एनसीईआरटी समाधान कक्षा 10 हिंदी कृतिका अध्याय 1 माता का अँचल

कक्षा 10 हिंदी कृतिका अध्याय 1 माता का अँचल के NCERT समाधान सत्र 2025-26 में छात्रों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण संसाधन हैं। इसमें पाठ के सभी प्रश्नों के उत्तर सरल भाषा में मिलते हैं। इनसे विद्यार्थी पाठ को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं। सभी उत्तर नवीनतम पाठ्यक्रम के अनुरूप तथा स्पष्ट रूप से समझाए गए हैं। ये समाधान विषय विशेषज्ञों द्वारा तैयार किए गए हैं। इनसे परीक्षा की तैयारी आसान हो जाती है।

कक्षा 10 हिंदी कृतिका अध्याय 1 के प्रश्न उत्तर

1. प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है। आपकी समझ से इसकी क्या वजह हो सकती है?
उत्तर देखेंबच्चा जब माँ के गर्भ से बाहर की दुनिया में आता है तो सर्वप्रथम उसे माँ का ही आँचल नसीब होता है। माँ बच्चे की जन्मदाता तथा पालन-पोषण करने वाली होती है। स्वाभाविक रूप से बच्चा माँ से अधिक लगाव रखता है। माँ का प्यार व दुलार पिता की अपेक्षा अधिक अधिक होती है। छोटे बच्चे की भावना एक माँ पिता की अपेक्षा अधिक अच्छी तरह से समझ सकती है। माँ का अपने बच्चे से आत्मिक प्रेम होता है। बच्चा चाहकर भी माँ की ममता को भुला नहीं सकता। यद्यपि ऐसा नहीं है कि पिता अपनी संतान से प्रेम नहीं करता लेकिन जो करुणा और ममत्व माँ के हृदय में होता है वह और कहीं नहीं मिल सकता। इसलिए पिता से अधिक लगाव होने पर भी विपदा के समय बच्चा पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है।

2. आपके विचार से भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है?
उत्तर देखेंमनुष्य का स्वाभाविक गुण होता है कि अपनी आयु तथा प्रकृति के लोगों के साथ अधिक जुड़ाव महसूस करता है। भोलानाथ को भी जब साथी बालकों की टोली दिखाई देती है तो उनका खेलना-कूदना देखकर, वह गुरु जी की डाँट-फटकार तथा अपना सिसकना भूल जाता है और उनके साथ खेलने में मग्न हो जाता है। बच्चों के साथ उसे लगता है कि अब डर, भय और किसी तरह की चिंता की आवश्यकता नहीं रही। यही कारण है कि भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना भूल जाता है।

3. आपने देखा होगा कि भोलानाथ और उसके साथी जब-तब खेलते-खाते समय किसी न किसी प्रकार की तुकबंदी करते हैं। आपको यदि अपने खेलों आदि से जुड़ी तुकबंदी याद हो तो लिखिए।
उत्तर देखें1. लाला-लाला लोरी, दही की कटोरी
2. अटकन – बटकन दही चटाके
3. चन्दा मामा दूर के मुए पकाए भूर के
4. अकड़- बकड़ बंबे बो, अस्सी नब्बे पूरे सौ
इस तरह की और भी कई सारी तुकबन्दिया हैं जो बच्चे खेलते समय प्रयोग करते हैं।

4. भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री आपके खेल और खेलने की सामग्री से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर देखेंसमय के अनुसार बच्चों के खेल और खेलने के तौर-तरीके भी बदल गए हैं। भोलानाथ और उसके साथियों के पास मिट्टी के बर्तन, पत्थर, पेड़ों के पत्ते, गीली मिट्टी, घर के समान आदि वस्तुएं होती थी जिनसे वह खेलते व खुश होते थे। परन्तु आज हमारे खेलने का सामान इन सब वस्तुओं से भिन्न है। हमारे खेलने के लिए आज क्रिकेट का सामान, बैडमिंटन, मोबाइल गेम, वीडियो गेम व कम्प्यूटर गेम आदि बहुत सी चीज़ें हैं जो इनकी तुलना में बहुत अलग हैं।

5. पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वर्णन कीजिए जो आपके दिल को छू गए हों?
उत्तर देखेंबाबूजी का बच्चों के साथ झूठ-मूठ कुश्ती लड़ना एवं हार जाना तथा बाबूजी का झूठ मुठ रो कर दिखाना। माँ द्वारा जबरदस्ती पकड़कर सिर में सरसों का तेल मलना तथा साथियों की आने पर सब कुछ भूल कर उनके साथ खेल-तमाशे में लग जाना। चूहों के बिल में पानी डालने पर साँप से सामना होने पर रोते-चिल्लाते घर की ओर भागना। ये सब ऐसे प्रसंग हैं जो आज भी दिल को छू जाते हैं।

6. इस उपन्यास अंश में तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति का चित्रण है। आज की ग्रामीण संस्कृति में आपको किस तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं।
उत्तर देखेंआज की और पहले की ग्रामीण संस्कृति बहुत कुछ बदल गया है जो स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है।
1. आज के ग्रामीण परिवेश में बच्चों के उन्मुक्त, परस्पर स्नेह में बंधे समूह नजर नहीं आते हैं।
2. बच्चे बाहर खेलने की अपेक्षा घर अन्दर टी. वी. देखना, मोबाइल पर गेम खेलना, आदि ज्यादा पसंद करते हैं।
3. बच्चों के खेलने के लिए पहले जैसे खुले मैदानों अब नहीं दिखाई देते हैं।
4. ग्रामीण परिवेश में भी आधुनिकता का प्रसार हो गया है जिससे उनके खेल और खेलने की सामग्री भी बदल गयी है।
5. पुराने समय में मिट्टी के विभिन्न के खेल, रामलीला के अभिनय, गुल्ली-डंडा, खो-खो आदि खेल खेले जाते थे वहीं आज क्रिकेट, बैडमिंटन, कैरम, चेस आदि खेल ज्यादा खेले जाते हैं।

7. पाठ पढ़ते-पढ़ते आपको भी अपने माता-पिता का लाड़-प्यार याद आ रहा होगा। अपनी इन भावनाओं को डायरी में अंकित कीजिए।
उत्तर देखेंपाठ (माता का आंचल) पढ़ते−पढ़ते मुझे भी अपने बचपन के दिन याद आने लगे जब माता−पिता का कभी काना खिलाने के बहाने, कभी नहलाने के लिए, तो कभी सुलाने के लिए लाड़−प्यार और मान मनुहार करते थे। ये सभी यादें आज भी मन को छू जाती हैं। कभी खेलने घर से बाहर जाते थे तो माँ समझा-बुझाकर भेजती। बचपन में हमें भी सुबह सवेरे मां बड़े प्यार से जगाया करती थी।

8. यहाँ माता-पिता का बच्चे के प्रति जो वात्सल्य व्यक्त हुआ है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर देखेंछोटे बच्चों के प्रति माता-पिता का विशेष प्यार और लगाव रहता है। बच्चे का माता के आँचल में खेलना, सुबह नहा धोकर पिता के साथ पूजा में बैठना और पिताजी द्वारा माथे पर प्यार से चन्दन का टीका लगाना। जब खाना खाने के लिए बैठो तो माँ बहुत सारे पक्षियों के नाम ले लेकर प्यार से खिलाना। घर से बाहर खेलने जाओ तो माताजी साफ़-सुथरे कपड़े पहनाकर और यह समझाकर कि किसी से लड़ना नहीं। कभी पिताजी के साथ बाहर घूमने जाते तो आइसक्रीम खाने को मिलती।

