एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 1 दुःख का अधिकार

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 1 दुःख का अधिकार के अभ्यास के प्रश्न उत्तर शैक्षणिक सत्र 2025-26 के अनुसार संशोधित रूप में छात्र यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं। 9वीं कक्षा में हिंदी के पाठ 1 के प्रश्नों के उत्तर के साथ-साथ अतिरिक्त प्रश्न-उत्तर भी दिए गए हैं ताकि छात्रों को परीक्षा की तैयारी में कोई परेशानी न हो।
कक्षा 9 हिंदी स्पर्श पाठ 1 के प्रश्न उत्तर
कक्षा 9 हिंदी स्पर्श पाठ 1 के अति-लघु उत्तरीय प्रश्न
कक्षा 9 हिंदी स्पर्श पाठ 1 के लघु उत्तरीय प्रश्न
कक्षा 9 हिंदी स्पर्श पाठ 1 के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
कक्षा 9 हिंदी स्पर्श पाठ 1 MCQ

अभ्यास के प्रश्न उत्तर

दुःख का अधिकार कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 1 के अभ्यास के प्रश्न उत्तर

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए –
1. मनुष्य के जीवन में पोषाक का क्या महत्व है?
उत्तर देखेंपोषाक का मनुष्य के जीवन में बड़ा ही महत्व है। पोषाक के द्वारा ही समाज में मनुष्य की स्थिति का पता चलता है, क्योंकि आज के समाज में मनुष्य को समाज में संस्कारों से नहीं बल्कि पोषाक से सम्मान मिलता है।

2. पोषाक हमारे लिए कब बंधान और अड़चन बन जाती है?
उत्तर देखेंहमारी पोषाक ही समाज में हमारे स्टेटस को दर्शाती है। लेकिन जब हम अपने से नीचे किसी व्यक्ति से बात या उसकी सहायता करना चाहते हैं तब पोषाक हमारे लिए बंधान और अड़चन बन जाती है और हम यह सोचकर पीछे हट जाते हैं कि लोग क्या कहेंगे।

3. लेखक उस स्त्री के रोने का कारण क्यों नहीं जान पाया?
उत्तर देखेंलेखक साफ़-सुथरे धुले कपड़े पहने हुए था जबकि स्त्री फ़टे हुए गंदे वस्त्र पहने हुए थी। यदि लेखक उसके पास जाकर उसका हाल जानता तो लोग क्या कहते, इसी डर से लेखक उस स्त्री के रोने का कारण नहीं जान पाया।

4. भगवाना अपने परिवार का निर्वाह कैसे करता था?
उत्तर देखेंभगवाना शहर के पास अपनी डेढ़ बीघा जमीन में खरबूजों की खेती करके उन्हें सड़क के किनारे फ़ुटपाथ पर बेचकर अपने परिवार का निर्वाह करता था।

5. लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबूजे बेचने क्यों चल पड़ी?
उत्तर देखेंबुढ़िया के घर में खाने के लिए कुछ भी नहीं था और उसकी बहू बुखार से तड़प रही थी बच्चे भूख से व्याकुल थे। इसलिए लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबूजे बेचने के लिए चल पड़ी।

6. बुढ़िया के दुःख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की स्रभ्रांत महिला की याद क्यों आई?
उत्तर देखेंबुढ़िया अपनी गरीबी के कारण बेटे की मृत्यु के दूसरे दिन ही खरबूजे खरबूजे बेचने आ गई थी। जबकि उसके पड़ोस की महिला अपने पुत्र की मृत्यु के वियोग में पिछले एक महीने से बीमार थी और रो रही थी। डॉक्टर और नर्स उसकी सेवा में लगे रहते थे क्योंकि उसके पास अपने दुःख को मनाने का समय और सुविधा थी।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए –
1. बाजार के लोग खरबूजे बेचने वाली स्त्री के बारे में क्या-क्या कह रहे थे?
उत्तर देखेंबाजार के लोग खरबूजे बेचने वाली स्त्री के बारे में तरह-तरह की बातें कर रहे थे। कोई उसे लालची कह रहा था कि इसे अपने बेटे के मरने का भी गम नहीं है इसके लिए सब पैसा है रिश्ते नाते सब बाद में हैं, कोई उसकी ओर घृणा से देखते हुए थूक रहा था। कोई धर्म की दुहाई देते हुए सूतक में खबूजे बेचने पर धर्म के भ्रष्ट हो जाने की बात कर रहा था। लेकिन कोई भी उसके दुःख के बारे में नहीं जानता था इसीलिए सब उसे कोसे जा रहे थे।

2. पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर लेखक को क्या पता चला?
उत्तर देखेंपास-पड़ोस की दुकानों पर पूछने पर लेखक को बुढ़ियाा की वास्तविकता का पता चला। लोगों ने बताया कि उसका एक तेईस साल का बेटा था जो पूरे घर का पालन-पोषण करता था। एक दिन खेत में खरबूजे तोड़ते समय उसका पैर आराम करते हुए एक साँप पर पड़ गया उसके काटने से उसके बेटे की मृत्यु हो गई। अब घर में कमाने वाला कोई नहीं है। अपने पोते-पोती और बहू के पालन करने की जिम्मेंदारी अब इस बुढ़िया पर आ गई है।

3. लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया माँ ने क्या-क्या उपाय किए?
उत्तर देखेंअपने लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया ने वह सब कुछ किया जितना उसके बस में था वह दौड़कर ओझा को बुला लाई उसने काफ़ी झाड़-फूंक की मगर उसका कुछ भी असर न हुआ। नाग देवता की पूजा भी की गई दान-दक्षिणा भी दी गई पर इन सबका भी कोई असर न हुआ घर का सारा सामान भी चला गया पर उसका बेटा न बच सका।

4. इस पाठ का शीर्षक ‘दुःख का अधिकार’ कहाँ तक सार्थक है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर देखेंसमाज में अमीर हो या गरीब सभी को दुःख होता है लेकिन पाठ के आधार पर ऐसा दिखाया गया है कि समाज में दुःख है तो उसको मनाने के लिए समाज में हैसियत भी होनी चाहिए। जो गरीब है उसे रोने और दुःख माने का भी अधिकार नहीं है उसका दुःख लोगों को दिखावा लगता है, वहीं दूसरी ओर एक संभ्रांत महिला जो अपने बेटे के दुःख में एक महीने से बीमार पड़ी है उसकी सेवा में डॉक्टर नर्स दिन-रात लगे रहतें है पर फि़र भी वह अपने दुःख से नहीं उभर पाई है। जिसे देखकर ऐसा लगता है कि दुःख को मनाने का अधिकार भी केवल अमीरों को है गरीबों को दुःख को मनाने का भी अधिकार नहीं है। अतः पाठ का ‘शीर्षक’ दुःख का अधिकार सर्वथा ठीक है।

कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 1 के आशय स्पष्ट करने के आधार पर प्रश्न

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए –
1. जैसे वायु की लहरें कटी हुइ्र्र पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिर जाने देतीं उसी तरह खास परिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें झुक सकने से रोके रहती है।
उत्तर देखेंआकाश में उड़ती पतंग को उसकी डोर नियंत्रित करती है और उसके टूट जाने पर भी एकदम उसे नीचे नहीं गिरने देती ठीक उसी प्रकार समाज में व्यक्ति सामाजिक, आर्थिक डोर से बँधा रहता है और चाह कर भी वह अपने आप को नीचे नहीं ला सकता उसकी पोशाक उसे ऐसा करने से रोकती है। लेखक भी झुककर गरीब महिला की मदद करना चाहता है मगर समाज के डर से और अपनी पोषाक के मैला हो जाने के डर से वह उस गरीब महिला की मदद नहीं कर पाता है।

