एनसीईआरटी समाधान कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 1 सूरदास

कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 1 सूरदास के NCERT समाधान (सत्र 2025-26) छात्रों के लिए बेहद सहायक हैं। पाठ के सभी प्रश्नों के उत्तर सरल भाषा में दिए गए हैं। इनसे विद्यार्थी कविता के भाव आसानी से समझ सकते हैं। सभी उत्तर NCERT के नवीनतम दिशानिर्देशों के अनुसार स्पष्ट रूप से समझाए गए हैं। ये समाधान विषय विशेषज्ञों द्वारा तैयार किए गए हैं। इन समाधानों से परीक्षा की तैयारी में सहायता मिलती है।
कक्षा 10 हिंदी क्षितिज पाठ 1 MCQ
कक्षा 10 हिंदी सभी अध्यायों के उत्तर

कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 1 के प्रश्न उत्तर

1. गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?
उत्तर देखेंगोपियाँ व्यंग्यात्मक भाव से उद्धव को कहती हैं कि वह बड़ा भाग्यवान है, क्योंकि वह मथुरा में कृष्ण के साथ ही रहते थे फिर भी कृष्ण के प्रेम से अछूते हैं। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि वह बड़ा अभागा है जो कृष्ण के संग रहकर भी उसके प्रेम के मोहपाश से वंचित है।

2. उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?
उत्तर देखेंगोपियों ने उद्धव के व्यवहार की तुलना कमल के पत्ते और तेल के मटके से की है, जैसे कमल का पत्ता जल में रहते हुए भी उसे जल की बूंदे भीगा नहीं पाती। अर्थात् जल का प्रभाव उसे पर नहीं पड़ता। दूसरा उद्धव का स्वाभाव जल के भीतर रखे तेल के मटके के समान है जिस पर जल की एक बूँद भी टिक नहीं पाती। हे उद्धव आपका भी वही हाल है। श्री कृष्ण का सानिध्य पाकर भी आप कृष्ण के प्रभाव से मुक्त हैं। अर्थात् आप कृष्ण के साथ रहते हैं फिर भी आप पर कृष्ण के प्रेम का तनिक भी प्रभाव नहीं है।

3. गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं?
उत्तर देखेंउद्धव जब गोपियों को ज्ञान का उपदेश देने लगा तो गोपियों ने प्रकार से उलाहना देते हुए उद्धव को चुप करा दिया। गोपियों ने उद्धव की तुलना कमल के पत्ते, तेल की मटकी आदि से करते हुए कहा जिस प्रकार पानी के संग रहते हुए भी कमल का पत्ता और तेल की मटकी जल से अछूते रहते हैं वैसे ही आप (उद्धव) कृष्ण रूपी प्रेम नदी के साथ रहते हुए भी प्रेम से अछूते हो।

4. उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया?
उत्तर देखेंश्रीकृष्ण के वृन्दावन से मथुरा जाने के बाद गोपियाँ कृष्ण विरह की अग्नि में जल रही हैं। वे दिन-रात यही इन्तजार करती रहती कि एक दिन कृष्ण उनसे मिलने अवश्य आएंगे, परन्तु कृष्ण की जगह उद्धव आ गए। उद्धव उनको निर्गुण भक्ति और योग का उपदेश देना चाह रहे थे। उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम किया। उन्होंने उद्धव के साथ-साथ कृष्ण को भी खूब खरी-खोटी सुनाई।

5. ‘मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?
उत्तर देखेंगोपियों का कहना है कि जब कृष्ण वृन्दावन में रहते थे तो हमने सभी मर्यादाओं को तोड़कर रात में भी उनके साथ रास-लीला में नृत्य किया। हमें घर के और बाहर के लोगों के तानें सहने पड़े, तो अब कौन सी मर्यादा की बात कही जा रही है। जब उन्होंने उद्धव की बातें सूनी तो उन्हें ऐसा लगा कि कृष्ण ने उन्हें पूरी तरह से छोड़ दिया है। अब तो मर्यादा पूरी तरह से नष्ट होती हुई नजर आ रही है क्योंकि अब तो कृष्ण ने भी छोड़ दिया है। उन्हें लगा कि अब वे बेसहारा हो गयीं हैं।

6. कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है?
उत्तर देखेंगोपियाँ कृष्ण के प्रेम में इतनी आसक्त थी कि उन्हें उसके अतिरिक्त कुछ सूझता ही नहीं था। गोपियों ने कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को हारिल पक्षी और गुड़ के प्रति आसक्त चींटी से की है। वे अपनों को हारिल पक्षी व श्रीकृष्ण को लकड़ी की भाँति बताया है। जिस प्रकार हारिल पक्षी सदैव अपने पंजे में कोई लकड़ी अथवा तिनका पकड़े रहता है, उसे किसी भी दशा में नहीं छोड़ता उसी प्रकार गोपियाँ भी कृष्ण के प्रेम को अपने दिल से निकाल नहीं पा रहीं हैं। दूसरे उदाहरण में वे कहती हैं कि चींटी गुड़ के प्रति इतनी आसक्त होती है कि गुड़ से चिपककर अपने प्राण तक गवां बैठती है फिर भी उससे अलग नहीं होना चाहती।

7. गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है?
उत्तर देखेंगोपियों उद्धव से कहती हैं कि योग की शिक्षा उन्हीं लोगों को देनी चाहिए जिनके मन में चक्री हो अथवा जो अस्थिर बुद्धि के हैं।गोपियाँ कहती हैं कि उनका मन कृष्ण के प्रेम में स्थिर हो चूका है। अतः गोपियों को आपके योग की आवश्यकता है ही नहीं क्योंकि वह अपने मन व इन्द्रियों को श्री कृष्ण के प्रेम के रस में डूबो चुकी हैं।

8. प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग-साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।
उत्तर देखेंगोपियाँ उद्धव जी से कहती हैं कि योग-साधना उस कड़वी ककड़ी के समान है जिसे निगलना बड़ा ही कठिन हैऔर अगर निगल लिया तो शरीर में कोई नया रोग पैदा कर देगा जो पहले न देखा न सूना। गोपियों के अनुसार उन्हें एक रोग अर्थात् प्रेमरोग पहले से लगा हुआ है इसलिए अब उन्हें कोई भी नया रोग नहीं चाहिए।

9. गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए?
उत्तर देखेंगोपियाँ कृष्ण को मथुरा का राजा मानती हैं इसलिए, गोपियों के अनुसार राजा का धर्म अपनी प्रजा की हर तरह से रक्षा करना होता है तथा नीति से राजधर्म का पालन करना होता। एक राजा को प्रजा को कभी सताना नहीं चाहिए। गोपियों को लगता है कि विरह में पीड़ित उन्हें कृष्ण दर्शन नहीं दे रहे हैं।

10. गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं?
उत्तर देखेंगोपियों को लगता है कि मथुरा जाने के बाद कृष्ण वृंदावन और गोपियों को भूल गए हैं। उन्हें गोपियों की जरा भी याद नहीं आती। उनमें इतनी भी मर्यादा नहीं बची है कि स्वयं आकर गोपियों की सुध लें। इसलिए, गोपियाँ चाहती हैं कि उन्होंने जो अपना मन कृष्ण के पास प्रेमपाश में गिरवी रखा हुआ है वह उन्हें वापस मिलना चाहिए।

11. गोपियों ने अपने वाकचातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाकचातुर्य की विशेषताएँ लिखिए?
उत्तर देखेंगोपियों ने अपने वाकचातुर्य से उद्धव के निर्गुण भक्ति वाले तर्कों का भली-भांति खंडन किया। उन्होंने अपनी तुलना गुड़ पर चिपकी हुई चींटी से की तो कभी स्वयं को हारिल पक्षी कहा। दूसरी ओर उद्धव के उपदेशों को कड़वी ककड़ी के समान बताया तथा कृष्ण की तुलना उस काले भ्रमर से की जो फूलों का रस चूसकर दूर उड़ जाता है।

12. संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइए?
उत्तर देखेंगोपियाँ भ्रमर गीत के माध्यम से उद्धव और कृष्ण पर कटाक्ष करती हैं। सूरदासजी ने बहुत ही सुन्दर ढंग से शृंगार रस, करुण रस, व्यंग्य, ज्ञान, प्रेम आदि का बहुत ही मार्मिक वर्णन किया है। संकलित पदों के आधार पर भ्रमर गीत की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
(क) गोपियों का एकनिष्ठ प्रेम: गोपियाँ स्वयं की तुलना उस हारिल पक्षी से करती हैं जो अपने पंजों में लकड़ी या घास का तिनका पकडे रहता है और कभी भी उसको नहीं छोड़ता। गोपियाँ बिना कृष्ण के जीवित नहीं रह सकती। गोपियाँ सोते-जागते कृष्ण के ध्यान में ही डूबी रहती हैं।
(ख) वियोग शृंगार: श्रीकृष्ण के प्रेम में गोपियाँ इतनी विह्वल हैं कि उन्हें मान मर्यादा का भी होश नहीं हैं। विरह के मारे रात-दिन, स्वप्न तथा जागृति में केवल कृष्ण का नाम ही रटती रहती हैं।
(ग) व्यंग्यात्मकता: गोपियाँ उद्धव और कृष्ण पर व्यंग्य करते हुए कहती हैं कि लगता है कि कृष्ण गुरुकुल से राजनीति पढ़कर आये हैं।
हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
तभी तो उन्होंने स्वयं के बदले उद्धव को भेज दिया। हमारे प्रेम का मजाक बनाने के लिए हमें योग का उपदेश दिया जा रहा है।
(घ) स्पष्टवादिता: गोपियाँ जब उद्धव से बातचीत करती हैं तो उनकी बातों में स्पष्टवादिता साफ़ झलकती है। वे योग-साधना को ऐसी ‘व्याधि’ कहती हैं, जिसके बारे में कभी देखा या सुना न गया हो। गोपियों के अनुसार योग केवल उनके लिए उपयोगी हो सकता था, जिनके मन में चकरी हो, किनकी बुद्धि अस्थिर और चंचल है।
(ङ) भावुकता – गोपियाँ स्वभाव से अत्यंत भावुक और सरल हृदय वाली थी। उन्होंने श्रीकृष्ण से निश्छल प्रेम किया था और उसी प्रेम में मग्न रहना चाहती थी। इसका उदाहरण वो गुड़ से चिपकी हुई चींटी से देती हैं जो गुड़ से अलग होने से ज्यादा मृत्यु को तरजीह देती है।
(च) सहज ज्ञान: गोपियाँ भले ही गाँव की अनपढ़ ग्वालिनें थी पर उन्हें अपने आस-पास के वातावरण और समाज का पूरा ज्ञान था। वे जानती थीं कि एक राजा के अपनी प्रजा के प्रति क्या कर्तव्य होते हैं और उसे प्रजा कर लिए क्या करना चाहिए।

कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 1 की रचना और अभिव्यक्ति

13. गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, आप अपनी कल्पना से और तर्क दीजिए।
उत्तर देखेंगोपियों ने उद्धव के सामने जो तर्क दिए वो परिस्थिति के अनुसार एकदम सही थे। मेरी कल्पना के अनुसार कृष्ण ने जहाँ अपना बचपन का बहुमूल्य समय गुजारा वहां से जुड़ी हर तरह की यादें थी। गोपियों से प्रेम तथा ग्वाल बालों से दोस्ती तो कृष्ण को एक बार मिलने के लिए स्वयं आना चाहिए था। विद्यार्थी अपनी कल्पना के अनुसार उत्तर लिख सकते हैं।

14. उद्धव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे गोपियों के पास ऐसी कौन-सी शक्ति थी जो उनके वाकचातुर्य में मुखरित हो उठी?
उत्तर देखेंगोपियों के पास श्रीकृष्ण के प्रति सच्चे प्रेम तथा भक्ति की शक्ति थी। जब उद्धव ने गोपियों को योग और ज्ञान का उपदेश देने की कोशिश की तब उनके मन को ठेस लगी और उन्होंने विभिन्न तर्कों से उद्धव को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। अंततः उद्धव को गोपियों के सामने हार माननी पड़ी।

15. गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नजर आता है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर देखेंगोपियों का यह कथन कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं, राजनीतिज्ञों के दोहरे चरित्र पर व्यंग्य है। गोपियों को कृष्ण से अपेक्षा थी कि वह उनसे मिलने स्वयं आयेगा लेकिन कृष्ण ने अपनी जगह उद्धव को भेजकर और ऊपर से योग का संदेश। गोपियों को लगा कि जैसा उनका प्रेम एकतरफ़ा है।

कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 1 अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर

पहले पद में कवि ने उधौ को ‘बड़भागी’ क्यों कहा है?
उत्तर देखेंकवि उधौ को भाग्यशाली मानता है क्योंकि उनका मन प्रेम के बंधनों और उससे जुड़ी पीड़ा से मुक्त है। वे विरह के कष्टों से अछूते हैं।

‘अपरस रहत सनेह तगा तें’ पंक्ति का भावार्थ क्या है?
उत्तर देखेंइसका अर्थ है कि उधौ प्रेम रूपी डोर के स्पर्श में रहते हुए भी उससे अछूते हैं। उनका हृदय प्रेम के प्रति आकर्षित नहीं होता, जैसे कमल का पत्ता पानी में रहकर भी गीला नहीं होता।

