एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 3 तुम कब जाओगे अतिथि
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 3 तुम कब जाओगे अतिथि में व्यंग्य और हास्य पर आधारित प्रश्न शामिल हैं। यह अध्याय शरद जोशी की लेखनी से अतिथियों की आदतों और मेजबानों की परेशानियों को मज़ाकिया ढंग से प्रस्तुत करता है। दिए गए प्रश्न उत्तर और एमसीक्यू विद्यार्थियों को मुख्य प्रसंग, संवाद और हास्य का प्रभाव समझने में मदद करते हैं। इन प्रश्नों का अभ्यास करने से परीक्षा की तैयारी मजबूत होती है और उत्तर देने की सटीकता व आत्मविश्वास बढ़ता है।
कक्षा 9 हिंदी स्पर्श पाठ 3 के प्रश्न उत्तर
कक्षा 9 हिंदी स्पर्श पाठ 3 के अति-लघु उत्तरीय प्रश्न
कक्षा 9 हिंदी स्पर्श पाठ 3 के लघु उत्तरीय प्रश्न
कक्षा 9 हिंदी स्पर्श पाठ 3 के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
अभ्यास के प्रश्न उत्तर
तुम कब जाओगे अतिथि कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 3 के अभ्यास के प्रश्न उत्तर
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –
1. लेखक अतिथि को कैसी विदाई देना चाहता था?
उत्तर देखेंलेखक अतिथि को भाव-भीनी विदाई देना चाहता था , वह चाहता था कि जब अतिथि उसके घर से जाए तो वह यहाँ की एक अच्छी सी तसवीर अपने मन में लेकर जाए वह उसको जबरदस्ती कुछ और दिन रुकने को कहेगा और अतिथि के न मानने पर वह सपरिवार उसे नम आँखों से रेलगाड़ी में बैठाकर आएगा।
2. पाठ में आए निम्नलिखित कथनों की व्याख्या कीजिए।
(क) अंदर ही अंदर कहीं मेरा बटुआ काँप गया।
उत्तर देखेंजब लेखक के घर में अनचाहा अतिथि आ गया तो इस खयाल से कि उसे अतिथि की खूब खातिरदारी करनी पड़ेगी इस महँगाई के दौर में घर चलाना ही बड़ा मुशिकल हो रहा है ऐसी स्थिति में अंदर ही अंदर लेखक का बटुआ काँप गया।
(ख) अतिथि सदैव देवता नहीं होता, वह मानव और थोड़े अंशो में राक्षस भी हो सकता हैं।
उत्तर देखेंहमारी भारतीय संस्कृति में अतिथि को देवता माना जाता है । वह इसलिए क्योंकि अतिथि जब भी किसी के घर आता है तो उसका आगमन किसी देवता के आगमन से कम नहीं माना जाता है और उसका सत्कार भी किसी देवता की भाँति किया जाता है । लेकिन जब वही अतिथि परेशानी का कारण बन जाए तो किसी हद तक वह धीरे-धीरे राक्षस का रूप धाारण कर लेता है।
(ग) लोग दूसरे के होम की स्वीटनेस को काटने न दौड़ें ।
उत्तर देखेंघर को स्वीट-होम इसलिए कहा जाता है क्योंकि व्यक्ति को अपने घर में जो खुशी का माहौल मिलता है वह अन्य कहीं नहीं मिलता है । यही माहौल जब किसी के कारण बिगड़ जाता है तो धीरे-धीरे खुशी भी कम होने लगती है । अतः लोग दूसरे के घर की खुशीयों के माहौल कों खराब करने का करण न बनें।
(घ) मेरी सहनशीलता की वह अंतिम सुबह होगी ।
उत्तर देखेंलेखक अपने अतिथि को पिछले चार दिनों से झेल रहा था, और नौबत पकवान से लेकर खिचड़ी तक आ गई थी दोनों के मधय वार्तालाप भी बंद हो गया था लेखक मन ही मन अतिथि को कोस रहा था। अब वह मानने लगा था कि अगली सुबह यदि अतिथि नहीं गया तो उसकी सहनशीलता जवाब दे जाएगी और हो सकता है कि वह उसे अपमानित करके भी विदा कर दे।
(ङ) एक देवता और एक मनुष्य अधिक देर तक साथ नहीं रह सकते ।
