एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 2 ल्हासा की ओर
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 2 ल्हासा की ओर (राहुल सांकृत्यायन) सत्र 2025-26 के लिए विद्यार्थी यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं। इस पाठ में लेखक ने अपने यात्रा अनुभवों का जीवंत चित्रण किया है। इसमें तिब्बत की कठिन राहों, प्राकृतिक सौंदर्य और संस्कृति का उल्लेख मिलता है। यात्री के रूप में उनकी जिज्ञासा और साहस पाठकों को प्रेरित करते हैं। इस अध्याय से छात्रों को भूगोल, इतिहास और समाज की झलक मिलती है। यह साहसिक यात्राओं की महत्वता और ज्ञान की प्यास को उजागर करता है।
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज पाठ 2 के प्रश्न उत्तर
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज पाठ 2 के अति-लघु उत्तरीय प्रश्न
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज पाठ 2 के लघु उत्तरीय प्रश्न
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज पाठ 2 के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज पाठ 2 MCQ
अभ्यास के प्रश्न उत्तर
ल्हासा की ओर कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 2 के प्रश्न उत्तर
1. थोडला के पहले के आखिरी गाँव पहुँचने पर भिखमंगे के वेश में होने के बावजूद लेखक को ठहरने के लिए उचित स्थान मिला जबकि दूसरी यात्रा के समय भद्र वेश भी उन्हें उचित स्थान नहीं दिला सका। क्यों?
उत्तर देखेंथोडला के पहले के आखिरी गाँव पहुँचने पर भिखमंगे के वेश में होने के बावजूद लेखक को ठहरने का स्थान मिल गया। इसका कारण यह था कि उस समय लोगों के मन में निर्धन या भिखारी के प्रति सहानुभूति की भावना गहरी थी। वे समझते थे कि यात्री विपरीत परिस्थितियों में है, इसलिए उसे आसरा देना पुण्य का कार्य है। जबकि दूसरी यात्रा में भद्र वेश होने के बाद भी लेखक को उचित स्थान नहीं मिला क्योंकि समाज में आर्थिक स्वार्थ और व्यवहारिक दृष्टिकोण बढ़ गया था। लोगों को साधु या यात्री की नहीं, बल्कि लाभ-हानि की चिंता अधिक थी। इस कारण उसे जगह देने में हिचकिचाहट दिखाई गई।
2. उस समय के तिब्बत में हथियार का कानून न रहने के कारण यात्रियों को किस प्रकार का भय बना रहता था?
उत्तर देखेंउस समय तिब्बत में हथियार रखने का कोई कानून नहीं था। इसके कारण हर कोई अपने साथ बंदूक या अन्य हथियार रखता था। यात्रियों को निरंतर इस बात का भय बना रहता था कि कहीं रास्ते में डाकू, लुटेरे या असामाजिक तत्व उन पर हमला न कर दें। बिना कानून व्यवस्था के लोग बलपूर्वक यात्रियों से धन, वस्तुएँ या पशु छीन लेते थे। यात्रियों के लिए सबसे बड़ी चिंता अपनी जान और सामान की सुरक्षा थी। इसलिए यात्राएँ अत्यधिक जोखिमपूर्ण और भयभीत करने वाली मानी जाती थीं।
3. लेखक लड्कोर के मार्ग में अपने साथियों से किस कारण पिछड़ गया?
उत्तर देखेंलेखक लड्कोर के मार्ग में अपने साथियों से इसलिए पिछड़ गया क्योंकि उसे जो घोड़ा मिला था, वह बहुत सुस्त और थका हुआ था। जब अन्य साथी तेज़ी से आगे बढ़ गए, तब लेखक का घोड़ा धीरे-धीरे पीछे रह गया। लेखक ने सोचा कि चढ़ाई की थकान की वजह से घोड़ा धीमा चल रहा है और उसने उसे मारना उचित नहीं समझा। धीरे-धीरे दूरी और बढ़ती गई। स्थिति ऐसी हो गई कि लेखक को रास्ते का भी भ्रम हो गया और वह गलत रास्ते पर मील-डेढ़ मील आगे चला गया। इस कारण वह अपने साथियों से काफ़ी पीछे रह गया।
4. लेखक ने शेकर विहार में सुमति को उनके यजमानों के पास जाने से रोका, परंतु दूसरी बार रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया?
उत्तर देखेंलेखक ने पहली बार सुमति को उनके यजमानों के पास जाने से इसलिए रोका था क्योंकि उन्हें लगा था कि सुमति आसपास के गाँवों में जाकर कई दिन लगा देंगे और यात्रा में अनावश्यक विलंब होगा। लेकिन जब वे शेकर विहार पहुँचे तो लेखक वहाँ की बहुमूल्य पुस्तकों—कन्जुर की 103 हस्तलिखित पोथियों—में मग्न हो गया। पुस्तकों का अध्ययन ही उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण हो गया था। इसलिए दूसरी बार उसने सुमति को रोकने का प्रयास नहीं किया, बल्कि उन्हें स्वतंत्र रूप से यजमानों से मिलने जाने की अनुमति दे दी।
5. अपनी यात्रा के दौरान लेखक को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?