‘ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि’ उपमा से कवि क्या समझाना चाहता है?
उत्तर देखेंकवि कहता है कि जिस प्रकार तेल से भरी गागर पानी में डूबी रहती है पर पानी की एक बूंद भी उसमें नहीं समाती, उसी तरह उधौ का हृदय प्रेम से अछूता है।

दूसरे पद में गोपी की कौन-सी व्यथा प्रकट हुई है?
उत्तर देखेंगोपी व्यथित है क्योंकि उसका प्रेम अभिव्यक्त नहीं हो पाया। वह कृष्ण के आने की आशा में तन-मन से व्याकुल है और उनके योग-संदेश सुनकर विरहाग्नि में जल रही है।

‘गुर चाँटी ज्यौं पागी’ पंक्ति का क्या अर्थ है?
उत्तर देखेंइसका अर्थ है कि गोपी स्वयं को उस चींटी के समान अबला मानती है जिसे कोई बड़ा कीड़ा (गुर) काट लेता है। यहाँ ‘गुर’ कृष्ण के योग-संदेश या उनकी अनुपस्थिति के कष्ट का प्रतीक है।

तीसरे पद में भक्त ने हरि को हारिल पक्षी की लकड़ी क्यों कहा है?
उत्तर देखेंजिस प्रकार हारिल पक्षी अपनी लकड़ी को मन, वचन और कर्म से दृढ़ता से पकड़े रहता है, उसी प्रकार भक्त ने कृष्ण को अपने मन, वचन और कर्म से हृदय में दृढ़ता से स्थापित कर लिया है।

‘कान्ह-कान्ह जक री’ पंक्ति से भक्त की किस मानसिक स्थिति का पता चलता है?
उत्तर देखेंइस पंक्ति से भक्त की सर्वदा कृष्ण-स्मरण में लीन स्थिति का पता चलता है। वह जागते, सोते, दिन-रात सपनों में भी केवल ‘कान्हा-कान्हा’ का जाप करता रहता है।

‘ज्यौं करुई ककरी’ उपमा द्वारा कवि क्या व्यक्त करना चाहता है?
उत्तर देखें‘योग’ का नाम सुनना भक्त के लिए उसी प्रकार कष्टदायक है जैसे कड़वी ककड़ी। यह उपमा भक्त की कृष्ण-वियोग में असहनीय पीड़ा और योग-साधना के प्रति अरुचि को दर्शाती है।

चौथे पद में कवि ने हरि की किस विशेषता का उल्लेख किया है?
उत्तर देखेंकवि ने चौथे पद में हरि (कृष्ण) की राजनीति में निपुणता का उल्लेख किया है। वे राजनीति पढ़कर आए हैं और अत्यंत चतुर हैं।

‘ऊधौ भले लोग… पर हित डोलत धाए’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर देखेंइसका आशय यह है कि ऊधौ जैसे भले लोग भविष्य की चिंता में व्याकुल होकर परोपकार के लिए दौड़ते हैं, परंतु उन्हें अपना मन फेरना या अपनी बात मनवाना कठिन लगता है।

कवि के अनुसार ‘राज धरम’ क्या है?
उत्तर देखेंकवि सूरदास के अनुसार सच्चा राजधर्म यही है कि राजा प्रजा को किसी भी प्रकार से सताए नहीं। प्रजा की रक्षा और कल्याण करना ही उसका परम कर्तव्य है।

‘अब अपनै मन फेर पाइहैं…’ पंक्ति में कवि किस ओर संकेत कर रहा है?
उत्तर देखेंकवि संकेत कर रहा है कि कृष्ण (हरि) ने पहले से ही गोपियों के प्रति जो प्रेमभाव रखा था, उसे बदलने की कोशिश करना या उनका मन फेरना उनके लिए मुश्किल होगा, जैसे चुराई हुई वस्तु को वापस लेना।

‘ते क्यौं अनीति करैं आपुन…’ – कवि इसके द्वारा क्या तर्क देता है?
उत्तर देखेंकवि का तर्क है कि जो व्यक्ति दूसरों को अनीति (अन्याय) से बचाता है, वह स्वयं अनीति कैसे कर सकता है? अर्थात् कृष्ण को स्वयं अनीति नहीं करनी चाहिए।

