एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 हिंदी संचयन अध्याय 2 स्मृति
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 हिंदी संचयन अध्याय 2 स्मृति के प्रश्न उत्तर शैक्षणिक सत्र 2024-25 के अनुसार संशोधित रूप में यहाँ से प्राप्त किए जा सकते हैं। इस अध्याय का मुख्य विषय मानव जीवन पर स्मृतियों और समय बीतने का गहरा प्रभाव है। प्रसिद्ध हिंदी लेखक श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित यह अध्याय पुरानी यादों के विषय और किसी के अतीत को फिर से याद करने से जुड़ी खट्टी-मीठी भावनाओं की पड़ताल करता है।
कक्षा 9 हिंदी संचयन अध्याय 2 स्मृति
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 हिंदी संचयन अध्याय 2 स्मृति
कहानी कथावाचक द्वारा बचपन में एक कुँए में देखे गए सांप के इर्द-गिर्द घूमती है। लेखक ने इस लेख में उस रोमांच का वर्णन किया है जब वह चिट्ठियों को लेने के लिए उस कुँए में भी उतर जाता है जहाँ एक विषैला सांप रहता था। हम भी जैसे-जैसे यादों की गलियों में चलते हैं, हमें अपने बचपन के अल्हड़ दिन, ग्रामीण जीवन की सादगी और अपने गाँव की गहरी परंपराओं की याद आती है। पुरानी यादों का विषय तब स्पष्ट हो जाता है जब पात्र पुरानी यादों को फिर से याद करते हैं और समय के साथ आए बदलावों पर विचार करते हैं।
कुएँ का साँप: बचपन की अद्भुत यादें
स्मृति में लेखक अपनी बचपन की यादों के माध्यम से गाँव की सादगी और मासूमियत को प्रस्तुत करता है। उसकी कहानी में एक कुआँ का चित्रण है जो गाँव से चार फर्लांग दूर है और जिसमें एक भयंकर साँप पड़ा हुआ है। वह कुआँ सूखा हुआ था और उसमें पानी नहीं था। लेखक और उसके साथी स्कूल से लौटते समय उस कुएँ के पास जाते और उसमें पत्थर फेंकते थे। जब वे पत्थर फेंकते, साँप फुसकार की आवाज करता था, जिसे सुनकर बच्चे मजा लेते थे।
इस छोटे अंश में, लेखक बच्चों की नटखटी और अबोधता को प्रकट करता है, जो अजाने में एक जीव को परेशान करते हैं। यह उन दिनों की सादगी और मासूमियत को दर्शाता है, जब बच्चे छोटी-छोटी बातों में खुशी ढूँढ लेते थे। यह उन दिनों की यादगार घड़ियों को जिन्दा करता है, जब जीवन अधिक सरल और अधिक खुशहाल था।
साँप वाले कुएँ की घटना और चिट्ठियों की खोज
गाँव के किसी कुएँ में एक भयानक साँप पड़ा हुआ था। बच्चे उस कुएँ में पत्थर फेंककर साँप को परेशान करते थे और फुसकार सुनते थे। एक दिन जब मुख्य पात्र ने अपनी टोपी से चिट्ठी निकालकर उसे कुएँ में फेंका, तो वह टोपी भी चिट्ठियों के साथ कुएँ में गिर गई।
लेखक और उसका छोटा भाई कुएँ के किनारे दुःखी होकर बैठे थे, उन्हें अब घर जाकर इसका समाधान कैसे करना है, इस पर विचार कर रहे थे। लेखक को डर था कि अगर उसने सच बताया तो उसे मार पड़ेगी और अगर झूठ बोला तो चिट्ठियाँ खो जाएंगी। उसकी तबीयत उसे भाग जाने को कह रही थी, पर डर और जिम्मेदारी उसे वहाँ रोक रही थी।
धृढ़ संकल्प और साँप का सामना