2. इनके लिए बेटी-बेटा, खसम-लुगाई, धर्म-ईमान सब रोटी का टुकड़ा हैं।
उत्तर देखेंसामाजिक प्राणी होने के नाते मनुष्य को समाज के नियमों को मानना पड़ता है और समाज में भौतिक जरूरतों से ज्यादा परंपराओं को महत्व दिया जाता है। पंक्तियों में बताया गया है कि गरीबों के लिए सब कुछ पैसा है, मगर ऐसा नहीं है । हम दूसरे पर आरोप तो लगा देते हैं मगर उसके पीछे की मजबूरी को नहीं देखते है। तभी हम उनके लिए ऐसा कहते हैं।

3. शौक़ करने, गम मनाने के लिए सहूलियत चाहिए औऱ… दुःखी होने का भी अधिकार है।
उत्तर देखेंसमाज में सभी को दुःख होता है पर उसे मनाने के लिए सहूलियत होना चाहिए ऐसा न होने पर किसी को भी दुःख मनाने का अधिकार नहीं है। यदि कोई ऐसा करता हे तो वह उपहास और उलाहने का पात्र बन सकता है। जिसके पास सहूलियत है उसे दुःख मनाने का पूरा अधिकार है और समाज भी उसके दुःख का भागीदार बन जाता है।

कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 1 दुःख का अधिकार पर आधारित अति-लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर।

कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 1 अति लघु प्रश्न-उत्तर

1. कहानी में पोशाक का क्या महत्व बताया गया है?
उत्तर देखेंपोशाक समाज में मनुष्य का दर्जा और अधिकार निर्धारित करती है। यह कई दरवाजे खोल देती है, लेकिन कभी-कभी दूसरों के दुख को समझने में वही पोशाक बाधा बन जाती है।

2. बाजार में अधेड़ औरत क्यों रो रही थी?
उत्तर देखेंअधेड़ औरत का जवान बेटा साँप के डँसने से मर गया था। घर में खाने तक का सहारा न बचा। मजबूरी में वह खरबूजे बेचने आई, लेकिन दुख के कारण फफक-फफककर रो रही थी।

3. लोग उस औरत के बारे में घृणा से क्यों बोल रहे थे?
उत्तर देखेंलोग सोचते थे कि जवान बेटे के मरने पर तेरह दिन का सूतक होता है, फिर भी वह तुरंत बाजार में खरबूजे बेचने बैठ गई, जिससे उनका ‘धर्म-ईमान’ बिगड़ सकता है।

4. बेटे की मृत्यु कैसे हुई थी?
उत्तर देखेंबेटा सुबह खेत में खरबूजे तोड़ रहा था। गीली मेड़ पर साँप पर पैर पड़ गया। साँप ने डँस लिया और विष फैलने से उसका शरीर काला पड़ गया तथा वह मर गया।

5. बेटे की मृत्यु के बाद घर में क्या स्थिति हुई?
उत्तर देखेंघर में अनाज, चूनी-भूसी सब दान-दक्षिणा और दाह-संस्कार में चला गया। बहू बुखार से तप रही थी और पोते-पोतियाँ भूख से बिलबिला रहे थे। घर में खाने-पीने की कोई सुविधा न रही।

6. बुढ़िया ने बहू और बच्चों के लिए क्या किया?
उत्तर देखेंभूखे पोते-पोतियों को खाने के लिए दादी ने खरबूजे दे दिए। लेकिन बीमार बहू को कुछ देने लायक घर में अन्न या पैसा न था, जिससे स्थिति और दुखद हो गई।

7. समाज के लोग उस औरत के व्यवहार को किस दृष्टि से देख रहे थे?
उत्तर देखेंसमाज के लोग उसे असंवेदनशील और धर्मविहीन समझ रहे थे। वे मानते थे कि बेटे की मौत के तुरंत बाद बाजार में बैठना उसके लालच और ‘बेहयाई’ को दर्शाता है।

8. ओझा को क्यों बुलाया गया था?
उत्तर देखेंबेटे को साँप ने डँस लिया था। बुढ़िया माँ बावली होकर ओझा को लाई ताकि झाड़-फूँक से बेटे को बचाया जा सके। पूजा और नागदेव की आराधना भी करवाई गई।