उत्तर देखेंदेवता और मनुष्य दोनों अपने -अपने स्थान पर ही अच्छे लगतें हैं । देवता मंदिर में और मनुष्य समाज में अतिथि को देवता इसलिए कहते हैं कि वह कहीं पर भी थोड़ी देर के लिए जाकर वहाँ की खुशीयों को बढ़ा देता है और वैसे ही चला जाता है जैसे कि भगवान भक्त को दर्शन देकर चले जाते हैं दोनों में दूरी के कारण ही दोंनों में प्रेम भाव बना हुआ है साथ रहने से दोनों के बीच मन-मुटाव बढ़ सकता है।
कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 3 के 50-60 शब्दों के उत्तर
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –
1. कौन सा आघात अप्रत्याशित था और उसका लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर देखेंलेखक अतिथि से ऊब चुका था वह यह चाहता था कि किसी तरह सम्मान के साथ वह विदा हो जाए , मगर जब अतिथि ने कहा कि वह धाोबी से अपने कपड़े धुलवाना चाहता है। यह आघात लेखक के लिए अप्रत्याशित था और ऐसी पीड़ा देने वाला था जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी । लेखक चाहता था कि अतिथि जल्दी से जल्दी चला जाए मगर कपड़े धुलवाने का मतलब अतिथि अभी और रुकना चाहता था जो कि लेखक के लिए असहनीय होता जा रहा था।
2. सम्बंधो का संक्रमण के दौर से गुजरना’- इस पंक्ति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर देखें‘सम्बंधो का संक्रमण के दौर से गुजरना’ का आशय है कि सम्बंधो में दूरी, मन-मुटाव या खटास आ जाना लेखक के घर जब अतिथि आया था तब लेखक ने उसका खूब आदर सत्कार किया हँसी ठहाके गूँजने लगे घर में चारों तरफ़ खुशी का माहौल सा छा गया, लेकिन जब अतिथि ज्यादा देर रुककर बोझ बनने लगा तो घर के लोग उससे कटे कटे से रहने लगे और यही मनाने लगे कि अतिथि कब यहाँ से जाएगा यही संक्रमण का दौर था।
3. जब अतिथि चार दिन तक नहीं गया तो लेखक के व्यवहार में क्या-क्या परिवर्तन आये ?
उत्तर देखेंअतिथि के चार दिनों तक भी न जाने से लेखक के व्यवहार बहुत बड़ा अंतर आ गया हँसी मजाक से “शुरू हुई बातचीत धीरे-धीरे दूरी ओर खमोशी” में बदलने लगी अच्छे भोजन से खिचड़ी पर आ गए । लेखक मन ही मन अतिथि को कोसने लगा, मन में जो प्रेम के भाव थे, उन्होंने अब गालियों का रूप ले लिया था और लेखक अतिथि को गेट आउट तक कहने को तैयार हो गया।
कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 3 तुम कब जाओगे अतिथि पर आधारित अति-लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर।
कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 3 अति-लघु उत्तरीय प्रश्न-उत्तर
1. लेखक किसे “अतिथि” कहकर बुला रहा है?
उत्तर देखेंलेखक अपने घर ठहरे हुए एक अनचाहे, लम्बे समय तक रुके हुए मेहमान को “अतिथि” कहता है, जो सहजता से बैठा है पर जाने का इरादा नहीं दिखाता।
2. लेखक को अतिथि के ठहरने में क्या असुविधा हुई?
उत्तर देखेंअतिथि के लगातार ठहरने से घर की दिनचर्या बिगड़ी, आत्मीयता बोरियत में बदली, आर्थिक और भावनात्मक सीमा पर दबाव पड़ा तथा परिवार की सहनशीलता घटती चली गई।
3. कैलेंडर और तारीखों का क्या संकेत है?
उत्तर देखेंकैलेंडर तारीखें बदलकर लेखक यह दिखाता है कि अतिथि कितने दिनों से ठहरा है; यह समय के गुजरने और अतिथि के लंबे प्रवास का प्रतीक है।
4. लेखक ने अतिथि के आने पर क्या स्वागत किया था?