9. माता का अँचल शीर्षक की उपयुक्तता बताते हुए कोई अन्य शीर्षक सुझाइए।
उत्तर देखेंपाठ में एक माँ का अपने छोटे बच्चे के प्रति कितना गहरा लगाव व ममता होती है तथा किस प्रकार बच्चे और माँ के बीच स्नेह का एक पवित्र बंधन होता है। बच्चे के बाल-सुलभ कृत्य जिन पर एक माँ अपना प्यार लुटाती है। एक छोटे बच्चे के लिए उसकी माता का आँचल ही उसका सम्पूर्ण संसार होता है, वह खुश हो या दुखी उसका एकमात्र सहारा यही आँचल होता है। इस प्रकार कह सकते हैं कि वैसे तो लेखक द्वारा दिया गया शीर्षक उपयुक्त है फिर भी सुझाव के तौर पर इसका शीर्षक ‘माँ की ममता’ भी हो सकता है।

10. बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते हैं?
उत्तर देखेंबच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को उनके साथ तरह-तरह के खेल खेलकर, उनकी सिखाई हुई बातों के अनुसार कार्य करना, अपनी बालपन वाली भोली-भाली बातों से रिझाना, उन्हें चूमकर, माता-पिता अगर नाराज हो जाएँ तो कई तरह से बातें बनाकर उन्हें मनाना, उनकी गोद में या कधे पर बैठकर प्रकट करते हैं।

11. इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है वह आपके बचपन की दुनिया से किस तरह भिन्न है?
उत्तर देखेंइस कहानी का समय तब का है जब बच्चों के पास खेलने के लिए सीमित साधन होते थे। उस समय माता-पिता के पास बच्चों के लिए पर्याप्त समय होता था जिससे बच्चे माता-पिता अन्य भाई, बहन के अधिक प्यार व आत्मीयता का भाव रखते थे। घर के बाहर खेलने जाते तो साथ के बच्चे सामूहिक खेल बड़े प्यार से मिलकर खेलते थे। कभी बच्चे आपस में लड़ते भी तो थोड़ी ही देर में समझौता भी हो जाता था। आजकल का माहौल बिल्कुल ही बदल गया है। न तो लोगों के बीच वह प्यार रहा न ही बच्चों के खेल में वो समूह वाली भावना रही। आजकल सबकुछ कृत्रिम सा हो गया, खेलने आधुनिक साधन आ गए हैं जिन्हें घर के अन्दर ही खेला जा सकता है। इसलिए बाहरी मेलजोल ख़त्म सा होता जा रहा है। उससे कई बार बच्चे अंतर्मुखी या हिंसक होते जा रहे हैं।

12. फणीश्वरनाथ रेणु और नागार्जुन की आंचलिक रचनाओं को पढि़ए।
उत्तर देखेंविद्यार्थी फणीश्वरनाथ रेणु और नागार्जुन की आंचलिक रचनाओं को पुस्तकालय से लेकर पढ़ें।

कक्षा 10 हिंदी कृतिका अध्याय 1 के अतिरिक्त प्रश्नों के उत्तर

1. तारकेश्वर नाथ का नाम भोला नाथ कैसे पड़ा?
उत्तर देखेंपिताजी जब सुबह पूजा में बैठते थे तो लेखक और उसके भाई को भी नहला-धुलाकर अपने साथ पूजा में बिठा लेते थे। उनके माथे पर भभूत एवं चन्दन लगा देते थे। सिर पर लंबी जटाएँ होने के कारण भभूत के साथ वह ‘भोला’ बन जाते थे। पिता जी उन्हें इस रूप में देखकर बड़े प्यार से ‘भोलानाथ’ कहकर पुकारते थे और इस तरह उसका नाम भोलेनाथ ही पड़ गया।

