एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 4 वैज्ञानिक चेतना के वाहक चंद्रशेखर वेंकट रमन

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 4 वैज्ञानिक चेतना के वाहक चंद्रशेखर वेंकट रमन में नोबेल पुरस्कार विजेता भारतीय वैज्ञानिक के जीवन और उपलब्धियों पर आधारित प्रश्न दिए गए हैं। ये प्रश्न विद्यार्थियों को रमन की वैज्ञानिक जिज्ञासा, खोजों और प्रेरणादायी व्यक्तित्व को समझने में मदद करते हैं। प्रश्न अभ्यास से अध्याय के मुख्य तथ्य याद रखना आसान होता है। यह परीक्षा की तैयारी में सहायक है और छात्रों के आत्मविश्वास को बढ़ाता है।
कक्षा 9 हिंदी स्पर्श पाठ 4 के प्रश्न उत्तर
कक्षा 9 हिंदी स्पर्श पाठ 4 के अति-लघु उत्तरीय प्रश्न
कक्षा 9 हिंदी स्पर्श पाठ 4 के लघु उत्तरीय प्रश्न
कक्षा 9 हिंदी स्पर्श पाठ 4 के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

अभ्यास के प्रश्न उत्तर

वैज्ञानिक चेतना के वाहक चंद्रशेखर वेंकट रमन कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 4 के उत्तर

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –
1. कॉलेज के दिनों में रामन की दिली इच्छा क्या थी ?
उत्तर देखेंबचपन से ही रामन का मस्तिष्क विज्ञान के गूढ़ रहस्यों को सुलझाने के लिए बेचैन रहता था। अपने कॉलेज के जमाने से ही उन्होंने शोधकार्यों में दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया था। उनका पहला शोधपत्र फि़लॉसाफि़कल मैग्जीन में प्रकाशित हुआ था। उनकी दिली इच्छा तो यही थी कि कि वे अपना सारा जीवन शोधकार्यों को ही समर्पित कर दें।

2. वाद्ययंत्रो पर की गई खोजों से रामन् ने कौन-सी भ्रांति तोड़ने की कोशिश की ?
उत्तर देखेंवाद्ययंत्रो पर किए जा रहे शोधकार्यों के दौरान उनके अध्ययन के दायरे में जहाँ वायलिन, चैलो या पियानो जैसे विदेशी वाद्य यंत्रों, वहीं वीणा, तानपूरा और मृदंगम् पर भी उन्होंने काम किया। उन्होंने वैज्ञानिक सिद्धांतो के आधार पर पश्चिमी देशों की इस भ्रांति को तोड़ने की कोशिश की कि भारतीय वाद्ययंत्र विदेशी वाद्यों की तुलना में घटिया हैं।

3. रामन् के लिए नौकरी संबंधी कौन-सा निर्णय कठिन था ?
उत्तर देखेंमुखर्जी महोदय ने रामन् के समक्ष प्रस्ताव रखा कि वे सरकारी नौकरी छोड़कर कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर का पद स्वीकार कर लें। रामन् के लिए यह एक कठिन निर्णय था। उस जमाने के हिसाब से वे एक अत्यंत प्रतिष्ठित सरकारी पद पर थे, जिसके साथ मोटी तनख्वाह और अनेक सुविधाएँ जुड़ी हुई थीं। ऐसी हालत में सरकारी नौकरी छोड़कर कम वेतन और कम सुविधाओं वाली विश्वविद्यालय की नौकरी में आने का फ़ैसला करना हिम्मत का काम था।

4. सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् को समय-समय पर किन-किन पुरस्कारों से सम्मानित किया गया ?
उत्तर देखेंसर चंद्रशेखर वेंकट रामन् के सामने पुरस्कारों और सम्मानों की तो जैसे झड़ी-सी लगी रही। उन्हें सन् 1924 में रॉयल सोसाइटी की सदस्यता से सम्मानित किया गया। सन् 1929 में उन्हें ‘सर’ की उपाधि प्रदान की गई। ठीक अगले ही साल उन्हें विश्व के सर्वोच्च पुरस्कार भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अन्य कई पुरस्कार और मिले, जैसे रोम का मेत्यूसी पदक, रॉयल सोसाइटी का ह्यूज़ज पदक, सोवियत रूस का अंतर्राष्ट्रीय लेनिन पुरस्कार आदि। सन् 1954 में रामन् को देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। वे नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय वैज्ञानिक थे।

5. रामन् को मिलने वाले पुरस्कारों ने भारतीय-चेतना को जाग्रत किया। ऐसा क्यों कहा गया है?
उत्तर देखेंसर चंद्रशेखर वेंकट रामन के बाद यह पुरस्कार भारतीय नागरिकता वाले किसी अन्य वैज्ञानिक को अभी तक नहीं मिल पाया है। उन्हें अधिकांश सम्मान उस दौर में मिले जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था। उन्हें मिलने वाले सम्मानों ने भारत को एक नया आत्म-सम्मान और आत्म-विश्वास दिया। इस प्रकार उन्होंनें भारतीयों में नई चेतना को जाग्रत किया।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –
1. रामन् के प्रारंभिक शोधकार्य को आधुनिक हठयोग क्यों कहा गया है?
उत्तर देखेंकलकत्ता में सरकारी नौकरी के दौरान उन्होंने अपने स्वाभाविक रुझान को बनाए रखा।दफ्तर से फ़ुर्सत पाते ही वे लौटते हुए बहू बाजार आते, जहाँ ‘इंडियन एसोसिएशन फ़ॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस’ की प्रयोगशाला थी। यह अपने आपमें एक अनूठी संस्था थी, जिसे कलकत्ता के एक डॉक्टर महेंद्रलाल सरकार ने कई साल की कठिन मेहनत और लगन के बाद खड़ा किया था। रामन् इस संस्था की प्रयोगशाला में काम-चलाऊ उपकरणों का इस्तेमाल करते हुए शोधकार्य करते रहे। रामन की यह कठिन तपस्या अपने आप में एक आधुनिक हठयोग का उदाहरण थी जिसमें एक साधक दफ्तर में कड़ी मेहनत के बाद इस मामूली-सी प्रयोगशाला में पहुँचता और अपनी इच्छाशक्ति के दम पर कुछ नया करने का संकल्प लेता।

2. रामन् की खोज ‘रामन् प्रभाव’ क्या है? स्पष्ट कीजिए। ?
उत्तर देखेंरामन् ने अनेक ठोस रवों और तरल पदार्थों पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि जब एकवर्णीय प्रकाश की किरण किसी तरल या ठोस रवेदार पदार्थ से गुजरती है तो गुजरने के बाद उसके रंग में परिवर्तन आता है। क्योंकि एकवर्णीय प्रकाश की किरण जब तरल या ठोस पदार्थ से गुजरती है तो इनके अणु आपस में टकराते हैं और इस टकराव के बाद वे या तो ऊर्जा का कुछ अंश खो देते हैं या पा जाते हैं। दोनों ही स्थितियाँ प्रकाश के रंग में बदलाव लाती है।

3. ‘रामन् प्रभाव’ की खोज से विज्ञान के क्षेत्र में कौन-कौन से कार्य संभव हो सके?
उत्तर देखेंरामन् प्रभाव की वजह से पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन सहज हो गया। पहले इस काम के लिए इन्फ्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाता था। यह मुश्किल तकनीक थी और गलतियों की संभावना बहुत अधिक रहती थी। रामन् की खोज के बाद पदार्थों की आणविक और परमाणविक संरचना के अध्ययन के लिए रामन् स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाने लगा। यह तकनीक एकवर्णीय प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन के आधार पर, पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की संरचना की सटीक जानकारी देती है। इस जानकारी की वजह से पदार्थों का संश्लेषण प्रयोगशाला में करना तथा अनेक उपयोगी पदार्थां का कृत्रिम रूप से निर्माण संभव हो गया।