9. ओझा और पूजा के लिए घर से क्या गया?
उत्तर देखेंपूजा और दान-दक्षिणा के लिए घर में जो आटा और अनाज था, वह सब चला गया। पहले से गरीब परिवार पूरी तरह कंगाल हो गया।

10. मृत बेटे को विदा करने के लिए क्या करना पड़ा?
उत्तर देखेंमुर्दे को नंगा विदा नहीं किया जा सकता था। इसलिए बजाज की दुकान से नया कपड़ा लाना पड़ा। इसके लिए माँ ने अपने हाथों के गहने बेच दिए।

11. लेखक ने कौन-सी तुलना की है?
उत्तर देखेंलेखक ने तुलना की है कि जिंदा आदमी नंगा रह सकता है, पर मुर्दे को नंगा विदा नहीं किया जा सकता। यह स्थिति परिवार की आर्थिक मजबूरी को दर्शाती है।

12. लेखक का मन उस स्त्री को देखकर क्यों विचलित हुआ?
उत्तर देखेंलेखक ने देखा कि लोग उसे घृणा से कोस रहे हैं, पर वास्तव में वह बेबस और मजबूर थी। उसका दुख देखकर लेखक को गहरी व्यथा हुई, पर अपनी पोशाक के कारण वह उसके पास बैठ न सका।

13. परचून वाले लाला जी ने क्या कहा?
उत्तर देखेंलाला जी ने कहा कि चाहे उसके लिए मरना-जीना बेकार हो, पर उसे दूसरों के धर्म-ईमान का खयाल रखना चाहिए। सूतक के समय खरबूजे बेचना दूसरों को पाप में डालना है।

14. लेखक ने संभ्रांत महिला का उदाहरण क्यों दिया?
उत्तर देखेंलेखक ने दिखाया कि अमीर वर्ग में पुत्र-शोक महीनों तक व्यक्त किया जा सकता है, डॉक्टर और लोग सहानुभूति देते हैं। पर गरीब औरत को पेट पालने के लिए अगले दिन ही बाजार आना पड़ा।

15. कहानी का शीर्षक ‘दुःख का अधिकार’ क्यों उपयुक्त है?
उत्तर देखेंक्योंकि गरीब के पास दुःख मनाने की सुविधा और समय नहीं होता। शोक मनाने का भी अधिकार केवल संपन्न वर्ग के पास होता है। गरीब को दुख में भी काम करना पड़ता है।

कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 1 दुःख का अधिकार के लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर।

कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 1 लघु प्रश्न-उत्तर

1. कहानी में पोशाक का प्रतीकात्मक महत्व क्या है?
उत्तर देखेंपोशाक को लेखक ने सामाजिक दर्जे और अधिकार का प्रतीक बताया है। अमीर की पोशाक उसे सम्मान दिलाती है, लेकिन वही पोशाक दूसरों के दुख-दर्द को महसूस करने में बाधा बन जाती है। लेखक चाहता था कि वह फुटपाथ पर जाकर उस दुखी औरत का हाल पूछे, लेकिन अपनी संभ्रांत पोशाक के कारण वह झुक नहीं सका। इस प्रकार पोशाक संवेदनशीलता में भी दीवार खड़ी करती है।

2. समाज के लोग उस दुखी औरत के प्रति सहानुभूतिपूर्ण क्यों नहीं हुए?
उत्तर देखेंसमाज के लोग उस औरत को उसकी विवशता से नहीं, बल्कि अपने धार्मिक दृष्टिकोण से देख रहे थे। वे सोचते थे कि बेटे की मौत पर सूतक मानना जरूरी है, लेकिन वह तुरंत बाजार में बैठ गई। उनके लिए उसकी मजबूरी या भूख से ज्यादा धर्म-ईमान महत्वपूर्ण था। इसलिए उन्होंने उसे बेहया, लालची और धर्मविहीन कहा। यह समाज की असंवेदनशीलता और संकीर्णता को दर्शाता है।