उत्तर देखेंलेखक को अपनी तिब्बत यात्रा के दौरान अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। सबसे बड़ी कठिनाई ऊँचे-ऊँचे डाँड़ों की चढ़ाई और उतराई थी, जहाँ रास्ते बहुत दुर्गम और निर्जन थे। वहाँ डाकुओं का भय हमेशा बना रहता था क्योंकि हथियारों पर कोई नियंत्रण नहीं था और जान का खतरा हर समय मंडराता था। यात्रियों को लम्बी दूरी पैदल तय करनी पड़ती थी, कभी पीठ पर भारी सामान लादकर चलना पड़ता था। घोड़े भी कभी-कभी सुस्त और थके हुए मिलते थे, जिससे यात्रा धीमी हो जाती थी। ठहरने के लिए भी हर बार उपयुक्त स्थान नहीं मिलता था; कई बार गरीब झोपड़ियों में रुकना पड़ता था। साथ ही, तिब्बत की तेज धूप और ठंडी हवाएँ भी शरीर को थका देती थीं। इन सब कठिनाइयों के बीच ही लेखक ने अपनी यात्रा पूरी की।
6. प्रस्तुत यात्रा-वृत्तांत के आधार पर बताइए कि उस समय का तिब्बती समाज कैसा था?
उत्तर देखेंप्रस्तुत यात्रा-वृत्तांत के आधार पर उस समय का तिब्बती समाज अनेक दृष्टियों से विशिष्ट दिखाई देता है। वहाँ जाति-पाँति और छुआछूत का कोई बंधन नहीं था। लोग अजनबी यात्रियों को भी घर में आने देते थे और उनके लिए चाय बनाकर सम्मानपूर्वक पेश करते थे। औरतें परदा नहीं करती थीं और सामाजिक जीवन अपेक्षाकृत खुला था। गाँवों में लोग अतिथियों का स्वागत करते, भोजन और आश्रय देते, परंतु सब कुछ उस समय की मनोदशा पर निर्भर करता था। समाज में गरीब भिखमंगों की स्थिति कठिन थी, जिन्हें कभी-कभी घर में प्रवेश भी नहीं मिलता था। जागीरदार और मठों का बड़ा प्रभाव था; खेती-बाड़ी का प्रबंधन भिक्षुओं के हाथों में होता और वे अपने क्षेत्रों में राजा जैसे माने जाते थे। कुल मिलाकर तिब्बती समाज सरल, धार्मिक, कुछ हद तक असुरक्षित (डकैतों के कारण) और परंपराओं से जुड़ा हुआ था।
7. ‘मैं अब पुस्तकों के भीतर था।’ नीचे दिए गए विकल्पों में से कौन सा इस वाक्य का अर्थ बतलाता है-
(क) लेखक पुस्तकें पढ़ने में रम गया।
(ख) लेखक पुस्तकों की शैल्फ के भीतर चला गया।
(ग) लेखक के चारों ओर पुस्तकें ही थीं।
(घ) पुस्तक में लेखक का परिचय और चित्र छपा था।
उत्तर देखें(ग) लेखक के चारों ओर पुस्तकें ही थीं।
यहाँ लेखक यह नहीं कह रहा कि वह पुस्तक पढ़ने में रम गया या पुस्तक के अंदर चला गया। उसका आशय यह है कि जिस स्थान पर वह रुका, वहाँ चारों ओर पुस्तकें रखी हुई थीं। इसलिए उसे लगा मानो वह स्वयं पुस्तकों के बीच आकर बैठा हो।
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 2 के रचना और अभिव्यक्ति के प्रश्न उत्तर
8. सुमति के यजमान और अन्य परिचित लोग लगभग हर गाँव में मिले। इस आधार पर आप सुमति के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं का चित्रण कर सकते हैं?
उत्तर देखेंसुमति के यजमान और परिचित लोग लगभग हर गाँव में मिलते थे, इससे उनके व्यक्तित्व की कई विशेषताएँ सामने आती हैं। सुमति मिलनसार, लोकप्रिय और सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। वह हर जगह लोगों से आत्मीयता से मिलते और अपने संबंध बनाए रखते थे, इसलिए गाँव-गाँव में उनके यजमान थे। उनका धार्मिक झुकाव भी स्पष्ट होता है, क्योंकि वे बोधगया से गंडे (पवित्र वस्तुएँ) लाकर लोगों में बाँटते थे। यह उनके श्रद्धालु और सेवा-भावी व्यक्तित्व को दर्शाता है। साथ ही, उनकी सामाजिकता और लोगों से सहज जुड़ाव उनकी मित्रवत, उदार और आदरणीय छवि को प्रकट करता है।