4. देश को वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन प्रदान करने में सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् के महत्त्वपूर्ण योगदान पर प्रकाश डालिए।
उत्तर देखेंरामन ने एक अत्यंत उन्नत प्रयोगशाला और शोध-संस्थान की बैंगलोर में स्थापना की जो ‘रामन् रिसर्च इंस्टीट्यूट’ नाम से जानी जाती है। भौतिकी में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने इंडियन जरनल ऑफ़ फि़जिक्सज् नामक शोध-पत्रिका प्रारंभ की तथा सैकड़ों शोध-छात्रो का मार्गदर्शन किया। जिस प्रकार एक दीपक से अन्य कई दीपक जल उठते हैं, उसी प्रकार उनके शोध-छात्रो ने आगे चलकर काफ़ी अच्छा काम किया और उच्च पदों पर प्रतिष्ठित होकर और अपने गुरू का नाम रोशन किया । विज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए रामन करेंट साइंस नामक एक पत्रिका का भी संपादन करते रहे।

5. सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् के जीवन से प्राप्त होने वाले संदेश को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर देखेंरामन् वैज्ञानिक चेतना और दृष्टि की साक्षात प्रतिमूर्ति थे। उन्होंने युवाओं तथा देश को हमेशा ही यह संदेश दिया कि हमें अपने आसपास घट रही विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं की छानबीन एक वैज्ञानिक दृष्टि से करनी चाहिए। उन्होंने अपनी इसी सोच के कारण ही संगीत के सुर-ताल और प्रकाश की किरणों की आभा के अंदर से वैज्ञानिक सिद्धांत खोज निकाले। हमारे आसपास ऐसी न जाने कितनी ही वस्तुएं हैं जिनकी सही पहचान होना बाकी है एक वैज्ञानिक सोच ही उसे सही पहचान दे सकती है।

कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 4 के आशय स्पष्ट करने वाले प्रश्न उत्तर

(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए –
1. उनके लिए सरस्वती की साधना सरकारी सुख-सुविधाओं से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण थी।
उत्तर देखेंरामन के लिए मॉ सरस्वती की साधाना करना लक्ष्मी की साधना करने से ज्यादा आसान था । इसीलिए उन्होंने सुख सुविधााओं वाली सरकारी नौकरी को छोड़कर कम वेतन वाली प्राफ़ेसर की नौकर को चुना और अपने अन्दर की जिज्ञासा को शांत करने के लिए जीवन भर प्रयत्नशील रहे और पूरी दुनिया को वह देकर चले गए जो एक सुख-सुविधााओं की चाह रखने वाला कभी नहीं दे सकता था।

2. हमारे पास ऐसी न जाने कितनी ही चीजें बिखरी पड़ी हैं, जो अपने पात्र की तलाश में हैं।
उत्तर देखेंरामन का कहना था कि हमें आसपास की चीजों को ध्यानपूर्वक देखना चाहिए। और एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ उसका अध्ययन करना चाहिए । हो सकता है हमारे प्रयास से उस वस्तु की उपयोगिता सबके सामने प्रकट हो जाए और वह समाज के लिए उपयोगी बन सके।

3. यह अपने आपमें एक आधुनिक हठयोग का उदाहरण था।
उत्तर देखेंरामन दफ्तर में दिन भर कड़ी मेहनत करने के बाद अपने स्वाभाविक रुझान को बनाए रखते हुए एक प्रयोगशाला में कामचलाऊ उपकरणों का इस्तेमाल करते हुए शोधकार्य करते। जो उनके हठयोग को दर्शाता है, जो उनकी इच्छाशक्ति के आगे नत-मस्तक था।

कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 4 वैज्ञानिक चेतना के वाहक चंद्रशेखर वेंकट रमन पर आधारित अति-लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर।

कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 4 अति-लघु उत्तरीय प्रश्न-उत्तर

