हिंदी व्याकरण अध्याय 11 समास और उनके भेद

हिंदी व्याकरण अध्याय 11 समास और उनके भेद यहाँ दिए गए हैं ताकि विद्यार्थी इसका अच्छी तरह से अभ्यास कर सकें। समास दो या दो से अधिक शब्दों के संयोजन से बना एक नया शब्द है, जिसमें मूल शब्दों का लघु रूप होता है।

हिंदी व्याकरण – समास और उनके भेद

समास का तात्पर्य होता है – संछिप्तीकरण। इसका शाब्दिक अर्थ होता है छोटा रूप। अथार्त जब दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर जो नया और छोटा शब्द बनता है उस शब्द को समास कहते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जहाँ पर कम-से-कम शब्दों में अधिक से अधिक अर्थ को प्रकट किया जाए वह समास कहलाता है।
टिप्पणी: शब्दों के मेल में विभक्ति का लोप हो जाता है।
उदाहरण:
‘दिन और रात’ में तीन शब्द हैं इसको दूसरे तरीके से लिख सकते हैं अर्थात इसमें से विभक्ति ‘और’ को हटा देते हैं तो नया शब्द ‘दिन-रात’ बनता है जिसमें दो शब्द हैं।
उपरोक्त उदाहरण से हम कह सकते हैं कि – दो या दो से अधिक शब्दों के मेल और विभक्ति चिह्न के लोप से जो नए शब्द बंटे हैं उन्हें सामासिक या समस्त पद कहते हैं।
समस्त पद विग्रह
इसके विपरीत सामासिक शब्दों का सम्बंध व्यक्त करने वाले विभक्ति चिह्नों के साथ प्रकट करने अथवा लिखने वाली रीति को ‘विग्रह’ कहते हैं।
उदाहरण:
देशवासी का समस्त पद विग्रह देश के वासी है।
धनसंपन्न का समस्त पद विग्रह धन से संपन्न है।
तीर्थराज का समस्त पद विग्रह तीर्थों का राजा है।

समस्त पद या सामासिक पद
दो या दो से अधिक पदों के साथ प्रयुक्त विभक्ति चिह्नों या योजक पदों या अव्यय पदों का लोप करके बनाया गए नए पद को समस्त पद या सामासिक पद कहते हैं। समस्त पद में मुख्यतः दो पद होते हैं:
1. पूर्वपद
2. उत्तरपद
पहले पद को ‘पूर्वपद’ एवं दूसरे पद को ‘उत्तरपद’ कहते हैं।

समस्त पदपूर्वपद – उत्तरपदसमास विग्रह
माता-पितामाता – पितामाता और पिता
रसोईघररसोई – घररसोई के लिए घर
पूजाघरपूजा – घरपूजा के लिए घर
वनवासवन – वासवन में वास
नवरत्ननव – रत्ननौ रत्नों का समूह
धन-दौलतधन – दौलतधन और दौलत
चरणकमलचरण – कमलकमल के समान चरण

समास के भेद

समास के मुख्यतया चार भेद होते हैं:
समास के भेद उसमें प्रयुक्त होने वाले शब्दों की प्रधानता और अप्रधानता पर निर्भर करता है। अर्थात जिस समास में पूर्वपद प्रधान होता है, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। जिस समास में उत्तरपद प्रधान होता है, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जिसमें दोनों शब्द प्रधान होते हैं उसे द्वंद समास कहते हैं। तथा जिसमें कोई भी पद प्रधान नहीं होता उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं।
टिप्पणी: तत्पुरुष समास के दो स्वतंत्र भेद स्वीकार किये गए हैं: कर्मधारय समास, दिगु समास। विवेचना की दृष्टि से इन्हें भी अन्य समास के साथ अध्ययन करेंगे। इस प्रकार कुल छः समास हैं।
1. अव्ययीभाव समास
2. तत्पुरुष समास
3. द्वंद समास
4. बहुव्रीहि समास
5. दिगु समास
6. कर्मधारय समास