उत्तर देखेंलेखक ने गर्मजोशी से गले लगाया, पत्नी ने नमस्ते किया, रात का भोजन बढ़िया बनाया — साधरण भोजन को विशेष मेहमाननवाजी में बदल दिया गया।
5. दूसरे दिन लेखक ने क्या उम्मीद की थी?
उत्तर देखेंलेखक उम्मीद करता था कि अतिथि अगले दिन चले जाएगा और वह साधारण परिपाटी के अनुसार स्नेहपूर्वक विदा लेगा, पर अतिथि न रहा और ठहरा रहा।
6. तीसरे दिन अतिथि ने क्या कहा जिसने लेखक को आघात दिया?
उत्तर देखेंतीसरे दिन अतिथि ने कहा कि वह धोबी को कपड़े देना चाहता है — यानी वह और समय के लिए रहना चाहता था, जिससे लेखक के लिए सहनशीलता टूटी।
7. पत्नी की आँखों में बड़ा होना किस भावना का संकेत है?
उत्तर देखेंपत्नी की बड़ी हुई आँखें आशंका और भय दर्शाती हैं — उसे डर है कि अतिथि और अधिक दिनों तक रहेगा और उनका निजी जीवन प्रभावित होगा।
8. अतिथि के व्यवहार से क्या बदल गया?
उत्तर देखेंपहले हँसी-ठहाके थे; पर अब बातचीत सूनी सी, मुस्कान फीकी और पारिवारिक विषयों पर जीवन-रस घट गया — आतिथ्य गर्मजोशी से बोझ बन गया।
9. लेखक के मन में अतिथि को लेकर क्या विरोधाभास था?
उत्तर देखेंलेखक आतिथ्य का आदर करता है पर व्यक्तिगत सीमा भी चाहते; अतिथि को देवता मानने की परंपरा और मानवीय सहनशीलता के बीच द्वन्द है।
10. “हाईटाइम” शब्द से लेखक क्या समझाता है?
उत्तर देखें“हाईटाइम” अर्थात अतिथि के जाने का उपयुक्त, आवश्यक समय — वह पल जब अतिथि को सम्मानपूर्वक लौट जाना चाहिए था ताकि संतुलन बन सके।
11. लेखक अतिथि को कब तक टिकने देगा?
उत्तर देखेंलेखक चाहते हैं कि अतिथि पाँचवें दिन तक चले जाए; पाँचवाँ सूर्य आने पर उनकी सहनशीलता समाप्त होने का संकेत है — वह अंतिम सहनशीलता सुबह म्हणते हैं।
12. लेखक के मुताबिक अतिथि के जाने से क्या हिसाब जुड़ा है?
उत्तर देखेंलेखक बार-बार तारीखें बदलकर यह गिनता है कि यह चौथा दिन है; अतिथि के जाने का उचित समय न गिन पाने से परिवार की आर्थिक और भावनात्मक सीमाएँ दबती हैं।
13. लेखक अतिथि को देवता क्यों मानता है फिर भी विदा चाहता है?
उत्तर देखेंपरम्परा कहती है “अतिथि देवो भव”; पर लेखक मानता है कि देवत्व दर्शन देकर लौटता है — बहुत दिनों तक ठहरना विनम्रता की सीमा लांघता है, इसलिए विदा जरूरी है।
14. आख़िर लेखक अतिथि से किस तरह विदा चाहता है?
उत्तर देखेंसम्मान और शराफ़त बनाए रखकर; अतिथि को चुम्बकीय किरणों वाले अगले दिन सम्मानपूर्वक लौटने का आग्रह करता है ताकि उनका देवत्व बना रहे और घर सामान्य हो जाए।
15. कहानी का मुख्य भाव क्या है?
उत्तर देखेंमुख्य भाव अतिथि-आतिथ्य के बीच संतुलन की आवश्यकता है — मेहमान के सम्मान और घर की निजता, आर्थिक-भावनात्मक सीमाओं का संतुलन होना चाहिए।
कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 3 तुम कब जाओगे अतिथि के लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर।
कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 3 लघु उत्तरीय प्रश्न-उत्तर
1. लेखक ने अतिथि के ठहरने का समय कैसे मापा और वह क्यों चिंतित हुआ?