9. ‘हालाँकि उस वक्त मेरा भेष ऐसा नहीं था कि उन्हें कुछ भी खयाल करना चाहिए था।’- उक्त कथन के अनुसार हमारे आचार-व्यवहार के तरीके वेशभूषा के आधार पर तय होते हैं। आपकी समझ से यह उचित है अथवा अनुचित, विचार व्यक्त करें।
उत्तर देखेंमेरी समझ से किसी व्यक्ति का मूल्यांकन केवल वेशभूषा के आधार पर करना अनुचित है। वस्त्र तो बाहरी आडंबर हैं, जिनसे केवल व्यक्ति की आर्थिक स्थिति या बाहरी रूप-रंग का आभास हो सकता है, लेकिन उसके वास्तविक गुण, आचार-व्यवहार, विचारधारा और मानवीय मूल्य वस्त्रों से नहीं आँके जा सकते। एक साधारण भेष वाला व्यक्ति भी ज्ञान, संवेदनशीलता और श्रेष्ठ चरित्र वाला हो सकता है, जबकि आकर्षक वेशभूषा में कोई व्यक्ति अहंकारी या असभ्य भी हो सकता है। अतः उचित यही है कि हम किसी के प्रति व्यवहार उसके स्वभाव और कर्म देखकर तय करें, न कि उसके पहनावे से।
10. यात्रा-वृत्तांत के आधार पर तिब्बत की भौगोलिक स्थिति का शब्द-चित्र प्रस्तुत करें। वहाँ की स्थिति आपके राज्य/शहर से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर देखेंतिब्बत की भौगोलिक स्थिति का शब्द-चित्र: यात्रा-वृत्तांत के आधार पर तिब्बत की भूमि ऊँचे-ऊँचे पर्वतों और डाँड़ों से घिरी हुई है, जिनकी ऊँचाई 16 से 18 हज़ार फीट तक पहुँचती है। हिमालय की हिमाच्छादित श्वेत चोटियाँ दक्षिण दिशा में फैली हैं, जबकि उत्तर की ओर अपेक्षाकृत कम बर्फ वाली चोटियाँ दिखाई देती हैं। बहुत-से स्थान बर्फ और हरियाली से रहित, बिलकुल नंगे पहाड़ों जैसे हैं। डाँड़ों के आसपास मीलों तक कोई गाँव नहीं होता, जिससे ये क्षेत्र निर्जन और भयावह लगते हैं। नदियों के मोड़ और पहाड़ों के बीच रास्ते सँकरे और दुर्गम हैं। मैदान भी पहाड़ों से घिरे टापू जैसे दिखाई देते हैं, जहाँ छोटे-छोटे गाँव और मठ बसे हुए हैं।
मेरे राज्य/शहर से भिन्नता: मेरे शहर में इतनी ऊँचाई वाले पर्वत नहीं हैं, न ही बर्फ से ढकी चोटियाँ चारों ओर दिखाई देती हैं। यहाँ गाँव-शहर अपेक्षाकृत पास-पास बसे हुए हैं, जिससे जगह-जगह पर लोगों की चहल-पहल रहती है। नदियाँ और खेत हरियाली से भरपूर हैं, जबकि तिब्बत का भू-भाग अधिकतर ऊबड़-खाबड़, शुष्क और बंजर-सा प्रतीत होता है। इस प्रकार तिब्बत की भौगोलिक स्थिति मेरे शहर से बिल्कुल अलग और अधिक कठिन जीवन वाली है।
11. आपने भी किसी स्थान की यात्रा अवश्य की होगी? यात्रा के दौरान हुए अनुभवों को लिखकर प्रस्तुत करें।
उत्तर देखेंपिछले साल मैंने जयपुर की यात्रा की थी। वहाँ पहुँचते ही राजस्थानी संस्कृति और वास्तुकला ने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया। हवेलियों और किलों की भव्यता देखकर मुझे इतिहास के समय में ले जाया गया। विशेषकर अंबर किला में चढ़ाई करते समय रास्ते की कठिनाई और ऊँचाई ने थकान जरूर दी, लेकिन किले की चोटी से पूरे शहर का दृश्य देखकर थकान दूर हो गई। बाजारों में चलते हुए रंग-बिरंगे कपड़े, हस्तशिल्प और खाने-पीने की चीजें देखकर बहुत आनंद आया। स्थानीय लोगों की अतिथि सत्कार और मिठास भरी बातचीत ने यात्रा को और भी यादगार बना दिया।
इस यात्रा ने मुझे केवल नई जगह देखने का अनुभव नहीं दिया, बल्कि वहाँ की संस्कृति, लोगों के व्यवहार और जीवन शैली को समझने का अवसर भी मिला। मुझे यह एहसास हुआ कि यात्रा न केवल मनोरंजन बल्कि ज्ञान और अनुभव का साधन भी है।
12. यात्रा-वृत्तांत गद्य साहित्य की एक विधा है। आपकी इस पाठ्यपुस्तक में कौन-कौन सी विधाएँ हैं? प्रस्तुत विधा उनसे किन मायनों में अलग है?