अव्ययीभाव समास
जहाँ प्रथम पद या पूर्व पद प्रधान हो तथा समस्त पद क्रिया विशेषण अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं।
उदाहरण:
समस्त पद – समास विग्रह
यथाशक्ति – शक्ति के अनुसार
यथासंभव – जैसा संभव हो
यथासमय – समय के अनुसार
आजीवन – जीवन भर
आजन्म – जन्म से
बेखबर – बिना खबर के
अपवाद: हिन्दी में बहुत सारे ऐसे समस्त पद हैं जिनमें कोई पद अव्यय नहीं होता है; परन्तु समस्त पद अव्यय की तरह प्रयुक्त होता है, वहाँ भी अव्ययीभाव समास माना जाता है।
उदाहरण:

समस्त पदसमास विग्रह
घर-घरघर के बाद घर
रातों-रातरात ही रात में
पल-पलप्रत्येक पल
एकाएकएक के तुरंत बाद एक
सरासरएक सिरे से, पूर्णतया
चराचरचार और अचर

तत्पुरुष समास

जिस समास में दूसरा पद प्रधान होता है, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं । इस समास में पहला शब्द बहुधा संज्ञा अथवा विशेषण होता है और इसके विग्रह में इस शब्द के साथ कर्ता और संबोधन कारकों को छोड़ शेष सभी कारकों की विभक्तियाँ लगती हैं।
तत्पुरुष समास के मुख्यतया दो भेद हैं:
1. व्याधिकरण तत्पुरुष समास
2. समानाधिकरण तत्पुरुष समास
व्याधिकरण तत्पुरुष समास
जिस तत्पुरुष समास के विग्रह में उसके अवयवों में भिन्न-भिन्न विभक्तियाँ लगाई जाती हैं, उसे व्याधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं। व्याधिकरण तत्पुरुष के प्रथम शब्द में जिस विभक्ति का लोप होता है, उसी के कारक के अनुसार इस समास का नाम होता है। इस प्रकार छः कारकों के आधार पर इस व्याधिकरण तत्पुरुष समास के भी छः भेद हैं:
(क) कर्म तत्पुरुष समास
(ख) करण तत्पुरुष समास
(ग) सम्प्रदान तत्पुरुष समास
(घ) अपादान तत्पुरुष समास
(ङ) सम्बंध तत्पुरुष समास
(च) अधिकरण तत्पुरुष समास
कर्म तत्पुरुष समास
जिस तत्पुरुष समास में कर्म कारक के कारक चिह्न ‘को’ का लोप हो जाता है उसे कर्म तत्पुरुष समास कहते हैं।
उदाहरण:
समस्त पद समास विग्रह
स्वर्गप्राप्त स्वर्ग को प्राप्त
सर्वप्रिय सर्व को प्रिय
जलपिपासु जल को पीने की इच्छा रखनेवाला
ग्रामगत ग्राम को गया हुआ
देशगत देश को गया हुआ
यश्प्राप्त यश को प्राप्त
शरणागत शरण को आया हुआ

करण तत्पुरुष समास
जिस तत्पुरुष समास में करण कारक के कारक चिन्ह (से, के, द्वारा) का लोप हुआ हो उसे करण तत्पुरुष समास कहते हैं।
उदाहरण:
समस्त पद – समास विग्रह
ईश्वरदत्त – ईश्वर द्वारा दिया हुआ
तुलसीकृत – तुलसी द्वारा रचित
कष्टसाध्य – कष्ट से साध्य
गुणहीन – गुण से हीन
मनमाना – मन से माना हुआ
गुणभरा – गुण से भरा हुआ
मुँहमाँगा – मुँह से माँगा गया
दुगुना – दो से गुणा
सम्प्रदान तत्पुरुष समास
जिस तत्पुरुष समास में सम्प्रदान कारक के कारक चिन्ह ‘के लिए’ का लोप हुआ हो उसे सम्प्रदान तत्पुरुष समास कहते हैं।
उदाहरण:
समस्त पद – समास विग्रह
गुरुदक्षिणा – गुरु के लिए दक्षिणा
रसोईघर – रसोई के लिए घर
सत्याग्रह – सत्य के लिए आग्रह
विद्यालय – विद्या के लिए आलय
हथकड़ी – हाथ के लिए कड़ी
देशभक्ति – देश के लिए भक्ति
बालामृत – बालकों के लिए अमृत
धर्मशाला – धर्म के लिए शाला
पुस्तकालय – पुस्तक के लिए आलय