3. उस औरत का दुख वास्तव में कितना गहरा था?
उत्तर देखेंऔरत का दुख केवल बेटे की मृत्यु से ही नहीं, बल्कि उसके बाद की विवशताओं से भी बढ़ गया। जवान बेटे की अकाल मृत्यु, घर में भूख से बिलबिलाते बच्चे, बुखार में तपती बहू, और खाने-पीने का सहारा न होना – इन सबने उसके जीवन को अत्यंत दुखद बना दिया। मजबूरी में उसे बेटे के ही तोड़े खरबूजे बेचने आने पड़ा। यह दुख उसके आंसुओं और फफक-फफककर रोने में झलक रहा था।

4. लेखक ने अमीर और गरीब के दुःख की तुलना कैसे की?
उत्तर देखेंलेखक ने उदाहरण दिया कि एक संभ्रांत महिला के पुत्र-वियोग पर महीनों तक डॉक्टर, दवाइयाँ और सहानुभूति उपलब्ध हुईं। पूरा समाज उसके दुख में शरीक हुआ। जबकि गरीब औरत का बेटा मरा, तो अगले ही दिन पेट की आग बुझाने के लिए वह बाजार आ गई। उसके आंसुओं पर किसी ने सहानुभूति नहीं जताई, बल्कि उसे कोसा। इससे लेखक ने दिखाया कि दुःख मनाने का भी अधिकार वर्ग-विशेष के पास होता है।

5. ‘जिंदा आदमी नंगा रह सकता है, पर मुर्दे को नंगा नहीं विदा किया जा सकता’ – इस वाक्य का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर देखेंइस वाक्य में गरीबों की आर्थिक विवशता झलकती है। जीवित व्यक्ति जैसे-तैसे बिना कपड़े या वस्त्रों में जी सकता है, लेकिन सामाजिक परंपरा के अनुसार मृतक का संस्कार नए कपड़ों में करना अनिवार्य माना जाता है। इसलिए बेटे की मृत्यु पर बुढ़िया को अपने गहने तक बेचने पड़े। यह कथन गरीबी की कठोर सच्चाई और रीति-रिवाजों के बोझ को उजागर करता है।

6. उस औरत के जीवन में बेटे की मृत्यु का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर देखेंबेटे की मृत्यु ने औरत का पूरा सहारा छीन लिया। बेटा परिवार का मुख्य कमाने वाला था। उसके जाने से घर की बहू बुखार में तप रही थी, पोते-पोतियाँ भूखे थे, और घर का सारा सामान दाह-संस्कार में खर्च हो गया। मजबूरी में माँ को खुद बाजार में खरबूजे बेचने आना पड़ा। यह स्थिति बताती है कि बेटे की मौत से उसके जीवन में असहनीय दुःख और आर्थिक संकट आ गया।

7. लेखक ने उस औरत के दुःख को देखकर अपने मन में क्या अनुभव किया?
उत्तर देखेंलेखक ने औरत को सिर झुकाए, आँसू बहाते और रोते हुए देखा तो उनके मन में गहरी व्यथा उठी। वे उसकी मदद करना चाहते थे, लेकिन अपनी संभ्रांत पोशाक और सामाजिक बंधनों के कारण पास जाकर बैठ नहीं सके। साथ ही उन्हें यह सोचकर भी पीड़ा हुई कि गरीब के पास शोक मनाने का समय या सुविधा तक नहीं होती। यह अनुभव उन्हें दुःख के अधिकार की गहरी अनुभूति कराता है।

8. समाज के अलग-अलग लोग उस औरत के बारे में क्या कह रहे थे?
उत्तर देखेंएक ने कहा कि जवान बेटे के मरने के तुरंत बाद दुकान लगाना बेहयाई है। दूसरा बोला कि जैसी नीयत होती है, अल्ला वैसी बरकत देता है। तीसरा बोला कि ऐसे लोग रोटी के लिए सब बेच देते हैं। परचून वाले लाला ने कहा कि दूसरों के धर्म-ईमान का खयाल करना चाहिए। किसी ने भी उसके दुख और मजबूरी को समझने की कोशिश नहीं की। यह समाज की कठोरता दर्शाता है।

