्दालंकारों के उपभेद भी हैं जिनका वर्णन आगे किया जायेगा।

अनुप्रास अलंकार

जहाँ एक शब्द या वर्ण का प्रयोग बार बार हो या एक या अनेक वर्णो की आवृत्ति बार बार हो वहा अनुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण:
मधुर मधुर मुस्कान मनोहर, मनुज वेश का उजियाला।
ऊपर दिए उदाहरण में आप देख सकते हैं की ‘म’ वर्ण की आवृति हो रही है अर्थार्थ ‘म’ वर्ण बार बार आ रहा है इसलिए यहाँ अनुप्रास अलंकार होगा।
अनुप्रास अलंकार के पांच उपभेद हैं:
(i) छेकानुप्रास
(ii) वृत्यनुप्रास
(iii) अंत्यानुप्रास
(iv) लाटानुप्रास
(v) श्रुत्यानुप्रास


छेकानुप्रास अलंकार
जहाँ वाक्य में किसी वर्ण या वर्ण समूह की आवृति केवल एक बार होती है अर्थात् वह वर्ण दो बार आये वहाँ छेकानुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण:
कंकन किंकिन नूपुर धुनि सुनि
उपरोक्त पंक्तियों में ‘क’ वर्ण की आवृत्ति एक बार हुई है अतः यहाँ पर छेकानुप्रास अलंकार है।


वृत्यनुप्रास अलंकार
जहाँ वाक्य में किसी वर्ण या वर्ण समूह की आवृति एक से अधिक बार होती है तो वहाँ वृत्यनुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण:
“चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल – थल में”
यहां ‘च‘ वर्ण की अनेक बार आवृत्ति हुई है। अतः वृत्यनुप्रास अलंकार है।


अंत्यानुप्रास अलंकार
जब छंद की प्रत्येक अंतिम पंक्ति के वर्ण या वर्णों में समान स्वर या मात्राओं की आवृति के कारण तुकांतता बनती हो तो वहाँ अंत्यानुप्रास अलंकार होता है।
रघुकुल रीत सदा चली आई। प्राण जाए पर वचन न जाई।।


लाटानुप्रास अलंकार
इसमें ऐसे शब्द और वाक्य दुबारा आते है जिनका अर्थ सामान्यतया एक ही होता है लेकिन अन्वय करने पर उक्ति का अर्थ बदल जाता है तो उस जगह लाटानुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण:
पूत सपूत तो क्यों धन संचय? पूत कपूत तो क्यों धन संचय?
उपरोक्त वाक्यों में केवल एक शब्द का उपसर्ग बदल जाने से वाक्य का अर्थ ही बदल जाता है।


श्रुत्यानुप्रास अलंकार
जहाँ पर कानों को मधुर लगने वाले वर्णों की आवर्ती हो उसे श्रुत्यानुप्रास अलंकार कहते है।
उदाहरण:
तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये।
यहाँ ‘त’ वर्ण की आवृति पांच बार हुई है तथा उनकी मात्राएँ भी समान हैं।

यमक अलंकार

यमक शब्द का अर्थ होता है युग्म। अर्थात् जहाँ एक शब्द या शब्द समूह दो बार आये तथा दोनों बार उसका अर्थ भिन्न हो तो वहाँ यमक अलंकार होता है।
उदाहरण:
कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय।
या खाए बौराय जग, या पाए बौराय।।
इस छंद में ‘कनक‘ शब्द का दो बार प्रयोग हुआ है। एक ‘कनक‘ का अर्थ है ‘स्वर्ण‘ और दूसरे का अर्थ है ‘धतूरा‘ इस प्रकार एक ही शब्द का भिन्न – भिन्न अर्थों में दो बार प्रयोग होने के कारण यमक अलंकार है।


यमक अलंकार के भेद
यमक अलंकार के दो उपभेद होते हैं:
(i) अभंग पद यमक
(ii) सभंग पद यमक
अभंग पद यमक अलंकार
अभंग का अर्थ होता है बिना भंग किये, जब किसी शब्द को बिना परिवर्तन के एक ही रूप में दो या अधिक बार भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग किया जाता है, तब वहाँ अभंग पद यमक अलंकार होता है।
उदाहरण: जगती जगती की मुक प्यास।
इस उदाहरण में जगती शब्द की आवृत्ति बिना परिवर्तन के भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग हुई है। अतः यह अभंग पद यमक अलंकार का उदाहरण है। उपरोक्त छंद में एक जगती का अर्थ जागना है वहीं दूसरे का अर्थ पृथ्वी है।