1. चंद्रशेखर वेंकट रामन् का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर देखेंरामन् का जन्म 7 नवंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली नगर में हुआ था।

2. रामन् के पिता किस पेशे से जुड़े थे?
उत्तर देखेंउनके पिता विशाखापत्तनम् में गणित और भौतिकी के शिक्षक थे।

3. रामन् की उच्च शिक्षा कहाँ से हुई थी?
उत्तर देखेंउन्होंने बी.ए. और एम.ए. की पढ़ाई प्रेसीडेंसी कॉलेज, मद्रास से की।

4. रामन् का पहला शोधपत्र कहाँ प्रकाशित हुआ था?
उत्तर देखेंउनका पहला शोधपत्र फिलॉसॉफिकल मैगजीन नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।

5. रामन् ने सरकारी नौकरी किस विभाग में की?
उत्तर देखेंउन्होंने भारत सरकार के वित्त-विभाग में अधिकारी के रूप में कार्य किया।

6. सरकारी नौकरी के साथ रामन् कहाँ शोध करते थे?
उत्तर देखेंवे बहू बाजार स्थित इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस की प्रयोगशाला में शोध करते थे।

7. वाद्ययंत्रों पर रामन् ने क्या सिद्ध किया?
उत्तर देखेंउन्होंने वैज्ञानिक आधार पर सिद्ध किया कि भारतीय वाद्ययंत्र विदेशी वाद्यों से किसी भी दृष्टि से कमतर नहीं हैं।

8. किसने रामन् को विश्वविद्यालय में नौकरी का प्रस्ताव दिया?
उत्तर देखेंप्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री सर आशुतोष मुखर्जी ने उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्राध्यापक बनने का प्रस्ताव दिया।

9. समुद्र का नीला रंग किस वर्ष रामन् की जिज्ञासा का विषय बना?
उत्तर देखेंवर्ष 1921 की समुद्र यात्रा के दौरान यह प्रश्न उनके मन में गहराया।

10. किस खोज ने रामन् को विश्वविख्यात बनाया?
उत्तर देखेंरामन् प्रभाव की खोज ने उन्हें विश्वविख्यात वैज्ञानिक बना दिया।

11. प्रकाश के कणों को क्या कहा जाता है?
उत्तर देखेंप्रकाश के सूक्ष्म कणों को ‘फोटॉन’ कहा जाता है।

12. रामन् प्रभाव से क्या अध्ययन संभव हुआ?
उत्तर देखेंइससे पदार्थों की आणविक और परमाणविक संरचना का अध्ययन संभव हुआ।

13. रामन् को नोबेल पुरस्कार कब मिला?
उत्तर देखेंउन्हें भौतिकी में नोबेल पुरस्कार वर्ष 1930 में मिला।

14. रामन् रिसर्च इंस्टीट्यूट कहाँ स्थित है?
उत्तर देखेंयह शोध-संस्थान बंगलोर में स्थित है।

15. रामन् की मृत्यु कब हुई?
उत्तर देखेंउनकी मृत्यु 21 नवंबर 1970 को हुई।

कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 4 वैज्ञानिक चेतना के वाहक चंद्रशेखर वेंकट रमन के लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर।

कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 4 लघु उत्तरीय प्रश्न-उत्तर

1. रामन् प्रभाव क्या है और यह क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर देखेंरामन् प्रभाव वह घटना है जिसमें एकवर्णीय प्रकाश की किरण किसी ठोस या तरल से गुजरते समय अणुओं से टकराकर अपनी ऊर्जा खोती या पाती है, जिससे उसके वर्ण में परिवर्तन हो जाता है। यह महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि इससे पदार्थों की आणविक और परमाणविक संरचना का अध्ययन सरल और सटीक हो गया।