उत्तर देखेंलेखक कैलेंडर की तारीखें लगातार बदलकर दिन गिनता रहा; उसने बताया कि यह चौथा दिन है। चिंता इसलिए कि अतिथि की उपस्थिति लम्बे समय तक घर की व्यवस्था, आर्थिक संसाधन और पारिवारिक मानसिकता पर प्रभाव डाल रही थी — स्वागत का उत्साह धीरे-धीरे थकान और बोरियत में बदल गया, जिससे लेखक की सहनशीलता सीमांत पर पहुँच गई।
2. अतिथि के “धोबी को कपड़े देना” कहने का प्रतीकात्मक अर्थ क्या है और लेखक कैसे प्रभावित हुआ?
उत्तर देखेंयह वाक्य प्रतीक है अतिथि की अस्थायी शिथिलता का — जैसे वह और रहने का इरादा जाहिर कर रहा हो। लेखक के लिए यह झटका था क्योंकि उसने अतिथि को देवता सरीखा अस्थायी मान कर आदर दिया था; पर अब वह स्थायी रूप से घर पर बसने जैसा व्यवहार कर रहा था, जिससे लेखक को झटका और घबराहट हुई।
3. लेखक और उसकी पत्नी के बीच अतिथि को लेकर मनोवैज्ञानिक प्रभाव क्या थे?
उत्तर देखेंलेखक में संशय और सीमाओं की चिंता बढ़ी; पत्नी की आँखों में भय और आशंका झलकती है। उनकी शुरुआत में जो आत्मीयता और उत्साह था, वह बदलकर डर और अज्ञात भविष्य की चिंता बन गया — पारिवारिक अंतरंगता पर अनवांछित हस्तक्षेप का प्रभाव स्पष्ट है।
4. पाठ में “देवता और मनुष्य” के विचार का क्या तात्पर्य निकाला जा सकता है?
उत्तर देखेंलेखक कहता है अतिथि देवता होता है पर वह भी मनुष्य है; देवता दर्शन देकर लौटता है जबकि मनुष्य लगातार रुक सकता है और सीमाएँ पार कर देता है। अतिथि के लंबे प्रवास ने दिखाया कि आदर्शात्मक ‘अतिथि देवो भव’ भी व्यावहारिक सीमाओं से टकरा सकता है।
5. लेखक ने अपने स्वागत में क्या-क्या किये और उनके करने का मकसद क्या था?
उत्तर देखेंलेखक ने भव्य रात्रिभोज, सुविधाएँ और घर की समर्पित मेहमाननवाजी की — खाना, सिनेमा दिखाना, रोज़मर्रा से ऊपर उठकर सत्कार। मकसद था अतिथि को आदर देना और उम्मीद कि अतिथि थोड़ी गरिमा लेकर चलेगा; पर यह चाहत नाकाम रही क्योंकि अतिथि रुका रहा।
6. पारिवारिक संवाद में कैसे बदलाव आए और उसका असर क्या दिखता है?
उत्तर देखेंपहले चर्चा में उत्साह था—हँसी, पुराने मित्रों की बातें, परिवार के विषय; पर धीरे-धीरे बातचीत धीमी होकर नीरस हो गई, शब्दों का आदान-प्रदान घटा और रिश्तों में गर्मजोशी कम हुई। इसका असर यह हुआ कि घर का वातावरण बोझिल और असहज बन गया।
7. लेखक की आर्थिक चिंता पाठ में कैसे दिखती है?
उत्तर देखेंआर्थिक चिंता सांकेतिक है—लेखक ने जिक्र किया कि अतिथि ने उनके आर्थिक सीमाओं की “बैंजनी चट्टान” देख ली और उनकी सहनशीलता सीमित है। अतिथि के लंबे रहने से भोजन, धोबी, सुविधाएँ खर्च बढ़ाते हैं, जिससे परिवार की वित्तीय सीमाएँ तनाव में आ जाती हैं।
8. लेखक अतिथि के खर्राटों और बिस्तर के संदर्भ से कौन-सा भाव दिखाता है?