2. पाठ में बच्चों द्वारा बनाए गए घरौंदे का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर देखेंबच्चों ने जो घरौन्दा बनाया था उसमें तिनके का छप्पर, पत्तों की छत, दिया सलाई की डिब्बियों के किवाड़, घड़े के मुंह का चूल्हा-चक्की, दिए की कड़ाही और पूजा की आचमनी की कलछी बनाई गयी थी। इस घर के अन्दर पानी को घी की तरह, धूल-मिट्टी को आटे के रूप में, बालू को चीनी की तरह इस्तेमाल किया गया था। सब लोग मिलकर घर के अन्दर पंगत में बैठकर भोजन करते थे। इस प्रकार लेखक ने बच्चों का जो घरौंदा तैयार किया था वह अद्भुत् था।

3. लेखक को उसके माता-पिता क्या कहकर पुकारते थे?
उत्तर देखेंलेखक का वास्तविक नाम तो तारकेश्वरनाथ था लेकिन माता-पिता उसे प्यार से भोलानाथ कहकर पुकारते थे।

4. लेखक के पिता जब रामायण का पाठ करते थे तब लेखक क्या करता था?
उत्तर देखेंजब बाबूजी रामायण का पाठ करते थे तब लेखक उनके बगल में बैठकर चुपके से दर्पण में अपना चेहरा निहारा करते थे और जब बाबूजी की नजर पड़ती तो शरमाकर दर्पण को नीचे रख देता। यह देखकर लेखक के पिता भी मुस्करा पड़ते थे।

5. लेखक बम-भोला कब बन जाता था?
उत्तर देखेंसुबह नहा-धोकर जब लेखक अपने पिता के साथ पूजा में बैठता था तब बाबूजी उसके ललाट पर भभूति तथा त्रिपुंड लगा देते थे जिससे वह बम-भोला जैसे बन जाता था।

6. बैजू कौन था? वह किसे चिढ़ाता था?
उत्तर देखेंबैजू लेखक की मंडली का एक लड़का था। वह सभी लड़कों में बड़ा ढीठ किस्म का था। बैजूको जब भी मौका मिलता वह मूसन तिवारी को चिढ़ाता था। वह उन्हें चिढ़ाने के लिए कहता था कि ‘बुढ़वा बेईमान माँगे करैला का चोखा’। इससे मूसन तिवारी गुस्सा हो जाता था।

7. लेखक और उसके मित्रों ने जब चूहे के बिल में पानी डाला तो क्या हुआ?
उत्तर देखेंजब लेखक और उसके दोस्तों ने चूहों के बिल में पानी डाला तो उसमें से चूहे की जगह बिल से साँप निकल आया और बच्चे चिल्लाते हुए डर के मारे घर की ओर भागे।

8. ‘माँ के बिना बच्चे का विकास संभव नहीं है’। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? अपने विचार लिखिए।
उत्तर देखेंएक माँ की बच्चे के जन्म से लेकर उसके पालन पोषण तक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अगर नवजात बच्चे के साथ माँ न हो तो उसका जीवनयापन असंभव सा हो जाता है। माँ अपने सुख-दुःख की परवाह किये बिना बच्चे के पालन में बिना थके लगी रहती है। चाहे बच्चे की साफ़-सफाई का मामला हो या उसके खाने-पीने का ध्यान रखना हो। माँ को किसी और के बिना बच्चे की पहली शिक्षक माना जाता है। एक माँ ही होती है जो अपने बच्चे को जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाती है। एक माँ बच्चे की वृद्धि और विकास को बहुत प्रभावित कर सकती है। जब बच्चे के विकास को बढ़ावा देने की बात आती है तो उसकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

कक्षा 10 हिंदी कृतिका अध्याय 1 अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर

भोलानाथ के पिता की दिनचर्या कैसी थी?
उत्तर देखेंवे तड़के उठकर नहा-धोकर पूजा करते थे, फिर ‘रामनाम बही’ पर हजार राम-नाम लिखते थे। अंत में आटे की गोलियों पर राम-नाम लिखकर गंगा में मछलियों को खिलाते थे।