अपादान तत्पुरुष समास
जिस तत्पुरुष समास में अपादान कारक के कारक चिन्ह ‘से’ का लोप हुआ हो उसे अपादान तत्पुरुष समास कहते हैं।
उदाहरण:
समस्त पद – समास विग्रह
जन्मांध – जन्म से अंधा
ऋणमुक्त – ऋण से मुक्त
पदच्युत – पद से च्युत
जातिभ्रष्ट – जाती से भ्रष्ट
बंधनमुक्त – बंधन से मुक्त
पथभ्रष्ट – पथ से भ्रष्ट
देशनिकाला – देश से निकाला
गुणहीन – गुण से हीन
संबंध तत्पुरुष समास
जिस तत्पुरुष समास में संबंध कारक के कारक चिन्ह ‘का’, ‘के’, ‘की’ का लोप हुआ हो उसे संबंध तत्पुरुष समास कहते हैं।
उदाहरण:
समस्त पद – समास विग्रह
गंगाजल – गंगा का जल
कार्यकर्ता – कार्य का कर्ता
जलधारा – जल की धारा
विद्याभ्यास – विद्या का अभ्यास
राजाज्ञा – राजा की आज्ञा
सेनापति – सेना का पति
राजमाता – राजा की माता
कन्यादान – कन्या का दान
राजकुमार – राजा का कुमार
विद्यासागर – विद्या का सागर

अधिकरण तत्पुरुष समास
जिस तत्पुरुष समास में अधिकरण कारक के कारक चिन्ह ‘में’, ‘पर’ का लोप हुआ हो उसे अधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं।
उदाहरण:

समस्त पदसमास विग्रह
घुड़सवारघोड़े पर सवार
क्षणभंगुरक्षण में भंगुर
रणधीररण में धीर
पुरुषोत्तमपुरुषों में उत्तम
सिरदर्दसिर में दर्द
ग्रामवासग्राम में वास
जलमग्नजल में मग्न
लोकप्रियलोक में प्रिय
कविश्रेष्ठकवियों में श्रेष्ठ
कृषिप्रधानकृषि में प्रधान

समानाधिकरण तत्पुरुष समास
तत्पुरुष समास का वह रूप जिसका समास-विग्रह करते समय पूर्व एवं उत्तर पद में एक ही विभक्ति (कर्ता कारक) का प्रयोग किया जाता है उसे समानाधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं। इस समास के अंतर्गत ‘कर्मधारय समास’ और ‘द्विगु समास आते हैं। इनका वर्णन बाड़ में किया जायेगा।

द्वंद समास

जिस समास में दोनों पद समान रूप से प्रधान हों, तथा दोनों पद योजक चिह्न ‘और’, ‘अथवा‘, ‘या’, ‘एवं’ लगता हो वह द्वंद समास कहलाता है।
उदाहरण:

समस्त पदसमास विग्रह
माता-पितामाता और पिता
नदी-नालेनदी और नाले
धन-दौलतधन एवं दौलत
लाभ-हानिलाभ या हानि
आग-पानीआग और पानी
गुण-दोषगुण और दोष
पाप-पुण्यपाप या पुण्य
आना-जानाआना और जाना
बहुव्रीहि समास