9. कहानी से हमें गरीब और अमीर की परिस्थिति का क्या अंतर समझ में आता है?
उत्तर देखेंअमीर को शोक मनाने की पूरी सुविधा मिलती है – डॉक्टर, दवाइयाँ, सहानुभूति और आराम। उसका दुख समाज को दिखाई देता है और लोग उससे प्रभावित होते हैं। जबकि गरीब का दुख भूख और विवशता में दब जाता है। उसे अगले ही दिन पेट पालने के लिए मजदूरी या व्यापार करना पड़ता है। उसका शोक समाज की नजर में बेहयाई माना जाता है। यह अमीर-गरीब के बीच गहरा अंतर है।

10. कहानी का मुख्य संदेश क्या है?
उत्तर देखेंकहानी यह संदेश देती है कि दुःख मनाना भी एक अधिकार है, लेकिन यह अधिकार केवल अमीरों को प्राप्त है। गरीब को पेट की आग और विवशता शोक मनाने नहीं देती। समाज उनकी मजबूरी को न समझकर उन्हें अपमानित करता है। लेखक बताना चाहते हैं कि असली समस्या भूख और गरीबी है, न कि शोक मनाने की परंपराएँ। हमें संवेदनशील होकर दूसरों के दुःख को समझना चाहिए।

कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 1 दुःख का अधिकार के लिए दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर।

कक्षा 9 हिंदी स्पर्श अध्याय 1 दीर्घ प्रश्न-उत्तर

1. कहानी में गरीब और अमीर वर्ग के दुःख में क्या अंतर दिखाया गया है?
उत्तर देखेंइस कहानी में लेखक ने स्पष्ट किया है कि दुःख मनाने का अधिकार सबको समान रूप से नहीं मिलता। अमीर वर्ग के पास धन, साधन और समय होने के कारण वे अपने दुःख को लंबी अवधि तक व्यक्त कर सकते हैं। लेखक ने उदाहरण दिया है कि एक संभ्रांत महिला पुत्र-वियोग में महीनों तक शोकग्रस्त रही और उसके पास डॉक्टर, दवाइयाँ, सहानुभूति और लोगों का साथ था। इसके विपरीत, गरीब औरत का बेटा साँप के डँसने से मर गया। घर में खाने को कुछ न बचा, बहू बुखार से तप रही थी और बच्चे भूख से बिलबिला रहे थे। ऐसे में वह दूसरे ही दिन बाजार में खरबूजे बेचने आ बैठी। लोग उसे बेहया कह रहे थे, लेकिन वास्तव में उसकी विवशता ने उसे ऐसा करने पर मजबूर किया। इस प्रकार अमीर और गरीब के दुःख में अवसर, साधन और सहूलियत का गहरा अंतर दिखाई देता है।

2. लेखक ने पोशाक को क्यों बंधन बताया है?
उत्तर देखेंलेखक ने पोशाक को केवल पहनावे का साधन नहीं, बल्कि समाज में मनुष्य के दर्जे और अधिकार का प्रतीक बताया है। पोशाक से समाज व्यक्ति का मूल्य और स्थान तय करता है। अमीर और संभ्रांत वर्ग की पोशाक उन्हें दूसरों की नजर में ऊँचा दर्जा देती है और कई दरवाजे खोल देती है। लेकिन जब कोई संवेदनशील व्यक्ति समाज के निचले तबके की तकलीफों को समझना चाहता है, तो वही पोशाक उसके लिए बाधा बन जाती है। लेखक का मन उस अधेड़ स्त्री का दुख समझने और उसके पास बैठने को हुआ, लेकिन अपनी संभ्रांत पोशाक और सामाजिक बंधनों के कारण वह ऐसा न कर सका। जैसे वायु की लहरें पतंग को गिरने नहीं देतीं, वैसे ही पोशाक ने लेखक को उस स्त्री के दुःख के पास झुकने से रोका। इस प्रकार पोशाक सहानुभूति और संवेदनशीलता के बीच भी दूरी खड़ी कर देती है।