सूरदास के इन पदों में प्रमुख रस कौन-सा है?
उत्तर देखेंइन पदों में प्रमुख रस विरह या वियोग शृंगार रस है, विशेषकर गोपियों की कृष्ण के वियोग में व्याकुलता और विरह-वेदना की अभिव्यक्ति हुई है।

सूरदास की भाषा शैली की एक प्रमुख विशेषता इन पदों में क्या दिखती है?
उत्तर देखेंइन पदों में सूरदास की ब्रजभाषा की सरसता, माधुर्य, सहज अभिव्यक्ति और लोकजीवन से जुड़े सटीक उदाहरणों (जल-तेल, हारिल, करुई ककरी) का प्रयोग दिखता है।

कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 1 लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर

पहले पद में गोपी उधौ को “बड़भागी” क्यों कहती है? उनकी निर्लिप्तता को समझाइए।
उत्तर देखेंगोपी उधौ को “बड़भागी” कहती है क्योंकि वे प्रेम और उससे जुड़ी पीड़ा से सर्वथा मुक्त हैं। उनका हृदय स्नेह रूपी डोर (तगा) के स्पर्श में रहकर भी उससे अछूता है, जिस प्रकार कमल का पत्ता पानी में रहकर भी गीला नहीं होता या पानी में डूबी तेल की गागर में एक बूंद भी पानी नहीं घुस पाता। उधौ प्रेम-नदी में डुबकी लगाने से बचे रहते हैं और रूप के प्रति आसक्त नहीं होते। यह निर्लिप्तता उन्हें विरह के कष्टों से बचाती है, जिसे गोपी दुर्लभ भाग्य मानती है।

“प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरड्ढौ” और “गुर चाँटी ज्यौं पागी” पंक्तियों के माध्यम से गोपी स्वयं को किस स्थिति में चित्रित करती है? उनकी पीड़ा क्या है?
उत्तर देखें“प्रीति-नदी…” पंक्ति में गोपी कहती है कि वह प्रेम रूपी गहरी नदी में पैर तक नहीं डुबो पाई है, फिर भी उसका सारा अस्तित्व (मन) कृष्ण के रूप-पराग से आक्रांत है। यह विडंबना उसकी गहरी व्यथा को दर्शाती है। “गुर चाँटी…” पंक्ति में वह स्वयं को उस छोटी चींटी के समान असहाय और पीड़ित बताती है जिसे एक बड़े कीड़े (गुर) ने काट लिया है। यहाँ ‘गुर’ कृष्ण के योग का संदेश या उनकी अनुपस्थिति का कष्ट है, जिसने गोपी को आहत कर दिया है। उसकी पीड़ा विरह और प्रेम की अभिव्यक्ति न पा सकने की मजबूरी है।

दूसरे पद में गोपी की “मन की मन ही माँझ रही” स्थिति क्या है? वह किन कारणों से व्यथित है?
उत्तर देखें“मन की मन ही माँझ रही” का अर्थ है गोपी के मन की बात मन में ही दब कर रह गई। वह अपने प्रेम और विरह को किसी से कह नहीं पा रही है। इस मौन पीड़ा के कारण हैं: कृष्ण के आने की आशा और उनके न आने से निराशा (“अवधि अधार आस आवन की”) जिससे उसका तन-मन व्याकुल है। कृष्ण के योग के संदेशों (“जोग सँदेसनि”) को सुन-सुनकर उसका विरह और भी भयंकर हो गया है, जिससे वह जल रही है (“बिरहिनि बिरह दही”)। उसका प्रेम निरर्थक होता प्रतीत हो रहा है, जिससे उसकी मर्यादा (“मरजादा”) भी खतरे में है।

तीसरे पद में भक्त ने हरि को “हारिल की लकरी” क्यों कहा है? इस भक्ति की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर देखेंहारिल (हड़ताल या हरियल) पक्षी अपनी लकड़ी को अत्यंत दृढ़ता से पकड़े रहता है। भक्त ने कृष्ण को अपने हृदय में उसी लकड़ी के समान स्थापित कर लिया है। इस भक्ति की प्रमुख विशेषताएँ हैं: एकनिष्ठता (केवल नंदनंदन पर ही ध्यान), दृढ़ता (“दृढ़ करि पकरी” – मन, कर्म और वचन से पक्की), सर्वकालिकता (“जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि” – जागते, सोते, सपनों में, दिन-रात सदैव) और निरंतरता (“कान्ह-कान्ह जक री” – सतत स्मरण)। यह भक्ति जीवन के हर पल और हर अवस्था में व्याप्त है।

“जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी” और “यह तौ ‘सूर’ तिनहि लै सौंपौ, जिनके मन चकरी” – इन पंक्तियों के माध्यम से भक्त कृष्ण से क्या कहना चाहता है?
उत्तर देखेंपहली पंक्ति में भक्त कहता है कि योग (वैराग्य या कृष्ण से दूर रहने का संदेश) का नाम सुनना उसके लिए उतना ही कष्टदायक है जितना कड़वी ककड़ी खाना। यह उसकी कृष्ण के प्रति गहन आसक्ति और उनके वियोग में असहनीय पीड़ा को दर्शाता है। दूसरी पंक्ति में भक्त (सूरदास) कृष्ण से विनती करता है कि वह इस व्यथा को केवल उन्हीं लोगों को सौंप सकता है जिनके मन चंचल हैं और कृष्ण में स्थिर नहीं हो पाए हैं। यह एक व्यंग्यात्मक प्रार्थना है जो दर्शाती है कि उसका मन तो पूर्णतः कृष्ण में रम गया है, उसे योग का कष्ट क्यों दिया जा रहा है।

चौथे पद में कृष्ण की “राजनीति” और “चतुराई” का क्या आशय है? गोपी उनसे क्या अपेक्षा करती है?
उत्तर देखेंयहाँ “राजनीति” और “चतुराई” कृष्ण की कूटनीति, बुद्धिमत्ता और समझौता करने की क्षमता की ओर संकेत करती है। गोपी कहती है कि कृष्ण पहले से ही अत्यंत चतुर थे, अब तो उन्होंने ग्रंथ पढ़कर (शास्त्र ज्ञान प्राप्त कर) अपनी बुद्धि को और भी बढ़ा लिया है। उन्होंने योग का संदेश भी इसी चतुराई से भेजा है। गोपी की अपेक्षा यह है कि इतनी बुद्धिमानी होने के बावजूद, उन्हें अपना मन बदलना नहीं चाहिए। जिस प्रकार चुराई हुई वस्तु को वापस लेना मुश्किल होता है (“चलत जु हुते चुराए”), उसी प्रकार गोपियों का हृदय पहले ही कृष्ण को अर्पित हो चुका है, उसे वापस लेना अनुचित है।

उत्तर देखें“ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए” – इस पंक्ति के आधार पर ऊधौ के चरित्र की किन विशेषताओं का उल्लेख है? गोपी उनकी इस चिंता का क्या उत्तर देती है?
उत्तर: इस पंक्ति में ऊधौ की दो प्रमुख विशेषताएँ उजागर होती हैं: भलमनसाहत (“भले लोग”) और परोपकारिता (“पर हित डोलत धाए”)। वे भविष्य की चिंता (“आगे के”) में व्याकुल होकर दूसरों के हित के लिए दौड़-धूप करते हैं। गोपी ऊधौ की इस भलाई और चिंता को स्वीकार करती है, पर उनकी दलील का उत्तर यह देती है कि कृष्ण को अपना मन बदलना नहीं चाहिए। गोपियों का हृदय पहले ही कृष्ण को समर्पित हो चुका है, उसे वापस लेना उचित नहीं। वे कृष्ण से अपने वचन और प्रेम पर अटल रहने की अपेक्षा करती हैं।

“ते क्यौं अनीति करैं आपुन, जे और अनीति छुड़ाए” – इस तर्क के माध्यम से गोपी कृष्ण से क्या अपील कर रही है?
उत्तर देखेंइस तर्क के द्वारा गोपी कृष्ण से नैतिकता और न्याय की अपील कर रही है। उनका कहना है कि जो व्यक्ति स्वयं दूसरों को अन्याय (अनीति) से बचाता है (जैसे कृष्ण ने अनेक अत्याचारियों का वध किया था), वह खुद अन्याय कैसे कर सकता है? गोपियों के प्रति उपेक्षा या उनके प्रेम को ठुकराना भी एक प्रकार का अन्याय ही होगा। गोपी चाहती है कि कृष्ण उनके सच्चे प्रेम का अनादर करके स्वयं अन्यायी न बनें। यह तर्क कृष्ण की न्यायप्रियता पर दबाव डालता है।