सभंग पद यमक अलंकार
सभंग का अर्थ होता है भंग करके, जब जोड़ – तोड़ कर एक जैसे वर्ण समूह( शब्द ) की आवृत्ति होती है , और उसे भिन्न-भिन्न अर्थों की प्रकृति होती है अथवा वह निरर्थक होता है , तब सभंग पद यमक होता है।
उदाहरण: माला फेरत जुग भया , फिरा न मन का फेर। कर का मनका डारि दे , मन का मनका फेर।।
यहाँ एक मनका का अर्थ माला का दाना, तथा दूसरा मनका का अर्थ मानव मन है।
पुनरुक्ति अलंकार
अगर कोई शब्द किसी छंद में दो या दो से अधिक बार आए, परंतु उसका अर्थ एक ही रहें, तो वहां ‘पुनरुक्ति अलंकार’ होता है।
उदाहरण: “ठौर-ठौर विहार करती सुन्दरी सुरनारियाँ।”
उपरोक्त छंद में ‘ठौर’ शब्द की आवृत्ति है। दोनों ‘ठौर’ का अर्थ एक ही है, परन्तु पुनरुक्ति से कथन में बल आ गया है।
विप्सा अलंकार
जब शब्दों की आवृति आदर, भय, शोक, विस्मय, घृणा आदि प्रकट करने के लिए किया जाए तो वहाँ वीप्सा अलंकार होता है।
उदाहरण: राम! राम! उसकी कैसी दुर्गति हुई।
छि! छि! कितनी गन्दगी है।
वक्रोक्ति अलंकार
जब किसी कथन पर वक्ता और श्रोता के बीच भिन्नता का आभास हो तो वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है।
दूसरे शब्दों में वक्ता कोई बात बोलता है और श्रोता उसका मतलब किसी अन्य अर्थ में निकाल लेता है तब वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण: को तुम हो इत आये कहाँ, घनश्याम हों तो कितहूँ और बरसों।
उपरोक्त पंक्ति में जब कृष्ण राधा से मिलने उसके घर जाते हैं तो द्वार खटखटाने पर राधा पूछती है कौन? तब कृष्ण कहते हैं घनश्याम। राधिका उसका अर्थ काले बादलों से निकालती है और कहती है कि तुम यहाँ क्यों आये हो घनश्याम हो तो कहीं और जाकर बरसो। इस प्रकार वक्ता के कथन और श्रोता के समझने में अंतर है अतः यहाँ वक्रोक्ति अलंकार है।

श्लेष अलंकार

जब कोई शब्द एकादिक अर्थों में प्रयुक्त हो तो वहाँ श्लेष अलंकार होता है।
उदाहरण:
अजौं तरयौना ही रह्यो, श्रुति सेवत इक अंग।
नाक बास बेसरि लह्यो, बसी मुक्तन के संग।।
यहाँ तरयौना शब्द के दो अर्थ हैं एक कान का गहना तथा दूसरा तरयौ ना अर्थात् जो भवसागर से पार नहीं हुआ। श्रुति शब्द के भी दो अर्थ हैं एक कान तथा दूसरा वेद। इसी प्रकार बेसरि शब्द के अर्थ नाक का गहना तथा निकृष्ट प्राणी होता है। मुक्तन का अर्थ भी मुक्त पुरुष एवं मोती होता है।


श्लेष अलंकार के भेद
श्लेष अलंकार के दो उपभेद होते हैं:
(i) शब्द श्लेष
(ii) अर्थ श्लेष
शब्द श्लेष अलंकार
जब कोई शब्द अपने एक से अधिक अर्थ प्रकट करता है तो वहाँ पर शब्द श्लेष अलंकार होता है।
उदाहरण:
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे, मोती मानुष , चून।।
उपरोक्त छंद में पानी तीन अर्थों में प्रयुक्त हुआ है- चमक, इज्जत, जल।
अर्थ श्लेष अलंकार
जब श्लेष का चमत्कार शब्द की जगह उसके अर्थ में होता है तो वहाँ अर्थ श्लेष होता है। अर्थ श्लेष में शब्द का पर्यायवाची भी रख देने पर श्लेष का चमत्कार बना रहता है।
उदाहरण:
नर की अरू नलनीर की गति एकै कर जोय।
जेतो नीचो ह्वै चले ततो ऊँचो हो।।
यहाँ प्रयुक्त ऊँचो शब्द ऊंचाई तथा महानता को दर्शाता है।


