हिंदी व्याकरण अध्याय 3 शब्द विचार
हिंदी व्याकरण अध्याय 3 शब्द विचार पर आधारित सभी प्रश्न उत्तर यहाँ दिए गए हैं। शब्द विचार व्याकरण में शब्दों के गठन, अर्थ और प्रयोग का अध्ययन है, जो भाषा की समृद्धि को दर्शाता है।
शब्द विचार
शब्द: एक या अधिक अक्षरों से बनी हुई स्वतंत्र सार्थक ध्वनि को शब्द कहते हैं, जैसे: लड़का, जा, छोटा, में, धीरे, परंतु इत्यादि ।
शब्द की उत्पति
शब्द अक्षरों से बनते हैं । ‘न’ और ‘थ’ के मेल के ‘नथ’ और ‘थन’ शब्द बनते हैं और यदि इनमें ‘आ का योग कर दिया जाय तो ‘नाथ’, ‘थान’, ‘नथा’, ‘थाना’ आदि शब्द बन जायँगे ।
शब्दसाधन: शब्दसाधन व्याकरण के उस विभाग को कहते हैं, जिसमें शब्दों के भेद (तथा उनके प्रयोग), रूपांतर और व्युत्पत्ति का निरूपण किया जाता है।
शब्दों का प्रयोग
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है समाज में रहते हुए उसे अपने विचारों के आदान-प्रदान के लिए शब्द तथा भाषा की आवश्यकता होती है। शब्द भाषा की छोटी इकाई होती है। दो या अधिक वर्णन को जोड़ने पर इस का निर्माण होता है, उसी प्रकार दो या अधिक शब्दों के जोड से भाषा का निर्माण होता है।
उदाहरण: एक शब्द से ( एक समय में ) प्रायः एक ही भावना प्रकट होती है। इसलिए कोई भी पूर्ण विचार प्रकट करने के लिए एक से अधिक शब्दों का प्रयोग पड़ता है। ‘वह बाजार जा रहा है।’ यह एक पूर्ण विचार अर्थात् वाक्य है और इसमें पाँच शब्द हैं, वह, बाजार, जा, रहा, है। इनमें से प्रत्येक शब्द एक स्वतंत्र सार्थक ध्वनि है और उससे कोई एक भावना प्रकट होती है। लेकिन वाक्य ‘वह बाजार जा रहा है।’ एक पूर्ण विचार को प्रकट करता है।
शब्दों का वर्गीकरण
शब्दों का वर्गीकरण विभिन्न आधारों पर किया जाता है। जैसे:
(i) अर्थ के आधार पर
(ii) प्रयोग के आधार पर
(iii) इतिहास या स्रोत के आधार पर
(iv) रचना के आधार पर
(v) व्याकरणिक प्रकार्य के आधार पर
अर्थ के आधार पर शब्दों का वर्गीकरण
एक ही शब्द वाक्यों में अलग-अलग अर्थ की प्रतीति कराता है ,शब्द का स्वरूप वाक्य के अनुरूप बदल जाता है। अतः उसमें अर्थ भिन्नता देखने को मिलता है इस दृष्टि से हम शब्दों को चार प्रकार से अध्ययन करेंगे।
(क) एकार्थी शब्द
(ख) अनेकार्थी शब्द
(ग) विलोम या विपरीतार्थक शब्द
(घ) पर्यायवाची या समानार्थी शब्द
एकार्थी शब्द
जिन शब्दों का एक ही अर्थ निकलता हो वह एकार्थी शब्द कहलाते हैं। अधिकतर यह व्यक्तिवाचक संज्ञा , महत्वपूर्ण स्थान तथा महत्वपूर्ण व्यक्तियों के नाम होते हैं।
उदहारण: राम, कृष्ण, गंगा, हिमालय, दिल्ली, भारत आदि।
अनेकार्थी शब्द
वह शब्द जिससे एक या अधिक अर्थ निकलते हो उसे अनेकार्थी शब्द कहते हैं।
उदाहरण: कनक – सोना, धतूरा
यहां एक ही शब्द के दो अर्थ निकल रहे हैं अर्थात यह अनेकार्थी शब्द है।
अन्य उदाहरण:
कर – हाथ, टैक्स, किरण
मुद्रा – सुख का भाव, मोहर, सिक्का, अंगूठी
विलोम शब्द का विपरीतार्थक शब्द
विपरीतार्थक व विलोम शब्द वह होते हैं जो किसी शब्द के विपरीत या उल्टे प्रकट करते हैं।
उदाहरण
अमीर – गरीब, सुख-दुख, सीधा – उल्टा, ऊंच-नीच, सत्य – असत्य, धर्म – अधर्म आदि।
उपरोक्त शब्द एक दूसरे के विपरीतार्थक हैं।
पर्यायवाची या समानार्थी शब्द
जो शब्द समान अर्थ के कारण किसी दूसरे शब्द की जगह ले लेते हैं उन्हें पर्यायवाची शब्द कहते हैं या समान अर्थ प्रदान करने वाले शब्द पर्यायवाची शब्द अथवा समानार्थक शब्द कहलाते हैं। सामान्य अर्थ में ऐसे शब्द जिनके अर्थ समान हों, पर्यायवाची शब्द कहलाते हैं।
उदाहरण
घोड़ा – अश्व, हय, तूरंग
यह सभी घोड़ा शब्द का पर्यायवाची है।
आंख – नयन, चक्षु, नेत्र
सूर्य – दिनकर, दिवाकर, सूरज, भास्कर
कमल – सरोज, पंकज, नीरज।
प्रयोग के आधार पर शब्द
शब्दों का प्रयोग समाज, परिस्थिति तथा भौगोलिक स्थिति के आधार पर भी बदलता रहता है। इस दृष्टि से शब्दों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से कर सकते हैं:
(i) सामान्य शब्दावली के शब्द
(ii) तकनीकी शब्दावली के शब्द
(iii) अर्ध – तकनीकी शब्दावली के शब्द
सामान्य शब्दावली के शब्द
इसके अंतर्गत कोई एक समुदाय या समूह जिन शब्दों का प्रयोग अपने आम बोलचाल तथा भावों को व्यक्त करने के लिए करता है वे सभी शब्द सामान्य शब्दावली के शब्द माने जाते हैं। जिसमें लोगों के दैनिक जीवन से जुड़े शब्द होते हैं।
उदाहरण: खानपान, शारीरिक आवश्यकता, पारिवारिक तथा बाजार से संबंधित शब्द होते हैं।
तकनीकी शब्दावली के शब्द
यह वह शब्द होते हैं जो शिक्षा, ज्ञान – विज्ञान तथा व्यवसाय के क्षेत्र में प्रयोग किए जाते हैं। इन शब्दों के प्रयोग करने से व्यक्ति के ज्ञान और उसके अध्ययन की क्षमता का पता चलता है। यह सामान्य बोलचाल की भाषा से अलग होता है। आम बोलचाल की भाषा में ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता। क्योंकि यह बोलने में तथा समझने में क्लिष्ट होते हैं।
उदाहरण: गुरुत्वाकर्षण, वेग, त्वरण, आवृत्ति आदि।
अर्ध तकनीकी शब्दावली के शब्द
इसके अंतर्गत वे सभी शब्द आते हैं जो व्यक्तियों के द्वारा तकनीकी तथा स्वयं मिश्रित शब्दों का प्रयोग किया जाता है। इसे ज्ञान – विज्ञान के क्षेत्र में भी प्रयोग किया जाता है तथा सामान्य बोलचाल की भाषा में भी। इस प्रकार के शब्द को अर्ध तकनीकी शब्दावली के शब्द कहते हैं।
उदाहरण: आवेश, भिन्न, रस, संधि, पुष्प, हस्ताक्षर आदि।
रचना की दृष्टि से शब्दों का वर्गीकरण
रचना की दृष्टि से शब्दों के तीन रूप है:
(क) रूढ़ शब्द
(ख) योगिक शब्द
(ग) योगरूढ़ शब्द
रूढ़ शब्द