सूरदास के अनुसार “राज धरम” क्या है? चौथे पद के अंत में दिए गए इस सिद्धांत का क्या महत्व है?
उत्तर देखेंसूरदास के अनुसार “राज धरम” (राजा का परम कर्तव्य) का सार यह है: “जो प्रजा न जाहि सताए” अर्थात प्रजा को किसी भी प्रकार से सताना नहीं चाहिए। यह सिद्धांत राज्य के उद्देश्य को स्पष्ट करता है – राजा का धर्म प्रजा की रक्षा करना और उसका कल्याण सुनिश्चित करना है, न कि उस पर अत्याचार करना। इस पंक्ति का महत्व यह है कि यह केवल राजनीतिक सिद्धांत नहीं, बल्कि गोपियों द्वारा कृष्ण को दिया गया एक सूक्ष्म संदेश भी है। कृष्ण को, एक राजकुमार के रूप में, प्रजा (गोपियों) को उनकी भक्ति के कारण दुःख नहीं देना चाहिए।

सूरदास के इन पदों में गोपियों की भक्ति भावना की कौन-कौन सी विशेषताएँ प्रकट होती हैं? किन्हीं दो का उल्लेख करें।
उत्तर देखेंइन पदों में गोपियों की भक्ति भावना की अनेक विशेषताएँ प्रकट होती हैं:
अनन्यता एवं दृढ़ निश्चय: गोपियों का सम्पूर्ण अस्तित्व कृष्ण के प्रति समर्पित है। उनका मन, वचन और कर्म सदैव कृष्ण में लीन रहता है। तीसरे पद का भक्त कृष्ण को “हारिल की लकरी” के समान दृढ़ता से पकड़े हुए है, जो इस अनन्यता का प्रतीक है। उनकी भक्ति अटल है।
विरह की तीव्रता एवं आर्त भाव: गोपियों की भक्ति में विरह की पीड़ा केंद्रीय स्थान रखती है। कृष्ण की अनुपस्थिति उनके लिए असहनीय यातना है। वे “बिरहिनि बिरह दही” (विरह में जल रही हैं) हैं। यह पीड़ा उनकी गहन आसक्ति और कृष्ण के प्रति उनकी निर्भरता को दर्शाती है। उनका आर्त पुकार करना (“चाहति हुतीं गुहारि”) इसी तीव्र भाव की अभिव्यक्ति है। उनकी भक्ति भावुकता और समर्पण से परिपूर्ण है।

कक्षा 10 हिंदी क्षितिज अध्याय 1 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर

पहले पद में गोपी ने ऊधौ को “अति बड़भागी” क्यों कहा है? इसके पीछे की गोपी की मनोदशा का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर देखेंगोपी ऊधौ को “अति बड़भागी” इसलिए कहती है क्योंकि वह कृष्ण के सानिध्य में रहकर भी विरह के दर्द से मुक्त है। ऊधौ का मन आसक्ति रहित है, जैसे “पुरइनि पात पर जल की बूंद नहीं ठहरती” या “तेल की गागर जल में डूबी रहकर भी उससे अलग”। गोपी की यह टिप्पणी उसकी गहरी विरह-वेदना को उजागर करती है। वह स्वयं को “अबला” और “गुर चाँटी ज्यौं पागी” (गुरु की मार से बिखरी हुई) बताती है, जो दर्शाता है कि उसका सारा अस्तित्व कृष्ण के प्रेम में डूबा हुआ है। ऊधौ के “भाग्यशाली” होने का आरोप दरअसल उसकी अपनी असहायता और ईर्ष्या का प्रतिबिंब है। वह ऊधौ की भावनात्मक दूरी से आहत है और अपनी तड़प को इस तुलना के माध्यम से व्यक्त करती है।

“प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ” – इस पंक्ति के प्रतीकों के माध्यम से सूरदास ने गोपी के प्रेम की किन विशेषताओं को चित्रित किया है?
उत्तर देखें“प्रीति-नदी” का प्रतीक गोपी के प्रेम की अथाहता, गतिशीलता और अविरल प्रवाह को दर्शाता है। “पाउँ न बोरयौ” (पैरों से नहीं माप सकती) कहकर कवि बताता है कि यह प्रेम इतना विशाल है कि उसकी सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती। यह भावनात्मक गहराई दर्शाता है। “दृष्टि न रूप परागी” जोड़कर सूरदास स्पष्ट करते हैं कि गोपी का प्रेम कृष्ण के बाह्य रूप (“पराग”) तक सीमित नहीं, बल्कि उनके सम्पूर्ण अस्तित्व के प्रति है। ये प्रतीक गोपी के प्रेम की निम्न विशेषताएँ उभारते हैं:
अपरिमेयता: प्रेम की गहराई अमाप्य है।
निस्वार्थता: रूप के बाह्य आकर्षण से परे आत्मिक समर्पण।
सर्वग्रासी प्रकृति: यह प्रेम उसके सम्पूर्ण जीवन को समेटे हुए है, जैसे नदी का प्रवाह।
इस प्रकार सूरदास प्रेम को एक प्राकृतिक शक्ति के रूप में चित्रित करते हैं।