3. कहानी की बुढ़िया किस मजबूरी में बाजार में खरबूजे बेचने आई थी?
उत्तर देखेंकहानी की बुढ़िया का बेटा भगवाना खेत में खरबूजे तोड़ते समय साँप के डँसने से मर गया। बेटे की मृत्यु ने परिवार की रीढ़ तोड़ दी। दाह-संस्कार और पूजा-पाठ में घर का अनाज, आटा-चावल सब चला गया। बेटे के शव के लिए कपड़े खरीदने हेतु बुढ़िया को अपने गहने तक बेचने पड़े। घर में बहू बुखार से तप रही थी और पोते-पोतियाँ भूख से बिलबिला रहे थे। बेटे के बिना कोई सहारा नहीं बचा था और उधार देने वाला भी न था। ऐसी विवशता में बुढ़िया ने बेटे द्वारा बटोरे गए खरबूजे डलिया में सजाए और बाजार में बेचने चली आई। उसका मन शोक से टूटा था, इसलिए वह खरबूजों के पास बैठकर सिर झुकाए फफक-फफककर रो रही थी। लोग उसे बेहया कह रहे थे, लेकिन वास्तव में यह उसकी मजबूरी थी। पेट की आग और बच्चों की भूख ने उसे शोक मनाने का अवसर नहीं दिया।

4. समाज ने उस स्त्री की परिस्थिति को किस दृष्टि से देखा और क्यों?
उत्तर देखेंसमाज ने उस स्त्री की परिस्थिति को सहानुभूतिपूर्ण दृष्टि से नहीं देखा। लोग उसे बेहया, लालची और धर्मविहीन कह रहे थे। किसी ने कहा कि जवान बेटे की मौत पर तुरंत बाजार आना बेशर्मी है। किसी ने कहा कि रोटी के लिए ऐसे लोग धर्म-ईमान तक बेच देते हैं। परचून वाले लाला ने तो यह तक कहा कि उसके कारण दूसरों का धर्म-ईमान बिगड़ जाएगा, क्योंकि सूतक के समय बेचे गए खरबूजे कोई खा ले तो पाप होगा। इन लोगों ने उसकी आर्थिक विवशता, भूख और मजबूरी को समझने की कोशिश नहीं की। उनके लिए धर्म-परंपरा और समाज की दिखावट ही मुख्य थी। वस्तुतः यह समाज की संकीर्ण सोच और असंवेदनशीलता को उजागर करता है। यह घटना बताती है कि गरीब का दुख समाज की नजरों में बेहयाई बनकर रह जाता है, जबकि अमीर का दुख सहानुभूति पाता है।

5. कहानी का मुख्य संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर देखेंइस कहानी का मुख्य संदेश यह है कि दुःख मनाना भी एक सामाजिक अधिकार है, लेकिन यह अधिकार सभी वर्गों को समान रूप से नहीं मिलता। अमीर और संभ्रांत वर्ग महीनों तक अपने शोक में डूबे रह सकते हैं, क्योंकि उनके पास धन, सहूलियत और समाज की सहानुभूति होती है। इसके विपरीत गरीब वर्ग को पेट की आग और जीवन की विवशता शोक मनाने का समय और अवसर नहीं देती। कहानी की बुढ़िया का बेटा मर गया, लेकिन परिवार को भूख से बचाने के लिए उसे अगले दिन ही बाजार में खरबूजे बेचने आना पड़ा। लोग उसकी विवशता को समझने के बजाय उसे अपमानित कर रहे थे। लेखक बताते हैं कि समाज गरीबों के प्रति संवेदनशील नहीं है। अतः कहानी यह संदेश देती है कि हमें वर्ग, पोशाक और दिखावे से ऊपर उठकर दूसरों के दुख को समझना और उनकी मदद करना चाहिए। यही सच्ची मानवता है।