उत्तर देखेंपाठ्यपुस्तक में अनेक साहित्यिक विधाएँ हो सकती हैं, जैसे:
कहानी – कल्पनाशील घटनाओं और पात्रों पर आधारित, जिसमें एक मुख्य कथा और उसके उतार-चढ़ाव होते हैं।
कविता/साहित्यिक छंद – भावनाओं, दृश्यों या विचारों को संगीतमय और लयबद्ध रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
निबंध/लेख – किसी विषय पर लेखक के विचारों और दृष्टिकोण को स्पष्ट और तर्कसंगत ढंग से प्रस्तुत करना।
यात्रा-वृत्तांत इनसे अलग है क्योंकि यह वास्तविक यात्रा और अनुभवों का विवरण देता है। इसमें लेखक अपने दृष्टिकोण से स्थान, संस्कृति, प्राकृतिक दृश्य, लोगों का व्यवहार और व्यक्तिगत अनुभव बयान करता है। यह सजीव और विवरणात्मक होता है, जबकि कहानी कल्पना पर आधारित होती है, कविता भावनाओं और लय पर निर्भर होती है और निबंध अधिक तर्कपूर्ण और औपचारिक होता है। यात्रा-वृत्तांत में लेखक की व्यक्तिगत अनुभूति और यात्रा का अनुभव प्रमुख होता है।
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 2 के भाषा अध्ययन के प्रश्न उत्तर
13. किसी भी बात को अनेक प्रकार से कहा जा सकता है, जैसे-
सुबह होने से पहले हम गाँव में थे।
पौ फटने वाली थी कि हम गाँव में थे।
तारों की छाँव रहते-रहते हम गाँव पहुँच गए।
नीचे दिए गए वाक्य को अलग-अलग तरीके से लिखिए-
‘जान नहीं पड़ता था कि घोड़ा आगे जा रहा है या पीछे।’
उत्तर देखें‘जान नहीं पड़ता था कि घोड़ा आगे जा रहा है या पीछे।’
को अनेक रूपों में ऐसे लिखा जा सकता है –
1. यह समझ में ही नहीं आता था कि घोड़ा किस दिशा में बढ़ रहा है।
2. पता ही नहीं चल रहा था कि घोड़ा आगे बढ़ रहा है या पीछे हट रहा है।
3. यह कहना कठिन था कि घोड़े की चाल आगे की है या पीछे की।
4. घोड़े की गति देखकर समझ नहीं आता था कि वह आगे है या पीछे।
5. ऐसा लगता था मानो घोड़ा दिशा ही भुला बैठा हो।
14. ऐसे शब्द जो किसी ‘अंचल’ यानी क्षेत्र विशेष में प्रयुक्त होते हैं उन्हें आंचलिक शब्द कहा जाता है। प्रस्तुत पाठ में से आंचलिक शब्द ढूँढ़कर लिखिए।
उत्तर देखेंप्रस्तुत पाठ में कई ऐसे शब्द प्रयुक्त हुए हैं जो क्षेत्रीय भाषा और लोकप्रयोग के रूप में आते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख आंचलिक शब्द इस प्रकार हैं –
फककू/फकूद – स्थानीय लोगों के बोलीचाल का शब्द।
फकसइयाँ – ग्रामीण अंचल में बोली जाने वाली अभिव्यक्ति।
लुच्चा-लफंगा – सामान्य भाषा में प्रयुक्त, लेकिन आंचलिक लहजे में बार-बार आने वाला।
फकन/फकना – लोकभाषा का विशिष्ट शब्द।
गली-मुहल्ला – गाँव-कस्बे के स्थानीय प्रयोग के रूप में प्रयुक्त।
15. पाठ में कागज, अक्षर, मैदान के आगे क्रमशः मोटे, अच्छे और विशाल शब्दों का प्रयोग हुआ है। इन शब्दों से उनकी विशेषता उभर कर आती है। पाठ में से कुछ ऐसे ही और शब्द छाँटिए जो किसी की विशेषता बता रहे हों।
उत्तर देखें• लम्बा रास्ता – मार्ग की विशेषता बताता है।
• काला धुआँ – धुएँ का रंग और प्रभाव दर्शाता है।
• खूबसूरत जगह – स्थान की सुंदरता को उभारता है।
• ठण्डा पानी – पानी की विशेषता प्रकट करता है।
• पुराना मकान – मकान की स्थिति का संकेत।
• साफ़ हवा – वातावरण की विशेषता।
• उबड़-खाबड़ ज़मीन – भूमि का स्वरूप दर्शाने वाला।
• हरे-भरे पेड़ – पेड़ों की सजीवता और ताजगी।
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 2 में पाठेतर सक्रियता के प्रश्न उत्तर
आम दिनों में समुद्र किनारे के इलाके बेहद खूबसूरत लगते हैं। समुद्र लाखों लोगों को भोजन देता है और लाखों उससे जुड़े दूसरे कारोबारों में लगे हैं। दिसंबर 2004 को सुनामी या समुद्री भूकंप से उठने वाली तूफ़ानी लहरों के प्रकोप ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि कुदरत की यह देन सबसे बड़े विनाश का कारण भी बन सकती है। प्रकृति कब अपने ही ताने-बाने को उलट कर रख देगी, कहना मुश्किल है। हम उसके बदलते मिजाज को उसका कोप कह लें या कुछ और, मगर यह अबूझ पहेली अकसर हमारे विश्वास के चीथड़े कर देती है और हमें यह अहसास करा जाती है कि हम एक कदम आगे नहीं, चार कदम पीछे हैं। एशिया के एक बड़े हिस्से में आने वाले उस भूकंप ने कई द्वीपों को इधर-उधर खिसकाकर एशिया का नक्शा ही बदल डाला। प्रकृति ने पहले भी अपनी ही दी हुई कई अद्भुत चीजें इंसान से वापस ले ली हैं जिसकी कसक अभी तक है। दुख जीवन को माँजता है, उसे आगे बढ़ने का हुनर सिखाता है। वह हमारे जीवन में ग्रहण लाता है, ताकि हम पूरे प्रकाश की अहमियत जान सवे फ़ं और रोशनी को बचाए रखने के लिए जतन करें। इस जतन से सभ्यता और संस्कृति का निर्माण होता है। सुनामी के कारण दक्षिण भारत और विश्व के अन्य देशों में जो पीड़ा हम देख रहे है, उसे निराशा के चश्मे से न देखे। ऐसे समय में भी मेघना, अरुण और मैगी जैसे बच्चे हमारे जीवन में जोश, उत्साह और शक्ति भर देते हैं। 13 वर्षीय मेघना और अरुण दो दिन अकेले खारे समुद्र में तैरते हुए जीव-जंतुओं से मुकाबला करते हुए किनारे आ लगे। इंडोनेशिया की रिजा पड़ोसी के दो बच्चों को पीठ पर लादकर पानी के बीच तैर रही थी कि एक विशालकाय साँप ने उसे किनारे का रास्ता दिखाया। मछुआरे की बेटी मैगी ने रविवार को समुद्र का भयंकर शोर सुना, उसकी शरारत को समझा, तुरंत अपना बेड़ा उठाया और अपने परिजनों को उस पर बिठा उतर आई समुद्र में, 41 लोगों को लेकर। महज 18 साल की यह जलपरी चल पड़ी पगलाए सागर से दो-दो हाथ करने। दस मीटर से ज्यादा ऊँची सुनामी लहरें जो कोई बाधा, रुकावट मानने को तैयार नहीं थीं, इस लड़की के बुलंद इरादों के सामने बौनी ही साबित हुईं। जिस प्रकृति ने हमारे सामने भारी तबाही मचाई है, उसी ने हमें ऐसी ताकत और सूझ दे रखी है कि हम फिर से खड़े होते हैं और चुनौतियों से लड़ने का एक रास्ता ढूँढ़ निकालते हैं। इस त्रासदी से पीड़ित लोगों की सहायता के लिए जिस तरह पूरी दुनिया एकजुट हुई है, वह इस बात का सबूत है कि मानवता हार नहीं मानती।
1. कौन-सी आपदा को सुनामी कहा जाता है?