तीसरे पद में “हारिल की लकरी” का प्रयोग गोपी के मनोभावों को व्यक्त करने में किस प्रकार सार्थक है?
उत्तर देखें“हारिल की लकरी” (हड़पने वाले पक्षी की लकड़ी) का प्रतीक गोपी के मन में कृष्ण के प्रति अटूट एकाग्रता और बाध्यकारी आसक्ति को दर्शाता है। जिस प्रकार हारिल पक्षी किसी वस्तु को पंजे में पकड़कर कभी नहीं छोड़ता, उसी तरह गोपी ने मन-कर्म-वचन से कृष्ण को “दृढ़ करि पकरी” है। यह प्रतीक उसकी भक्ति की निम्न विशेषताएँ उजागर करता है:
अविचल निष्ठा: “जागत-सोवत-स्वप्न” हर क्षण कृष्ण का स्मरण।
व्याकुलता: “कान्ह-कान्ह जक री” कहकर जिस तरह वह उनके नाम को दोहराती है, वह एक मानसिक बाध्यता जैसी है।
निराशा: “जोग सँदेस” (योग का संदेश) सुनकर वह “करुई ककरी” (कड़वे करेले) की तरह विरह से दग्ध होती है। इस प्रकार यह प्रतीक गोपी की भक्ति को एक प्राकृतिक, अनिवार्य आवेग के रूप में चित्रित करता है।

अंतिम पद में सूरदास ने “राजनीति” और “राज धरम” की क्या परिभाषा दी है? यह समकालीन शासन व्यवस्था पर कैसे प्रहार करता है?
उत्तर देखेंअंतिम पद में सूरदास “राजनीति” को एक कपटपूर्ण कौशल के रूप में चित्रित करते हैं, जहाँ कृष्ण “गुरु ग्रंथ पढ़ाए” (कूटनीति सीखकर) आए हैं और गोपियों को “जोग-संदेस” (योग का झूठा संदेश) भेजकर छल करते हैं। इसके विपरीत, वे “राज धरम” की सच्ची परिभाषा देते हैं: “जो प्रजा न जाहि सताए” अर्थात जिसमें प्रजा को कष्ट न दिया जाए। यहाँ सूरदास दो तीखे प्रहार करते हैं:
शासकों की कपटनीति पर: “ते क्यौं अनीति करैं आपुन, जे और अनीति छुड़ाए?” – जो स्वयं अन्याय करे, वह धर्म कैसे स्थापित कर सकता है?
प्रजा के शोषण पर: राजधर्म का मूलमंत्र प्रजा की रक्षा करना है, न कि उसे “सताए” जाना।
इस पद के माध्यम से कवि यह संदेश देता है कि वास्तविक राजनीति न्याय और प्रजा-हित में निहित है, न कि छल-कपट में।

“सूरदास अब धीर धरहि क्यों?” – इस प्रश्न में निहित गोपी की विरह-व्यथा के मनोवैज्ञानिक पहलुओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर देखेंयह प्रश्न गोपी की विरह-वेदना के चरमोत्कर्ष को दर्शाता है। “धीर धरहि क्यों?” (धैर्य क्यों धरूं?) कहकर वह अपनी भावनात्मक असहनशीलता व्यक्त करती है। इसके पीछे कई मनोवैज्ञानिक स्तर काम कर रहे हैं:
काल्पनिक यंत्रणा: “अवधि अधार आस आवन की” – कृष्ण के आगमन की अनिश्चित प्रतीक्षा उसे तन-मन से “बिथा सही” (पीड़ा सहने) को विवश करती है।
संदेशों से उत्तेजना: “जोग-संदेसनि सुनि-सुनि” – कृष्ण के योग के संदेश उसकी वेदना को “बिरहिनि बिरह दही” (विरहिनी को विरह से जलाने) जैसा बना देते हैं।
निराशा की हद: “मरजादा न लही” – सामाजिक मर्यादा टूट चुकी है। वह स्वीकार करती है कि उसने हर संभव गुहार लगाई (“चाहति हुतीं गुहारि”), पर सब व्यर्थ रहा।
इस प्रकार यह पंक्ति गोपी की मनःस्थिति में हताशा, आकुलता और भावनात्मक विस्फोट को समेटे हुए है।