अर्थालंकार
जब काव्य या छंद में सुंदरता उसके शब्दों से नहीं अपितु उसके अर्थ से आता हो, तो वहाँ अर्थालंकार होता है। अर्थालंकार के निम्लिखित पांच भेद होते है:
(i) उपमा अलंकार
(ii) रूपक अलंकार
(iii) उत्प्रेक्षा अलंकार
(iv) अतिश्योक्ति अलंकार
(v) मानवीकरण अलंकार
टिप्पणी: यद्यपि अर्थालंकार के बहुत सारे भेद हैं लेकिन पाठयक्रम के स्तर पर यहाँ मुख्य प्रकारों का वर्णन किया जा रहा है।

उपमा अलंकार

जहां एक वस्तु या प्राणी की तुलना अत्यंत समानता के कारण किसी अन्य वस्तु या प्राणी से की जाती है, तो वहाँ उपमा अलंकर होता है।
दूसरे शब्दों में उपमा अर्थात् तुलना उपमा अलंकार में उपमेय की तुलना उपमान से उसके गुण, धर्म या क्रिया के आधार पर की जाती है।
उदाहरण: मधुकर सरिस संत, गुन ग्राही।
यहाँ संत की तुलना मधुकर अर्थात मधुमक्खी से की गई है।
उपमा अलंकार के चार अंग माने जाते हैं:
(i) उपमेय- वह व्यक्ति या वस्तु जिसकी तुलना की जाए।
(ii) उपमान- वह जिससे उपमा दी जाए या तुलना की जाए।
(iii) समतावाचक शब्द- जिन शब्दों से समता दर्शाई जाए, जैसे, ज्यों, सम, सा, सी सरिस, समान आदि।
(iv) साधारण धर्म- जिन समान गुणों की समानता होती है।
उपमा के भेद
(i) पूर्णोपमा
(ii) लुप्तोपमा
(iii) मालोपमा
पूर्णोपमा अलंकार
जहां उपमा के चारों अंग अर्थात् उपमेय, उपमान, साधारण धर्म तथा समतावाचक शब्द विद्यमान हो , वहां पूर्णोपमा अलंकार होता है।
उदाहरण: “राधा बदन चन्द सो सुन्दर।“
इन पंक्ति में उपमा के चारों अंग अर्थात् उपमेय, उपमान, साधारण धर्म तथा समतावाचक शब्द विद्यमान हैं।
उपमेय- राधा
उपमान- चाँद (चन्द्रमा)
साधारण धर्म- सुन्दर
समतावाचक शब्द- सो (समान)


लुप्तोपमा अलंकार
जहां उपमा के चारों अंगों में से कोई एक, दो या तीन अंग लुप्त हों वहां लुप्तोपमा अलंकार होता है। चारों अंगों में से जो अंग लुप्त होता है या होते हैं उसीके अनुसार लुप्तोपमा अलंकार का नाम रखा जाता है।
उदाहरण:
‘मुख कमल जैसा है।’
यहाँ साधारण धर्म ’सुन्दर’ का शब्द द्वारा उल्लेख नहीं किया है, अतः साधारण धर्म नामक एक अंग के लुप्त होने से लुप्तोपमा हुई।
उपमा का जो अंग लुप्त रहता है, उसके आधार पर पुनः इसके चार मुख्य उपभेद होते हैं। जैसे:
(i) उपमेय लुप्त होने पर – उपमेय लुप्तोपमा
(ii) उपमान लुप्त होने पर – उपमान लुप्तोपमा
(iii) साधारण धर्म लुप्त होने पर – धर्म लुप्तोपमा
(iv) वाचक शब्द लुप्त होने पर – वाचक लुप्तोपमा
मालोपमा अलंकार
जब किसी उपमेय की तुलना कई उपमानों से की जाती है , और इस प्रकार उपमा की माला – सी बन जाती है, तब वहाँ मालोपमा अलंकार होता है।
उदाहरण:
हिरनी से मीन से, सुखंजन समान चारु, अमल कमल से, विलोचन तिहारे हैं।
उपरोक्त पंक्तिओं में लोचन उपमेय की तुलना कई उपमान से की गई है, अतः यहां मालोपमा अलंकार है।