उत्तर देखेंसुनामी समुद्र के भीतर आने वाले भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट या अन्य कारणों से समुद्र में उठने वाली भयंकर और ऊँची लहरों को कहा जाता है। यह तटवर्ती क्षेत्रों में भारी विनाश और तबाही मचाती है।
2. ‘दुख जीवन को माँजता है, उसे आगे बढ़ने का हुनर सिखाता है’-आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर देखेंइस कथन का आशय है कि दुख और कष्ट मनुष्य को मजबूत बनाते हैं। वे जीवन में कठिनाइयों से लड़ने का साहस, सहनशीलता और अनुभव देते हैं। दुख हमें जीवन का वास्तविक अर्थ समझाते हैं और सुख-शांति का महत्व बताते हैं।
3. मैगी, मेघना और अरुण ने सुनामी जैसी आपदा का सामना किस प्रकार किया?
उत्तर देखेंमेघना और अरुण ने दो दिन तक समुद्र की खारी लहरों और जीव-जंतुओं से संघर्ष करते हुए तैरकर किनारे का रास्ता पाया। इंडोनेशिया की रिजा ने बच्चों को पीठ पर लादकर तैरकर बचाया। मैगी ने अपने परिजनों को बेड़े पर बिठाकर 41 लोगों को लहरों से बचाया।
4. प्रस्तुत गद्यांश में ‘दृढ़ निश्चय’ और ‘महत्व’ के लिए किन शब्दों का प्रयोग हुआ है?
उत्तर देखें‘दृढ़ निश्चय’ के लिए – बुलंद इरादों शब्द का प्रयोग हुआ है।
‘महत्व’ के लिए – अहमियत शब्द का प्रयोग हुआ है।
5. इस गद्यांश के लिए एक शीर्षक ‘नाराज समुद्र’ हो सकता है। आप कोई अन्य शीर्षक दीजिए।
उत्तर देखेंइस गद्यांश का अन्य उपयुक्त शीर्षक हो सकता है – “मानव साहस और सुनामी”।
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 2 ल्हासा की ओर पर आधारित अति-लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर।
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 2 अति-लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर
1. राहुल सांकृत्यायन की पहली यात्रा कब और किस स्थान की ओर हुई थी?
उत्तर देखेंउनकी पहली यात्रा 1929-30 में हुई, जब उन्होंने ल्हासा जाने वाले कठिन रास्ते पर कदम रखा। यह यात्रा मुख्य रूप से एक तीर्थयात्री जत्थे में शामिल होकर की गई थी।
2. लेखक को ल्हासा यात्रा की अनुमति क्यों नहीं मिल पाई थी?
उत्तर देखेंउस समय भारतीयों को स्वतंत्र रूप से तिब्बत जाने की अनुमति नहीं थी। इसी कारण उन्होंने यह यात्रा धार्मिक जत्थे के साथ साधारण यात्री के रूप में करने का निर्णय लिया।
3. यात्रा के दौरान फ्रिचर नामक कस्बे की खासियत क्या थी?
उत्तर देखेंफ्रिचर में सामाजिक बराबरी देखने को मिली। वहाँ जाति-पांति का झगड़ा नहीं था, लोग बिना भेदभाव के साथ रहते थे। यह विशेषता लेखक को गहराई से प्रभावित करती है।
4. यात्रा के दौरान यात्रियों को पानी प्राप्त करने में किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?
उत्तर देखेंरेगिस्तानी क्षेत्र में कुएँ बहुत कम थे। कई बार स्थानीय लोग बाहरियों को पानी नहीं देते थे। यात्री कपड़ों की गाँठ बनाकर कुएँ में डालते और उसी से पानी खींचते थे।
5. लेखक ने तिब्बतियों के घरों की बनावट का क्या वर्णन किया है?