जो शब्द हमेशा किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हो तथा जिनके खण्डों का कोई अर्थ न निकले, उन्हें ‘रूढ़’ कहते है। जैसे – नाक, कान, पीला, पर, झट आदि। इन शब्दों के खंड करने पर इनका कोई अर्थ नहीं निकलता। जैसे – ‘नाक’ शब्द में ‘ना’ और ‘क’ का कोई अर्थ नहीं निकल रहा है।
योगिक शब्द
जो शब्द कई सार्थक शब्दों के मेल से बने हुए योगिक शब्द कहलाते हैं। जैसे – डाकघर, पीला-पन, देशवासी आदि। यह सभी शब्द दो सार्थक शब्दों के मेल से बने हैं। योगिक शब्द जिन शब्दों के मेल से बनते हैं उन्हें अलग करने पर भी उनके अर्थ प्रकट होते हैं।
योगरूढ़ शब्द
वे शब्द होते हैं जो योगिक होते हैं किंतु सामान्य अर्थ को ना प्रकट कर किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं ऐसे शब्द योगरूढ़ कहलाते हैं। इन शब्दों के सांकेतिक अर्थ होते हैं। पंकज, जलज, लम्बोदर आदि। पंकज पंक+ज = कीचड़ में उत्पन्न होने वाला। सामान्य अर्थ में प्रचलित ना होकर कमल के अर्थ में रूढ़ हो गया है अतः पंकज शब्द योगरूढ़ है।
व्याकरणिक प्रकार्य की दृष्टि से शब्दों का वर्गीकरण
इसे दो विभिन्न भागों में बांटा गया है:
(i) विकारी
(ii) अविकारी।
विकारी – शब्द
जिन शब्दों का रूप लिंग, वचन और कारक के कारण परिवर्तित हो जाता है। विकारी अर्थात जिनमें विकार आ जाए, जो बदल जाए। विकारी शब्द वे शब्द होते हैं जो बाहरी प्रभाव से बदल जाते हैं जैसे: बूढ़ा से बुढ़ापा, बुढि़या आदि शब्द बन सकते हैं अर्थात इनमें विकार आ सकता है। जिसमें संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया आदि शब्द भी सम्मिलित हैं।
अविकारी शब्द
जिन शब्दों पर लिंग, वचन, कारक आदि के बदलने से कोई प्रभाव नहीं पड़ता, ऐसे शब्दों को हम अव्यय या अविकारी शब्द कहते हैं। जिसमें क्रिया विशेषण, संबोधन, समुच्चयबोधक, विस्समयबोधक आदि होते हैं।
शब्दांश
अक्षर को शब्दांश भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है किसी शब्द के वो अंश जिन्हें एक साथ बोला जाता है। हालांकि अगर आप ध्यान से देखें तो ये दोनों भिन्न भी हैं।
दूसरे शब्दों में शब्दांश को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है:
भाषा में कुछ ध्वनियाँ ऐसी होती हैं जो स्वयं सार्थक नहीं होतीं, पर जब वे शब्दों के साथ जोड़ी जाती हैं तब सार्थक होती हैं। ऐसी परतंत्र ध्वनियों को शब्दांश कहते हैं; जैसे: ता, तन, वाला, ने, का इत्यादि।
वाक्य
शब्दों का व्यवस्थित रूप जिससे मनुष्य अपने विचारों का आदान प्रदान करता है उसे वाक्य कहते हैं एक सामान्य वाक्य में क्रमशः कर्ता, कर्म और क्रिया होते हैं। वाक्य के मुख्यतः दो अंग माने गये हैं, उद्देश्य और विधेय।
दूसरे शब्दों में वाक्य की परिभाषा इस प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं: दो या दो से अधिक पदों के सार्थक समूह को, जिसका पूरा पूरा अर्थ निकलता है, वाक्य कहते हैं।