जिस समास के समस्तपदों में से कोई भी पद प्रधान नहीं हो एवं दोनों पद मिलकर किसी तीसरे पद की तरफ संकेत करते हों तो वह समास बहुव्रीहि समास कहलाता है।
दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि- बहुव्रीहि समास में आए पदों को छोड़कर जब किसी अन्य पदार्थ की प्रधानता हो तब उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं।
उदाहरण:
नीलकंठ नीला है कंठ जिसका
अर्थात शिव इस समास के पदों में कोई भी पद प्रधान नहीं है , बल्कि पूरा पद किसी अन्य पद का विशेषण होता है।
समस्त पद – समास विग्रह
त्रिलोचन – तीन हैं लोचन जिसके अर्थात् शिव
चतुरानन – चार है आनन जिसके अर्थात ब्रह्मा
चक्रपाणि – चक्र है पाणी में जिसके अर्थात विष्णु
हंसवाहिनी – हँस है वाहन जिसका अर्थात् सरस्वती
चतुर्भुज – चार है भुजाएं जिसकीअर्थात विष्णु
पंकज – पंक में जो पैदा हुआ हो अर्थात कमल
लंबोदर – लंबा है उद जिसका अर्थात गणेश
गिरिधर – गिरी को धारण करता है जो अर्थात कृष्ण
दिगंबर – दिशा है अंबर जिसका अर्थात् शिव
पितांबर – पीत हैं अंबर जिसका अर्थात कृष्ण
दशानन – दस हैं आनन जिसके अर्थात् रावण

द्विगु समास

जिस समास का पूर्व पद संख्यावाचक अर्थात गणना बोधक होता है तथा दूसरा पद प्रधान होता है एवं समस्तपद समूह का बोध कराए, उसे द्विगु समास कहते हैं।
उदाहरण:
समस्त पद – समास विग्रह
नवरत्न – नौ रत्नों का समूह
शताब्दी – सौ सालों का समूह
त्रिमूर्ति – तीन मूर्तियों का समूह
पंचतंत्र – पांच तंत्रों का समूह
सप्ताह – सात दिनों का समूह
त्रिवेणी – तीन वेणियों का समूह
त्रिभुज – तीन भुजाओं का समूह
टिप्पणी: अपवाद स्वरुप कुछ समस्त पदों में शब्द के अंत में संख्यावाचक शब्दांश आते हैं।
उदाहरण:
समस्त पद – समास विग्रह
पक्षद्वय – दो पक्षों का समूह
संकलनत्रय – तीन संकलनों का समूह

कर्मधारय समास

जिस तत्पुरुष समास के समस्त पद समान रूप से प्रधान हो, तथा दोनों पदों में विशेषण- विशेष्य या उपमेय-उपमान का सम्बंध हो वहां कर्मधारय समास होता है।
उदाहरण: विशेषण- विशेष्य
समस्त पद – समास विग्रह
महादेव – महान है जो देव
मृगनयनी – मृग के समान नयन
महापुरुष – महान है जो पुरुष
महाकाव्य – महान काव्य
उपमेय-उपमान
विद्यारत्न – विद्या ही रत्न है
चंद्रबदन – चंद्र के समान मुख
श्यामसुंदर – श्याम जो सुंदर है
क्रोधाग्नि – क्रोध रूपी अग्नि
नीलकंठ – नीला है जो कंठ
भवसागर – भाव रूपी सागर

कर्मधारय और बहुव्रीहि में अंतर

कर्मधारय समास में दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य तथा उपमान-उपमेय का सम्बंध होता है। इसमें शब्दार्थ प्रधान होता है। वहीं दूसरी तरफ बहुव्रीहि में समस्त पद के दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य का संबंध नहीं होता अपितु वह समस्त पद ही किसी अन्य संज्ञादि का विशेषण होता है।
उदाहरण:
नीलकंठ = नीला है जो कंठ (कर्मधारय समास)
नीलकंठ = नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव (बहुव्रीहि समास)

द्विगु और बहुव्रीहि समास में अंतर

द्विगु समास में पहला पद हमेशा संख्या वाचक विशेषण होता है जिसमें संख्या का प्रयोग होता है और दूसरा पद उसका विशेष्य होता है परंतु बहुव्रीहि समास में समस्त पद विशेषण बनकर किसी अन्य पद (संज्ञा) की ओर संकेत करता है।
चौराहा – चार रास्तों का समूह (द्विगु समास)
दशानन – दश आनन है जिसके अर्थात रावण ( बहुव्रीहि समास)