उत्तर देखेंखर्राटे और बिस्तर के बदलने का वर्णन घरेलू परेशानियों को दर्शाता है—निजी सुविधा में हस्तक्षेप। लेखक बताता है कि अतिथि ने बिस्तर गोलाकार नहीं किया तो वे उपवास पर रह जाएंगे; यह व्यंग्यात्मक तरीके से अतिथि की असभ्यता और घर के नियमों का उल्लंघन दिखाता है।
9. लेखक अतिथि के जाने की इच्छा को कैसे औचित्य देता है?
उत्तर देखेंलेखक कहता है अतिथि का देवत्व तभी बना रहता है जब वह दर्शन देकर चला जाए; बहुत देर तक ठहरना देवत्व और मेहमाननवाजी की मर्यादा दोनों को कम कर देता है। इसलिए सम्मानपूर्वक लौटना ही उचित है—घर की महत्ता और निजता बनाए रखने के लिए यह जरूरी है।
10. पाठ के अंत में लेखक किस मानसिक स्थिति में पहुँचता है और क्यों?
उत्तर देखेंलेखक सहनशीलता के अंतिम बिंदु पर पहुँचता है—आशा के साथ अंतिम सुबह का उल्लेख करता है कि आगे वह टिक नहीं पाएगा। निराशा, क्रोध और थकान मिलकर उसे कमजोर कर देते हैं; अतिथि के लगातार रहने से उनका पारिवारिक जीवन अस्थिर और मनोवैज्ञानिक रूप से निचोड़ गया है, इसलिए विदा की अनिवार्यता पर जोर देता है।
कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 3 तुम कब जाओगे अतिथि के लिए दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर।
कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 3 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-उत्तर
1. लेखक बार-बार “तुम कब जाओगे, अतिथि?” प्रश्न क्यों करता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर देखेंलेखक का यह प्रश्न उसकी पीड़ा और असहज स्थिति का प्रतीक है। भारतीय संस्कृति में अतिथि को देवता माना जाता है, लेकिन जब कोई अतिथि अपेक्षा से अधिक समय तक रुक जाता है, तो उसका स्वागत बोझ बनने लगता है। लेखक और उसका परिवार प्रारम्भिक उत्साह से भरकर भोजन, मिठाई, सिनेमा आदि का आनंद देकर उसे विदा करने की आशा करता है। परंतु जब अतिथि जाने का नाम नहीं लेता, तो सत्कार का जोश धीरे-धीरे कम होकर खीझ और असहजता में बदल जाता है। बातचीत समाप्त हो जाती है, घर का वातावरण बोझिल हो जाता है और आर्थिक व मानसिक दबाव बढ़ता है। इसी असहनीय स्थिति से उत्पन्न झुँझलाहट लेखक के भीतर से बार-बार यह प्रश्न निकालती है—”तुम कब जाओगे, अतिथि?” यह प्रश्न अतिथि-सत्कार की मर्यादा और व्यवहारिक जीवन की विवशता के बीच टकराहट को उजागर करता है।
2. लेखक ने अतिथि के आगमन और ठहरने की प्रक्रिया को किस प्रकार चित्रित किया है? उदाहरण सहित बताइए।
उत्तर देखेंलेखक ने अतिथि के आगमन और ठहरने की प्रक्रिया को व्यंग्यात्मक शैली में चित्रित किया है। जब अतिथि आया, तब लेखक और उसकी पत्नी ने पूरे उत्साह से स्वागत किया। साधारण भोजन को डिनर में बदल दिया, मिठाई बनाई और सिनेमा दिखाया। आशा थी कि दूसरे दिन वह विदा हो जाएगा। लेकिन जैसे-जैसे दिन बढ़ते गए, घर का वातावरण बोझिल होने लगा। तीसरे दिन जब अतिथि ने कपड़े धोबी को देने की बात की, तब लेखक को लगा कि उसका ठहरना लंबा खिंच जाएगा। धीरे-धीरे घर का उत्साह कम होकर ऊब और खीझ में बदल गया। पहले डिनर था, फिर लंच, फिर खिचड़ी, और अंततः उपवास की स्थिति तक पहुँचने का संकेत दिया गया। यह पूरी प्रक्रिया इस बात को उजागर करती है कि लंबे समय तक रुकने वाला अतिथि आतिथ्य को आनंद से बोझ में बदल देता है।