भोलानाथ का असली नाम क्या था और उन्हें क्यों भोलानाथ कहा जाता था?
उत्तर देखेंउनका असली नाम तारकेश्वरनाथ था, लेकिन भभूत लगाने पर वे “बम-भोला” जैसे दिखते थे, इसलिए पिता प्यार से उन्हें भोलानाथ कहकर बुलाते थे।

माता द्वारा भोलानाथ को खिलाने का तरीका कैसा था?
उत्तर देखेंमाता दही-भात को चिड़ियों के आकार का कौर बनाकर खिलाती थीं और कहतीं कि “जल्दी खा लो, नहीं तो उड़ जाएँगे”, जिससे वह आनंद से खाता था।

बच्चे किस प्रकार के नाटक खेलते थे?
उत्तर देखेंवे मिठाई की दुकान, घरौंदा, बरात निकालना, खेती करना जैसे नाटक खेलते थे। चबूतरे को रंगमंच बनाकर तिनकों, कंकड़ों आदि से सामान तैयार करते थे।

पिता बच्चों के खेल में कैसे शामिल होते थे?
उत्तर देखेंवे खेलते समय बच्चों से मिठाई खरीदते, घरौंदे में भोजन करने बैठते या बरात में दुल्हिन का मुख देखने आते थे, जिससे बच्चे हँसकर भाग जाते थे।

माता भोलानाथ के सिर में तेल क्यों डालती थीं?
उत्तर देखेंजब वह नंग-धड़ंग घूमता था, तो माता उसे पकड़कर कड़वा तेल डालकर उबटन लगाती थीं, फिर कुर्ता-टोपी पहनाकर सजाती थीं।

बच्चों ने मूसन तिवारी का उपहास कैसे किया?
उत्तर देखेंआँधी के बाद बाग से भागते समय बैजू ने “बुढ़वा बेईमान माँगे करैला का चोखा” कहकर चिढ़ाया, जिसे सभी बच्चों ने दोहराया।

गुरुजी ने भोलानाथ को क्यों दंड दिया?
उत्तर देखेंमूसन तिवारी की शिकायत पर गुरुजी ने भोलानाथ को पकड़वाया और उपहास करने के अपराध में उसकी खबर ली (दंड दिया)।

बरात के खेल का वर्णन कीजिए।
उत्तर देखेंबच्चे कनस्तर को तंबूरा, चूहेदानी को पालकी बनाते थे। समधी बनकर बकरे पर चढ़ते और चबूतरे पर ही “दरवाजे” लगाकर वापस आ जाते थे।

खेती के खेल में बच्चों ने क्या-क्या बनाया?
उत्तर देखेंघिरनी को कुआँ, मूँज की रस्सी को रस्सा, कंकड़ को बीज और ठेंगे को हल बनाया। फिर “ऊँच-नीच में बई कियारी…” गाते हुए फसल काटकर ओसाते थे।

माता की गोद में छिपने पर भोलानाथ की क्या दशा हुई?
उत्तर देखेंसाँप से डरकर लहूलुहान भोलानाथ माता की गोद में छिप गया। वह काँप रहा था, आँखें नहीं खुल रही थीं और माता उसके घावों पर हल्दी लगाकर रो रही थीं।

पिता के साथ कुश्ती लड़ने का दृश्य कैसा था?
उत्तर देखेंपिता जानबूझकर हार जाते थे। भोलानाथ उनकी छाती पर चढ़कर मूँछें नोचता था, तब वे हँसते हुए उसके हाथ चूम लेते थे।

भोलानाथ और उसके साथी चिड़ियों को क्यों नहीं पकड़ पाए?
उत्तर देखेंवे “राम जी की चिरई…” गाते हुए खेत में दौड़े, पर चिड़ियाँ उड़ गईं। दर्शक हँसते हुए कहते थे कि “लड़के और बंदर पराई पीर नहीं समझते”।