उत्तर देखेंतिब्बतियों के घर छोटे-छोटे, मिट्टी-पत्थर से बने होते थे। कई घर ऊँचे स्थानों पर थे और उनमें लकड़ी का उपयोग कम दिखाई देता था। वे बाहर से साधारण पर भीतर से आरामदायक होते थे।
6. यात्रियों के लिए फकड़ा और ल्हासा जाने वाला मार्ग कैसा था?
उत्तर देखेंयह मार्ग पहाड़ी और दुर्गम था। रास्ते में नदियाँ, ऊँचे पहाड़ी दर्रे और बर्फीले मैदान पड़ते थे। यात्रियों को पैदल चलना पड़ता था और यह बेहद कठिन अनुभव था।
7. यात्रा में चाय पीने की परंपरा कैसी थी?
उत्तर देखेंयात्रियों को तिब्बती परिवार चाय पिलाते थे। यह चाय साधारण नहीं, बल्कि मक्खन और नमक मिलाकर बनाई जाती थी। इसे पीना स्थानीय जीवन का आवश्यक हिस्सा माना जाता था।
8. फकड़ा क्षेत्र के लोग यात्रियों के साथ कैसा व्यवहार करते थे?
उत्तर देखेंवहाँ के लोग मिलनसार और दयालु थे। वे यात्रियों को रहने का स्थान और भोजन उपलब्ध कराने का प्रयास करते थे। इससे उनकी सहृदयता का पता चलता है।
9. यात्रा के दौरान लेखक ने किन धार्मिक स्थलों का उल्लेख किया है?
उत्तर देखेंलेखक ने मठों, मंदिरों और विभिन्न बौद्ध स्थलों का उल्लेख किया। वहाँ भिक्षु प्रार्थना करते, यात्रियों को शरण देते और बौद्ध संस्कृति का ज्ञान प्रदान करते थे।
10. रास्ते में मिले पहाड़ी गाँवों की आर्थिक स्थिति कैसी थी?
उत्तर देखेंगाँव छोटे और गरीब थे। लोग पशुपालन और कृषि पर निर्भर रहते थे। वहाँ व्यापार बहुत सीमित था, फिर भी वे अतिथि-सत्कार में पीछे नहीं रहते थे।
11. यात्रियों की रातें किन कठिनाइयों में बीतती थीं?
उत्तर देखेंरात को ठंड अधिक होती थी। तंबुओं में सोने की व्यवस्था मुश्किल थी। कई बार यात्रियों को गाँव के बाहर खुले स्थानों पर ही रुकना पड़ता था।
12. तिब्बती समाज में जातीय भेदभाव की स्थिति कैसी थी?
उत्तर देखेंलेखक बताता है कि तिब्बती समाज में जाति-पांति का विवाद नहीं था। लोग सरलता से रहते थे और सामाजिक समानता को महत्व देते थे। यह भारतीय समाज से भिन्न था।
13. यात्रा में लामा साधुओं की क्या भूमिका थी?
उत्तर देखेंलामा साधु यात्रियों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन देते थे। वे धार्मिक स्थलों पर पूजा-पाठ करवाते और यात्रियों को कठिन समय में मानसिक बल प्रदान करते थे।
14. कठिन मार्गों पर चलते समय यात्री क्या उपाय करते थे?
उत्तर देखेंयात्री धीरे-धीरे चलते, पानी और भोजन बचाकर रखते। वे एक-दूसरे की मदद करते और सुरक्षित स्थान पर रुकने की कोशिश करते थे।
15. लेखक ने यात्रा को “तीर्थयात्रा” क्यों कहा है?
उत्तर देखेंक्योंकि यह केवल भौतिक यात्रा नहीं थी, बल्कि धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व से जुड़ी थी। यात्री ल्हासा के बौद्ध स्थल देखने और आत्मिक संतोष पाने निकले थे।
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 2 ल्हासा की ओर के लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर।
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 2 लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर
1. लेखक की पहली यात्रा को ऐतिहासिक क्यों माना जा सकता है?
उत्तर देखेंयह यात्रा 1929-30 में हुई, जब भारतीयों को तिब्बत जाने की अनुमति नहीं थी। लेखक ने कठिनाइयों के बावजूद साधारण यात्री के रूप में यात्रा की। इसने न केवल उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डाला बल्कि उस समय के तिब्बती समाज, संस्कृति और धार्मिक परंपराओं की झलक भारतीय पाठकों तक पहुँचाई। इस कारण इसे ऐतिहासिक माना जाता है।
2. लेखक ने फ्रिचर कस्बे के समाज की कौन-सी विशेषता बताई है?
उत्तर देखेंलेखक बताता है कि फ्रिचर समाज जात-पाँत के भेदभाव से मुक्त था। वहाँ लोग समान रूप से रहते और एक-दूसरे की मदद करते थे। यह उस समय के भारतीय समाज से भिन्न था, जहाँ जातीय भेदभाव गहराई से व्याप्त था। इस अनुभव ने लेखक को बहुत प्रभावित किया और उन्होंने इसे सामाजिक सुधार की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना।
3. यात्रा के दौरान पानी की समस्या किस प्रकार सामने आई?
उत्तर देखेंरेगिस्तानी क्षेत्र से गुजरते समय कुएँ बहुत कम थे। स्थानीय लोग यात्रियों को आसानी से पानी नहीं देते थे। कई बार यात्री कपड़ों की गाँठ बनाकर कुएँ से पानी निकालते थे। यह कठिनाई उन्हें जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं के महत्व का अनुभव कराती थी। पानी की कमी ने यात्रा को और भी कठिन बना दिया।
4. लेखक ने तिब्बती घरों की तुलना भारतीय घरों से कैसे की?