रूपक अलंकार

जब उपमेय में उपमान को अभेद रूप से निरुपित किया जाता है अर्थात् जहां गुण की अत्यंत समानता के कारण उपमेय में उपमान का भेद आरोप कर दिया जाए वहाँ रूपक अलंकार होता है। इसमें वाचक शब्द का प्रयोग नहीं होता है।
उदाहरण: चरण – कमल बन्दों हरि राई।
इस छंद में चरण में कमल का निरूपण हो रहा है।
रूपक अलंकार के भेद
रूपक अलंकार के मुख्यतः दो भेद होते है:
(क) अभेद रूपक
(ख) तद्रूप रूपक


अभेद रूपक अलंकार
जहाँ उपमेय और उपमान एक दिखाये जाते हैं, अर्थात् उनमें कोई भी भेद नहीं होता है वहाँ अभेद रूपक अलंकार होता है।
उदाहरण: बीती विभावरी जागरी।
अंबर-पनघट में डुबा रही, तारघट-ऊषा नागरी।
अभेद रूपक अलंकार के तीन उपभेद माने गए हैं:
(i) सांग रूपक
(ii) निरंग रूपक
(iii) परंपरित रूपक

सांग रूपक अलंकार
जब किसी पद में उपमान का उपमेय में अंगों या अवयवों सहित आरोप किया जाता है तो वहाँ सांग रूपक अलंकार होता है।
उदाहरण: उदित उदयगिरि- मंच पर, रघुवर बाल-पतंग।
बिकसे संत – सरोज सब, हरषे लोचन-भृंग।।
निरंग रूपक अलंकार
जहां उपमेय पर उपमान का अवयवों रहित आरोप होता है वहां निरंग रूपक होता है। इस रूपक में उपमान की किसी विशेषता का आरोप मात्र होता है, उसके सभी अंगो का नहीं।
उदाहरण: चरण-कमल वंदौ हरिराई।
उपरोक्त पंक्ति में केवल चरणों की तुलना कमल से की गई है।

परंपरित रूपक अलंकार
जब किसी पद में कम से कम दो रूपक होते हैं तथा उनमें से एक रूपक के द्वारा दूसरे रूपक की पुष्टि होती है तो वहाँ परंपरित रूपक अलंकार होता है। यदि इनमें से एक रूपक को हटा लिया जाता है तो दूसरा रूपक स्वतः लुप्त हो जाता है।
उदाहरण:
राम कथा सुन्दर करतारी। संसय विहग उड़ावन हारी।।
उपरोक्त पद में रामचरितमानस की कथा को सुन्दर ताली (हाथों से बजायी जाने वाली ताली) के रूप में बताया गया है तथा हमारे हृदय के संशय को विहग (पक्षी) के रूप में माना गया है। अतः जैसे– ताली के बजाने से पक्षी उड़ जाते हैं, वैसे ही रामकथा के सुनने से हृदय के सभी संशय दूर हो जाते हैं। यदि यहाँ ’रामकथा’ को ’ताली’ नहीं माना जाये तो ’संशय’ को भी ’पक्षी’ रूप में नहीं माना जायेगा। इस प्रकार एक रूपक दूसरे रूपक का कारण होने के कारण यहाँ परंपरित रूपक अलंकार है।


तद्रुप रूपक अलंकार
जहाँ उपमान, उपमेय का रूप तो धारण करता है, पर एक नहीं हो पाता। उसे ‘और’ या ‘दूसरा’ कहकर व्यक्त किया जाता है वहाँ तद्रुप रूपक अलंकार। इसमें ऊपर की भांति अभेद नहीं होता, वरन उपमेय को उपमान के से गुण, कर्म आदि में मिलते – जुलते कहा जाता है।
उदाहरण:
दीपति दिपत अति सातों दीप दीपियतु,
दूसरो दिलीप सो सुदक्षिणा को बल है।
यहां पर उपमेय राजा दशरथ को दूसरे शब्द उपमान दिलीप से भिन्न कहते हुए भी दोनों में एकरूपता आरोपित की गई है अतएव यहां पर तद्रूप रूपक है।