आँधी के समय बच्चों ने क्या गाया?
उत्तर देखेंकाले बादल और मूसलाधार बारिश देखकर बच्चों ने चिल्लाकर गाया: “एक पइसा की लाई, बाजार में छितराई…”।

पाठ में ‘माँ का आँचल’ किसका प्रतीक है?
उत्तर देखेंमाँ का आँचल सुरक्षा, प्रेम और शांति का प्रतीक है। संकट के समय भोलानाथ उसमें छिपकर स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है।

कक्षा 10 हिंदी कृतिका अध्याय 1 लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर

भोलानाथ के पिता की दिनचर्या और बच्चे के साथ उनके संबंध का वर्णन कीजिए।
उत्तर देखेंपिता तड़के उठकर स्नान-पूजा करते थे। वे भोलानाथ को अपने साथ बैठक में सुलाते, साथ उठाते और पूजा में शामिल करते थे। भभूत का तिलक लगाना, कंधे पर बैठाकर गंगा जाना, कुश्ती लड़ना और हाथ से खाना खिलाना जैसी गतिविधियों से पिता का स्नेहपूर्ण संबंध झलकता है।

माता द्वारा भोलानाथ को खिलाने की विधि और उसका प्रभाव क्या था?
उत्तर देखेंमाता दही-भात को चिड़ियों के आकार (तोता, मैना आदि) में कौर बनाकर कहतीं: “जल्दी खा लो, नहीं तो उड़ जाएँगे!” यह रोचक तरीका भोलानाथ को खाने के लिए प्रेरित करता था। वह उन “चिड़ियों” को तुरंत खा जाता था, जिससे माता का स्नेह और सृजनशीलता प्रकट होती है।

बच्चों द्वारा खेले जाने वाले “खेती के खेल” का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर देखेंबच्चों ने चबूतरे को खेत बनाया। घिरनी कुआँ बनी, मूँज की रस्सी से मोट खींची, कंकड़ बीज बने और ठेंगे से हल चलाया। फसल काटते समय “ऊँच-नीच में बई कियारी…” गीत गाया। फसल रौंदकर कसोरे से ओसाई की और मीठी के तराजू से तौलकर खेती पूरी की।

पिता बच्चों के खेल में किस प्रकार भाग लेते थे? दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर देखेंपिता बच्चों के खेल में सक्रिय भागीदारी करते थे। जब बच्चों ने मिठाई की दुकान लगाई, तो उन्होंने गोरखपुरिए पैसे देकर “मिठाई” खरीदी। घरौंदे में भोज का नाटक होने पर वे पंगत के अंत में बैठ जाते थे। इससे बच्चे हँसकर भागते थे, जो उनकी सहज बाल-सुलभ प्रतिक्रिया दर्शाता है।

मूसन तिवारी की घटना और उसके परिणामों का वर्णन कीजिए।
उत्तर देखेंआँधी के बाद बाग से भागते समय बैजू ने मूसन तिवारी को “बुढ़वा बेईमान माँगे करैला का चोखा” कहकर चिढ़ाया। अन्य बच्चों ने भी यही दोहराया। तिवारी ने पाठशाला में शिकायत की, जिसके बाद गुरुजी ने भोलानाथ को दंडित किया। यह घटना बाल सुलभ शरारत और उसके परिणाम को दर्शाती है।

भोलानाथ की माता उसे किस प्रकार सजाती-संवारती थीं?
उत्तर देखेंजब भोलानाथ नंग-धड़ंग घूमता था, तो माता उसे पकड़कर सिर पर कड़वा तेल डालती थीं। फिर उबटन लगाकर नाभि व ललाट पर काजल की बिंदी लगाती थीं। चोटी गूँथकर फूलदार लूँ बाँधती और रंगीन कुरता-टोपी पहनाकर उसे “कन्हैया” बना देती थीं।