उत्तर देखेंलेखक कहता है कि तिब्बती घर मिट्टी और पत्थर से बने होते, छोटे लेकिन मजबूत रहते। उनमें लकड़ी का प्रयोग बहुत कम होता था। बाहर से वे साधारण लगते पर अंदर आरामदायक होते। भारतीय घरों में सजावट अधिक मिलती थी, जबकि तिब्बती घर सादगी और उपयोगिता पर आधारित थे। यह तुलना दो संस्कृतियों की जीवनशैली को स्पष्ट करती है।
5. ल्हासा यात्रा मार्ग की कठिनाइयाँ किन कारणों से बढ़ जाती थीं?
उत्तर देखेंल्हासा जाने वाला मार्ग ऊँचे पहाड़ों, बर्फीले दर्रों और नदियों से होकर गुजरता था। रास्ते में न तो भोजन की पर्याप्त व्यवस्था होती थी, न ही रहने का स्थान। यात्रियों को पैदल चलना पड़ता और खराब मौसम का सामना करना पड़ता था। इन परिस्थितियों ने यात्रा को न केवल लंबा, बल्कि खतरनाक भी बना दिया।
6. मक्खन वाली चाय का तिब्बती संस्कृति में क्या महत्व है?
उत्तर देखेंमक्खन और नमक से बनी चाय तिब्बती जीवन का अभिन्न हिस्सा है। यह ऊँचाई वाले क्षेत्रों में शरीर को गर्म रखती है और ऊर्जा देती है। यात्री जब गाँव पहुँचते, तो उन्हें यही चाय पिलाई जाती। इसे अतिथि-सत्कार और सामाजिक मेल-जोल का प्रतीक माना जाता है। लेखक ने इस चाय को स्थानीय संस्कृति का विशेष परिचायक बताया है।
7. यात्रा में गाँव वालों का आतिथ्य भाव किस प्रकार दिखा?
उत्तर देखेंगाँव वाले यात्रियों को भोजन और रहने का स्थान उपलब्ध कराते थे। कई बार वे अपने गरीब होने के बावजूद यात्रियों की सहायता करते। लेखक ने अनुभव किया कि ये लोग बेहद मिलनसार थे और अतिथियों को सम्मान देते थे। उनका यह व्यवहार कठिन यात्रा में मानसिक संबल का कार्य करता था।
8. लेखक ने तिब्बती समाज की कौन-सी विशेषता सबसे प्रमुख मानी?
उत्तर देखेंलेखक ने तिब्बती समाज में सामाजिक समानता और सरलता को प्रमुख माना। वहाँ जाति-पांति का कोई विवाद नहीं था। लोग सामूहिक जीवन जीते और एक-दूसरे की मदद करते। यह बात उन्हें भारतीय समाज से बिलकुल भिन्न लगी। उन्होंने इसे मानवीय मूल्यों की सच्ची अभिव्यक्ति बताया।
9. यात्रा के दौरान धार्मिक स्थलों की भूमिका क्या रही?
उत्तर देखेंबौद्ध मठ और मंदिर यात्रियों को आश्रय और मार्गदर्शन देते थे। लामा साधु पूजा-पाठ करवाते और यात्रियों को मानसिक शांति प्रदान करते। इन स्थलों ने न केवल यात्रा की कठिनाइयाँ कम कीं बल्कि यात्रियों को आध्यात्मिक बल भी दिया। इससे यात्रा एक धार्मिक अनुभव में बदल गई।
10. लेखक ने इस यात्रा को “तीर्थयात्रा” क्यों कहा?
उत्तर देखेंलेखक के अनुसार यह केवल भौगोलिक यात्रा नहीं थी, बल्कि आध्यात्मिक खोज थी। यात्री ल्हासा जाकर बौद्ध संस्कृति और धार्मिक परंपराओं का अनुभव करना चाहते थे। कठिन मार्ग, सरल लोग और धार्मिक स्थलों ने इस यात्रा को आध्यात्मिक रूप से ऊँचा बना दिया। इसी कारण इसे “तीर्थयात्रा” कहा गया।
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 2 ल्हासा की ओर के लिए दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर।
कक्षा 9 हिंदी क्षितिज अध्याय 2 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर
1. राहुल सांकृत्यायन की ल्हासा यात्रा किन परिस्थितियों में हुई और इसका उनके जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर देखेंराहुल सांकृत्यायन की ल्हासा यात्रा 1929-30 में हुई। उस समय भारतीयों को तिब्बत जाने की अनुमति नहीं थी, इसलिए उन्होंने धार्मिक जत्थे में साधारण यात्री बनकर यह कठिन यात्रा की। यात्रा में उन्हें दुर्गम मार्ग, पानी की कमी, ठंडी रातें और गाँवों में रुकने की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। तिब्बती समाज की सादगी और समानता ने लेखक को प्रभावित किया। उन्होंने वहाँ के लोगों में जात-पाँत का भेदभाव न देखकर इसे भारतीय समाज से भिन्न पाया। यात्रा के दौरान बौद्ध धर्मस्थलों और लामा साधुओं का सान्निध्य उन्हें आध्यात्मिक दृष्टि से समृद्ध करता रहा। इस यात्रा ने न केवल लेखक को नए अनुभव दिए, बल्कि उन्होंने भारतीय पाठकों को तिब्बती जीवन, संस्कृति और परंपराओं की झलक भी कराई। अतः यह यात्रा उनके जीवन में ऐतिहासिक और प्रेरणादायी महत्व रखती है।
2. यात्रा के दौरान पानी की समस्या किस प्रकार सामने आई और यात्रियों ने उसका समाधान कैसे किया?