3. लेखक के दृष्टिकोण से “अतिथि देवो भव” की परंपरा और उसकी सीमाएँ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर देखेंभारतीय संस्कृति में “अतिथि देवो भव” की परंपरा है, जिसके अनुसार अतिथि का स्वागत और सत्कार करना एक धर्म माना जाता है। लेखक भी इसी परंपरा का पालन करते हुए प्रारंभ में अतिथि का गर्मजोशी से स्वागत करता है। लेकिन जब अतिथि सीमा से अधिक समय तक रुकता है, तो यह परंपरा बोझिल हो जाती है। परिवार की आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है, आपसी संवाद और सौहार्द का वातावरण टूट जाता है और मानसिक तनाव बढ़ जाता है। लेखक कहता है कि देवता और मनुष्य अधिक समय तक साथ नहीं रह सकते—देवता दर्शन देकर लौट जाता है। यदि अतिथि जाने का नाम न ले, तो उसका देवत्व भी नष्ट हो जाता है और वह बोझ या राक्षस प्रतीत होने लगता है। इस प्रकार लेखक इस परंपरा की सीमाएँ स्पष्ट करता है कि आतिथ्य तभी सुखद है जब वह मर्यादित और संतुलित हो।
4. लेखक ने अतिथि के साथ बिताए दिनों में बदलते घरेलू वातावरण का वर्णन कैसे किया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर देखेंलेखक ने अतिथि के साथ बिताए दिनों में घर के बदलते वातावरण का जीवंत चित्रण किया है। पहले दिन घर में उल्लास और स्नेह का वातावरण था। परिवार ने खास पकवान बनाए और हँसी-खुशी का माहौल रहा। दूसरे दिन भी सत्कार जारी रहा, किंतु थकान झलकने लगी। तीसरे दिन से असहजता बढ़ी, जब अतिथि ने कपड़े धोबी को देने की बात कही। उसके बाद घर का उत्साह घटता गया। बातचीत खत्म हो गई, मुस्कान फीकी पड़ गई, हँसी-ठिठोली लुप्त हो गई और एक प्रकार की चुप्पी छा गई। धीरे-धीरे डिनर से खिचड़ी तक आ पहुँचे, जो थकान और ऊब का प्रतीक है। घर की स्त्री के भाव भी बदले—आँखों की चमक चिंता और भय में बदल गई। लेखक की झुँझलाहट बढ़ती गई और अंततः वातावरण बोझिल और असहनीय हो गया।
5. लेखक ने अतिथि को जाने के लिए सीधे क्यों नहीं कहा? इस निर्णय के पीछे कौन-से कारण कार्य कर रहे हैं?
उत्तर देखेंलेखक ने अतिथि को सीधे जाने के लिए इसलिए नहीं कहा क्योंकि भारतीय सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ में यह असभ्यता और अपमानजनक माना जाता है। अतिथि का सम्मान करना सामाजिक शिष्टाचार और मानवीय संबंधों की गरिमा से जुड़ा होता है। लेखक इस मर्यादा का उल्लंघन नहीं करना चाहता। साथ ही, भीतर से लेखक जानता है कि यदि वह कठोरता दिखाएगा, तो अतिथि के साथ बने संबंधों में दरार आ जाएगी और उसका “देवत्व” भी नष्ट हो जाएगा। यही कारण है कि लेखक बार-बार व्यंग्यात्मक ढंग से, मन-ही-मन कहता है—”तुम कब जाओगे, अतिथि?” पर सीधे मुँह यह नहीं कह पाता। इस निर्णय के पीछे सामाजिक संस्कार, मर्यादा और आत्म-संयम की भावना काम कर रही है। लेखक चाहता है कि अतिथि स्वयं अपनी मर्यादा समझकर विदा ले, ताकि संबंध सुरक्षित रह सकें।