साँप के डर से भागने के बाद भोलानाथ की दशा और माता की प्रतिक्रिया क्या थी?
उत्तर देखेंसाँप से डरकर लहूलुहान भोलानाथ सीधे माता की गोद में जा छिपा। वह सिसक रहा था, शरीर काँप रहा था और आँखें खोल नहीं पा रहा था। माता ने तुरंत हल्दी पीसकर उसके घावों पर लगाई, उसे आँचल से पोंछा, चूमा और लाड़ से चुप कराने का प्रयास किया।

बरात के खेल में बच्चों ने किन वस्तुओं का प्रयोग किया और कैसे?
उत्तर देखेंबच्चों ने कनस्तर को तंबूरा, अमोले को शहनाई और टूटी चूहेदानी को पालकी बनाया। समधी बनकर बकरे पर चढ़े। चबूतरे पर गोबर से लिपे आँगन में कुल्हिए का कलसा रखा। लौटते समय खटोली पर लाल ओहार डालकर दुलहिन बनाई गई। पिता के मुख देखने पर सब हँसकर भाग गए।

“लड़के और बंदर पराई पीर नहीं समझते” – यह कथन पाठ के किस प्रसंग में आया और इसका क्या अर्थ है?
उत्तर देखेंयह कथन तब आया जब बच्चे खेत में चिड़ियों को पकड़ने दौड़े। दर्शकों ने कहा कि बच्चे चिड़ियों के डर को नहीं समझते, जैसे बंदर दूसरों की पीड़ा नहीं जानता। इसका अर्थ है कि बच्चे और बंदर नासमझ व निश्चिंत होकर दूसरों की परेशानी का मजाक उड़ाते हैं।

पाठ के अंत में माता के आँचल का क्या प्रतीकात्मक महत्व है?
उत्तर देखेंअंत में भोलानाथ माता के आँचल में छिपकर सुरक्षित महसूस करता है। यह आँचल प्रेम, शरण और शांति का प्रतीक है। पिता की गोद में जाने से इनकार कर वह माता के आँचल की “छाया” में ही रहना चाहता है, जो बच्चे के लिए मातृत्व की सर्वोच्च सुरक्षा और सांत्वना को दर्शाता है।

कक्षा 10 हिंदी कृतिका अध्याय 1 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर

भोलानाथ और उसके पिता के संबंधों में आध्यात्मिकता एवं बाल सुलभ चंचलता का कैसा समन्वय दिखाई देता है?
उत्तर देखेंभोलानाथ का पिता के साथ संबंध आध्यात्मिक अनुशासन और सहज स्नेह का अद्भुत संगम है। पिता तड़के उठकर पूजा करते थे और भोलानाथ को साथ बिठाते थे, जहाँ वह भभूत का तिलक लगाने में व्यस्त रहता था। यह कर्मकांड बालक की चंचलता से टूटता था— वह आईना देखता, मूँछें नोचता या हँसकर भाग जाता। पिता उसे “भोलानाथ” कहकर पुकारते, जो उनकी सहनशीलता और स्नेह को दर्शाता है। इस तरह धार्मिक गंभीरता और बाल खेल एक साथ चलते थे, जो पिता-पुत्र के अद्वितीय बंधन को उजागर करता है।

माता और पिता के पालन-पोषण के तरीकों में क्या अंतर था? ये अंतर बालमन पर कैसे प्रभाव डालते थे?
उत्तर देखेंमाता और पिता के पालन-पोषण के ढंग में स्पष्ट भिन्नता थी। पिता भोलानाथ को आज़ादी देते थे— उसके साथ कुश्ती लड़ते, गंगा घूमने ले जाते और खेल में शामिल होते थे। वहीं माता अनुशासन और सुरक्षा पर जोर देती थीं— नहाकर कपड़े पहनाना, काजल लगाना, या जबरन तेल डालकर नहलाना। माता का प्रभाव सुरक्षा-केंद्रित था, जबकि पिता उसे बाहरी दुनिया से जोड़ते थे। भोलानाथ इन दोनों के बीच संतुलन बनाता था: पिता के साथ उछलता-कूदता, पर संकट में माता के आँचल में छिप जाता। यह द्वंद्व उसके व्यक्तित्व को संपूर्ण बनाता था।