2. रामन् ने वाद्ययंत्रों पर किस प्रकार शोध किया?
उत्तर देखेंरामन् ने भारतीय और विदेशी दोनों प्रकार के वाद्ययंत्रों का वैज्ञानिक अध्ययन किया। उन्होंने वायलिन, पियानो जैसे विदेशी वाद्यों के साथ-साथ वीणा, तानपूरा और मृदंगम् जैसे भारतीय वाद्यों पर शोध किया। उन्होंने सिद्ध किया कि भारतीय वाद्ययंत्र किसी भी प्रकार से विदेशी वाद्यों से कमतर नहीं हैं।

3. रामन् ने सरकारी नौकरी क्यों छोड़ी?
उत्तर देखेंसरकारी नौकरी प्रतिष्ठित और सुविधाजनक थी, फिर भी सर आशुतोष मुखर्जी के प्रस्ताव पर उन्होंने 1917 में कलकत्ता विश्वविद्यालय का पद स्वीकार किया। उनके लिए ज्ञान, शोध और अध्यापन सरकारी सुख-सुविधाओं से कहीं अधिक महत्वपूर्ण थे। यही निर्णय उनके जीवन की बड़ी उपलब्धियों का आधार बना।

4. समुद्र का नीला रंग देखकर रामन् के मन में क्या विचार आया?
उत्तर देखें1921 की समुद्र यात्रा में वे नीले समुद्र को निहारते हुए सोचने लगे कि आखिर समुद्र का रंग नीला ही क्यों होता है, कोई और क्यों नहीं? इसी जिज्ञासा ने उन्हें प्रयोगों की ओर प्रेरित किया और आगे चलकर यह ‘रामन् प्रभाव’ की खोज में परिवर्तित हुई।

5. रामन् की खोज ने आइंस्टाइन के विचारों को कैसे प्रमाणित किया?
उत्तर देखेंआइंस्टाइन ने कहा था कि प्रकाश तरंग नहीं बल्कि सूक्ष्म कणों (फोटॉनों) का प्रवाह है। रामन् प्रभाव ने यह सिद्ध कर दिया कि फोटॉनों की ऊर्जा में परिवर्तन से प्रकाश का रंग बदलता है। इस प्रकार आइंस्टाइन की धारणा का प्रत्यक्ष प्रमाण रामन् के प्रयोगों ने दिया।

6. रामन् की खोज से विज्ञान को क्या लाभ हुआ?
उत्तर देखेंरामन् प्रभाव से पदार्थों की आणविक और परमाणविक संरचना का अध्ययन सरल हो गया। पहले इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी पर निर्भरता थी, जिसमें गलतियों की संभावना अधिक थी। अब रामन् स्पेक्ट्रोस्कोपी ने प्रयोगशालाओं में पदार्थों के संश्लेषण और नए उपयोगी पदार्थों के निर्माण को आसान बना दिया।

7. रामन् को कौन-कौन से प्रमुख पुरस्कार मिले?
उत्तर देखेंउन्हें 1924 में रॉयल सोसाइटी की सदस्यता, 1929 में ‘सर’ की उपाधि, 1930 में नोबेल पुरस्कार, ह्यूज पदक, फ्रैंकलिन पदक, लेनिन पुरस्कार और अन्य अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिले। 1954 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। ये पुरस्कार भारत के लिए गौरव और आत्मविश्वास का स्रोत बने।

8. रामन् का भारतीय संस्कृति से कैसा लगाव था?
उत्तर देखेंअंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि के बाद भी उन्होंने अपनी भारतीय पहचान बनाए रखी। वे सादा दक्षिण भारतीय वेशभूषा पहनते, शाकाहारी थे और मदिरा से परहेज करते थे। यहाँ तक कि नोबेल पुरस्कार समारोह में भी उन्होंने शराब पीने से इंकार कर दिया। इससे उनकी भारतीय संस्कृति और मूल्यों के प्रति गहरी निष्ठा झलकती है।