उत्प्रेक्षा अलंकार

जहां रूप, गुण आदि समानता के कारण उपमेय में उपमान की संभावना या कल्पना की जाए वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
उदाहरण:
सोहत ओढ़े पीतपट, श्याम सलौने गात।
मानहुं नीलमणि शैल पर, आतप परयो प्रभात।।
उपरोक्त छंद में पीले वस्त्र धारण किये हुए श्रीकृष्ण (उपमेय) ऐसे शोभायमान हो रहें हैं जैसे प्रभात किरणों से सुशोभित नीलमणी पर्वत (उपमान)।
इसके वाचक शब्द निम्नलिखित हैं: मनु, मानो, ज्यों, जानो, जानहु, आदि।
उत्प्रेक्षा अलंकार के चार भेद हैं:
(i) वस्तुप्रेक्षा
(ii) हेतुप्रेक्षा
(iii) फलोत्प्रेक्षा
वस्तुप्रेक्षा अलंकार
जब किसी वस्तु में एक दूसरी वस्तु की संभावना प्रकट की जाती है तो वहाँ पर वस्तुप्रेक्षा अलंकार होता है।
उदाहरण:
कहती हुई यों उत्तरा के, नेत्र जल से भर गये।
हिम के कणों से पूर्ण मानो, हो गये पंकज नये।।
उपरोक्त पद में आँसुओं से भरी उत्तरा की आँखों में (एक वस्तु, उपमेय) कमल पर जमा हिमकणों (अन्य वस्तु, उपमान) की संभावना को प्रकट किया जा रहा है।

हेतुप्रेक्षा अलंकार
जब किसी पद में अहेतु की हेतु रूप में सम्भावना या कल्पना प्रकट की जाती है। अर्थात जो वास्तविक कारण नहीं है, पर उसी में कारण खोजने की कल्पना की जाती है, तो वहाँ हेतूत्प्रेक्षा अलंकार माना जाता है।
उदाहरण: सोवत सीता नाथ के, भृगु मुनि दीनी लात।
भृगुकुल पति की गति हरी, मनो सुमिरि वह बात।।
उपरोक्त छंद में बताया गया है कि पहले भृगु ऋषि ने सोये हुए भगवान् विष्णु की छाती पर लात मारी थी, इस बात को याद करके श्रीराम ने भृगुकुल में जन्में परशुराम जी की गति का हरण कर लिया। यह वास्तविकता नहीं है फिर भी कवि की कल्पना में यह प्रकट किया गया है।
फलोत्प्रेक्षा
जब किसी पद में वास्तविक फल न होने पर भी उसमें फल की कल्पना की जाती है अर्थात जो फल नहीं है, उसे फल के रूप में कल्पित किया जाता है तो वहाँ फलोत्प्रेक्षा अलंकार माना जाता है।
उदाहरण: बढ़त ताड़ को पेड़ यह, मनु चूमन को आकाश।
यहाँ आकाश को छूने (चूमने) के फल की इच्छा से ताड़ का ऊँचा बढ़ना वास्तविक नहीं लगता है, किन्तु कवि ने उसे वास्तविकता के रूप में चित्रित किया है। अतः अफल में फल की संभावना करने के कारण यहाँ फलोत्प्रेक्षा अलंकार है।

अतिश्योक्ति अलंकार
काव्य में जब किसी व्यक्ति या वस्तु की किसी बात को बढ़ा चढ़ा के कहा जाए, तो वहाँ अतिश्योक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण:
हनुमान की पूँछ में, लगन न पायी आग।
लंका सगरी जल गई, गए निशाचर भाग।।
उपरोक्त छंद में इस बात की अतिश्योक्ति की गई है कि हनुमान के पूंछ में आग लग भी नहीं पाई और लंका सारी जल गई।
मानवीकरण अलंकार
जब काव्य में जड़ वस्तुओं में चेतनता या मानवीय भावों का आरोपण किया जाता है, तब मानवीकरण अलंकार होता है।
उदाहरण: हरषाया ताल लाया पानी परात भरके।
यहाँ पर तालाब को एक मनुष्य की भांति वर्णित किया गया है कि वह हर्षित होकर जैसे पानी की परात भरकर लाया है।