यह कहानी एक पुरुष की धृढ़ संकल्पना और साहस का परिणाम है, जिसने कुएँ में घुसकर चिड़ीयों को निकालने का निर्णय लिया। उसने अपनी जान को खतरे में डालकर यह कार्य किया, जिसमें एक जहरीला साँप भी था। उसका विश्वास था कि वह पहले साँप को मार देगा और फिर चिड़ीयों को उठा लेगा।
उसने अपने छोटे भाई की मदद से धोतियों और रस्सी का उपयोग करके कुएँ में उतरने की योजना बनाई। उसके भाई को डर था, पर वह उसे आश्वस्त करता रहा कि सब कुछ ठीक होगा। वह पहले ही कई बार साँपों को मार चुका था, इसलिए उसे उससे ज्यादा डर नहीं था।
लेखक कुएँ में उतर रहा था जब वह ध्यान से नीचे देखा तो वह एक साँप को देखा जो फन फैलाकर उसका इंतजार कर रहा था। जैसे एक साँपेरा अपनी बीन के साथ साँप को नचाता है, उसी प्रकार साँप तैयार था उसे हमला करने के लिए। वह समझता है कि उसे कुएँ के मध्य में उतरना है, जहाँ वह साँप से अधिक-से-अधिक चार फुट की दूरी पर रह सकता है। उसने तय किया कि वह पीठ नहीं दिखाएगा और धीरे-धीरे उतरने लगा। वह अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करता है और कुएँ की दीवार के पास अपने पैर रखता है।
लेखक कुएँ में उतरता है और साँप से सामना करता है। वह साँप के निकटतम स्थित दो चिट्टियों को उठाना चाहता है। उसने सोचा कि वह साँप को अपने डंडे से दबाकर चिट्टियों को उठा सकता है, लेकिन वहां पर्याप्त स्थान नहीं था और साँप को डंडे से दबाना खतरनाक था। उसने सोचा कि वह चिट्टियों को डंडे से सरका सकता है, पर अगर साँप हमला करता, तो उसके पास उसे रोकने का कोई तरीका नहीं था। इस स्थिति में, वह या तो साँप को हमला कर सकता था या फिर उससे बिल्कुल दूर रह सकता था। वह फैसला करता है कि वह साँप को छोड़ देगा और चिट्टियों को उठाने का प्रयास करेगा।
साँप के साथ सामना
जब लेखक ने डंडे से साँप को छूने की कोशिश की, साँप ने उसे हमला किया और उसके डंडे पर अपना विष छोड़ दिया। लेखक डर से उछल पड़ा, और उसके भाई को लगा कि साँप ने उसे काट लिया। लेखक ने पुनः कोशिश की, और इस बार साँप डंडे से चिपट गया। लेखक ने तुरंत अपने सामान चुन लिया, और उसे उसके भाई को ऊपर खींचने के लिए दिया। यह सामना लेखक के लिए एक अनुभव बन गया, जिसमें उसने अपने साहस और जीवन की महत्वपूर्णता को महसूस किया।
एक समय में, जब लेखक छोटा था, उसने एक साँप को एक डंडे के साथ पकड़ने की कोशिश की। साँप ने उस डंडे को अपने अधिकार में लिया और जब लेखक ने डंडा वापस लेने की कोशिश की, साँप ने उस पर हमला करने की कोशिश की। लेखक ने चतुराई से साँप को भरमाया और डंडा वापस प्राप्त किया। फिर, लेखक को एक 36 फुट ऊँची जगह पर चढ़ना हुआ। वह बिना पैरों के सहारे, सिर्फ हाथों की मदद से चढ़ा। जब वह ऊपर पहुँचा, उसने अपनी थकान को महसूस किया।
1915 में, जब वह मैट्रिक पास किया, उसने इस घटना को अपनी माँ को सुनाया। माँ ने उसे अपनी गोद में लिया और उस समय की यादें ताजा कीं। लेखक ने अंत में यह विचार प्रकट किया कि पुराने जमाने में जब रायफलें नहीं होती थीं, डंडा होता था और उस समय की चुनौतियाँ आज से भिन्न थीं।