9. विज्ञान के प्रचार-प्रसार हेतु रामन् ने क्या प्रयास किए?
उत्तर देखेंरामन् ने रामन् रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की, इंडियन जर्नल ऑफ़ फिजिक्स और करेंट साइंस जैसी पत्रिकाओं का संपादन किया। उन्होंने सैकड़ों शोध छात्रों का मार्गदर्शन किया। उनके मार्गदर्शन से अनेक छात्र प्रतिष्ठित वैज्ञानिक बने। उन्होंने विज्ञान को भारत में नई चेतना और पहचान दिलाई।

10. रामन् के जीवन से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर देखेंउनका जीवन संदेश देता है कि हमें अपने आसपास की प्राकृतिक घटनाओं को केवल भावनात्मक दृष्टि से नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से देखना चाहिए। जिज्ञासा और प्रयोगशीलता से ही ज्ञान के नए द्वार खुलते हैं। रामन् की तरह हमें भी अज्ञात रहस्यों की खोज में लगना चाहिए।

कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 4 वैज्ञानिक चेतना के वाहक चंद्रशेखर वेंकट रमन के लिए दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर।

कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 4 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-उत्तर

1. चंद्रशेखर वेंकट रामन् के जीवन का प्रारंभिक परिचय तथा उनकी शिक्षा पर प्रकाश डालिए।
उत्तर देखेंचंद्रशेखर वेंकट रामन् का जन्म 7 नवंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में हुआ। उनके पिता गणित और भौतिकी के अध्यापक थे, इसलिए बचपन से ही उन्हें इन विषयों का गहरा ज्ञान मिला। प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने ए.बी.एन. कॉलेज तिरुचिरापल्ली से पढ़ाई की और आगे चलकर प्रेसीडेंसी कॉलेज, मद्रास से बी.ए. तथा एम.ए. की डिग्री प्राप्त की। दोनों परीक्षाओं में उन्होंने उच्च अंक अर्जित किए और अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। छात्र जीवन से ही उनमें वैज्ञानिक जिज्ञासा प्रबल थी। उनका पहला शोधपत्र फिलॉसॉफिकल मैगजीन नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ। उनकी नींव इतनी मजबूत थी कि आगे चलकर यही शिक्षा उनके महान वैज्ञानिक बनने की आधारशिला सिद्ध हुई। रामन् का मस्तिष्क हमेशा प्राकृतिक घटनाओं के रहस्यों को सुलझाने के लिए तत्पर रहता था। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा ने उनके वैज्ञानिक दृष्टिकोण और अनुसंधान की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

2. समुद्र यात्रा के दौरान रामन् के मन में उठे प्रश्न और उनकी खोज का वर्णन कीजिए।
उत्तर देखेंसन् 1921 में रामन् समुद्री यात्रा पर निकले। जहाज के डेक पर खड़े होकर वे घंटों समुद्र की नीली आभा को निहारते रहते। वे केवल प्रकृति-प्रेमी नहीं, बल्कि वैज्ञानिक भी थे। उनके मन में जिज्ञासा उठी—“समुद्र का रंग नीला ही क्यों है?” यही प्रश्न उनकी खोज का बीज साबित हुआ। भारत लौटने के बाद उन्होंने प्रकाश के व्यवहार पर गहन अध्ययन किया और अनेक प्रयोग किए। उन्होंने पाया कि जब एकवर्णीय प्रकाश किसी ठोस या तरल पदार्थ से गुजरता है तो अणुओं से टकराकर ऊर्जा में परिवर्तन करता है, जिससे प्रकाश के रंग में बदलाव आ जाता है। इस घटना को बाद में रामन् प्रभाव कहा गया। इस खोज ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाई। यह केवल वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं था, बल्कि भारत की वैज्ञानिक क्षमता का भी प्रमाण बना। समुद्र की नीली आभा के रहस्य ने उन्हें इतिहास के पन्नों में अमर कर दिया।