पाठ में वर्णित बच्चों के “खेती के खेल” से ग्रामीण जीवन की किन सामाजिक-आर्थिक वास्तविकताओं का पता चलता है?
उत्तर देखेंखेती का खेल ग्रामीण समाज की आर्थिक संरचना का बाल सुलभ प्रतिबिंब है। बच्चों ने घिरनी से कुआँ, मूँज की रस्सी से रस्सा, और कंकड़ों को बीज बनाकर खेती की पूरी प्रक्रिया नकली रूप में दोहराई। वे “ऊँच-नीच में बई कियारी…” जैसे लोकगीत गाते हुए फसल काटते, उसे रौंदते और कसोरे से ओसाते थे। यह दिखाता है कि बचपन से ही गाँव के बच्चे खेती के संघर्ष, सहयोग और उत्सव से परिचित थे। गीतों में छिपा “ऊँच-नीच” का भाव भूमि विषमता और सामूहिक श्रम की महत्ता को भी उजागर करता है। इस तरह यह खेल ग्रामीण जीवन का सूक्ष्म दस्तावेज़ है।

साँप के प्रसंग में भोलानाथ के मनोभावों और माता की प्रतिक्रिया का विस्तार से विश्लेषण कीजिए।
उत्तर देखेंसाँप के भय ने भोलानाथ को गहन मानसिक आघात दिया। वह लहूलुहान होकर घर पहुँचा, काँपता हुआ माता की गोद में छिप गया। उसकी आँखें बंद थीं, ओठ सिसकियों से काँप रहे थे —यह शारीरिक चोट से अधिक मन की दहशत थी। माता ने तुरंत हल्दी पीसकर घावों पर लगाई, लेकिन उनकी असली चिंता उसके मानसिक संतुलन को लौटाना थी। वह उसे आँचल से पोंछतीं, चूमतीं और दबाकर चुप कराती थीं। यह प्रतिक्रिया मातृत्व की सर्वोच्च छवि है: शारीरिक चिकित्सा से आगे बच्चे की भावनात्मक शरणस्थली बनना। इस घटना में “माँ का आँचल” प्रतीक बन जाता है— जहाँ बाहरी भय का कोई स्थान नहीं।

“रामनाम बही” और गंगा में आटे की गोलियाँ फेंकने जैसी पिता की दिनचर्या से उनके व्यक्तित्व की किन विशेषताओं का पता चलता है?
उत्तर देखेंपिता की दिनचर्या उनकी गहन आध्यात्मिकता और प्रकृति-प्रेम को दर्शाती है। “रामनाम बही” पर हजार नाम लिखना भक्ति की नियमित साधना थी, जो अनुशासन और ईश्वर के प्रति समर्पण दिखाता है। वहीं गंगा में आटे की गोलियाँ फेंकना मछलियों को भोजन देने का कर्मकांड था —यह प्रकृति और जीवों के प्रति करुणा को उजागर करता है। इन क्रियाओं में दोहरा संदेश है: एक ओर वैयक्तिक धर्म (पूजा), दूसरी ओर सामाजिक दायित्व (प्राणी सेवा)। वे भोलानाथ को इनमें शामिल करके धर्म को बोझ नहीं, जीवन का सहज हिस्सा बनाते थे। रास्ते में पेड़ों पर झूला झुलाना या कुश्ती लड़ना उनकी बालसुलभ मस्ती को भी दर्शाता है —एक संतुलित व्यक्तित्व जो आध्यात्मिक गंभीरता और सहज स्नेह का समन्वय करता था।