उत्तर देखेंल्हासा की ओर जाने वाले मार्ग में रेगिस्तानी और पहाड़ी क्षेत्र अधिक थे। वहाँ पानी की समस्या सबसे बड़ी कठिनाई बनकर सामने आई। कुएँ बहुत कम थे और स्थानीय लोग अक्सर बाहरियों को पानी देने से कतराते थे। यात्रियों को कई बार प्यास से बेहाल होना पड़ा। इस स्थिति से निपटने के लिए उन्होंने कपड़े की गाँठ बनाकर कुओं में डाली और उससे पानी खींचा। कुछ बार उन्होंने तंबुओं में रखे बर्तन या वर्षा जल का सहारा लिया। यह कठिनाई उन्हें जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की अहमियत समझाती है। लेखक ने इस प्रसंग को विशेष रूप से उल्लेखित किया, जिससे पाठक समझ सकें कि उस यात्रा में पानी की कमी ने किस तरह यात्रियों को शारीरिक और मानसिक रूप से परखा। पानी की समस्या ने यात्रा को और भी कष्टदायी बना दिया।
3. लेखक ने तिब्बती समाज और वहाँ के लोगों की कौन-कौन सी विशेषताएँ बताई हैं?
उत्तर देखेंलेखक ने तिब्बती समाज की सबसे बड़ी विशेषता सामाजिक समानता और सरलता को माना है। वहाँ जात-पाँत का भेदभाव नहीं था। लोग मिलजुलकर रहते और अतिथियों के प्रति सदैव सहृदय रहते। गाँव गरीब थे, लेकिन वहाँ के लोग यात्रियों को ठहरने और भोजन की व्यवस्था करने का पूरा प्रयास करते। उनका आतिथ्य भाव लेखक को गहराई से प्रभावित करता है। तिब्बती घर छोटे, मिट्टी-पत्थर से बने, साधारण किन्तु आरामदायक होते थे। उनके समाज में धार्मिक आस्था का विशेष महत्व था। लामा साधु यात्रियों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन देते। मक्खन और नमक वाली चाय वहाँ का प्रिय पेय था और अतिथि-सत्कार का प्रतीक भी। लेखक ने अनुभव किया कि तिब्बती लोग सादगी, परिश्रम और आपसी सहयोग पर आधारित जीवन जीते थे। यही गुण उनके समाज को विशेष बनाते हैं।
4. कठिन यात्रा मार्गों ने यात्रियों की परीक्षा किस प्रकार ली?
उत्तर देखेंल्हासा की ओर जाने वाला मार्ग ऊँचे पहाड़ों, बर्फीले दर्रों और नदियों से होकर गुजरता था। यात्रियों को पैदल चलना पड़ता, जहाँ कई बार रास्ते बंद मिलते या बर्फ़ से ढके होते। रातें बेहद ठंडी होतीं और तंबुओं में सोना कठिन होता। भोजन और पानी की कमी भी लगातार परेशान करती। कई बार गाँव के लोग बाहरियों को ठहरने की जगह नहीं देते, जिससे यात्री खुले में रात बिताने को मजबूर होते। नदी पार करते समय जान का खतरा रहता। लेखक बताता है कि छोटे-छोटे गाँवों में भी लोग मुश्किल से अपनी जीविका चला पाते, फिर भी यात्रियों का स्वागत करते। इन परिस्थितियों ने यात्रियों को धैर्य, साहस और सहयोग की सीख दी। कठिन मार्गों ने उनकी शारीरिक और मानसिक परीक्षा ली, लेकिन यही अनुभव यात्रा को अविस्मरणीय बना गए।
5. लेखक ने इस यात्रा को ‘तीर्थयात्रा’ क्यों कहा है? विस्तार से समझाइए।
उत्तर देखेंलेखक ने ल्हासा यात्रा को केवल भौगोलिक या साहसिक यात्रा नहीं माना, बल्कि इसे ‘तीर्थयात्रा’ कहा है। इसके पीछे गहरा कारण है। यात्री ल्हासा जाकर धार्मिक और आध्यात्मिक संतोष प्राप्त करना चाहते थे। रास्ते में मिले बौद्ध मठ और मंदिर उनकी आध्यात्मिक प्यास को शांत करते। लामा साधु उन्हें पूजा-पाठ और ध्यान में मार्गदर्शन देते। कठिन परिस्थितियों में भी लोग एक-दूसरे की मदद करते, जिससे मानवता और सह-अस्तित्व का भाव प्रकट होता। यात्रा केवल शरीर को नहीं, बल्कि आत्मा को भी तपाती थी। मक्खन वाली चाय, गाँव वालों का आतिथ्य और तिब्बती समाज की समानता यात्रियों के मन को शांति देती थी। इसीलिए लेखक ने इसे मात्र कठिन यात्रा नहीं, बल्कि धार्मिक और आध्यात्मिक खोज बताया। अतः इसे उचित रूप से ‘तीर्थयात्रा’ कहा जा सकता है।
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