3. रामन् प्रभाव का वैज्ञानिक महत्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर देखेंरामन् प्रभाव प्रकाश के बिखराव से संबंधित एक क्रांतिकारी खोज है। इसमें एकवर्णीय प्रकाश की किरणें किसी पदार्थ से गुजरने पर अणुओं से टकराती हैं और उनकी ऊर्जा में परिवर्तन हो जाता है। परिणामस्वरूप प्रकाश का वर्ण (रंग) बदल जाता है। इस खोज से यह सिद्ध हुआ कि प्रकाश केवल तरंग नहीं, बल्कि फोटॉनों नामक सूक्ष्म कणों की धारा है। इस प्रकार रामन् प्रभाव ने आइंस्टाइन की धारणा का प्रत्यक्ष प्रमाण दिया। इसका महत्व इस बात में है कि अब पदार्थों की आणविक और परमाणविक संरचना का अध्ययन सरल हो गया। पहले इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी जैसी कठिन तकनीक पर निर्भर रहना पड़ता था, जिसमें गलतियों की संभावना अधिक थी। परंतु रामन् स्पेक्ट्रोस्कोपी ने पदार्थों के संश्लेषण और नए उपयोगी पदार्थों के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया। यह खोज भौतिकी की दुनिया में मील का पत्थर सिद्ध हुई और भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैज्ञानिक पहचान दिलाने में सहायक बनी।

4. विज्ञान के प्रचार-प्रसार और शोध संस्थानों की स्थापना में रामन् का योगदान बताइए।
उत्तर देखेंरामन् केवल प्रयोगशाला तक सीमित वैज्ञानिक नहीं थे, बल्कि विज्ञान के प्रचार-प्रसार और शोध-संस्थानों के विकास के प्रति भी गहरी निष्ठा रखते थे। उन्हें अपने शुरुआती दिन याद थे जब संसाधनों के अभाव में उन्हें संघर्ष करना पड़ा। इसलिए उन्होंने भविष्य की पीढ़ी को बेहतर अवसर दिलाने का प्रयास किया। उन्होंने बंगलोर में रामन् रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की, जो विश्वस्तरीय शोध केंद्र है। उन्होंने इंडियन जर्नल ऑफ़ फिजिक्स जैसी शोध पत्रिका की शुरुआत की और करेंट साइंस पत्रिका का संपादन भी किया। इन पत्रिकाओं ने भारतीय वैज्ञानिकों को मंच प्रदान किया। उन्होंने सैकड़ों शोध छात्रों का मार्गदर्शन किया, जिनमें से कई आगे चलकर प्रतिष्ठित वैज्ञानिक बने। उनके प्रयासों से भारत में वैज्ञानिक चेतना और अनुसंधान का स्तर ऊँचा उठा। इस प्रकार, संस्थानों और पत्रिकाओं के माध्यम से उन्होंने विज्ञान को जन-जन तक पहुँचाने का कार्य किया।

5. रामन् के जीवन से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर देखेंरामन् का जीवन हमें जिज्ञासा, परिश्रम और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है। उन्होंने साधारण परिस्थितियों और सीमित साधनों में भी बड़े-बड़े प्रयोग किए और महान खोज की। वे हमेशा भारतीय संस्कृति से जुड़े रहे और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध होने के बाद भी सादगीपूर्ण जीवन जीते। उनका संदेश स्पष्ट था कि हमें प्राकृतिक घटनाओं की छानबीन वैज्ञानिक दृष्टि से करनी चाहिए। वे मानते थे कि विज्ञान केवल प्रयोगशाला की चारदीवारी तक सीमित नहीं है, बल्कि हमारे चारों ओर व्याप्त है। रामन् ने यह भी दिखाया कि देशभक्ति और वैज्ञानिक चेतना साथ-साथ चल सकती हैं। उनके जीवन से हमें प्रेरणा मिलती है कि कठिनाइयों से घबराए बिना ज्ञान की खोज में लगे रहना चाहिए। यही मार्ग हमें आत्मनिर्भर और प्रगतिशील बना सकता है। उनका जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए सदैव प्रेरणा का स्रोत रहेगा।